Hindi Grammar – हिन्दी व्याकरण (Vyakaran)
Viram Chinh (विराम चिन्ह) in Hindi – विराम चिन्ह के उदाहरण, परिभाषा, प्रकार और उनका प्रयोग
लिखने में रुकावट या विराम के स्थानों को जिन चिह्नों द्वारा प्रकट किया जाता है, उन्हें विराम-चिह्न कहते हैं। इनके प्रयोग से वक्ता के अभिप्राय में अधिक स्पष्टता का बोध होता है। इनके अनुचित प्रयोग से अर्थ का अनर्थ भी हो जाता है;
जैसे-
“कल रात एक नवयुवक मेरे पास पैरों में मोजे और जूते, सिर पर टोपी,
हाथ में छड़ी, मुँह में सिगार और कुत्ता पीछे-पीछे लिए आया”।
“कल रात एक नवयुवक मेरे पास, पैरों में मोजे और जूते सिर पर, टोपी
हाथ में, छड़ी मुँह में, सिगार और कुत्ता पीछे-पीछे लिए आया।”
विराम-चिह्नों के बदलने से वाक्य का अर्थ भी बदल जाता है;
जैसे-
- उसे रोको मत, जाने दो।
- उसे रोको, मत जाने दो।
उन्नीसवीं शताब्दी में पूर्वार्द्ध तक हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में विराम-चिह्नों के रूप में एक पाई (।) दो पाई (।।) का प्रयोग होता था। कलकत्ता में फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना के बाद अंग्रेज़ों के सम्पर्क में आने के कारण उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त तक अंग्रेज़ी के ही बहुत से विराम-चिह्न हिन्दी में आ गए। बीसवीं शताब्दी के आरम्भ से हिन्दी में विरामादि चिह्नों का व्यवस्थित प्रयोग होने लगा और आज हिन्दी व्याकरण में उन्हें पूर्ण मान्यता प्राप्त है।
हिन्दी में निम्नलिखित विराम-चिह्नों का प्रयोग होता है-
नाम – चिह्नों
- पूर्ण विराम-चिह्न (Sign of full-stop ) – (।)
- अर्द्ध विराम-चिह्न (Sign of semi-colon) – (;)
- अल्प विराम-चिह्न (Sign of comma) – (,)
- प्रश्नवाचक चिह्न (Sign of interrogation) – (?)
- विस्मयादिबोधक चिह्न (Sign of exclamation) – (!)
- उद्धरण चिह्न (Sign of inverted commas) – (” “) (” “)
- निर्देशक या रेखिका चिह्न (Sign of dash) – (—)
- विवरण चिह्न (Sign of colon dash) – (:-)
- अपूर्ण विराम-चिह्न (Sign of colon) – (:)
- योजक विराम-चिह्न (Sign of hyphen) – (-)
- कोष्ठक (Brackets) – () [] {}
- चिह्न (Sign of abbreviation) – 0/,/.
- चह्न (Sign of elimination) + x + x + /…/…
- प्रतिशत चिह्न (Sign of percentage) (%)
- समानतासूचक चिह्न (Sign of equality) (=)
- तारक चिह्न/पाद-टिप्पणी चिह्न (Sign of foot note) (*)
- त्रुटि चिह्न (Sign of error; indicator) (^)
विराम चिन्ह का प्रयोग
नीचे दिए गए विराम-चिह्नों का प्रयोग हिन्दी भाषा में निम्न प्रकार किया जाता है-
पूर्ण विराम का प्रयोग (।) पूर्ण विराम का अर्थ है भली-भाँति ठहरना। सामान्यतः पूर्ण विराम का प्रयोग निम्नलिखित स्थितियों में होता है-
(i) प्रश्नवाचक और विस्मयादिबोधक वाक्यों को छोड़कर शेष सभी वाक्यों के अन्त में पूर्ण विराम का प्रयोग होता है;
जैसे-
- यह पुस्तक अच्छी है।
- गीता खेलती है।
- बालक लिखता है।
(ii) किसी व्यक्ति या वस्तु का सजीव वर्णन करते समय वाक्यांशों के अन्त में भी पूर्ण विराम का प्रयोग होता है;
जैसे-
- गोरा बदन।
- स्फूर्तिमय काया।
- मदमाते नेत्र।
- भोली चितवन।
- चपल अल्हड़ गति।
(iii) प्राचीन भाषा के पद्यों में अर्द्धाली के पश्चात् पूर्ण विराम का प्रयोग होता है;
जैसे-
- परहित सरिस धरम नहिं भाई।
- परपीड़ा सम नहिं अधमाई।।
अर्द्ध विराम का प्रयोग (;)
अर्द्ध विराम का अर्थ है-आधा विराम। जहाँ पूर्ण विराम की तुलना में कम रुकना होता है, वहाँ अर्द्ध विराम का प्रयोग होता है। सामान्यतः अर्द्ध विराम का प्रयोग निम्नलिखित स्थितियों में होता है-
(i) जहाँ संयुक्त वाक्यों के मुख्य उपवाक्यों में परस्पर विशेष सम्बन्ध नहीं होता है, वहाँ अर्द्ध विराम द्वारा उन्हें अलग किया जाता है;
जैसे-
- उसने अपने माल को बचाने के लिए अनेक उपाय किए; परन्तु वे सब निष्फल हुए।
(ii) मिश्र वाक्यों में प्रधान वाक्य के साथ पार्थक्य प्रकट करने के लिए अर्द्ध विराम का प्रयोग किया जाता है;
जैसे-
- जब मेरे पास रुपये होंगे; तब मैं आपकी सहायता करूँगा।
(iii) अनेक उपाधियों को एक साथ लिखने में, उनमें पार्थक्य प्रकट करने के लिए इसका प्रयोग होता है;
जैसे-
- डॉ. अशोक जायसवाल, एम.ए.; पी.एच.डी.; डी.लिट्.।
अल्प विराम का प्रयोग (,)
अल्प विराम का अर्थ है- न्यून ठहराव। वाक्य में जहाँ बहुत ही कम ठहराव होता है, वहाँ अल्प विराम का प्रयोग होता है। इस चिह्न का प्रयोग सर्वाधिक होता है। सामान्यतः अल्प विराम का प्रयोग निम्नलिखित स्थितियों में होता हैं-
(i) जहाँ एक तरह के कई शब्द, वाक्यांश या वाक्य एक साथ आते हैं. तो उनके बीच अल्प विराम का प्रयोग होता है;
जैसे-
- रमेश, सुरेश, महेश और वीरेन्द्र घूमने गए।
(ii) जहाँ भावातिरेक के कारण शब्दों की पुनरावृत्ति होती है, वहाँ अल्प विराम का प्रयोग होता है;
जैसे-
- सुनो, सुनो, ध्यान से सुनो, कोई गा रहा है।
(iii) सम्बोधन के समय जिसे सम्बोधित किया जाता है, उसके बाद अल्प विराम का प्रयोग होता है;
जैसे-
- वीरेन्द्र, तुम यहीं ठहरो।
(iv) जब हाँ अथवा नहीं को शेष वाक्य से पृथक् किया जाता है, तो उसके बाद अल्प विराम का प्रयोग होता है;
जैसे-
- हाँ, मैं कविता करूँगा।
(v) पर, परन्तु, इसलिए, अत:, क्योंकि, बल्कि, तथापि, जिससे आदि के पूर्व अल्प विराम का प्रयोग होता है;
जैसे-
- वह विद्यालय न जा सका, क्योंकि अस्वस्थ था।
(vi) उद्धरण से पूर्व अल्प विराम का प्रयोग होता है;
जैसे-
- राम ने श्याम से कहा, “अपना काम करो।”
(vii) यह, वह, तब, तो, और, अब, आदि के लोप होने पर वाक्य में अल्प विराम का प्रयोग होता है;
जैसे-
- जब जाना ही है, जाओ।
(viii) बस, वस्तुतः, अच्छा, वास्तव में आदि से आरम्भ होने वाले वाक्यों में इनके पश्चात् अल्प विराम का प्रयोग होता है;
जैसे-
- वास्तव में, मनोबल सफलता की कुंजी है।
(ix) तारीख के साथ महीने का नाम लिखने के बाद तथा सन्, संवत् के पूर्व अल्प विराम का प्रयोग किया जाता है;
जैसे-
- 2 अक्टूबर, सन् 1869 ई. को गाँधी जी का जन्म हुआ।
(x) अंकों को लिखते समय भी अल्प विराम का प्रयोग किया जाता है;
जैसे-
- 5, 6, 7, 8, 10, 20, 30, 40, 50, 60, 70, 80, 90, 100, 1000 आदि।
प्रश्नवाचक चिह्न का प्रयोग (?)
जब किसी वाक्य में प्रश्नात्मक भाव हो, उसके अन्त में प्रश्नवाचक चिह्न (?) लगाया जाता है। प्रश्नवाचक चिह्न का प्रयोग निम्नलिखित स्थितियों में होता है-
(i) प्रश्नवाचक चिह्न का प्रयोग प्रश्नवाचक वाक्यों के अन्त में किया जाता है;
जैसे
- तुम्हारा क्या नाम है?
(ii) प्रश्नवाचक चिह्न का प्रयोग अनिश्चय की स्थिति में किया जाता है;
जैसे
- आप सम्भवत: दिल्ली के निवासी हैं?
(iii) व्यंग्य करने की स्थिति में भी प्रश्नवाचक चिह्न का प्रयोग होता है;
जैसे-
- घूसखोरी नौकरशाही की सबसे बड़ी देन है, है न?
(iv) जहाँ शुद्ध-अशुद्ध का सन्देह उत्पन्न हो, तो उस पर या उसकी बगल में कोष्ठक लगाकर उसके अन्तर्गत प्रश्नवाचक चिह्न लगा दिया जाता है;
जैसे-
- हिन्दी की पहली कहानी ‘ग्यारह वर्ष का समय’ (?) मानी जाती है।
ऐसे वाक्य जिनमें प्रश्नवाचक चिह्न का प्रयोग नहीं होता
अप्रत्यक्ष कथन वाले प्रश्नवाचक वाक्यों के अन्त में प्रश्नवाचक चिह्न नहीं लगाया जाता;
जैसे-
- मैं यह नहीं जानता कि मैं क्या चाहता हूँ।
जिन वाक्यों में प्रश्न आज्ञा के रूप में हों, उन वाक्यों में प्रश्नवाचक चिह्न नहीं लगाया जाता है;
जैसे-
- मुम्बई की राजधानी बताओ।
विस्मयादिबोधक चिह्न का प्रयोग (!)
आश्चर्य, करुणा, घृणा, भय, विवाद, विस्मय आदि भावों की अभिव्यक्ति के लिए विस्मयादिबोधक चिह्न का प्रयोग होता है। इसका प्रयोग निम्नलिखित स्थितियों में होता है(i) विस्मयादिबोधक चिह्न का प्रयोग हर्ष, घृणा, आश्चर्य आदि भावों को व्यक्त करने वाले शब्दों के साथ होता है;
जैसे-
- अरे! वह अनुत्तीर्ण हो गया।
- वाह! तुम धन्य हो।
(ii) विनय, व्यंग्य, उपहास इत्यादि के व्यक्त करने वाले वाक्यों के अन्त में पूर्ण विराम के स्थान पर विस्मयादिबोधक चिह्न का प्रयोग होता है;
जैसे
- आप तो हरिश्चन्द्र हैं! (व्यंग्य)
- हे भगवान! दया करो! (विनय)
- वाह! वाह! फिर साइकिल चलाइए ! (उपहास)
उद्धरण चिह्न का प्रयोग (‘….’) (“….”)
उद्धरण चिह्न दो प्रकार के होते हैं—इकहरे चिह्न (‘….’) और दोहरे चिह्न (“….”) .. उद्धरण चिह्नों का प्रयोग निम्नलिखित स्थितियों में होता है-
(i) किसी लेख, कविता और पुस्तक इत्यादि का शीर्षक लिखने में इकहरे उद्धरण . चिह्न का प्रयोग होता है;
जैसे
- मैंने तुलसीदास जी का ‘रामचरितमानस’ पढ़ा है।
(ii) जब किसी शब्द की विशिष्टता अथवा विलगता सूचित करनी होती है, तो इकहरे उद्धरण चिह्न का प्रयोग होता है;
जैसे
- खाना का अर्थ ‘घर’ होता है।
(iii) उद्धरण के अन्तर्गत कोई दूसरा उद्धरण होने पर इकहरे उद्धरण चिह्न का प्रयोग होता है;
जैसे
- डॉ. वर्मा ने कहा है, “निराला जी की कविता ‘वह तोड़ती पत्थर’ बड़ी मार्मिक है।”
(iv) जब किसी कथन को जैसा का तैसा उद्धृत करना होता है, तब दोहरे उद्धरण चिह्न का प्रयोग होता है;
जैसे-
- सरदार पूर्णसिंह का कथन है-
- “हल चलाने वाले और भेड़ चराने वाले स्वभाव से ही साधु होते है।
निर्देशक या रेखिका का प्रयोग (-)
किसी विषय-विचार अथवा विभाग के मन्तव्य को सुस्पष्ट करने के लिए निर्देशक चिह्न या रेखिका चिह्न का प्रयोग किया जाता है। निर्देशक या रेखिका का प्रयोग निम्नलिखित स्थितियों में होता है-
(i) जब किसी कथन को जैसा का तैसा उद्धृत करना होता है, तब उससे पहले रेखिका का प्रयोग किया जाता है;
जैसे-
- तुलसी ने कहा है- “परहित सरिस धरम नहिं भाई।”
(ii) विवरण प्रस्तुत करने के पहले निर्देशक (रेखिका) का प्रयोग किया जाता है;
जैसे
- रचना के आधार पर शब्द तीन प्रकार के होते हैं—रूढ़, यौगिक और योगरूढ़।
(iii) जैसे, यथा और उदाहरण आदि शब्दों के बाद रेखिका का प्रयोग होता है;
जैसे
- संस्कृति की ‘स’ ध्वनि फ़ारसी में ‘ह’ हो जाती है;
जैसे-
- असुर > अहुर।
(iv) वाक्य में टूटे हुए विचारों को जोड़ने के लिए रेखिका का प्रयोग होता है;
जैसे-
- आज ऐसा लग रहा है-मैं घर पहुँच गया हूँ।
(v) किसी कविता या अन्य रचना के अन्त में रचनाकार का नाम देने से पूर्व रेखिका का प्रयोग होता है;
जैसे
- शायद समझ नहीं पाओ तुम, मैं कितना मज़बूर हूँ। मन है पास तुम्हारे लेकिन, रहता इतनी दूर हूँ। ओंकार नाथ वर्मा
(vi) संवादों को लिखने के लिए निर्देशक चिह्न का प्रयोग किया जाता है;
जैसे-
- सुरेश – क्या तुम स्कूल आओगे?
- रमेश – हाँ।
विवरण चिह्न का प्रयोग (:-)
सामान्यतः विवरण चिह्न का प्रयोग निर्देशक चिह्न की भाँति ही होता है। विशेष रूप से जब किसी विवरण को प्रारम्भ करना होता है अथवा किसी कथन को विस्तार देना होता है तब विवरण चिह्न का प्रयोग किया जाता है;
जैसे-
- निम्नलिखित विषयों में किसी एक पर निबन्ध लिखिए :
- (क) साहित्य और समाज
- (ख) भाषा और व्याकरण
- (ग) देशाटन.
- (घ) विज्ञान वरदान है या अभिशाप
- (ङ) नई कविता।
- जयशंकर प्रसाद ने कहा है:-‘जीवन विश्व की सम्पत्ति है।’
- किसी वस्तु का सविस्तार वर्णन करने में विवरण चिह्न का प्रयोग होता है;
जैसे:-
- इस देश में कई बड़ी-बड़ी नदियाँ हैं; जैसे:– गंगा, सिंधु, यमुना, गोदावरी आदि।
अपूर्ण विराम का प्रयोग (:)
अपूर्ण विराम चिह्न विसर्ग की तरह दो बिन्दुओं के रूप में होता है, इसलिए कभी-कभी विसर्ग का भ्रम होता है, फलत: इसका प्रयोग कम होता है। अपूर्ण विराम का स्वतन्त्र प्रयोग किसी शीर्षक को उसी के आगे स्पष्ट करने में होता है;
जैसे
- कामायनी : एक अध्ययन।
- विज्ञान : वरदान या अभिशाप
योजक चिह्न का प्रयोग (-)
योजक चिह्न का प्रयोग निम्नलिखित परिस्थितियों में किया जाता है-
(i) दो विलोम शब्दों के बीच योजक चिह्न का प्रयोग होता है;
जैसे-
- रात-दिन, यश-अपयश, आना-जाना।
(ii) द्वन्द्व समास के बीच योजक चिह्न का प्रयोग होता है;
जैसे-
- माता-पिता, भाई-बहन, गुरु-शिष्य।
(iii) दो समानार्थी शब्दों की पुनरुक्ति के बीच में भी इसका प्रयोग होता है;
जैसे-
- घर-घर, रात-रात, दूर-दूर।
(iv) जब विशेषण पदों का प्रयोग संज्ञा के अर्थ में होता है;
जैसे-
- भूखा-प्यासा, थका-माँदा, लूला-लँगड़ा
(v) गुणवाचक विशेषण के साथ यदि सा, सी का संयोग हो, तो उनके बीच योजक-चिह्न का प्रयोग होता है;
जैसे-
- छोटा-सा घर, नन्ही-सी बच्ची, बड़ा-सा कष्ट।
(vi) दो प्रथम-द्वितीय प्रेरणार्थक के योग के बीच भी योजक चिह्न का प्रयोग होता है;
जैसे-
- करना-करवाना, जीतना-जितवाना, पीना-पिलवाना, खाना-खिलवाना, मरना-मरवाना।
कोष्ठक का प्रयोग (), { }, []
कोष्ठकों का प्रयोग निम्नलिखित स्थितियों में होता है-
(i) जब किसी भाव या शब्द की व्याख्या करना चाहते हैं, किन्तु उस अंश को मूल वाक्य से अलग ही रखना चाहते हैं, तो कोष्ठक का प्रयोग किया जाता है;
जैसे
- उन दिनों मैं सेठ जयदयाल हाईस्कूल (अब इण्टर कॉलेज) में हिन्दी अध्यापक था।
(ii) नाटक या एकांकी में निर्देश के लिए कोष्ठक का प्रयोग होता है;
जैसे
- (राजा का प्रवेश)
- (पटाक्षेप)
(iii) किसी वर्ग के उपवर्गों को लिखते समय वर्णों या संख्याओं को कोष्ठक में लिखा जाता है;
जैसे
- (क) (ख)
- (1) (2)
- (i) (ii)
(iv) प्राय: बड़े [] और मझोले {} कोष्ठकों का उपयोग गणित के कोष्ठक वाले सवालों को हल करने के लिए किया जाता है।
संक्षेपसूचक चिह्न का प्रयोग (o,.)
संक्षेपसूचक चिह्न का प्रयोग किसी नाम या शब्द के संक्षिप्त रूप के साथ होता है; जैसे-डॉक्टर के लिए (डॉ.), प्रोफेसर या प्रोपराइटर के लिए (प्रो.), पंडित के लिए (पं.), मास्टर ऑफ आर्ट्स के लिए (एम.ए.) और डॉ. ऑफ फिलॉसफी के लिए (पी-एच.डी.) आदि।
(शून्य अधिक स्थान घेरता है, अत: इसके स्थान पर बिन्दु (.) का भी प्रयोग किया जाता है।)
लोप सूचक चिह्न का प्रयोग (x x x x/…./—-)
जब किसी अवतरण का पूरा उद्धरण न देकर कुछ अंश छोड़ दिया जाता है, तब लोप सूचक चिह्न का प्रयोग किया जाता है;
जैसे-
- सच-सरासर-सच, आज देश का हर नेता …… है।
- नेताओं की वज्र XXXX से देश का हर नागरिक त्रस्त है। मेरा यदि वश होता तो मैं इन सबको—-
प्रतिशत चिह्न का प्रयोग (%)
सौ (100) संख्या के अन्तर्गत, जिस संख्या को प्रदर्शित करना होता है, उसके आगे प्रतिशत चिह्न का प्रयोग किया जाता है;
जैसे-
- सभा में 25% स्त्रियाँ थीं।
- 30% छूट के साथ पुस्तक की 50 प्रतियाँ भेज दें।
समानतासूचक/तुल्यतासूचक चिह्न का प्रयोग ( = )
किसी शब्द का अर्थ अथवा भाषा के व्याकरणिक विश्लेषण में समानता सूचक चिह्न का प्रयोग किया जाता है;
जैसे-
- कृतघ्न = उपकार न मानने वाला।
- तपः + वन = तपोवन।
- पुन: + जन्म = पुनर्जन्म।
- क्षिति = पृथ्वी
तारक/पाद चिह्न का प्रयोग (*)
इस चिह्न का प्रयोग किसी विषय के बारे में विशेष सूचना या निर्देश देना हो, तो ऊपर तारक चिह्न लगा दिया जाता है और फिर पृष्ठ के अधोभाग में रेखा के नीचे तारक चिह्न लगाकर उसका विवरण दिया जाता है, जिसे पाद-टिप्पणी (Foo Note) कहा जाता है;
जैसे-
- रामचरितमानस
- हमारे देश में अत्यन्त लोकप्रिय ग्रन्थ है।
- रामचरितमानस से हमारा तात्पर्य तुलसीदास विरचित राम-कथा पर आधारित महाकाव्य से है।
त्रुटि चिह्न (^)
अक्षर, पद, पद्यांश या वाक्य के छूट जाने पर छूटे अंश को उस वाक्य के ऊपर लिखने हेतु वाक्य के अंश के नीचे त्रुटि चिह्न का प्रयोग किया जाता है;
जैसे-
विराम चिन्ह वस्तुनिष्ठ प्रश्नावली
1. नीचे लिखे वाक्यों में से किसमें विराम-चिह्नों का सही प्रयोग हुआ है? (उत्तराखण्ड अध्यापक पात्रता परीक्षा- 2011)
(a) हाँ, मैं सच कहता हूँ बाबूजी। माँ बीमार है। इसलिए मैं नहीं गया।
(b) हाँ मैं सच कहता हूँ। बाबूजी, माँ बीमार है। इसलिए मैं नहीं गया।
(c) हाँ, मैं सच कहता हूँ, बाबू जी, माँ बीमार है, इसलिए मैं नहीं गया।
(d) हाँ, मैं सच कहता हूँ, बाबू जी। माँ बीमार है इसलिए मैं नहीं गया।
उत्तर :
(c) हाँ, मैं सच कहता हूँ, बाबू जी, माँ बीमार है, इसलिए मैं नहीं गया।
2. विरामादि चिह्नों की दृष्टि से कौन-सा वाक्य शुद्ध है? (उत्तराखण्ड अध्यापक पात्रता परीक्षा 2011)
(a) पिता ने पुत्र से कहा-देर हो रही है, कब आओगे
(b) पिता ने पुत्र से कहा-देर हो रही है, कब आओगे?
(c) पिता ने पुत्र से कहा-“देर हो रही है, कब आओगे?”
(d) पिता ने पुत्र से कहा, “देर हो रही है कब आओगे।
उत्तर :
(c) पिता ने पुत्र से कहा-“देर हो रही है, कब आओगे?”
3. जहाँ वाक्य की गति अन्तिम रूप ले ले, विचार के तार एकदम टूट जाएँ, वहाँ किस चिह्न का प्रयोग किया जाता है?
(a) योजक
(b) उद्धरण चिह्न
(c) अल्प विराम
(d) पूर्ण विराम
उत्तर :
(d) पूर्ण विराम
4. किस वाक्य में विरामादि चिह्नों का सही प्रयोग हुआ है?
(a) आप मुझे नहीं जानते! महीने में मैं दो दिन ही व्यस्त रहता हूँ।
(b) आप, मुझे नहीं जानते? महीने में मैं, दो दिन ही व्यस्त रहता हूँ
(c) आप मुझे, नहीं जानते, महीने में मैं! दो दिन ही व्यस्त रहता हूँ
(d) आप मुझे नहीं, जानते; महीने में मैं दो दिन ही व्यस्त रहता हूँ?
उत्तर :
(a) आप मुझे नहीं जानते! महीने में मैं दो दिन ही व्यस्त रहता हूँ।
5. किस वाक्य में विरामादि चिह्नों का सही प्रयोग हुआ है?
(a) मैं मनुष्य में, मानवता देखना चाहता हूँ। उसे देवता बनाने की मेरी इच्छा नहीं।
(b) मैं मनुष्य में मानवता देखना चाहता हूँ। उसे देवता बनाने की, मेरी इच्छा नहीं।
(c) मैं मनुष्य में मानवता, देखना चाहता हूँ। उसे देवता बनाने की मेरी इच्छा नहीं।
(d) मैं, मनुष्य में मानवता देखना चाहता हूँ। उसे देवता बनाने की मेरी इच्छा नहीं।
उत्तर :
(b) मैं मनुष्य में मानवता देखना चाहता हूँ। उसे देवता बनाने की, मेरी इच्छा नहीं।
6. पूर्ण विराम के स्थान पर एक अन्य चिह्न भी प्रचलित है, वह है-
(a) अल्प विराम
(b) योजक चिह्न
(c) फुलस्टॉप
(d) विवरण चिह्न
उत्तर :
(c) फुलस्टॉप
7. जब से हिन्दी में अन्तर्राष्ट्रीय अंकों 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 0 का प्रयोग आरम्भ हुआ, तब से ।’ के स्थान पर किसका प्रयोग होने लगा है?
(a) अर्द्ध विराम
(b) अल्प विराम
(c) विस्मयादिबोधक
(d) फुलस्टॉप
उत्तर :
(d) फुलस्टॉप
8. प्रश्नवाचक तथा विस्मयादिबोधक को छोड़कर सभी वाक्यों के अन्त में प्रयुक्त होता है-
(a) पूर्ण विराम
(b) अर्द्ध विराम
(c) उद्धरण चिह्न
(d) विवरण चिह्न
उत्तर :
9. किस वाक्य में विराम-चिह्नों का सही प्रयोग हुआ है?
(a) राम, मोहन, घर, पर्वत; संज्ञाएँ। यह, वह, तुम, मैं; सर्वनाम। लिखना, गाना, दौड़ना; क्रियाएँ।
(b) राम, मोहन, घर, पर्वत संज्ञाएँ; यह, वह, तुम, मैं सर्वनाम; लिखना, गाना, दौड़ना क्रियाएँ
(c) राम-मोहन, घर-पर्वत संज्ञाएँ! यह-वह-तुम-मैं सर्वनाम! लिखना-गानदौड़ना संज्ञाएँ।
(d) राम मोहन घर पर्वत संज्ञाएँ। यह वह तुम मैं सर्वनाम। लिखना, गाना, दौड़ना क्रियाएँ।
उत्तर :
(a) राम, मोहन, घर, पर्वत; संज्ञाएँ। यह, वह, तुम, मैं; सर्वनाम। लिखना, गाना, दौड़ना; क्रियाएँ।
10. जहाँ पूर्ण विराम की अपेक्षा कम रुकना अपेक्षित हो, वहाँ ……. चिह्न · का प्रयोग किया जाता है।
(a) अर्द्ध विराम
(b) अल्प विराम
(c) संक्षेप चिह्न
(d) कोष्ठक
उत्तर :
(a) अर्द्ध विराम
Sangya in Hindi – संज्ञा के प्रकार, भेद और उदाहरण
- प्रकार
- प्रयोग
- संज्ञा के आवश्यक धर्म
- लिंग
- वचन
- कारक
- विभिन्न परसर्गों का प्रभाव और प्रयोग
- संज्ञा की रूप–रचना
“किसी वस्तु, व्यक्ति, स्थान या भाव के नाम को संज्ञा कहते हैं।”
जैसे–अंशु, प्रवर, चेन्नई, भलाई, मकान आदि।
उपर्युक्त उदाहरण में, अंशु और प्रवर : व्यक्तियों के नाम
चेन्नई : स्थान का नाम
मकान : वस्तु का नाम और
भलाई : भाव का नाम है।
संज्ञा को परम्परागत रूप से (प्राचीन मान्यताओं के आधार पर) पाँच प्रकारों और आधुनिक मान्यताओं के आधार पर तीन प्रकारों में बाँटा गया है।
जातिवाचक संज्ञा (Common Noun) : जिन संज्ञाओं से एक जाति के अन्तर्गत आनेवाले सभी व्यक्तियों, वस्तुओं, स्थानों के नामों का बोध होता है, जातिवाचक संज्ञाएँ कहलाती हैं। जैसे
गाय : गाय कहने से पहाड़ी, हरियाणी, जर्सी, फ्रीजियन, संकर, देशी, विदेशी, काली, उजली, चितकबरी–इन सभी प्रकार की गायों का बोध होता है; क्योंकि गाय जानवरों की एक जाति हुई।
लड़का : इसमें सभी तरह और सभी जगहों के लड़के आते हैं–रामू, श्यामू, प्रखर, संकेत, मोहन, पीटर, करीम आदि–क्योंकि, मनुष्यों में एक खास अवस्थावाले मानवों की एक जाति हुई–लड़का।
नदी : इसके अंतर्गत सभी नदियाँ आएँगी–गंगा, यमुना, सरयू, कोसी, ब्रह्मपुत्र, सिंधु, ह्वांगहो, टेन्नेसी, नील, दजला, फुरात वे सभी।
पहाड़ : इस जाति के अंतर्गत हिमालय, आल्प्स, फ्यूजियामा, मंदार–ये सभी पहाड़ आएँगे।
शहर : यह स्थानसूचक जातिवाचक संज्ञा है। इसके अंतर्गत तमाम शहर आएँगे–दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई, मुम्बई, बेंगलुरू, वाराणसी, पटना, कानपुर, लखनऊ ये सभी।
नोट : इसी जातिवाचक संज्ञा के अंतर्गत आधुनिक मान्यताओं के आधार पर द्रव्यवाचक और समूहवाचक संज्ञाओं को रखा गया है।
व्यक्तिवाचक संज्ञा (Proper Noun) : व्यक्तिवाचक संज्ञाएँ उन्हीं वस्तुओं, व्यक्तियों, स्थानों की जातियों में से खास का नाम बताती हैं। यानी, जो संज्ञाएँ किसी विशेष वस्तु, व्यक्ति या स्थान के नामों का बोध कराए, व्यक्तिवाचक कहलाती हैं।
उदाहरण हम ऊपर की जातियों से ही खास–खास का नाम चुनते हैं–
जर्सी गाय, प्रखर कुमार, ह्वांगहो, हिमालय पर्वत, बेंगुलुरू आदि। आप देख रहे हैं कि ‘जर्सी गाय’ से एक खास प्रकार की गाय का; ‘प्रखर कुमार’ से एक खास व्यक्ति का; ‘ह्वांगहो’ से एक खास नदी का; ‘हिमालय पर्वत’ से एक खास पर्वत का और ‘बेंगलुरू’ से एक खास शहर का बोध हो रहा है। अतएव, ये सभी व्यक्तिवाचक संज्ञाएँ हैं।
भाववाचक संज्ञा (Abstract Noun) : जिन संज्ञाओं से पदार्थों या व्यक्तियों के धर्म, गुण, दोष, आकार, अवस्था, व्यापार या चेष्टा आदि भाव जाने जाएँ, वे भाववाचक संज्ञाएँ होती हैं। भाववाचक संज्ञाएँ अनुभवजन्य होती हैं, ये अस्पर्शी होती हैं।
उदाहरण क्रोध, घृणा, प्रेम, अच्छाई, बुराई, बीमारी, लंबाई, बुढ़ापा, मिठास, बचपन, हरियाली, उमंग, सच्चाई आदि। उपर्युक्त उदाहरणों में से आप किसी को छू नहीं सकते; सिर्फ अनुभव ही कर सकते हैं।
कुछ भाववाचक संज्ञाएँ स्वतंत्र होती हैं तो कुछ विभिन्न प्रत्ययों को जोड़कर बनाई जाती हैं। उपर्युक्त उदाहरणों को ही हम देखते हैं–
क्रोध, घृणा, प्रेम, उमंग आदि स्वतंत्र भाववाचक हैं; किन्तु अच्छाई (अच्छा + आई), बुराई (बुरा + आई), बीमारी (बीमार + ई), लम्बाई (लम्बा + आई), बुढ़ापा (बूढ़ा + पा), मिठास (मीठा + आस), बचपन (बच्चा + पन), हरियाली (हरी + आली), सच्चाई (सच्चा + आई) प्रत्ययों के जोड़ने से बनाई गई भाववाचक संज्ञाएँ हैं।
नोट : भाववाचक संज्ञाओं के निर्माण से संबंधित बातें प्रत्यय–प्रकरण में दी गई हैं।
समूहवाचक संज्ञा (Collective Noun) : सभा, संघ, सेना, गुच्छा, गिरोह, झुण्ड, वर्ग, परिवार आदि समूह को प्रकट करनेवाली संज्ञाएँ ही समूहवाचक संज्ञाएँ हैं; क्योंकि यह संज्ञा समुदाय का बोध कराती है।
द्रव्यवाचक संज्ञा (Material Noun) : जिन संज्ञाओं से ठोस, तरल, पदार्थ, धातु, अधातु आदि का बोध हो, उन्हें द्रव्यवाचक संज्ञा कहते हैं। द्रव्यवाचक संज्ञाएँ ढेर के रूप में मापी या तोली जाती हैं। ये अगणनीय हैं।
जैसे–
लोहा, सोना, चाँदी, तेल, घी, डालडा, पानी, मिट्टी, सब्जी, फल, अन्न, चीनी, आटा, चूना, आदि।
ध्यातव्य बातें:
1. रोचक बातें
‘फल’ द्रव्यवाचक संज्ञा है; क्योंकि इसे तोला जाता है। लेकिन, फल के अंतर्गत तो सभी प्रकार के फल आते हैं। इस आधार पर ‘फल’ तो जातिवाचक संज्ञा हुई न? अब फलों में यदि ‘आम’ की बात करें तो एक खास प्रकार के फल का बोध होगा। इस हिसाब से ‘आम’ को व्यक्तिवाचक संज्ञा कहना चाहिए। थोड़ा–सा और आगे बढ़िए–’आम’ के अंतर्गत सभी प्रकार के आम आएँगे–सीपिया, मालदा, बंबइया, जर्दालू, सुकुल, गुलाबखास। तब तो ‘आम’ को जातिवाचक मानना उचित होगा और मालदा आम को व्यक्तिवाचक; परन्तु यदि कोई मालदा आमों में से केवल ‘दुधिया मालदा’ की बात करे तब क्या माना जाएगा? आपका स्पष्ट उत्तर होगा–व्यक्तिवाचक। अब थोड़ा नीचे से (दुधिया मालदा) ऊपर (फल) तक जाकर देखें–
‘सभा’ समूहवाचक संज्ञा है; क्योंकि यह समुदाय का बोधक है। अच्छा भई, तो ‘आम सभा’, बाल सभा आदि क्या हैं?
दर्जी आपको मापता है और डॉक्टर तोलता या आप स्वयं को तोलते हैं। आपको (मानव पाठक) क्या माना जाय–जातिवाचक? व्यक्तिवाचक? या फिर द्रव्यवाचक?
2. निष्कर्ष : संस्कृत के विद्वानों ने द्रव्यवाचक और समूहवाचक संज्ञाओं का अंतर्भाव भाववाचक में माना है तो डा० किशोरी दास बाजपेयी ने अपने व्याख्यान में निष्कर्ष निकालते हुए कहा–
“संज्ञा मात्र एक ही है–जातिवाचक संज्ञा–हम अध्ययन और समझदारी बढ़ाने के लिए तथा बच्चों को सिखाने के लिए इसके भिन्न–भिन्न प्रकारों की बातें करते हैं।”
शायद इसी उलझन के कारण आधुनिक वैयाकरणों ने आधुनिक अंग्रेजी भाषा का अनुकरण करते हुए बिल्कुल साफ़ तौर पर माना है कि संज्ञाओं को मुख्य रूप से तीन प्रकारों में बाँटा जाय। (यही मत मेरा भी है)–
1. व्यक्तिवाचक संज्ञा (Proper Noun)
2. गणनीय संज्ञा (Countable Noun) और
3. अगणनीय संज्ञा (Uncountable Noun)
संज्ञाओं के विशेष प्रयोग
हम पहले ही बता चुके हैं कि शब्द अनेकार्थी होते हैं और पद एकार्थी और पद भी तो निश्चित बंधन में नहीं रहते। जैसे-
वह अच्छा लड़का है।
(विशेषण)
वह लड़का अच्छा गाता है।
(क्रियाविशेषण)
तुम सारे ही आए, अच्छे कहाँ रह गए?
(सर्वनाम)
अच्छों को जाने दो।
(संज्ञा)
हम देख रहे हैं कि एक ही पद अपने नाम को बदल रहा है। नामों में यह बदलाव प्रयोग के कारण होता है।
जब पद अपने नामों को बदल लेते हैं तो क्या संज्ञा प्रयोग के आधार पर अपने नामों व प्रकारों को बदल नहीं सकती? कुछ उदाहरणों को देखें :
जातिवाचक से व्यक्तिवाचक में बदलाव
निम्नलिखित वाक्यों को ध्यानपूर्वक देखें
- गाँधी को राष्ट्रपिता कहा गया है।
- मेरे दादाजी पुरी यात्रा पर निकले हैं।
- गुरुजी का व्याकरण आज भी प्रामाणिक है।
- वह व्यक्ति देवी का अनन्य भक्त है।
- गोस्वामी जी ने रामचरितमानस की रचना अवधी भाषा में की।
उपर्युक्त उदाहरणों में रेखांकित पद जाति की बात न कहकर खास–खास व्यक्ति एवं स्थान की बातें करते हैं। इसे इस प्रकार समझें–
गाँधी : जातिवाचक संज्ञा–इसके अंतर्गत करमचन्द गाँधी, महात्मा गाँधी, इंदिरा गाँधी, फिरोज गाँधी, राजीव गाँधी, संजय गाँधी, मेनका गाँधी, सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी, प्रियंका गाँधी, वरुण गाँधी आदि–आदि आते हैं; परन्तु उक्त वाक्य में ‘गाँधी’ का प्रयोग सिर्फ मोहनदास करमचन्द गाँधी (महात्मा गाँधी) हुआ है।
पुरी : यह भी जातिवाचक संज्ञा है। इसके अंतर्गत तमाम पुरियाँ (नगर) जैसे– जगन्नाथपुरी, पावापुरी, अलकापुरी आती हैं; परन्तु उक्त वाक्य में केवल जगन्नाथपुरी के लिए पुरी का प्रयोग हुआ है।
इसी तरह, गुरुजी से : कामता प्रसाद गुरु।
देवी से : दुर्गा
गोस्वामी से : तुलसीदास का बोध होता है।
इसी प्रकार, ‘संवत्’ का प्रयोग : विक्रमी संवत् के लिए
‘भारतेन्दु’ का प्रयोग : हरिश्चन्द्र के लिए ‘मालवीय’ का
प्रयोग : मदनमोहन के लिए और
‘नेहरू’ का प्रयोग : पं० जवाहर लाल के लिए होता है।
स्पष्ट है कि जब कोई जातिवाचक संज्ञा किसी विशेष व्यक्ति/स्थान/वस्तु के लिए प्रयुक्त हो, तब वह जातिवाचक होते हुए भी व्यक्तिवाचक बन जाती है।
साधारणतया जातिवाचक संज्ञा का प्रयोग एकवचन और बहुवचन दोनों में होता है; किन्तु व्यक्तिवाचक और भाववाचक संज्ञाएँ प्रायः एकवचन में ही प्रयुक्त होती हैं–यह बात पूर्णतः सत्य नहीं है। निम्नलिखित उदाहरणों को देखें
1. पं० नेहरू बहुत बड़े राजनीतिज्ञ थे। यहाँ ‘नेहरू’ तो व्यक्तिवाचक संज्ञा है फिर भी बहुवचन क्रिया का प्रयोग हुआ है; क्योंकि सम्मानार्थ व्यक्तिवाचक संज्ञा का बहुवचन में भी प्रयोग होता है। यह बात भी पूर्णतया सत्य नहीं है। ये उदाहरण देखें–
(a) ईश्वर तेरा भला करे।
(b) उसका पिता बीमार है।
यहाँ ‘ईश्वर’ और ‘पिता’ का प्रयोग आदरणीय होते हुए भी एकवचन में हुआ है।
‘ईश्वर’ का प्रयोग तो एकवचन में ही होता है; परन्तु अपने पिता के लिए बहुवचन क्रिया लगाई जाती है। जैसे–मेरे पिताजी विभिन्न भाषाओं के जानकार हैं। इसी तरह शिक्षक का प्रयोग एकवचन एवं बहुवचन दोनों में होता है
शिक्षक हमारा मार्गदर्शन करते हैं।
पोषाहार–योजना से शिक्षक भी बेईमान हो गया है।
व्यक्तिवाचक से जातिवाचक संज्ञा में बदलाव
नीचे लिखे वाक्यों पर ध्यान दें
- इस दुनिया में रावणों/कंसों की कमी नहीं।
- एक ऐसा समय भी था, जब हमारे देश में घर–घर सीता और सावित्री थीं।
- इस देश में हरिश्चन्द्र घटते जा रहे हैं।
- परीक्षा समाप्त होते ही वह कुम्भकरण बन बैठा।
- कालिदास को नाट्यजगत् का शेक्सपीयर माना जाता है।
- समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन कहा गया है।
- आल्प्स पर्वत यूरोप का हिमालय है।
उपर्युक्त उदाहरणों में रावण, कंस, सीता, सावित्री, हरिश्चन्द्र, कुम्भकरण, शेक्सपीयर नेपोलियन और हिमालय का प्रयोग जातिवाचक संज्ञा के रूप में हुआ है।
जब कोई व्यक्तिवाचक संज्ञा एक व्यक्ति/वस्तु/स्थान विशेष के गुण की प्रसिद्धि के कारण उस गुणवाले सभी पदार्थों के लिए प्रयुक्त होती है; तब ऐसी अवस्था में वह जातिवाचक बन जाती है।
व्यक्तिवाचक संज्ञा संसार में अकेली होती है; लेकिन वह जातिवाचक के रूप में प्रयुक्त होकर कई हो जाती है।
भाववाचक का जातिवाचक में परिवर्तन भाववाचक संज्ञा का प्रयोग बहुवचन में नहीं होता (भाववाचक रूप में); किन्तु जब उसका रूप बहुवचन बन जाता है, तब वह भाववाचक न रहकर जातिवाचक बन जाती है। नीचे लिखे उदाहरणों को ध्यानपूर्वक देखें-
- आजकल भारतीय पहनावे बदल गए हैं।
- अच्छाइयों को ग्रहण करो और बुराइयों का त्याग।
- छात्रों को अपनी लिखावटों पर ध्यान देना चाहिए।
- लाहौर में बम धमाकों से सर्वत्र चिल्लाहट सुनाई पड़ रही थीं।
- मानवों के दिलों में ईर्ष्याएँ बढ़ती जा रही हैं।
- उसके सपनों का सौदागर आया है।
- मनुष्य मनुष्यताओं से विहीन अनादृत होता है।
उपर्युक्त उदाहरणों में रेखांकित पद भाववाचक से जातिवाचक बन गए हैं। संज्ञाओं के कार्य
वाक्य में दो भाग अनिवार्य रूप से होते हैं–उद्देश्य और विधेय। यदि वाक्य में उद्देश्य नहीं रहे तो वाक्य सार्थक नहीं हो सकेगा। वाक्य के परमावश्यक तत्त्व–योग्यता, आकांक्षा और आसत्ति –नष्ट हो जाएँगे। नीचे लिखे वाक्यों पर गंभीरतापूर्वक विचार करें-
- दौड़ता है। – कौन?
- महँगा है। – क्या?
- महान् राष्ट्र है। – कौन/क्या?
- कठिन नहीं है। – क्या?
- सस्ता हो गया है। – क्या?
क्या उपर्युक्त वाक्यों से अर्थ की पूर्णता स्पष्ट होती है? नहीं न?
अब इन्हीं वाक्यों के निम्नलिखित रूप देखें-
- प्रवर दौड़ता है। – प्रवर (संज्ञा) उद्देश्य
- सोना महँगा है?- सोना (संज्ञा) उद्देश्य
- भारत महान् राष्ट्र है।- भारत (संज्ञा) उद्देश्य
- गणित कठिन नहीं है। – गणित (संज्ञा) उद्देश्य
- कपड़ा सस्ता हो गया है। – कपड़ा (संज्ञा) उद्देश्य
अर्थात् संज्ञा वाक्य में उद्देश्य का काम कर वाक्य को सार्थक बना देती है।
अब इन वाक्यों को देखें-
- वह पढ़ता है। – क्या?
- माता–पिता गए हैं। – कहाँ?
- उसने छड़ी से पीटा। – किसे किसको?
- पेट्रोल से चलती है। – क्या?
- वह परीक्षा में अच्छा लाया। – क्या?
उपर्युक्त वाक्यों में भी आकांक्षा शेष रह जाती है। यदि क्रमशः किताब, बाजार, कुत्ते को, गाड़ी, अंक आदि संज्ञाएँ रहें तो वाक्य इस प्रकार बनकर सार्थक हो जाएँगे :
- वह किताब पढ़ता है।
- माता–पिता बाजार गए हैं।
- उसने छड़ी से कुत्ते को पीटा।
- पेट्रोल से गाड़ी चलती है।
- वह परीक्षा में अच्छा अंक लाया।
स्पष्ट है कि संज्ञाएँ वाक्य को सार्थकता प्रदान करती हैं।
संज्ञा के आवश्यक धर्म संज्ञा के तीन आवश्यक धर्म अथवा लक्षण माने गए हैं :
- संज्ञा का लिंग
- संज्ञा का वचन और
- संज्ञा का कारक।
यदि कोई पद संज्ञा है तो उसका निश्चित लिंग, वचन (एकवचन या बहुवचन) और कारकीय संबंध होगा। अतएव, संज्ञा का रूपान्तरण तीन स्तरों पर होता है–लिंग, वचन और कारक।
Sarvanam in Hindi सर्वनाम – सर्वनाम के भेद (Bhed), परिभाषा, उदाहरण
सर्वनाम संज्ञा के स्थान पर जिन शब्दों का प्रयोग किया जाता है, उन्हें ‘सर्वनाम’ कहते हैं। “राजीव देर से घर पहुंचा, क्योंकि उसकी ट्रेन देर से चली थी।” इस वाक्य में ‘उसकी’ का प्रयोग ‘राजीव’ के लिए हुआ है, अतः ‘उसकी’ शब्द सर्वनाम कहा जाएगा। हिन्दी में सर्वनामों की संख्या 11 हैं, जो निम्न हैं-
मैं, तू, आप, यह, वह, जो, सो, कोई, कुछ, कौन, क्या।
सर्वनाम के भेद व्यावहारिक आधार पर सर्वनाम के निम्नलिखित छ: भेद हैं-
परिभाषा प्रकार प्रयोग अभ्यास सर्वनाम संज्ञाओं की पुनरावृत्ति को रोककर वाक्यों को सौंदर्ययुक्त बनाता है। नीचे लिखे वाक्यों को ध्यानपूर्वक देखें
- पेड़-पौधे प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया के दरम्यान ऑक्सीजन मुक्त करते हैं।
- पेड़-पौधे पर्यावरण को संतुलित बनाए रखते हैं।
- पेड़-पौधे विभिन्न जीवों को आश्रय प्रदान करते हैं।
- पेड़-पौधे भू-क्षरण को रोकते हैं।
- पेड़-पौधों से हमें फल-फूल, दवाएँ, इमारती लकड़ियाँ आदि मिलते हैं।
अब इन वाक्यों पर गौर करें-
- पेड़-पौधे प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया के दरम्यान ऑक्सीजन मुक्त करते हैं।
- वे पर्यावरण को संतुलित बनाए रखते हैं।
- वे विभिन्न जीवों को आश्रय प्रदान करते हैं।
- वे भू-क्षरण को रोकते हैं।
- उनसे हमें फल-फूल, दवाएँ, इमारती लकड़ियाँ आदि मिलते हैं।
आपने क्या देखा? प्रथम पाँचों वाक्यों में संज्ञा ‘पेड़-पौधे’ दुहराए जाने के कारण वाक्य भद्दे हो गए जबकि नीचे के पाँचों वाक्य सुन्दर हैं। आपने यह भी देखा कि ‘वे’ और ‘उनसे’ पद ‘पेड़-पौधे’ की ओर संकेत करते हैं।
अतएव, सर्वनाम वैसे शब्द हैं, जो संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त होते हैं।
‘उक्त वाक्यों में ‘वे’ और ‘उनसे’ सर्वनाम हैं।
मूलतः सर्वनामों की संख्या ग्यारह है
मै, तू, आप, यह, वह, जो, सो, कौन, क्या, कोई और कुछ ये सभी मौलिक सर्वनाम कहलाते हैं। जब इन पर कारक-चिह्नों का प्रभाव पड़ता है, तब ये यौगिक रूप बन जाते हैं।
जैसे-
मौलिक सर्वनाम मैं
यौगिक सर्वनाम मैंने, मुझे, मुझको, हमें, हम, हमको, मेरा, मेरे, मेरी, मुझमें, मेरे लिए इत्यादि।
नोट : सर्वनाम के यौगिक रूपों की चर्चा कारक-प्रकरण में हो चुकी है।
नीचे लिखे वाक्यों के खाली स्थानों में कोष्ठक में दिए गए सर्वनामों के यौगिक रूपों को भरें
1. …… लड़के का व्यवहार बहुत अच्छा नहीं है। (वह)
2. क्या मैं …….. नाम और पता जान सकता हूँ? (आप)
3. ………. आपका नमक खाया है, गद्दारी कैसे करूँगा। (मैं)
4. लगता है कि वह स्टेशन पर ही ठहर गया है। (मैं)
5. …………… इन्तजार नहीं करना पड़ेगा; बस, मैं गया और आया। (आप)
6. वही …….. बहका रहा होगा। (तुम)
7. इस संकट की घड़ी में ……. साथ होना चाहिए। (मैं वह)
8. परीक्षा से पहले ……… ठीक से तैयारी कर लेनी चाहिए। (तुम)
9. ……. वकील का क्या कहना है? (तुम)
10. ……… ऐसा लगता है कि …… लोगों के लिए अभी भी दिल्ली दूर है। (मैं वह)
11. जोश की बात सुनते ही …….. भुजा फड़कनेलगी। (वह)
12. ……. कह देना कि अब ……. ताऊ नहीं रहे। (वह)
13. आज में ……… घर ही खाऊँगा। (आप)
14. ……… पत्रिका के सभी स्तंभ आकर्षक हैं। (आप)
15. मुझे ……. इरादे ठीक नहीं लग रहे हैं (वह)
सर्वनाम के भेद – Sarvanam Ke Bhed In Hindi
सर्वनाम छह प्रकार के होते हैं-
- पुरुषवाचक सर्वनाम
- निजवाचक सर्वनाम
- निश्चयवाचक सर्वनाम
- अनिश्चयवाचक सर्वनाम
- प्रश्नवाचक सर्वनाम
- संबंधवाचक सर्वनाम
1. पुरुषवाचक सर्वनाम
“जिस सर्वनाम का प्रयोग स्त्री एवं पुरुष दोनों के लिए किया जाता है, ‘पुरुषवाचक सर्वनाम’ (Personal Pronoun) कहलाता है।”
सर्वनाम का अपना कोई लिंग नहीं होता है। इसके लिंग का निर्धारण क्रियापद से ही होता है। पुरुषवाचक सर्वनाम के अंतर्गत मैं, तू, आप, यह और वह आते हैं।
नीचे लिखे उदाहरणों को देखें-
मैं फिल्म देखना चाहता हूँ। (पुं०)
मैं घर जाना चाहती हूँ। (स्त्री०)
तू कहता है तो ठीक ही होगा। (पुं०)
तू जब तक आई तब तक वह चला गया। (स्त्री०)
आजकल आप कहाँ रहते हैं? (पुं०)
आप जहाँ भी रहती हैं खुशियों का माहौल रहता है। (स्त्री०)
पुरुषवाचक सर्वनामों की तीन स्थितियाँ (भेद) होती हैं-
1. उत्तमपुरुष: जिस सर्वनाम का प्रयोग बात कहनेवाले के लिए हो।
जैसे-
मैं कहता हूँ कि नदियाँ सूखती जा रही हैं।
इसके अंतर्गत ‘मैं’ और ‘हम’ आते हैं।
2. मध्यम पुरुष : जिस सर्वनाम का प्रयोग उसके लिए हो, जिससे कोई बात कही जाती है। इसके अन्तर्गत तू, तुम और आप आते हैं।
जैसे-
मैंने आपसे कहा था कि वह बीमार नहीं है।
3. अन्यपुरुष : जिस सर्वनाम का प्रयोग उसके लिए हो जिसके विषय में कुछ कहा जाता है।
जैसे-
मैंने आपको बताया था कि वह पढ़ने में बहुत तेज है।
उत्तम पु० मध्यम पु०। अन्य पु०
पुरुषवाचक सर्वनामों के संज्ञा की तरह दो वचन होते हैं। नीचे दी गई तालिका को देखें
2. निजवाचक सर्वनाम
“जिस सर्वनाम का प्रयोग कर्ता कारक स्वयं के लिए करता है, उसे ‘निजवाचक सर्वनाम’ (Reflexive Pronoun) कहते हैं।’ इसके अंतर्गत आप, स्वयं, खुद, स्वतः आदि आते हैं?
नीचे लिखे उदाहरणों को देखें-
आप कहाँ से आ रहे हैं?
विश्लेषण : इस वाक्य में ‘आप’ का प्रयोग किसी पुरुष के लिए होने के कारण यह पुरुषवाचक के अंतर्गत है।
मैं आप चला जाऊँगा। विश्लेषण : यहाँ ‘मैं’ कर्ता ने ‘आप’ का प्रयोग स्वयं के लिए किया है। इस कारण यह निजवाचक के अंतर्गत आएगा।
3. निश्चयवाचक सर्वनाम
“जिस सर्वनाम से किसी वस्तु या व्यक्ति अथवा पदार्थ के विषय में ठीक-ठीक और निश्चित ज्ञान हो, ‘निश्चयवाचक सर्वनाम’ (Demonstrative Pronoun) कहलाता है।’
इस सर्वनाम के अन्तर्गत ‘यह’ और ‘वह’ आते हैं। ‘यह’ निकट के लिए और ‘वह’ दूर। के लिए प्रयुक्त होते हैं।
नोट : ‘यह’ और ‘वह’ पुरुषवाचक सर्वनाम भी हैं और निश्चयवाचक भी। नीचे दिए गए। उदाहरणों और विश्लेषणों को देखें :
आजकल यह कुछ नहीं खाता-पीता है।
वह एकबार फिर दौड़-प्रतियोगिता में दूसरे स्थान पर रहा।
विश्लेषण : उक्त दोनों वाक्यों में ‘यह’ और ‘वह’ का प्रयोग पुरुषों के लिए होने के कारण दोनों पुरुषवाचक के अंतर्गत आएँगे।
यह गाय है। वह बिलायती चूहा है। विश्लेषण : उपर्युक्त दोनों वाक्यों में ‘यह’ गाय की निश्चितता के लिए और ‘वह’ चूहे की निश्चितता के लिए प्रयुक्त होने के कारण दोनों निश्चयवाचक सर्वनाम के अंतर्गत आएँगे।
4. अनिश्चयवाचक सर्वनाम
“वह सर्वनाम, जो किसी निश्चित वस्तु या व्यक्ति का बोध नहीं कराए, ‘अश्चियवाचक सर्वनाम’ (Indefinite Pronoun) कहलाता है।”
इस सर्वनाम के अंतर्गत ‘कोई’ और ‘कुछ’ आते हैं। जैसे-
आपके घर पर कोई आया है। कुछ दे दीजिए। कुछ काम करो।
5. प्रश्नवाचक सर्वनाम
“जिस सर्वनाम का प्रयोग प्रश्न करने के लिए किया जाय, ‘प्रश्नवाचक सर्वनाम’ (Interrogative Pronoun) कहलाता है।”
इसके अंतर्गत ‘कौन’ और ‘क्या’—ये दो सर्वनाम आते हैं। ‘कौन’ का प्रयोग सदैव सजीवों के लिए और ‘क्या’ का प्रयोग निर्जीवों के लिए होता है।
जैसे-
देखो तो कौन आया है?
आपने क्या खाया है?
6. संबंधवाचक सर्वनाम
“जिस सर्वनाम से एक शब्द या वाक्य का दूसरे शब्द या वाक्य से संबंध जाना जाता है, उसे ‘सबंधवाचक सर्वनाम’ (Relative Pronoun) कहते हैं।”
इसके अंतर्गत ‘जो’ और ‘सो’ आते हैं। अब ‘सो’ के स्थान पर ‘वह’ का प्रयोग होने लगा है। नीचे लिखे वाक्यों को देखें-
जो जागेगा सो पावेगा, जो सोवेगा सो खोवेगा (पु० हिन्दी) जो जागेगा वह पाएगा, जो सोएगा वह खोएगा। (आ० हि.) जो के अन्य रूप भी होते हैं।
जैसे-
जिसका, जो कि, जिसको, जिन्होंने, जिनके आदि।
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1. इनमें से किस वाक्य में निजवाचक सर्वनाम का प्रयोग हुआ है?
(a) वह आप खा लेता है।
(b) आप क्या-क्या खाते हैं?
(c) आजकल आप कहाँ रहते हैं?
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(a) वह आप खा लेता है।
2. किस वाक्य में प्रश्नवाचक सर्वनाम का प्रयोग हुआ है?
(a) आपको यह काम करना है।
(b) वह पढ़ता-लिखता है न?
(c) आप कहाँ रहते हैं?
(d) वहाँ कौन पढ़ रहा था?
उत्तर :
(d) वहाँ कौन पढ़ रहा था?
3. अनिश्चयवाचक सर्वनाम का प्रयोग किस वाक्य में हुआ है?
(a) उन्हें कुछ दे दो।
(b) कौन ऐसा कहता है?
(c) अभिनव इधर आया था।
(d) वह खाकर सो गया है।
उत्तर :
(a) उन्हें कुछ दे दो।
4. संबंधवाचक सर्वनाम का प्रयोग किस वाक्य में हुआ है?
(a) जो करेगा सो भरेगा।
(b) जैसी करनी वैसी भरनी।
(c) उसके पास कुछ है।
(d) वह इधर ही आ निकला।
उत्तर :
(a) जो करेगा सो भरेगा।
5. मैं आप चला जाऊँगा। इस वाक्य में ‘आप’ कौन-सा सर्वनाम है?
(a) पुरुषवाचक सर्वनाम
(b) निश्चयवाचक सर्वनाम
(c) निजवाचक सर्वनाम
(d) संबंधवाचक सर्वनाम
उत्तर :
(c) निजवाचक सर्वनाम
6. आप कहाँ जा रहे थे? इस वाक्य में ‘आप’ क्या है?
(a) निजवाचक सर्वनाम
(b) निश्चयवाचक सर्वनाम
(c) प्रश्नवाचक सर्वनाम
(d) पुरुषवाचक सर्वनाम
उत्तर :
(d) पुरुषवाचक सर्वनाम
7. इन वाक्यों में से किस वाक्य में ‘वह’ का प्रयोग संबंधवाचक के रूप में हुआ है?
(a) वह घर पर रहकर ही अपना परिवार चला रहा है।
(b) वह घोड़ा है, जो बहुत तेज दौड़ता है।
(c) वह पता नहीं क्या चाहता है।
(d) जो मेहनत करेगा वह सफल होगा।
उत्तर :
(d) जो मेहनत करेगा वह सफल होगा।
8. सर्वनामों की कुल संख्या है-
(a) आठ
(b) दस
(c) ग्यारह
(d) बारह
उत्तर :
(c) ग्यारह
9. कौन-सा कथन सत्य है
(a) सर्वनाम संज्ञा की पुनरावृत्ति को रोकता है।
(b) सर्वनाम संज्ञा की तरह प्रयुक्त होता है।
(c) सर्वनाम का भी अपना लिंग-वचन होता है।
(d) सर्वनाम के बिना भी वाक्य सुन्दर हो सकते हैं।
उत्तर :
(a) सर्वनाम संज्ञा की पुनरावृत्ति को रोकता है।
10. पुरुषवाचक सर्वनाम के कितने प्रकार होते हैं?
(a) चार
(b) पाँच
(c) आठ
(d) तीन
उत्तर :
(d) तीन
Kriya in Hindi | क्रिया की परिभाषा, भेद, और उदाहरण – हिन्दी व्याकरण
परिभाषा, धातु, मूल, क्रिया, प्रकार, प्रयोग, काल, भेद, परिवर्तन, वाच्य, प्रकार, वाच्य, परिवर्तन.
क्रिया वाक्य को पूर्ण बनाती है। इसे ही वाक्य का ‘विधेय’ कहा जाता है। वाक्य में किसी काम के करने या होने का भाव क्रिया ही बताती है। अतएव, ‘जिससे काम का होना या करना समझा जाय, उसे ही ‘क्रिया’ कहते हैं।’ जैसे-
लड़का मन से पढ़ता है और परीक्षा पास करता है।
उक्त वाक्य में ‘पढ़ता है’ और ‘पास करता है’ क्रियापद हैं।
1. क्रिया का सामान्य रूप ‘ना’ अन्तवाला होता है। यानी क्रिया के सामान्य रूप में ‘ना’ लगा रहता है।
जैसे-
खाना : खा
पढ़ना : पढ़
सुनना : सुन
लिखना : लिख आदि।
नोट : यदि किसी काम या व्यापार का बोध न हो तो ‘ना’ अन्तवाले शब्द क्रिया नहीं कहला सकते।
जैसे-
सोना महँगा है। (एक धातु है)
वह व्यक्ति एक आँख से काना है। (विशेषण)
उसका दाना बड़ा ही पुष्ट है। (संज्ञा)
2. क्रिया का साधारण रूप क्रियार्थक संज्ञा का काम भी करता है।
जैसे-
सुबह का टहलना बड़ा ही अच्छा होता है।
इस वाक्य में ‘टहलना’ क्रिया नहीं है।
निम्नलिखित क्रियाओं के सामान्य रूपों का प्रयोग क्रियार्थक संज्ञा के रूप में करें :
- नहाना
- कहना
- गलना
- रगड़ना
- सोचना
- हँसना
- देखना
- बचना
- धकेलना
- रोना
निम्नलिखित वाक्यों में प्रयुक्त क्रियार्थक संज्ञाओं को रेखांकित करें :
1. माता से बच्चों का रोना देखा नहीं जाता।
2. अपने माता-पिता का कहना मानो।
3. कौन देखता है मेरा तिल-तिल करके जीना।
4. हँसना जीवन के लिए बहुत जरूरी है।
5. यहाँ का रहना मुझे पसंद नहीं।।
6. घर जमाई बनकर रहना अपमान का घूट पीना है।
7. मजदूरों का जीना भी कोई जीना है?
8. सर्वशिक्षा अभियान का चलना बकवास नहीं तो और क्या है?
9. बड़ों से उनका अनुभव जानना जीने का आधार बनता है।
10. गाँधी को भला-बुरा कहना देश का अपमान करना है।
मुख्यतः क्रिया के दो प्रकार होते हैं- Types of Kriya in Hindi Grammar
1. सकर्मक क्रिया
“जिस क्रिया का फल कर्ता पर न पड़कर कर्म पर पड़े, उसे ‘सकर्मक क्रिया’ (Transitive verb) कहते हैं।”
अतएव, यह आवश्यक है कि वाक्य की क्रिया अपने साथ कर्म लाये। यदि क्रिया अपने साथ कर्म नहीं लाती है तो वह अकर्मक ही कहलाएगी। नीचे लिखे वाक्यों को देखें :
(i) प्रवर अनू पढ़ता है। (कर्म-विहीन क्रिया)
(ii) प्रवर अनू पुस्तक पढ़ता है। (कर्मयुक्त क्रिया)
प्रथम और द्वितीय दोनों वाक्यों में ‘पढ़ना’ क्रिया का प्रयोग हुआ है; परन्तु प्रथम वाक्य की क्रिया अपने साथ कर्म न लाने के कारण अकर्मक हुई, जबकि द्वितीय वाक्य की वही क्रिया अपने साथ कर्म लाने के कारण सकर्मक हुई।
2. अकर्मक क्रिया
“वह क्रिया, जो अपने साथ कर्म नहीं लाये अर्थात् जिस क्रिया का फल या व्यापार कर्ता पर ही पड़े, वह अकर्मक क्रिया (Intransitive Verb) कहलाती है।”
जैसे-
उल्लू दिनभर सोता है।
इस वाक्य में ‘सोना’ क्रिया का व्यापार उल्लू (जो कर्ता है) ही करता है और वही सोता भी है। इसलिए ‘सोना’ क्रिया अकर्मक हुई।
कुछ क्रियाएँ अकर्मक सकर्मक दोनों होती हैं। नीचे लिखे उदाहरणों को देखें-
1. उसका सिर खुजलाता है। (अकर्मक)
2. वह अपना सिर खुजलाता है। (सकर्मक)
3. जी घबराता है। (अकर्मक)
4. विपत्ति मुझे घबराती है। (सकर्मक)
5. बूंद-बूंद से तालाब भरता है। (अकर्मक)
6. उसने आँखें भर के कहा (सकर्मक)
7. गिलास भरा है। (अकर्मक)
8. हमने गिलास भरा है। (सकर्मक)
जब कोई अकर्मक क्रिया अपने ही धातु से बना हुआ या उससे मिलता-जुलता सजातीय कर्म चाहती है तब वह सकर्मक कहलाती है।
जैसे-
सिपाही रोज एक लम्बी दौड़ दौड़ता है।
भारतीय सेना अच्छी लड़ाई लड़ना जानती है/लड़ती है।
यदि कर्म की विवक्षा न रहे, यानी क्रिया का केवल कार्य ही प्रकट हो, तो सकर्मक क्रिया भी अकर्मक-सी हो जाती है। जैसे-
ईश्वर की कृपा से बहरा सुनता है और अंधा देखता है।
एक प्रेरणार्थक क्रिया होती है, जो सदैव सकर्मक ही होती है। जब धातु में आना, वाना, लाना या लवाना, जोड़ा जाता है तब वह धातु ‘प्रेरणार्थक क्रिया’ का रूप धारण कर लेता है। इसके दो रूप होते हैं :
- धातु – प्रथम प्रेरणार्थक – द्वितीय प्रेरणार्थक
- हँस – हँसाना – हँसवाना
- जि – जिलाना – जिलवाना
- सुन – सुनाना – सुनवाना
- धो – धुलाना – धुलवाना
शेष में आप आना, वाना, लाना, लवाना, जोड़कर प्रेरणार्थक रूप बनाएँ :
कह पढ़ जल मल भर गल सोच बन देख निकल रह पी रट छोड़ जा भेजना भिजवाना टूट तोड़ना तुड़वाना अर्थात् जब किसी क्रिया को कर्ता कारक स्वयं नहीं करके किसी अन्य को करने के लिए प्रेरित करे तब वह क्रिया ‘प्रेरणार्थक क्रिया’ कहलाती है।
प्रेरणार्थक रूप अकर्मक एवं सकर्मक दोनों प्रकार की क्रियाओं से बनाया जाता है। प्रेरणार्थक क्रिया बन जाने पर अकर्मक क्रिया भी सकर्मक रूप धारण कर लेती है।
निम्नलिखित वाक्यों में प्रयुक्त क्रियाओं को छाँटकर उनके प्रकार लिखें : [C.B.S.E]
1. हालदार साहब अब भी नहीं समझ पाये।
2. कैप्टन बार-बार मर्ति पर चश्मा लगा देता था।
3. गाड़ी छूट रही थी।
4. एक सफेदपोश सज्जन बहुत सुविधा से पालथी मारे बैठे थे।
5. नवाब साहब ने संगति के लिए उत्साह नहीं दिखाया।
6. अकेले सफर का वक्त काटने के लिए ही खीरे खरीदे होंगे।
7. दोनों खीरों के सिर काटे और उन्हें गोदकर झाग निकाला।
8. जेब से चाकू निकाला।
9. नवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल से थककर लेट गए।
10. पानवाला नया पान खा रहा था।
11. मेघ बरस रहा था।
12. वह विद्यालय में पढ़ता-लिखता है।
नोट : कुछ धातु वास्तव में मूल अकर्मक या सकर्मक है; परन्तु स्वरूप में प्रेरणार्थक से जान पड़ते हैं।
जैसे-
घबराना, कुम्हलाना, इठलाना आदि।
अकर्मक से सकर्मक बनाने के नियम :
1. दो अक्षरों के धातु के प्रथम अक्षर को और तीन अक्षरों के धातु के द्वितीयाक्षर को दीर्घ करने से अकर्मक धातु सकर्मक हो जाता है। जैसे-
- अकर्मक – सकर्मक
- लदना – लादना
- फँसना – फाँसना
- गड़ना – गाड़ना
- लुटना – लूटना
- कटना – काटना
- कढ़ना – काढ़ना
- उखड़ना – उखाड़ना
- सँभलना – सँभालना
- मरना – मारना
- पिसना – पीसना
- निकलना – निकालना
- बिगड़ना – बिगाड़ना
- टलना – टालना
- पिटना – पीटना
2. यदि अकर्मक धातु के प्रथमाक्षर में ‘इ’ या ‘उ’ स्वर रहे तो इसे गुण करके सकर्मक धातु बनाए जाते हैं। जैसे
- घिरना – घेरना
- फिरना – फेरना
- छिदना – छेदना
- मुड़ना – मोड़ना
- खुलना – खोलना
- दिखना – देखना।
3. ‘ट’ अन्तवाले अकर्मक धातु के ‘ट’ को ‘ड’ में बदलकर पहले या दूसरे नियम से सकर्मक धातु बनाते हैं।
जैसे-
- फटना – फोड़ना
- जुटना – जोड़ना
- छूटना – छोड़ना
- टूटना – तोड़ना
क्रिया के अन्य प्रकार
1. पूर्वकालिक क्रिया
“जब कोई कर्ता एक क्रिया समाप्त करके दूसरी क्रिया करता है तब पहली क्रिया ‘पूर्वकालिक क्रिया’ कहलाती है।” जैसे-
चोर उठ भागा। (पहले उठना फिर भागना)
वह खाकर सोता है। (पहले खाना फिर सोना)
उक्त दोनों वाक्यों में ‘उठ’ और ‘खाकर’ पूर्वकालिक क्रिया हुईं। पूर्वकालिक क्रिया प्रयोग में अकेली नहीं आती है, वह दूसरी क्रिया के साथ ही आती है। इसके चिह्न हैं—
- धातु + ० – उठ, जाना। ……………
- धातु + के – उठके, जाग के ……………
- धातु + कर – उठकर, जागकर ……………
- धातु + करके – उठकरके, जागकरके ……………
नोट : परन्तु, यदि दोनों साथ-साथ हों तो ऐसी स्थिति में वह पूर्वकालिक न होकर क्रियाविशेषण का काम करता है। जैसे—वह बैठकर पढ़ता है।
इस वाक्य में ‘बैठना’ और ‘पढ़ना’ दोनों साथ-साथ हो रहे हैं। इसलिए ‘बैठकर’ क्रिया विशेषण है। इसी तरह निम्नलिखित वाक्यों में रेखांकित पदों पर विचार करें-
(a) बच्चा दौड़ते-दौड़ते थक गया। (क्रियाविशेषण)
(b) खाया मुँह नहाया बदन नहीं छिपता। (विशेषण)
(c) बैठे-बैठे मन नहीं लगता है। (क्रियाविशेषण)
2. संयुक्त क्रिया
“जो क्रिया दो या दो से अधिक धातुओं के योग से बनकर नया अर्थ देती है यानी किसी एक ही क्रिया का काम करती है, वह ‘संयुक्त क्रिया’ कहलाती है।” जैसे
उसने खा लिया है। (खा + लेना)
तुमने उसे दे दिया था। (दे + देना)
अर्थ के विचार से संयुक्त क्रिया के कई प्रकार होते हैं-
1. निश्चयबोधक : धातु के आगे उठना, बैठना, आना, जाना, पड़ना, डालना, लेना, देना, चलना और रहना के लगने से निश्चयबोधक संयुक्त क्रिया का निर्माण होता है। जैसे
(a) वह एकाएक बोल उठा।
(b) वह देखते-ही-देखते उसे मार बैठा।
(c) मैं उसे कब का कह आया हूँ।
(d) दाल में घी डाल देना।
(e) बच्चा खेलते-खेलते गिर पड़ा।
2. शक्तिबोधक : धातु के आगे ‘सकना’ मिलाने से शक्तिबोधक क्रियाएँ बनती हैं। जैसे
- दादाजी अब चल-फिर सकते हैं।
- वह रोगी अब उठ सकता है।
- कर्ण अपना सब कुछ दे सकता है।
3. समाप्तिबोधक : जब धातु के आगे ‘चुकना’ रखा जाता है, तब वह क्रिया समाप्तिबोधक हो जाती है। जैसे
- मैं आपसे कह चुका हूँ।
- वह भी यह दृश्य देख चुका है।
4. नित्यताबोधक : सामान्य भूतकाल की क्रिया के आगे ‘करना’ जोड़ने से नित्यताबोधक क्रिया बनती है। जैसे-
- तुम रोज यहाँ आया करना।
- तुम रोज चैनल देखा करना।
5. तत्कालबोधक : सकर्मक क्रियाओं के सामान्य भूतकालिक पुं० एकवचन रूप के अंतिम स्वर ‘आ’ को ‘ए’ करके आगे ‘डालना’ या ‘देना’ लमाने से
- तत्कालबोधक क्रियाएँ बनती हैं। जैसे-
- कहे डालना, कहे देना, दिए डालना आदि।
6. इच्छाबोधक : सामान्य भूतकालिक क्रियाओं के आगे ‘चाहना’ लगाने से इच्छाबोधक क्रियाएँ बनती हैं। इनसे तत्काल व्यापार का बोध होता है। जैसे-
- लिखा चाहना, पढ़ा चाहना, गया चाहना आदि।
7. आरंभबोधक : क्रिया के साधारण रूप ‘ना’ को ‘ने’ करके लगना मिलाने से आरंभ बोधक क्रिया बनती है। जैसे-
- आशु अब पढ़ने लगी है।
- मेघ बरसने लगा।
8. अवकाशबोधक : क्रिया के सामान्य रूप के ‘ना’ को ‘ने’ करके ‘पाना’ या ‘देना’ मिलाने से अवकाश बोधक क्रियाएँ बनती हैं। जैसे-
- अब उसे जाने भी दो।
- देखो, वह जाने न पाए।
- आखिर तुमने उसे बोलने दिया।
9. परतंत्रताबोधक : क्रिया के सामान्य रूप के आगे ‘पड़ना’ लगाने से परतंत्रताबोधक क्रिया बनती है। जैसे-
- उसे पाण्डेयजी की आत्मकथा लिखनी पड़ी।
- आखिरकार बच्चन जी को भी यहाँ आना पड़ा।
10 एकार्थकबोधक : कुछ संयुक्त क्रियाएँ एकार्थबोधक होती हैं। जैसे-
- वह अब खूब बोलता-चालता है।
- वह फिर से चलने-फिरने लगा है।
नोट : 1. संयुक्त क्रियाएँ केवल सकर्मक धातुओं के मिलने अथवा केवल अकर्मक धातुओं के मिलने से या दोनों के मिलने से बनती हैं। जैसे
- मैं तुम्हें देख लूँगा।
- वह उठ बैठा है।
- वह उन्हें दे आया था।
2. संयुक्त क्रिया के आद्य खंड को ‘मुख्य या प्रधान क्रिया’ और अंत्य खंड को ‘सहायक क्रिया’ कहते हैं।
जैसे-
- वह घर चला जाता है।
- मु. क्रि. स. क्रिया
नामधातु :
“क्रिया को छोड़कर दूसरे शब्दों से (संज्ञा, सर्वनाम एवं विशेषण) से जो धातु बनते हैं, उन्हें ‘नामधातु’ कहते हैं।” जैसे
- पुलिस चोर को लतियाते थाने ले गई।
- वे दोनों बतियाते चले जा रहे थे।
- मेहमान के लिए जरा चाय गरमा देना।
नामधातु बनाने के नियम :
1. कई शब्दों में ‘आ’ कई में ‘या’ और कई में ‘ला’ के लगने से नामधातु बनते हैं। जैसे-
- मेरी बहन मुझसे ही लजाती है। (लाज-लजाना)
- तुमने मेरी बात झुठला दी है। (झूठ-झूठलाना)
- जरा पंखे की हवा में ठंडा लो, तब कुछ कहना। (ठंडा-ठंडाना)
2. कई शब्दों में शून्य प्रत्यय लगाने से नामधातु बनते हैं। जैसे
- रंग : रँगना गाँठ : गाँठना
- चिकना : चिकनाना आदि।
3. कुछ अनियमित होते हैं। जैसे
- दाल : दलना, चीथड़ा : चिथेड़ना आदि।
4. ध्वनि विशेष के अनुकरण से भी नामधातु बनते हैं। जैसे
- भनभन : भनभनाना
- छनछन : छनछनाना
- टर्र : टरटराना/टर्राना
प्रकार (अर्थ, वृत्ति)
क्रियाओं के प्रकारकृत तीन भेद होते हैं :
1. साधारण क्रिया : वह क्रिया, जो सामान्य अवस्था की हो और जिसमें संभावना अथवा आज्ञा का भाव नहीं हो। जैसे-
- मैंने देखा था। उसने क्या कहा?
2. संभाव्य क्रिया : जिस क्रिया में संभावना अर्थात् अनिश्चय, इच्छा अथवा संशय पाया जाय। जैसे-
- यदि हम गाते थे तो आप क्यों नहीं रुक गए?
- यदि धन रहे तो सभी लोग पढ़-लिख जाएँ।
- मैंने देखा होगा तो सिर्फ आपको ही।
नोट : हेतुहेतुमद् भूत, संभाव्य भविष्य एवं संदिग्ध क्रियाएँ इसी श्रेणी में आती है।
3. आज्ञार्थक क्रिया या विधिवाचक क्रिया : इससे आज्ञा, उपदेश और प्रार्थनासूचक क्रियाओं का बोध होता है। जैसे-
- तुम यहाँ से निकलो।
- गरीबों की मदद करो।
- कृपा करके मेरे पत्र का उत्तर अवश्य दीजिए।
kriya in Hindi Worksheet Exercise with Answers PDF
1. सामान्यतया क्रिया के …………….. भेद होते हैं।
(a) दो
(b) तीन
(c) चार
उत्तर :
(a) दो
2. धातु में ‘ना’ जोड़ने पर क्या बनता है?
(a) यौगिक क्रिया
(b) सामान्य क्रिया
(c) विधिवाचक क्रिया
उत्तर :
(b) सामान्य क्रिया
3. ‘जाना’ से प्रेरणार्थक रूप बनता है-
(a) जनाना
(b) जनवाना
(c) भेजना
उत्तर :
(c) भेजना
4. ‘बात’ से नामधातु बनेगा
(a) बताना
(b) बाताना
(c) बतवाना
(d) बतियाना
उत्तर :
(d) बतियाना
5. ‘मेघ बरसने लगा’ में किस तरह की क्रिया का प्रयोग हुआ है?
(a) पूर्वकालिक
(b) संयुक्त
(c) नाम धातु
उत्तर :
(b) संयुक्त
6. निम्नलिखित वाक्यों में से किसमें पूर्वकालिक क्रिया नहीं है?
(a) वह खाकर विद्यालय जाता है।
(b) वह खाकर टहलता है।
(c) वह खाकर नहाता है।
(d) वह लेटकर खाता है।
उत्तर :
(d) वह लेटकर खाता है।
7. निम्नलिखित वाक्यों में से किसमें नामधातु का प्रयोग हुआ है?
(a) चाय ठंडी हो गई है थोड़ा गरमा देना।
(b) उनकी कहानी समाप्त हो गई है।
(c) प्रदूषण काफी बढ़ गया है।
(d) पेड़-पौधे सूख चुके हैं।
उत्तर :
(a) चाय ठंडी हो गई है थोड़ा गरमा देना।
8. प्रेरणार्थक क्रिया के कितने रूप होते हैं?
(a) दो
(b) चार
(c) छह
उत्तर :
(a) दो
9. क्रिया सामान्यतया वाक्य में …….. का काम करती है।
(a) उद्देश्य
(b) विधेय
(c) अव्यय
उत्तर :
(a) उद्देश्य
10. ‘मुख्य’ क्रिया’ और ‘सहायक क्रिया’ ये दोनों किस क्रिया के अंतर्गत आती हैं।
(a) पूर्वकालिक
(b) सामान्य
(c) संयुक्त
उत्तर :
(b) सामान्य
Visheshan in Hindi | विशेषण शब्द (Shabd), भेद (Bhed), प्रकार और उदाहरण – हिन्दी व्याकरण
विशेषण परिभाषा – Visheshan in Hindi Examples (Udaharan) – Hindi Grammar
- परिभाषा
- प्रकार
- प्रविशेषण
- तुलनाबोधक विशेषण
“जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता अथवा हीनता बताए, ‘विशेषण’ कहलाता है और वह संज्ञा या सर्वनाम ‘विशेष्य’ के नाम से जाना जाता है।”
नीचे लिखे वाक्यों को देखें-
- अच्छा आदमी सभी जगह सम्मान पाता है।
- बुरे आदमी को अपमानित होना पड़ता है।
उक्त उदाहरणों में ‘अच्छा’ और ‘बुरा’ विशेषण एवं ‘आदमी’ विशेष्य हैं। विशेषण हमारी जिज्ञासाओं का शमन (समाधान) भी करता है। उक्त उदाहण में ही-
कैसा आदमी? – अच्छा/बुरा
विशेषण न सिर्फ विशेषता बताता है; बल्कि वह अपने विशेष्य की संख्या और परिमाण (मात्रा) भी बताता है।
जैसे-
- पाँच लड़के गेंद खेल रहे हैं। (संख्याबोधक)
इस प्रकार विशेषण के चार प्रकार होते हैं-
- गुणवाचक विशेषण
- संख्यावाचक विशेषण
- परिमाणवाचक विशेषण
- सार्वनामिक विशेषण
1. गुणवाचक विशेषण
“जो शब्द, किसी व्यक्ति या वस्तु के गुण, दोष, रंग, आकार, अवस्था, स्थिति, स्वभाव, दशा, दिशा, स्पर्श, गंध, स्वाद आदि का बोध कराए, ‘गुणवाचक विशेषण’ कहलाते हैं।”
गुणवाचक विशेषणों की गणना करना मुमकिन नहीं; क्योंकि इसका क्षेत्र बड़ा ही विस्तृत हुआ करता है।
जैसे-
- गुणबोधक : अच्छा, भला, सुन्दर, श्रेष्ठ, शिष्ट,
- दोषबोधक : बुरा, खराब, उदंड, जहरीला, …………….
- रंगबोधक : काला, गोरा, पीला, नीला, हरा, …………….
- कालबोधक : पुराना, प्राचीन, नवीन, क्षणिक, क्षणभंगुर, …………….
- स्थानबोधक : चीनी, मद्रासी, बिहारी, पंजाबी, …………….
- गंधबोधक : खुशबूदार, सुगंधित, …………….
- दिशाबोधक : पूर्वी, पश्चिमी, उत्तरी, दक्षिणी, …………….
- अवस्था बोधक : गीला, सूखा, जला, …………….
- दशाबोधक : अस्वस्थ, रोगी, भला, चंगा, …………….
- आकारबोधक : मोटा, छोटा, बड़ा, लंबा, …………….
- स्पर्शबोधक : कठोर, कोमल, मखमली, …………….
- स्वादबोधक : खट्टा, मीठा, कसैला, नमकीन …………….
गुणवाचक विशेषणों में से कुछ विशेषण खास विशेष्यों के साथ प्रयुक्त होते हैं। उनके प्रयोग से वाक्य बहुत ही सुन्दर और मज़ेदार हो जाया करते हैं। नीचे लिखे उदाहरणों को देखें-
- इस चिलचिलाती धूप में घर से निकलना मुश्किल है।
- इस मोहल्ले का बजबजाता नाला नगर निगम की पोल खोल रहा है।
- मुझे लाल-लाल टमाटर बहुत पसंद हैं।
- शालू के बाल बलखाती नागिन-जैसे हैं।
नोट : उपर्युक्त वाक्यों में चिलचिलाती ………. धूप के लिए, बजबजाता ………. नाले के लिए, लाल-लाल …….. टमाटर के लिए और बलखाती ………… नागिन के लिए प्रयुक्त हुए हैं। ऐसे विशेषणों को ‘पदवाचक विशेषण’ कहा जाता है।
क्षेत्रीय भाषाओं में जहाँ के लोग कम पढ़े-लिखे होते हैं, वे कभी-कभी उक्त विशेषणों से भी जानदार विशेषणों का प्रयोग करते देखे गए हैं।
जैसे-
- बहुत गहरे लाल के लिए : लाल टुह-टुह
- बहुत सफेद के लिए : उज्जर बग-बग/दप-दप
- बहुत ज्यादा काले के लिए : कार खुट-खुट/करिया स्याह
- बहुत अधिक तिक्त के लिए : नीम हर-हर
- बहुत अधिक हरे के लिए : हरिअर/हरा कचोर/हरिअर कच-कच
- बहुत अधिक खट्टा के लिए : खट्टा चुक-चुक/खट्टा चून
- बहुत अधिक लंबे के लिए : लम्बा डग-डग
- बहुत चिकने के लिए : चिक्कन चुलबुल
- बहुत मैला/गंदा : मैल कुच-कुच
- बहुत मोटे के लिए : मोटा थुल-थुल
- बहुत घने तारों के लिए : तारा गज-गज
- बहुत गहरा दोस्त : लँगोटिया यार
- बहुत मूर्ख के लिए : मूर्ख चपाट/चपाठ
नीचे दिए गए विशेषणों से उपयुत विशेषण चुनकर रिक्त स्थानों की पूर्ति करें :
- मूसलाधार, प्राकृतिक, आलसी, बासंती, तेजस्वी, साप्ताहिक, टेढ़े-मेढ़े, धनी, ओजस्वी, शर्मीली, भाती, पीले-पीले, लजीज, बर्फीली, काले-कजरारे, बलखाती, पर्वतीय, कड़कती, सुनसान, सुहानी, वीरान, पुस्तकीय, बजबजाता, चिलचिलाती,
- ………… धूप को जो चाँदनी देते बना।
- उसके ……… घाव से मवाद रिस रहा है।
- ………… बादलों को उमड़ते-घुमड़ते देख कृषक प्रसन्न हो उठे।
- ……बरसता पानी, जरा न रुकता लेता दम।
- उस बालक का चेहरा बड़ा ………… था।
- आज माँ ने बड़ा ……….. भोजन बनाया है।
- कई मुहल्लों की गलियाँ बच्चों के बिना ……….. हो गईं।
- ………. प्रदेशों की यात्रा बहुत ही आनन्दप्रद होती है।
- उन वादियों की …… सुषमा बड़ी चित्ताकर्षक है।
- रविवार को ….. अवकाश रहता है।
- वह लड़की बहुत ………… है।
- जोरों की ……….. हवा चलने लगी।
- ……… बिजली से आँखें धुंधिया गईं।
- ………… ज्ञान से व्यावहारिक ज्ञान अधिक प्रामाणिक होता है।
- ……….. व्यक्ति जीवन में कभी सफल नहीं होते।
- ये ………. रास्ते उन्हीं बस्तियों की ओर जाते हैं।
- ……….. गाय अपने बछड़े के लिए परेशान है।
- चतरा जिले की ……….. घाटियाँ बड़ी डरावनी हैं।
- ………. हवा के स्पर्शन से मन उत्फुल्ल हो जाता है।
- बगैर शोषण के कोई ………….. नहीं होता।
- ………….. रसीले आम देख लार टपकने लगी।
- उसकी ……….. कमर देख म्यूजिकल फीलिंग होती है।
- …………….. चाँदनी रातें बड़ी मनभावन होती हैं।
- कहो तो तेरी ………. छुट्टी भी रद्द करवा दूँ।
2. संख्यावाचक विशेषण
“वह विशेषण, जो अपने विशेष्यों की निश्चित या अनिश्चित संख्याओं का बोध कराए, ‘संख्यावाचक विशेषण’ कहलाता है।”
जैसे-
उस मैदान में पाँच लड़के खेल रहे हैं।
इस कक्षा के कुछ छात्र पिकनिक पर गए हैं।
उक्त उदाहरणों में ‘पाँच’ लड़कों की निश्चित संख्या एवं ‘कुछ’ छात्रों की अनिश्चित संख्या बता रहे हैं।
निश्चित संख्यावाचक विशेषण भी कई तरह के होते हैं-
1. गणनावाचक : यह अपने विशेष्य की साधारण संख्या या गिनती बताता है। इसके भी दो प्रभेद होते हैं-
(a) पूर्णांकबोधक/पूर्ण संख्यावाचक : इसमें पूर्ण संख्या का प्रयोग होता है।
जैसे-
चार छात्र, आठ लड़कियाँ …………
(b) अपूर्णांक बोधक/अपूर्ण संख्यावाचक : इसमें अपूर्ण संख्या का प्रयोग होता है।
जैसे-
सवा रुपये, ढाई किमी. आदि।
2. क्रमवाचक : यह विशेष्य की क्रमात्मक संख्या यानी विशेष्य के क्रम को बतलाता है। इसका प्रयोग सदा एकवचन में होता है।
जैसे-
पहली कक्षा, दूसरा लड़का, तीसरा आदमी, चौथी खिड़की आदि।
3. आवृत्तिवाचक : यह विशेष्य में किसी इकाई की आवृत्ति की संख्या बतलाता है।
जैसे-
दुगने छात्र, ढाई गुना लाभ आदि।
4. संग्रहवाचक : यह अपने विशेष्य की सभी इकाइयों का संग्रह बतलाता है।
जैसे-
चारो आदमी, आठो पुस्तकें आदि।
5. समुदायवाचक : यह वस्तुओं की सामुदायिक संख्या को व्यक्त करता है।
जैसे-
एक जोड़ी चप्पल, पाँच दर्जन कॉपियाँ आदि।
6. वीप्सावाचक : व्यापकता का बोध करानेवाली संख्या को वीप्सावाचक कहते हैं। यह दो प्रकार से बनती है—संख्या के पूर्व प्रति, फी, हर, प्रत्येक इनमें से किसी के पूर्व प्रयोग से या संख्या के द्वित्व से।
जैसे-
प्रत्येक तीन घंटों पर यहाँ से एक गाड़ी खुलती है।
पाँच-पाँच छात्रों के लिए एक कमरा है।
कभी-कभी निश्चित संख्यावाची विशेषण भी अनिश्चयसूचक विशेषण के योग से अनिश्चित संख्यावाची बन जाते हैं।
जैसे-
उस सभा में लगभग हजार व्यक्ति थे।
आसपास की दो निश्चित संख्याओं का सह प्रयोग भी दोनों के आसपास की अनिश्चित संख्या को प्रकट करता है।
जैसे-
मुझे हजार-दो-हजार रुपये दे दो।
कुछ संख्याओं में ‘ओं’ जोड़ने से उनके बहुत्व यानी अनिश्चित संख्या की प्रतीति होती है।
जैसे-
सालों बाद उसका प्रवासी पति लौटा है।
वैश्विक आर्थिक मंदी का असर करोड़ों लोगों पर स्पष्ट दिखाई पड़ रहा है।
3. परिमाणवाचक विशेषण
”वह विशेषण जो अपने विशेष्यों की निश्चित अथवा अनिश्चित मात्रा (परिमाण) का बोध कराए, ‘परिमाणवाचक विशेषण’ कहलाता है।”
इस विशेषण का एकमात्र विशेष्य द्रव्यवाचक संज्ञा है।
जैसे-
मुझे थोड़ा दूध चाहिए, बच्चे भूखे हैं।
बारात को खिलाने के लिए चार क्विटल चावल चाहिए।
उपर्युक्त उदाहरणों में थोड़ा’ अनिश्चित एवं ‘चार क्विटल’ निश्चित मात्रा का बोधक है। परिमाणवाचक से भिन्न संज्ञा शब्द भी परिमाणवाचक की भाँति प्रयुक्त होते हैं।
जैसे-
चुल्लूभर पानी में डूब मरो।
2007 की बाढ़ में सड़कों पर छाती भर पानी हो गया था।
संख्यावाचक की तरह ही परिमाणवाचक में भी ‘ओं’ के योग से अनिश्चित बहुत्व प्रकट होता है।
जैसे-
उस पर तो घड़ों पानी पड़ गया है।
4. सार्वनामिक विशेषण
हम जानते हैं कि विशेषण के प्रयोग से विशेष्य का क्षेत्र सीमित हो जाता है। जैसे— ‘गाय’ कहने से उसके व्यापक क्षेत्र का बोध होता है; किन्तु ‘काली गाय’ कहने से गाय का क्षेत्र सीमित हो जाता है। इसी तरह “जब किसी सर्वनाम का मौलिक या यौगिक रूप किसी संज्ञा के पहले आकर उसके क्षेत्र को सीमित कर दे, तब वह सर्वनाम न रहकर ‘सार्वनामिक विशेषण’ बन जाता है।”
जैसे-
यह गाय है। वह आदमी है।
इन वाक्यों में ‘यह’ एवं ‘वह’ गाय तथा आदमी की निश्चितता का बोध कराने के कारण निश्चयवाचक सर्वनाम हुए; किन्तु यदि ‘यह’ एवं ‘वह’ का प्रयोग इस रूप में किया जाय-
यह गाय बहुत दूध देती है।
वह आदमी बड़ा मेहनती है।
तो ‘यह’ और ‘वह’ ‘गाय’ एवं आदमी के विशेषण बन जाते हैं। इसी तरह अन्य उदाहरणों को देखें-
1. वह गदहा भागा जा रहा है।
2. जैसा काम वैसा ही दाम, यही तो नियम है।
3. जितनी आमद है उतना ही खर्च भी करो।
वाक्यों में विशेषण के स्थानों के आधार पर उन्हें दो भागों में बाँटा गया है-
1. सामान्य विशेषण : जिस विशेषण का प्रयोग विशेष्य के पहले हो, वह ‘सामान्य विशेषण’ कहलाता है।
जैसे
काली गाय बहुत सुन्दर लगती है।
मेहनती आदमी कहीं भूखों नहीं मरता।
2. विधेय विशेषण : जिस विशेषण का प्रयोग अपने विशेष्य के बाद हो, वह ‘विधेय विशेषण’ कहलाता है।
जैसे-
वह गाय बहुत काली है।
आदमी बड़ा मेहनती था।
प्रविशेषण या अंतरविशेषण
विशेषण तो किसी संज्ञा अथवा सर्वनाम की विशेषता बताता है; परन्तु कुछ शब्द विशेषण एवं क्रियाविशेषण (Adverb) की विशेषता बताने के कारण ‘प्रविशेषण’ या अंतरविशेषण’ कहलाते हैं। नीचे लिखे उदाहरणों को ध्यानपूर्वक देखें-
1. विश्वजीत डरपोक लड़का है। (विशेषण)
विश्वजीत बड़ा डरपोक लड़का है। (प्रविशेषण)
2. सौरभ धीरे-धीरे पढ़ता है। (क्रियाविशेषण)
सौरभ बहुत धीरे-धीरे पढ़ता है। (प्रविशेषण)
उपर्युक्त वाक्यों में ‘बड़ा’, ‘डरपोक’ विशेषण की और ‘बहुत’ शब्द ‘धीरे-धीरे’ क्रिया विशेषण की विशेषता बताने के कारण ‘प्रविशेषण’ हुए।
नीचे लिखे वाक्यों में प्रयुक्त प्रविशेषणों को रेखांकित करें :
1. बहुत कड़ी धूप है, थोड़ा आराम तो कर लीजिए।
2. पिछले साल बहुत अच्छी वर्षा होने के कारण फसल भी काफी अच्छी हुई।
3. ऐसा अवारा लड़का मैंने कहीं नहीं देखा है।
4. वह किसान काफी मेहनती और धनी है।
5. बहुत कमजोर लड़का काफी सुस्त हो जाता है।
6. गंगा का जल अब बहुत पवित्र नहीं रहा।
7. चिड़िया बहुत मधुर स्वर में चहचहा रही है।
8. बचपन बड़ा उम्दा होता है।
9. साहस जिन्दगी का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण गुण है।
10. हँसती-मुस्कराती प्राकृतिक सुषमा कितनी प्रदूषित हो चुकी है!
विशेषणों की तुलना (Comparison of Adjectives)
“जिन विशेषणों के द्वारा दो या अधिक विशेष्यों के गुण-अवगुण की तुलना की जाती है, उन्हें ‘तुलनाबोधक विशेषण’ कहते हैं।”
तुलनात्मक दृष्टि से एक ही प्रकार की विशेषता बतानेवाले पदार्थों या व्यक्तियों में मात्रा का अन्तर होता है। तुलना के विचार से विशेषणों की तीन अवस्थाएँ होती हैं
1. मूलावस्था (Positive Degree) : इसके अंतर्गत विशेषणों का मूल रूप आता है। इस अवस्था में तुलना नहीं होती, सामान्य विशेषताओं का उल्लेख मात्र होता है।
जैसे-
अंशु अच्छी लड़की है।
आशु सुन्दर है।
2. उत्तरावस्था (Comparative Degree) : जब दो व्यक्तियों या वस्तुओं के बीच अधिकता या न्यूनता की तुलना होती है, तब उसे विशेषण की उत्तरावस्था कहते हैं।
जैसे-
अंशु आशु से अच्छी लड़की है।
आशु अंशु से सुन्दर है।
उत्तरावस्था में केवल तत्सम शब्दों में ‘तर’ प्रत्यय लगाया जाता है। जैसे-
- सुन्दर + तर > सुन्दरतर
- महत् + तर > महत्तर
- लघु + तर > लघुतर
- अधिक + तर > अधिकतर
- दीर्घ + तर > दीर्घतर
हिन्दी में उत्तरावस्था का बोध कराने के लिए ‘से’ और ‘में’ चिह्न का प्रयोग किया जाता है।
जैसे-
बच्ची फूल से भी कोमल है।
इन दोनों लड़कियों में वह सुन्दर है।
विशेषण की उत्तरावस्था का बोध कराने के लिए ‘के अलावा’, ‘की तुलना में’, ‘के मुकाबले’ आदि पदों का प्रयोग भी किया जाता है।
जैसे-
पटना के मुकाबले जमशेदपुर अधिक स्वच्छ है।
संस्कृत की तुलना में अंग्रेजी कम कठिन है।
आपके अलावा वहाँ कोई उपस्थित नहीं था।
3. उत्तमावस्था (Superlative Degree) : यह विशेषण की सर्वोत्तम अवस्था है। जब दो से अधिक व्यक्तियों या वस्तुओं के बीच तुलना की जाती है और उनमें से एक को श्रेष्ठता या निम्नता दी जाती है, तब विशेषण की उत्तमावस्था कहलाती है।
जैसे-
कपिल सबसे या सबों में अच्छा है।
दीपू सबसे घटिया विचारवाला लड़का है।
तत्सम शब्दों की उत्तमावस्था के लिए ‘तम’ प्रत्यय जोड़ा जाता है। जैसे-
- सुन्दर + तम > सुन्दरतम
- महत् + तम > महत्तम।
- लघु + तम > लघुतम
- अधिक + तम > अधिकतम
- श्रेष्ठ + तम > श्रेष्ठतम
‘श्रेष्ठ’, के पूर्व, ‘सर्व’ जोड़कर भी इसकी उत्तमावस्था दर्शायी जाती है।
जैसे-
नीरज सर्वश्रेष्ठ लड़का है।
फारसी के ‘ईन’ प्रत्यय जोड़कर भी उत्तमावस्था दर्शायी जाती है।
जैसे-
बगदाद बेहतरीन शहर है।
विशेषणों की रचना
विशेषण पदों की रचना प्रायः सभी प्रकार के शब्दों से होती है। शब्दों के अन्त में ई, इक, . मान्, वान्, हार, वाला, आ, ईय, शाली, हीन, युक्त, ईला प्रत्यय लगाने से और कई बार अंतिम
प्रत्यय का लोप करने से विशेषण बनते हैं।
- ‘ई’ प्रत्यय : शहर-शहरी, भीतर-भीतरी, क्रोध-क्रोधी ‘इक’
- प्रत्यय : शरीर-शारीरिक, मन—मानसिक, अंतर-आंतरिक ‘मान्’
- प्रत्यय : श्री–श्रीमान्, बुद्धि—बुद्धिमान्, शक्ति-शक्तिमान् ‘वान्’
- प्रत्यय : धन-धनवान्, रूप-रूपवान्, बल-बलवान् ‘हार’ या ‘हार’
- प्रत्यय : सृजन-सृजनहार, पालन-पालनहार ‘वाला’
- प्रत्यय : रथ रथवाला, दूध-दूधवाला ‘आ’
- प्रत्यय : भूख-भूखा, प्यास-प्यासा ‘ईय’
- प्रत्यय : भारत-भारतीय, स्वर्ग–स्वर्गीय ‘ईला’
- प्रत्यय : चमक-चमकीला, नोंक-नुकीला ‘हीन’
- प्रत्यय : धन-धनहीन, तेज-तेजहीन, दया—दयाहीन
- धातुज : नहाना—नहाया, खाना-खाया, खाऊ, चलना—चलता, बिकना—बिकाऊ
- अव्ययज : ऊपर-ऊपरी, भीतर-भीतर-भीतरी, बाहर–बाहरी
संबंध की विभक्ति लगाकार—लाल रंग की साड़ी, तेज बुद्धि का आदमी, सोनू का घर, गरीबों की दुनिया।
नोट : विशेषण पदों के निर्माण से संबंधित बातों की विस्तृत चर्चा ‘प्रत्यय-प्रकरण’ में की जा चुकी है। विशेषणों का रूपान्तर
विशेषण का अपना
लिंग-वचन नहीं होता। वह प्रायः अपने विशेष्य के अनुसार अपने रूपों को परिवर्तित करता है। हिन्दी के सभी विशेषण दोनों लिंगों में समान रूप से बने रहते हैं; केवल आकारान्त विशेषण स्त्री० में ईकारान्त हो जाया करता है।
अपरिवर्तित रूप
1. बिहारी लड़के भी कम प्रतिभावान् नहीं होते।
2. बिहारी लड़कियाँ भी कम सुन्दर नहीं होती।
3. वह अपने परिवार की भीतरी कलह से परेशान है।
4. उसका पति बड़ा उड़ाऊ है।
5. उसकी पत्नी भी उड़ाऊ ही है।
परिवर्तित रूप
1. अच्छा लड़का सर्वत्र आदर का पात्र होता है।
2. अच्छी लड़की सर्वत्र आदर की पात्रा होती है।
3. बच्चा बहुत भोला-भाला था।
4. बच्ची बहुत भोली-भाली थी।
5. हमारे वेद में ज्ञान की बातें भरी-पड़ी हैं।
6. हमारी गीता में कर्मनिरत रहने की प्रेरणा दी गई है।
7. महान आयोजन महती सभा
8. विद्वान सर्वत्र पूजे जाते हैं।
9. विदुषी स्त्री समादरणीया होती है।
10. राक्षस मायावी होता था।
11. राक्षसी मायाविनी होती थी।
जिन विशेषण शब्दों के अन्त में ‘इया’ रहता है, उनमें लिंग के कारण रूप-परिवर्तन नहीं होता।
जैसे-
मुखिया, दुखिया, बढ़िया, घटिया, छलिया।
दुखिया मर्दो की कमी नहीं है इस देश में।
दुखिया औरतों की भी कमी कहाँ है इस देश में।
उर्दू के उम्दा, ताजा, जरा, जिंदा आदि विशेषणों का रूप भी अपरिवर्तित रहता है।
जैसे-
आज की ताजा खबर सुनो।
पिताजी ताजा सब्जी लाये हैं।
वह आदमी अब तलक जिंदा है।
वह लड़की अभी तक जिंदा है।
सार्वनामिक विशेषणों के रूप भी विशेष्यों के अनुसार ही होते हैं।
जैसे-
जैसी करनी वैसी भरनी
यह लड़का—वह लड़की
ये लड़के-वे लड़कियाँ
जो तद्भव विशेषण ‘आ’ नहीं रखते उन्हें ईकारान्त नहीं किया जाता है। स्त्री० एवं पुं० बहुवचन में भी उनका प्रयोग वैसा ही होता है।
जैसे
ढीठ लड़का कहीं भी कुछ बोल जाता है।
ढीठ लड़की कुछ-न-कुछ करती रहती है।
वहाँ के लड़के बहुत ही ढीठ हैं।
जब किसी विशेषण का जातिवाचक संज्ञा की तरह प्रयोग होता है तब स्त्री.- पुं. भेद बराबर स्पष्ट रहता है।
जैसे-
उस सुन्दरी ने पृथ्वीराज चौहान को ही वरण किया।
उन सुन्दरियों ने मंगलगीत प्रारंभ कर दिए।
परन्तु, जब विशेषण के रूप में इनका प्रयोग होता है तब स्त्रीत्व-सूचक ‘ई’ का लोप हो जाता है।
जैसे-
उन सुन्दर बालिकाओं ने गीत गाए।
चंचल लहरें अठखेलियाँ कर रही हैं।
मधुर ध्वनि सुनाई पड़ रही थी।
जिन विशेषणों के अंत में ‘वान्’ या ‘मान्’ होता है, उनके पुँल्लिंग दोनों वचनों में ‘वान्’ या ‘मान्’ और स्त्रीलिंग दोनों वचनों में ‘वती’ या ‘मती’ होता है।
जैसे-
गुणवान लड़का : गुणवान् लड़के
गुणवती लड़की : गुणवती लड़कियाँ
बुद्धिमान लड़का : बुद्धिमान लड़के
बुद्धिमती लड़की : बुद्धिमती लड़कियाँ
Visheshan in Hindi Worksheet Exercise with Answers PDF
1. जो शब्द किसी संज्ञा की विशेषता बताए वह-
(a) विशेष्य है
(b) विशेषण है
(c) क्रियाविशेषण है
उत्तर :
(b) विशेषण है
2. विशेषण के मुख्यतः ………….. प्रकार हैं।
(a) दो
(b) तीन
(c) चार
उत्तर :
(c) चार
3. प्रविशेषण शब्द किसकी विशेषता बताता है?
(a) संज्ञा एवं सर्वनाम की
(b) संज्ञा एवं विशेषण की
(c) संज्ञा, सर्वनाम एवं विशेषण की
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(a) संज्ञा एवं सर्वनाम की
4. ‘मोटा’ एक ………… विशेषण है।
(a) गुणवाचक
(b) संख्यावाचक
(c) परिमाणवाचक
उत्तर :
(a) गुणवाचक
5. ‘हंस’ एक ………….. पत्रिका है।
(a) दैनिक
(b) मासिक
(c) वार्षिक
उत्तर :
(b) मासिक
6. ‘सा’ के प्रयोग से किस तरह के विशेषण का बोध होता है?
(a) गुणवाचक
(b) सार्वनामिक
(c) तुलनाबोधक
उत्तर :
(c) तुलनाबोधक
7. ‘पवित्रता’ से विशेषण बनेगा
(a) पवित्र
(b) पवित्रात्मा
(c) दोनों
उत्तर :
(a) पवित्र
8. विशालकाय दैत्य दौड़ा। इसमें कौन सा पद विशेषण है?
(a) विशालकाय
(b) दैत्य
(c) दौड़ा
उत्तर :
(a) विशालकाय
9. ‘सुन्दर’ विशेषण का रूप स्त्रीलिंग में होगा
(a) सुन्दरी
(b) सुन्दरा
(c) सुन्दर
उत्तर :
(a) सुन्दरी
10. विशेषण का लिंग
(a) विशेष्य के अनुसार होता है
(b) स्वतंत्र रहता है
(c) पुँल्लिंग होता है
(d) स्त्रीलिंग होता है।
उत्तर :
(a) विशेष्य के अनुसार होता है
Gender/Ling in Hindi – लिंग – परिभाषा, भेद और उदाहरण
हिन्दी भाषा में संज्ञा शब्दों के लिंग का प्रभाव उनके विशेषणों तथा क्रियाओं पर पड़ता है। इस दृष्टि से भाषा के शुद्ध प्रयोग के लिए संज्ञा शब्दों के लिंग-ज्ञान अत्यावश्यक हैं। ‘लिंग’ का शाब्दिक अर्थ प्रतीक या चिहून अथवा निशान होता है। संज्ञाओं के जिस रूप से उसकी पुरुष जाति या स्त्री जाति का पता चलता है, उसे ही ‘लिंग’ कहा जाता है।
निम्नलिखित वाक्यों को ध्यानपूर्वक देखें
- गाय बछड़ा देती है।
- बछड़ा बड़ा होकर गाड़ी खींचता है।
- पेड़-पौधे पर्यावरण को संतुलित रखते हैं।
- धोनी की टीम फाइनल में पहुँची।।
- सानिया मिर्जा क्वार्टर फाइनल में पहुँची।
- लादेन ने पेंटागन को ध्वस्त किया।
- अभी वैश्विक आर्थिक मंदी छायी है।
उपर्युक्त वाक्यों में हम देखते हैं कि किसी संज्ञा का प्रयोग पुँल्लिंग में तो किसी का स्त्रीलिंग में हुआ है। इस प्रकार लिंग के दो प्रकार हुए
(i) पुँल्लिंग और
(ii) स्त्रीलिंग पुँल्लिंग से पुरुष-जाति और स्त्रीलिंग से स्त्री-जाति का बोध होता है।
बड़े प्राणियों (जो चलते-फिरते हैं) का लिंग-निर्धारण जितना आसान है छोटे प्राणियों और निर्जीवों का लिंग-निर्धारण उतना ही कठिन है। नीचे लिखे वाक्यों में क्रिया का उचित रूप भरकर देखें-
- भैया पढ़ने के लिए अमेरिका ……….. (जाना)
- भाभी बहुत ही लज़ीज़ भोजन ………. (बनाना)
- शेर को देखकर हाथी चिग्घाड़ने ……….। (लगना)
- राणा का घोड़ा चेतक बहुत तेज ………..। (दौड़ना)
- तनवीर नाट्य-जगत् के सिरमौर ………..। (होना)
- चींटी अण्डे लेकर ……….. (चलना)
- चील बहुत ऊँचाई पर उड़ ………. है। (रहना)
- भरी सभा में ………. नाक कट …………… (वह/जाना)
- किताब ………… ! (लिखा जाना)
- मेघ बरसने ………………। (लगना)
आपने गौर किया होगा कि ऊपर के प्रथम पाँच वाक्यों को भरना जितना आसान है, नीचे के शेष वाक्यों को भरना उतना ही कठिन। क्यों? क्योंकि, आपको उनके लिंगों पर सन्देह होता है। इसलिए वैयाकरणों ने लिंग-निर्धारण के कुछ नियम बनाए हैं जो इस प्रकार हैं
नोट : वैयाकरण विभिन्न साहित्यकारों और आम जनों के भाषा-प्रयोग के आधार पर नियमों का गठन करते हैं; अपने मन से नियम नहीं बनाते। अर्थात् भाषा-संबंधी-नियम उसके प्रयोग पर निर्भर करता है।
1. प्राणियों के समूह को व्यक्त करनेवाली कुछ संज्ञाएँ पुँल्लिंग हैं तो कुछ स्त्रीलिंग :
पुंल्लिंग
- परिवार – कुटुम्ब – संघ
- दल – गिरोह – झुंड
- समुदाय – समूह – मंडल
- प्रशासन – दस्ता – कबीला
- देश – राष्ट्र – राज्य
- प्रान्त – मुलक – नगरनिगम
- प्राधिकरण – मंत्रिमंडल – अधिवेशन
- स्कूल – कॉलेज – विद्यापीठ
- विद्यालय – विश्वविद्यालय
स्त्रीलिंग
- सभा – जनता – सरकार
- प्रजा – समिति – फौज
- सेना – ब्रिगेड – मंडली
- कमिटी – टोली – जाति
- जात–पात – कौम – प्रजाति
- भीड़ – पुलिस – नगरपालिका
- संसद – राज्यसभा
- विधानसभा – पाठशाला
- बैठक – गोष्ठी
2. तत्सम एवं विदेशज शब्द हिन्दी में लिंग बदल चुके हैं :
शब्द – तस्सम/विदेशज – हिन्दी में
- महिमा – पुं० – स्त्री०
- आत्मा – पुँ०– (आतमा) स्त्री०
- देह – पुं० – स्त्री०
- देवता – स्त्री० – पुं०
- विजय – पुं० – स्त्री०
- दुकान – स्त्री० – (दूकान) पुं०
- मृत्यु – पुं० – स्त्री०
- किरण – पुँ० – स्त्री०
- समाधि – पुँ० – स्त्री०
- राशि – पुँ० – स्त्री०
- ऋतु – पुँ० – स्त्री०
- वस्तु – नपुं० – स्त्री०
- आयु – नपुं० – स्त्री०
3. कुछ शब्द उभयलिंगी हैं। इनका प्रयोग दोनों लिंगों में होता है :
- तार आया है। – तार आई है।
- मेरी आत्मा कहती है। – मेरा आतमा कहता है।
- वायु बहती है। – वायु बहता है।
- पवन सनसना रही है। – पवन सनसना रहा है।
- दही खट्टी है। – दही खट्टा है।
- साँस चल रही थी। – साँस चल रहा था।
- मेरी कलम अच्छी है। – मेरा कलम अच्छा है।
- रामायण लिखी गई। – रामायण लिखा गया।
- उसने विनय की। – उसने विनय किया।
नोट : प्रचलन में आत्मा, वायु, पवन, साँस, कलम, रामायण आदि का प्रयोग स्त्री० में तथा तार, दही, विनय आदि का प्रयोग पुँल्लिंग मे होता है। हमें प्रचलन को ध्यान में रखकर ही प्रयोग में लाना चाहिए।
4. कुछ ऐसे शब्द हैं, जो लिंग–बदल जाने पर अर्थ भी बदल लेते हैं :
- उस मरीज को बड़ी मशक्कत के बाद कल मिली है। (चैन)
- उसका कल खराब हो चुका है। (मशीन)
- कल बीत जरूर जाता है, आता कभी नहीं। (बीता और आनेवाला दिन)
- मल्लिकनाथ ने मेघदूत की टीका लिखी। (मूल किताब की व्याख्या)
- उसने चन्दन का टीका लगाया। (माथे पर बिन्दी)
- उसने अपनी बहू को एक सुन्दर टीका दिया। (आभूषण)
- वह लकड़ी के पीठ पर बैठा भोजन कर रहा है। (पीढ़ा/आसन)
- उसकी पीठ में दर्द हो रहा है। (शरीर का एक अंग)
- सेठजी के कोटि रुपये व्यापार में डूब गए। (करोड़)
- आपकी कोटि क्या है, सामान्य या अनुसूचित? (श्रेणी)
- कहते हैं कि पहले यति तपस्या करते थे। (ऋषि)
- दोहे छंद में 11 और 13 मात्राओं पर यति होती है। (विराम)
- धार्मिक लोग मानते हैं कि विधि सृष्टि करता है। (ब्रह्मा)
- इस हिसाब की विधि क्या है? (तरीका)
- उस व्यापारी का बाट ठीक–ठाक है। (बटखरा)
- मैं कबसे आपकी बाट जोह रहा हूँ। (प्रतीक्षा)
- पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले। (राह)
- चाकू पर शान चढ़ाया गया। (धार देने का पत्थर)
- हमारे देश की शान निराली है। (इज्जत)
- मेरे पास कश्मीर की बनी एक शाल है। (चादर)
- उस पेड़ में काफी शाल था। (कठोर और सख्त भाग)
- मैंने एक अच्छी कलम खरीदी है।
- मैंने आम का एक कलम लगाया है। (नई पौध)
5. कुछ प्राणिवाचक शब्दों का प्रयोग केवल स्त्रीलिंग में होता है, उनका पुंल्लिंग रूप बनता ही नहीं।
जैसे—
- सुहागिन, सौत, धाय, संतति, संतान, सेना, सती, सौतन, नर्स, औलाद, पुलिस, फौज, सरकार।
6. पर्वतों, समयों, हिन्दी महीनों, दिनों, देशों, जल–स्थल, विभागों, ग्रहों, नक्षत्रों, मोटी–भद्दी, भारी वस्तुओं के नाम पुँल्लिंग हैं।
जैसे—
- हिमालय, धौलागिरि, मंदार, चैत्र, वैसाख, ज्येष्ठ, सोमवार, मंगलवार, भारत, श्रीलंका, अमेरिका, लट्ठा, शनि, प्लूटो, सागर, महासागर आदि।
7. भाववाचक संज्ञाओं में त्व, पा, पन प्रत्यय जुड़े शब्द पुँ० और ता, आस, अट, आई, ई प्रत्यय जुड़े शब्द स्त्रीलिंग हैं–
पुल्लिंग
- शिवत्व – मनुष्यत्व
- पशुत्व – बचपन
- लड़कपन – बुढ़ापा
स्त्रीलिंग
- मनुष्यता – मिठास – घबराहट
- बनावट लड़ाई – गर्मी
- दूरी प्यास – बड़ाई
8. ब्रह्मपुत्र, सिंधु और सोन को छोड़कर सभी नदियों के नामों का प्रयोग स्त्रीलिंग में होता है।
जैसे—
- गंगा, यमुना, कावेरी, कृष्णा, गंडक, कोसी आदि।
9. शरीर के अंगों में कुछ स्त्रीलिंग तो कुछ पुँल्लिंग होते हैं :
पुल्लिंग
- सिर, माथा, बाल, मस्तक, ललाट, कंठ, गला, हाथ, पैर, पेट, टखना, अंगूठा, फेफड़ा, कान, मुँह, ओष्ठ, नाखून, भाल, घुटना, मांस, दाँत
10. कुछ प्राणिवाचक शब्द नित्य पुंल्लिंग और नित्य स्त्रीलिंग होते हैं :
नित्य पुंल्लिंग
- गरुड़ – बाज – पक्षी
- खग – विहग – कछुआ
- मगरमच्छ – खरगोश – गैंडा
- चीता – मच्छर – खटमल
- बिच्छू – रीछ – जुगनू
नित्य स्त्रीलिंग
- दीमक – चील – लूँ
- मछली – गिलहरी –
- तितली – कोयल – मकड़ी
- छिपकली – चींटी – मैना
नोट : इनके स्त्रीलिंग–पुंल्लिंग रूप को स्पष्ट करने के लिए नर–मादा का प्रयोग करना पड़ता है। जैसे–नर चील, नर मक्खी, नर मैना, मादा रीछ, मादा खटमल आदि।
11. हिन्दी तिथियों के नाम स्त्रीलिंग होते हैं।
जैस—
- प्रतिपदा, द्वितीया, षष्ठी, पूर्णिमा आदि।
12. संस्कृत के या उससे परिवर्तित होकर आए अ, इ, उ प्रत्ययान्त पुं० और नपुं० शब्द हिन्दी में भी प्रायः पुं० ही होते हैं।
जैसे–
- जग, जगत्,. जीव, मन, जीत, मित्र, पद्य, साहित्य, संसार, शरीर, तन, धन, मीत, चित्र, गद्य, नाटक, काव्य, छन्द, अलंकार, जल, पल, स्थल, बल, रत्न, ज्ञान, मान, धर्म, कर्म, जन्म, मरण, कवि, ऋषि, मुनि, संत, कांत, साधु, जन्तु, जानवर, पक्षी.
13. प्राणिवाचक जोड़ों के अलावा ईकारान्त शब्द प्रायः स्त्री० होन हैं। जैसे–
- कली, नाली, गाली, जाली, सवारी, तरकारी, सब्जी, सुपारी, साड़ी, नाड़ी, नारी, टाली, गली, भरती, वरदी, सरदी, गरमी, इमली, बाली, परन्तु, मोती, दही, घी, जी, पानी, आदि, ईकारान्त, होते, हुए, भी, पुँल्लिंग हैं।
14. जिन शब्दों के अन्त में त्र, न, ण, ख, ज, आर, आय, हों वे प्रायः पुंल्लिंग होते हैं। जैसे–
- चित्र, रदन, वदन, जागरण, पोषण, सुख, सरोज, मित्र, सदन, बदन, व्याकरण, भोजन, दुःख, मनोज, पत्र, रमन, पालन, भरण, हरण, रूख, भोज, अनाज, ताज, समाज, ब्याज, जहाज, प्रकार, द्वार, शृंगार, विहार, आहार, संचार, आचार, विचार, प्रचार, अधिकार, आकार, अध्यवसाय, व्यवसाय, अध्याय, न्याय, सम्पूर्ण, हिन्दी, व्याकरण, और, रचना, अपवाद,
(यानी स्त्री०)
थकन, सीख, लाज, खोज़, हार, हाय, लगन, खाज, हुंकार, बौछार, गाय, चुमन, चीख, मौज़, जयजयकार, राय
15. सब्जियों, पेड़ों और बर्तनों में कुछ के नाम पुँल्लिंग तो कुछ के स्त्री हैं। जैसे–
पुंल्लिंग
- शलजम – अदरख – टमाटर
- बैंगन – पुदीना – मटर
- प्याज – आलू – लहसुन
- धनिया – खीरा – करेला
- कचालू – कद्दू – कुम्हड़
- नींबू – तरबूज – खरबूजा
- कटहल – फालसा – पपीता
- कीकर – सेब – बेल
- जामुन – शहतूत – नारियल
- माल्टा – बिजौरा – तेंदू
- आबनूस – चन्दन – देवदार
- ताड़ – खजूर – बूटा
- वन – टब – पतीला
- कटोरा – चूल्हा – चम्मच
- स्टोव – चाकू – कप
- चर्खा – बेलन – कुकर
स्त्रीलिंग
- बन्दगोभी – फूलगोभी – भिंडी
- तुरई – मूली – गाजर
- पालक – मेंथी – सरसों
- फलियाँ – फराज़बीन – ककड़ी
- कचनार – शकरकन्दी – नीम
- नाशपाती – लीची – इमली
- बीही – अमलतास – मौसंबी
- खुबानी – चमेली – बेली, जूही
- अंजीर – नरगिस – चिरौंजी
- वल्लरी – लता – बेल, गूठी
- पौध – जड़ – बगिया, छुरी
- भट्ठी – अँगीठी – बाल्टी
- देगची – कटोरी – कैंची
- थाली – चलनी – चक्की
- थाल – तवा – नल
16. रत्नों के नाम, धातुओं के नाम तथा द्रवों के नाम अधिकांशतः पुंल्लिंग हुआ करते हैं। जैसे–
- हीरा, पुखराज, पन्ना, नीलम, लाल, जवाहर, मूंगा, मोती, पीतल, ताँबा, लोहा, कांस्य, सीसा, एल्युमीनियम, प्लेटिनम, यूरेनियम, टीन, जस्ता, पारा, पानी, जल, तेल, सोडा, दूध, शर्बत, रस, जूस, कहवा, कोका, जलजीरा, आदि।
अपवाद (यानी स्त्री०)
- सीपी, मणि, रत्ती, चाँदी, मद्य, शराब, चाय, कॉफी, लस्सी, छाछ, शिकंजवी, स्याही, बूंद, धारा आदि
17. आभूषणों में स्त्रीलिंग एवं पुँल्लिंग शब्द हैं…
पुँल्लिंग
- कंगन – कड़ा – कुंडल
- गजरा – झूमर – बाजूबन्द
- हार – काँटे – झुमका
- कील – शीशफूल – आभूषण
स्त्रीलिंग
- आरसी – नथ – तीली माला
- बाली – झालर – चूड़ी बिंदिया
- पायल – अंगूठी – कंठी’ मुद्रिका
18. किराने की चीजों के नाम, खाने–पीने के सामानों के नाम और वस्त्रों के नामों में पुँल्लिग स्त्रीलिंग इस प्रकार होते हैं।
पॅल्लिग
- अदरक – जीरा – धनिया
- मसाला – अमचूर – अनारदाना
- पराठा – हलवा – समोसा
- भात – भठूरा – कुल्या
- चावल – रायता – गोलगप्पे
- पापड़ – लड्डू – रसगुल्ला
- मोहनभोग – पेड़ – फुल्का
- रूमाल – कुरता – पाजामा
- कोट – सूट – मोजे
- जांधिया – दुपट्टा – टोप
- गाऊन – घाघरा – पेटीकोट
स्त्रीलिंग
- सोंठ – हल्दी – सौंफ – अजवायन
- दालचीनी – लवंग (लौंग) – हींग – सुपारी
- इलायची – मिर्च – कालमिर्च – इमली
- रोटी – रसा – खिचड़ी – पूड़ी
- दाल – खीर – चपाती – चटनी
- पकौड़ी – भाजी – सब्जी तरकारी
- काँजी – बर्फी – मट्ठी – बर्फ
- चोली – अंगिया – जुर्राब – बंडी
- गंजी – पतलून – कमीज – साड़ी
- धोती – पगड़ी – चुनरी – निक्कर
- बनियान – लँगोटी – टोपी
19. आ, ई, उ, ऊ अन्तवाली संज्ञाएँ स्त्रीलिंग और पुँल्लिंग इस प्रकार होती हैं
पुँल्लिग
- कुर्ता – कुत्ता – बूढ़ा
- शशि – रवि – यति –
- कवी – हरि – मुनि –
- ऋषि – पानी – दानी
- घी – प्राणी – स्वामी
- मोती – दही – गुरु
- साघु – मधु – आलू
- काजू – भालू – आँसू
स्त्रीलिंग
- प्रार्थना, दया, आज्ञा, लता, माला, भाषा, कथा, दशा, परीक्षा, पूजा, कृपा, विद्या, शिक्षा, दीक्षा, बुद्धि, रुचि, राशि, क्रांति, नीति, भक्ति, मति, छवि, स्तुति, गति, स्थिति, मुक्ति, रीति, नदी, गठरी, उदासी, सगाई, चालाकी, चतुराई, चिट्ठी, मिठाई, मूंगफली, लकड़ी, पढ़ाई, ऋतु, वस्तु, मृत्यु, वायु, बालू, लू, झाडू, वधू.
20. ख, आई, हट, वट, ता आदि अन्तवाली संज्ञाएँ प्रायः स्त्रीलिंग होती हैं। जैसे
- राख, भीख, सीख, भलाई, बुराई, ऊँचाई, गहराई, सच्चाई, आहट, मुस्कराहट, घबराहट, झुंझलाहट, झल्लाहट, सजावट, बनावट, मिलावट, रूकावट, थकावट, स्वतंत्रता, पराधीनता, लघुता, मिगता, शत्रुता, कटुता, मधुरता, सुन्दरता, प्रसन्नता, सत्ता, रम्यता, अक्षुण्णता
21. भाषाओं तथा बोलियों के नाम स्त्रीलिंग हुआ करते हैं। जैसे
- हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी, बंगला, मराठी, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम, सिंधी, उर्दू, अरबी, फारसी, चीनी, फ्रेंच, लैटिन, ब्रज, अपभ्रंश, प्राकृत, बुंदेली, मगही, अवधी, भोजपुरी, मैथिली, पंजाबी, अफ्रीदी.
22. अरबी–फारसी उर्दू के ‘त’ अन्तवाली संज्ञाएँ प्रायः स्त्रीलिंग होती हैं। जैसे–
- मोहब्बत, शोहरत, इज्जत, जिल्लत, किल्लत, शरारत, हिफाजत, इबादत, नसीहत, बगावत, हुज्जत, जुर्रत, कयामत, नजाकत, गनीमत, तमिल, गुजराती, ग्रीक, बाँगडू, सम्पूर्ण, हिन्दी, व्याकरण, और रचना.
23. अरबी–फारसी के अन्य शब्दों में कुछ स्त्रीलिंग तो कुछ पुँल्लिंग इस प्रकार होते है
पुँल्लिग
- हिसाब, मकान, मेजबान, बाजार, वक्त, जोश, जवाब, कबाब, इनसान, दरबान, दुकानदार, खत, कुदरत, कशीदाकार, जनाब, मेहमान, अखबार, मजा, होश, नवाब.
स्त्रीलिग
- दीवार, दुनिया, दवा, शर्म, दुकान, सरकार, हवा, फिजाँ, हया, गरीबी, अमीरी, लाचारी, खराबी, लाश, तलाश, बारिश, शोरिश, वफादारी, मजदूरी, कशिश, कोशिश.
24. अंग्रेजी भाषा से आए शब्दों का लिंग हिन्दी भाषा की प्रकृति के अनुसार तय होता है। जैसे–
पुल्लिंग
- टेलीफोन – टेलीविजन – रेडियो
- स्कूल – स्टूडेंट – स्टेशन
- पेन – बूट – बटन
स्त्रीलिंग
- ग्राउंड, यूनिवर्सिटी, बस, जीव, कार, ट्रेन, बोतल, पेंट, पेंसिल, फिल्म, फीस, पिक्चर, फोटो, मशीन.
25. क्रियार्थक संज्ञाएँ पुंल्लिग होती हैं। जैसे
- नहाना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है।
- टहलना हितकारी होता है।
- गाना एक व्यायाम होता है।
नोट : जब कोई क्रियावाची शब्द (अपने मूल रूप में) किसी कार्य के नाम के रूप में प्रयुक्त हो तब वह संज्ञा का काम करने लगता है। इसे ‘क्रियार्थक संज्ञा’ कहते हैं। ऊपर के तीनों वाक्यों में लाल रंग के पद संज्ञा हैं न कि क्रिया।
26. द्वन्द्व समास के समस्तपदों का प्रयोग पुँल्लिंग बहुवचन में होता है।
नीचे लिखे वाक्यों पर ध्यान दें–
- मेरे माता–पिता आए हैं।
- उनके भाई–बहन शहर में पढ़ते हैं।
लिंग–संबंधी कुछ रोचक और विचारणीय बातें :
हिन्दी भाषा में लिंगों का तन्त्र काफी विकृत एवं भ्रामक है; क्योंकि एक ही शब्द का एक पर्याय तो स्त्रीलिंग है; जबकि दूसरा पुँल्लिंग। हिन्दी के भाषाविदों एवं विद्वानों के लिए यह चुनौती भरा कार्य है कि वे मिल–जुलकर इसपर विमर्श करें और कोई ठोस आधार तय करें। भारत–सरकार एवं राष्ट्रभाषा–परिषद् को भी सचेतन रूप से इस पर ध्यान देना चाहिए, नहीं तो कहीं यह भाषा अपनी पहचान न खो दे। वर्तमान समय में हिन्दी भाषा का कोई ऐसा कोश नहीं है जो भ्रामक नहीं है।
नीचे लिखे वाक्यों को ध्यानपूर्वक देखें और तर्क की कसौटी पर परखें कि कितनी हास्यास्पद बात है कि यदि एक शब्द जो स्त्रीलिंग है तो उसके तमाम पर्यायवाची शब्द भी स्त्रीलिंग ही होने चाहिए अथवा एक पुंल्लिंग तो उसके सभी समानार्थी पुंल्लिंग ही हों
इसी तरह एक और बात है, यदि हमारा कोई अंग (सम्पूर्ण रूप से) पुंल्लिंग या स्त्रीलिंग है तो फिर उसका अलग–अलग हिस्सा कैसे भिन्न लिंग का हो जाता है।
निम्नलिखित उदाहरणों पर विचार करें—
हाथ
- हाथ : पुँल्लिंग
- बाँह : स्त्रीलिंग
- उँगली : स्त्रीलिंग
- कलाई : स्त्रीलिंग
- अंगूठा : पुँल्लिंग
पैर
- पैर : पुंल्लिग
- जाँघ : स्त्रीलिंग
- घुटना : पुंल्लिग
- तलवा : पुंल्लिंग
- एड़ी : स्त्रीलिंग
बाल–यदि यह पुंल्लिंग है तो फिर दाढ़ी, मूंछ, चेहरे पर स्थित आँख, नाक, भौंह, ढोड़ी आदि के बाल स्त्रीलिंग क्यों हैं?
दाढ़ी, मूंछ, जीभ–ये सभी स्त्रीलिंग और मुँह, कान, गाल, माथा, दाँत–ये सभी पुँल्लिंग
नोट : पुंल्लिंग से स्त्रीलिंग बनाने के नियमों और उदाहरणों की चर्चा शब्द–प्रकरण में ‘स्त्री प्रत्यय’ बताने के क्रम में हो चुकी है। वाक्य द्वारा लिंग–निर्णय :
वाक्य–द्वारा लिंग–निर्णय करने की मुख्य रूप से निम्नलिखित विधियाँ हैं :
1. संबंध विधि
इस विधि से लिंग–निर्णय करने के लिए हमें निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए :
(a) पुँल्लिंग संज्ञाओं के लिए संबंध के चिह्न ‘का–ना–रा’ का प्रयोग करना चाहिए।
(b) उक्त संज्ञा को या तो वाक्य का उद्देश्य या कर्म या अन्य कारकों में प्रयोग करना चाहिए।
(c) संज्ञा का जिससे संबंध है उन दोनों को एक साथ रखना चाहिए।
नीचे लिखे उदाहरणों को देखें
रूमाल (उद्देश्य रूप में)
यह मेरा रूमाल है। (‘मेरा’ से लिंग–स्पष्ट)
उनका रूमाल सुन्दर है। (‘उनका’ से लिंग–स्पष्ट)
अपना भी एक रूमाल है। (‘अपना’ से लिंग–स्पष्ट)
पुस्तक
वह मेरी पुस्तक है। (‘मेरी’ से लिंग–स्पष्ट)
उसकी पुस्तक यहाँ है। (‘उसकी’ से लिंग–स्पष्ट)
वहाँ अपनी पुस्तक है। (‘अपनी’ से लिंग–स्पष्ट)
कर्म एवं अन्य कारक रूपों में
1. वह मेरा रूमाल उपयोग में लाता है। – (कर्म रूप)
2. वह मेरे रूमाल के लिए दौड़ पड़ा। – (सम्प्रदान रूप)
3. मेरे रूमाल में गुलाब का फूल बना है। – (अधिकरण रूप)
4. वह मेरे रूमाल से बल्ब खोलता है। – (करण रूप)
5. मेरे रूमाल से सिक्का गायब हो गया। – (अपादान रूप)
अब आप स्वयं पता करें पुस्तक का प्रयोग किस कारक में हुआ है—
1. मेरी पुस्तक जीने की कला सिखाती है।
2. उसने मेरी पुस्तक देखी है।
3. मेरी पुस्तक में क्या नहीं है।
4. आपकी पुस्तक पर पेपर किसने रख दिया है?
5. मेरी पुस्तक से ज्ञान लेकर देखो।
6. आप मेरी पुस्तक के लिए परेशान क्यों हैं?
7. मै अपनी पुस्तक आपको नहीं दूंगा।
2. विशेषण–विधि
इस विधि से लिंग–स्पष्ट करने के लिए आप दी गई संज्ञा के लिए कोई सटीक आकारान्त (पुंल्लिंग के लिए) या ईकारान्त (स्त्री० के लिए) विशेषण का चयन कर लीजिए, फिर संबंध विधि की तरह विभिन्न रूपों में उसका प्रयोग कर दीजिए।
आकारान्त विशेषण : अच्छा, बुरा, काला, गोरा, भूरा, लंबा, छोटा, ऊँचा, मोटा, पतला.
ईकारान्त विशेषण : अच्छी, बुरी, काली, गोरी, भूरी, लंबी, छोटी, ऊँची, मोटी, पतली…
नीचे लिखे उदाहरण देखें मोती :
- मोती चमकीला है। (‘चमकीला’ से लिंग स्पष्ट)
- दही : दही खट्टा नहीं है। (‘खट्टा’ से लिंग स्पष्ट)
- घी : घी महँगा है। (‘महँगा’ से लिंग स्पष्ट)
- पानी : गंदा है। (‘गंदा’ से लिंग स्पष्ट)
- रूमाल : रूमाल चौड़ा है। (‘चौड़ा’ से लिंग स्पष्ट)
- पुस्तक : पुस्तक अच्छी है। (‘अच्छी’ से लिंग स्पष्ट)
- कलम : कलम नई है। (‘नई’ से लिंग स्पष्ट)
- ग्रंथ : ग्रंथ बड़ा है। (‘बड़ा’ से लिंग स्पष्ट)
- रात : रात डरावनी है। (‘डरावनी’ से लिंग स्पष्ट)
- दिन : दिन छोटा है। (‘छोटा’ से लिंग स्पष्ट)
- मौसम : मौसम सुहाना है। (‘सुहाना’ से लिंग स्पष्ट)
3. क्रिया विधि
इस विधि से लिंग–निर्धारण के लिए भी आकारान्त व ईकारान्त क्रिया का प्रयोग होता है। विशेषण–विधि की तरह पुंल्लिंग संज्ञा के लिए आकारान्त और स्त्रीलिंग संज्ञा के लिए ईकारान्त क्रिया का प्रयोग किया जाता है।
निम्नलिखित वाक्यों को देखें-
- गाय : गाय मीठा दूध देती है।
- मोती : मोती चमकता है।
- बचपन : उसका बचपन लौट आया है।
- सड़क : यह सड़क लाहौर तक जाती है।
- आदमी : आदमी आदमीयत भूल चुका है।
- पेड़ : पेड़ ऑक्सीजन देता है।
- चिड़िया : चिड़िया चहचहा रही है।
- दीमक : . दीमक लकड़ी को बर्बाद कर देती है।
- खटमल : खटमल परजीवी होता है।
नोट : उपर्युक्त वाक्यों में आपने देखा कि सभी संज्ञाओं का प्रयोग उद्देश्य (कत्ता) के रूप में हुआ है। ध्यान दें क्रिया–विधि से लिंग–निर्णय करने पर वह संज्ञा शब्द (जिसका लिंग–स्पष्ट करना है) वाक्य में कर्ता का काम करता है।
4. कर्ता में ‘ने’ चिह्न लगाकर
इस विधि से लिंग–निर्णय करने के लिए हमें निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए
1. दिए गए शब्द को कर्म बनाएँ और कोई अन्य कर्ता चुन लें।
2. कर्ता में ‘ने’ चिह्न और ‘कर्म’ में शून्य चिह्न (यानी कोई चिह्न नहीं) लगाएँ।
3. क्रिया को भूतकाल में कर्म (दिए गए शब्द) के लिंग–वचन के अनुसार रखें।
ठीक इस तरह
कर्ता (ने) + दिया गया शब्द (चिह्न रहित) + कर्मानुसार क्रिया
- नीचे लिखे उदाहरणों को देखें
- घोड़ा : मैंने एक अरबी घोड़ा खरीदा।
- घड़ी : चाचाजी ने मुझे एक घड़ी दी।
- कुर्सी : आपने कुर्सी क्यों तोड़ी?
- साइकिल : मम्मी ने एक साइकिल दी।
- गोली : तुमने ही गोली चलाई थी।
- जूं : बंदर ने जूं निकाली।
- कान : मैंने कान पकड़ा।
- ‘फसल : किसानों ने फसल काटी।
- सूरज : मैंने उगता सूरज देखा।
ध्यातव्य बातें : हमने केवल एकवचन संज्ञाओं का वाक्य–प्रयोग बताया है। बहुवचन के लिए उसी के अनुसार संबंध (के–ने–रे) विशेषण एवं क्रिया (एकारान्त–ईकारान्त) लगाने चाहिए।
A. निम्नलिखित संज्ञाओं को पुलिंग एवं स्त्रीलिंग में सजाएँ :
- चिड़िया, गाय, मोर, बछड़ा, आदमी, चील, दीमक, खटिया, वर्षा, पानी, चीलर, खटमल, गैं, नीम, औरत, पुरुष, महिला, किताब, ग्रंथ, समाचार, खबर, कसम, प्रतिज्ञा, सोच, पान, घी, जी, मोती, चीनी, जाति, चश्मा, नहर, झील, पहाड़, चोटी, बरतन, ध्यान, योगी, सपना, कैंची, नाली, गंगा, ब्रह्मपुत्र, खाड़ी, जनवरी, सौगात, संदेश, दिन, रात, नाक, कान, आँख, जी, जीभ, वायु, दाँत, गरमी, सर्दी, कफन, आकाश, दर्पण, चाँद, चाँदनी, छड़ी, साधु, विद्या, बचपन, मिठास, सफलता, पाठशाला, नौका, सूर्य, तारा, पंखा, दर्पण.
Sandhi in Hindi | संधि की परिभाषा, भेद और उदाहरण – हिन्दी व्याकरण
Sandhi in Hindi(संधि इन हिंदी) | Sandhi ki Paribhasha, Prakar Bhed, Udaharan (Examples) – Hindi Grammar
सन्धि – दो वर्णों या ध्वनियों के संयोग से होने वाले विकार (परिवर्तन) को सन्धि कहते हैं। सन्धि करते समय कभी–कभी एक अक्षर में, कभी–कभी दोनों अक्षरों में परिवर्तन होता है और कभी–कभी दोनों अक्षरों के स्थान पर एक तीसरा अक्षर बन जाता है। इस सन्धि पद्धति द्वारा भी शब्द–रचना होती है;
जैसे-
- सुर + इन्द्र = सुरेन्द्र,
- विद्या + आलय = विद्यालय,
- सत् + आनन्द = सदानन्द।
इन शब्द खण्डों में प्रथम खण्ड का अन्त्याक्षर और दूसरे खण्ड का प्रथमाक्षर मिलकर एक भिन्न वर्ण बन गया है, इस प्रकार के मेल को सन्धि कहते हैं।
संधि हिंदी
संधि में विषय :
- संधि उदाहरण (Sandhi udaharan)
- संधि व्याकरण (Sandhi vyakaran)
- व्यंजन संधि (Vyanjan Sandhi)
- दीर्घ संधि उदाहरण (Deergh Sandhi Udaharan)
- संधि विक्षेद (Sandhi Vikshed)
- संधि संस्कृत में (Sandhi Sanskrut Mein)
- संस्कृत संधि सूत्र (Sanskrt Sandhi Sootr)
- विसर्ग संधि उदाहरण (Visarg Sandhi Udaaharan)
- अयादि संधि के उदाहरण (Ayadi Sandhi Ke Udaaharan)
- संधि विच्छेद (Sandhi Vichched)
सन्धियाँ तीन प्रकार की होती हैं
- स्वर सन्धि
- गुण सन्धि
- वृद्धि सन्धि
- अयादि संधि
- यण सन्धि
- व्यंजन सन्धि
- विसर्ग सन्धि
1. स्वर सन्धि
स्वर के साथ स्वर का मेल होने पर जो विकार होता है, उसे स्वर सन्धि कहते हैं। स्वर सन्धि के पाँच भेद हैं-
(i) दीर्घ सन्धि सवर्ण ह्रस्व या दीर्घ स्वरों के मिलने से उनके स्थान में सवर्ण दीर्घ स्वर हो जाता है। वर्गों का संयोग चाहे ह्रस्व + ह्रस्व हो या ह्रस्व + दीर्घ और चाहे दीर्घ + दीर्घ हो, यदि सवर्ण स्वर है तो दीर्घ हो जाएगा। इस सन्धि को दीर्घ सन्धि कहते हैं; जैसे
सन्धि – उदाहरण
- अ + अ = आ – पुष्प + अवली = पुष्पावली
- अ + आ = आ – हिम + आलय = हिमालय
- आ + अ = आ – माया + अधीन = मायाधीन
- आ + आ = आ – विद्या + आलय = विद्यालय
- इ + इ = ई – कवि + इच्छा = कवीच्छा
- इ + ई = ई – हरी + ईश = हरीश
- इ + इ = ई – मही + इन्द्र = महीन्द्र
- इ + ई = ई – नदी + ईश = नदीश
- उ + उ = ऊ – सु + उक्ति = सूक्ति
- उ + ऊ = ऊ – सिन्धु + ऊर्मि = सिन्धूमि
- ऊ + उ = ऊ – वधू + उत्सव = वधूत्सव
- ऊ + ऊ = ऊ – भू + ऊर्ध्व = भूल
- ऋ+ ऋ = ऋ – मात + ऋण = मातण
गुण सन्धि
जब अ अथवा आ के आगे ‘इ’ अथवा ‘ई’ आता है तो इनके स्थान पर ए हो जाता है। इसी प्रकार अ या आ के आगे उ या ऊ आता है तो ओ हो जाता है तथा अ या आ के आगे ऋ आने पर अर् हो जाता है। दूसरे शब्दों में, हम इस प्रकार कह सकते हैं कि जब अ, आ के आगे इ, ई या ‘उ’, ‘ऊ’ तथा ‘ऋ’ हो तो क्रमश: ए, ओ और अर् हो जाता है, इसे गुण सन्धि कहते हैं;
जैसे-
- अ, आ + ई, ई = ए
- अ, आ + उ, ऊ = ओ
- अ, आ + ऋ = अर्
सन्धि – उदाहरण
- अ + इ = ए – उप + इन्द्र = उपेन्द्र
- अ + ई = ए – गण + ईश = गणेश
- आ + इ = ए – महा + इन्द्र = महेन्द्र
- आ + ई = ए – रमा + ईश = रमेश
- अ + उ = ओ – चन्द्र + उदय = चन्द्रोदय
- अ + ऊ = ओ – समुद्र + ऊर्मि = समुद्रोर्मि
- आ + उ = ओ – महा + उत्सव = महोत्सव
- आ + ऊ = ओ – गंगा + उर्मि = गंगोर्मि
- अ + ऋ = अर् – देव + ऋषि = देवर्षि
- आ + ऋ = अर – महा + ऋषि = महर्षि
वृद्धि सन्धि
जब अ या आ के आगे ‘ए’ या ‘ऐ’ आता है तो दोनों का ऐ हो जाता है। इसी प्रकार अ या आ के आगे ‘ओ’ या ‘औ’ आता है तो दोनों का औ हो जाता है, इसे वृद्धि सन्धि कहते हैं;
जैसे-
सन्धि – उदाहरण
- अ + ए = ऐ – पुत्र + एषणा = पुत्रैषणा
- अ + ऐ = ऐ – मत + ऐक्य = मतैक्य
- आ + ए = ऐ – सदा + एव = सदैव
- आ + ऐ = ऐ – महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य
- अ + ओ = औ – जल + ओकस = जलौकस
- अ + औ = औ – परम + औषध = परमौषध
- आ + ओ = औ – महा + ओषधि = महौषधि
- आ + औ = औ – महा + औदार्य = महौदार्य
यण सन्धि
जब इ, ई, उ, ऊ, ऋ के आगे कोई भिन्न स्वर आता है तो ये क्रमश: य, व, र, ल् में परिवर्तित हो जाते हैं, इस परिवर्तन को यण सन्धि कहते हैं;
जैसे-
- इ, ई + भिन्न स्वर = व
- उ, ऊ + भिन्न स्वर = व
- ऋ + भिन्न स्वर = र
सन्धि – उदाहरण
- इ + अ = य् – अति + अल्प = अत्यल्प
- ई + अ = य् – देवी + अर्पण = देव्यर्पण
- उ + अ = व् – सु + आगत = स्वागत
- ऊ + आ = व – वधू + आगमन = वध्वागमन
- ऋ + अ = र् – पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा
(v) अयादि सन्धि जब ए, ऐ, ओ और औ के बाद कोई भिन्न स्वर आता है तो ‘ए’ का अय, ‘ऐ’ का आय् , ‘ओ’ का अव् और ‘औ’ का आव् हो जाता है;
जैसे-
- ए + भिन्न स्वर = अय्
- ऐ + भिन्न स्वर = आय्
- ओ + भिन्न स्वर = अव्
- औ + भिन्न स्वर = आव्
सन्धि – उदाहरण
- ए + अ = अय् – ने + अयन = नयन
- ऐ + अ = आय् – नै + अक = नायक
- ओ + अ = अव् – पो + अन = पवन
- औ + अ = आव् – पौ + अक = पावक
2. व्यंजन सन्धि
व्यंजन के साथ व्यंजन या स्वर का मेल होने से जो विकार होता है, उसे व्यंजन सन्धि कहते हैं। व्यंजन सन्धि के प्रमुख नियम इस प्रकार हैं (क) यदि स्पर्श व्यंजनों के प्रथम अक्षर अर्थात् क्, च्, ट्, त्, के आगे कोई स्वर अथवा किसी वर्ग का तीसरा या चौथा वर्ण अथवा य, र, ल, व आए तो क.च.ट. त. पके स्थान पर उसी वर्ग का तीसरा अक्षर अर्थात क के स्थान पर ग, च के स्थान पर ज, ट के स्थान पर ड, त के स्थान पर द और प के स्थान पर ‘ब’ हो जाता है;
जैसे-
- दिक् + अम्बर = दिगम्बर
- वाक् + ईश = वागीश
- अच् + अन्त = अजन्त
- षट् + आनन = षडानन
- सत् + आचार = सदाचार
- सुप् + सन्त = सुबन्त
- उत् + घाटन = उद्घाटन
- तत् + रूप = तद्रूप
(ख) यदि स्पर्श व्यंजनों के प्रथम अक्षर अर्थात् क्, च्, ट्, त्, प् के आगे कोई अनुनासिक व्यंजन आए तो उसके स्थान पर उसी वर्ग का पाँचवाँ अक्षर हो जाता है;
जैसे-
- वाक् + मय = वाङ्मय
- षट् + मास = षण्मास
- उत् + मत्त = उन्मत्त
- अप् + मय = अम्मय
(ग) जब किसी ह्रस्व या दीर्घ स्वर के आगे छ आता है तो छ के पहले च बढ़ जाता है;
जैसे-
- परि + छेद = परिच्छेद
- आ + छादन = आच्छादन
- लक्ष्मी + छाया = लक्ष्मीच्छाया
- पद + छेद = पदच्छेद
- गृह + छिद्र = गृहच्छिद्र
(घ) यदि म् के आगे कोई स्पर्श व्यंजन आए तो म् के स्थान पर उसी वर्ग का पाँचवाँ वर्ण हो जाता है;
जैसे-
- शम् + कर = शङ्कर या शंकर
- सम् + चय = संचय
- घम् + टा = घण्टा
- सम् + तोष = सन्तोष
- स्वयम् + भू = स्वयंभू
(ङ) यदि म के आगे कोई अन्तस्थ या ऊष्म व्यंजन आए अर्थात् य, र, ल, व्, श्, ष्, स्, ह आए तो म अनुस्वार में बदल जाता है;
जैसे-
- सम् + सार = संसार
- सम् + योग = संयोग
- स्वयम् + वर = स्वयंवर
- सम् + रक्षा = संरक्षा
(च) यदि त् और द् के आगे ज् या झ् आए तो ‘ज्’, ‘झ’, ‘ज’ में बदल जाते हैं;
जैसे-
- उत् + ज्वल = उज्ज्वल
- विपद् + जाल = विपज्जाल
- सत् + जन = सज्जन
- सत् + जाति = सज्जाति
(छ) यदि त्, द् के आगे श् आए तो त्, द् का च और श् का छ हो जाता है। यदि त्, द् के आगे ह आए तो त् का द् और ह का ध हो जाता है;
जैसे-
- सत् + चित = सच्चित
- तत् + शरीर = तच्छरीर
- उत् + हार = उद्धार
- तत् + हित = तद्धित
(ज) यदि च् या ज् के बाद न् आए तो न् के स्थान पर या याञ्जा हो जाता है;
जैसे-
- यज् + न = यज्ञ
- याच् + न = याजा
(झ) यदि अ, आ को छोड़कर किसी भी स्वर के आगे स् आता है तो बहुधा स् के स्थान पर ष् हो जाता है;
जैसे-
- अभि + सेक = अभिषेक
- वि + सम = विषम
- नि + सेध = निषेध
- सु + सुप्त = सुषुप्त
(ब) ष् के पश्चात् त या थ आने पर उसके स्थान पर क्रमश: ट और ठ हो जाता है;
जैसे-
- आकृष् + त = आकृष्ट
- तुष् + त = तुष्ट
- पृष् + थ = पृष्ठ
- षष् + थ = षष्ठ
(ट) ऋ, र, ष के बाद ‘न’ आए और इनके मध्य में कोई स्वर क वर्ग, प वर्ग, अनुस्वार य, व, ह में से कोई वर्ण आए तो ‘न’ = ‘ण’ हो जाता है;
जैसे-
- भर + अन = भरण
- भूष + अन = भूषण
- राम + अयन = रामायण
- परि + मान = परिमाण
- ऋ + न = ऋण
3. विसर्ग सन्धि
विसर्गों का प्रयोग संस्कृत को छोड़कर संसार की किसी भी भाषा में नहीं होता है। हिन्दी में भी विसर्गों का प्रयोग नहीं के बराबर होता है। कुछ इने-गिने विसर्गयुक्त शब्द हिन्दी में प्रयुक्त होते हैं;
जैसे-
- अत:, पुनः, प्रायः, शनैः शनैः आदि।
हिन्दी में मनः, तेजः, आयुः, हरिः के स्थान पर मन, तेज, आयु, हरि शब्द चलते हैं, इसलिए यहाँ विसर्ग सन्धि का प्रश्न ही नहीं उठता। फिर भी हिन्दी पर संस्कृत का सबसे अधिक प्रभाव है। संस्कृत के अधिकांश विधि निषेध हिन्दी में प्रचलित हैं। विसर्ग सन्धि के ज्ञान के अभाव में हम वर्तनी की अशुद्धियों से मुक्त नहीं हो सकते। अत: इसका ज्ञान होना आवश्यक है।
विसर्ग के साथ स्वर या व्यंजन के संयोग से जो विकार होता है, उसे विसर्ग सन्धि कहते हैं। इसके प्रमुख नियम निम्नलिखित हैं-
(क) यदि विसर्ग के आगे श, ष, स आए तो वह क्रमशः श्, ए, स्, में बदल जाता है;
जैसे
- निः + शंक = निश्शंक
- दुः + शासन = दुश्शासन
- निः + सन्देह = निस्सन्देह
- नि: + संग = निस्संग
- निः + शब्द = निश्शब्द
- निः + स्वार्थ = निस्स्वार्थ
(ख) यदि विसर्ग से पहले इ या उ हो और बाद में र आए तो विसर्ग का लोप हो जाएगा और इ तथा उ दीर्घ ई, ऊ में बदल जाएँगे;
जैसे-
- निः + रव = नीरव
- निः + रोग = नीरोग
- निः + रस = नीरस
(ग) यदि विसर्ग के बाद ‘च-छ’, ‘ट-ठ’ तथा ‘त-थ’ आए तो विसर्ग क्रमशः ‘श्’, ‘ष’, ‘स्’ में बदल जाते हैं;
जैसे-
- निः + तार = निस्तार
- दु: + चरित्र = दुश्चरित्र
- निः + छल = निश्छल
- धनु: + टंकार = धनुष्टंकार
- निः + ठुर = निष्ठुर
(घ) विसर्ग के बाद क, ख, प, फ रहने पर विसर्ग में कोई विकार (परिवर्तन) नहीं होता;
जैसे-
- प्रात: + काल = प्रात:काल
- पयः + पान = पयःपान
- अन्तः + करण = अन्तःकरण
(ङ) यदि विसर्ग से पहले ‘अ’ या ‘आ’ को छोड़कर कोई स्वर हो और बाद में वर्ग के तृतीय, चतुर्थ और पंचम वर्ण अथवा य, र, ल, व में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग ‘र’ में बदल जाता है;
जैसे-
- दुः + निवार = दुर्निवार
- दुः + बोध = दुर्बोध
- निः + गुण = निर्गुण
- नि: + आधार = निराधार
- निः + धन = निर्धन
- निः + झर = निर्झर
(च) यदि विसर्ग से पहले अ, आ को छोड़कर कोई अन्य स्वर आए और बाद में कोई भी स्वर आए तो भी विसर्ग र् में बदल जाता है;
जैसे-
- नि: + आशा = निराशा
- निः + ईह = निरीह
- निः + उपाय = निरुपाय
- निः + अर्थक = निरर्थक
(छ) यदि विसर्ग से पहले अ आए और बाद में य, र, ल, व या ह आए तो विसर्ग का लोप हो जाता है तथा विसर्ग ‘ओ’ में बदल जाता है;
जैसे-
- मनः + विकार = मनोविकार
- मन: + रथ = मनोरथ
- पुरः + हित = पुरोहित
- मनः + रम = मनोरम
(ज) यदि विसर्ग से पहले इ या उ आए और बाद में क, ख, प, फ में से कोई वर्ण आए तो विसर्ग ‘ष्’ में बदल जाता है;
जैसे-
- निः + कर्म = निष्कर्म
- निः + काम = निष्काम
- नि: + करुण = निष्करुण
- निः + पाप = निष्पाप
- निः + कपट = निष्कपट
- निः + फल = निष्फल
हिन्दी की कुछ विशेष सन्धियाँ
हिन्दी की कुछ अपनी विशेष सन्धि हैं, इनकी रूपरेखा अभी तक विशेष रूप से स्पष्ट निर्धारित नहीं हुई है, फिर भी इनका ज्ञान हमारे लिए आवश्यक है। हिन्दी की प्रमुख विशेष सन्धियाँ निम्नलिखित हैं-
1. जब, तब, कब, सब और अब आदि शब्दों के अन्त में (पीछे) ‘ही’ आने पर ह का भ हो जाता है और ब का लोप भी हो जाता है;
जैसे-
- जब + ही = जभी
- तब + ही = तभी
- कब + ही = कभी
- सब + ही = सभी
- अब + ही = अभी
2. जहाँ, कहाँ, यहाँ, वहाँ आदि शब्दों के बाद ‘ही’ आने पर ही (स्वर सहित) लुप्त हो जाता है और अन्तिम ई पर अनुस्वार लग जाता है;
जैसे-
- यहाँ + ही = यहीं
- कहाँ + ही = कहीं
- वहाँ + ही = वहीं
- जहाँ + ही = जहीं
3. कहीं-कहीं संस्कृत के र् लोप, दीर्घ और यण आदि सन्धियों के नियम हिन्दी में नहीं लागू होते हैं;
जैसे-
- अन्तर् + राष्ट्रीय = अन्तर्राष्ट्रीय
- स्त्री + उपयोगी = स्त्रियोपयोगी
- उपरि + उक्त = उपर्युक्त
Sandhi Viched In Hindi (हिन्दी के प्रमुख शब्द एवं उनके सन्धि-विच्छेद)
- शब्द – सन्धि – विच्छेद
- राष्ट्राध्यक्ष – राष्ट्र + अध्यक्ष
- नयनाभिराम – नयन + अभिराम
- युगान्तर – युग + अन्तर
- शरणार्थी – शरण + अर्थी
- सत्यार्थी – सत्य + अर्थी
- दिवसावसान – दिवस + अवसान
- प्रसंगानुकूल – प्रसंग +अनुकूल
- विद्यानुराग – विद्या + अनुराग
- परमावश्यक – परम + आवश्यक
- उदयाचल – उदय + अचल
- ग्रामांचल – ग्रामा + अंचल
- ध्वंसावशेष – ध्वंस + अवशेष
- हस्तान्तरण – हस्त + अन्तरण
- परमानन्द – परम + आनन्द
- रत्नाकर – रत्न + आकर
- देवालय – देव + आलय
- धर्मात्मा – धर्म + आत्मा
- आग्नेयास्त्र – आग्नेय + अस्त्र
- मर्मान्तक – मर्म + अन्तक
- रामायण – राम + अयन
- सुखानुभूति – सुख + अनुभूति
- आज्ञानुपालन – आज्ञा + अनुपालन
- देहान्त – देह + अन्त
- गीतांजलि – गीत + अंजलि
- मात्राज्ञा – मातृ + आज्ञा
- भयाकुल – भय + आकुल
- त्रिपुरारि – त्रिपुर + अरि
- आयुधागार – आयुध + आगार
- स्वर्गारोहण – स्वर्ग + आरोहण
- प्राणायाम – प्राण + आयाम
- कारागार – कारा + आगार
- शाकाहारी – शाक् + आहारी
- फलाहार – फल + आहार
- गदाघात – गदा + आघात
- स्थानापन्न – स्थान + आपन्न
- कंटकाकीर्ण – कंटक + आकीर्ण
- स्नेहाकांक्षी – स्नेह + आकांक्षी
- महामात्य – महा + अमात्य
- चिकित्सालय – चिकित्सा + आलय
- नवांकुर – नव + अंकुर
- सहानुभूति – सह + अनुभूति
- दीक्षान्त – दीक्षा + अन्त
- वार्तालाप – वार्ता + आलाप
- पुस्तकालय – पुस्तक + आलय
- विकलांग – विकल + अंग
- आनन्दातिरेक – आनन्द + अतिरेक
- कामायनी – काम + अयनी
- दीपावली – दीप +अवली
- दावानल – दाव + अनल
- महात्मा – महा + आत्मा
- हिमालय – हिम + आलय
- देशान्तर – देश + अन्तर
- सावधान – स + अवधान
- तीर्थाटन – तीर्थ + अटन
- विचाराधीन – विचार + अधीन
- मुरारि – मुर + अरि
- कुशासन – कुश + आसन
- उत्तमांग – उत्तम + अंग
- सावयव – स + अवयव
- भग्नावशेष – भग्न + अवशेष
- धर्माधिकारी – धर्म + अधिकारी
- जनार्दन – जन + अर्दन
- अधिकांश – अधिक + अंश
- गौरीश – गौरी + ईश
- लक्ष्मीश – लक्ष्मी + ईश
- पृथ्वीश्वर – पृथ्वी + ईश्वर
- अनूदित – अनु + उदित
- मंजूषा – मंजु + उषा
- गुरूपदेश – गुरु + उपदेश
- साधूपदेश – साधु + उपदेश
- बहूद्देशीय – बहु + उद्देशीय
- वधूपालम्भ – वधु + उपालम्भ
- भानूदय – भानु + उदय
- मधूत्सव – मधु + उत्सव
- बहूर्ज – बहु + उर्ज
- सिन्धूर्मि – सिन्धु + ऊर्मि
- चमूत्तम – चमू + उत्तम
- लघूत्तम – लघु + उत्तम
- रचनात्मक – रचना + आत्मक
- क्षितीन्द्र – क्षिति + इन्द्र
- अधीश्वर – अधि + ईश्वर
- प्रतीक्षा – प्रति + ईक्षा
- परीक्षा – परि + ईक्षा
- गिरीन्द्र – गिरि + इन्द्र
- मुनीन्द्र – मुनि + इन्द्र
- अधीक्षक – अधि + ईक्षक
- हरीश – हरि + ईश
- अधीन – अधि + इन
- गिरीश – गिरि + ईश
- वारीश – वारि + ईश
- गणेश – गण + ईश
- सुधीन्द्र – सुधी + इन्द्र
- महीन्द्र – मही + इन्द्र
- श्रीश – श्री + ईश
- सतीश – सती + ईश
- फणीन्द्र – फणी + इन्द्र
- रजनीश – रजनी + ईश
- नारीश्वर – नारी + ईश्वर
- देवीच्छा – देवी + इच्छा
- लक्ष्मीच्छा – लक्ष्मी + इच्छा
- परमेश्वर – परम + ईश्वर
- परोपकार – पर + उपकार
- नीलोत्पल – नील + उत्पल
- देशोपकार – देश + उपकार
- सूर्योदय – सूर्य + उदय
- रोगोपचार – रोग + उपचार
- ज्ञानोदय – ज्ञान + उदय
- पुरुषोचित – पुरुष + उचित
- दुग्धोपजीवी – दुग्ध + उपजीवी
- अन्त्योदय – अन्त्य + उदय
- वेदोक्त – वेद + उक्त
- महोदय – महा + उदय
- विद्योन्नति – विद्या + उन्नति
- महोपदेशक – महा + उपदेशक
- महोपकार – महा + उपकार
- दलितोत्थान – दलित + उत्थान
- सर्वोपरि – सर्व + उपरि
- सोद्देश्य – स + उद्देश्य
- जनोपयोगी – जन + उपयोगी
- वधूल्लास – वधू + उल्लास
- भ्रूज़ – भ्रू + ऊर्ध्व
- पितॄण – पितृ + ऋण
- मातृण – मातृ + ऋण
- योगेन्द्र – योग + इन्द्र
- शुभेच्छा – शुभ + इच्छा
- मानवेन्द्र – मानव + इन्द्र
- गजेन्द्र – गज + इन्द्र
- मृगेन्द्र – मृग + इन्द्र
- जितेन्द्रिय – जित + इन्द्रिय
- पूर्णेन्द्र – पूर्ण + इन्द्र
- सुरेन्द्र – सुर + इन्द्र
- यथेष्ट – यथा + इष्ट
- विवाहेतर – विवाह + इतर
- हितेच्छा – हित + इच्छा
- साहित्येतर – साहित्य + इतर
- शब्देतर – शब्द + इतर
- भारतेन्द्र – भारत + इन्द्र
- उपदेष्टा – उप + दिष्टा
- स्वेच्छा – स्व + इच्छा
- अन्त्येष्टि – अन्त्य + इष्टि
- बालेन्दु – बाल + इन्दु
- राजर्षि – राज + ऋषि
- ब्रह्मर्षि – ब्रह्म + ऋषि
- प्रियैषी – प्रिय + एषी
- पुत्रैषणा – पुत्र + एषणा
- लोकैषणा – लोक + एषणा
- देवौदार्य – देव + औदार्य
- परमौषध – परम + औषध
- हितैषी – हित + एषी
- जलौध – जल + ओध
- वनौषधि – वन + ओषधि
- धनैषी – धन + एषी
- महौदार्य – महा + औदार्य
- विश्वैक्य – विश्व + एक्य
- स्वैच्छिक – स्व + ऐच्छिक
- महैश्वर्य – महा + ऐश्वर्य
- अधरोष्ठ – अधर + ओष्ठ
- शुद्धोधन – शुद्ध + ओधन
- स्वागत – सु + आगत
- अन्वेषण – अनु + एषण
- सोल्लास – स + उल्लास
- भावोद्रेक – भाव + उद्रेक
- धीरोद्धत – धीर + उद्धत
- सर्वोत्तम – सर्व + उत्तम
- मानवोचित – मानव + उचित
- कथोपकथन – कथ + उपकथन
- रहस्योद्घाटन – रहस्य + उद्घाटन
- मित्रोचित – मित्र + उचित
- नवोन्मेष – नव + उन्मेष
- नवोदय – नव + उ
- महोर्मि – महा + ऊर्मि
- महोर्जा – महा + ऊर्जा
- सूर्योष्मा – सूर्य + उष्मा
- महोत्सव – महा + उत्सव
- नवोढ़ा – नव + ऊढ़ा
- क्षुधोत्तेजन – क्षुधा + उत्तेजन
- देवर्षि – देव + ऋषि
- महर्षि – महा + ऋषि
- सप्तर्षि – सप्त + ऋषि
- व्याकरण – वि + आकरण
- प्रत्युत्तर – प्रति + उत्तर
- उपर्युक्त – उपरि + उक्त
- उभ्युत्थान – अभि + उत्थान
- अध्यात्म – अधि + आत्म
- अत्युक्ति – अति + उक्ति
- अत्युत्तम – अति + उत्तम
- सख्यागमन – सखी + आगमन
- स्वच्छ – सु + अच्छ
- तन्वंगी – तनु + अंगी
- समन्वय – सम् + अनु + अय
- मन्वंतर – मनु + अन्तर
- गुर्वादेश – गुरु + आदेश
- साध्वाचार – साधु + आचार
- धात्विक – धातु + इक
- नायक – नै + अक
- गायक – गै + अक
- गायन – गै + अन
- विधायक – विधै + अक
- पवन – पो + अन
- हवन – हो + अन
- शाचक – शौ + अक
- अभ्यास – अभि + आस
- पर्यवसान – परि + अवसान
- रीत्यनुसार – रीति + अनुसार
- अभ्यर्थना – अभि + अर्थना
- प्रत्यभिज्ञ – प्रति + अभिज्ञ
- प्रत्युपकार – प्रति + उपकार
- त्र्यम्बक – त्रि + अम्बक
- अत्यल्प – अति + अल्प
- जात्यभिमान – जाति + अभिमान
- गत्यानुसार – गति + अनुसार
- देव्यागमन – देवी + आगमन
- गुर्वौदार्य – गुरु + औदार्य
- लघ्वोष्ठ – लघु + औष्ठ
- मात्रुपदेश – मातृ + उपदेश
- पर्यावरण – परि + आवरण
- ध्वन्यात्मक – ध्वनि + आत्मक
- अभ्यागत – अभि + आगत
- अत्याचार – अति + आचार
- व्याख्यान – वि + आख्यान
- ऋग्वेद – ऋक् + वेद
- सद्धर्म – सत् + धर्म
- जगदाधार – जगत् + आधार
- उद्वेग – उत् + वेग
- अजंत – अच् + अन्त
- षडंग – षट् + अंग
- जगदम्बा – जगत् + अम्बा
- जगद्गुरु – जगत् + गुरु
- जगज्जनी – जगत् + जननी
- उज्ज्वल – उत् + ज्वल
- सज्जन – सत् + जन
- सदात्मा – सत् + आत्मा
- सदानन्द – सत् + आनन्द
- स्यादवाद – स्यात् + वाद
- सदवेग – सत् + वेग
- छत्रच्छाया – छत्र + छाया
- परिच्छेद – परि + छेद
- सन्तोष – सम् + तोष
- आच्छादन – आ + छादन
- उच्चारण – उत् + चारण
- जगन्नाथ – जगत् + नाथ
- जगन्मोहिनी – जगत् + मोहिनी
- श्रावण – श्री + अन
- नाविक – नौ + इक
- विश्वामित्र – विश्व + अमित्र
- प्रतिकार – प्रति + कार
- दिवारात्र – दिवा + रात्रि
- षड्दर्शन – षट् + दर्शन
- वागीश – वाक् + ईश
- उन्मत् – उत् + मत
- दिग्ज्ञान – दिक + ज्ञान
- वाग्दान – वाक् + दान
- वाग्व्यापार – वाक् + व्यापार
- दिग्दिगन्त – दिक् + दिगन्त
- सम्यक् + दर्शन – सम्यग्दर्शन
- ‘दिक् + विजय – दिग्विजय
- निस्सहाय – निः + सहाय
- निस्सार – निः + सार
- निश्चल – निः + चल
- निष्कलुष – निः + कलुष
- निष्काम – निः + काम
- निष्कासन – निः + कासन
- निश्चय – नि: + चय
- दुश्चरित्र – दु: + चरित्र
- निष्प्रयोजन – निः + प्रयोजन
- निष्प्राण – निः + प्राण
- निष्प्रभ – निः + प्रभ
- निष्पालक – निः + पालक
- निष्पाप – निः + पाप
- प्राणिविज्ञान – प्राणि + विज्ञान
- योगीश्वर – योगी + ईश्वर
- स्वामिभक्त – स्वामी + भक्त
- युववाणी – युव + वाणी
- मनीष – मन + ईष
- दुर्दशा – दु: + दशा
- दुर्लभ – दु: + लभ
- निर्भय – निः + भय
- यशोगान – यशः + भूमि
- उन्नयन – उत् + नयन
- सन्मान – सत् + मान
- सन्निकट – सम् + निकट
- दण्ड – दम् + ड
- सन्त्रास – सम् + त्रास
- सच्चिदानन्द – सत् + चित + आनन्द
- यावज्जीवन – यावत् + जीवन
- तज्जन्य – तद् + जन्य
- परोक्ष – पर + उक्ष
- सारंग – सार + अंग
- अनुषंगी – अनु + संगी
- सुषुप्त – सु + सुप्त
- प्रतिषेध – प्रति + सेध
- दुस्साहस – दु: + साहस
- तपोभूमि – तपः + भूमि
- नभोमण्डल – नभः + मण्डल
- तमोगुण – तमः + गुण
- तिरोहित – तिरः + हित
- दिवोज्योति – दिवः + ज्योति
- यशोदा – यशः + दा
- शिरोभूषण – शिरः + भूषण
- मनोवांछा – मनः + वांछा
- पुरोगामी – पुरः + गामी
- मनोग्राह्य – मनः+ ग्राह्य
- निर्मम – निः + मम
- दुर्जन – दु: + जन
- निराशा – नि: + आशा
- निष्ठुर – निः + तुर
- धनुष्टंकार– – धनुः + टंकार
- दुश्शासन – दु: + शासन
- शिरोरेखा – शिरः + रेखा
- यजुर्वेद – यजुः + वेद
- नमस्कार – नमः + कार
- शिरस्त्राण – शिरः + त्राण
- चतुस्सीमा – चतुः + सीमा
- आविष्कार – आविः + कार
1. अ, आ के बाद
(i) इ, ई आए तो ई ई = ए
(ii) उ, ऊ आए तो ऊ ऊ = ओ
(iii) ऋ आए तो ‘अर्’ हो जाता है। इसे कहते हैं
(a) वृद्धि सन्धि (b) गुण सन्धि
(c) अयादि सन्धि (d) दीर्घ सन्धि
उत्तर :
(b) गुण सन्धि
2. “मतैक्य’ का सन्धि-विच्छेद है-
(a) मत् + एक्य (b) मति + एक्य
(c) मत् + ऐक्य (d) मत + एक्य
उत्तर :
(d) मत + एक्य
3. इ, ई, उ, ऊ, ऋ, लु के बाद (आगे) कोई स्वर आए तो ये क्रमश: य, __ व, र, ल में बदल जाते हैं। इस परिवर्तन को कहते हैं
(a) गुण (b) अयादि
(c) वृद्धि (d) यण
उत्तर :
(d) यण
4. ‘बध्वागमन’ का सन्धि-विच्छेद है
(a) बधु + आगमन (b) बध्व + आगमन
(c) बधू + आगमन (d) बध्वा + गमन
उत्तर :
(c) बधू + आगमन
5. उ, ए, ऐ, ओ, औ के बाद कोई भिन्न स्वर आए तो ए = अय, ऐ = आय, ओ = अव, औ = आव हो जाता है। इस परिवर्तन को कहते हैं-
(a) अयादि (b) गुण
(c) दीर्घ (d) वृद्धि
उत्तर :
(a) अयादि
6. ‘हिमालय’ शब्द का सन्धि-विच्छेद है
(a) हिमा + लय (b) हिमा + अलय
(c) हिमा + आलय (d) हिम + आलय
उत्तर :
(d) हिम + आलय
7. ‘वागीश’ शब्द का सन्धि-विच्छेद है
(a) वाक् + ईश (b) वाक + ईश
(c) वाग + ईश (d) वाग + इश
उत्तर :
(a) वाक् + ईश
8. ‘वाक् + मय’-का सन्धि पद होगा
(a) वाग्मय (b) वागमय
(c) वाङ्मय (d) वाकमय
उत्तर :
(c) वाङ्मय
9. “पद + छेद’ विग्रह पद का सन्धि शब्द होगा
(a) पदछेद (b) पदछैद
(c) पदच्छेद (d) पदच्छेद
उत्तर :
(c) पदच्छेद
10. ‘संयोग’ शब्द का सन्धि-विच्छेद है
(a) सम् + योग (b) सम + योग
(c) सं + योग (d) सम्म + योग
उत्तर :
(a) सम् + योग
Shabd Roop In Sanskrit – शब्द रूप – परिभाषा, भेद और उदाहरण (संस्कृत व्याकरण)
शब्द रूप संस्कृत – Shabd Roop In Sanskrit
सुबन्त-प्रकरण संस्कृत में मूल शब्द या मूल धातु का प्रयोग वाक्यों में नहीं होता है। वहाँ मूल शब्द को प्रातिपदिक कहते हैं, किन्तु हर शब्द की प्रातिपदिक संज्ञा (प्रातिपदिक नाम) नहीं होती है। प्रातिपदिक संज्ञा करने के लिए महर्षि पाणिनि ने दो सूत्र लिखे हैं –
(१) अर्थवदधातुरप्रत्ययः प्रातिपदिकम् – वैसे शब्द की प्रातिपदिक संज्ञा होती है जो अर्थवान् (सार्थक) हो, किन्तु धातु या प्रत्यय नहीं हों।
(२) कृत्तद्धितसमासाश्चर — कृत्प्रत्ययान्त (धातु के अन्त में जहाँ ‘तव्यत्’, ‘अनीयर’, ‘ण्वुल’, ‘तृच’ आदि कृत्प्रत्यय लगे हों) तद्वितप्रत्ययान्त (शब्द के अन्त में जहाँ ‘घञ्’, ‘अण’ आदि तद्धित प्रत्यय हों) तथा समास की भी प्रातिपदिक संज्ञा होती है।
इन प्रातिपदिकसंज्ञक शब्दों के अन्त में सु, औ, जस् आदि २१ सुप् विभक्तिर्यां लगती हैं, तब वह सुबन्त होता है और उसकी पदसंज्ञा होती है। इन पदों का ही वाक्यों में प्रयोग होता है, क्योंकि जो पद नहीं होता है उसका प्रयोग वाक्यों में नहीं होता है – ‘अपदं न प्रयुञ्जीत’।
संस्कृत भाषा में विभक्तियाँ होती हैं तथा प्रत्येक विभक्ति में एकवचन, द्विवचन और बहुवचन में अलग-अलग रूप होने पर २१ रूप होते हैं। ये सुप् कहे जाते हैं। सुप में ‘सु’ से आरम्भ कर ‘प्’ तक २१ प्रत्यय (विभक्ति) हैं, जो अग्रलिखित हैं –
मोटे तौर पर ये सात विभक्तियाँ क्रमशः कर्ता, कर्म आदि ७ कारकों का बोधक होती हैं (सब जगह ऐसा नहीं होता है)। सम्बोधन कारक में प्रथमा विभक्ति होती है, किन्तु एकवचन में थोड़ा-सा अन्तर रहता है। उदाहरण के लिए प्रातिपदिक (शब्द) में सुप् प्रत्यय लगाकर बने पदों की कारक के अनुसार अर्थयुक्त तालिका आगे प्रस्तुत है-
- बालक
- अजन्त (स्वरान्त) शब्द
- देवं (देवता) – अकारान्त पुंल्लिंग
- भवादृश (आप जैसा) अकारान्त पुंल्लिंग
- भवादृशी (आप जैसी) ईकारान्त स्त्रीलिंग
- विश्वपा (संसार का रक्षक) आकारान्त पुंल्लिंग
- हाहा (एक गन्धर्व, शोक, विलाप) आकारान्त पुंल्लिंग
- मुनि (मुनि या तपस्वी) इकारान्त पुंल्लिंग
- पति (स्वामी) इकारान्त पुंल्लिंग
- भूपति (राजा) इकारान्त पुंल्लिंग
- सखि (सखा, मित्र) इकारान्त पुंल्लिंग
- सुधी (बुद्धिमान, पण्डित) ईकारान्त पुंल्लिंग
- साधु (साधु या सज्जन) उकारान्त पुंल्लिंग
- प्रतिभू (जमानतदार) ऊकारान्त पुंल्लिंग
- दातृ (देनेवाला, दानी) ऋकारान्त पुंल्लिंग
- पितृ (पिता) ऋकारान्त पुंल्लिंग
- नृ (मनुष्य) ऋकारान्त पुंल्लिंग
- रै (धन) ऐकारान्त पुंल्लिंग
- ग्लो (चन्द्रमा) औकारान्त पुंल्लिंग
- गो (गाय, बैल, साँढ़, किरण, पृथ्वी, वाणी आदि) ओकारान्त पुंल्लिंग
अजन्त स्त्रीलिंग संज्ञा शब्द
- लता (लता या वल्लरी) आकारान्त स्त्रीलिंग
- मति (बुद्धि) इकारान्त स्त्रीलिंग
- नदी (नदी) ईकारान्त स्त्रीलिंग
कुछ ईकारान्त स्त्रीलिंग संज्ञा शब्दों के रूप नदी के समान होते हैं, किन्तु प्रथमा विभक्ति के एकवचन में उनका रूप विसर्गान्त होता है। जैसे – तन्त्रीः (वीणा के तार), तरीः (नौका), लक्ष्मीः (शोभा, सम्पत्ति) अवीः (रजस्वला स्त्री) आदि।
- श्री (लक्ष्मी, शोभा, सम्पत्ति) ईकारान्त स्त्रीलिंग
- स्त्री (महिला, नारी) ईकारान्त स्त्रीलिंग
- धेनु (गाय) उकारान्त स्त्रीलिंग
- वधू (बहू) ऊकारान्त स्त्रीलिंग
- भू (भूमि, पृथ्वी) ऊकारान्त स्त्रीलिंग
- मातृ (माता) ऋकारान्त स्त्रीलिंग
- स्वसृ (बहन) ऋकारान्त स्त्रीलिंग
- नौ (नाव) औकारान्त स्त्रीलिंग
अजन्त नपुंसकलिंग संज्ञा शब्द
- फल (फल) अकारान्त नपुंसकलिंग
- वारि (जल) इकारान्त नपुंसक या क्लीव लिंग
- दधि (दही) इकारान्त नपुंसकलिंग
- मधु (शहद) उकारान्त नपुंसकलिंग
- कर्तृ (करने वाला) ऋकारान्त नपुंसकलिंग
- हलन्त (व्यञ्जनान्त) शब्द
- भूभृत् (राजा, पहाड़) पुँल्लिंग
- सुहृद् (मित्र, सज्जन) पुँल्लिंग
- वणिज् (वणिक् = बनिया) पुंल्लिंग
- सम्राज् (सम्राट् = राजाओं का राजा) पुँल्लिंग
- श्रीमत् (श्रीमान्) पुँल्लिंग
- राजन् (राजा) पुँल्लिंग
- महिमन् (महिमा) पुँल्लिंग
- महत (महान-बड़ा) पुँल्लिग
- अर्वन् (घोड़ा) पुँल्लिंग
- हस्तिन (हाथी) पल्लिग
- मघवन् (मघवा = इन्द्र) पुंल्लिंग
- श्वन् (श्वा = कुत्ता) पुंल्लिंग
- युवन् (जवान पुरुष) पुँल्लिंग
- पथिन् शब्द के रूप
- गुणिन् (गुणी मनुष्य) पुंल्लिंग
- आत्मन् (आत्मा) पुंल्लिंग
- भू+ शतृ = भवत् (होता हुआ या हो रहा) पुंल्लिंग
- भू + शतृ = भवत् का स्त्रीलिंग रूप भवन्ती (होती हुई)
- भू + शतृ = भवत् (होता हुआ, हो रहा) नपुं०
शतृप्रत्ययान्त
- पठ् + शतृ = पठत् (पढ़ता हुआ या पढ़ रहा) पुंल्लिंग
- वेधस् (ब्रह्मा) पुँल्लिंग
- श्रेयस् (अधिक प्रशंसनीय) पुँल्लिंग
- दोस् (भुजा) पुँल्लिंग
- द्विष् (शत्रु) पुंल्लिंग
- पुम्स् (पुरुष) पुंल्लिंग
- विद्वस् (विद्वान् = विद्यावान्) पुँल्लिंग
- हलन्त (व्यञ्जनान्त) स्त्रीलिंग शब्द
- वाच् (वाणी) स्त्रीलिंग
- गिर (वाणी) स्त्रीलिंग
- दिश् (दिशा) स्त्रीलिंग
- आशिष् (आशीर्वाद) स्त्रीलिंग
- अप् (आप् = जल) स्त्रीलिंग
- हलन्त (व्यञ्जनान्त) नपुंसकलिङ्ग
- जगत् (संसार) क्ली०
- नामन् (नाम) नपुंसकलिङ्ग
- अहन् (दिन) नपुं०
- पयस् (जल) नपुं०
- हविष् (हवन की वस्तु) नपुं०
- धनुष् (धनु) नपुं०
सर्वनाम शब्द
सर्वनाम की परिभाषा – सर्व (सभी) नामों (संज्ञा-शब्दों) के स्थान पर प्रयुक्त होनेवाले शब्दों को ‘सर्वनाम-शब्द’ कहते हैं। इस तरह इनका रूप तीनों लिंगों में होता है। केवल ‘अस्मद्’ और ‘धुष्मद्’ शब्दों के रूप तीनों लिंगों में समान होते हैं।
संस्कृत-व्याकरण में ३५ सर्वनाम शब्दों की गणना इस प्रकार है – सर्व, विश्व, उभ, उभय, डतर, इतम, अन्य, अन्यतर, इतर, त्वत्, त्व, नेम, सम, सिम, पूर्व, पर, अवर, दक्षिण, उत्तर, अपर, अधर, स्व, अन्तर, त्यद्, तद्, यद्, एतद्, इदम्, अदस्, एक, द्वि, युष्मद्, अस्मद्, भवत्, तथा किम्। इनमें कुछ संख्यावाचक हैं, कुछ दिशावाचक और कुछ विशेषण मात्र।
प्रमुख सर्वनाम शब्दों की रूपावली यहाँ प्रस्तुत है –
- सर्व (सभी) पुं०
- सर्व (सर्वा) स्त्री०
- सर्व (सभी) नपुं०
- अस्मद् (मैं, हम) – पुरुष वाचक सर्वनाम – उत्तम पुरुष
- युष्मद् (तुम्, तुमलोग) पुरुषवाचक सर्वनाम, मध्यम पुरुष
- तद् (वह, वे) अन्यपुरुष, पुं०
- तद् (वह) स्त्री० विभक्ति
- तद् (वह) नपुं०
- यद् (जो, जो लोग) पुं०
- यद् (जो) स्त्री०
- यद् (जो) नपुं०
- किम् (कौन, कौन लोग) पुं०
- किम् (कौन) स्त्री०
- किम् (कौन) नपुं०
- एतद् (यह, ये) पुं०
- एतद् (यह, ये) स्त्री०
- एतद् (यह, ये) नपुं०
- इदम् (यह, ये) पुं०
- इदम् (यह, ये) स्त्री०
- इदम् (यह, ये) नपुं०
- अदस् (वह, वे) ०
- अदस् (वह, वे) स्त्रीलिंग
- अदस् (वह, वे) नपुं०
- भवत् (आप) अन्य पुरुष, पुं०
- भवत् (भवती = आप स्त्री) अन्यपुरुष, स्त्री०
- भवत् (आप) अन्यत्रपुरुष, नपुं०
- पूर्व (प्रथम, पहले) पुं०
- पूर्व दिशा) स्त्री०
- पूर्व (पहले) नपुं०
- उभ (दो) केवल द्विवचन में तीनों लिंगों में
- उभय (दोनों) पुंल्लिंग
- उभय (दोनों) नपुं०
- उभय (दोनों) स्त्री०
शेष विभक्तियों में नदी शब्द के समान रूप होते हैं।
कति (कितने), यति (जितने), तति (उतने) ये शब्द सभी लिंगों में समान रूप से प्रयुक्त होते हैं तथा नित्य बहुवचन होते हैं।
कतिपय (कोई, कुछ) पुं०
विशेष- कतिपय का स्त्रीलिंग (कतिपया) में ‘लता’ के समान तथा नपुंसकलिंग (कतिपय) में ‘फल’ के समान रूप चलेंगे।
संख्यावाचक (विशेषण) शब्द
संख्यावाचक शब्दों में प्रथम है – ‘एक’। इसके कई अर्थ होते हैं। कहीं भी है –
एकोऽल्पार्थे प्रधाने च प्रथमे केवले तथा।
साधारणे समानेऽपि संख्यायां च प्रयुज्यते।।
अर्थात् अल्प (थोड़ा, कुछ), प्रधान, प्रथम, केवल, साधारण, समान और एक – इन अर्थों – में ‘एक’ शब्द प्रयुक्त होता है। जब ‘एक’ शब्द संख्यावाचक होता है, तब इसका रूप केवल एकवचन में ही होता है। अन्य अर्थों में इसके रूप तीनों वचनों में होते हैं। बहुवचन में ‘एक’ का अर्थ है – ‘कुछ लोग’, ‘कोई कोई’। जैसे- एके नराः, एकाः नार्यः, एकानि फलानि।
- एक (संख्यावाली)
- द्वि (दो)
- त्रि (तीन)
- चतुर (चार)
- पञ्चन (पाँच)
पञ्चन’ और इसके आगे संख्यावाची शब्दों के रूप तीनों लिंगों में एक समान और केवल बहुवचन में होते हैं –
नवन् (नौ),दशन् (दस) तथा एकादशन् आदि समस्त नकारान्त संख्यावाची शब्दों के रूप ‘पञ्चन्’ शब्द के समान चलते हैं।
पूरणी (क्रम) संख्या
ऊनविंशति, एकान्नविंशति ऊनविंश, ऊनविंशतितम ऊनविंशी, ऊनविंशतितमी
सर्वनाम से विशेषण
सम्बन्ध वाचक सर्वनाम मेरा, हमारा, तेरा, तुम्हारा, इसका, उसका आदि के संस्कृत रूप – मम, अस्माकम्, तव, युष्माकम्, अस्य, तस्य आदि पदों के मूल शब्द में कुछ प्रत्यय जोड़कर इनसे विशेषण बनाकर इन्हें अन्य विशेष्यों के अनुसार प्रयोग किया जाता है। ये विशेषण ‘छ’, ‘अण’ तथा ‘खज’ प्रत्ययों को जोड़कर बनाए जाते हैं। ‘युष्मद्’ और ‘अस्मद्’ शब्दों से विकल्प से ‘खञ्’, ‘छ’ और ‘अण’ प्रत्यय होते हैं। ‘खञ्’ तथा ‘अण’ प्रत्ययों के परे ‘युष्मद्’ और ‘अस्मद्’ शब्दों के स्थान में क्रमशः ‘युष्माक’ और ‘अस्माक’ आदेश हो जाते हैं२, किन्तु यदि ‘युष्मद्’ एवम् ‘अस्मद्’ शब्द एकवचन परक हो तो ‘खञ्’ और ‘अण्’ प्रत्ययों के परे क्रमशः ‘तवक’ एवं ‘ममक’ आदेश हो जाते हैं३। ‘ख’ (खञ्) के स्थान में ‘ईना’ और ‘छ’ के स्थान में ‘ईय’ आदेश हो जाते हैं-
इनका विवरण यहाँ उपस्थापित है –
अन्य सर्वनाम शब्दों- तद्, एतद्, यद्, इदम् आदि से केवल छ (ईय) प्रत्यय होने पर क्रमश: तदीय, एतदीय, यदीय, इदमीय आदि शब्द बनते हैं।
उपर्युक्त मदीय, त्वदीय, तदीय आदि शब्द विशेषण होते हैं। अतः वाक्य में प्रयोग होने पर इनके लिंग, विभक्ति और वचन विशेष्य के लिंग, विभक्ति और वचन के अनुसार होते हैं। कहा भी है-
यल्लिंगं यद्वचनं, या च विभक्तिर्विशेष्यस्य।
तल्लिंगं तद्वचनं सैव विभक्तिर्विशेषणस्यापि।।
सर्वनाम के कुछ उदाहरण यहाँ प्रस्तुत हैं-
मदीयं गृहं गंगातटे विद्यते – (मेरा घर गंगा के किनारे है)।
मदीयं गृहं स्वच्छं विद्यते – (मेरा घर साफ है।)
मदीयः भ्राता स्वस्थः वर्तते – (मेरा भाई स्वस्थ है।)
मदीया जननी वृद्धा अस्ति – (मेरी माता बूढ़ी है।)
मामकं जीवनम् अद्य सफलं जातम् – (मेरा जन्म आज सफल हो गया।)
मामकः लेखः लघुः अस्ति – (मेरा लेख छोटा है।)
मामकिा शक्तिः अल्पा विद्यते – (मेरी शक्ति थोड़ी है।)
मामकीनं तेजो न मन्दं जातम् – (मेरा तेज मन्द नहीं हुआ है।)
मामकीनः लेखः पुरस्कृतोऽभूत् – (मेरा लेख पुरस्कृत हुआ।)
मामकीना दृष्टि: तीक्ष्णा वर्तते – (मेरी नजर तेज है।)
अस्मदीयं नगरमितो दूरम् – (हमारा नगर यहाँ से दूर है।)
अस्मदीयः वृक्षः फलितः – (हमलोगों का पेड़ फला हुआ है।)
अस्मदीया प्रतिष्ठा वृद्धिं गता – (हमलोगों की प्रतिष्ठा बढ़ गई।)
आस्माकं वस्त्रं नास्ति रक्तम् – (हमलोगों का कपड़ा लाल नहीं है।)
आस्माकः देशः गौरवान्वितः निजमहिम्ना – (हमारा देश अपनी महिमा से गौरवान्वित है।)
युष्मदीयम् उद्यानं विद्यते सुन्दरम् (आपलोगों का बगीचा सुन्दर है।)
यौष्माकः परिश्रमः न व्यर्थः (आपलोगों का परिश्रम व्यर्थ नहीं है।)
यौष्माकीनं ज्ञानं नास्ति गभीरम् (आपका ज्ञान गम्भीर नहीं है।)
तदीयं पुस्तकं महाधम् (उसकी पुस्तक महंगी है।)
‘ऐसा’, ‘जैसा’ आदि शब्दों द्वारा बोधित ‘प्रकार’ के अर्थ के लिए अस्मद्, युष्मद्, तद्, एतद् आदि शब्दों से ‘किन्’ एवं ‘कञ्’ प्रत्यय लगाकर अस्मद् आदि शब्दों से क्रमशः अस्मादृश् एवम् अस्मादृश आदि शब्द बनते हैं, जो विशेषण होते हैं। अन्य विशेषणों की तरह इनकी विभक्ति, लिंग, वचन आदि विशेष्य के अनुसार होते हैं। इनका विवरण इस प्रकार है –
संख्या गणना
पुँल्लिंग – स्त्रीलिंग – नपुंसकलिंग
१. एकः एका एकम्
२. द्वौ
३. त्रयः तिस्रः त्रीणि
४. चत्वारः चतस्रः चत्वारि
५. पञ्च,
६. षट्,
७. सप्त,
८. अष्टौ, अष्ट,
९. नव,
१०. दश,
११. एकादश,
१२. द्वादश,
१३. त्रयोदश,
१४. चतुर्दश,
१५. पञ्चदश,
१६. षोडश,
१७. सप्तदश,
१८. अष्टादश,
१९. ऊनविंशतिः, एकोनविंशतिः, नवदश,
२०. विंशतिः,
२१. एकविंशतिः,
२२. द्वाविंशतिः, द्वाविंशः,
२३. त्रयोविंशतिः, त्रयोविंशः,
२४. चतुविंशतिः, चतुर्विंशः,
२५. पञ्चविंशतिः, पञ्चविंशः
२६. षड्विंशतिः, षड्विंशः,
२७. सप्तविंशतिः, सप्तविंशः,
२८. अष्टाविंशतिः, अष्टाविंशः,
२९. ऊनत्रिंशत्, एकोनत्रिंशत्, नवविंशः, नवविंशतिः,
३०. त्रिंशत्,
३१. एकत्रिंशत्,
३२. द्वात्रिंशत्,
३३. त्रयस्त्रिंशत्,
३४. चतुस्त्रिंशत्,
३५. पञ्चत्रिंशत्,
३६. षट्त्रिंशत्,
३७. सप्तत्रिंशत,
३८. अष्टात्रिंशत्,
३९. ऊनचत्वारिंशत्, एकोनचत्वारिंशत्, नवत्रिंशत्,
४०. चत्वारिंशत्,
४१. एकचत्वारिंशत्,
४२. द्विचत्वारिंशत्, द्वाचत्वारिंशत्,
४३. त्रिचत्वारिंशत्, त्रयश्चत्वारिंशत्,
४४. चतुश्चत्वारिंशत्,
४५. पञ्चचत्वारिंशत्,
४६. षट्चत्वारिंशत्,
४७. सप्तचत्वारिंशत्,
४८. अष्टचत्वारिंशत्, अष्टाचत्वारिंशत्,
४९. ऊनपञ्चाशत्, एकोनपञ्चाशत्, नवचत्वारिंशत्,
५०. पञ्चाशत्,
५१. एकपञ्चाशत्,
५२. द्विपञ्चाशत्, द्वापञ्चाशत्,
५३. त्रिपञ्चाशत्, त्रयःपञ्चाशत्,
५४. चतुष्पञ्चाशत्,
५५. पञ्चपञ्चाशत्,
५६. षट्पञ्चाशत्,
५७. सप्तपञ्चाशत्,
५८. अष्टपञ्चाशत्, अष्टापञ्चाशत्,
५९. ऊनषष्ठिः, एकोनषष्टिः, नवपञ्चाशत्,
६०. षष्ठिः,
६१. एकषष्ठिः,
६२. द्विषष्ठि, द्वाषष्ठिः,
६३. त्रिषष्ठिः, त्रयःषष्ठिः,.
६४. चतुःषष्ठिः,
६५. पञ्चषष्ठिः,
६६. षट्षष्ठिः,
६७. सप्तषष्ठिः
६८. अष्टषष्ठिः, अष्टाषष्ठिः,
६९. ऊनसप्ततिः, एकोनसप्ततिः, नवषष्ठिः,
७०. सप्ततिः,
७१. एकसप्ततिः,
७२. द्वासप्ततिः, द्विसंप्ततिः,
७३. त्रयःसप्ततिः, त्रिसप्ततिः,
७४. चतुःसप्ततिः,
७५. पञ्चसप्ततिः,
७६. षट्सप्ततिः,
७७. सप्तसप्ततिः,
७८. अष्टासप्ततिः, अष्टसप्ततिः,
७९. ऊनाशीतिः, एकोनाशीतिः, नवसप्ततिः,
८०. अशीतिः,
८१. एकाशीतिः,
८२. द्वयशीतिः,
८३. त्र्यशीतिः,
८४. चतुरशीतिः,
८५. पञ्चाशीतिः,
८६. षडशीतिः,
८७. सप्ताशीतिः,
८८. अष्टाशीतिः,
८९. ऊननवतिः, एकोननवतिः, नवाशीतिः,
९०. नवतिः,
९१. एकनवतिः,
९२. द्विनवतिः द्वानवतिः,
९३. त्रयोनवतिः,
९४. चतुर्नवतिः,
९५. पञ्चनवतिः,
९६. षण्णवतिः,
९७. सप्तनवतिः
९८. अष्टनवतिः, अष्टानवतिः,
९९. नवनवतिः, ऊनशतम्, एकोनशतम्,
१००. शतम्।
इसी प्रकार
१०१ के लिए एकाधिकशतकम्,
१०२ के लिए द्वयधिकशतकम्,
१०३ के लिए त्र्यधिकशतम् इत्यादि अधिक शब्द जोड़कर आगे की संख्यायें बनाई जाती हैं।
२०० द्विशतम्, द्वे शते,
३०० त्रिशतम्, त्रीणि शतानि इत्यादि।
सहस्रम् (१ हजार), अयुतम् (१० हजार), लक्षम् (१ लाख), प्रयुतम्, नियुतम् (१० लाख), कोटिः, (स्त्रीलिङ्ग) (१ करोड़), दसकोटि: (दस करोड़), अर्बुदम् (१ अरब), दशार्बुदम् (१० अरब), खर्वम् (१ खरब), दशखर्वम् (दस खरब), नीलम् (१ नील), दशनीलम् (१० नील), पद्मम् (१ पदुम), दशपद्मम् (दस पदुम), शङ्खम् (१ शंख), दशशङ्खम् (१० शंख), महाशङ्खम् (महाशंख)।
Anekarthi Shabd, अनेकार्थी शब्द, Anekarthi Shabd In Hindi : हिन्दी व्याकरण
अनेकार्थक शब्द का अर्थ है–अनेक अर्थ वाला, अर्थात् जिन शब्दों से एक से अधिक अर्थ–बोध होता है, उन्हें अनेकार्थक (Homonyms) कहते हैं।
हिन्दी साहित्य में अनेकार्थी शब्दों का प्रयोग अधिकतर काव्य में ही मिलता है। काव्य के रसास्वादन के लिए इनका ज्ञान आवश्यक है। इन्हीं शब्दों द्वारा कवियों ने यमक और श्लेष अलंकारों का भरपूर प्रयोग किया है। विद्यार्थियों के अध्ययन हेतु अनेकार्थक शब्दों की सूची प्रस्तुत है
Anekarthi Shabd List In Hindi (प्रमुख अनेकार्थक शब्द की सूची)
Hindi Anekarthi Shabd (शब्द अनेकार्थक शब्द)
अंक – गिनती के अंक, गोद, भाग्य, चिह्न, रूपक के दस भेदों में से एक, नाटक का अध्याय
अंकोर – दोपहरी, रिश्वत, भेंट, गोद, कलेवा।
अंग – शरीर, टुकड़ा, अवयव, भेद, पक्ष, सहायक, भाग, हिस्सा।
अक्रूर – कृष्ण के चाचा, मित्र, कोमल स्वभाव वाला।
अचल: – अटल, पहाड़, निश्चल, स्थिर, वृक्ष, पार्वती।
अज – बकरा, दशरथ के पिता, अजन्मा, शिव, ब्रह्मा, मेषराशि, जीव, आत्मा, कामदेव।
अजया – बकरी, भाँग, विजया। . अच्युत स्थिर, विष्णु, कृष्ण, अपतित।
अक्षर – वर्ण, ईश्वर, आत्मा, स्थिर, शिव, विष्णु, अविनाशी।
अधर – होंठ, आकाश, अनाधार, नीच, बुरा, चंचल।
अदिति – पृथ्वी, प्रकृति, देवताओं की माता, रक्षा, देवलोक, वाणी।
अमृत – जल, दूध, अमर, अन्न, सुधा, पारा, प्रिय, सुन्दर, आत्मा, शिव, घी, धन।
अब्ज – कपूर, अरब की संख्या, कमल, चन्द्रमा, शंख।
अब्द – बादल, वर्षा, मेघ, आकाश, साल।
अपेक्षा – आशा, आवश्यकता, इच्छा, आकांक्षा, लालच, अनुरोध, भरोसा, तुलना।
अनन्त – अन्तहीन, शेषनाग, लक्ष्मण, आकाश, विष्णु।
अरस – आकाश, नीरस, आलस्य, महल, रसशून्य, अनाड़ी, सुस्ती, बेस्वाद।
अरुण – सूर्य का सारथी, लाल, सूर्य, गरुड़, तड़का, सिन्दूर, केसर।
अन्तर – फ़र्क, भीतर, अन्तरिक्ष, समय, व्यवधान।
अपवाद – किसी नियम के विपरीत, कलंक, निन्दा, विरोध, आदेश, आज्ञा।
अतिथि – मेहमान, अग्नि, अपरिचित, संन्यासी, आगन्तुक, अभ्यागत।
अर्क – सूर्य, सत्त्व, ताँबा, बिजली की चमक, स्फटिक, मदार, क्वाथ (काढ़ा) रविवार।
अर्थ – धन, प्रयोजन, तात्पर्य, कारण, लिए, अभिप्राय, निमित्त, फल, वस्तु, प्रकार।
अलि – सखी, भ्रमर, कोयल, बिच्छू, मदिरा, कौआ, कोयल, सहेली, पंक्ति, बाँध, सेतु।
अवि – सूर्य, पहाड़, पर्वत, आक, भेड़, मेष, वायु, कम्बल।
अहि – दुष्ट, सूर्य, साँप, राहु, पृथ्वी, जल, बादल।
आम – सामान्य, एक फल, मामूली, अपक्व, आँव, कच्चा, आम्र।
आत्मज – पुत्र, कामदेव, बेटा।
आन – दूसरा, क्षण, शपथ, टेक, सीमा, बनावट, लज्जा, प्रतिज्ञा, विचार।
आतुर – उत्सुक, उतावला, रोगी, कमज़ोर, दुःखी, आहत, पीड़ित, व्यग्र, व्याकुल।
आराम – विश्राम, वाटिका, एक प्रकार का दण्डक वृत्त, फुलवाड़ी।
आसुग – मन, वायु, वाण।
इतर – अन्य, नीच, चरस, अन्त्यज, अवशेष, बाकी, साधारण, दूसरा।
गणित – में एक की संख्या, चन्द्रमा, कपूर।
उरु – जाँघ, विशाल, श्रेष्ठ, विस्तीर्ण, अधिक मूल्यवान, जाँच।
उर्मी लहर, पीड़ा, तरंग, प्रकाश, वेग, भंग, भ्रान्ति, भूल।
ऐन कस्तूरी, घर, पूर्ण, आँख, उपयुक्त, ठीक।
ओस गीला, गोद, धरोहर, बहाना, जिमीकन्द।
कंज कमल, सिर के बाल, अमृत, ब्रह्म, केश।
कनक सोना, धतूरा, गेहूँ, आटा, खजूर, नागकेसर, पलास।
कर हाथ, टैक्स, लँड, किरण, ओला, विषय, छल, युक्ति, काम।
कल मशीन, चैन, आने वाला कल, बीता हुआ कल, शान्ति, सुन्दर।
कन्द जड़, मिश्री, बादल, समूह, सूरन, गाँठ, शोथ।
कटाक्ष आक्षेप, तिरछी चितवन, व्यंग्य।
कर्ण कान, कुन्ती का पुत्र, समकोण त्रिभुज के सामने की भुजा।
काम कार्य, इच्छा, कामना, अनुराग, चार पुरुषार्थों में एक पुरुषार्थ काम।
काल समय, शत्रु, यमराज, अवसर, अकाला कुशल चतुर, क्षेम (खैरियत), योग्य, कुश लाने वाला।
कृष्ण भगवान कृष्ण, काला, वेदव्यास।
केतु – एक ग्रह, ध्वजा, पुच्छल तारा, ज्ञान, प्रकाशा कौशिक विश्वामित्र, इन्द्र, सपेरा, उल्लू, नेवला।
खग – पक्षी, वाण, गन्धर्व, सूर्य, ग्रह, चन्द्रमा, देवता, वायु।
खर – गधा, दुष्ट, तिनका, गर्दभ, खच्चर, कौआ, रावण के भाई का नाम।
खल – दवा कूटने का पात्र, धतूरा, दुष्ट।
गण – समूह, छन्दों में तीन वर्णों का समूह, शिव के अनुचर।
गति – चाल, मोक्ष, हालत, गमन, परिणाम, ज्ञान, प्रमाण, मुक्ति, कर्मफल, दशा।
गुरू – शिक्षक, बड़ा, माता–पिता, भारी, छन्द में दीर्घ, मात्रा।
गोपाल – गाय पालने वाला, कृष्ण, ग्वाला, किसी लड़के का नाम।
गौतम – गौतम बुद्ध, द्रोणाचार्य का साला, भारद्वाज।
गौतमी – हल्दी, गोदावरी नदी, गोरोचन, गौतम ऋषि की पत्नी, अहिल्या, दुर्गा
घट – शरीर, घड़ा, कम, कलश, जलपात्र, पिण्ड, मन, हृदय, न्यून।
घन – हथौड़ा, बादल, बड़ा, मेघ, समूह, विस्तार, अभ्रक।
घुटना – कष्ट सहना, साँस लेने में कठिनाई, पाँव का मध्य भाग।
चक्र – कुम्हार का चाक, विष्णु का अस्त्र, पहिया, वायु का भँवर, दल।
चक्री – विष्णु, कुम्हार, गाँव का पुरोहित, चकवा पक्षी, कौआ।
चपला – चंचल स्त्री, लक्ष्मी, बिजली, मदिरा, जीभ, भाँग।
चर – विचरण करने वाला, पशुओं के चरने का स्थान, जासूस।
चाप – धनुष, दबाव, परिधि का एक भाग, धनु राशि।
चारा – पशुओं का भोजन, उपाय, आचरण, घास, जिस वस्तु को बंसी में लगाकर मछली फँसाई जाती है।
छन्द – काव्य, बहाना, छल, मत, युक्ति, रंग–ढंग, अभिप्राय, कविता।
छाजन – छप्पर, वस्त्र, अपरस, खपरैल की छवाई, आच्छादन।
जड़ – मूल, मूर्ख, हठी, अचेतन, स्तब्ध, चेष्टाहीन, मूक, गूंगा।
जर – जल, जड़, ज्वर, जरा, वृद्धावस्था।
जलज – कमल, शंख, सीप, मोती, सेवार, मछली, चंद्रमा
जालक – झरोखा, जाल, घोंसला, गवाक्षा
जीव – जन्तु, जीविका, बृहस्पति, जीवात्मा।
जीवन – ज़िन्दगी, वायु, जल, वृत्ति, प्राणधारण, पानी, घी, मज्जा, परमात्मा, पुत्र
जोड़ – योग, मेल, गाँठ, समानता, एक ही तरह की दो वस्तुएँ।
जया – पार्वती, दुर्गा, हरी दूब, पताका, त्रयोदशी, ध्वजा, हरड़।
टीका – तिलक, व्याख्या, चेचक आदि का टीका, धब्बा, फलदान
ठाकुर – जाति विशेष, भगवान, स्वामी, नाई, बड़ा
ढाल – रक्षक, उतार, धातुओं की ढलाई, ढलुवाँ भूमि, ढार, प्रकार, रीति, ढंग
तक्षक – विश्वकर्मा, बढ़ई, सूत्रधार, सर्प विशेष।
तारा – बृहस्पति की स्त्री, नक्षत्र, बालि की स्त्री, आँख के बीच की काली पुतली।
ताल – संगीत का ताल, झील, तालाब, ताड़ का वृक्षा
तीर – बाण, नदी का किनारा, किनारा, तट, समीप।
तात – पूज्य, पिता, गुरु, मित्र, भाई।
द्रोण – द्रोणाचार्य, कौआ, दोना, नाव, मानव रहित विमान।
दहर – छोटा भाई, कुण्ड, नरक, छछून्दर, चूहा, बालक।
दिवा – दिन, दीपक, दिवस, बाईस अक्षरों का एक वर्ण वृत्त।
धन – जोड़, स्त्री, सम्पत्ति, लाभ, द्रव्य, पूँजी, चौपायों का समूह।
धर्म – सम्प्रदाय, स्वभाव, कर्तव्य, प्रकृति।
धारा – सन्तान, सेना, नियम, पानी का झरना, धार, झुण्ड।
नाक – स्वर्ग, इज्जत, एक फल, नासिका, अन्तरिक्ष, आकार, मान, प्रतिष्ठा।
नाग – सर्प, हाथी, बादल, नागवल्ली, एक पर्वत।
नागर – चतुर, नागरमोथा, नागरिक, सोंठ, पौर, सभ्य व्यक्ति, नारंगी।
निशाचर – राक्षस, चोर, उल्लू, सियार, सर्प, बिल्ली, प्रेत, भूत, महादेव।
पत्र – पत्ता, चिट्ठी, पन्ना, आवरण।
पानी – इज्जत, जल, चमक, शस्त्र की धार।
फल – परिणाम, लाभ, सन्तान, खाने वाला फल, हल।
बलि – पितरों को दिया गया भोग, एक राजा, उपहार, न्यौछावर, बलिहारी।
बहार – वसन्त, एक राग, आनन्द।
बल – शक्ति, सेना, बलराम, पार्श्व, बगल, लपेट, ऐंठन, सिकुड़न, अन्तर।
बिम्ब – छाया, चन्द्रमण्डल, बाँबी, घेरा, सूर्य।
भा – चमक, शोभा, बिजली, किरण, प्रभा, कान्ति, प्रकाश, दीप्ति
भाव – विचार, अभिप्राय, मनोविकार, दर, श्रद्धा, अस्तित्व, सारांश।
भूत – प्रेत, पंचभूत, बीता हुआ समय, मृत शरीर, तत्त्व, सत्य।
मधु – शहद, वसन्त, पराग, चैत्रमास, ऋतु, शराब।
माधव – वसन्त ऋतु, विष्णु, बैसाख महीना, श्रीकृष्ण
मद – नशा, मस्ती, हाथी के मस्तक का स्राव, गर्व, कस्तरी. अभिमान।
मुद्रा – सिक्का, छापा, आकृति, कुण्डल, चिह्न, अँगूठी।
मूल – पूँजी, एक नक्षत्र, जड़, कन्द, आरम्भ, पास, समीप।
रंग – सातों रंग, आनन्द, विलास, नाटक का प्रदर्शन, शोभा, सौंदर्य, प्रेम, राग
रम्मा – वेश्या, एक अप्सरा, केला, कदली, गौरी, उत्तर दिशा।
रक्त – खून, केशर, लाल, कुंकुम, ताँबा, कमल, सिन्दूर, रुधिर।
रसाल – ईख, आम, मीठा, रसीला, कटहल, गेहूँ, अमलबेंत।
राशि – समूह, मेष–वृष आदि 12 राशियाँ, ढेर, पुंज, समुच्चय।
वंग – राँग, कपास, बंगाल प्रान्त।
वर्ण – रंग, अक्षर, चतुर्वर्ण्य, भेद, रूप।
वन – वाटिका, जंगल, पानी, भवन, काठ का पात्र
विधि – रीति, भाग्य विधाता, ईश्वर, कार्यक्रम, योजना, प्रकार, कानून, संगति।
वृत – गोल–घेरा, हाल, चरित्र।
विहंग – पक्षी, वाण, बादल, विमान, सूर्य, चन्द्रमा, देवता।
शर – सरकण्डा, बाण, तीर, नरकट, जल, पाँच की संख्या, रूस।
शरभ – ऊँट, एक मृग, टिड्डी, सिंह, हाथी का बच्चा, विष्णु।
सरि – समता, माला, नदी, सरिता, बराबरी, सदृश।
सारंग – हिरन, बादल, पानी, मोर, शंख, पपीहा, हाथी, सिंह, राजहंस, भ्रमर, कपूर, कामदेव, कोयल, धनुष, मधुमक्खी , कमल, भूषण।
सार – रस, रक्षा, जुआ, लाभ, उत्तम, पत्नी का भाई, तलवार, तत्त्व।
सिता – चाँदी, चमेली, चाँदनी, शकर, गोरोचन, सफेद दूब।
सूर – वीर, अन्धा, एक कवि, सूर्य, अर्क, मदार, आचार्य, पण्डित।
सूत – बढ़ई, धागा, पौराणिक, सारथी, सूत्रकार, सूर्य, पारा।।
सैन – सेना, संकेत, बाजपक्षी, इंगित, लक्षण, चिह्न।
हरि – विष्णु, इन्द्र, बन्दर, हवा, सर्प, सिंह, आग, कामदेव, हंस, मेंढक, चाँद, हरा रंगा
हीन – नीचा, तुच्छ, कम, रहित, छोड़ा हुआ, अल्प, निष्कपट, बुरा, शून्य।
हेम – सोना, तुषार, इज़्ज़त, पीला रंग।
हंस – आत्मा, योगी, श्वेत, घोड़ा, सूर्य, सरोवर का पक्षी।
क्षेत्र – शरीर, तीर्थ, गृह, प्रकृति, खेल, स्त्री।
अनेकार्थक शब्द वस्तुनिष्ठ प्रश्नावली
निर्देश (प्र. सं. 1–36) सभी प्रश्नों में दिए गए शब्दों के अर्थ विकल्पों में दिए गए हैं। इनमें से कोई एक विकल्प गलत है। आपको गलत विकल्प अर्थात् जो सम्बन्धित शब्द का अर्थ नहीं है, का चयन कर चिह्नित करना है।
1. अंक
(a) दैनन्दिनी
(b) गोद
(c) भाग्य
(d) संख्या
उत्तर :
(a) दैनन्दिनी
2. अक्षर
(a) वर्ण
(b) अक्षत
(c) आत्मा
(d) स्थिर
उत्तर :
(b) अक्षत
3. अज
(a) अजन्मा
(b) बकरा
(c) संन्यासी
(d) मेष राशि
उत्तर :
(c) संन्यासी
4. अधर
(a) आकाश
(b) अनाधार
(c) होंठ
(d) पाताल
उत्तर :
(d) पाताल
5. अपेक्षा
(a) निराशा
(b) आशा
(c) आवश्यकता
(d) इच्छा
उत्तर :
(a) निराशा
6. अमृत
(a) अमर
(b) अनमोल
(c) दूध
(d) जल
उत्तर :
(b) अनमोल
7. अर्क
(a) सत्त्व
(b) सूर्य
(c) बुध
(d) ताँबा
उत्तर :
(c) बुध
8. अर्थ
(a) कारण
(b) प्रयोजन
(c) धन
(d) अन्न
उत्तर :
(d) अन्न
9. अलि
(a) रूपसी
(b) सखी
(c) बिच्छू
(d) भ्रमर
उत्तर :
(a) रूपसी
10. आम
(a) सामान्य
(b) अप्रचलित
(c) व्यापक
(d) एक फल का नाम
उत्तर :
(b) अप्रचलित
अनेक शब्दों के लिए एक शब्द (One Word Substitution) : हिंदी व्याकरण
ऐसा कहा गया है- “कम–से–कम’ शब्दों में अधिकाधिक भाव या विचार अभिव्यक्त करना अच्छे लेखक अथवा वक्ता का गुण है। इसके लिए ऐसे शब्दों का ज्ञान आवश्यक है जो विभिन्न वाक्यांशों या शब्द–समूहों का अर्थ देते हों। ऐसे शब्दों के प्रयोग से कृति में कसावट आती है और अभिव्यक्ति प्रभावशाली होती है।एक उदाहरण द्वारा इस बात को और स्पष्टतापूर्वक समझा जा सकता है’यह बात सहन न करने योग्य है’ की जगह पर ‘यह बात असह्य है’ ज्यादा गठा हुआ और प्रभावशाली लगता है। इस प्रकार के शब्दों की रचना उपसर्ग–प्रत्यय एवं समास की सहायता से की जाती है। हम पहले ही चर्चा कर चुके हैं कि उपसर्ग–प्रत्यय एवं समास की सहायता से नये शब्द बनाए जाते हैं। नीचे कुछ ऐसे ही शब्द दिए जा रहे हैं जो किसी लंबी अभिव्यक्ति के लिए प्रयुक्त होते हैंअनेक शब्द – एक शब्द
जो क्षमा न किया जा सके – अक्षम्य
जहाँ पहुँचा न जा सके – अगम्य
जिसे सबसे पहले गिनना उचित हो – अग्रगण्य
जिसका जन्म पहले हुआ हो – अग्रज
जिसका जन्म बाद/पीछे हुआ हो – अनुज
जिसकी उपमा न हो – अनुपम
जिसका मूल्य न हो। – अमूल्य
जो दूर की न देखे/सोचे – अदूरदर्शी
जिसका पार न हो – अपार
जो दिखाई न दे – अदृश्य
जिसके समान अन्य न हो – अनन्य
जिसके समान दूसरा न हो – अद्वितीय
ऐसे स्थान पर निवास जहाँ कोई पता न पा सके – अज्ञातवास
जो न जानता हो – अज्ञ
जो बूढ़ा (पुराना) न हो – अजर
जो जातियों के बीच में हो – अन्तर्जातीय
आशा से कहीं बढ़कर – आशातीत
अधः (नीचे) लिखा हुआ – अधोलिखित
कम अक्लवाला – अल्पबुद्धि
जो क्षय न हो सके – अक्षय
श्रद्धा से जल पीना – आचमन
जो उचित समय पर न हो – असामयिक
जो सोचा भी न गया हो – अतर्कित
जिसका उल्लंघन करना उचित न हो – अनुल्लंघनीय
जो लौकिक या सांसारिक प्रतीत न हो। – अलौकिक
जो सँवारा या साफ न किया गया हो – अपरिमार्जित
आचार्य की पत्नी – आचार्यानी
जो अर्थशास्त्र का विद्वान् हो – अर्थशास्त्री
अनुवाद करनेवाला – अनुवादक
अनुवाद किया हुआ – अनूदित
अर्थ या धन से संबंधित – आर्थिक
जिसकी तुलना न हो – अतुलनीय
जिसका आदि न हो – अनादि
जिसका अन्त न हो। – अनन्त
जो परीक्षा में पास न हो – अनुत्तीर्ण
जो परीक्षा में पास हो – उत्तीर्ण
जिसपर मुकदमा हो। – अभियुक्त
जिसका अपराध सिद्ध हो – अपराधी
जिस पर विश्वास न हो – अविश्वसनीय
जो साध्य न हो – असाध्य
स्वयं अपने को मार डालना – आत्महत्या
अपनी ही हत्या करनेवाला – आत्मघाती
जो दूसरों का बुरा करे – अपकारी
जो पढ़ा–लिखा न हो – अनपढ़
जो आयुर्वेद से संबंध रखे – आयुर्वेदिक
अंडे से पैदा लेनेवाला – अंडज
दूसरे के मन की बात जाननेवाला – अन्तर्यामी
दूसरे के अन्दर की गहराई ताड़नेवाला – अन्तर्दर्शी
अनेक राष्ट्रों में आपस में होनेवाली बात – अन्तर्राष्ट्रीय
जिसका वर्णन न हो सके – अवर्णनीय
जिसे टाला न जा सके – अनिवार्य
जिसे काटा न जा सके – अकाट्य
नकल करने योग्य – अनुकरणीय
बिना विचार किए विश्वास करना – अंधविश्वास
साधारण नियम के विरुद्ध बात – अपवाद
जो मनुष्य के लिए उचित न हो – अमानुषिक
जो होने से पूर्व किसी बात का अनुमान करे – अनागतविधाता
जिसकी संख्या सीमित न हो – असंख्य
इन्द्र की पुरी – अमरावती
कुबेर की नगरी – अलकापुरी
दोपहर के बाद का समय – अपराह्न
पर्वत के ऊपर की समभूमि – अधित्यका
जो जाँच या परीक्षा बहुत कठिन हो – अग्नि–परीक्षा
जिसे ईश्वर या वेद में विश्वास न हो – नास्तिक
जिसे ईश्वर या वेद में विश्वास हो – आस्तिक
जिसका नाथ (सहारा) न हो – अनाथ/यतीम
जो थोड़ा जानता हो – अल्पज्ञ
जो ऋण ले – अधमर्ण
जिसे भय न हो – निर्भय/अभय
जो कभी मरे नहीं – अमर
जिसका शत्रु पैदा नहीं लिया – अजातशत्रु
जिस पुस्तक में आठ अध्याय हो – अष्टाध्यायी
जो नई चीज निकाले या खोज करे – आविष्कार
जो साधा न जा सके – असाध्य
किसी छोटे से प्रसन्न हो उसका उपकार करना – अनुग्रह
किसी के दुःख से दुखी होकर उसपर दया करना – अनुकम्पा
वह हथियार जो फेंककर चलाया जाय – अस्त्र
मोहजनित प्रेम – आसक्ति
किसी श्रेष्ठ का मान या स्वागत – अभिनन्दन
किसी विशेष वस्तु की हार्दिक इच्छा – अभिलापा
जिसके आने की तिथि ज्ञात न हो – अतिथि
जिसके पार न देखा जा सके – अपारदर्शी
जो स्त्री सूर्य भी न देख सके – असूर्यम्पश्या
जो नहीं हो सकता – असंभव
बढ़ा–चढ़ाकर कहना – अतिशयोक्ति
जो अल्प बोलनेवाला है – अल्पभाषी
जो स्त्री अभिनय करे – अभिनेत्री
जो पुरुष अभिनय करे – अभिनेता
बिना वेतन के – अवैतनिक
आलोचना करनेवाला – आलोचक
सिर से लेकर पैर तक – आपादमस्तक
बालक से लेकर वृद्ध तक – आबालवृद्ध
आलोचना के योग्य – आलोच्य
जिसे जीता न जा सके – अजेय
न खाने योग्य – अखाद्य
आदि से अन्त तक – आद्योपान्त
बिना प्रयास के – अनायास
जो भेदा या तोड़ा न जा सके – अभेद्य
जिसकी आशा न की गई हो – अप्रत्याशित
जिसे मापा न जा सके – अपरिमेय
जो प्रमाण से सिद्ध न हो – अप्रमेय
आत्मा या अपने आप पर विश्वास – आत्मविश्वास
दक्षिण दिशा – अवाची
उत्तर दिशा – उदीची
पूरब दिशा – प्राची
पश्चिम दिशा – प्रतीची
जो व्याकरण द्वारा सिद्ध न हो – अपभ्रंश
झूठा मुकदमा – अभ्याख्यान
दो या तीन बार कहना – आमेडित
माँ–बहन संबंधी गाली – आक्षारणा
बार–बार बोलना – अनुलाप
न कहने योग्य वचन – अवाच्य
नाटक में बड़ी बहन – अत्तिका
दूसरे के गुणों में दोष निकालना – असूया
मानसिक भाव छिपाना – अवहित्था
जबरन नरक में धकेलना या बेगार – आजू
तट का जो भाग जल के भीतर हो – अन्तरीप
वह गणित जिसमें संख्याओं का प्रयोग हो – अंकगणित
दागकर छोड़ा गया साँड़ – अंकिल
आलस्य में अँभाई लेते हुए देह टूटना – अंगड़ाई
अंग पोंछने का वस्त्र – अंगोछा
पीसे हुए चावल की मिठाई – अँदरसा
जिसके पास कुछ भी नहीं हो – अकिंचन
जो पासे के खेल में धूर्त हो – अक्षधूर्त
निंदा न किया हुआ – अगर्हित
सेना के आगे लड़नेवाला योद्धा – अग्रयोधा
जिसकी चिकित्सा न हो सके – अचिकित्स्य
बिना चिन्ता किया हुआ – अचिन्तित
प्रसूता को दिया जानेवाला भोजन – अछवानी
जिसका जन्म न हो – अज/अजन्मा
घर के सबसे ऊपर के खंड की कोठरी – अटारी
न टूटने वाला – अटूट
ठहाका लगाकर हँसना – अट्टहास
अति सूक्ष्म परिमाण – अणिमा
व्यर्थ प्रलाप करना – अतिकथा
मर्यादा का उल्लंघन करके किया हुआ – अतिकृत
जिसका ज्ञान इन्द्रियों के द्वारा न हो – अतिन्द्रिय
जो ऊँचा न हो – अतुंग
शीघ्रता का अभाव – अत्वरा
आज के दिन से पूर्व का काल – अनद्यतनभूत
होठों पर चढ़ी पान की लाली – अधरज
वह व्यक्ति जिसके एक के ऊपर दूसरा दाँत हो – अधिकदन्ती
रथ पर चढ़ा हुआ योद्धा – अधिरथ
अध्ययन किया हुआ – अधीत
उतरती युवावस्था का – अधेर
हित न चाहनेवाला – अनहितू
अनुभव प्राप्त – अनुभवी
प्रेम उत्पन्न करनेवाला – अनुरंजक
जल से परिपूर्ण – अनूप
जिसके जल का प्रवाह गुप्त हो – अन्तस्सलिल
दूध पिलानेवाली धाय – अन्ना
देह का दाहिना भाग – अपसव्य
जिसकी आकृति का कोई और न मिले – अप्रतिरूप
स्वर्ग की वेश्या – अप्सरा
शाप दिया हुआ – अभिशप्त
इन्द्रपुरी की वेश्या – अमरांगना
पानी भरनेवाला – अम्बुवाह
लोहे का काम करनेवाला – लोहार
असम्बद्ध विषय का – अविवक्षित
आठ पदवाला – अष्टपदी
धूप से बचने का छाता – आतपत्र
बंधक रखा हुआ – आधीकृत
विपत्ति के समय विधान करने का धर्म – आपद्धर्म
तुलना द्वारा प्राप्त – आपेक्षिक
दर्पण जड़ी अंगूठी, जिसे स्त्रियाँ अँगूठे में पहनती हैं – आरसी
भारतवर्ष का उत्तरी भाग – आर्यावर्त
घर के सामने का मंच – आलिन्द
मंत्र–द्वारा देवता को बुलाना – आवाहन
उत्कंठा सहित मन का वेग – आवेग
वृक्षों को जल से थोड़ा सींचना – आसेक
अनुमान किया हुआ – अनुमानित
जिसका दूसरा उपाय न हो – अनन्योपाय
जिसका अनुभव किया गया हो – अनुभूत
जो जन्म लेते ही मर जाय – आदण्डपात
जो शोक करने योग्य न हो – अशोच्य
महल के भीतर का भाग – अन्तःपुर
अनिश्चित जीविका – आकाशवृत्ति
जिस पेड़ के पत्ते झड़ गए हों – अपर्ण
उच्च वर्ण के पुरुष के साथ निम्न वर्ण की स्त्री का विवाह – अनुलोम विवाह
जिसका पति आया हुआ है – आगत्पतिका
जिसका पति आनेवाला है – आगमिष्यत्पतिका
बच्चे को पहले–पहल अन्न खिलाना – अन्नप्राशन
आम का बगीचा – अमराई
राजा का बगीचा – आक्रीड
अनुसंधान की इच्छा – अनुसंधित्सा
किसी के शरीर की रक्षा करनेवाला – अंगरक्षक
किसी को भय से बचाने का वचन देना – अभयदान
चोट खाया हुआ – आहत
जिसे पान करने से अमर हो जाय – अमृत
जिसका अनुभव किया जा सके – अनुभवजन्य
जो अपमानित हो चुका हो – अनादृत
अभिनय करने योग्य – अभिनेय
उपासना करने योग्य – उपास्य
ऐसी भूमि जो उपजाऊ नहीं हो – ऊसर
जो इन्द्रियों के बाहर हो – इन्द्रियातीत
जो उड़ा जा रहा हो – उड्डीयमान
नई योजना का सर्वप्रथम काम में लाने का उत्सव – उद्घाटन
भूमि को भेदकर निकलनेवाला – उद्भिद्
तिनकों से बना घर – उटज
जो छाती के बल चले – उरग
ऊपर जानेवाला – ऊर्ध्वगामी
ऊपर गया हुआ – ऊर्ध्वगत
लाली मिल हुआ काले रंग का – ऊदा
छाती का घाव – उरक्षत
अन्य देश का पुरुष – उपही
आकाश से तारे का टूटना – उपप्लव
गरमी से उत्पन्न – उष्मज
स्वप्न में बकझक करना – उचावा
उभरा या लाँधा हुआ – उत्क्रान्त
दो दिशाओं के बीच की दिशा – उपदिशा
अँगुलियों में होनेवाला फोड़ा – इकौता
त्वचा के ऊपर निकला हुआ मस्सा – इल्ला
गर्भिणी स्त्री की लालसा – उकौना
जो बहुत कुछ जानता हो – बहुज्ञ
नीचे लिखा हुआ – निम्नलिखित
ऊपर कहा गया। – उपर्युक्त
बुरी बुद्धिवाला – कुबुद्धि
चारों ओर चक्कर काटना – परिक्रमा
जिसका कोई आसरा न हो – निराश्रित
जिसमें विष न हो – निर्विष
जिसका धव (पति) मर गया हो – विधवा
जिसका पति जीवित हो – सधवा
जो बरतन बेचने का काम करे – कसेरा
जिसे कर्तव्य न सूझ रहा हो – किं – कर्त्तव्यविमूढ़
जो तीनों कालों की बात जानता हो – त्रिकालज्ञ
पन्द्रह दिनों का समूह – पक्ष
पढ़नेवाला – पाठक
बाँचनेवाला – वाचक
सुननेवाला – श्रोता
बोलनेवाला – वक्ता
लिखनेवाला – लेखक
लेख की नकल – प्रतिलिपि
जो सब देशों का हो – सार्वदेशिक
जो आँखों के सामने हो – प्रत्यक्ष
जानने की इच्छा – जिज्ञासा
जानने को इच्छुक/इच्छावाला – जिज्ञासु
जिसे प्यास लगी हो – पिपासु/प्यासा
जो मीठा बोले – मधुरभाषी
जो देर तक स्मरण के योग्य हो – चिरस्मरणीय
समाज से संबंध रखनेवाला – सामाजिक
केवल फल खाकर रहनेवाला – फलाहारी
जो शाक–सब्जी खाए – शाकाहारी
शासन हेतु नियमों का समूह – संविधान
जो चाँदी–जैसा सफेद हो – परुहला
सोने–जैसे रंगवाला – सुनहला
दस वर्षों का समूह – दशक
सौ वर्षों का समूह – शताब्दी
जिसके होश ठिकाने न हो – मदहोश
लेने की इच्छा – लिप्सा
जी बहुत बातें बनाए – बातूनी
जो नाप–तौलकर खर्च करे – मितव्ययी
व्याकरण जाननेवाला – वैयाकरण
जिसे तनिक भी लज्जा न हो – निर्लज्ज
शिव का उपासक – शैव
विष्णु का उपासक – वैष्णव
शक्ति का उपासक – शाक्त
जो तत्त्व सदा रहे – शाश्वत
जो जिन के मत को माने – जैनी
जो बुद्ध के मत को माने – बौद्ध
विनोबा के मत को माननेवाला – सर्वोदयी
जो बात साफ–साफ करे – स्पष्टवादी
इतिहास से संबंधित – ऐतिहासिक
जो कठिनाई से साधा जाय – दुःसाध्य
जो सुगमता से साधा जाय – सुसाध्य
जो आसानी से मिल जाय – सुलभ
जो कठिनाई से मिले – दुर्लभ
जिसका जवाब न हो – लाजवाब
जिसका इलाज न हो – लाइलाज
जो हर काम देर से करे – दीर्घसूत्री
जो किसी काम की जिम्मेदारी ले – जवाबदेह
हाथ की लिखी पुस्तक या मसौदा – पांडुलिपि
पूर्वी देशों से संबंध रखनेवाला – पूर्वीय
जो तरह–तरह के रूप बना सके – बहुरूपिया
कम बोलनेवाला – मितभाषी
जो किसी की ओर से बोले – प्रवक्ता
दो बातों या कामों में से एक – वैकल्पिक
गिरने से कुछ ही बची इमारत – ध्वंसावशेष
वीर पुत्रों को जन्म देनेवाली – वीरप्रसूता
वीरों द्वारा भोगी जानेवाली – वीरभोग्या
जिसके गर्भ में रत्न हो – रत्नगर्भा
जो सबको समान रूप से देखे – समदर्शी
जो सब जगह व्याप्त हो। – सर्वव्यापक
जो रोग एक से दूसरे को हो – संक्रामक
जो दो बार जन्म ले – द्विज
पिता से प्राप्त सम्पत्ति आदि – पैतृक
जो अपनी इच्छा से सेवा करे – स्वयंसेवक
गोद ली संतान – दत्तक
भूगोल से संबंध रखनेवाला – भौगोलिक
पृथ्वी से संबंध रखनेवाला – पार्थिव
साधारण लोगों में कही जानेवाली बात – किंवदंती
किसी कलाकार की कलापूर्ण रचना – कलाकृति
लोगों में परंपरा से चली आई कथा – दन्तकथा
जिसका नाश अवश्यंभावी हो – नश्वर
जो पुराणों से संबंध रखता हो – पौराणिक
जो वेदों से संबंध रखता हो – वैदिक
जिसका जन्म पसीने से हो – स्वेदज
जेर से उत्पन्न होनेवाला – जरायुज
विमान चलानेवाला – वैमानिक
सबके साथ मिलकर गाया जानेवाला गान – सहगान
जो सब कालों में एक समान हो – सार्वकालिक
जो सम्पूर्ण लोक में हो – सार्वलैकिक
जिसका उदाहरण दिया गया हो – उदाहृत
जिसका उद्धरण दिया गया हो – उद्धृत
जिस स्त्री के सन्तान न होती हो – बाँझ
शिव के गण – प्रमथ
शिव के धनुष – पिनाक
जहाँ शिव का निवास है – कैलाश
इन्द्र का सारथि – मातलि
इन्द्र का घोड़ा – उच्चैःश्रवा
इन्द्र का पुत्र – जयन्त
इन्द्र का बाग – नन्दन
इन्द्र का हाथी – ऐरावत
ईश्वर या स्वर्ग का खजाँची – कुबेर
मध्य रात्रि का समय – निशीथ
लताओं से आच्छादित रमणीय स्थान – निकुंज
सीपी, बाँसी, सूकरी, करी, धरी और नरसल से बनी माला – बैजयन्तीमाला
मरने के करीब – मुमूर्षु/मरणासन्न
पर्वत के नीचे की समभूमि (तराई) – उपत्यका
जहाँ नाटक का अभिनय किया जाय – रंगमंच
जिस सेना में हाथी, घोड़े, रथी और पैदल हों – चतुरंगिणी
जो काम कठिन हो – दुष्कर
दिन में होनेवाला – दैनिक
किए गए उपकार को माननेवाला – कृतज्ञ
किए गए उपकार को न माननेवाला – कृतघ्न
जिसका रूप अच्छा हो – सुरूप
अच्छा बोलनेवाला – वाग्मी/सुवक्ता
बुरे मार्ग पर चलनेवाला – कुमार्गगामी
जिसका आचरण अच्छा हो – सदाचारी
जिसका आचरण अच्छा नहीं हो – दुराचारी
जिसमें दया हो – दयालु
जिसमें दया नहीं हो – निर्दय
जो प्रशंसा के योग्य हो – प्रशंसनीय
जिसमें कपट न हो – निष्कपट
जिसमें कोई विकार न आता हो – निर्विकार
समान समय में होनेवाला – समसामयिक
जो आकाश में विचरण करे – खेचर
वह पहाड़ जिससे आग निकले – ज्वालामुखी
जो मोह नहीं करता है – निर्मोही
जो प्रतिदिन नहाता हो – नित्यस्नायी
मोक्ष या मुक्ति की इच्छा रखनेवाला – मुमुक्षु
जो राजा/राज्य से द्रोह करे – राजद्रोही
किसी का पक्ष लेनेवाला – पक्षपाती
इतिहास को जाननेवाला – इतिहासज्ञ
पाप करने के अनन्तर स्वयं दंड पाना – प्रायश्चित
जिस शब्द के दो अर्थ हों – श्लिष्ट
अपना नाम स्वयं लिखना – हस्ताक्षर
जो सबको प्रिय हो – सर्वप्रिय
जो हमेशा बदलता रहे – परिवर्तनशील
अपना मतलब साधनेवाला – स्वार्थी
कुसंगति के कारण चरित्र पर दोष – कलंक
सतो गुण का – सात्त्विक
रजो गुण का – राजसिक
तमो गुण का – तामसिक
नीति को जाननेवाला – नीतिज्ञ
महान् व्यक्तियों की मृत्यु – निधन
व्यक्तिगत आजादी – स्वतंत्रता
सामूहिक आजादी – स्वाधीनता
जिसके आर–पार देखा जा सके – पारदर्शी
जिसकी गर्दन सुन्दर हो – सुग्रीव
अनुचित बातों के लिए आग्रह – दुराग्रह
जो नया आया हुआ हो – नवागन्तुक
जो नया जन्म हुआ हो – नवजात
जो तुरंत जन्मा है – सद्यःजात
जो अच्छे कुल में जन्म ले – कुलीन
जो बहुत बोले – वाचाल
इन्द्रियों को जीतनेवाला – जितेन्द्रिय
नींद पर विजय प्राप्त करनेवाला – गुडाकेश
जो स्त्री के स्वभाव का हो – स्त्रैण
जो क्षमा पाने के लायक हो – क्षम्य
जो अत्यन्त कष्ट से निवारित हो – दुर्निवार
जो वचन से परे हो – वचनातीत
जो सरों (तालाब) में जन्म ले – सरसिज,
जो मुकदमा लड़ता हो – मुकदमेबाज
जो देने योग्य हो – प्रहरी/पहरेदार
जो पहरा देता है – सत्याग्रह
सत्य के लिए आग्रह – वादी/मुद्दई
जो मुकदमा दायर करे – संगीतज्ञ
जो संगीत जानता हो – कलाविद्
जो कला जानता हो लौटकर आया हुआ – प्रत्यागत
जो जन्म से अंधा हो – जन्मान्ध
जो पोत युद्ध के लिए हो – युद्धपोत
जो शत्रु की हत्या करे – शत्रुघ्न
जो पिता की हत्या करे – पितृहंता
जो माता की हत्या करे – मातृहन्ता
जो पत्नी की हत्या करे – पत्नीहंता
गृह बसाकर रहनेवाला – गृहस्थ
जो विज्ञान जानता है – वैज्ञानिक
बिना अंकुश का – निरंकुश
बिक्री करनेवाला – विक्रेता
हृदय का विदारण करनेवाला – हृदय–विदारक
धन देनेवाला – धनद
प्राण देनेवाली – प्राणदा
यश देनेवाली – यशोदा
जो किसी विषय को विशेष रूप से जाने – विशेषज्ञ
गगन चूमनेवाला – गगनचुंबी
जो मन को हर ले – मनोहर
जो सबसे प्रिय हो – प्रियतम
याचना करनेवाला – याचक
जो देखने योग्य हो – दर्शनीय
जो पूछने योग्य हो – प्रष्टव्य
जो करने योग्य हो – कर्तव्य
जो सुनने योग्य हो – पूजनीय
जो सुनने योग्य हो – श्रव्य
जो तर्क द्वारा सम्मत हो – तर्कसम्मत
जो पढ़ने योग्य हो – पठनीय
जंगल की आग – दावानल
पेट या जठर की आग – जठरानल
समुद्र की आग – वडवानाल
जो राजगद्दी का अधिकारी हो – युवराज
रात और संध्या के बीच की बेला – गोधूलि
पुत्र की वधू – पुत्रवधू
पुत्र का पुत्र – पौत्र
जहाँ खाना (भोजन) मुफ्त मिले – सदाव्रत
जहाँ दवा दान स्वरूप मिले – दातव्य औषधालय
जो व्याख्या करे – व्याख्याता
जो पांचाल देश की हो – पांचाली
द्रुपद की पुत्री – द्रौपदी
जो पुरुष लोहे की तरह बलिष्ठ हो – लौहपुरुष
युग का निर्माण करनेवाला – युगनिर्माता
यात्रा करनेवाला – यात्री
तेजी से चलने वाला – द्रुतगामी
जिसकी बुद्धि झट सोच ले – प्रत्युत्पन्नमति
जिसकी बुद्धि कुश के अग्रभाग में समान हो – कुशाग्रबुद्धि
वह, जिसकी प्रतिज्ञा दृढ़ हो – दृढ़ प्रतिज्ञ
जिसने चित्त किसी विषय में दिया है – दत्तचित्त
जिसका तेज निकल गया है – निस्तेज
जीतने की इच्छा – जिगीषा
लाभ की इच्छा/पाने की इच्छा – लिप्सा
खाने की इच्छा – बुभुक्षा
किसी काम में दूसरे से बढ़ने की इच्छा – स्पर्धा
जान से मारने की इच्छा – जिघांसा
देखने की इच्छा – दिदृक्षा
करने की इच्छा – चिकीर्षा
तरने की इच्छा – तितीर्षा
जीने की इच्छा – जिजीविषा
मेघ की तरह गरजनेवाला – मेघनाद
पीने की इच्छा – पिपासा
वासुदेव के पिता – वसुदेव
विष्णु का शंख – पाञ्चजन्य
विष्णु का चक्र – सुदर्शन
विष्णु की गदा – कौमोदकी
विष्णु की तलवार – नन्दक
विष्णु का मणि – कौस्तुभ
विष्णु का धनुष – शांर्ग
विष्णु का सारथि – दारुक
विष्णु का छोटा भाई – गद
शिव की जटाएँ – कपर्द
इन्द्र का महल – वैजयन्त
वर्षा सहित तेज हवा – झंझावात
कुबेर का बगीचा – चैत्ररथ
कुबेर का पुत्र – नलकूबर
कुबेर का विमान – पुष्पक
अगस्त्य की पत्नी – लोपामुद्रा
अँधेरी रात – तमिम्रा
सोलहो कलाओं से युक्त चाँद – राका
अशुभ विचार – व्यापाद
मनोहर गन्ध – परिमल
दूर से मन को आकर्षित करनेवाली गंध – निर्हारी
मुख को सुगंधित करनेवाला पान – मुखवासन
कच्चे मांस की गंध – विम्न
कमल के समान गहरा लाल रंग – शोण
सफेदी लिए हुए लाल रंग – पाटल
काला पीला मिला रंग – कपिश
दुःख, भय आदि के कारण उत्पन्न ध्वनि – काकु
झूठी प्रशंसा करना – श्लाघा
वस्त्रों या पत्तों की रगड़ से उत्पन्न आवाज – मर्मर
पक्षियों का कलरव – वाशित
बिना तार की वीणा – कोलंबक
नाटक का आदरणीय पात्र – मारिष
धोखायुक्त बात–चीत – विप्रलम्भ
पानी से उठा हुआ किनारा – पुलिन
बालुकामय किनारा – सैकत
नाव से पार करने योग्य नदी – नाव्य
मछली रखने का पात्र – कुवेणी
मछली मारने का काँटा – वडिश
अंडों से निकली छोटी मछलियों का समूह – पोताधान
केंचुए की स्त्री – शिली
कुएँ की जगत – वीनाह
तीन प्रहरों वाली रात – त्रियामा
वृद्धावस्था से घिरा हुआ – जराक्रान्त
खाली या रिक्त करानेवाला – रिक्तक/रेचक
सिर पर धारण करने योग्य – शिरोधार्य
जिसका दमन करना कठिन हो – दुर्दम्य
जिसको लाँघना कठिन हो – दुर्लध्य
जो पापरहित हो – निष्पाप
सब कुछ खानेवाला – सर्वभक्षी
जो सहज रूप से न पचे (देर से पचने वाला) – गुरुपाक
जो दिन में एकबार आहार करे – एकाहारी
जो अपने से उत्पन्न हुआ हो – स्वयंभू
जो शत्रु की हत्या करे – शत्रुघ्न
बहुत–सी भाषाओं को बोलनेवाला – बहुभाषा–भाषी
बहुत सी भाषाओं को जाननेवाला – बहुभाषाविद्
रोंगटे खड़े करनेवाला – लोमहर्षक
जिसकी पत्नी साथ नहीं हो – विपत्नीक
‘जिस समय मुश्किल से भिक्षा भी मिले – दुर्भिक्ष
हाथ की सफाई – हस्तलाघव
पके हुए अन्न की भिक्षा – मधुकरी
किसी के पास रखी हुई दूसरे की सम्पत्ति – थाती/न्यास
पर्दे में रहनेवाली नारी – पर्दानशीं
जो विषय विचार में आ जाय – विचारागम्य
लम्बी भुजाओं वाला – दीर्घबाहु
जिसका घर्षण कठिनता से हो – दुर्घर्ष
जिसके दोनों ओर जल है – दोआव
वर्षा के जल से पालित। – देवमातृक
पृथ्वी को धारण करनेवाला – महीधर
जो सम नहीं है, उसे सम करना – समीकरण
जिसे मन पवित्र मानता है – मनःपूत
अस्तित्वहीन वस्तु का विश्लेषण – काकदन्तपरीक्षण
बेरों के जंगल में जनमा – बादगयण
केवल वर्षा पर निर्भर – बारानी
अधिक रोएँ वाला – लोमश
द्वीप में जनमा – द्वैपायन
जिसके सिर पर बाल न हो – खल्वाट
जो प्रायः कहा जाता है – प्रायोवाद
सोना, चाँदी पर किया गया रंगीन काम – मीनाकारी
जिसके सभी दाँत झड़ चुके हों – पोपला
पूर्णिमा की रात – राका
अमावस्या की रात – कुहू
पुत्री का पुत्र – दौहित्र/नाती
इस्लाम पर विश्वास न करनेवाला – काफिर
ईश्वर द्वारा भेजा गया दूत – पैगम्बर
कलम की कमाई खानेवाला – मसिजीवी
कुएँ के मेढ़क के समान संकीर्ण बुद्धिवाला – कूपमंडुक
काला पानी की सजा पाया कैदी – दामुल कैदी
किसी काम में दखल देना – हस्तक्षेप
गणपति का उपासक – गाणपत्य
घास खानेवाला – तृणभोजी
स्थिर रहनेवाली वस्तु – स्थावर
छोटी चीज को बड़ी दिखानेवाला यंत्र – खुर्दबीन
जवाहर बेचने/परखने वाला – जौहरी
जहाँ से गंगा निकली – गंगोत्री
जल में रहनेवाली सेना – नौसेना
जहाँ किताबें छपती हैं – छापाखाना
जहाँ रुपये ढाले जाते हैं – टकसाल
जहाँ घोड़े बाँधे जाते हैं – घुड़साल
जिसको पूर्व जन्म की बातें याद हैं – जातिस्मर
जिसके आधार पर रास्ता आनंदपूर्ण हो – संबल
जिसपर चित्र बनाया जाय – चित्रपट
जिसके द्वारा चित्र बनाया जाय – तूलिका
जिसके नाखून सूप के समान हो – शूर्पणखा
जिस नारी की बोली कठोर हो – कर्कशा
जिसका आशय महान् हो – महाशय
जिसका यौवन क्षत नहीं हुआ – अक्षत यौवन
जिसे एक ही सन्तान होकर रह जाय – काकबन्ध्या
जिसे जीवन से विराग हो गया हो – वीतरागी
जिसकी सृष्टि की गई हो – बड़भागी
जिसका भाग्य बड़ा हो – परीक्षित
जिसकी परीक्षा ली जा चुकी हो – विश्वंभर
जो विश्वभर का भरण–पोषण करे – क्लीव
जो पुरुषत्वहीन हो जिसकी राह गलत हो – गुमराह
जो बहुत छोटा न हो – नातिलघु
जो प्रकाशयुक्त हो – भास्वर
जिसके अंग–प्रत्यंग गल गए हों – गलितांग
जिसकी इच्छा न की जाती हो – अनभिलषित
जिसके दर्शन प्रिय माने जाएँ – प्रियदर्शन
Vilom Shabd in Hindi (Antonyms) विलोम शब्द | विपरीतार्थक शब्द : हिन्दी व्याकरण
Vilom Shabd In Hindi – विलोम शब्द इन हिंदी
More Than 10 Vilom Shabd
(आ)
(इ)
(ई)
(उ)
(ऊ)
(ऋ)
(ए, ऐ)
(ओ)
(औ)
(क)
(ख)
(ग)
(घ)
(च)
(छ)
(ज)
(झ)
(ट)
(ठ)
(ड)
(द)
(त)
(थ)
(ढ)
(ध)
(न)
(प)
(फ)
(ब)
(भ)
(म)
(य)
(र)
(ल)
(व)
(श)
(स)
(ह)
(क्ष)
(त्र)
(ज्ञ)
(श्र)
विलोम शब्द वस्तुनिष्ठ प्रश्नावली
निर्देश विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में वस्तुनिष्ठपरक प्रश्नों में जिस शब्द का विलोम पूछना होता है उसे ऊपर मोटे (काले) अक्षरों में अंकित किया जाता है।
उसके नीचे विलोम शब्द चुनने के लिए चार विकल्प दिए जाते हैं। प्रतियोगी परीक्षाओं को ध्यान में रखकर अभ्यासार्थ हेतु कुछ वस्तुनिष्ठ प्रश्न यहाँ दिए गए हैं।
1. ‘अघः’ शब्द के साथ प्रयुक्त ‘उपरि’ शब्द किस प्रकार की शब्द कोटि में आएगा? (अन्वेषक सीधी भर्ती परीक्षा 2014)
(a) पर्याय
(b) अनेकार्थी
(c) अनाधिक
(d) विलोम
उत्तर :
(d) विलोम
2. ‘कृपा’ किस शब्द का विलोम है? (अन्वेषक सीधी भर्ती परीक्षा 2014)
(a) कोप
(b) कटु
(c) क्रोध
(d) क्रूर
उत्तर :
(a) कोप
निर्देश (प्र.सं. 3-4) में दिए गए विलोम शब्द का चयन उसके नीचे दिए गए विकल्पों में से कीजिए।
3. अनुरक्ति
(a) आसक्ति
(b) विरक्ति
(c) उक्ति
(d) विज्ञप्ति
उत्तर :
(b) विरक्ति
4. स्वप्न (के.वी.एस.पी.आर.टी. 2015)
(a) निद्रा
(b) जागरण
(c) ध्यान
(d) मनन
उत्तर :
(b) जागरण
निर्देश (प्र. सं. 5-7) में दिए गए शब्दों का उपयुक्त विलोम बताने के लिए चार-चार विकल्प प्रस्तावित हैं। उचित विकल्प का चयन कीजिए।
5. यौवन
(a) जरा
(b) पराजय
(c) मृत्यु
(d) जीत
उत्तर :
(a) जरा
6. यथार्थ
(a) उड़ान
(b) कल्पना
(c) स्वप्न
(d) विचार
उत्तर :
(b) कल्पना
7. प्रतिवादी (एस.एस.सी. स्टेनोग्राफर परीक्षा 2015)
(a) विपक्षी
(b) आरोपी
(c) संवादी
(d) वादी
उत्तर :
(d) वादी
8. ‘सूक्ष्म’ शब्द का विलोम है (उपनिरीक्षक सीधी भर्ती परीक्षा 2014 डी.एस.एस.एस.बी. असिस्टेंट टीचर परीक्षा 2015)
(a) सूक्ष्म
(b) सूक्ष्महीन
(c) स्थूल
(d) अस्थूल
उत्तर :
(c) स्थूल
9. ‘सुस्ती’ का विलोम है (डी.एस.एस.एस.बी.असिस्टेंट टीचर परीक्षा 2015)
(a) तन्दरुस्ती
(b) चुस्ती
(c) ताज़गी
(d) सुस्तीविहीन
उत्तर :
(b) चुस्ती
10. ‘मिथ्या’ का विलोम शब्द कौन-सा है? (उपनिरीक्षक सीधी भर्ती परीक्षा 2014)
(a) आडम्बर
(b) धुंधला
(c) दिखाना
(d) सत्य
उत्तर :
(d) सत्य
Paryayvachi Shabd (पर्यायवाची शब्द) Synonyms in Hindi, समानार्थी शब्द
पर्यायवाची शब्द का hindi mein या अर्थ है समान अर्थ वाले शब्द। पर्यायवाची शब्द किसी भी भाषा की सबलता की बहुता को दर्शाता है। जिस भाषा में जितने अधिक पर्यायवाची शब्द होंगे, वह उतनी ही सबल व सशक्त भाषा होगी। इस दृष्टि से संस्कृत सर्वाधिक सम्पन्न भाषा है। भाषा में पर्यायवाची शब्दों के प्रयोग से पूर्ण अभिव्यक्ति की क्षमता आती है।
पर्याय का अर्थ है-समान। अतः समान अर्थ व्यक्त करने वाले शब्दों को पर्यायवाची शब्द (Synonym words) कहते हैं। इन्हें प्रतिशब्द या समानार्थक शब्द भी कहा जाता है। व्यवहार में पर्याय या पर्यायवाची शब्द ही अधिक प्रचलित हैं। विद्यार्थियों के अध्ययन हेतु पर्यायवाची शब्दों की सूची प्रस्तुत है-
More than 10 Paryayvachi Shabd in Hindi
शब्द – पर्यायवाची शब्द
(अ)
अंक – संख्या, गिनती, क्रमांक, निशान, चिह्न, छाप।
अंकुर – कोंपल, अँखुवा, कल्ला, नवोद्भिद्, कलिका, गाभा
अंकुश – प्रतिबन्ध, रोक, दबाव, रुकावट, नियन्त्रण।
अंग – अवयव, अंश, काया, हिस्सा, भाग, खण्ड, उपांश, घटक, टुकड़ा, तन, कलेवर, शरीर, देह।
‘अग्नि – आग, अनल, पावक, जातवेद, कृशानु, वैश्वानर, हुताशन, रोहिताश्व, वायुसखा, हव्यवाहन, दहन, अरुण।
अंचल – पल्लू, छोर, क्षेत्र, अंत, प्रदेश, आँचल, किनारा।
अचानक – अकस्मात, अनायास, एकाएक, दैवयोगा।
अटल – अडिग, स्थिर, पक्का, दृढ़, अचल, निश्चल, गिरि, शैल, नग।
अठखेली – कौतुक, क्रीड़ा, खेल–कूद, चुलबुलापन, उछल–कूद, हँसी–मज़ाक।
अमृत – अमिय, पीयूष, अमी, मधु, सोम, सुधा, सुरभोग, जीवनोदक, शुभा।
अयोग्य – अनर्ह, योग्यताहीन, नालायक, नाकाबिल।
अभिप्राय – प्रयोजन, आशय, तात्पर्य, मतलब, अर्थ, मंतव्य, मंशा, उद्देश्य, विचार
अर्जुन – भारत, गुडाकेश, पार्थ, सहस्रार्जुन, धनंजय।
अवज्ञा – अनादर, तिरस्कार, अवमानना, अपमान, अवहेलना, तौहीन।
अश्व – घोड़ा, तुरंग, हय, बाजि, सैन्धव, घोटक, बछेड़ा, रविसुत, अर्दा
असुर – रजनीचर, निशाचर, दानव, दैत्य, राक्षस, दनुज, यातुधान, तमीचर।
अवरोध – रुकावट, विघ्न, व्यवधान, अरुंगा।
अतिथि – मेहमान, पहुना, अभ्यागत, रिश्तेदार, नातेदार, आगन्तुका.
अतीत – पूर्वकाल, भूतकाल, विगत, गत।
अनाज – अन्न, शस्य, धान्य, गल्ला, खाद्यान्न।
अनाड़ी – अनजान, अनभिज्ञ, अज्ञानी, अकुशल, अदक्ष, अपटु, मूर्ख, अल्पज्ञ, नौसिखिया।
अनार – सुनील, वल्कफल, मणिबीज, बीदाना, दाडिम, रामबीज, शुकप्रिय।
अनिष्ट – बुरा, अपकार, अहित, नुकसान, हानि, अमंगल।
अनुकम्पा – दया, कृपा, करम, मेहरबानी।
अनुपम – सुन्दर, अतुल, अपूर्व, अद्वितीय, अनोखा, अप्रतिम, अद्भुत, अनूठा, विलक्षण, विचित्र।
अनुसरण – नकल, अनुकृत, अनुगमन।
अपमान – अनादर, उपेक्षा, निरादर, बेइज्जती, अवज्ञा, तिरस्कार, अवमाना।
अप्सरा – परी, देवकन्या, अरुणप्रिया, सुखवनिता, देवांगना, दिव्यांगना, देवबाला।
अभय – निडर, साहसी, निर्भीक, निर्भय, निश्चिन्त।
अभिजात – कुलीन, सुजात, खानदानी, उच्च, पूज्य, श्रेष्ठ।
अभिज्ञ – जानकार, विज्ञ, परिचित, ज्ञाता।
अभिमान – गौरव, गर्व, नाज, घमंड, दर्प, स्वाभिमान, अस्मिता, अहं, अहंकार, अहमिका, मान, मिथ्याभिमान, दंभ।
अभियोग – दोषारोपण, कसूर, अपराध, गलती, आक्षेप, आरोप, दोषारोपण, इल्ज़ामा।
अभिलाषा – कामना, मनोरथ, इच्छा, आकांक्षा, ईहा, ईप्सा, चाह, लालसा, मनोकामना।
अभ्यास – रियाज़, पुनरावृत्ति, दोहराना, मश्क।
अमर – मृत्युंजय, अविनाशी, अनश्वर, अक्षर, अक्षय।
अमीर – धनी, धनाढ्य, सम्पन्न, धनवान, पैसेवाला।
अनन्त – असंख्य, अपरिमित, अगणित, बेशुमार।
अनभिज्ञ – अज्ञानी, मूर्ख, मूढ़, अबोध, नासमझ, अल्पज्ञ, अदक्ष, अपटु, अकुशल, अनजान।
अगुआ – अग्रणी, सरदार, मुखिया, प्रधान, नायक।
अधर – रदच्छद, रदपुट, होंठ, ओष्ठ, लब।
अध्यापक – आचार्य, शिक्षक, गुरु, व्याख्याता, अवबोधक, अनुदेशक।
अंधकार – तम, तिमिर, ध्वान्त, अँधियारा, तिमिस्रा।
अनुरूप – अनुकूल, संगत, अनुसार, मुआफिक
अन्तःपुर – रनिवास, भोगपुर, जनानखाना।
अदृश्य – अन्तर्ध्यान, तिरोहित, ओझल, लुप्त, गायब।
अकाल – भुखमरी, कुकाल, दुष्काल, दुर्भिक्षा।
अशुद्ध – दूषित, गंदा, अपवित्र, अशुचि, नापाका।
असभ्य – अभद्र, अविनीत, अशिष्ट, गँवार, उजड्ड।
अधम – नीच, निकृष्ट, पतित।
अपकीर्ति – अपयश, बदनामी, निंदा, अकीर्ति।
अध्ययन – अनुशीलन, पारायण, पठनपाठन, पढ़ना।
अनुरोध – अभ्यर्थना, प्रार्थना, विनती, याचना, निवेदन।
अखण्ड – पूर्ण, समस्त, सम्पूर्ण, अविभक्त, समूचा, पूरा।
अपराधी – मुजरिम, दोषी, कसूरवार, सदोष।
अधीन – आश्रित, मातहत, निर्भर, पराश्रित, पराधीन।
अनुचित – नाजायज़, गैरवाजिब, बेजा, अनुपयुक्त, अयुत।
अन्वेषण – अनुसन्धान, गवेषण, खोज, जाँच, शोध।
अमूल्य – अनमोल, बहुमूल्य, मूल्यवान, बेशकीमती।
अज – ब्रह्मा, ईश्वर, दशरथ के जनक, बकरा।
अंधा – नेत्रहीन, सूरदास, अंध, चक्षुविहीन, प्रज्ञाचक्षु।
अनुवाद – भाषांतर, उल्था, तर्जुमा।
अरण्य – जंगल, कान्तार, विपिन, वन, कानन।
अवनति – अपकर्ष, गिराव, गिरावट, घटाव, ह्रास।
अश्लील – अभद्र, अधिभ्रष्ट, निर्लज्ज बेशर्म, असभ्य।
आकुल – व्यग्र, बेचैन, क्षुब्ध, बेकल।
आकृति – आकार, चेहरा–मोहरा, नैन–नक्श, डील–डौला
आदर्श – प्रतिरूप, प्रतिमान, मानक, नमूना।
आलसी – निठल्ला, बैठा–ठाला, ठलुआ, सस्त, निकम्मा, काहिला
आयुष्मान् – चिरायु, दीर्घायु, शतायु, दीर्घजीवी, चिरंजीव।
आज्ञा – आदेश, निदेश, फ़रमान, हुक्म, अनुमति, मंजूरी, स्वीकृति, सहमति, इजाज़ता
आश्रय – सहारा, आधार, भरोसा, अवलम्ब, प्रश्रय।
आख्यान – कहानी, वृत्तांत, कथा, किस्सा, इतिवृत्ता
आधुनिक – अर्वाचीन, नूतन, नव्य, वर्तमानकालीन, नवीन, अधुनातन।
आवेग – तेज़ी, स्फूर्ति, जोश, त्वरा, तीव्र, फुरती, चपलता।
आलोचना – समीक्षा, टीका, टिप्पणी, नुक्ताचीनी, समालोचना।
आरम्भ – श्रीगणेश, शुरुआत, सूत्रपात, प्रारम्भ, उपक्रम।
आवश्यक – अनिवार्य, अपरिहार्य, ज़रूरी, बाध्यकारी।
आदि – पहला, प्रथम, आरम्भिक, आदिमा
आपत्ति – विपदा, मुसीबत, आपदा, विपत्ति।
आकाश – नभ, अम्बर, अन्तरिक्ष, आसमान, व्योम, गगन, दिव, द्यौ, पुष्कर, शून्य।
आचरण – चाल–चलन, चरित्र, व्यवहार, आदत, बर्ताव, सदाचार, शिष्टाचार।
आडम्बर – पाखण्ड, ढकोसला, ढोंग, प्रपंच, दिखावा।
आँख – अक्षि, नैन, नेत्र, लोचन, दृग, चक्षु, ईक्षण, विलोचन, प्रेक्षण, दृष्टि।
आँगन – प्रांगण, बगड़, बाखर, अजिर, अँगना, सहन।
आम – रसाल, आम्र, फलराज, पिकबन्धु, सहकार, अमृतफल, मधुरासव, अंब।
आनन्द – आमोद, प्रमोद, विनोद, उल्लास, प्रसन्नता, सुख, हर्ष, आहलाद।
आशा – उम्मीद, तवक्को, आस।
आशीर्वाद – आशीष, दुआ, शुभाशीष, शुभकामना, आशीर्वचन, मंगलकामना।
आश्चर्य – अचम्भा, अचरज, विस्मय, हैरानी, ताज्जुब।
आहार – भोजन, खुराक, खाना, भक्ष्य, भोज्य।
आस्था – विश्वास, श्रद्धा, मान, कदर, महत्त्व, आदर।
आँसू – अश्रु, नेत्रनीर, नयनजल, नेत्रवारि, नयननीर।
(इ)
इन्दिरा – लक्ष्मी, रमा, श्री, कमला।
इच्छा – लालसा, कामना, चाह, मनोरथ, ईहा, ईप्सा, आकांक्षा, अभिलाषा, मनोकामना।
इन्द्र – महेन्द्र, सुरेन्द्र, सुरेश, पुरन्दर, देवराज, मधवा, पाकरिपु, पाकशासन, पुरहूत।
इन्द्राणी – शची, इन्द्रवधू, महेन्द्री, इन्द्रा, पौलोमी, शतावरी, पुलोमजा।
इनकार – अस्वीकृति, निषेध, मनाही, प्रत्याख्यान।
इच्छुक – अभिलाषी, लालायित, उत्कण्ठित, आतुर
इशारा – संकेत, इंगित, निर्देश।
इन्द्रधनुष – सुरचाप, इन्द्रधनु, शक्रचाप, सप्तवर्णधनु।
इन्द्रपुरी – देवलोक, अमरावती, इन्द्रलोक, देवेन्द्रपुरी, सुरपुर।
(ई)
ईख – गन्ना, ऊख, रसडंड, रसाल, पेंड़ी, रसद।
ईमानदार – सच्चा, निष्कपट, सत्यनिष्ठ, सत्यपरायण।
ईश्वर – परमात्मा, परमेश्वर, ईश, ओम, ब्रह्म, अलख, अनादि, अज, अगोचर, जगदीश।
ईर्ष्या – मत्सर, डाह, जलन, कुढ़न, द्वेष, स्पर्धा।
(उ)
उचित – ठीक, सम्यक्, सही, उपयुक्त, वाजिब।
उत्कर्ष – उन्नति, उत्थान, अभ्युदय, उन्मेष।
उत्पात – दंगा, उपद्रव, फ़साद, हुड़दंग, गड़बड़, उधम।
उत्सव – समारोह, आयोजन, पर्व, त्योहार, मंगलकार्य, जलसा।
उत्साह – जोश, उमंग, हौसला, उत्तेजना।
उत्सुक – आतुर, उत्कण्ठित, व्यग्र, उत्कर्ण, रुचि, रुझान।
उदार – उदात्त, सहृदय, महामना, महाशय, दरियादिल।
उदाहरण – मिसाल, नमूना, दृष्टान्त, निदर्शन, उद्धरण।
उद्देश्य – प्रयोजन, ध्येय, लक्ष्य, निमित्त, मकसद, हेतु।
उद्यत – तैयार, प्रस्तुत, तत्पर।
उन्मूलन – निरसन, अन्त, उत्सादन।
उपकार – (1) परोपकार, अच्छाई, भलाई, नेकी। (ii) हित, उद्धार, कल्याण
उपस्थित – विद्यमान, हाज़िर, प्रस्तुत।
उत्कृष्ट – उत्तम, श्रेष्ठ, प्रकृष्ट, प्रवर।
उपमा – तुलना, मिलान, सादृश्य, समानता।
उपासना – पूजा, आराधना, अर्चना, सेवा।।
उद्यम – परिश्रम, पुरुषार्थ, श्रम, मेहनत।
उजाला – प्रकाश, आलोक, प्रभा, ज्योति।
उपाय – युक्ति, ढंग, तरकीब, तरीका, यत्न, जुगत।
उपयुक्त – उचित, ठीक, वाज़िब, मुनासिब, वांछनीय।
उल्टा – प्रतिकूल, विलोम, विपरीत, विरुद्धा.
उजाड़ – निर्जन, वीरान, सुनसान, बियावान।
उग्र – तेज़, प्रबल, प्रचण्ड
उन्नति – प्रगति, तरक्की, विकास, उत्थान, बढ़ोतरी, उठान, उत्क्रमण, चढ़ाव, आरोह
उपवास – निराहार, व्रत, अनशन, फाँका, लंघन।
उपेक्षा – उदासीनता, विरक्ति, अनासक्ति, विराग, उदासीन, उल्लंघन।
उपहार – भेंट, सौगात, तोहफ़ा।
उपालम्भ – उलाहना, शिकवा, शिकायत, गिला।
उल्लू – उलूक, लक्ष्मीवाहन, कौशिक
(ऊ)
ऊँचा – उच्च, शीर्षस्थ, उन्नत, उत्तुंग।
ऊर्जा – ओज, स्फूर्ति, शक्ति।
ऊसर – अनुर्वर, सस्यहीन, अनुपजाऊ, बंजर, रेत, रेह।
ऊष्मा – उष्णता, तपन, ताप, गर्मी।
ऊँट – लम्बोष्ठ, महाग्रीव, क्रमेलक, उष्ट्र।
ऊँघ – तंद्रा, ऊँचाई, झपकी, अर्द्धनिद्रा, अलसाई।
(ऋ)
ऋषि – मुनि, मनीषी, महात्मा, साधु, सन्त, संन्यासी, मन्त्रदृष्टा।
ऋद्धि – बढ़ती, बढ़ोतरी, वृद्धि, सम्पन्नता, समृद्धि।
(ए)
एकता – एका, सहमति, एकत्व, मेल–जोल, समानता, एकरूपता, एकसूत्रता, ऐक्य, अभिन्नता।
एहसान – आभार, कृतज्ञता, अनुग्रह।
एकांत – सुनसान, शून्य, सूना, निर्जन, विजन।
एकाएक – अकस्मात, अचानक, सहसा, एकदम।
(ऐ)
ऐश – विलास, ऐयाशी, सुख–चैन।
ऐश्वर्य – वैभव, प्रभुता, सम्पन्नता, समृद्धि, सम्पदा।
ऐच्छिक – स्वेच्छाकृत, वैकल्पिक, अख्तियारी।
ऐब – खोट, दोष, बुराई, अवगुण, कलंक, खामी, कमी, त्रुटि।
(ओ)
ओज – दम, ज़ोर, पराक्रम, बल, शक्ति, ताकत।
ओझल – अन्तर्ध्यान, तिरोहित, अदृश्य, लुप्त, गायब।
ओस – तुषार, हिमकण, हिमसीकर, हिमबिन्दु, तुहिनकण।
ओंठ – होंठ, अधर, ओष्ठ, दन्तच्छद, रदनच्छद, लब।
(औ)
और – (i) अन्य, दूसरा, इतर, भिन्न (ii) अधिक, ज़्यादा (ii) एवं, तथा।
औषधि – दवा, दवाई, भेषज, औषध
(क)
कपड़ा – चीर, वस्त्र, वसन, अम्बर, पट, पोशाक चैल, दुकूल।
कमल – सरोज, सरोरुह, जलज, पंकज, नीरज, वारिज, अम्बुज, अम्बोज, अब्ज, सतदल, अरविन्द, कुवलय, अम्भोरुह, राजीव, नलिन, पद्म, तामरस, पुण्डरीक, सरसिज, कंज।
कर्ण – अंगराज, सूर्यसुत, अर्कनन्दन, राधेय, सूतपुत्र, रविसुत, आदित्यनन्दन।
कली – मुकुल, जालक, ताम्रपल्लव, कलिका, कुडमल, कोरक, नवपल्लव, अँखुवा, कोंपल, गुंचा।
कल्पवृक्ष – कल्पतरु, कल्पशाल, कल्पद्रुम, कल्पपादप, कल्पविटप।
कन्या – कुमारिका, बालिका, किशोरी, बाला।
कठिन – दुर्बोध, जटिल, दुरूह।
कंगाल – निर्धन, गरीब, अकिंचन, दरिद्र।
कमज़ोर – दुर्बल, निर्बल, अशक्त, क्षीण।
कुटिल – छली, कपटी, धोखेबाज़, चालबाज़।
काक – काग, काण, वायस, पिशुन, करठ, कौआ।
कुत्ता – कुक्कर, श्वान, शुनक, कूकुर।
कबूतर – कपोत, रक्तलोचन, हारीत, पारावत।
कृत्रिम – अवास्तविक, नकली, झूठा, दिखावटी, बनावटी।
कल्याण – मंगल, योगक्षेम, शुभ, हित, भलाई, उपकार।
कूल – किनारा, तट, तीर।
कृषक – किसान, काश्तकार, हलधर, जोतकार, खेतिहर।
क्लिष्ट – दुरूह, संकुल, कठिन, दुःसाध्य।
कौशल – कला, हुनर, फ़न, योग्यता, कुशलता।
कर्म – कार्य, कृत्य, क्रिया, काम, काज।
कंदरा – गुहा, गुफा, खोह, दरी।
कथन – विचार, वक्तव्य, मत, बयाना
कटाक्षे – आक्षेप, व्यंग्य, ताना, छींटाकशी।
कुरूप – भद्दा, बेडौल, बदसूरत, असुन्दर।
कलंक – दोष, दाग, धब्बा, लांछन, कलुषता।
कोमल – मृदुल, सुकुमार, नाजुक, नरम, सौम्य, मुलायम।
किरण – रश्मि, केतु, अंशु, कर, मरीचि, मखूख, प्रभा, अर्चि, पुंज।
कसक – पीड़ा, दर्द, टीस, दुःख।
कोयल – कोकिल, श्यामा, पिक, मदनशलाका।
कायरता – भीरुता, अपौरुष, पामरता, साहसहीनता।
कंटक – काँटा, शूल, खार।
कामदेव – मनोज, कन्दर्प, आत्मभू, अनंग, अतनु, काम, मकरकेतु, पुष्पचाप, स्मर, मन्मथ
कार्तिकेय – कुमार, पार्वतीनन्दन, शरभव, स्कन्ध, षडानन, गुह, मयूरवाहन, शिवसुत, षड्वदन।
कटु – कठोर, कड़वा, तीखा, तेज़, तीक्ष्ण, चरपरा, कर्कश, रूखा, रुक्ष, परुष, कड़ा, सत्ता
किला – दुर्ग, कोट, गढ़, शिविर
किंचित – (i) कतिपय, कुछ एक, कई एक (ii) कुछ, अल्प, ज़रा।
किताब – पुस्तक, ग्रंथ, पोथी।
किनारा – (i) तट, मुहाना, तीर, पुलिन, कूल। (ii) अंचल, छोर, सिरा, पर्यन्त।
कीमत – मूल्य, दाम, लागता
कुबेर – राजराज, किन्नरेश, धनाधिप, धनेश, यक्षराज, धनद।
कुमुदनी – नलिनी, कैरव, कुमुद, इन्दुकमल, चन्द्रप्रिया।
कृष्ण – नन्दनन्दन, मधुसूदन, जनार्दन, माधव, मुरारि, कन्हैया, द्वारकाधीश, गोपाल, केशव, नन्दकुमार, नन्दकिशोर, बिहारी।
कृतज्ञ – आभारी, उपकृत, अनुगृहीत, ऋणी, कृतार्थ, एहसानमंद।
केला – रम्भा, कदली, वारण, अशुमत्फला, भानुफल, काष्ठीला।
क्रोध – गुस्सा, अमर्ष, रोष, कोप, आक्रोश, ताव।
करुणा – दया, तरस, रहम, आत्मीयभाव।
(ख)
खग – पक्षी, चिड़िया, पखेरू, द्विज, पंछी, विहंग, शकुनि।
खंजन – नीलकण्ठ, सारंग, कलकण्ठ।
खंड – अंश, भाग, हिस्सा, टुकड़ा।
खल – शठ, दुष्ट, धूर्त, दुर्जन, कुटिल, नालायक, अधम।
खूबसूरत – सुन्दर, सुरम्य, मनोज्ञ, रूपवान, सौरम्य, रमणीक।
खून – रुधिर, लहू, रक्त, शोणित।
खम्भा – खम्भ, स्तूप, स्तम्भ।
खतरा – अंदेशा, भय, डर, आशंका।
खत – चिट्ठी, पत्र, पत्री, पाती।
खामोश – नीरव, शान्त, चुप, मौन।
खीझ – झुंझलाहट, झल्लाहट, खीझना, चिढ़ना।
(ग)
गरुड़ – खगेश्वर, सुपर्ण, वैतनेय, नागान्तका
गौरव – मान, सम्मान, महत्त्व, बड़प्पन।
गम्भीर – गहरा, अथाह, अतला
गाँव – ग्राम, मौजा, पुरवा, बस्ती, देहात।
गृह – घर, सदन, भवन, धाम, निकेतन, आलय, मकान, गेह, शाला।
गुफा – गुहा, कन्दरा, विवर, गह्वर।
गीदड़ – शृगाल, सियार, जम्बुका
गुप्त – निभृत, अप्रकट, गूढ, अज्ञात, परोक्ष।
गति – हाल, दशा, अवस्था, स्थिति, चाल, रफ़्तार।
गंगा – भागीरथी, देवसरिता, मंदाकिनी, विष्णुपदी, त्रिपथगा, देवापगा, जाहनवी, देवनदी, ध्रुवनन्दा, सुरसरि, पापछालिका।
गणेश – लम्बोदर, मूषकवाहन, भवानीनन्दन, विनायक, गजानन, मोदकप्रिय, जगवन्द्य, हेरम्ब, एकदन्त, गजवदन, विघ्ननाशका
गज – हस्ती, सिंधुर, मातंग, कुम्भी, नाग, हाथी, वितुण्ड, कुंजर, करी, द्विपा
गधा – गदहा, खर, धूसर, गर्दभ, चक्रीवाहन, रासभ, लम्बकर्ण, बैशाखनन्दन, बेसर।
गाय – धेनु, सुरभि, माता, कल्याणी, पयस्विनी, गौ।
गुलाब – सुमना, शतपत्र, स्थलकमल, पाटल, वृन्तपुष्प
गुनाह – गलती, अधर्म, पाप, अपराध, खता, त्रुटि, कुकर्म।
(घ)
घड़ा – कलश, घट, कुम्भ, गागर, निप, गगरी, कुट।
घी – घृत, हवि, अमृतसार।
घाटा – हानि, नुकसान, टोटा।
घन – जलधर, वारिद, अंबुधर, बादल, मेघ, अम्बुद, पयोद, नीरद।।
घृणा – जुगुप्सा, अरुचि, घिन, बीभत्स।
घुमक्कड़ – रमता, सैलानी, पर्यटक, घुमन्तू, विचरण शील, यायावर।
घिनौना – घृण्य, घृणास्पद, बीभत्स, गंदा, घृणित।
Ghumantu/घुमंतू – बंजारा, घुमक्कड़
(च)
चंदन – मंगल्य, मलयज, श्रीखण्ड।
चाँदी – रजत, रूपा, रौप्य, रूपक
चरित्र – आचार, सदाचार, शील, आचरण।
चिन्ता – फ़िक्र, सोच, ऊहापोह।
चौकीदार – आरक्षी, पहरेदार, प्रहरी, गारद, गश्तकार।
चोटी – शृंग, तुंग, शिखर, परकोटि।
चक्र – पहिया, चाक, चक्का।
चिकित्सा – उपचार, इलाज, दवादारू।
चतुर – कुशल, नागर, प्रवीण, दक्ष, निपुण, योग्य, होशियार, चालाक, सयाना, विज्ञा
चन्द्र – सोम, राकेश, रजनीश, राकापति, चाँद, निशाकर, हिमांशु, मयंक, सुधांशु, मृगांक, चन्द्रमा, कला–निधि, ओषधीश।
चाँदनी – चन्द्रिका, ज्योत्स्ना, कौमुदी, कुमुदकला, जुन्हाई, अमृतवर्षिणी, चन्द्रातप, चन्द्रमरीचि।
चपला – विद्युत्, बिजली, चंचला, दामिनी, तड़िता
चश्मा – ऐनक, उपनेत्र, सहनेत्र, उपनयन।
चाटुकारी – खुशामद, चापलूसी, मिथ्या प्रशंसा, चिरौरी, चमचागीरी।
चिह्न – प्रतीक, निशान, लक्षण, पहचान, संकेत।
चोर – रजनीचर, दस्यु, साहसिक, कभिज, खनक, मोषक, तस्कर।
(छ)
চল্প। – विद्यार्थी, शिक्षार्थी, शिष्य।
छाया – साया, प्रतिबिम्ब, परछाई, छाँव।
छल – प्रपंच, झाँसा, फ़रेब, कपट।
छटा – आभा, कांति, चमक, सौन्दर्य, सुन्दरता।
छानबीन – जाँच–पड़ताल, पूछताछ, जाँच, तहकीकात।
छेद – छिद्र, सूराख, रंध्रा
छली – ठग, छद्मी, कपटी, कैतव, धूर्त, मायावी।
छाती – उर, वक्ष, वक्षःस्थल, हृदय, मन, सीना।
(ज)
जननी – माँ, माता, माई. मइया. अम्बा, अम्मा।
जीव – प्राणी, देहधारी, जीवधारी।
जिज्ञासा – उत्सुकता, उत्कंठा, कुतूहल।
जंग – युद्ध, रण, समर, लड़ाई, संग्राम।
जग – दुनिया, संसार, विश्व, भुवन, मृत्युलोक।
जल – सलिल, उदक, तोय, अम्बु, पानी, नीर, वारि, पय, अमृत, जीवक, रस, अप।
जहाज़ – जलयान, वायुयान, विमान, पोत, जलवाहन।
जानकी – जनकसुता, वैदेही, मैथिली, सीता, रामप्रिया, जनकदुलारी, जनकनन्दिनी।
जुटाना – बटोरना, संग्रह करना, जुगाड़ करना, एकत्र करना, जमा करना, संचय करना।
जोश – आवेश, साहस, उत्साह, उमंग, हौसला।
जीभ – जिह्वा, रसना, रसज्ञा, चंचला।
जमुना – सूर्यतनया, सूर्यसुता, कालिंदी, अर्कजा, कृष्णा।
ज्योति – प्रभा, प्रकाश, लौ, अग्निशिखा, आलोक
(झ)
झंडा – ध्वजा, केतु, पताका, निसान।
झरना – सोता, स्रोत, उत्स, निर्झर, जलप्रपात, प्रस्रवण, प्रपात।
झुकाव – रुझान, प्रवृत्ति, प्रवणता, उन्मुखता।
झकोर – हवा का झोंका, झटका, झोंक, बयार।
झुठ – मिथ्या, मृषा, अनृत, असत, असत्य।
(ट)
टीका – भाष्य, वृत्ति, विवृति, व्याख्या, भाषांतरण।
टक्कर – भिडंत, संघट्ट, समाघात, ठोकर।
टोल – समूह, मण्डली, जत्था, झुण्ड, चटसाल, पाठशाला।
टीस – साल, कसक, शूल, शूक्त, चसक, दर्द, पीड़ा।
टेढा – (i) बंक, कुटिल, तिरछा, वक्रा (ii) कठिन, पेचीदा, मुश्किल, दुर्गम।
टंच – सूम, कृपण, कंजूस, निष्ठुर।
(ठ)
ठंड – शीत, ठिठुरन, सर्दी, जाड़ा, ठंडक
ठेस – आघात, चोट, ठोकर, धक्का।
ठौर – ठिकाना, स्थल, जगह।
ठग – जालसाज, प्रवंचक, वंचक, प्रतारक।
ठाठ –आडम्बर, सजावट, वैभवा
ठिठोली – मज़ाक, उपहास, फ़बती, व्यंग्य, व्यंग्योक्ति।
ठगी – प्रतारणा, वंचना, मायाजाल, फ़रेब, जालसाज़।
(ड)
डगर – बाट, मार्ग; राह, रास्ता, पथ, पंथा
डर – त्रास, भीति, दहशत, आतंक, भय, खौफ़
डेरा – पड़ाव, खेमा, शिविर
डोर – डोरी, रज्जु, तांत, रस्सी, पगहा, तन्तु।
डकैत – डाकू, लुटेरा, बटमार।
डायरी – दैनिकी, दैनन्दिनी, रोज़नामचा।
(ढ)
ढीठ – धृष्ट, प्रगल्भ, अविनीत, गुस्ताख।
ढोंग – स्वाँग, पाखण्ड, कपट, छल।
ढंग – पद्धति, विधि, तरीका, रीति, प्रणाली, करीना।
ढाढ़स – आश्वासन, तसल्ली, दिलासा, धीरज, सांत्वना।
ढोंगी – पाखण्डी, बगुला भगत, रंगासियार, कपटी, छली।
(त)
तन – शरीर, काया, जिस्म, देह, वपु।
तपस्या – साधना, तप, योग, अनुष्ठान।
तरंग – हिलोर, लहर, ऊर्मि, मौज, वीचि।
तरु – वृक्ष, पेड़, विटप, पादप, द्रुम, दरख्त।
तलवार – असि, खडग, सिरोही, चन्द्रहास, कृपाण, शमशीर, करवाल, करौली, तेग।
तम – अंधकार, ध्वान्त, तिमिर, अँधेरा, तमसा।
तरुणी – युवती, मनोज्ञा, सुंदरी, यौवनवक्षी, प्रमदा, रमणी।
तारा – नखत, उड्डगण, नक्षत्र, तारका
तम्बू – डेरा, खेमा, शिविर।
तस्वीर – चित्र, फोटो, प्रतिबिम्ब, प्रतिकृति, आकृति।
तालाब – जलाशय, सरोवर, ताल, सर, तड़ाग, जलधर, सरसी, पद्माकर, पुष्कर
तारीफ़ – बड़ाई, प्रशंसा, सराहना, प्रशस्ति, गुणगाना
तीर – नाराच, बाण, शिलीमुख, शर, सायक।
तोता – सुवा, शुक, दाडिमप्रिय, कीर, सुग्गा, रक्ततुंड।
तत्पर – तैयार, कटिबद्ध, उद्यत, सन्नद्ध।
तन्मय – मग्न, तल्लीन, लीन, ध्यानमग्न।
तालमेल – समन्वय, संगति, सामंजस्य।
तरकारी – शाक, सब्जी, भाजी।
तूफान – झंझावात, अंधड़, आँधी, प्रभंजना
त्रुटि – अशुद्धि, भूल–चूक, गलती।
(थ)
थकान – क्लान्ति, श्रान्ति, थकावट, थकन।
थोड़ा – कम, ज़रा, अल्प, स्वल्प, न्यून।
थाह – अन्त, छोर, सिरा, सीना।
थोथा – पोला, खाली, खोखला, रिक्त, छूछा।
थल – धरती, ज़मीन, पृथ्वी, भूतल, भूमि।
(द)
दर्पण – शीशा, आइना, मुकुर, आरसी।
दास – चाकर, नौकर, सेवक, परिचारक, परिचर, किंकर, गुलाम, अनुचर।
दुःख – क्लेश, खेद, पीड़ा, यातना, विषाद, यन्त्रणा, क्षोभ, कष्ट
दूध – पय, दुग्ध, स्तन्य, क्षीर, अमृत।
देवता – सुर, आदित्य, अमर, देव, वसु।
दोस्त – सखा, मित्र, स्नेही, अन्तरंग, हितैषी, सहचर।
द्रोपदी – श्यामा, पाँचाली, कृष्णा, सैरन्ध्री, याज्ञसेनी, द्रुपदसुता, नित्ययौवना।
दासी – बाँदी, सेविका, किंकरी, परिचारिका।
दीपक – आदित्य, दीप, प्रदीप, दीया।
दुर्गा – सिंहवाहिनी, कालिका, अजा, भवानी, चण्डिका, कल्याणी, सुभद्रा, चामुण्डा।
दिव्य – अलौकिक, स्वर्गिक, लोकातीत, लोकोत्तर।
दीपावली – दीवाली, दीपमाला, दीपोत्सव, दीपमालिका।
दामिनी – बिजली, चपला, तड़ित, पीत–प्रभा, चंचला, विजय, विद्युत्, सौदामिनी।
देह – तन, रपु, शरीर, घट, काया, गात, कलेवर, तनु, मूर्ति।
दुर्लभ – अलम्भ, नायाब, विरल, दुष्प्राप्य।
दर्शन – भेंट, साक्षात्कार, मुलाकाता
दंगा – उपद्रव, फ़साद, उत्पात, उधम।।
द्वेष – बैर, शत्रुता, दुश्मनी, खार, ईर्ष्या, जलन, डाह, मात्सर्य।
दरवाज़ा – किवाड़, पल्ला, कपाट, द्वार।
दाई – धाया, धात्री, अम्मा, सेविका।
देवालय – देवमन्दिर, देवस्थान, मन्दिर।
दृढ़ – पुष्ट, मज़बूत, पक्का, तगड़ा।
दुर्गम – अगम्य, विकट, कठिन, दुस्तर।
द्विज – ब्राह्मण, ब्रह्मज्ञानी, वेदविद्, पण्डित, विप्रा
दिनांक – तारीख, तिथि, मिति।
(ध)
धनुष – चाप, धनु, शरासन, पिनाक, कोदण्ड, कमान, विशिखासन।
धीरज – धीरता, धीरत्व, धैर्य, धारण, धृति।
धरती – धरा, धरणी, पृथ्वी, क्षिति, वसुधा, अवनी, मेदिनी।
धवल – श्वेत, सफ़ेद, उजला।
धुंध – कुहरा, नीहार, कुहासा।
ध्वस्त – नष्ट, भ्रष्ट, भग्न, खण्डित।
धूल – रज, खेहट, मिट्टी, गर्द, धूलिा
धंधा – दृढ़, अटल, स्थिर, निश्चित।
धनुर्धर – रोज़गार, व्यापार, कारोबार, व्यवसाय
धाक – धन्वी, तीरंदाज़, धनुषधारी, निषंगी।
धक्का – रोब, दबदबा, धौंस। टक्कर, रेला, झोंका।
(न)
नदी – सरिता, दरिया, अपगा, तटिनी, सलिला, स्रोतस्विनी, कल्लोलिनी, प्रवाहिणी।
नमक – लवण, लोन, रामरस, नोन।
नया – ‘नवीन, नव्य, नूतन, आधुनिक, अभिनव, अर्वाचीन, नव, ताज़ा।
नाश – (i) समाप्ति, अवसान (i) विनाश, संहार, ध्वंस, नष्ट–भ्रष्ट।
नित्य – हमेशा, रोज़, सनातन, सर्वदा, सदा, सदैव, चिरंतन, शाश्वत।
नियम – विधि, तरीका, विधान, ढंग, कानून, रीति।
नीलकमल – इंदीवर, नीलाम्बुज, नीलसरोज, उत्पल, असितकमल, कुवलय, सौगन्धित।
नौका – तरिणी, डोंगी, नाव, जलयान, नैया, तरी।
नारी – स्त्री, महिला, रमणी, वनिता, वामा, अबला, औरत।
निन्दा – अपयश, बदनामी, बुराई, बदगोई।
नैसर्गिक – प्राकृतिक, स्वाभाविक, वास्तविक
नरेश – नरेन्द्र, राजा, नरपति, भूपति, भूपाल
निष्पक्ष – उदासीन, अलग, निरपेक्ष, तटस्थ।
नियति – भाग्य, प्रारब्ध, विधि, भावी, दैव्य, होनी।
नक्षत्र – तारा, सितारा, खद्योत, तारक
नाग – सर्प, विषधर, भुजंग, व्याल, फणी, फणधर, उरग।
नग – भूधर, पहाड़, पर्वत, शैल, गिरि।
नरक – यमपुर, यमलोक, जहन्नुम, दौजख।
निधि – कोष, खज़ाना, भण्डार।
नग्न – नंगा, दिगम्बर, निर्वस्त्र, अनावृत।
नीरस – रसहीन, फीका, सूखा, स्वादहीन।
नीरव – मौन, चुप, शान्त, खामोश, निःशब्द।
निरर्थक – बेमानी, बेकार, अर्थहीन, व्यर्थी
निष्ठा – श्रद्धा, आस्था, विश्वास
निर्णय – निष्कर्ष, फ़ैसला, परिणाम।
निष्ठुर – निर्दय, निर्मम, बेदर्द, बेरहमा
(प)
पत्थर – पाहन, प्रस्तर, संग, अश्म, पाषाण।
पति – स्वामी, कान्त, भर्तार, बल्लभ, भर्ता, ईश।
पत्नी – दुलहिन, अर्धांगिनी, गृहिणी, त्रिया, दारा, जोरू, गृहलक्ष्मी, सहधर्मिणी, सहचरी, जाया।
पथिक – राही, बटाऊ, पंथी, मुसाफ़िर, बटोही।
पण्डित – विद्वान्, सुधी, ज्ञानी, धीर, कोविद, प्राज्ञा
परशुराम – भृगुसुत, जामदग्न्य, भार्गव, परशुधर, भृगुनन्दन, रेणुकातनय।
पर्वत – पहाड़, अचल, शैल, नग, भूधर, मेरू, महीधर, गिरि।
पवन – समीर, अनिल, मारुत, वात, पवमान, वायु, बयार।
पवित्र – पुनीत, पावन, शुद्ध, शुचि, साफ़, स्वच्छ
पार्वती – भवानी, अम्बिका, गौरी, अभया, गिरिजा, उमा, सती, शिवप्रिया।
पिता – जनक, बाप, तात, गुरु, फ़ादर, वालिद।
पुत्र – तनय, आत्मज, सुत, लड़का, बेटा, औरस, पूता
परिणय – शादी, विवाह, पाणिग्रहण।
पूज्य – आराध्य, अर्चनीय, उपास्य, वंद्य, वंदनीय, पूजनीय।
पुत्री – तनया, आत्मजा, सुता, लड़की, बेटी, दुहिता।
पृथ्वी – वसुधा, वसुन्धरा, मेदिनी, मही, भू, भूमि, इला, उर्वी, ज़मीन, क्षिति, धरती, धात्री।
प्रकाश – चमक, ज्योति, द्युति, दीप्ति, तेज़, आलोक।
प्रभात – सवेरा, सुबह, विहान, प्रातःकाल, भोर, ऊषाकाला
प्रथा – प्रचलन, चलन, रीति–रिवाज़, परम्परा, परिपाटी, रूढ़ि।
प्रलय – कयामत, विप्लव, कल्पान्त, गज़ब
प्रसिद्ध – मशहूर, नामी, ख्यात, नामवर, विख्यात, प्रख्यात, यशस्वी, मकबूला
प्रार्थना – विनय, विनती, निवेदन, अनुरोध, स्तुति, अभ्यर्थना, अर्चना, अनुनय।
प्रिया – प्रियतमा, प्रेयसी, सजनी, दिलरुबा, प्यारी।
प्रेम – प्रीति, स्नेह, दुलार, लाड़–प्यार, ममता, अनुराग, प्रणय।
पैर – पाँव, पाद, चरण, गोड़, पग, पद, पगु, टाँग
प्रभा – छवि, दीप्ति, द्युति, आभा।
पंथ – राह, डगर, पथ, मार्ग।
परतन्त्र – पराधीन, परवश, पराश्रित।
परिवार – कुल, घराना, कुटुम्ब, कुनबा।
परछाई – प्रतिच्छाया, साया, प्रतिबिम्ब, छाया, छवि।
पक्षी – विहग, निहंग, खग, अण्डज़, शकुन्त।
पल – क्षण, लम्हा, दमा
पश्चात्ताप – अनुताप, पछतावा, ग्लानि, संताप।
पाश – जालबंधन, फंदा, बंधन, जकड़न।
पराग – रंज, पुष्परज, कुसुमरज, पुष्पधूलि।
परिवर्तन – क्रांति, हेर–फेर, बदलाव, तब्दीली।
पड़ोसी – हमसाया, प्रतिवासी, प्रतिवेशी।
पुरातन – प्राचीन, पूर्वकालीन, पुराना।
पूजा – आराधना, अर्चना, उपासना।
प्रकांड – अतिशय, विपुल, अधिक, भारी।।
प्रज्ञा – बुद्धि, ज्ञान, मेधा, प्रतिभा।
प्रचण्ड – भीषण, उग्र, भयंकर।
प्रणय – स्नेह, अनुराग, प्रीति, अनुरक्ति।
प्रताप – प्रभाव, धाक, बोलबाला, इकबाल।
प्रतिज्ञा – प्रण, वचन, वायदा।
प्रेक्षागार – नाट्यशाला, रंगशाला, अभिनयशाला, प्रेक्षागृह।
प्रौढ़ – अधेड़, प्रबुद्ध।
पल्लव – किसलय, घर्ण, पत्ती, पात, कोपल, फुनगी।
पांडुलिपि – हस्तलिपी, मसौदा, पांडुलेख।
फणी – सर्प, साँप, फणधर, नाग, उरग।
फ़ौरन – तत्काल, तत्क्षण, तुरन्ता
फूल – सुमन, कुसुम, गुल, प्रसून, पुष्प, पुहुप, मंजरी, लतांता
फौज़ – सेना, लश्कर, पल्टन, वाहिनी, सैन्य।
फणीन्द्र – शेषनाग, वासुकी, उरगाधिपति, सर्पराज, नागराज।
(ब)
बलराम – हलधर, बलवीर, रेवतीरमण, बलभद्र, हली, श्यामबन्धु।
बाग – उपवन, वाटिका, उद्यान, निकुंज, फुलवाड़ी, बगीचा।
बन्दर – कपि, वानर, मर्कट, शाखामृग, कीश।
बट्टा – घाटा, हानि, टोटा, नुकसान।
बलिदान – कुर्बानी, आत्मोत्सर्ग, जीवनदान।
बंजर – ऊसर, परती, अनुपजाऊ, अनुर्वर।
बिछोह – वियोग, जुदाई, बिछोड़ा, विप्रलंभ।
बियावान – निर्जन, सूनसान, वीरान, उजाड़।
बंक – टेढ़ा, तिर्यक्, तिरछा, वक्र
बहुत – ज़्यादा, प्रचुर, प्रभूत, विपुल, इफ़रात, अधिक।
बुद्धि – प्रज्ञा, मेधा, ज़ेहन, समझ, अकल, गति।
ब्रह्मा – विधि, चतुरानन, कमलासन, विधाता, विरंचि, पितामह, अज, प्रजापति, स्वयंभू।
बादल – मेघ, पयोधर, नीरद, वारिद, अम्बुद, बलाहक, जलधर, घन, जीमूत।
बाल – केश, अलक, कुन्तल, रोम, शिरोरूह, चिकुर।
बिजली – तड़ित, दामिनी, विद्युत, सौदामिनी, चंचला, बीजुरी।
बसंत – ऋतुराज, ऋतुपति, मधुमास, कुसुमाकर, माधव।
बाण – तीर, तोमर, विशिख, शिलीमुख, नाराच, शर, इषु।
बारिश – पावस, वृष्टि, वर्षा, बरसात, मेह, बरखा।
बालिका – बाला, कन्या, बच्ची, लड़की, किशोरी।
(भ)
भगवान – परमेश्वर, परमात्मा, सर्वेश्वर, प्रभु, ईश्वर।
भगिनी – दीदी, जीजी, बहिन
भारती – सरस्वती, ब्राह्मी, विद्या देवी, शारदा, वीणावादिनी।
भाल – ललाट, मस्तक, माथा, कपाल।
भरोसा – सहारा, अवलम्ब, आश्रय, प्रश्रय।
भास्कर – चमकीला, आभामय, दीप्तिमान, प्रकाशवान।
भुगतान – भरपाई, अदायगी, बेबाकी।
भोला – सीधा, सरल, निष्कपट, निश्छल।
भूखा – बुभुक्षित, क्षुधातुर, क्षुधालु, क्षुधात।
भँवरा – भ्रमर, ग, मधुकर, मधुप, अलि, द्विरेफ।
भाई – अग्रज, अनुज, सहोदर, तात, भइया, बन्धु।
भाँड – विदूषक, मसखरा, जोकर।
भिक्षुक – भिखमंगा, भिखारी, याचक
(म)
मछली – मीन, मत्स्य, सफरी, झष, जलजीवन।
मज़ाक – दिल्लगी, उपहास, हँसी, मखौल, मसखरी, व्यंग्य, छींटाकशी।
मदिरा – शराब, हाला, आसव, मद्य, सुरा।
महादेव – शंकर, शंभू, शिव, पशुपति, चन्द्रशेखर, महेश्वर, भूतेश, आशुतोष, गिरीश
मक्खन – नवनीत, दधिसार, माखन, लौनी।
मंगनी – वाग्दान, फलदान, सगाई।
मनीषी – पण्डित, विचारक, ज्ञानी, विद्वान्।
मुँह – मुख, आनन, बदन।
मित्र – सखा, दोस्त, सहचर, सुहृद।
माँ – मातु, माता, मातृ, मातरि, मैया, महतारी, अम्ब, जननी, जनयित्री, जन्मदात्री।
मेघ – धराधर, घन, जलचर, वारिद, जीमूत, बादल, नीरद, पयोधर, जगलीवन, अम्बुद।
मैना – सारिका, चित्रलोचना, कलहप्रिया।
मंथन – बिलोना, विलोड़न, आलोड़न।
महक – परिमल, वास, सुवास, खुशबू, सुगंध, सौरभ।
मृत्यु – देहावसान, देहान्त, पंचतत्वलीन, निधन, मौत, इंतकाल।
माँझी – मल्लाह, नाविक, केवट।
माया – छल, छलना, प्रपंच, प्रतारणा।
माधुरी – माधुर्य, मिठास, मधुरता।
मानव – मनुज, मनुष्य, मानुष, नर, इंसान।
मोती – सीपिज, मौक्तिक, मुक्ता, शशिप्रभा।
मेंदकं – दादुर, दर्दुर, मण्डूक, वर्षाप्रिय, भेका
मोर – मयूर, नीलकण्ठ, शिखी, केकी, कलापी।
मोक्ष – मुक्ति, निर्वाण, कैवल्य, परमधाम, परमपद, अपवर्ग, सदगति।
मंदिर – देवालय, देवस्थान, देवगृह, ईशगृह।
मधु – शहद, बसंत–ऋत. भसमासव, मकरंद, पुष्पासव।
(य)
यम – सूर्यपुत्र, धर्मराज, श्राद्धदेव, कीनाश, शमन, दण्डधर, यमुनाभ्राता।
यत्न – प्रयत्न, चेष्टा, उद्यम
यामिनी – निशा, रजनी, राका, विभावरी।
योग्य – कुशल, सक्षम, कार्यक्षम, काबिला
यात्रा – भ्रमण, देशाटन, पर्यटन, सफ़र, घूमना।
याद – सुधि, स्मृति, ख्याल, स्मरण।
यंत्र – औज़ार, कल, मशीन।
यती – संन्यासी, वीतरागी, वैरागी।
युद्ध – रण, जंग, समर, लड़ाई, संग्राम।
याचिका – आवेदन–पत्र, अभ्यर्थना, प्रार्थना पत्र।
(र)
रक्त – खून, लहू, रुधिर, शोणित, लोहित, रोहित।
राधा – ब्रजरानी, हरिप्रिया, राधिका, वृषभानुजा।
रानी – राज्ञी, महिषी, राजपत्नी।
रावण – लंकेश, दशानन, दशकंठ, दशकंधर, लंकाधिपति, दैत्येन्द्र।
राज्यपाल – प्रान्तपति, सूबेदार, गवर्नर।
राय – मत, सलाह, सम्मति, मंत्रणा, परामर्श
रूढ़ि – प्रथा, दस्तूर, रस्म।
रक्षा – बचाव, संरक्षण, हिफ़ाजत, देखरेख।
रमा – कमला, इन्दिरा, लक्ष्मी, हरिप्रिया, समुद्रजा, चंचला, क्षीरोदतनया, पद्मा, श्री, भार्गवी।
रसना – जीभ, जबान, रसेन्द्रिय, जिह्वा, रसीका।
रविवार – इतवार, आदित्य–वार, सूर्यवार, रविवासर।
राजा – नरेन्द्र, नरेश, नृप, भूपाल, राव, भूप, महीप, नरपति, सम्राट।
रामचन्द्र – रघुवर, रघुनाथ, सीतापति, कौशल्यानन्दन, अमिताभ, राघव, रघुराज, अवधेश
रात – रैन, रजनी, निशा, विभावरी, यामिनी, तमी, तमस्विनी, शर्वरी, विभा, क्षपा, रात्रि
रिपु – बैरी, दुश्मन, विपक्षी, विरोधी, प्रतिवादी, अमित्र, शत्रु।
रोना – विलाप, रोदन, रुदन, क्रंदन, विलपन।
(ल)
लक्ष्मण – अनंत, लखन, सौमित्र।
लग्न – संलग्न, सम्बद्ध, संयुक्ता
लज्जा – शर्म, हया, लाज, व्रीडा।
लहर – लहरी, हिलोर, तरंग, उर्मि।
लालसा – तृष्णा, अभिलाषा, लिप्सा, लालच।
लगातार – सतत, निरन्तर, अजस्र, अनवरत।
लता – बेल, वल्लरी, लतिका, प्रतान, वीरुध।
लघु – थोड़ा, न्यून, हल्का, छोटा।
लक्ष्मी – श्री, कमला, रमा, पद्मा, हरिप्रिया, क्षीरोद, इन्दिरा, समुद्रजा।
(व)
वर्षा – बरसात, मेह, बारिश, पावस, चौमास।
वक्ष – सीना, छाती, वक्षस्थल, उदरस्थला
वन – अरण्य, अटवी, कानन, विपिन।
वस्त्र – परिधान, पट, चीर, वसन, कपड़ा, पोशाक, अम्बर।
विकार – विकृति, दोष, बुराई, बिगाड़!
विष – गरल, माहुर, हलाहल, कालकूट, ज़हर।
विरुद – प्रशस्ति, कीर्ति, यशोगान, गुणगान।
विविध – नाना, प्रकीर्ण, विभिन्न।
विभोर – मस्त, मुग्ध, मग्न, लीना
विप्र – भूदेव, ब्राह्मण, महीसुर, पुरोहित, पण्डित।
विभा – प्रभा, आभा, कांति, शोभा।
विशारद – पण्डित, ज्ञानी, विशेषज्ञ, सुधी।
विलास – आनन्द, भोग, सन्तुष्टि, वासना।
व्यसन – लत, वान, टेक, आसक्ति।
वृक्ष – द्रुम, पादप, तरु, विटप।
विवाद – अनबन, झगड़ा, तकरार, बखेरा।
वंक – टेढ़ा, वक्र, कुटिल।
विपरीत – उलटा, प्रतिकूल, खिलाफ़, विरुद्ध।
व्रण – घाव, फोड़ा, ज़ख्म, नासूर।
वेश्या – गणिका, वारांगना, पतुरिया, रंडी, तवायफ़
वसन्त – मधुमास, ऋतुराज, माधव, कुसुमाकर, कामसखा, मधुऋतु।
विद्या – ज्ञान, शिक्षा, गुण, इल्म, सरस्वती।
विधि – शैली, तरीका, नियम, रीति, पद्धति, प्रणाली, चाल।
विमल – स्वच्छ, निर्मल, पवित्र, पावन, विशुद्ध।
विष्णु – नारायण, केशव, गोविन्द, माधव, जनार्दन, विशम्भर, मुकुन्द, लक्ष्मीपति, कमलापति।
(श)
शपथ – कसम, प्रतिज्ञा, सौगन्ध, हलफ़, सौं।
शहद – मधु, मकरंद, पुष्परस, पुष्पासव।
शब्द – ध्वनि, नाद, आश्व, घोष, रव, मुखर।
शरण – संश्रय, आश्रय, त्राण, रक्षा।
शिष्ट – शालीन, भद्र, संभ्रान्त, सौम्य, सज्जन, सभ्य।
शेर – सिंह, नाहर, केहरि, वनराज, केशरी, मृगेन्द, शार्दूल, व्याघ्र।
शिरा – नाड़ी, धमनी, नस।
शुभ – मंगल, कल्याणकारी, शुभंकर।
शिक्षा – नसीहत, सीख, तालीम, प्रशिक्षण, उपदेश, शिक्षण, ज्ञान।
श्वेत – सफ़ेद, धवल, शुक्ल, उजला, सिता
शंकर – शिव, उमापति, शम्भू, भोलेनाथ, त्रिपुरारि, महेश, देवाधिदेव, कैलाशपति, आशुतोष
शाश्वत – सर्वकालिक, अक्षय, सनातन, नित्य।
शिकारी – आखेटक, लुब्धक, बहेलिया, अहेरी, व्याध
श्मशान – मरघट, मसान, दाहस्थल।
(ष)
षड्यंत्र – साज़िश, दुरभिसंधि, अभिसंधि, कुचक्र
(स)
सब – अखिल, सम्पूर्ण, सकल, सर्व, समस्त, समग्र, निखिल।
संकल्प – वृत, दृढ़ निश्चय, प्रतिज्ञा, प्रण।
संग्रह – संकलन, संचय, जमावा
संन्यासी – बैरागी, दंडी, विरत, परिव्राजका
सजग – सतर्क, चौकस, चौकन्ना, सावधान।
संहार – अन्त, नाश, समाप्ति, ध्वंसा
समसामयिक – समकालिक, समकालीन, समवयस्क, वर्तमान।
समीक्षा – विवेचना, मीमांसा, आलोचना, निरूपण।
समुद्र – नदीश, वारीश, रत्नाकर, उदधि, पारावार।
सखी – सहेली, सहचरी, सैरंध्री।
सज्जन – भद्र, साधु, पुंगव, सभ्य, कुलीन।
संसार – विश्व, दुनिया, जग, जगत्, इहलोक।
समाप्ति – इतिश्री, इति, अंत, समापन।
सार – रस, सत्त, निचोड़, सत्त्व।
स्तन – पयोधर, छाती, कुच, उरस, उरोज।
सुन्दरी – ललिता, सुनेत्रा, सुनयना, विलासिनी, कामिनी।
सूची – अनुक्रम, अनुक्रमणिका, तालिका, फेहरिस्त, सारणी।
स्वर्ण – सुवर्ण, सोना, कनक, हिरण्य, हेम।
स्वर्ग – सुरलोक, धुलोक, बैकुंठ, परलोक, दिव।
स्वच्छन्द – निरंकुश, स्वतन्त्र, निबंध।
स्वावलम्बन – आत्माश्रय, आत्मनिर्भरता, स्वाश्रय।
स्नेह – प्रेम, प्रीति, अनुराग, प्यार, मोहब्बत, इश्क।
समुद्र – सागर, रत्नाकर, पयोधि, नदीश, सिन्धु, जलधि, पारावार, वारीश, अर्णव, अब्धि।
सरस्वती – भारती, शारदा, वीणापाणि, गिरा, वाणी, महाश्वेता, श्री, भाष, वाक्, हंसवाहिनी, ज्ञानदायिनी।
सूर्य – सूरज, दिनकर, दिवाकर, भास्कर, रवि, नारायण, सविता, कमलबन्धु, आदित्य, प्रभाकर, मार्तण्ड।
सम्पूर्ण – पूर्ण, समग्र, सारा, पूरा, मुकम्मल।
सर्प – भुजंग, अहि, विषधर, व्याल, फणी, उरग, साँप, नाग, अहि।
सुरपुर – सुलोक, स्वर्गलोक, हरिधाम, अमरपुर, देवराज्य, स्वर्ग।
सेठ – महाजन, सूदखोर, साहूकार, ब्याजजीवी, पूँजीपति, मालदार, धनवान, धनी, ताल्लुकदार।
संध्या – निशारंभ, दिनावसान, दिनांत, सायंकाल, गोधूलि, साँझ।
स्तुति – प्रार्थना, पूजा, आराधना, अर्चना।
(ह)
हंस – मुक्तमुक, मराल, सरस्वतीवाहन।
हाँसी – स्मिति, मुस्कान, हास्य।
हित – कल्याण, भलाई, भला, उपकार।
हक – अधिकार, स्वत्व, दावा, फर्ज़, उचित पक्ष।
हिमालय – हिमगिरि, हिमाद्रि, गिरिराज, शैलेन्द्र।
हनुमान् – पवनसुत, महावीर, आंजनेय, कपीश, बजरंगी, मारुतिनन्दन, बजरंग।
हाथ – कर, हस्त, पाणि, भुजा, बाहु, भुजाना
हाथी – गज, कुंजर, वितुण्ड, मतंग, नाग, द्विरद।
हार – (i) पराजय, पराभव, शिकस्त, मात। (ii) माला, कंठहार, मोहनमाला, अंकमालिका।
हिम – तुषार, तुहिन, नीहार, बर्फी
हिरन – मृग, हरिण, कुरंग, सारंग।
होशियार – समझदार, पटु, चतुर, बुद्धिमान, विवेकशील।
हेम – स्वर्ण, सोना, कंचन।
हरि – बंदर, इन्द्र, विष्णु, चंद्र, सिंह।
(क्ष)
क्षेत्र – प्रदेश, इलाका, भू–भाग, भूखण्ड।
क्षणभंगुर – अस्थिर, अनित्य, नश्वर, क्षणिका
क्षय – तपेदिक, यक्ष्मा, राजरोग।
क्षुब्ध – व्याकुल, विकल, उद्विग्न।
क्षमता – शक्ति, सामर्थ्य, बल, ताकत।
क्षीण – दुर्बल, कमज़ोर, बलहीन, कृश
(Paryayvachi Shabd) पर्यायवाची शब्द वस्तुनिष्ठ प्रश्नावली
निर्देश (प्र.सं. 1-2) प्रश्नों में दिए गए शब्द के समानार्थक शब्द का चयन उसके नीचे दिए गए विकल्पों में से कीजिए।
प्रश्न 1.
विप्र (के.वी.एस.पी.आर.टी 2015)
(a) निर्धन
(b) धनी
(c) ब्राह्मण
(d) सैनिक
उत्तर :
(c) ब्राह्मण
प्रश्न 2.
आविर्भाव
(a) मृत्यु
(b) मोक्ष
(c) वानप्रस्थ
(d) उत्पत्ति
उत्तर :
(d) उत्पत्ति
प्रश्न 3.
निम्नलिखित में पर्यायवाची शब्द है (अन्वेषक सीधी भर्ती परीक्षा 2014)
(a) अचिर, अचर
(b) राधारमण, कंसनिकन्दन
(c) अम्बुज, अम्बुधि
(d) नीरद, नीरज
उत्तर :
(b) राधारमण, कंसनिकन्दन
प्रश्न 4.
कौन-सा विकल्प वैचारिक अन्तर के समानार्थी शब्दों का है?
(a) देखना, घूरना
(b) बेहद, असीम
(c) जल, नीर
(d) सौन्दर्य, खूबसूरती
उत्तर :
(a) देखना, घूरना
प्रश्न 5.
‘नौका’ शब्द का पर्याय बताइए।
(a) तिया
(b) तरंगिणी
(c) तरी
(d) तरणिजा
उत्तर :
(c) तरी
प्रश्न 6.
‘घर’ के लिए यह पर्यायवाची नहीं है (डी.एस.एस.एस.बी. असिस्टेंट टीचर परीक्षा 2015)
(a) गृह
(b) ग्रह
(c) आलय
(d) निलय
उत्तर :
(b) ग्रह
प्रश्न 7.
‘पवन’ का पर्यायवाची शब्द है (सहायक उपनिरीक्षक भर्ती परीक्षा 2014)
(a) मिलना
(b) पूजना
(c) समीर
(d) आदर
उत्तर :
(c) समीर
प्रश्न 8.
‘खर’ का पर्यायवाची शब्द है । (उपनिरीक्षक सीधी भर्ती परीक्षा 2014)
(a) खरगोश
(b) शशक
(c) मूर्ख
(d) गधा
उत्तर :
(d) गधा
प्रश्न 9.
अनिल पर्यायवाची है (उपनिरीक्षक सीधी भर्ती परीक्षा 2014)
(a) पवन का
(b) चक्रवात का
(c) पावस का
(d) अनल का
उत्तर :
(a) पवन का
प्रश्न 10.
‘प्रसून’ शब्द का पर्यायवाची है। (उपनिरीक्षक सीधी भर्ती परीक्षा 2014)
(a) वृक्ष
(b) पुष्प
(c) चन्द्रमा
(d) अग्नि
उत्तर :
(b) पुष्प
Ras in Hindi | रस के परिभाषा, भेद और उदाहरण – हिन्दी व्याकरण
Ras in Hindi (रास इन हिंदी) | Ras Ki Paribhasha, Bhed, Udaharan (Example) – Hindi Grammar
What is Ras In Hindi (Hindi Mein Ras)
रस : शब्द की व्युत्पत्ति एवं अर्थ संस्कृत में ‘रस’ शब्द की व्युत्पत्ति ‘रसस्यते असो इति रसाः’ के रूप में की गई है; अर्थात् जिसका आस्वादन किया जाए, वही रस है; परन्तु साहित्य में काव्य को पढ़ने, सुनने या उस पर आधारित अभिनय देखने से जो आनन्द प्राप्त होता है, उसे ‘रस’ कहते हैं।
सर्वप्रथम भरतमुनि ने अपने ‘नाट्यशास्त्र’ में रस के स्वरूप को स्पष्ट किया था। रस की निष्पत्ति के सम्बन्ध में उन्होंने लिखा है–
“विभावानुभावव्यभिचारिसंयोगाद्रसनिष्पत्तिः।” अर्थात् विभाव, अनुभाव तथा व्यभिचारी भाव के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है। इस प्रकार काव्य पढ़ने, सुनने या अभिनय देखने पर विभाव आदि के संयोग से उत्पन्न होनेवाला आनन्द ही ‘रस’ है।
काव्य में रस का वही स्थान है, जो शरीर में आत्मा का है। जिस प्रकार आत्मा के अभाव में प्राणी का अस्तित्व सम्भव नहीं है, उसी प्रकार रसहीन कथन को काव्य नहीं कहा जा सकता। इस प्रकार रस ‘काव्य की आत्मा ‘ है।
भरतमुनि द्वारा रस की परिभाषा-
रस उत्पत्ति को सबसे पहले परिभाषित करने का श्रेय भरत मुनि को जाता है। उन्होंने अपने ‘नाट्यशास्त्र’ में रास रस के आठप्रकारों का वर्णन किया है। रस की व्याख्या करते हुए भरतमुनि कहते हैं कि सब नाट्य उपकरणों द्वारा प्रस्तुत एक भावमूलक कलात्मक अनुभूति है। रस का केंद्र रंगमंच है। भाव रस नहीं, उसका आधार है किंतु भरत ने स्थायी भाव को ही रस माना है।
रस की काव्यशास्त्र के सिद्धान्त
हिन्दी-
- सिद्धान्त – प्रवर्तक
- रीतिवाद – केशवदास (रामचन्द्र शुक्ल ने चिन्तामणि कों हिन्दी में रीतिवाद का प्रवर्तक माना है।)
- स्वच्छन्दतावाद – श्रीधर पाठक
- छायावाद – जयशंकर प्रसाद
- हालावाद – हरिवंशराय बच्चन’
- मांसलवाद – रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’
- प्रयोगवाद – अज्ञेय
- कैप्सूलवाद – ओंकारनाथ त्रिपाठी
- प्रपद्यवाद (नकेनवाद) – नलिन विलोचन शर्मा, केसरी कुमार, नरेश कुमार
रस की पाश्चात्य
- सिद्धान्त – प्रवर्तक
- अनुकरण सिद्धान्त – अरस्तू
- त्रासदी तथा विरेचन सिद्धान्त – अरस्तू
- औदात्यवाद – लोंजाइनस
- सम्प्रेषण सिद्धान्त – आई.ए. रिचर्ड्स
- निर्वैयक्तिकता का सिद्धान्त – टी. एस. इलियट
- अभिव्यंजनावाद – बेनदेतो क्रोचे
- अस्तित्ववाद – सॉरेन कीर्कगार्द
- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद – कार्ल मार्क्स
- मार्क्सवाद – कार्ल मार्क्स
- मनोविश्लेषणवाद – फ्रॉयड
- विखण्डनवाद – जॉक देरिदा
- कल्पना सिद्धान्त – कॉलरिज
- स्वच्छन्दतावाद – विलियम्स वर्ड्सवर्थ
- प्रतीकवाद – जॉन मोरियस
- बिम्बवाद – टी.ई. ह्यम
रस की पाश्चात्य आलोचकों की प्रमुख पुस्तकें व उनके रचनाकार
- पुस्तक – लेखक/रचनाकार
- इओन, सिंपोसियोन, पोलितेइया, रिपब्लिक, नोमोई – प्लेटो
- तेखनेस रितोरिकेस, पेरिपोइतिकेस – अरस्तू
- पेरिइप्सुस – लोंजाइनस
- बायोग्राफिया लिटरेरिया, द फ्रेंड, एड्सटू रिफ्लेक्शन – कॉलरिज
- लिरिकल बैलेड्स – विलियम वर्ड्सवर्थ
- एस्थेटिक – बेनदेतो क्रोचे
- द सेक्रेड वुड, सेलेक्टेड एसेस, एसेस एन्शेंट एंड मॉडर्न – टी.एस. इलियट
- प्रिंसिपल ऑफ लिटरेरी क्रिटिसिज्म, कॉलरिज आन इमेजिनेशन – आई.ए. रिचर्ड्स
- ऐस्से ऑन क्रिटिसिज्म – पोप
- रिवेल्युएशंस, द कॉमन पर्स्ट – एफ. आर. लिविस
- ग्रामर ऑफ मोटिक्स – केनेथ बर्क
- क्रिटिक्स एण्ड क्रिटिसिज़्म – आर.एस. क्रेन
रस
रस सिद्धान्त भारतीय काव्य-शास्त्र का अति प्राचीन और प्रतिष्ठित सिद्धान्त है। नाट्यशास्त्र के प्रवर्तक आचार्य भरतमुनि का यह प्रसिद्ध सूत्र ‘रस-सिद्धान्त’ का मूल हैं-
विभावानुभावव्याभिचारिसंयोगाद्रसनिष्पत्तिः
अर्थात् विभाव, अनुभाव और व्यभिचारी भावों के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है। इस रस सूत्र का विवेचन सर्वप्रथम आचार्य भरत मुनि ने अपने ‘नाट्यशास्त्र’ में किया।
साहित्य को पढ़ने, सुनने या नाटकादि को देखने से जो आनन्द की अनुभूति होती है, उसे ‘रस’ कहते हैं। रस के मुख्य रुप से चार अंग माने जाते हैं, जो निम्न प्रकार हैं
1. स्थायी भाव हृदय में मूलरूप से विद्यमान रहने वाले भावों को स्थायी भाव कहते हैं। ये चिरकाल तक रहने वाले तथा रस रूप में सृजित या परिणत होते हैं। स्थायी भावों की संख्या नौ है-रति, हास, शोक, क्रोध, उत्साह, भय, जुगुप्सा, विस्मय और निवेद।
2. विभाव जो व्यक्ति वस्तु या परिस्थितियाँ स्थायी भावों को उद्दीपन या जागृत करती हैं, उन्हें विभाव कहते हैं। विभाष दो प्रकार के होते हैं-
(i) आलम्बन विभाव जिन वस्तुओं या विषयों पर आलम्बित होकर भाव उत्पन्न होते हैं, उन्हें आलम्बन विभाव कहते हैं; जैसे-नायक-नायिका।
आलम्बन के भी दो भेद हैं-
(अ) आश्रय जिस व्यक्ति के मन में रति आदि भाव उत्पन्न होते हैं, उसे आश्रय कहते हैं।
(ब) विषय जिस वस्तु या व्यक्ति के लिए आश्रय के मन में भाव उत्पन्न होते हैं, उसे विषय कहते हैं।
(ii) उद्दीपन विभाव आश्रय के मन में भावों को उद्दीप्त करने वाले विषय की बाह्य चेष्टाओं और बाह्य वातावरण को उद्दीपन विभाव. कहते हैं; जैसे-शकुन्तला को देखकर दुष्यन्त के मन में आकर्षण (रति भाव) उत्पन्न होता है। उस समय शकुन्तला की शारीरिक चेष्टाएँ तथा वन का सुरम्य, मादक और एकान्त वातावरण दुष्यन्त के मन में रति भाव को और अधिक तीव्र करता है, अतः यहाँ शकुन्तला की शारीरिक चेष्टाएँ तथा वन का एकान्त वातावरण आदि को उद्दीपन विभाव कहा जाएगा।
3. अनुभाव आलम्बन तथा उद्दीपन के द्वारा आश्रय के हृदय में स्थायी भाव जागृत या उद्दीप्त होने पर आश्रय में जो चेष्टाएँ होती हैं, उन्हें अनुभाव कहते हैं। अनुभाव चार प्रकार के माने गए हैं-कायिक, मानसिक, आहार्य और सात्विका सात्विक अनुभाव की संख्या आठ है, जो निम्न प्रकार है-
- स्तम्भ
- स्वेद
- रोमांच
- स्वर- भंग
- कम्प
- विवर्णता (रंगहीनता)
- अक्षु
- प्रलय (संज्ञाहीनता)।
4. संचारी भाव आश्रय के चित्त में उत्पन्न होने वाले अस्थिर मनोविकारों को संचारी भाव कहते हैं। इनके द्वारा स्थायी भाव और तीव्र हो जाता है। संचारी भावों की संख्या 33 है-हर्ष, विषाद, त्रास, लज्जा (व्रीड़ा), ग्लानि, चिन्ता, शंका, असूया, अमर्ष, मोह, गर्व, उत्सुकता, उग्रता, चपलता, दीनता, जड़ता, आवेग, निर्वेद, धृति, मति, विबोध, वितर्क, श्रम, आलस्य, निद्रा, स्वप्न, स्मृति, मद, उन्माद, अवहित्था, अपस्मार, व्याधि, मरण। आचार्य देव कवि ने ‘छल’ को चौतीसवाँ संचारी भाव माना है।
रस के प्रकार
आचार्य भरतमुनि ने नाटकीय महत्त्व को ध्यान में रखते हुए आठ रसों का उल्लेख किया-शृंगार, हास्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, बीभत्स एवं अद्भुत। आचार्य मम्मट और पण्डितराज जगन्नाथ ने रसों की संख्या नौ मानी है-श्रृंगार, हास, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, बीभत्स, अद्भुत और शान्त। आचार्य विश्वनाथ ने वात्सल्य को दसवाँ रस माना है तथा रूपगोस्वामी ने ‘मधुर’ नामक ग्यारहवें रस की स्थापना की, जिसे भक्ति रस के रूप में मान्यता मिली। वस्तुत: रस की संख्या नौ ही हैं, जिनका वर्णन निम्नलिखित है-
- श्रृंगार रस
- हास्य रस
- करुण रस
- वीर रस
- रौद्र रस
- भयानक रस
- बीभत्स रस
- अद्भुत रस
- शान्त रस
- वात्सल्य रस
- भक्ति रस
1. श्रृंगार रस
आचार्य भोजराज ने ‘शृंगार’ को ‘रसराज’ कहा है। शृंगार रस का आधार स्त्री-पुरुष का पारस्परिक आकर्षण है, जिसे काव्यशास्त्र में रति स्थायी भाव कहते हैं। जब विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से रति स्थायी भाव आस्वाद्य हो जाता है तो उसे श्रृंगार रस कहते हैं। शृंगार रस में सुखद और दुःखद दोनों प्रकार की अनुभूतियाँ होती हैं; इसी आधार पर इसके दो भेद किए गए हैं-संयोग शृंगार और वियोग श्रृंगार।
(i) संयोग श्रृंगार
जहाँ नायक-नायिका के संयोग या मिलन का वर्णन होता है, वहाँ संयोग शृंगार होता है। उदाहरण-
“चितवत चकित चहूँ दिसि सीता।
कहँ गए नृप किसोर मन चीता।।
लता ओर तब सखिन्ह लखाए।
श्यामल गौर किसोर सुहाए।।
थके नयन रघुपति छबि देखे।
पलकन्हि हूँ परिहरी निमेषे।।
अधिक सनेह देह भई भोरी।
सरद ससिहिं जनु चितव चकोरी।।
लोचन मग रामहिं उर आनी।
दीन्हें पलक कपाट सयानी।।”
यहाँ सीता का राम के प्रति जो प्रेम भाव है वही रति स्थायी भाव है राम और सीता आलम्बन विभाव, लतादि उद्दीपन विभाव, देखना, देह का भारी होना आदि अनुभाव तथा हर्ष, उत्सुकता आदि संचारी भाव हैं, अत: यहाँ पूर्ण संयोग शृंगार रस है।
(ii) वियोग या विप्रलम्भ श्रृंगार
जहाँ वियोग की अवस्था में नायक-नायिका के प्रेम का वर्णन होता है, वहाँ वियोग या विप्रलम्भ शृंगार होता है। उदाहरण-
“कहेउ राम वियोग तब सीता।
मो कहँ सकल भए विपरीता।।
नूतन किसलय मनहुँ कृसानू।
काल-निसा-सम निसि ससि भानू।।
कुवलय विपिन कुंत बन सरिसा।
वारिद तपत तेल जनु बरिसा।।
कहेऊ ते कछु दुःख घटि होई।
काहि कहौं यह जान न कोई।।”
यहाँ राम का सीता के प्रति जो प्रेम भाव है वह रति स्थायी भाव, राम आश्रय, सीता आलम्बन, प्राकृतिक दृश्य उद्दीपन विभाव, कम्प, पुलक और अश्रु अनुभाव तथा विषाद, ग्लानि, चिन्ता, दीनता आदि संचारी भाव हैं, अत: यहाँ वियोग शृंगार रस है।
2. हास्य रस
विकृत वेशभूषा, क्रियाकलाप, चेष्टा या वाणी देख-सुनकर मन में जो विनोदजन्य उल्लास उत्पन्न होता है, उसे हास्य रस कहते हैं। हास्य रस का स्थायी भाव हास है।
उदाहरण-
“जेहि दिसि बैठे नारद फूली।
सो दिसि तेहि न विलोकी भूली।।
पुनि पुनि मुनि उकसहिं अकुलाहीं।
देखि दसा हरिगन मुसकाहीं।।”
यहाँ स्थायी भाव हास, आलम्बन वानर रूप में नारद, आश्रय दर्शक, श्रोता उद्दीपन नारद की आंगिक चेष्टाएँ; जैसे-उकसना, अकुलाना बार-बार स्थान बदलकर बैठना अनुभाव हरिगण एवं अन्य दर्शकों की हँसी और संचारी भाव हर्ष, चपलता, उत्सुकता आदि हैं, अत: यहाँ हास्य रस है।
3. करुण रस
दुःख या शोक की संवेदना बड़ी गहरी और तीव्र होती है, यह जीवन में सहानुभूति का भाव विस्तृत कर मनुष्य को भोग भाव से धनाभाव की ओर प्रेरित करता है। करुणा से हमदर्दी, आत्मीयता और प्रेम उत्पन्न होता है जिससे व्यक्ति परोपकार की ओर उन्मुख होता है। इष्ट वस्तु की हानि, अनिष्ट वस्तु का लाभ, प्रिय का चिरवियोग, अर्थ हानि, आदि से जहाँ शोकभाव की परिपुष्टि होती है, वहाँ करुण रस होता है। करुण रस का स्थायी भाव शोक है। उदाहरण-
“सोक विकल एब रोवहिं रानी।
रूप सील बल तेज बखानी।।
करहिं विलाप अनेक प्रकारा।
परहिं भूमितल बारहिं बारा।।”
यहाँ स्थायी भाव शोक, दशरथ आलम्बन, रानियाँ आश्रय, राजा का रूप तेज बल आदि उद्दीपन रोना, विलाप करना अनुभाव और स्मृति, मोह, उद्वेग कम्प आदि संचारी भाव हैं, अत: यहाँ करुण रस है।
4. वीर रस
युद्ध अथवा किसी कठिन कार्य को करने के लिए हृदय में निहित ‘उत्साह’ स्थायी भाव के जाग्रत होने के प्रभावस्वरूप जो भाव उत्पन्न होता है, उसे वीर रस कहा जाता है।
उत्साह स्थायी भाव जब विभाव, अनुभाव और संचारी भावों में परिपुष्ट होकर आस्वाद्य हो जाता है, तब वीर रस उत्पन्न होता है। उदाहरण
“मैं सत्य कहता हूँ सखे! सुकुमार मत जानो मुझे।
यमराज से भी युद्ध में प्रस्तुत सदा जानो मुझे।।
हे सारथे! हैं द्रोण क्या? आवें स्वयं देवेन्द्र भी।
वे भी न जीतेंगे समर में आज क्या मुझसे कभी।।”
यहाँ स्थायी भाव उत्साह आश्रय अभिमन्युद्ध आलम्बन द्रोण आदि कौरव पक्ष, अनुभाव अभिमन्यु के वचन और संचारी भाव गर्व, हर्ष, उत्सुकता, कम्प मद, आवेग, उन्माद आदि हैं, अत: यहाँ वीर रस है।।
5. रौद्र रस
रौद्र रस का स्थायी भाव क्रोध है। विरोधी पक्ष द्वारा किसी व्यक्ति, देश, समाज या धर्म का अपमान या अपकार करने से उसकी प्रतिक्रिया में जो क्रोध उत्पन्न होता है, वह विभाव, अनुभाव और संचारी भावों में परिपुष्ट होकर आस्वाद्य हो जाता है और तब रौद्र रस उत्पन्न होता है। उदाहरण
“माखे लखन कुटिल भयीं भौंहें।
रद-पट फरकत नयन रिसौहैं।।
कहि न सकत रघुबीर डर, लगे वचन जनु बान।
नाइ राम-पद-कमल-जुग, बोले गिरा प्रमान।।”
यहाँ स्थायी भाव क्रोध, आश्रय लक्ष्मण, आलम्बन जनक के वचन उद्दीपन जनक के वचनों की कठोरता ,अनुभाव भौंहें तिरछी होना, होंठ फड़कना, नेत्रों का रिसौहैं होना संचारी भाव अमर्ष-उग्रता, कम्प आदि हैं, अत: यहाँ रौद्र रस है।
6. भयानक रस
भयप्रद वस्तु या घटना देखने सुनने अथवा प्रबल शत्रु के विद्रोह आदि से भय का संचार होता है। यही भय स्थायी भाव जब विभाव, अनुभाव और संचारी भावों में परिपुष्ट होकर आस्वाद्य हो जाता है तो वहाँ भयानक रस होता है। उदाहरण-
“एक ओर अजगरहि लखि, एक ओर मृगराय।
विकल बटोही बीच ही, परयों मूरछा खाय।।”
यहाँ पथिक के एक ओर अजगर और दूसरी ओर सिंह की उपस्थिति से वह भय के मारे मूर्छित हो गया है। यहाँ भय स्थायी भाव, यात्री आश्रय, अजगर और सिंह आलम्बन, अजगर और सिंह की भयावह आकृतियाँ और उनकी चेष्टाएँ उद्दीपन, यात्री को मूर्छा आना अनुभाव और आवेग, निर्वेद, दैन्य, शंका, व्याधि, त्रास, अपस्मार आदि संचारी भाव हैं, अत: यहाँ भयानक रस है।
7. बीभत्स रस
वीभत्स रस का स्थायी भाव जुगुप्सा या घृणा है। अनेक विद्वान् इसे सहृदय के अनुकूल नहीं मानते हैं, फिर भी जीवन में जुगुप्सा या घृणा उत्पन्न करने वाली परिस्थितियाँ तथा वस्तुएँ कम नहीं हैं। अत: घृणा का स्थायी भाव जब विभाव, अनुभाव और संचारी भावों से पुष्ट होकर आस्वाद्य हो जाता है तब बीभत्स रस उत्पन्न होता है। उदाहरण-
“सिर पर बैठ्यो काग आँख दोउ खात निकारत।
खींचत जीभहिं स्यार अतिहि आनन्द उर धारत।।
गीध जाँघ को खोदि खोदि के मांस उपारत।
स्वान आंगुरिन काटि-काटि कै खात विदारत।।”
यहाँ राजा हरिश्चन्द्र श्मशान घाट के दृश्य को देख रहे हैं। उनके मन में उत्पन्न जुगुप्सा या घृणा स्थायी भाव, दर्शक (हरिश्चन्द्रं) आश्रय, मुदें, मांस और श्मशान का दृश्य आलम्बन, गीध, स्यार, कुत्तों आदि का मांस नोचना और खाना उद्दीपन, दर्शक/राजा हरिश्चन्द्र का इनके बारे में सोचना अनुभाव और मोह, ग्लानि आवेग, व्याधि आदि संचारी भाव हैं, अत: यहाँ बीभत्स रस है।
8. अद्भुत रस
अलौकिक, आश्चर्यजनक दृश्य या वस्तु को देखकर सहसा विश्वास नहीं होता और मन में स्थायी भाव विस्मय उत्पन्न होता है। यही विस्मय जब विभाव, अनुभाव और संचारी भावों में पुष्ट होकर आस्वाद्य हो जाता है, तो अद्भुत रस उत्पन्न होता है। उदाहरण-
“अम्बर में कुन्तल जाल देख,
पद के नीचे पाताल देख,
मुट्ठी में तीनों काल देख,
मेरा स्वरूप विकराल देख,
सब जन्म मझी से पाते हैं,
फिर लौट मुझी में आते हैं।”
यहाँ स्थायी भाव विस्मय, ईश्वर का विराट् स्वरूप आलम्बन, विराट् के अद्भुत क्रियाकलाप उद्दीपन, आँखें फाड़कर देखना, स्तब्ध, अवाक् रह जाना अनुभाव और भ्रम, औत्सुक्य, चिन्ता, त्रास आदि संचारी भाव हैं, अत: यहाँ अद्भुत रस है।
9. शान्त रस
अभिनवगुप्त ने शान्त रस को सर्वश्रेष्ठ माना है। संसार और जीवन की नश्वरता का बोध होने से चित्त में एक प्रकार का विराग उत्पन्न होता है परिणामत: मनुष्य भौतिक तथा लौकिक वस्तुओं के प्रति उदासीन हो जाता है, इसी को निर्वेद कहते हैं। जो विभाव, अनुभाव और संचारी भावों से पुष्ट होकर शान्त रस में परिणत हो जाता है। उदाहरण-
“सुत वनितादि जानि स्वारथरत न करु नेह सबही ते।
अन्तहिं तोहि तजेंगे पामर! तू न तजै अबही ते।
अब नाथहिं अनुराग जाग जड़, त्यागु दुरदसा जीते।
बुझै न काम अगिनि ‘तुलसी’ कहुँ विषय भोग बहु घी ते।।”
यहाँ स्थायी भाव, निर्वेद आश्रय, सम्बोधित सांसारिक जन आलम्बन, सुत वनिता आदि अनुभाव, सुत वनितादि को छोड़ने को कहना संचारी भाव धृति, मति विमर्श आदि हैं, अत: यहाँ शान्त रस है। शास्त्रीय दृष्टि से नौ ही रस माने गए हैं लेकिन कुछ विद्वानों ने सूर और तुलसी की रचनाओं के आधार पर दो नए रसों को मान्यता प्रदान की है-वात्सल्य और भक्ति।
10. वात्सल्य रस
वात्सल्य रस का सम्बन्ध छोटे बालक-बालिकाओं के प्रति माता-पिता एवं सगे-सम्बन्धियों का प्रेम एवं ममता के भाव से है। हिन्दी कवियों में सूरदास ने वात्सल्य रस को पूर्ण प्रतिष्ठा दी है। तुलसीदास की विभिन्न कृतियों के बालकाण्ड में वात्सल्य रस की सुन्दर व्यंजना द्रष्टव्य है। वात्सल्य रस का स्थायी भाव वत्सलता या स्नेह है। उदाहरण-
“किलकत कान्ह घुटुरुवनि आवत।
मनिमय कनक नन्द के आँगन बिम्ब पकरिबे धावत।
कबहुँ निरखि हरि आप छाँह को कर सो पकरन चाहत।
किलकि हँसत राजत द्वै दतियाँ पुनि पुनि तिहि अवगाहत।।”
यहाँ स्थायी भाव वत्सलता या स्नेह, आलम्बन कृष्ण की बाल सुलभ चेष्टाएँ, उद्दीपन किलकना, बिम्ब को पकड़ना, अनुभाव रोमांचित होना, मुख चूमना, संचारी भाव हर्ष, गर्व, चपलता, उत्सुकता आदि हैं, अत: यहाँ वात्सल्य रस है।
11. भक्ति रस
भक्ति रस शान्त रस से भिन्न है। शान्त रस जहाँ निर्वेद या वैराग्य की ओर ले जाता है वहीं भक्ति ईश्वर विषयक रति की ओर ले जाते हैं यही इसका स्थायी भाव भी है। भक्ति रस के पाँच भेद हैं-शान्त, प्रीति, प्रेम, वत्सल और मधुर। ईश्वर के प्रति भक्ति भावना स्थायी रूप में मानव संस्कार में प्रतिष्ठित है, इस दृष्टि से भी भक्ति रस मान्य है। उदाहरण-
“मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरो न कोई।
जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई।।
साधुन संग बैठि बैठि लोक-लाज खोई।
अब तो बात फैल गई जाने सब कोई।।”
यहाँ स्थायी भाव ईश्वर विषयक रति, आलम्बन श्रीकृष्ण उद्दीपन कृष्ण लीलाएँ, सत्संग, अनुभाव-रोमांच, अश्रु, प्रलय, संचारी भाव हर्ष, गर्व, निर्वेद, औत्सुक्य आदि हैं, अत: यहाँ भक्ति रस है।
प्रश्ना1.
रस सिद्धान्त के आदि प्रवर्तक कौन हैं?
(a) भरतमुनि (b) भानुदत्त (c) विश्वनाथ (d) भामह
उत्तर :
(a) भरतमुनि
प्रश्ना 2.
आचार्य भरत ने कितने रसों का उल्लेख किया है?
(a) सात (b) आठ (c) नौ (d) दस
उत्तर :
(b) आठ
प्रश्ना 3.
काव्यशास्त्र में हास्य के कितने भेद माने गए हैं?
(a) छ: (b) सात (c) चार (d) दो
उत्तर :
(a) छ:
प्रश्ना 4.
काव्यशास्त्र के अनुसार रसों की सही संख्या है ।
(a) आठ (b) नौ (c) दस (d) ग्यारह
उत्तर :
(b) नौ
प्रश्ना 5.
संचारी भावों की संख्या है।
(a) 27 (b) 29 (c) 31 (d) 33
उत्तर :
(d) 33
प्रश्ना 6.
भक्ति रस की स्थापना किसने की?
(a) भरत ने (b) विश्वनाथ ने (c) रूपगोस्वामी ने (d) मम्मट ने
उत्तर :
(c) रूपगोस्वामी ने
प्रश्ना 7.
सात्विक अनुभाव कितने हैं?
(a) दो (b) चार (c) छ: (d) आठ
उत्तर :
(d) आठ
प्रश्ना 8.
निर्जन नटि-नटि पुनि लजियावै।
छिन रिसाई छिन सैन बुलावे।।
इस चौपाई में कौन-सा रस है?
(a) संयोग शृंगार (b) वियोग शृंगार (c) करुण रस (d) अद्भुत रस
उत्तर :
(a) संयोग शृंगार
प्रश्ना 9.
आचार्य भरत ने सर्वाधिक सुखात्मक रस किसे माना है?
(a) शृंगार रस (b) हास्य रस (c) वीर रस (d) शान्त रस
उत्तर :
(b) हास्य रस
प्रश्ना 10.
आलम्बन तथा उद्दीपन द्वारा आश्रय के हृदय में स्थायी भाव जागृत होने पर आश्रय में जो चेष्टाएँ होती हैं, उन्हें क्या कहते हैं?
(a) विभाव (b) अनुभाव (c) उद्दीपन (d) संचारी भाव
उत्तर :
(b) अनुभाव
Karak in Hindi | कारक परिभाषा, भेद और उदाहरण – हिन्दी व्याकरण
कारक क्या होता है? What is the Karak
परिभाषा, चिह्न, प्रकार, परसगों का प्रयोग, संज्ञा एवं सर्वनामों पर कारक का प्रभाव–अभ्यास
“जो क्रिया की उत्पत्ति में सहायक हो या जो किसी शब्द का क्रिया से संबंध बताए वह ‘कारक’ है।”
जैसे–माइकल जैक्सन ने पॉप संगीत को काफी ऊँचाई पर पहुँचाया।
यहाँ ‘पहुँचाना’ क्रिया का अन्य पदों माइकल जैक्सन, पॉप संगीत, ऊँचाई आदि से संबंध है। वाक्य में ‘ने’, ‘को’ और ‘पर’ का भी प्रयोग हुआ है। इसे कारक–चिह्न या परसर्ग या विभक्ति–चिह्न कहते हैं। यानी वाक्य में कारकीय संबंधों को बतानेवाले चिह्नों को कारक–चिह्न अथवा परसर्ग कहते हैं। हिन्दी में कहीं–कहीं कारकीय चिह्न लुप्त रहते हैं।
जैसे–
घोड़ा दौड़ रहा था।
वह पुस्तक पढ़ता है।
आदि। यहाँ ‘घोड़े’ ‘वह’ और ‘पुस्तक’ के साथ कारक–चिह्न नहीं है। ऐसे स्थलों पर शून्य चिह्न माना जाता है। यदि ऐसा लिखा जाय : घोड़ा ने दौड़ रहा था।
उसने (वह + ने) पुस्तक को पढ़ता है।
तो वाक्य अशुद्ध हो जाएँगे; क्योंकि प्रथम वाक्य की क्रिया अपूर्ण भूत की है। अपूर्णभूत में ‘कर्ता’ के साथ ने चिह्न वर्जित है। दूसरे वाक्य में क्रिया वर्तमान काल की है। इसमें भी कर्ता के साथ ने चिह्न नहीं आएगा। अब यदि ‘वह पुस्तक को पढ़ता है’ और ‘वह पुस्तक पढ़ता है’ में तुलना करें तो स्पष्टतया लगता है कि प्रथम वाक्य में ‘को’ का प्रयोग अतिरिक्त या निरर्थक हैं; क्योंकि वगैर ‘को’ के भी वाक्य वही अर्थ देता है। हाँ, कहीं–कहीं ‘को’ के प्रयोग करने से अर्थ बदल जाया करता है।
जैसे–
वह कुत्ता मारता है : जान से मारना
वह कुत्ते को मारता है : पीटना
- कर्ता कारक
- कर्म कारक
- करण कारक
- सम्प्रदान कारक
- संबंध कारक
- अधिकरण कारक
- संबोधन कारक
हिन्दी भाषा में कारकों की कुल संख्या आठ मानी गई है, जो निम्नलिखित हैं–
कारक – परसर्ग/विभक्ति
1. कर्ता कारक – शून्य, ने (को, से, द्वारा)
2. कर्म कारक – शून्य, को
3. करण कारक – से, द्वारा (साधन या माध्यम)
4. सम्प्रदान कारक – को, के लिए
5. अपादान कारक – से (अलग होने का बोध)
6. संबंध कारक – का–के–की, ना–ने–नी; रा–रे–री
7. अधिकरण कारक – में, पर
8. संबोधन कारक – हे, हो, अरे, अजी…….
कर्ता कारक
“जो क्रिया का सम्पादन करे, ‘कर्ता कारक’ कहलाता है।” अर्थात् कर्ता कारक क्रिया (काम) करता है। जैसे–
आतंकवादियों ने पूरे विश्व में आतंक मचा रखा है।
इस वाक्य में ‘आतंक मचाना’ क्रिया है, जिसका सम्पादक ‘आतंकवादी’ है यानी कर्ता कारक ‘आतंकवादी’ है।
कर्ता कारक का परसर्ग ‘शून्य’ और ‘ने’ है। जहाँ ‘ने’ चिह्न लुप्त रहता है, वहाँ कर्ता का शून्य चिह्न माना जाता है।
जैसे–
पेड़–पौधे हमें ऑक्सीजन देते हैं।
यहाँ पेड़–पौधे में ‘शून्य चिह्न’ है।
कर्ता कारक में ‘शून्य’ और ‘ने’ के अलावा ‘को’ और से/द्वारा चिह्न भी लगया जाता है।
जैसे–
उनको पढ़ना चाहिए।
उनसे पढ़ा जाता है।
उनके द्वारा पढ़ा जाता है।
कर्ता के ‘ने’ चिह्न का प्रयोग :
सकर्मक क्रिया रहने पर सामान्य भूत, आसन्न भूत, पूर्णभूत, संदिग्ध भूत एवं हेतुहेतुमद् भूत में कर्ता के आगे ‘ने’ चिह्न आता है। जैसे–
- मैंने तो आपको कभी गैर नहीं माना। (सामान्य भूत)
- मैंने तो आपको कभी गैर नहीं माना है। (आ० भूत)
- मैंने तो आपको कभी गैर नहीं माना था। (पूर्ण भूत)
- मैंने तो आपको कभी गैर नहीं माना होगा। (सं०भूत)
- मैंने तो आपको कभी गैर नहीं माना होता। (हेतु… भूत)
नीचे लिखे वाक्यों के कर्ता कारकों में ‘ने’ चिह्न लगाकर वाक्यों का पुनर्गठन करें :
1. मैं उसे इशारा किया; मगर वह बोलता ही चला गया।
2. मैं उसे एकबार पढ़ना शुरू किया तो पढ़ता ही गया।
3. वह कहा था कि उसने चोरी नहीं की है।
4. वह देखा कि परा पल बाढ में डबा है।
5. आँधी अपना विकराल रूप धारण किया।
6. दुश्मन के सैनिक देखा और गोलियाँ बरसाने लगा।
7. मैं तो आपको तभी बताया था। 8. तुम इससे कुछ अलग सोचा।।
9. जिस समय आप आवाज़ दी, मैं तैयार हो चुका था।
10. सच–सच बताओ, तुम उसे किस बात पर पीटे?
11. पहले वह मुझे गाली दिया फिर मैं।
12. मैं उसे बार–बार समझाया।
13. यह फिल्म में कई बार देखी है।
14. पाकिस्तान विश्वकप जीता।
15. इस नौकरी से पहले वह तीन नौकरियाँ छोड़ा है।
16. गार्ड हरी झंडी दिखाया और गाड़ी चल पड़ी।
17. वह जाने से पहले भोजन किया था।
18. आप मुझसे पूछे ही नहीं इसलिए मैं नहीं बताया।
19. रोगी पानी माँगा, मगर नर्स अनसुनी कर दी।
20. उस दिन पिताजी मुझसे पूछे ही नहीं।
‘भूलना’ क्रिया के कर्ता के साथ ‘ने’ चिह्न का प्रयोग नहीं होता। जैसे–
वह तो भूले थे हमें, हम भी उन्हें भूल गए।
आप अपना संकल्प न भूले होंगे।
‘लाना’ क्रिया भी अपने साथ कर्ता के ‘ने’ चिह्न का निषेध करती है। लाना–’ले’ और ‘आना’ के संयोग से बनी है। पहले इसका रूप ‘ल्याना’ था, बाद में ‘लाना’ हो गया। चूँकि इसका अंतिम खंड अकर्मक है, इसलिए इसका प्रयोग होने पर कर्ता कारक में ‘ने’ चिह्न नहीं आता है। जैसे–
पिताजी बच्चों के लिए मिठाई लाए।
श्यामू पीछे हो लिया।
बोलना, समझना, बकना, जनना (जन्म देना), सोचना और पुकारना क्रियाओं के कर्ता के साथ ‘ने’ चिह्न विकल्प से आता है।
जैसे–
- महाराज बोले। – (प्रेमसागर)
- वह झूठ बोला। – (पं० अम्बिका प्र० बाजपेयी)
- रामचन्द्रजी ने झूठ नहीं बोला। – (पं० रामजी लाल शर्मा)
- उन्होंने कभी झूठ नहीं बोला। – (बाल–विनोद)
- उसने कई बोलियाँ बोलीं। – (पं० अ० प्र० बाजपेयी)
- हम तुम्हारी बात नहीं समझे।
- मैंने आपकी बात नहीं समझी।
- हम न समझे कि यह आना है या जाना तेरा। – (भट्ट जी)
- तुम बहुत बके। तुमने बहुत बका। – (पं० अंबिकादत्त)
- भैंस पाड़ा जनी है। भैंस ने पाड़ा जना। – (पं० अंबिकादत्त)
- बकरी तीन बच्चे जनी। – (पं० केशवराम भट्ट)
- चित्रांगदा ने तुझे जना। – (लाला भगवान दीन)
- आमंत्रित कर सूर्यदेव को मैंने मन में, मंत्रशक्ति से तुझे जना था पिता–भवन में। – (मैथिलीशरण गुप्त)
- उसने यह बात सोची।। वह यह बात सोचा।। – (पं० केशवराम भट्ट)
- पूतना पुकारी। चोबदार पुकारा–करीम खाँ निगाह रू–ब–रू – (राजा शिवप्रसाद)
- सत्पुरुषों ने जिसको बारंबार पुकारा, अच्छा है।
- जिसने गली में तुमको पुकारा। – (पं० केशवराम भट्ट)
नोट : पं० केशवराम भट्ट ने स्पष्ट कहा है कि कर्म लुप्त रहने पर ‘ने’ भी लुप्त रहता है, नहीं तो नहीं। बात ऐसी है कि हमारे विद्वानों और साहित्यकारों ने कर्म रहने पर भी कहीं तो कर्ता के साथ ‘ने’ का प्रयोग किया है कहीं नहीं किया।
सजातीय कर्म लेने के कारण जो अकर्मक क्रिया सकर्मक हो जाती है, उसके कर्ता के साथ ‘ने’ चिह्न नहीं आता; किन्तु कोई–कोई ऐसी कुछ क्रियाओं के साथ भूतकाल के अपूर्णभूत को छोड़ अन्य भेदों में लाते भी हैं। जैसे–
सिपाही कई लड़ाइयाँ लड़ा।
वह शेर की बैठक बैठा। – (पं० कामता प्र० गुरु)
मैं क्रिकेट खेला। – (पं० अ० दत्त व्यास)
उसने टेढ़ी चाल चली। मैंने बड़े खेल खेले। – (पं० अंबिका प्र० बाजपेयी)
उसने चौपड़ खेली। नहाना, थूकना, छींकना और खाँसना : ये अकर्मक क्रियाएँ हैं फिर भी अपने साथ कर्ता को ‘ने’ चिह्न लाने के लिए बाध्य करती हैं। यानी इन क्रियाओं के प्रयोग होने पर भूतकाल के उक्त भेदों में कर्ता के साथ ‘ने’ चिह्न का प्रयोग अवश्यमेव होता है। जैसे–
- मैंने सर्दी के कारण छींका है।
- आज आपने नहाया क्यों नहीं?
- दादाजी ने जोर से खाँसा था,
- तभी तो मम्मी अंदर चली गई।
- यह जहाँ–तहाँ किसने थूका है?
उक्त चारों अकर्मक क्रियाओं के अलावा अन्य किसी अकर्मक क्रिया के रहने पर कर्ता के साथ ‘ने’ चिह्न कभी नहीं आता।
जैसे–
वह अभी–अभी आया है।
मैं वहाँ कई बार गया हूँ।
बच्चा अभी तो सोया था।
संयुक्त क्रिया के सभी खंड सकर्मक रहने की स्थिति में भूतकाल के उक्त भेदों में कर्ता के साथ ‘ने’ चिह्न का प्रयोग होता है। जैसे–
सालिम अली ने पक्षियों को देख लिया था।
मैंने इस प्रश्न का उत्तर दे दिया है।
परन्तु, नित्यताबोधक सकर्मक संयुक्त क्रिया का कर्ता ‘ने’ चिह्न कभी नहीं लाता है।
जैसे–
वे बार–बार गिना किये, हाथ कुछ न लगा। (भारतेन्दु)
वह चित्र–सी चुपचाप खड़ी सुना की। (पं० अ० व्यास)
इस दृश्य को पाण्डव सामने बैठे देखा किए (बाल भारत)
हजरत भी कल कहेंगे कि हम क्या किए। (पं० केशवराम भट्ट)
यदि संयुक्त अकर्मक क्रिया का अंतिम खण्ड ‘डालना’ हो तो उक्त भूतकालों में कर्ता के साथ ‘ने’ चिह्न अवश्य आता है? किन्तु यदि अंतिम खंड ‘देना’ हो तो ‘ने’ चिह्न विकल्प से आता है।
जैसे–
उसने रातभर जाग डाला। – (पं० अ० दत्त व्यास)
जब मानसिंह चढ़ आए तब पठानों की सेना चल दी। – (पं० केशवराम भट्ट)
श्रीकृष्ण मथुरा चल दिए। – (प्रेम सागर)
मैं अपना–सा मुँह लेकर चल दिया। – (विद्यार्थी)
मुस्करा देना, हँस देना, रो देना : इन क्रियाओं के कर्ता ‘ने’ चिह्न निश्चित रूप से लाते हैं। जैसे–
मोहन ने नारद को देखकर मुस्करा दिया।
आकर के मेरी कब्र पर तुमने जो मुस्करा दिया।
बिजली छिटक के गिर पड़ी और सारा कफन जला दिया। – (हबीब पेंटर)
मुकद्दर ने रो दिया हाथ मलकर।। – (पं० केशवराम भट्ट)
संकेत में संयुक्त क्रिया के अन्त में ‘होना’ का हेतुहेतुमद्भूत रूप ‘ने’ चिह्न के साथ भी प्रयुक्त होता है। जैसे
यदि संजीव ने पढ़ा होता तो अवश्य सफल होता।
यदि भाई जी आए थे तो आपने रोक लिया होता।
प्रेरणार्थक रूप बन जाने पर सभी क्रियाएँ सकर्मक हो जाती हैं और सभी प्रेरणार्थक क्रियाओं के रहने पर सामान्य, आसन्न, पूर्ण, संदिग्ध आदि भूतकालों में कर्ता के साथ ‘ने’ चिह्न आता है।
जैसे–
राजू श्रीवास्तव ने सबों को हँसाया।
माँ ने पत्र भिजवाया है।
पुत्र ने प्रणाम कहलवाया है।
अच्छे अंकों ने राहुल को सम्मान दिलाया।
कठिन मेहनत ने हर्ष को डॉक्टर बनाया था।
वर्तमान एवं भविष्यत् कालों में कर्ता के साथ ‘ने’ चिह्न कभी नहीं आता। जैसेमैं भी वह उपन्यास पढूँगा।
तुम वह नाटक–संग्रह पढ़ते होगे। सालिम अली पक्षियों को पक्षी की निगाह से देखते हैं। अपूर्ण भूतकाल की क्रिया रहने पर कर्ता के साथ ‘ने’ चिह्न कभी नहीं आता है। जैसे
वह तरुमित्रा का प्रतिनिधित्व कर रहा था।
जब मि० ग्लााड चलते थे, तब पेड़े–पौधे तक सहम जाते थे।
पूरी लंका जल रही थी और विभीषण भजन कर रहे थे।
‘चुकना’ क्रिया रहने पर भूतकाल में भी कर्ता के साथ ‘ने’ चिह्न का प्रयोग नहीं होता है।
जैसे–
मैं भात खा चुका/हूँ/था/ होता। वह देख चुका था।
सलोनी यह संग्रह पढ़ चुकी होगी
क्रिया पर कर्ता के चिहनों का प्रभाव :
1. चिह्न–रहित (‘ने’ चिह्न–रहित) कर्ता की क्रिया का रूप कर्ता के लिंग–वचन के अनुसार – होता है।
जैसे–
उड़ान भरता एक वायुयान नीचे गिर गया था।
आज भी सुपुत्र माता–पिता की सेवा को अपना कर्तव्य मानते हैं।
वह अपने कैरियर के प्रति बेहद चिंतित है।
उक्त उदाहरणों में हम देख रहे हैं कि कर्ता का शून्य चिह्न है यानी उसके साथ ‘ने’ नहीं है और कर्म के रहने पर भी क्रिया कर्त्तानुसार ही हुई है।
2. यदि वाक्य में एक ही लिंग–वचन के कई चिह्न–रहित कर्ता ‘और’, ‘तथा’, एवं, ‘व’ – आदि से जुड़े हों तो क्रिया उसी लिंग में बहुवचन हो जाती है। यानी
कई कर्ता (‘ने’ रहित एक ही लिंग) + क्रिया बहुवचन (समान लिंग)
जैसे–
आरती, शालू और मेघा अष्टम वर्ग में पढ़ती हैं।
शरद्, अंकेश और अभिनव नवम वर्ग में पढ़ते हैं।
3. यदि वाक्य में दोनों लिंगों और वचनों के अनेक चिह्न–रहित कर्ता हों तो क्रिया बहुवचन के सिवा लिंग में अंतिम कर्ता के अनुसार होगी। जैसे–
एक घोड़ा, दो गदहे और बहुत–सी बकरियाँ मैदान में चर रही हैं।
एक बकरी, दो गदहे और चार घोड़े मैदान में चरते हैं।
4. यदि अंतिम कर्ता एकवचन हो तो क्रिया एकवचन और बहुवचन दोनों होती है।
जैसे–
तुम्हारी बकरियाँ, उसकी घोड़ी और मेरा बैल उस खेत में चरता हैचरते हैं। – (पं० अंबिकादत्त व्यास)
5. यदि चिह्न–रहित अनेक कर्त्ता परस्पर किसी विभाजक (या, अथवा, वा आदि) से जुड़े हों तो क्रिया अंतिम कर्ता के लिंग–वचन के अनुसार होती है।
जैसे–
मेरी बेटी या उसका बेटा पर्यावरण को महत्त्व नहीं देता।
स्थिति ऐसी है कि मोनू की गाय या मेरा बैल बिकेगा।
6. यदि चिन–रहित अनेक कर्ताओं और क्रियाओं के बीच में कोई समुदायवाचक शब्द आए तो क्रिया, लिंग और वचन में समुदायवाचक शब्द के अनुसार होगी।
जैसे–
अमरीका–तालिबान की लड़ाई में बच्चे, बूढ़े, जबान, औरतें सबके सब प्रभावित हुए।
7. आदर के लिए एकवचन कर्ता के साथ बहुवचन क्रिया का प्रयोग होता है, यदि कर्ता चिह्न–रहित हो तो जैसे–
पिताजी आनेवाले हैं। दादाजी रोज सुबह टहलने जाते हैं।
दादीजी चश्मा पहनकर बहुत सुन्दर लगती हैं।
8. यदि चिह्न–रहित अनेक कर्ताओं से बहुवचन का अर्थ निकले तो क्रिया बहुवचन और यदि एकवचन का अर्थ निकले तो क्रिया एकवचन होती है; चाहे कर्ताओं के आगे समूहवाचक शब्द हों अथवा नहीं हों।
जैसे–
2007 की बाढ़ के कारण खेती–बाड़ी घर–द्वार, धन–दौलत मेरा सब चला गया।
शिक्षक की प्रेरक बातें सुन मेरा उत्साह, धैर्य और आनंद बढ़ता चला गया।
9. जब कोई स्त्री या पुरुष अपने परिवार की ओर से या किसी समुदाय की ओर से जिसमें स्त्री–पुरुष दोनों हों, कुछ कहता है तब वह स्त्री हो या पुरुष (कहनेवाला) अपने लिए पुँ० बहुवचन क्रिया का प्रयोग करता है।
जैसे–
ब्राह्मणी ने कुंती से कहा, “न जाने हम बकासुर के अत्याचार से कब और कैसे छुटकारा पाएँगे?”
10. चिहन–रहित मुख्य कर्ता के अनुसार क्रिया होती है, विधेय के अनुसार नहीं।
जैसे–
लड़की बीमारी के कारण सूखकर काठ हो गई।
वह लड़का आजकल लड़की बना हुआ है।
यह भाग्य का ही फेरा है कि अर्जुन विराट नगर में बृहन्नला बन गया
औरतें भी आदमी कहलाती हैं, जनाब!
11. यदि कर्ता चिन–युक्त हो (‘ने’ से जुड़ा) और वाक्य कर्म–रहित तो क्रिया पुं० एकवचन होती है। जैसे–
मेरी माँ ने कहा था।
पिताजी ने देखा था।
शिक्षकों ने पढ़ाया होगा।
कवि ने कहा है।
किसी विद्वान् ने सच ही कहा है कि…
निम्नलिखित वाक्यों के खाली स्थानों में व्यक्तिवाचक या अन्य संज्ञाओं का प्रयोग करते हुए वाक्य पूरे करें :
1. ……….. ने ………. को पहले ही समझाया था, लेकिन ………. ने मेरी बात मानी ही नहीं।
2. ये सब बातें ……… ने ही बतायी थीं।
3. ……. ने ………. से क्या कहा था?
4. वे लोग शिकायत कर रहे थे ……… ने जरूर गाली दी होगी।
5. ………. ने जो भी कहा है पुत्र के भले के लिए ही कहा।
6. ……………. ने स्पष्ट कह दिया था कि अब मरीज को यहाँ आने की आवश्यकता नहीं है।
7. ……………. ने तय कर लिया था कि उसपर मुकदमा चलना ही चाहिए।
8. ……………. ने चोर को मकान में घुसते देखा और सीटी बजाने लगा।
9. ……………. ने जिस काम के लिए आरुणि से कहा था उसने वह काम कर दिखाया।
10. ……………. ने अपना अज्ञातवास भी बखूबी पूरा किया।
11. ……………. ने गीता में सच ही कहा है कि हमें निरंतर अपना काम करते रहना चाहिए।
12. ……………. ने ऐसी सजा सुनाई कि सभी ताली बजाने लगे।
13. क्या ……….. ने तेरे साथ ऐसा दुर्व्यवहार किया है? उसपर केस कर बता देना चाहिए कि दहेज लेना और देना दोनों गैरकानूनी हैं।
14. इसका अर्थ यह हुआ कि …..’ने अपनी पत्नी पर चरित्रहीनता का झूठा आरोप लगाया है।
15. ……… ने कहा, “बेटा ! कोई ऐसा काम मत कर कि दुनिया तुम पर थू–थू करे।’
16. एक ……..’ ने ही मित्र को धोखा दिया है।
17. ……… ने इस बारे में क्या बताया था? और तूने परीक्षा में क्या कर दिखाया। छिः! लानत है तुमको।
18. ………. ने प्रश्न किया कि पेड़–पौधे के बारे में तुम्हारा क्या विचार है?
19. ……….. ने कई फतिंगे एक साथ पकड़े।
20. ……. ने ठीक ही कहा था कि जो डर गया वह मर गया।।
कर्म कारक
“जिस पर क्रिया (काम) का फल पड़े, ‘कर्म कारक’ कहलाता है।”
जैसे–तालिबानियों ने पाकिस्तान को रौंद डाला।
सुन्दर लाल बहुगुना ने ‘चिपको आन्दोलन’ चलाया।
इन दोनों वाक्यों में ‘पाकिस्तान’ और ‘चिपको आन्दोलन’ कर्म हैं; क्योंकि ‘रौंद डालना’ और ‘चलाना’ क्रिया से प्रभावित हैं।
कर्म कारक का चिह्न ‘को’ है; परन्तु जहाँ ‘को’ चिह्न नहीं रहता है, वहाँ कर्म का शून्य चिह्न माना जाता है। जैसे
वह रोटी खाता है।
भालू नाच दिखाता है।
इन वाक्यों में ‘रोटी’ और ‘नाच’ दोनों के चिह्न–रहित कर्म हैं–
कभी–कभी वाक्यों में दो–दो कर्मों का प्रयोग भी देखा जाता है, जिनमें एक मुख्य कर्म और दूसरा गौण कर्म होता है। प्रायः वस्तुबोधक को मुख्य कर्म और प्राणिबोधक को गौण कर्म माना जाता है।
जैसे–
क्रिया पर कर्म का प्रभाव :
1. यदि वाक्य में कर्म चिह्न–रहित (शून्य) रहे और कर्त्ता में ‘ने’ लगा हो तो क्रिया कर्म के लिंग–वचन के अनुसार होती है।
जैसे–
कवि ने कविता सुनाई।
माँ ने रोटी खिलाई।
मैंने एक सपना देखा।
तिलक ने महान् भारत का सपना देखा था।
गुलाम अली ने एक अच्छी ग़ज़ल सुनाई थी।
बन्दर ने कई केले खाए हैं।
बच्चों ने चार खिलौने खरीदे होंगे।
2. यदि वाक्य में कर्ता और कर्म दोनों चिह्न–युक्त हों तो क्रिया सदैव पुं० एकवचन होती है।
जैसे–
स्त्रियों ने पुरुषों को देखा था।
चरवाहों ने गायों को चराया होगा।
शिक्षक ने छात्राओं को पढ़ाया है।
गाँधी जी ने सत्य और अहिंसा को महत्त्व दिया है।
3. क्रिया की अनिवार्यता प्रकट करने के लिए कर्ता में ‘ने’ की जगह ‘को’ लगाया जाता है और क्रिया कर्म के लिंग–वचन के अनुसार होती है।
जैसे–
उस माँ को बच्चा पालना ही होगा।
अंशु को एम. ए. करना ही होगा।
नूतन को पुस्तकें खरीदनी होंगी।
4. अशक्ति प्रकट करने के लिए कर्त्ता में ‘से’ चिह्न लगाया जाता है और कर्म को चिह्नरहित। ऐसी स्थिति में क्रिया कर्म के लिंग–वचन के अनुसार ही होती है।
जैसे–
रामानुज से पुस्तक पढ़ी नहीं जाती।
उससे रोटी खायी नहीं जाती है।
शीला से भात खाया नहीं जाता था।
5. यदि कर्ता चिह्न–युक्त हो, पहला कर्म भी चिह्न–युक्त हो और दूसरा कर्म चिह्न–रहित रहे तो क्रिया दूसरे कर्म (मुख्य कर्म) के अनुसार होती है।
जैसे–
माता ने पुत्री को विदाई के समय बहुत धन दिया।
पिता ने पुत्री को पुत्र को बधाई दी।
निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध करें :
- माँ ने बच्चे को जगाई और कही कि नहा–धोकर स्कूल के लिए तैयार हो जाओ ताकि समय .. पर स्कूल पहुँच सको और अपने पढ़ाई में लग जाओ।
- पिताजी ने मुस्कराते हुए कहे कि सपूत को ऐसा ही होना चाहिए, जो सदैव इस बात के लिए चिंतित रहे कि उसके द्वारा ऐसा कोई कार्य न होने पाए जिससे पिता को सिर नीचे करना पड़े।
- कवयित्री ने कविता पाठ करते हुए कही
“हम ज्यों–ज्यों बढ़ते जाते हैं;
त्यों–त्यों ही घटते जाते हैं।’ - सोनपुर में पशु–मेला लगा था। एक किसान ने अपने छोटी बहन से कही कि मुझे दो बैल खरीदना है; तुम मेरे लिए रोटियाँ बना दो और पप्पू से कहो कि वह भी हमारे साथ चले।
- सरकार ने घोषणा किया कि हम अगली पंचवर्षीय योजना में शिक्षा और कृषि को बहुत अधिक महत्त्व देंगे। कौआ की आँख तेज होती है तभी तो वह पलक झपकते बच्चा के हाथ से रोटी का टुकड़ा ले भागता है।
- प्रवर ने तो रोटियाँ खायी, तुमने क्या खायी है?।
- एक मित्र ने अपने अन्य मित्र को बधाई दिया और कहा कि आपका बेटा परीक्षा पास किया है; मिठाई खिलाइए।
- जो लोग अंधा होता है, उसे भ्रष्टाचार नहीं दिखता
- गोरा चमड़ीवाले को काला पोशाक बहुत फबता है।
करण कारक
“वाक्य में जिस साधन या माध्यम से क्रिया का सम्पादन होता है, उसे ही ‘करण–कारक’ कहते हैं।”
अर्थात् करण कारक साधन का काम करता है। इसका चिह्न ‘से’ है, कहीं–कहीं ‘द्वारा’ का प्रयोग भी किया जाता है।
जैसे–
चाहो, तो इस कलम से पूरी कहानी लिख लो।
पुलिस तमाशा देखती रही और अपहर्ता बलेरो से लड़की को ले भागा।
छात्रों को पत्र के द्वारा परीक्षा की सूचना मिली।
उपर्युक्त उदाहरणों में कलम, बलेरो और पत्र करण कारक हैं।
कभी–कभी वाक्य में करण का चिह्न लुप्त भी रहता है, वहाँ भ्रमित नहीं होना चाहिए, सीघे क्रिया के साधन खोजने चाहिए; जैसे–किससे या किसके द्वारा काम हुआ अथवा होता है? उदाहरण–
मैं आपको आँखों देखी खबर सुना रहा हूँ। किससे देखी? आँखों से (करण)
आज भी संसार में करोड़ों लोग भूखों मर रहे हैं। (भूखों–करण कारक)
करीम मियाँ ने दो दो जवान बेटों को अपने हाथों दफनाया। (हाथों करण कारण)
प्रेरक कर्ता कारक में भी करण का ‘से’ चिह्न देखा जाता है। जैसे–
यदि शत्रुओं से तेरा नाम न जपवाऊँ तो मैं विष्णुगुप्त चाणक्य नहीं।
अहमदाबाद जाते हो तो मेरा प्रस्ताव लोगों से मनवा के छोड़ना।
क्रिया की रीति या प्रकार बताने के लिए भी ‘से’ चिह्न का प्रयोग किया जाता है। जैसे–
धीरे से बोलो, दीवार के भी कान होते हैं।
जहाँ भी रहो, खुशी से रहो, यही मेरा आशीर्वाद है।
सम्प्रदान कारक
“कर्ता कारक जिसके लिए या जिस उद्देश्य के लिए क्रिया का सम्पादन करता है, वह ‘सम्प्रदान कारक’ होता है।”
जैसे–
मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने बाढ़–पीड़ितों के लिए अनाज और कपड़े बँटवाए।
इस वाक्य में ‘बाढ़–पीड़ित’ सम्प्रदान कारक है; क्योंकि अनाज और कपड़े बँटवाने का काम उनके लिए ही हुआ।
सम्प्रदान कारक का चिह्न ‘को’ भी है; लेकिन यह कर्म के ‘को’ की तरह नहीं ‘के लिए’ का बोध कराता है। जैसे–
गृहिणी ने गरीबों को कपड़े दिए। माँ ने बच्चे को मिठाइयाँ दीं।
इन उदाहरणों में गरीबों को ……… गरीबों के लिए और बच्चे को ……… बच्चे के लिए की ओर संकेत है।
प्रथम उदाहरण में एक और बात है ……. जब कोई वस्तु किसी को हमेशा–हमेशा के लिए (दान आदि अर्थ में) दी जाती है तब वहाँ ‘को’ का प्रयोग होता है जो ‘के लिए’ का बोध कराता है। प्रथम उदाहरण में गरीबों को कपड़े दान में दिए गए हैं। इसलिए ‘गरीब’ सम्प्रदान कारक का उदाहरण हुआ।
यदि ‘गरीबों’ की जगह ‘धोबी’ का प्रयोग किया जाय तो वहाँ ‘को’, ‘के लिए’ का बोधक नहीं होगा। नमस्कार आदि के लिए भी सम्प्रदान कारक का चिह्न ही लगाया जाता है।
जैसे–
पिताजी को प्रणाम। (पिताजी के लिए प्रणाम)
दादाजी को नमस्कार ! (दादाजी के लिए नमस्कार)
‘को’ और ‘के लिए’ के अतिरिक्त ‘के वास्ते’ और ‘के निमित्त’ का भी प्रयोग होता है।
जैसे–
रावण के वास्ते ही रामावतार हुआ था। यह चावल पूजा के निमित्त है।
‘को’ का विभिन्न रूपों में प्रयोग और भ्रम :
नीचे लिखे वाक्यों पर गौर करें
यह कविता कई भावों को प्रकट करती है।
फल को खूब पका हुआ होना चाहिए।
वे कवियों पर लगे हुए कलंक को धो डालें।
लोग नहीं चाहते थे कि वे यातनाओं को झेलें।
अब इन वाक्यों को देखें
यह कविता कई भाव प्रकट करती है।
फल खूब पका हुआ होना चाहिए।
इसी तरह उपर्युक्त वाक्यों से ‘को’ हटाकर उन्हें पढ़ें और दोनों में तुलना करें। आप पाएँगे कि ‘को’ रहित वाक्य ज्यादा सुन्दर हैं; क्योंकि इन वाक्यों में ‘को’ का अनावश्यक प्रयोग हुआ है।
कुछ वाक्यों में ‘को’ के प्रयोग से या तो अर्थ ही बदल जाता है या फिर वह बहुत ही भ्रामक हो जाता है। नीचे लिखे वाक्यों को देखें
प्रकृति ने रात्रि को विश्राम के लिए बनाया है।
भ्रामक भाव– (प्रकृति ने रात्रि इसलिए बनाई है कि वह विश्राम करे)
प्रकृति ने रात्रि विश्राम के लिए बनाई है।
सामान्य भाव–(प्रकृति ने रात्रि जीव–जन्तुओं के विश्राम के लिए बनाई है)
कुछ लोग ‘पर’, ‘से’, ‘के लिए’ और ‘के हाथ’ के स्थान पर भी ‘को’ का प्रयोग कर बैठते हैं।
नीचे लिखे वाक्यों में ‘को’ की जगह उपर्युक्त चिह्न लगाएँ–
1. वह इस व्याकरण की असलियत हिन्दी जगत् को प्रकट कर दे।
2. वह प्रत्येक प्रश्न को वैज्ञानिक ढंग पर विश्लेषण करने का पक्षपाती था।
3. इनको इन्कार कर वह स्वराज्य क्या खाक लेगा।
4. उनको समझौते की इच्छा थी।
5. सरकारी एजेंटों को तुम अपना माल मत बेचो।
6. स्त्री को ‘स्त्री’ संज्ञा देकर पुरुष को छुटकारा नहीं।
7. मैं ऐसा व्यक्ति नहीं हूँ जो आपको अधिकारपूर्वक कह सकूँ।
8. मैं अध्यक्ष को अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने को निवेदन करता हूँ।
9. भारतीयों के आन्दोलन को जोरदार समर्थन प्राप्त था।
10. उन्होंने भवन की कार्रवाई को देखा था।
11. उस पुस्तक को तो मैंने यों ही रहने दी।
12. वे सन्तान को लेकर दुःखी थे।
13. वह खेल को लेकर व्यस्त था।
14. इस विषय को लेकर दोनों राष्ट्रों में बहुत मतभेद है।
अब ‘को’ के प्रयोग संबंधी कुछ नियमों पर विचार करें :
1. जहाँ कर्म अनुक्त रहे वहाँ ‘को’ का प्रयोग करना चाहिए। जैसे–
बन्दर आमों को बड़े चाव से खाता है।
खगोलशास्त्री तारों को देख रहे हैं।
कुछ राजनेताओं ने ब्राह्मणों को बहुत सताया है।
2. व्यक्तिवाचक, अधिकारवाचक और व्यापार कर्तृवाचक में ‘को’ का प्रयोग किया जाता है। जैसे–
मेघा को पढ़ने दो।
फैक्ट्री के मालिक को समझाना चाहिए।
अपने सिपाही को बुलाओ।
वह अपने नौकर को कभी–कभी मारता भी है।
3. गौण कर्म या सम्प्रदान कारक में ‘को’ का प्रयोग होता है। जैसे–
पूतना कृष्ण को दूध पिलाने लगी।
मैंने उसको पुस्तक खरीद दी। (उसके लिए)
उसने भूखों को अन्न और नंगों को वस्त्र दिए।
4. आना, छजना, पचना, पड़ना, भाना, मिलना, रुचना, लगना, शोभना, सुहाना, सूझना, होना और चाहिए इत्यादि के योग में ‘को’ का प्रयोग होता है।
जैसे–
उन्हें याद आती है, आपकी प्रेरक बातें।
उसको भोजन नहीं पचता है।
दिल को कल क्या पड़ी, बात ही बिगड़ गई।
उसको क्या पड़ा है, बिगड़ता तो मेरा है न।
दशरथ को राम के बिछोह में कुछ नहीं भाता था।
मजदूरों को उनका स्वत्व कब मिलेगा?
बच्चों को मिठाई बहुत रुचती है।
5. निमित्त, आवश्यकता और अवस्था द्योतन में ‘को’ का प्रयोग होता है।
जैसे–
राम शबरी से मिलने को आए थे।
पिताजी स्नान को गए हैं।
अब मुझको पढ़ने जाना है।
उनको यहाँ फिर–फिर आना होगा। 6. योग्य, उपयुक्त, उचित, आवश्यक, नमस्कार, धिक्कार और धन्यवाद के योग में ‘को’ का प्रयोग होता है। जैसे
स्वच्छ वायु–सेवन आपको उपयोगी होगा। विद्यार्थी को ब्रह्मचर्य रखना उचित है। मुझको वहाँ जाना आवश्यक है। श्री गणेश को नमस्कार। आज भी पापी को धिक्कार है।
इस सहयोग के लिए आपको बहुत–बहुत धन्यवाद।
7. समय, स्थान और विनिमय–द्योतक में ‘को’ का प्रयोग होता है।
जैसे–
पंजाब मेल भोर को आएगी।
वह घोड़ा कितने को दोगे?
कल रात को अच्छी वर्षा हुई थी।
नोट : ऐसी जगहों पर ‘में’ और ‘पर’ का भी प्रयोग होता है।
8. समाना, चढ़ना, खुलना, लगाना, होना, डरना, कहना और पूछना क्रियाओं के योग में भी ‘को’ का प्रयोग होता है। जैसे–
आपको भूत समाया है जो ऐसी–वैसी हरकतें कर रहे हैं।
उस विद्यार्थी को पढ़ाई का भूत चढ़ा है।
वह किसी काम का नहीं, उसको आग लगाओ।
तुमको एक बात कहता हूँ, किसी से मत कहना।
नोट : ‘होना’ क्रिया के साथ अस्तित्व अर्थ में ‘को’ के बदले ‘के’ भी लाया जाता है।
सुधीर जी के पुत्र हुआ है।
उसके दाढ़ी नहीं है।
चली थी बर्थी किसी पर,
किसी के आन लगी।
9. निम्नलिखित अवस्थाओं में ‘को’ प्रायः लुप्त रहता है; परन्तु विशेष अर्थ में स्वराघात के बदले कहीं–कहीं आता भी है, छोटे–छोटे जीवों एवं अप्राणिवाचक संज्ञाओं के साथ। जैसे–
उसने बिल्ली मारी है।
किधर तुम छोड़कर मुझको सिधारे, हे राम! ……मगर एक जुगनू चमकते जो देखा मैंने.. ……..
वह सुबह आया है।
अपादान कारक
“वाक्य में जिस स्थान या वस्तु से किसी व्यक्ति या वस्तु की पृथकता अथवा तुलना का बोध होता है, वहाँ अपादान कारक होता है।”
यानी अपादान कारक से जुदाई या विलगाव का बोध होता है। प्रेम, घृणा, लज्जा, ईर्ष्या, भय और सीखने आदि भावों की अभिव्यक्ति के लिए अपादान कारक का ही प्रयोग किया जाता है; क्योंकि उक्त कारणों से अलग होने की क्रिया किसी–न–किसी रूप में जरूर होती है। जैसे–
पतझड़ में पीपल और ढाक के पेड़ों से पत्ते झड़ने लगते हैं।
वह अभी तक हैदराबाद से नहीं लौटा है। मेरा घर शहर से दूर है।
उसकी बहन मुझसे लजाती है।
खरगोश बाघ से बहुत डरता है।
नूतन को गंदगी से बहुत घृणा है।
हमें अपने पड़ोसी से ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए।
मैं आज से पढ़ने जाऊँगा।
‘से’ का प्रयोग
‘से’ चिह्न ‘करण’ एवं ‘अपादान’ दोनों कारकों का है; किन्तु प्रयोग में काफी अंतर है। करण कारक का ‘से’ माध्यम या साधन के लिए प्रयुक्त होता है, जबकि अपादान का ‘से’ जुदाई या अलग होने या करने का बोध कराता है। करण का ‘से’ साधन से जुड़ा रहता है।
जैसे–
वह कलम से लिखता है। (साधन)
उसके हाथ से कलम गिर गई। (हाथ से अलग होना)
1. अनुक्त और प्रेरक कर्ता कारक में ‘से’ का प्रयोग होता है–
जैसे–
मुझसे रोटी खायी जाती है। (मेरे द्वारा)
आपसे ग्रंथ पढ़ा गया था। (आपके द्वारा)
मुझसे सोया नहीं जाता।
वह मुझसे पत्र लिखवाती है।
2. क्रिया करने की रीति या प्रकार बताने में भी ‘से’ का प्रयोग होता है। जैसे–
धीरे (से) बोलो, कोई सुन लेगा।
जहाँ भी रहो, खुशी से रहो।
3. मूल्यवाचक संज्ञा और प्रकृति बोध में ‘से’ का प्रयोग देखा जाता है। जैसे–
कल्याण कंचन से मोल नहीं ले सकते हो।
छूने से गर्मी मालूम होती है।
वह देखने से संत जान पड़ता है।
4. कारण, साथ, द्वारा, चिह्न, विकार, उत्पत्ति और निषेध में भी ‘से’ का प्रयोग होता है। जैसे–
आलस्य से वह समय पर न आ सका।
दया से उसका हृदय मोम हो गया।
गर्मी से उसका चेहरा तमतमाया हुआ था।
जल में रहकर मगर से बैर रखना अच्छी बात नहीं।
वह एक आँख से काना और एक पाँव से लँगड़ा जो ठहरा।
आप–से–आप कुछ भी नहीं होता, मेहनत करो, मेहनत।
दौड़–धूप से नौकरी नहीं मिलती, रिश्वत के लिए भी तैयार रहो।
5. अपवाद (विभाग) में ‘से’ का प्रयोग अपादान के लिए होता है।
जैसे–
वह ऐसे गिरा मानो आकाश से तारे।
वह नजरों से ऐसे गिरा, जैसे पेड़ से पत्ते।
6. पूछना, दुहना, जाँचना, कहना, पकाना आदि क्रियाओं के गौण कर्म में ‘से’ का प्रयोग होता है।
जैसे–
मैं आपसे पूछता हूँ, वहाँ क्या–क्या सुना है?
भिखारी धनी से कहीं जाँचता तो नहीं है?
मैं आपसे कई बार कह चुकी हूँ।
बाबर्ची चावल से भात पकाता है।
7. मित्रता, परिचय, अपेक्षा, आरंभ, परे, बाहर, रहित, हीन, दूर, आगे, पीछे, ऊपर, नीचे, अतिरिक्त, लज्जा, बचाव, डर, निकालना इत्यादि शब्दों के योग में ‘से’ का प्रयोग देखा जाता है।
जैसे–
संजय भांद्रा अपने सभी भाइयों से अलग है।
उनको इन सिद्धांतों से अच्छा परिचय है।
धन से कोई श्रेष्ठ नहीं होता, विद्या से होता है।
बुद्धिमान शत्रु बुद्धिहीन मित्रों से कहीं अच्छा होता है।
मानव से तो कुत्ता भला जो कम–से–कम गद्दारी तो नहीं करता।
घर से बाहर तक खोज डाला, कहीं नहीं मिला।
विद्या और बुद्धि से हीन मानव पशु से भी बदतर है।
अभी भी मँझधार से किनारा दूर है।
यदि मैं पोल खोल दूं तो तुम्हें दोस्तों से भी शर्माना पड़ेगा।
भला मैं तुमसे क्यों डरूँ, तुम कोई बाघ हो जो खा जाओगे।
अन्य लोगों को मैदान से बाहर निकाल दीजिए तभी मैच देखने का आनंद मिलेगा।
8. स्थान और समय की दूरी बताने में भी ‘से’ का प्रयोग होता है।
जैसे–
अभी भी गरीबों से दिल्ली दूर है।
आज से कितने दिन बाद आपका आगमन होगा?
9. क्रियाविशेषण के साथ भी ‘से’ का प्रयोग होता है।
जैसे–
आप कहाँ से टपक पड़े भाई जान?
किधर से आगमन हो रहा है श्रीमान का?
10. पूर्वकालिक क्रिया के अर्थ में भी ‘से’ का प्रयोग होता है।
जैसे–
उसने पेड़ से बंदूक चलाई थी। – (पेड़ पर चढ़कर)
कोठे से देखो तो सब कुछ दिख जाएगा। – (कोठे पर चढ़कर)
कुछ स्थलों पर ‘से’ लुप्त रहता है–
जैसे–
बच्चा घुटनों चलता है।
खिल गई मेरे दिल की कली आप–ही–आप।
आपके सहारे ही तो मेरे दिन कटते हैं।
साँप–जैसे प्राणी पेट के बल चलते हैं।
दूधो नहाओ, पूतो फलो। किसके मुँह खबर भेजी आपने?
इस बात पर मैं तुम्हें जूते मारता।
आप हमेशा इस तरह क्यों बोलते हैं?
संबंध कारक
“वाक्य में जिस पद से किसी वस्तु, व्यक्ति या पदार्थ का दूसरे व्यक्ति, वस्तु या पदार्थ से संबंध प्रकट हो, ‘संबंध कारक’ कहलाता है।”
जैसे–
अंशु की बहन आशु है।
यहाँ ‘अंशु’ संबंध कारक है।
यों तो संबंध और संबोधन को कारक माना ही नहीं जाना चाहिए, क्योंकि इसका संबंध क्रिया से किसी रूप में नहीं होता। हाँ, कर्ता से अवश्य रहता है।
जैसे–
भीम के पुत्र घटोत्कच ने कौरवों के दाँत खट्टे कर दिए।
उक्त उदाहरण में हम देखते हैं कि क्रिया की उत्पत्ति में अन्य कारकों की तरह संबंध सक्रिय नहीं है।
फिर भी, परंपरागत रूप से संबंध को कारक के भेदों में गिना जाता रहा है। इसका एकमात्र चिह्न ‘का’ है, जो लिंग और वचन से प्रभावित होकर ‘की’ और ‘के’ बन जाता है। इन उदाहरणों को देखें–
गंगा का पुत्र भीष्म बाण चलाने में बड़े–बड़ों के कान काटते थे।
नदी के किनारे–किनारे वन–विभाग ने पेड़ लगवाए।
मेनका की पुत्री शकुन्तला भरत की माँ बनी।
जब सर्वनाम पर संबंध कारक का प्रभाव पड़ता है, तब ना–ने–नी’ और ‘रा–रे–री’ हो जाता है।
जैसे–
अपने दही को कौन खट्टा कहता है?
मेरे पुत्र और तेरी पुत्री का जीवन सुखमय हो सकता है।
संबंध कारक के चिह्नों के प्रयोग से कई स्थलों पर अर्थभेद भी हो जाया करता है।
निम्नलिखित उदाहरण देखें–
उसके बहन नहीं है। – (उसको बहन नहीं है)
उसकी बहन नहीं है। – (यानी दूसरे की बहन है, उसकी नहीं)
‘का–के–की’ का प्रयोग
सम्पूर्णता, मूल्य, समय, परिमाण, व्यक्ति, अवस्था, दर, बदला, केवल, स्थान, प्रकार, योग्यता, शक्ति, साथ, भविष्य, कारण, आधार, निश्चय, भाव, लक्षण, शीघ्रता आदि के लिए संबंध कारक के चिह्नों का प्रयोग होता है।
जैसे–
सात रुपये की थाली, नाचे घरवाली। (लोकोक्ति)
एक हाथ का साँप, फिर भी बाप–रे–बाप !
चार दिनों की चाँदनी फिर अँधरी रात।
राजा का रंक राई का पर्वत।
सबके–सब चले गए रह गए केवल तुम। – (शिवमंगल सिंह सुमन)
अचंभे की बात सुनने योग्य ही होती है।
अब यह विपत्ति की घड़ी टलनेवाली ही है।
राह का थका बटोही गहरी नींद सोता है।
आज भी दूध–का–दूध और पानी–का–पानी होता है।
दिन का सोना और रात का करवटें बदलना कभी अच्छा नहीं होता।
बात की बात में बात निकल आती है।
तुल्य, अधीन, समीप और आगे, पीछे, ऊपर, नीचे, बाहर, बायाँ, दायाँ, योग्य अनुसार, प्रति, साथ आदि शब्दों के योग में भी संबंध के चिह्न आते हैं।
जैसे–
मेरे पीछे मेरा पूरा कुनबा है।
फल सर्वदा कर्म के अधीन रहा है।
नदी की ओर बढ़ो, वह तुम्हें मिल जाएगा।
सोनिया काँग्रेस का दायाँ हाथ है।
पति के साथ क्या तुम खुश हो?
तुम्हें माता कब की पुकार रही है। – (तुम्हें माता कब से पुकार रही है।)
यदि विशेष्य उपमान हो तो उपमेय में संबंध का चिह्न प्रयुक्त होगा। जैसे–
वह दया का सागर है।
प्रेम का बंधन बड़ा मजबूत होता है।
कर्म की फाँस कभी गलफाँस नहीं होती, जनाब!
कभी–कभी गौण कर्म में भी संबंध का चिह्न आता है।
जैसे–
कोई गधा तुम्हारे लात मारे।
उन शब्दों के योग में भी संबंध–चिह्न आता है जो कृदंतीय शब्दों के कर्ता या कर्म के अर्थों में आ सके।
जैसे–
मुझे तो लगता है कि तुम उसी के आने से भागे जाते हो।
क्या हुआ जग के रूठे से?
खिचड़ी के खाते ही लगा जी मिचलाने।
नोट : कहीं–कहीं संबंधी लुप्त रहता है।
जैसे–
तुम सबकी सुन लेते हो अपनी कहाँ कहते हो।
मन की मन ही माँझ रही। – (सूरदास)
यह कभी नहीं होने का है।
मैं तेरी नहीं सुनूँगा।
अधिकरण कारक
“वाक्य में क्रिया का आधार, आश्रय, समय या शर्त ‘अधिकरण’ कहलाता है।”
आधार को ही अधिकरण माना गया है। यह आधार तीन तरह का होता है–स्थानाधार, समयाधार और भावाधार। जब कोई स्थानवाची शब्द क्रिया का आधार बने तब वहाँ स्थानाधिकरण होता है। जैसे–
बन्दर पेड़ पर रहता है।
चिड़ियाँ पेड़ों पर अपने घोंसले बनाती हैं।
मछलियाँ जल में रहती हैं।
मनुष्य अपने घर में भी सुरक्षित कहाँ रहता है।
जब कोई कालवाची शब्द क्रिया का आधार हो तब वहाँ कालाधिकरण होता है।
जैसे–
मैं अभी दो मिनटों में आता हूँ।
जब कोई क्रिया ही क्रिया के आधार का काम करे, तब वहाँ भावाधिकरण होता है।
जैसे–
शरद पढ़ने में तेज है।
राजलक्ष्मी दौड़ने में तेज है।
कहीं–कहीं अधिकरण कारक के चिह्न (में, पर) लुप्त भी रहते हैं।
जैसे–
आजकल वह राँची रहता है।
मैं जल्द ही आपके दफ्तर पहुँच रहा हूँ।
ईश्वर करे. आपके घर मोती बरसे।
कहीं–कहीं अधिकरण का चिह्न रहने पर भी वहाँ अन्य कारक होते हैं।
जैसे–
आजकल के नेता लोग रुपयों पर बिकते हैं। – (रुपयों के लिए’ भाव है)
‘में’ और ‘पर’ का प्रयोग
1. निर्धारण, कारण, भीतर, भेद, मूल्य, विरोध, अवस्था और द्वारा अर्थ में अधिकरण का चिह्न आता है।
जैसे–
स्थलीय जीवों में हाथी सबसे बड़ा पशु है।
पहाड़ों में हिमालय सबसे बड़ा और ऊँचा है।
पाकिस्तान और तालिबान में कोई फर्क नहीं है।
2. अनुसार, सातत्य, दूरी, ऊपर, संलग्न और अनंतर के अर्थों में और वार्तालाप के प्रसंग में ‘पर’ चिह्न का प्रयोग होता है।
जैसे–
नियत समय पर काम करो और उसका मीठा फल खाओ।
घोड़े पर चढ़नेवाला हर कोई घुड़सवार नहीं हो जाता।
यहाँ से पाँच किलोमीटर पर गंगा बहती है।
इस पर वह क्रोध से बोला और चलते बना .
मैं पत्र–पर–पत्र भेजता रहा और तुम चुपचाप बैठे रहे।
3. गत्यर्थक धातुओं के साथ में’ और ‘पर’ दोनों आते हैं।
जैसे–
वह डेरे पर गया होगा।
मैं आपकी शरण में आया हूँ।
उक्त वाक्यों का वैकल्पिक रूप है।
वह डेरे को गया होगा।
मैं आपकी शरण को आया हूँ।
निम्नलिखित वाक्यों में ‘में’ की जगह ‘पर’ लिखें, क्योंकि इनमें ‘में’ भद्दा लग रहा है–
1. उसकी दृष्टि चित्र में गड़ी है।
2. वह पुस्तक में आँखें गाड़े है।
3. कन्या की हत्या में उन्हें आजीवन जेल हुई।
4. नाजायज शराब में मुरारि की गिरफ्तारी हुई।
5. हमारी भाषा में अंग्रेजी का बड़ा प्रभाव है।
6. उनकी माँग में सभी लोगों की सहानुभूति है।
7. भ्वाइस ऑफ अमरीका में यह समाचार बताया गया है।
8. सड़क में भारी भीड़ थी।
9. उस स्थान में पहले से कई व्यक्ति मौजूद थे।
10. उन्होंने सेठ के चरणों में पगड़ी रख दी।
संबोधन कारक
“जिस संज्ञापद से किसी को पुकारने, सावधान करने अथवा संबोधित करने का बोध हो, ‘संबोधन’ कारक कहते हैं।”
संबोधन प्रायः कर्ता का ही होता है, इसीलिए संस्कृत में स्वतंत्र कारक नहीं माना गया है। संबोधित संज्ञाओं में बहुवचन का नियम लागू नहीं होता और सर्वनामों का कोई संबोधन नहीं होता, सिर्फ संज्ञा पदों का ही होता है।
नीचे लिखे वाक्यों को देखें–
भाइयो एवं बहनो! इस सभा में पधारे मेरे सहयोगियो ! मेरा अभिवादन स्वीकार करें। हे भगवान् ! इस सड़ी गर्मी में भी लोग कैसे जी रहे हैं।
बच्चो ! बिजली के तार को मत छूना।
देवियो और सज्जनो ! इस गाँव में आपका स्वागत है।
नोट : सिर्फ संबोधन कारक का चिह्न संबोधित संज्ञा के पहले आता है।
संज्ञा एवं सर्वनाम पदों की रूप रचना
उल्लेखनीय है कि संज्ञा और सर्वनाम विकारी होते हैं और इसके रूप लिंग–वचन तथा कारक – के कारण परिवर्तित होते रहते हैं। नीचे कुछ संज्ञाओं एवं सर्वनामों के रूप दिए जा रहे हैं
1. अकारान्त पुंल्लिंग संज्ञा : ‘फूल’
कारक (परसर्ग) – एकवचन – बहुवचन
(०/ने) कर्ता – फूल/फूल ने – फूल/फूलों ने
(०/को) कर्म – फूल/फूल को – फूलों को
(से/द्वारा) करण – फूल/फूल से/ के द्वारा – फूलों से/ के द्वारा
(को के लिए) सम्प्रदान – फूल को/ के लिए – फूलों को/ के लिए
(से) अपादान – फूल से – फूलों से
(का–के–की) संबंध – फूल का/के/की – फूलों का/ के की
(में पर) अधिकरण – फूल में/पर – फूलों में/ पर
(हे/हो अरे) संबोधन – हे फूल ! – हे फूलो !
2. अकारान्त स्त्री० संज्ञा : ‘बहन’
कारक (परसगी – एकवचन – बहुवचन
(०/ने) कर्ता – बहन/बहन ने – बहनें/बहनों ने
(०/को) कर्म – बहन/बहन को – बहनों को
(से/द्वारा) करण – बहन से/के द्वारा – बहनों से/ के द्वारा
(को/के लिए) सम्प्रदान – बहन को/ के लिए – बहनों को/के लिए
(से) अपादान – बहन से – बहनों से
(का–के–की) संबंध – बहन का/ केकी – बहनों का/ केकी
(में/पर) अधिकरण – बहन में/ पर – बहनों में पर
(हे/हो…) संबोधन – हे बहन ! – हे बहनो !
3. अकारान्त पुंल्लिंग संज्ञा : ‘लड़का’
कारक (परसर्ग) – एकवचन – बहुवचन
(०/ने) कर्ता – लड़का/लड़के ने – लड़के/लड़कों ने
(०/को) कर्म – लड़के को – लड़कों को
(से/द्वारा) करण – लड़के से/के द्वारा – लड़कों से/के द्वारा
(को/के लिए) सम्प्रदान – लड़के को/के लिए – लड़कों को/ के लिए
(से) अपादान – लड़के से – लड़कों से
(का–के–की) संबंध – लड़के का/के की – लड़कों का/ केकी
(में/पर) अधिकरण – लड़के में/पर – लड़कों में/पर
(हे/हो/…) संबोधन – हे लड़के ! – हे लड़को !
4. अकारान्त स्त्री० संज्ञा : ‘माता’
कारक (परसर्ग) – एकवचन – बहुवचन
(०/ने) कर्ता – माता/माता ने – माताएँ/माताओं ने
(०/को) कर्म – माता/माता को – माताओं को
(से/द्वारा) करण – माता से/के द्वारा – माताओं से/के द्वारा
(को/के लिए) सम्प्रदान – माता को/के लिए – माताओं को के लिए
(से) अपादान – माता से – माताओं से
(का–के–की) संबंध – माता का/के/की – माताओं का/के की
(में/पर) अधिकरण – माता में/पर – माताओं में/पर
(हे/हो/…) संबोधन – हे माता ! – हे माताओ !
5. इकारान्त पुंल्लिंग संज्ञा : ‘कवि’
कारक (परसर्ग) – एकवचन – बहुवचन
(०/ने) कर्ता – कवि/कवि ने – कवि/कवि ने
(०/क) कर्म – कवि/कवियों ने कवि/कवि को – कवि/कवियों ने कवि/कवि को
(से/द्वारा) करण – कवि/कवियों को कवि से/के द्वारा – कवि/कवियों को कवि से/के द्वारा
(को/के लिए) सम्प्रदान – कवियों से/के द्वारा कवि को/के लिए – कवियों से/के द्वारा कवि को/के लिए
(से) अपादान – कवियों को/के लिए कवि से – कवियों को/के लिए कवि से
(का–के–की) संबंध – कवियों से कवि का/के की – कवियों से कवि का/के की
(में/पर) अधिकरण – कवियों का/के/की कवि में/पर – कवियों का/के/की कवि में/पर
(हे/हो/…) संबोधन – – कवियों में/पर हे कवि ! – हे कवियो !
6. इकारान्त स्त्री संज्ञा : ‘शक्ति’
कारक (परसम) – एकवचन – बहुवचन
(०/ने) कर्ता – शक्ति/शक्ति ने – शक्तियों ने/शक्तियाँ
(०/को) कर्म – शक्ति/शक्ति को – शक्तियों को/शक्तियाँ
(से/द्वारा) करण – शक्ति से/के द्वारा – शक्तियों से/के द्वारा
(को/के लिए) सम्प्रदान – शक्ति को/के लिए – शक्तियों को/के लिए
(से) अपादान – शक्ति से – शक्तियों से
(का–के–की) संबंध – शक्ति का/के की – शक्तियों का/के की
(में/पर) अधिकरण – शक्ति में/पर – शक्तियों में/पर
(हे/हो…) संबोधन – हे शक्ति ! – हे शक्तियो !
7. ईकारान्त पुंल्लिंग संज्ञा : ‘धोबी’
एकवचन में सभी रूप : धोबी ने / को से / के द्वारा को के लिए / से / का के। की / में पर हे धोबी !
बहुवचन में सभी रूप : धोबियों ने को / से के द्वारा / को के लिए से का के की / में पर हे धोबियो !
8. ईकारान्त स्त्री संज्ञा : ‘बेटी’
एकवचन – बहुवचन
(०/ने) कर्ता – बेटी ने/बेटी – बेटियाँ/बेटियों ने
(०/को) कर्म बेटी को – बेटियों को
(से/द्वारा) करण – बेटी से/के द्वारा– बेटियों से/के द्वारा
(को/के लिए) सम्प्रदान – बेटी को/के लिए – बेटियों को/के लिए
(से) अपादान – बेटी से – बेटियों से
(का–के–की) संबंध – बेटी का/के/की – बेटियों का/के/की
(में/पर) अधिकरण – बेटी में/पर – बेटियों में पर
(हे/अरी) संबोधन – अरी बेटी ! – अरी बेटियो !
9. उकारान्त पुंल्लिंग संज्ञा : ‘साधु’ एकवचन में सभी रूप : साधु ने / को से के द्वारा को के लिए से का के की में पर / हे साधु !
बहुवचन में सभी रूप : साधुओं ने / को से के द्वारा को के लिए / से का के। की। में पर हे साधुओ!
10. उकारान्त स्त्री संज्ञा : ‘वस्तु’
कारक (परसग) – एकवचन – बहुवचन
(०/ने) कर्ता – वस्तु/वस्तु ने – वस्तुएँ/वस्तुओं ने
(०/को) कर्म – वस्तु/वस्तु को – वस्तुओं को
(से/द्वारा) करण – वस्तु से/के द्वारा – वस्तुओं को/के द्वारा
(को/के लिए) सम्प्रदान – वस्तु को/के लिए– वस्तुओं को/के लिए
(से) अपादान – वस्तु से – वस्तुओं से
(का–के–की) संबंध – वस्तु का/के/की – वस्तुओं का/के/की
(में/पर) अधिकरण – वस्तु में/पर – वस्तुओं में/पर
(हे/हो/अरी) संबोधन – अरी वस्तु !– अरी वस्तुओ !
11. ऊकारान्त पुंल्लिंग संज्ञा : ‘भालू’ एकवचन में सभी : भालू ने / को / से / के द्वारा / को के लिए / से का / के की। में पर हे भालू !
बहुवचन में सभी : साधुओं ने को / से के द्वारा को के लिए से का / के की / में पर हे साधुओ !
12. ऊकारान्त स्त्री संज्ञा : ‘बहू’
कारक (परसगी) – एकवचन – बहुवचन
(०/ने) कर्ता – बहू ने/बहू – बहुएँ/बहुओं ने
(०/को) कर्म – बहू को बहू – बहुएँ/बहुओं को
(से/द्वारा) करण – बहू से/के द्वारा – बहुओं से के द्वारा
(को/के लिए) सम्प्रदान – बहू को/के लिए – बहुओं को/के लिए
(से) अपादान – बहू से – बहुओं से
(का–के–की) संबंध – बहू का/के की – बहुओं का/के/की
(में/पर) अधिकरण – बहू में/पर – बहुओं में/पर
(अरी/हे…) संबोधन – हे बहू ! – हे बहुओ !
13. ‘मैं’ सर्वनाम का रूप
कारक (परसर्ग) – एकवचन – बहुवचन
(०/ने) कर्ता – मैं/मैंने – हम/हमने
(०/को) कर्म – मुझे/मुझको – हमें हमको
(से/द्वारा) करण – मुझसे/मेरे द्वारा – हमें हमारे द्वारा
(को/के लिए) सम्प्रदान – मुझको/मेरे लिए – हमको/हमारे लिए
(से) अपादान – मुझसे – हमसे
(का–के–की) संबंध – मेरा/मेरे/मेरी – हमारा/हमारे हमारी
(में/पर) अधिकरण – मुझ में/मुझ पर – हम में/हम पर
(हे/हो/अरे) संबोधन – x – x
इसी तरह अन्य सर्वनामों के रूप देखें :
तू + ने – :तूने – वह + ने – :उसने/उन्होंने
तू + को – :तुझको – यह + को – :इसको/इसे/इनको
तू + रा/रे/री – :तेरा/तेरे/तेरी – यह + में – :इसमें इनमें
तू + में – :तुझमें – कोई – :सभी कारक–चिह्ण के साथ किसी
तुम + ने – :तुमने – कुछ – :सभी चिह्नों के साथ अपरिवर्तित
तु + को – :तुमको/तुम्हें – कौन + ने – :किसने
तुम + रा/रे/री – :तुम्हारा/तुम्हारे तुम्हारी – कौन + को – :किसे/किसको
वह + ने – :उसने/उन्होंने – जो – :जिस/’जिन’ के रूप में परिवर्तित
वह + का/के की – :उसका/उसके उसकी/उनका/उनमें उनकी
वह + में – :उसमें/उनमें
1. ‘राम अयोध्या से वन को गए। इस वाक्य में ‘से’ किस कारक का बोधक है?
(a) करण
(b) कर्ता
(c) अपादान
उत्तर :
(c) अपादान
2. ‘मछली पानी में रहती है’ इस वाक्य में किस कारक का चिह्न प्रयुक्त हुआ है?
(a) संबंध
(b) कर्म
(c) अधिकरण
उत्तर :
(c) अधिकरण
3. ‘राधा कृष्ण की प्रेमिका थी’ इस वाक्य में की’ चिह्न किस कारक की ओर संकेत करता है?
(a) करण
(b) संबंध
(c) कर्ता
उत्तर :
(b) संबंध
4. ‘गरीबों को दान दो’ ‘गरीब’ किस कारक का उदाहरण है?
(a) कर्म
(b) करण
(c) सम्प्रदान
उत्तर :
(c) सम्प्रदान
5. ‘बालक छुरी से खेलता है’ छुरी किस कारक की ओर संकेत करता है?
(a) करण
(b) अपादान
(c) सम्प्रदान
उत्तर :
(a) करण
6. सम्प्रदान कारक का चिह्न किस वाक्य में प्रयुक्त हुआ है?
(a) वह फूलों को बेचता है।
(b) उसने ब्राह्मण को बहुत सताया था।
(c) प्यासे को पानी देना चाहिए।
उत्तर :
(c) प्यासे को पानी देना चाहिए।
7. इन वाक्यों में से किसमें करण कारक का चिह्न प्रयुक्त हुआ है?
(a) लड़की घर से निकलने लगी है
(b) बच्चे पेंसिल से लिखते हैं
(c) पहाड़ से नदियों निकली हैं
उत्तर :
(b) बच्चे पेंसिल से लिखते हैं
8. किस वाक्य में कर्म–कारक का चिह्न आया है?
(a) मोहन को खाने दो
(b) पिता ने पुत्र को बुलाया
(c) सेठ ने नंगों को वस्त्र दिए
उत्तर :
(b) पिता ने पुत्र को बुलाया
9. अपादान कारक किस वाक्य में आया है?
(a) हिमालय पहाड़ सबसे ऊँचा है
(b) वह जाति से वैश्य है
(c) लड़का छत से कूद पड़ा था
उत्तर :
(c) लड़का छत से कूद पड़ा था
10. इनमें से किस वाक्य में ‘से’ चिह्न कर्ता के साथ है?
(a) वह पानी से खेलता है
(b) मुझसे चला नहीं जाता
(c) पेड़ से पत्ते गिरते हैं
उत्तर :
(b) मुझसे चला नहीं जाता
Samas in Hindi | समास परिभाषा व भेद और उदाहरण – हिन्दी व्याकरण
What is Samas in Hindi
समास ‘संक्षिप्तिकरण’ को समास कहते हैं। दूसरे शब्दों में समास संक्षेप करने की एक प्रक्रिया है। दो या दो से अधिक शब्दों का परस्पर सम्बन्ध बताने वाले शब्दों अथवा कारक चिह्नों का लोप होने पर उन दो अथवा दो से अधिक शब्दों के मेल से बने एक स्वतन्त्र शब्द को समास कहते हैं। उदाहरण ‘दया का सागर’ का सामासिक शब्द बनता है ‘दयासागर’।
समास हिंदी में (Types of Samas in Hindi Grammar)
समास में विषय :
- समास क्या है? (Samas kya hey)
- समास के प्रश्न (Samas key prashn)
- समास परिभाषा व भेद (Samas Paribhasha va Bhed)
- बहुव्रीहि समास के उदाहरण (Bahuvir Samas key Udaharan)
- समास के भेद का चार्ट (Samas key Bhed ka Chart)
- कर्मधारय समास (Karmadhaaray Samaas)
- समास के प्रकार और उदाहरण (Samaas Ke Prakaar aur Udaaharan)
इस उदाहरण में ‘दया’ और ‘सागर’ इन दो शब्दों का परस्पर सम्बन्ध बताने वाले ‘का’ प्रत्यय का लोप होकर एक स्वतन्त्र शब्द बना ‘दयासागर’। समासों के परम्परागत छ: भेद हैं-
- द्वन्द्व समास
- द्विगु समास
- तत्पुरुष समास
- कर्मधारय समास
- अव्ययीभाव समास
- बहुव्रीहि समास
Samas Vigraha Examples in Hindi
1. द्वन्द्व समास
जिस समास में पूर्वपद और उत्तरपद दोनों ही प्रधान हों अर्थात् अर्थ की दृष्टि से दोनों का स्वतन्त्र अस्तित्व हो और उनके मध्य संयोजक शब्द का लोप हो तो द्वन्द्व समास कहलाता है;
जैसे
- माता-पिता = माता और पिता
- राम-कृष्ण = राम और कृष्ण
- भाई-बहन = भाई और बहन
- पाप-पुण्य = पाप और पुण्य
- सुख-दुःख = सुख और दुःख
2. द्विगु समास
जिस समास में पूर्वपद संख्यावाचक हो, द्विगु समास कहलाता है।
जैसे-
- नवरत्न = नौ रत्नों का समूह
- सप्तदीप = सात दीपों का समूह
- त्रिभुवन = तीन भुवनों का समूह
- सतमंजिल = सात मंजिलों का समूह
3. तत्पुरुष समास
जिस समास में पूर्वपद गौण तथा उत्तरपद प्रधान हो, तत्पुरुष समास कहलाता है। दोनों पदों के बीच परसर्ग का लोप रहता है। परसर्ग लोप के आधार पर तत्पुरुष समास के छ: भेद हैं
(i) कर्म तत्पुरुष (‘को’ का लोप) जैसे-
- मतदाता = मत को देने वाला
- गिरहकट = गिरह को काटने वाला
(ii) करण तत्पुरुष जहाँ करण-कारक चिह्न का लोप हो; जैसे-
- जन्मजात = जन्म से उत्पन्न
- मुँहमाँगा = मुँह से माँगा
- गुणहीन = गुणों से हीन
(iii) सम्प्रदान तत्पुरुष जहाँ सम्प्रदान कारक चिह्न का लोप हो; जैसे-
- हथकड़ी = हाथ के लिए कड़ी
- सत्याग्रह = सत्य के लिए आग्रह
- युद्धभूमि = युद्ध के लिए भूमि
(iv) अपादान तत्पुरुष जहाँ अपादान कारक चिह्न का लोप हो; जैसे-
- धनहीन = धन से हीन
- भयभीत = भय से भीत
- जन्मान्ध = जन्म से अन्धा
(v) सम्बन्ध तत्पुरुष जहाँ सम्बन्ध कारक चिह्न का लोप हो; जैसे
- प्रेमसागर = प्रेम का सागर
- दिनचर्या = दिन की चर्या
- भारतरत्न = भारत का रत्न
(vi) अधिकरण तत्पुरुष जहाँ अधिकरण कारक चिह्न का लोप हो; जैसे-
- नीतिनिपुण = नीति में निपुण
- आत्मविश्वास = आत्मा पर विश्वास
- घुड़सवार = घोड़े पर सवार
4. कर्मधारय समास
जिस समास में पूर्वपद विशेषण और उत्तरपद विशेष्य हो, कर्मधारय समास कहलाता है। इसमें भी उत्तरपद प्रधान होता है; जैसे
- कालीमिर्च = काली है जो मिर्च
- नीलकमल = नीला है जो कमल
- पीताम्बर = पीत (पीला) है जो अम्बर
- चन्द्रमुखी = चन्द्र के समान मुख वाली
- सद्गुण = सद् हैं जो गुण
5. अव्ययीभाव समास
जिस समास में पूर्वपद अव्यय हो, अव्ययीभाव समास कहलाता है। यह वाक्य में क्रिया-विशेषण का कार्य करता है; जैसे-
- यथास्थान = स्थान के अनुसार
- आजीवन = जीवन-भर
- प्रतिदिन = प्रत्येक दिन
- यथासमय = समय के अनुसार
6. बहुव्रीहि समास
जिस समास में दोनों पदों के माध्यम से एक विशेष (तीसरे) अर्थ का बोध होता है, बहुव्रीहि समास कहलाता है; जैसे
- महात्मा = महान् आत्मा है जिसकी अर्थात् ऊँची आत्मा वाला।
- नीलकण्ठ = नीला कण्ठ है जिनका अर्थात् शिवजी।
- लम्बोदर = लम्बा उदर है जिनका अर्थात् गणेशजी।
- गिरिधर = गिरि को धारण करने वाले अर्थात् श्रीकृष्ण।
- मक्खीचूस = बहुत कंजूस व्यक्ति
1. किस समास में शब्दों के मध्य में संयोजक शब्द का लोप होता है?
(a) द्विगु (b) तत्पुरुष (c) द्वन्द्व (d) अव्ययीभाव
उत्तर :
(c) द्वन्द्व
2. पूर्वपद संख्यावाची शब्द है
(a) अव्ययीभाव (b) द्वन्द्व (c) कर्मधारय (d) द्विगु
उत्तर :
(d) द्विगु
3. ‘जन्मान्ध’ शब्द है
(a) कर्मधारय (b) तत्पुरुष (c) बहुव्रीहि (d) द्विगु
उत्तर :
(b) तत्पुरुष
4. ‘यथास्थान’ सामासिक शब्द का विग्रह होगा
(a) यथा और स्थान (b) स्थान के अनुसार (c) यथा का स्थान (d) स्थान का यथा
उत्तर :
(b) स्थान के अनुसार
5. जिस समास में दोनों पदों के माध्यम से एक विशेष (तीसरे) अर्थ का बोध होता है, उसे कहते हैं-
(a) अव्ययीभाव (b) द्विगु (c) तत्पुरुष (d) बहुव्रीहि
उत्तर :
(d) बहुव्रीहि
6. ‘सप्तदीप’ सामासिक पद का विग्रह होगा
(a) सप्त द्वीपों का स्थान (b) सात दीपों का समूह (c) सप्त दीप (d) सात दीप
उत्तर :
(b) सात दीपों का समूह
7. ‘मतदाता’ सामासिक शब्द का विग्रह होगा
(a) मत को देने वाला (b) मत का दाता (c) मत के लिए दाता (d) मत और दाता
उत्तर :
(a) मत को देने वाला
8. ‘आत्मविश्वास’ में समास है-
(a) कर्मधारय (b) बहुव्रीहि (c) तत्पुरुष (d) अव्ययीभाव
उत्तर :
(c) तत्पुरुष
9. ‘नीलकमल’ का विग्रह होगा
(a) नीला है जो कमल (b) नील है कमल (c) नीला कमल (d) नील कमल
उत्तर :
(a) नीला है जो कमल
10. ‘लम्बोदर’ का विग्रह पद होगा
(a) लम्बा उदर है जिसका अर्थात् गणेशजी (b) लम्बा ही है उदर जिसका (c) लम्बे उदर वाले गणेश जी (d) लम्बे पेट वाला
उत्तर :
(a) लम्बा उदर है जिसका अर्थात् गणेशजी
शब्द (Shabd) (शब्द-विचार) – परिभाषा, भेद और उदाहरण : हिन्दी व्याकरण
एक या अधिक वर्षों से बनी हुई स्वतन्त्र एवं सार्थक ध्वनि को शब्द कहते हैं। शब्दों की प्रकृति भिन्न-भिन्न प्रकार की होती है। इन्हीं भिन्न-भिन्न प्रकार की प्रकृति के भेद को समझने हेतु शब्द-भेद का अध्ययन आवश्यक है।
प्रयोग के आधार पर शब्दों की भिन्न-भिन्न जातियाँ होती हैं, जिन्हें शब्द-भेद कहा जाता है। शब्द-भेद को मुख्यतः दो वर्गों में विभक्त किया जाता है, जिसे नीचे दी गई चित्र से स्पष्ट किया गया है।
1. स्रोत के आधार पर
पुर्तगाली, अरबी, फारसी, अंग्रेज़ी आदि आगत (विदेशी) भाषा के शब्दों के अतिरिक्त अन्य शब्द जो हिन्दी भाषा में प्रचलित हैं। उन्हें स्रोत के आधार पर निम्न प्रकार से बाँटा गया है-
(अ) तत्सम, तद्भव और अर्द्धतत्सम शब्द-
- तत्सम शब्द ‘तत्सम’ शब्द ‘तत + सम’ से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है- उसके समान अर्थात् संस्कृत के समान, जो शब्द संस्कृत भाषा से हिन्दी में आए हैं और ज्यों के त्यों प्रयुक्त हो रहे हैं, तत्सम शब्द कहलाते हैं; जैसे- “राजा, पुष्प, कवि, आज्ञा, अग्नि, वायु, वत्स, भ्राता इत्यादि।”
तद्भव शब्द ‘तद्भव’ शब्द ‘तत् + भव’ से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है— उससे उत्पन्न या विकसित।’ अर्थात् वे शब्द जो संस्कृत से उत्पन्न या विकसित हुए हैं, तद्भव शब्द कहलाते हैं; जैसे-मोर, चार, बच्चा, फूल इत्यादि।
अर्द्धतत्सम शब्द अर्द्धतत्सम शब्द उन संस्कृत शब्दों को कहते हैं, जो प्राकृत भाषा बोलने वालों के उच्चारण से बिगड़ते-बिगड़ते कुछ और ही रूप के हो गए हैं; जैसे-बच्छ, अग्याँ, मुँह, बंस इत्यादि। इन तीनों प्रकार के शब्दों (तत्सम, तद्भव और अर्द्धतत्सम) के कुछ उदाहरण निम्न प्रकार से दिए गए हैं। इन उदाहरणों से तीनों शब्दों के भेद स्पष्ट हो जाएँगे
विभिन्न परीक्षाओं में तद्भव शब्दों के तत्सम रूप लिखने के लिए आते हैं। अतः छात्रों की सुविधा हेतु तद्भव और तत्सम शब्दों की सूची यहाँ प्रयुक्त है।
(अ)
(आ)
(इ)
(ई)
(उ)
(ऊ)
(ए, ऐ)
(ओ)
(औ)
(क)
(ख)
(ग)
(घ)
(च)
(छ)
(ज)
(झ)
(ट)
(ठ)
(ड)
(द)
(त)
(थ)
(ढ)
(ध)
(न)
(प)
(फ)
(ब)
(भ)
(म)
(य)
(र)
(ल)
(व)
(श)
(स)
(ह)
मध्यान्तर प्रश्नावली
1. संस्कृत के ऐसे शब्द जिन्हें हम ज्यों-का-त्यों प्रयोग में लाते हैं, कहलाते हैं
(a) तत्सम
(b) तद्भव
(c) देशज
(d) विदेशज
उत्तर :
(a) तत्सम
2. नीचे दिए गए विकल्पों में से तत्सम शब्द का चयन कीजिए
(a) पड़ोसी
(b) गोधूम
(c) बहू
(d) शहीद
उत्तर :
(b) गोधूम
3. नीचे दिए गए विकल्पों में से तद्भव शब्द का चयन कीजिए
(a) बैंक
(b) मुँह
(c) मर्म
(d) प्रलाप
उत्तर :
(b) मुँह
4. ‘वानर’ का तद्भव रूप है-
(a) बानर
(b) बन्दर
(c) बाँदर
(d) बान्दर
उत्तर :
(b) बन्दर
5. ‘दर्शन’ का तद्भव रूप है
(a) दर्सन
(b) दरसन
(c) दर्स
(d) दर्न
उत्तर :
(b) दरसन
6. निम्नलिखित में से कौन-सा शब्द तत्सम है?
(a) उद्गम
(b) खेत
(c) कोर्ट
(d) अजीब
उत्तर :
(a) उद्गम
7. निम्नलिखित में से कौन-सा शब्द तद्भव है?
(a) बिच्छू
(b) षड्पद
(c) बर्र
(d) भ्रमर
उत्तर :
(a) बिच्छू
8. निम्नलिखित तत्सम तद्भव में से कौन-सा विकल्प अशुद्ध है?
(a) नृत्य-नांच
(b) शृंगार-सिंगार
(c) चक्षु-आँख
(d) दधि-दही
उत्तर :
(c) चक्षु-आँख
9. ‘पहचान’ का तत्सम शब्द है
(a) प्रत्यभिज्ञान
(b) प्रज्ञान
(c) अभिधान
(d) अवधान
उत्तर :
(a) प्रत्यभिज्ञान
10. निम्न में से कौन-सा शब्द तत्सम नहीं है?
(a) घृत
(b) अतिन
(c) दुग्ध
(d) आँसू
उत्तर :
(d) आँसू
(ब) देशज और विदेशज शब्द
(i) देशज शब्द (देशी) ‘देशज’ शब्द की उत्पत्ति ‘देश + ज’ के योग से हुई है, जिसका अर्थ है- ‘देश में जन्मा’। देशज उन शब्दों को कहते हैं, जो बोलचाल तथा देश की अन्य भाषाओं से गृहीत हैं; जैसे- कटोरा, कौड़ी, खिड़की, डिबिया, लोटा आदि। नीचे कुछ मुख्य देशज (देशी) शब्दों की सूची दी जा रही है, जो विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जाते हैं
(ii) विदेशज शब्द (विदेशी/आगत) ‘विदेशज’ शब्द की उत्पत्ति ‘विदेश ज’ के योग से हई है, जिसका अर्थ है-‘विदेश में जन्मा’। विदेशज उन शब्दों को कहते हैं, जो किसी विदेशी भाषा से आए हैं। विदेशी भाषा से आने के कारण ही इन्हें आगत शब्द की संज्ञा दी जाती है। हिन्दी भाषा में अनेक शब्द ऐसे भी हैं जो हैं तो विदेशी मूल के, किन्तु परस्पर सम्पर्क के कारण यहाँ (हिन्दी भाषा में) प्रचलित हो गए हैं। ‘फारसी, अरबी, तुर्की, अंग्रेज़ी आदि भाषाओं से जो शब्द हिन्दी में आए हैं, वे विदेशी (विदेशज) कहलाते हैं; जैसे- ऑर्डर, कम्पनी, कैम्प, क्रिकेट आदि।
नीचे कुछ महत्त्वपूर्ण विदेशी शब्दों (अरबी, फ़ारसी और अंग्रेज़ी) की सूची दी गई है, जो विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से उपयोगी हैं-
अरबी
फ़ारसी
अंग्रेज़ी
अंग्रेज़ी, अरबी, फ़ारसी विदेशी शब्दों के अतिरिक्त तुर्की, पश्तो, पुर्तगाली, फ्रेंच, डच, रूसी, चीनी और जापानी भी ऐसी विदेशी भाषाएँ हैं, जिनके शब्द हिन्दी भाषा में प्रचलित हैं। ऐसे प्रमुख शब्दों की सूची नीचे दी जा रही है
तुर्की
पश्तो
पुर्तगाली
फ्रेंच कारतूस, कयूं, कूपन, अंग्रेज़, लाम, बिगुल आदि।
डच तुरूप, बम (टाँगे का) आदि।
रूसी रूबल, ज़ार, मिग, वोदका, सोवियत आदि।
चीनी चाय, लीची, चीनी, चीकू आदि।
जापानी रिक्शा, सूनामी आदि।
नोट तुर्की, पश्तो, पुर्तगाली, फ्रेंच, डच, रूसी, चीनी और जापानी विदेशी भाषा के शब्द हिन्दी भाषा में कम प्रचलित वर्ग के अन्तर्गत समाहित किए जाते हैं। इनका प्रचलन अंग्रेज़ी, अरबी-फ़ारसी की अपेक्षा कम है।
मध्यान्तर प्रश्नावली
1. ‘देश में जन्मा’ शब्द कहलाता है
(a) विदेशी
(b) आगत
(c) देशज
(d) इनमें से कोई नहीं
2. ‘गाड़ी’ शब्द है-
(a) विदेशी
(b) देशी
(c) आगत
(d) विदेशज
3. विदेशी भाषा से आए शब्दों को क्या कहते हैं?
(a) देशी
(b) देशज
(c) आगत
(d) यौगिक
4. निम्न में मुस्लिम शासन के प्रभाव से आया शब्द है
(a) हवालात
(b) रेल
(c) बाड़ा
(d) गिलास
5. निम्नलिखित शब्द-समूहों में से देशज शब्द का उदाहरण है-
(a) डोंगी, चेला
(b) भात, अनन्नास
(c) पैसा, वोट
(d) समय, मलेरिया
6. निम्नलिखित शब्द-समूहों में से विदेशज शब्द का उदाहरण है-
(a) औज़ार, चिड़िया
(b) तेंदुआ, जूता
(c) रोड़ा, बुलबुल
(d) एहसान, कमाल
7. निम्नलिखित शब्दों में से फ़ारसी शब्द का उदाहरण है-
(a) औरत
(b) अल्लाह
(c) अक्ल
(d) आवाज़
8. ‘अलमारी’ शब्द है
(a) अरबी
(b) फ़ारसी
(c) पुर्तगाली
(d) पश्तो
9. फ्रेंच भाषा का शब्द है-
(a) अंग्रेज़
(b) रूबल
(c) पठान
(d) बहादुर
10. उर्दू, कलगी, ताश किस भाषा के शब्द हैं?
(a) अरबी
(b) फ़ारसी
(c) तुर्की
(d) जापानी
2. रचना के आधार
पर हिन्दी एक रचनात्मक भाषा है। रचना के आधार पर शब्द तीन प्रकार के होते हैं-
(अ) रूढ़ रूढ़ शब्द वे हैं, जिनका कोई भी खण्ड सार्थक नहीं होता और जो परम्परा से किसी विशिष्ट अर्थ में चले आ रहे हैं; जैसे—नाक, जल, आग आदि। ‘नाक’ में ‘ना’ और ‘क’ खण्डों का कोई अर्थ नहीं। इसी प्रकार जल शब्द में ‘ज’ और ‘ल’ खण्डों का पृथक्-पृथक् कोई अर्थ नहीं होता। रूढ़ शब्दों को मूल या अयौगिक शब्द भी कहते हैं।
(ब) यौगिक
वे शब्द, जो दो या दो से अधिक सार्थक शब्द-खण्डों के योग से निर्मित होते हैं, यौगिक शब्द कहलाते हैं;
जैसे-
पाठशाला = पाठ और शाला
विज्ञान = वि + ज्ञान
राजपुत्र = राजा का पुत्र
(स) योगरूढ़
वे शब्द जो यौगिक तो होते हैं, परन्तु जिनका अर्थ रूढ़ (विशेष अर्थ) हो जाता है, योगरूढ़ शब्द कहलाते हैं। ये सामान्य अर्थ को प्रकट न कर किसी विशेष अर्थ का प्रकटीकरण करते हैं; जैसे-लम्बोदर, जलज, चारपाई, चौपाई आदि। ‘लम्बोदर’ शब्द का अर्थ है-लम्बे उदर (पेट) वाला। इस प्रकार लम्बे उदर वाले जितने भी जीव हैं, लम्बोदर हुए। लेकिन लम्बोदर शब्द का प्रयोग केवल गणेशजी के लिए ही किया जाता है। इसी प्रकार “जलज’ का सामान्य अर्थ है ‘जल में जन्मा’; किन्तु यह विशेष अर्थ में केवल ‘कमल’ के लिए प्रयुक्त होता है। जल में जन्मे और किसी वस्तु को हम ‘जलज’ नहीं कह सकते। नीचे दी गई तालिका में रूढ़, यौगिक और योगरूढ़ शब्दों को वर्गीकृत किया गया है। जो निम्नलिखित हैं-
रूढ
यौगिक
योगरूढ़
मध्यान्तर प्रश्नावली
1. रचना के आधार पर शब्द कितने प्रकार के हैं?
(a) दो
(b) तीन
(c) चार
(d) पाँच
2. जिन शब्दों का कोई भी खण्ड सार्थक नहीं होता, वे कहलाते हैं
(a) रूढ़ शब्द
(b) यौगिक शब्द
(c) योगरूढ़ शब्द
(d) उपसर्ग
3. ‘वैद्यशाला’ शब्द है
(a) योगरूढ़
(b) यौगिक
(c) अयौगिक
(d) रूढ़
4. जो शब्द किसी विशेष अर्थ में प्रयुक्त होते हैं, उन्हें कहते हैं
(a) रूढ़
(b) यौगिक
(c) योगरूढ़
(d) ये सभी
5. ‘रूढ़’ शब्द का चयन कीजिए
(a) राजनैतिक
(b) चक्रपाणि
(c) त्रिकोण
(d) गरल
6. निम्नलिखित शब्दों में से सही यौगिक शब्द को चुनिए
(a) मेज़
(b) सहपाठी
(c) चारपाई
(d) घर
7. दो या दो से अधिक सार्थक शब्द-खण्डों के योग से निर्मित होने वाले शब्द … शब्द कहलाते हैं।
(a) यौगिक
(b) रूढ़
(c) योगरूढ़
(d) अयौगिक
8. रूढ़ शब्दों को अन्य किस नाम से जाना जाता है?
(a) अमूल शब्द
(b) जड़ शब्द
(c) मूल शब्द
(d) अयोगरूढ़ शब्द
9. पीताम्बर, लालफीताशाही और चारपाई शब्द निम्न में से किसके उदाहरण हैं?
(a) रूढ़
(b) यौगिक
(c) योगरूढ़
(d) इनमें से कोई नहीं
10. निम्नलिखित शब्दों में से किस शब्द का सार्थक खण्ड नहीं हो सकता?
(a) प्रधानमन्त्री
(b) घोड़ा
(c) राजसैनिक
(d) प्रसूतिगृह
उत्तर :
1. (b) 6. (b)
2. (a) 7. (a)
3. (b) 8. (c)
4. (c) 9. (c)
5. (d) 10. (b)
वस्तुनिष्ठ प्रश्नावली
1. निम्नलिखित विकल्पों में से तत्सम शब्द का चयन कीजिए (लेखपाल भर्ती परीक्षा 2015)
(a) गहरा
(b) तीखा
(c) अटारी
(d) निकृष्ट
उत्तर :
(d) निकृष्ट
2. निम्नलिखित शब्दों में से तद्भव शब्द का चयन कीजिए (लेखपाल भर्ती परीक्षा 2015)
(a) आश्रम
(b) प्यास
(c) प्रांगण
(d) उद्वेग
उत्तर :
(b) प्यास
3. शब्द-रचना के आधार पर अधोलिखित में से योगरूढ़ शब्द का चयन कीजिए (उपनिरीक्षक सीधी भर्ती परीक्षा 2014)
(a) पवित्र
(b) कुशल
(c) विनिमय
(d) जलज
उत्तर :
(d) जलज
4. निम्नलिखित में कौन-सा शब्द देशज नहीं है? (उपनिरीक्षक सीधी भर्ती परीक्षा 2014)
(a) ढिबरी
(b) पगड़ी
(c) पुष्कर
(d) ढोर
उत्तर :
(c) पुष्कर
5. अधोलिखित में ‘रूढ़’ शब्द कौन-सा है? (उपनिरीक्षक सीधी भर्ती परीक्षा 2014)
(a) मलयज
(b) पंकज
(c) जलज
(d) वैभव
उत्तर :
(d) वैभव
6. इलायची का तत्सम शब्द है (असिस्टेंट टीचर प्राइमरी परीक्षा 2015)
(a) एला
(b) इला
(c) अला
(d) अल्ला
उत्तर :
(a) एला
7. प्रस्तर का तद्भव शब्द है (असिस्टेंट टीचर प्राइमरी परीक्षा 2015)
(a) पाथर
(b) पत्थर
(c) पत्तर
(d) फत्थर
उत्तर :
(b) पत्थर
8. हिन्दी में प्रयुक्त ‘तुरूप’ शब्द ……… है। (असिस्टेंट टीचर प्राइमरी परीक्षा 2015)
(a) अंग्रेज़ी
(b) डच
(c) रूसी
(d) फ्रेंच
उत्तर :
(b) डच
9. निम्नलिखित में कौन-सा शब्द तत्सम है? (लेखपाल भर्ती परीक्षा 2015)
(a) आँख
(b) अग्र
(c) आग
(d) आज
उत्तर :
(b) अग्र
10. निम्नलिखित में रूढ़ शब्द कौन-सा है?
(a) वाचनालय
(b) समतल
(c) विद्यालय
(d) पशु
उत्तर :
(d) पशु
वर्ण विभाग – वर्णमाला की परिभाषा एवं उनके भेद हिन्दी व्याकरण – Varna In Hindi
Varna In Hindi: भाषा के द्वारा मनुष्य अपने भावों-विचारों को दूसरों के समक्ष प्रकट करता है तथा दूसरों के भावों-विचारों को समझता है। अपनी भाषा को सुरक्षित रखने और काल की सीमा से निकालकर अमर बनाने की ओर मनीषियों का ध्यान गया। वर्षों बाद मनीषियों ने यह अनुभव किया कि उनकी भाषा में जो ध्वनियाँ प्रयुक्त हो रही हैं, उनकी संख्या निश्चित है और इन ध्वनियों के योग से शब्दों का निर्माण हो सकता है। बाद में इन्हीं उच्चारित ध्वनियों के लिए लिपि में अलग-अलग चिह्न बना लिए गए, जिन्हें वर्ण कहते हैं।
हिन्दी वर्णमाला – Varna Mala In Hindi
वर्गों के समूह या समुदाय को वर्णमाला कहते हैं। हिन्दी में वर्गों की संख्या 45 है-
संस्कृत वर्णमाला में एक और स्वर ऋ है। इसे भी सम्मिलित कर लेने पर वर्णों की संख्या 46 हो जाती है।
इसके अतिरिक्त, हिन्दी में अँ, ड, ढ़ और अंग्रेज़ी से आगत ऑ ध्वनियाँ प्रचलित हैं। अँ अं से भिन्न है, ड ड से, ढ ढ से भिन्न है, इसी प्रकार ऑ आ से भिन्न ध्वनि है। वास्तव में इन ध्वनियों (अँ, ड, ढ, ऑ) को भी हिन्दी वर्णमाला में सम्मिलित किया जाना चाहिए। इनको भी सम्मिलित कर लेने पर हिन्दी में वर्गों की संख्या 50 हो जाती है। हिन्दी वर्णमाला दो भागों में विभक्त है- स्वर और व्यंजन।
स्वर वर्ण – Swar Varna In Hindi
जिन ध्वनियों के उच्चारण में हवा मुख-विवंर से अबाध गति से निकलती है, उन्हें स्वर कहते हैं।
स्वर तीन प्रकार के होते हैं, जो निम्न हैं-
1. मूल स्वर वे स्वर जिनके उच्चारण में कम-से-कम समय लगता है, अर्थात् जिनके उच्चारण में अन्य स्वरों की सहायता नहीं लेनी पड़ती है, मूल स्वर
या ह्रस्व स्वर कहलाते हैं;
जैसे—
अ, इ, उ, ऋ।
2. सन्धि स्वर वे स्वर जिनके उच्चारण में मूल स्वरों की सहायता लेनी पड़ती है, सन्धि स्वर कहलाते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं-
(i) दीर्घ स्वर वे स्वर जो सजातीय स्वरों (एक ही स्थान से बोले जाने वाले स्वर) के संयोग से निर्मित हुए हैं, दीर्घ स्वर कहलाते हैं;
जैस-
अ + अ = आ
इ + इ = ई
उ + उ = ऊ
(ii) संयुक्त स्वर वे स्वर जो विजातीय स्वरों (विभिन्न स्थानों से बोले जाने वाले स्वर) के संयोग से निर्मित हुए हैं, संयुक्त स्वर कहलाते हैं;
जैसे-
अ + इ = ए
अ + ए = ऐ
अ + उ = ओ
अ + ओ = औ
3. प्लुत स्वर वे स्वर जिनके उच्चारण में दीर्घ स्वर से भी अधिक समय लगता है, प्लुत स्वर कहलाते हैं; जैसे- ‘इ’ किसी को पुकारने या नाटक के संवादों में इसका प्रयोग करते हैं;
जैसे-
राऽऽऽऽम
स्वरों का उच्चारण
उच्चारण स्थान की दृष्टि से स्वरों को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है, जो निम्न हैं-
1. अग्र स्वर जिन स्वरों के उच्चारण में जिह्वा का अग्र भाग ऊपर उठता है, अग्र स्वर कहलाते हैं;
जैसे—
इ, ई, ए, ऐ।
2. मध्य स्वर जिन स्वरों के उच्चारण में जिह्वा समान अवस्था में रहती है, मध्य स्वर कहलाते हैं;
जैसे-
‘अ’
3. पश्च स्वर जिन स्वरों के उच्चारण में जिह्वा का पश्च भाग ऊपर उठता है, पश्च स्वर कहलाते हैं;
जैसे-
आ, उ, ओ, औ।
इसके अतिरिक्त अँ (*), अं (‘), और अ: (:) ध्वनियाँ हैं। ये न तो स्वर हैं और न ही व्यंजन। आचार्य किशोरीदास वाजपेयी ने इन्हें अयोगवाह कहा है, क्योंकि ये बिना किसी से योग किए ही अर्थ वहन करते हैं। हिन्दी वर्णमाला में इनका स्थान स्वरों के बाद और व्यंजनों से पहले निर्धारित किया गया है।
व्यंजन जिन ध्वनियों के उच्चारण में हवा मुख-विवर से अबाध गति से नहीं निकलती, वरन् उसमें पूर्ण या अपूर्ण अवरोध होता है, व्यंजन कहलाती हैं। दूसरे शब्दों में, वे ध्वनियाँ जो बिना स्वरों की सहायता लिए उच्चारित नहीं हो सकती हैं, व्यंजन कहलाती हैं;
जैसे—
क = क् + अ।
सामान्यतया व्यंजन छ: प्रकार के होते हैं, जो निम्न हैं-
- स्पर्श व्यंजन जिन व्यंजनों के उच्चारण में जिह्वा का कोई-न-कोई भाग मुख के किसी-न-किसी भाग को स्पर्श करता है, स्पर्श व्यंजन कहलाते हैं। क से लेकर म तक 25 व्यंजन स्पर्श हैं। इन्हें पाँच-पाँच के वर्गों में विभाजित किया गया है। अतः इन्हें वर्गीय व्यंजन भी कहते हैं; जैसे—क से ङ तक क वर्ग, च से ञ तक च वर्ग, ट से ण तक ट वर्ग, त से न तक त वर्ग, और प से म तक प वर्ग।
- अनुनासिक व्यंजन जिन व्यंजनों के उच्चारण में वायु नासिका मार्ग से निकलती है, अनुनासिक व्यंजन कहलाते हैं। ङ, ञ, ण, न और म . अनुनासिक व्यंजन हैं।
- अन्तःस्थ व्यंजन जिन व्यंजनों के उच्चारण में मुख बहुत संकुचित हो जाता है फिर भी वायु स्वरों की भाँति बीच से निकल जाती है, उस समय उत्पन्न होने वाली ध्वनि अन्तःस्थ व्यंजन कहलाती है। य, र, ल, व अन्त:स्थ व्यंजन हैं।
- ऊष्म व्यंजन जिन व्यंजनों के उच्चारण में एक प्रकार की गरमाहट या सुरसुराहट-सी प्रतीत होती है, ऊष्म व्यंजन कहलाते हैं। श, ष, स और ह ऊष्म व्यंजन हैं।
- उत्क्षिप्त व्यंजन जिन व्यंजनों के उच्चारण में जिह्वा की उल्टी हुई नोंक तालु को छूकर झटके से हट जाती है, उन्हें उत्क्षिप्त व्यंजन कहते हैं। ड, ढ़ उत्क्षिप्त व्यंजन हैं।
- संयुक्त व्यंजन जिन व्यंजनों के उच्चारण में अन्य व्यंजनों की सहायता लेनी पड़ती है, संयुक्त व्यंजन कहलाते हैं;
जैसे-
- क् + ष = क्ष (उच्चारण की दृष्टि से क् + छ = क्ष)
- त् + र = त्र
- ज् + ञ = ज्ञ (उच्चारण ग + य =ज्ञ)
- श् + र = श्र
व्यंजनों का उच्चारण
उच्चारण स्थान की दृष्टि से हिन्दी-व्यंजनों को आठ वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-
- कण्ठ्य व्यंजन जिन व्यंजन ध्वनियों के उच्चारण में जिह्वा के पिछले भाग से कोमल तालु का स्पर्श होता है, कण्ठ्य ध्वनियाँ (व्यंजन) कहलाते हैं। क, ख, ग, घ, ङ कण्ठ्य व्यंजन हैं।
- तालव्य व्यंजन जिन व्यंजनों के उच्चारण में जिह्वा का अग्र भाग कठोर तालु को स्पर्श करता है, तालव्य व्यंजन कहलाते हैं। च, छ, ज, झ, ञ और श, य तालव्य व्यंजन हैं।
- मूर्धन्य व्यंजन कठोर तालु के मध्य का भाग मूर्धा कहलाता है। जब जिह्वा की उल्टी हुई नोंक का निचला भाग मूर्धा से स्पर्श करता है, ऐसी स्थिति में उत्पन्न ध्वनि को मूर्धन्य व्यंजन कहते हैं। ट, ठ, ड, ढ, ण मूर्धन्य व्यंजन हैं।
- दन्त्य व्यंजन जिन व्यंजनों के उच्चारण में जिह्वा की नोंक ऊपरी दाँतों को स्पर्श करती है, दन्त्य व्यंजन कहलाते हैं। त, थ, द, ध, स दन्त्य व्यंजन हैं।
- ओष्ठ्य व्यंजन जिन व्यंजनों के उच्चारण में दोनों ओष्ठों द्वारा श्वास का अवरोध होता है, ओष्ठ्य व्यंजन कहलाते हैं। प, फ, ब, भ, म ओष्ठ्य व्यंजन हैं।
- दन्त्योष्ठ्य व्यंजन जिन व्यंजनों के उच्चारण में निचला ओष्ठ दाँतों को स्पर्श करता है, दन्त्योष्ठ्य व्यंजन कहलाते हैं। ‘व’ दन्त्योष्ठ्य व्यंजन है।
- वर्ण्य व्यंजन जिन व्यंजनों के उच्चारण में जिह्वा ऊपरी मसूढ़ों (वर्ल्स) का स्पर्श करती है, वर्ण्य व्यंजन कहलाते हैं; जैसे-न, र, ल।
- स्वरयन्त्रमुखी या काकल्य व्यंजन जिन व्यंजनों के उच्चारण में अन्दर से आती हुई श्वास, तीव्र वेग से स्वर यन्त्र मुख पर संघर्ष उत्पन्न करती – है, स्वरयन्त्रमुखी व्यंजन कहलाते हैं; जैसे-ह।
उपरोक्त आठ वर्गों के विभाजन के अतिरिक्त व्यंजनों के उच्चारण हेतु उल्लेखनीय बिन्दु निम्नलिखित हैं
1. घोषत्व के आधार पर घोष का अर्थ स्वरतन्त्रियों में ध्वनि का कम्पन है।
(i) अघोष जिन व्यंजनों के उच्चारण में स्वरतन्त्रियों में कम्पन न हो, अघोष व्यंजन कहलाते हैं। प्रत्येक ‘वर्ग’ का पहला और दूसरा व्यंजन वर्ण अघोष ध्वनि होता है;
जैसे—
- क, ख, च, छ, ट, ठ, त, थ, प, फा
(ii) घोष जिन व्यंजनों के उच्चारण में स्वरतन्त्रियों में कम्पन हो, वह घोष व्यंजन कहलाते हैं। प्रत्येक ‘वर्ग’ का तीसरा, चौथा और पाँचवाँ व्यंजन वर्ण घोष ध्वनि होता है;
जैसे—
- ग, घ, ङ, ज, झ, ञ, ड, ढ, ण।
2. प्राणत्व के आधार पर यहाँ ‘प्राण’ का अर्थ हवा से है।
(i) अल्पप्राण जिन व्यंजनों के उच्चारण में मुख से कम हवा निकले, अल्पप्राण व्यंजन होते हैं। प्रत्येक वर्ग का पहला, तीसरा और पाँचवाँ व्यंजन वर्ण अल्पप्राण ध्वनि होता है
जैसे-
- क, ग, ड, च, ज, ब आदि।
(ii) महाप्राण जिन व्यंजनों के उच्चारण में मुख से अधिक हवा निकले महाप्राण व्यंजन होते हैं। प्रत्येक वर्ग का दूसरा और चौथा व्यंजन वर्ण महाप्राण ध्वनि होता है;
जैसे-
- ख, घ, छ, झ, ठ, ढ आदि।
3. उच्चारण की दृष्टि से ध्वनि (व्यंजन) को तीन वर्गों में बाँटा गया है-
- संयुक्त ध्वनि दो-या-दो से अधिक व्यंजन ध्वनियाँ परस्पर संयुक्त होकर ‘संयुक्त ध्वनियाँ’ कहलाती हैं; जैसे–प्राण, घ्राण, क्लान्त, क्लान, प्रकर्ष इत्यादि। संयुक्त ध्वनियाँ अधिकतर तत्सम शब्दों में पाई जाती हैं।
- सम्पृक्त ध्वनि एक ध्वनि जब दो ध्वनियों से जुड़ी होती है, तब यह ‘सम्पृक्त ध्वनि’ कहलाती है; जैसे—’कम्बल’। यहाँ ‘क’ और ‘ब’ ध्वनियों के साथ म् ध्वनि संयुक्त (जुड़ी) है।
- युग्मक ध्वनि जब एक ही ध्वनि द्वित्व हो जाए, तब यह ‘युग्मक ध्वनि’ कहलाती है; जैसे-अक्षुण्ण, उत्फुल्ल, दिक्कत, प्रसन्नता आदि।
वर्तनी
किसी भी भाषा में शब्दों की ध्वनियों को जिस क्रम और जिस रूप से उच्चारित किया जाता है, उसी क्रम और उसी रूप से लेखन की रीति को वर्तनी (Spelling) कहते हैं। जो जैसा उच्चारण करता है, वैसा ही लिखना चाहता है। अतः उच्चारण और वर्तनी में घनिष्ठ सम्बन्ध हैं। इस प्रकार शुद्ध वर्तनी के लिए शुद्ध उच्चारण भी आवश्यक है।
शब्दों की वर्तनी में अशुद्धि दो प्रकार की होती है-
- वर्ण सम्बन्धी
- शब्द रचना सम्बन्धी
वर्ण सम्बन्धी अशुद्धियाँ पुन: दो प्रकार की होती हैं
- स्वर-मात्रा सम्बन्धी अशुद्धियाँ।
- व्यंजन सम्बन्धी अशुद्धियाँ।
स्वर-मात्रा सम्बन्धी अशुद्धियाँ और उनके शुद्ध रूप
(अ)
(‘अ’ नहीं होना चाहिए)
(आ)
(इ)
(‘इ’ की मात्रा नहीं होनी चाहिए)
(‘ई’ की मात्रा होनी चाहिए)
(उ)
(ऊ)
(ऋ)
(ए, ऐ)
(‘ओ’, ‘औ’)
व्यंजन सम्बन्धी अशुद्धियाँ और उनके शुद्ध रूप
संयुक्त व्यंजन सम्बन्धी अशुद्धियाँ और उनके शुद्ध रूप
व्यंजन द्वित्व सम्बन्धी अशुद्धियाँ और उनके शुद्ध रूप
चन्द्रबिन्दु और अनुस्वार की अशुद्धियाँ और उनके शुद्ध रूप
हल् सम्बन्धी अशुद्धियाँ और उनके शुद्ध रूप
(हल होना चाहिए)
(हल नहीं होना चाहिए)
शब्दकोश में प्रयुक्त वर्णानुक्रम सम्बन्धी नियम
शब्दकोश में प्रयुक्त वर्णानुक्रम सम्बन्धी नियम निम्न प्रकार हैं-
- शब्दकोश में पहले स्वर उसके पश्चात् व्यंजन का क्रम आता है।
- शब्दकोश में अनुस्वार (-) और विसर्ग (:) का स्वतन्त्र वर्ण के रूप में प्रयोग नहीं होता, लेकिन संयुक्त वर्गों के रूप में इन्हें अ, आ, इ, ई, उ, ऊ आदि से पहले स्थान प्रदान किया जाता है; जैसेकं, कः, क, का, कि, की, कु, कू, के, के, को, कौ।
- शब्दकोश में पूर्ण वर्ण के पश्चात् संयुक्ताक्षर का क्रम आता है; जैसे कं, क: “” को, कौ के पश्चात् क्य, क्र, क्ल, क्व, क्षा
- शब्दकोश में ‘क्ष’, ‘त्र’, ‘ज्ञ’ का कोई पृथक् शब्द संग्रह नहीं मिलता, क्योंकि ये संयुक्ताक्षर होते हैं। इनसे सम्बन्धित शब्दों को ढूँढने हेतु इन संयुक्ताक्षरों के पहले वर्ण वाले खाने में देखना होता है; जैसे- यदि हमें ‘क्ष’ (क् + ष) से सम्बन्धित शब्द को ढूँढना है, तो हमें ‘क’ वाले खाने में जाना होगा। इसी तरह ‘त्र’ (त् + र), ‘ज्ञ’ (ज् + ञ), श्र (श् + र) के लिए क्रमशः ‘त’, ‘ज’ और ‘श’ वाले खाने में जाना पड़ेगा।
- ङ, ब, ण, ड, ढ़ से कोई शब्द आरम्भ नहीं होता, इसलिए ये स्वतन्त्र रूप से शब्दकोष में नहीं मिलते।
वस्तुनिष्ठ प्रश्नावली
प्रश्न 1.
भाषा की सबसे छोटी इकाई है (उत्तराखण्ड पुलिस उपनिरीक्षक परीक्षा 2014)
(a) शब्द
(b) व्यंजन
(c) स्वर
(d) वर्ण
उत्तर :
(d) वर्ण
प्रश्न 2.
हिन्दी में मूलतः कितने वर्ण हैं?
(a) 52
(b) 50
(c) 40
(d) 46
उत्तर :
(d) 46
प्रश्न 3.
हिन्दी भाषा में वे कौन-सी ध्वनियाँ हैं जो स्वतन्त्र रूप से बोली या लिखी जाती हैं? (उत्तराखण्ड पुलिस सब-इंस्पेक्टर परीक्षा 2011)
(a) स्वर
(b) व्यंजन
(c) वर्ण
(d) अक्षर
उत्तर :
(a) स्वर
प्रश्न 4.
संयुक्त को छोड़कर हिन्दी में मूल वर्गों की संख्या है।
(a) 36
(b) 44
(c) 48
(d) 53
उत्तर :
(b) 44
प्रश्न 5.
स्वर कहते हैं
(a) जिनका उच्चारण ‘लघु’ और ‘गुरु’ में होता है
(b) जिनका उच्चारण बिना अवरोध अथवा विघ्न-बाधा के होता है
(c) जिनका उच्चारण स्वरों की सहायता से होता है
(d) जिनका उच्चारण नाक और मुँह से होता है
उत्तर :
(b) जिनका उच्चारण बिना अवरोध अथवा विघ्न-बाधा के होता है
प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से अग्र स्वर नहीं है
(a) अ
(b) इ
(c) ए
(d) ऐ
उत्तर :
(a) अ
प्रश्न 7.
हिन्दी में स्वरों के कितने प्रकार हैं?
(a) 1
(b) 2
(c) 3
(d) 4
उत्तर :
(c) 3
प्रश्न 8.
हिन्दी वर्णमाला में ‘अं’ और ‘अ’ क्या है? (यू.जी.सी. नेट/जे.आर.एफ. दिसम्बर 2012)
(a) स्वर
(b) व्यंजन
(c) अयोगवाह
(d) संयुक्ताक्षर
उत्तर :
(c) अयोगवाह
प्रश्न 9.
जिनके उच्चारण में दीर्घ स्वर से भी अधिक समय लगता है, वे कहलाते हैं
(a) मूल स्वर
(b) प्लुत स्वर
(c) संयुक्त स्वर
(d) अयोगवाह
उत्तर :
(b) प्लुत स्वर
प्रश्न 10.
निम्नलिखित में से कौन स्वर नहीं है? (उत्तराखण्ड पुलिस उपनिरीक्षक परीक्षा 2014)
(a) अ
(b) उ
(c) ए
(d) ञ
उत्तर :
(d) ञ
पद (Pad Parichay) – Phrases – पद क्या होता है?
‘पद-परिचय’- को कई नामों से जाना जाता है—वाक्य-विवरण, पद-निर्देश, पद-निर्णय, पद-विन्यास, शब्दबोध, पदान्वय, पद-विश्लेषण, पदच्छेद आदि। “वाक्य में प्रयुक्त पदों को बिलगाने, लिंग-वचन आदि को बिखराने और दूसरे पदों से उनके संबंध बताने को ही ‘पद-परिचय कहते हैं।” वाक्य में किसी पद का क्या स्थान है? वह संज्ञा, सर्वनाम, विस्मयादिबोधक आदि में से क्या है तथा उसका भी आगे कौन-सा उपभेद है, यह जानना अत्यावश्यक है, तभी उसके बारे में पूर्ण विवरण दिया जा सकता है।
1. संज्ञापद का परिचय
किसी संज्ञापद का परिचय देने के लिए निम्न बातें लिखी जानी चाहिए :
1. संज्ञापद किस भेद में है
2. उसका लिंग-वचन-कारक-पुरुष
3. वाक्य में अन्य पदों से उसका संबंध
4. वाक्य के अंगों में वह क्या काम कर रहा है
नीचे लिखे उदाहरणों को ध्यानपूर्वक देखें
1. आशु रामानुज की पुत्री है।
आशुः व्यक्तिवाचक संज्ञा है।
स्त्रीलिंग, एकवचन और अन्यपुरुष है।
‘है’ क्रिया का कर्ता है।
वाक्य का उद्देश्य है।
2. कहते हैं, बुढ़ापा बचपन का ही पुनरागमन है।
बुढ़ापा : भाववाचक संज्ञा है।
पुंल्लिग, एकवचन और अन्यपुरुष है।
है क्रिया का कर्ता है।
वाक्य का उद्देश्य है।
3. रानीगंज में कोयला पाया जाता है।
कोयला : द्रव्यवाचक संज्ञा है।
पुँल्लिग, एकवचन और अन्यपुरुष है।
‘जाता है’ क्रिया का कर्ता है।
वाक्य का उद्देश्य है।
2. सर्वनाम पद का परिचय
सर्वनाम पद का परिचय देने में निम्न बातों पर ध्यान देना चाहिए :
1. सर्वनामपद किस भेद में है
2. वचन, लिंग, कारक और पुरुष क्या है?
3. वाक्य के दूसरे पदों से उसका संबंध
4. किस संज्ञा के लिए प्रयुक्त हुआ है
5. वाक्य के अंगों में वह क्या है
निम्नलिखित उदाहरणों को देखें :
1. वह रोज सुबह में टहलता है।
वह : पुरुषवाचक सर्वनाम है।
पुंल्लिग, एकवचन और अन्यपुरुष में है।
‘टहलता है’ क्रिया का कर्ता है।
वाक्य का उद्देश्य है।
2. मैं आप चला जाता हूँ, गार्ड बुलाने की क्या जरूरत है।
आप : निजवाचक सर्वनाम जो ‘मैं’ के लिए आया है।
पुँल्लिग, एकवचन, उत्तमपुरुष है।
वाक्य में विधेय का विस्तार है।
3. विशेषणपद का परिचय
इस पद का परिचय इस प्रकार दिया जाता है :
1. पद विशेषण के किस भेद का है
2. किस विशेष्यण का विशेषण है?
3. पद का लिंग-वचन-पुरुष (विशेष्य के अनुसार)
4. यदि प्रविशेषण है तो इसका उल्लेख
5. वाक्य के अंगों में क्या है
निम्नलिखित उदाहरणों पर गौर करें :
1. प्रत्येक मनुष्य परिश्रमी है। (राजस्थान बोर्ड-2008)
प्रत्येकः प्रत्येक बोधक संख्यावाचक विशेषण जिसका विशेष्य मनुष्य है।
पुँ, एकवचन और अन्यपुरुष है।
वाक्य में उद्देश्य का विस्तार है।
परिश्रमी : गुणवाचक विशेषण, जिसका विशेष्य मनुष्य है।
पुँ, एकवचन, अन्यपुरुष है।
वाक्य में विधेय का विस्तार है।
2. मेरे लिए चार लीटर दूध काफी होगा। चार लीटर : परिमाणवाचक विशेषण, जिसका विशेष्य दूध है।
पुँ, एकवचन और अन्यपुरुष है।
वाक्य में उद्देश्य का विस्तार है।
4. क्रियापद का परिचय
क्रियापद का परिचय देने के लिए निम्न बातों का जिक्र होना चाहिए।
1. क्रिया का भेद (अकर्मक-सकर्मक आदि)
2. क्रिया किस काल और वाच्य में है।
3. क्रिया का लिंग-वचन-पुरुष
4. कर्ता, कर्म आदि से संबंध
5. वाक्य का अंग
निम्नलिखित उदाहरणों को देखें :
1. हनी कविता पढ़ रही है।
पढ़ रही है :सकर्मक क्रिया है, जिसका कर्ता ‘हनी’ है।
स्त्रीलिंग, एकवचन और अन्यपुरुष है।
यह तात्कालिक वर्तमान काल की है।
इसका कर्तरि प्रयोग यानी कर्तृवाच्य में प्रयोग है। इसका कर्म कविता है।
यह वाक्य का विधेय है।
2. वह पढ़कर खेलता है।
पढ़कर : यह पूर्वकालिक क्रिया है।
इसका कर्ता ‘वह’ है।
यह भूतकाल में है और ‘खेलना’ का पूरक है।
यह पुँ०, एकवचन और अन्यपुरुष में है।
यह वाक्य में विधेय का विस्तार है।
5. क्रियाविशेषणपद का परिचय
चूँकि क्रियाविशेषण, संबंधबोधक, समुच्चयबोधक और विस्मयादिबोधक अव्यय (अविकारी) होते हैं, इसलिए इनके कोई लिंग-वचन-पुरुष नहीं हो सकते। क्रियाविशेषण के परिचय में निम्न बातें ही लिखी जाएँगी :
1. क्रियाविशेषण का कौन-सा भेद है
2. किस क्रिया से जुड़ा है
3. वाक्य के अंगों में क्या है
निम्नलिखित उदाहरणों को ध्यानपूर्वक देखें :
1. कछुआ धीरे-धीरे चलता है।
धीरे-धीरे : रीतिवाचक क्रियाविशेषण, जिसकी क्रिया ‘चलता है’ है।
वाक्य में विधेय का विस्तार है।
2. हाथी बहुत खाता है।
बहुत : यह परिमाणवाचक क्रियाविशेषण है, जिसकी क्रिया ‘खाता है’ है।
यह वाक्य में विधेय का विस्तार है।
6. संबंधबोधक अव्ययपद का परिचय
इस पद के परिचय में निम्नलिखित बातें होंगी :
1. कौन-सा भेद
2. किससे संबंध
3. वाक्य के अंगों में क्या है
निम्नलिखित उदाहरण को देखें :
संसद की बैठक के पश्चात् प्रीतिभोज होगा।
के पश्चात् : कालवाचक संबंधबोधक अव्यय है।
यह ‘बैठक’ और ‘प्रीतिभोज’ का संबंध बताता है।
यह वाक्य में विधेय का विस्तार है।
7. समुच्चयबोधक अव्यय का पद-परिचय
इस पद के परिचय में निम्नलिखित बातें लिखी जाती है :
1. किस भेद के अंतर्गत है
2. किन पदों, वाक्यों को जोड़ रहा है।
3. वाक्य के अंगों में क्या है
1. अनुभा और अंशु दोनों थियेटर जा रही हैं। और : यह योजक है।
यह दो कर्ताओं ‘अनुभा’ और ‘अंशु’ को जोड़ता है।
यह वाक्य में उद्देश्य का विस्तार है।
2. सूर्य उगा और अँधेरा भागा।
और : यह योजक है।
यह दो सरल वाक्यों को जोड़ रहा है।
8. विस्मयादिबोधकपद का परिचय
विस्मयादिबोधक पद का परिचय देने के लिए निम्नलिखित बातें लिखें :
1. यह किस भाव (आश्चर्य, भय, शोक, क्रोध, घृणा, हर्ष, निराशा आदि) को प्रकट करता है?
2. वाक्य के अंगों में क्या है जैसे-
हाय ! उसका इकलौता पुत्र भी चल बसा।
हाय : यह शोकबोधक है।
वाक्य में उद्देश्य का विस्तार है।
नोट : पद-परिचय में यह ध्यान रखने योग्य बात है कि कभी-कभी व्याकरणिक रूप से शब्द कुछ और होता है और वाक्य में किसी और रूप में प्रयुक्त होता है। नीचे लिखे उदाहरणों को देखें
1. वह गाय पालता है। (सर्वनाम)
2. वह गाय बहुत दूध देती है। (विशेषण)
3. यदि वे दौड़ते तो मैं भी दौड़ता। (क्रिया)
4. दौड़ते को मत रोको। (संज्ञा)
5. दौड़ते लड़के को बुला लो। (विशेषण)
6. वहाँ बहुत लड़के हैं। (विशेषण)
7. उसने बहुत बड़ा काम किया है। (प्रविशेषण)
8. वह बहुतों को जानता है। (संज्ञा)
9. लड़का बहुत दौड़ा है। (क्रियाविशेषण)
10. प्रवर अच्छा लड़का है। (विशेषण)
11. प्रवर अच्छा गाता है। (क्रियाविशेषण)
12. अच्छा ! प्रवर भी आया है। (विस्मयादिबोधक)
अभ्यास 1. निर्देशानुसार बताइए :
निर्देश : लाल शब्दों वाले संज्ञाओं के प्रकार लिखिए:
1. जटिल प्राणियों के लिए सालिम अली हमेशा एक पहेली बने रहे।
2. एक सूक्ष्म बदलाव आया है नई स्थिति में।
3. सौन्दर्य प्रसाधनों की भीड़ तो चमत्कृत कर देनेवाली है।
4. छोड़िए इस सामग्री को वस्तु और परिधान की दुनिया में आइए।
5. यह विशिष्टजन का समाज है।
6. अब हमें सबसे विकट डाँङ् थोड़ला पार करना था।
7. ऊँचाई होने के कारण मीलों तक कोई गाँव नहीं होते।
8. डकैत पहले आदमी को मार देते हैं।
9. चढ़ाई तो कुछ मुश्किल थी लेकिन उतराई बिल्कुल नहीं।
10. आसपास के गाँव में सुमति के कितने ही यजमान थे।
11. तिब्बत की जमीन छोटे-बड़े जागीरदारों में बँटी है।
12. पहले चाय-सत्तू खाया गया।
13. दक्षिण के मंदिरों में कमाल की कारीगरी की गई है।
14. सालिम अली की किसी से भी शत्रुता नहीं थी।
15. लड़कपन में हम क्या-क्या किया करते थे। निर्देश : लाल शब्दों वाले पदों के कारक बताइए :
16. बालिका स्कूल से आई है।
17. पेड़ पर चिड़ियाँ बैठी हैं।
18. परीक्षा मार्च में होगी।
19. हुसैन ने तुलिका से चित्र बनाया।
20. जहाज नदी में डूब गया।
21. नवाब साहब ने चाकू से खीरे काटे।
22. उसने खीरे के चार-चार फाँक किए।
23. पुजारी ने भक्तों को प्रसाद दिया।
24. अरे मूर्ख ! क्या कर रहे हो
25. मैंने दो टोकरी कंडे फूंक डाले।
26. बालक ने भिखारी को भोजन कराया।
27. कभी कभी संवेदनशील व्यक्तियों से देश की दुर्दशा देखी नहीं जाती।
28. मैनेजर ने कर्मचारियों को बोनस दिया।
29. हमने आत्मीय जनों के लिए उपहार खरीदे।
30. हमने कहा, “लड़के! तेरा नाम क्या है”
31. वह अचानक हाथी से उतर गया।
32. स्वामी रामदेव जापान यात्रा पर गए हैं।
33. देश के निर्माण के लिए तुम भी अपना योगदान दो।
34. बालिका ने अपना परिचय देते हुए कहा, “मैं आपकी लाडली मैरी की सहेली मैना हूँ।”
35. माटीवाली की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी।
36. काका कालेलकर ने जंगलों की खाक छानी है।
37. विज्ञापन की भाषा में यही राइट च्वाइस है बेबी !
38. राघवेन्द्र के बेटी हुई है।
39. यहाँ से बाहर निकलो।
40. मैं आँखों देखा कह रहा हूँ।
निर्देशः लाल शब्दों वाले सर्वनाम के प्रकार बताइए :
41. हमने तो उसे खुश होते कभी नहीं देखा है।
42. मैं यह कपड़ा आप सी लूँगा।
43. अपना यों बेचा जाना उन्हें अच्छा लगा या बुरा कौन जाने?
44. दोनों जब नाँद में लगाए गए तो एक ने भी उसमें मुँह न डाला।
45. जो मेहनत करेगा, वह मीठे फल का स्वाद चखेगा।
46. ये बैल हैं।
47. ये कहाँ जा रहे हैं?
48. वह जरा भी धीमी चाल हो जाने पर डंडा जमा देता था।
49. आप खुद जाकर चोङी में चाय मथकर ला सकते हैं।
50. उस वक्त किसी ने हमें ठहरने की जगह नहीं दी।
51. जो चाहे चुन लीजिए।
52. ये ट्रेंडी हैं और महँगे भी।
53. उनमें सम्मोहन की शक्ति है और वशीकरण की भी।
54. पिताजी ! आपकी जेब में कुछ है।
55. कोई रोक-टोक सके, कहाँ संभव है।
56. आपने क्या खाया है
57. देखो तो कौन आया है? निर्देशः लाल शब्दों वाले विशेषणों के प्रकार बताइए :
58. इस चिलचिलाती धूप में निकलना मुश्किल है।
59. चारों लड़के बीमार नहीं हैं तो और क्या हैं
60. इस मुहल्ले का बजबजाता नाला नगर निगम की पोल खोल रहा है।
61. हिमालय की प्राकृतिक सुषमा मन को मोह लेती है।
62. अरे भाई! यह आम तो खट्टा चुक चुक है।
63. जैसी करनी, वैसी भरनी।
64. प्रत्येक तीन घंटों पर यहाँ से एक गाड़ी खुलती है।
65. सवा रुपये की लाई बाज़ार में छितराई।
66. दसवीं कक्षा का लड़का बड़ा होनहार होता है।
67. सालों बाद उसका पति घर लौटा है।
68. वह आदमी कम मेहनती नहीं है।
69. जैसा काम, वैसा ही दाम।
70. जितनी आमद है, उतना ही खर्च करो, यार।
71. साहस जिंदगी का महत्त्वपूर्ण गुण है।
72. बिहारी लड़के भी कम प्रतिभावान् नहीं होते।
73. दीपू घटिया विचार रखता है।
74. बीमार लड़का रो रहा है।
75. महाभारत अठारह दिन तक चला।
76. क्या तुम्हें रास्ते में चलते लोग दिखाई नहीं देते?
77. पहर दो पहर क्या अनेकों पहर तक।
निर्देश : लाल शब्दों वाले क्रियाओं के प्रकार बताइए:
78. उसका सिर खुजलाता है।
79. बूँद-बूँद से घड़ा भरता है।
80. नवाब साहब ने जेब से चाकू निकाला।
81. बिस्मिल्ला खाँ को याद करना शांत संगीत सुनने-सा है।
82. एड़ी घिसती है।
83. वह सवेरे उठ जाता है।
84. वे लौटें तो लौट जाएँ पर मैं नहीं।
85. मैंने भोजन बनवा लिया है।
86. दौड़-दौड़कर थक जाओगे तुम।
87. वह बच्चा भी अब पढ़ने-लिखने लगा है।
88. किसके जीवन में कष्ट नहीं आता?
89. वह चाँदी की कटोरी के लिए आँसू बहा रही है।
90. वही सपना सच होता है, जो अपको सोने नहीं देता। निर्देश : लाल शब्दों वाले अव्ययों के प्रकार बताइए :
91. सुरेश अचानक वहाँ से भाग निकला।
92. वह बहुत धीरे खा रहा है।
93. ऐं ! इतना बड़ा झूठ।
94. वह बोलता तो है; किन्तु साफ साफ नहीं।
95. या तो वह जाएगा अथवा मैं।
96. यद्यपि मैं वहाँ नहीं था तथापि सब कुछ बता सकता हूँ।
97. मारे भूख के मैं तो मरा ही जा रहा हूँ।
98. वह बेचारा आजीवन काम करता ही रहा।
99. वह कुशलपूर्वक है।
100. इधर-उधर मत झाँका करो।
101. शाबाश ! यही उम्मीद थी तुमसे।
102. उसने श्रद्धापूर्वक मेरा सत्कार किया।
103. इतना खा रहे हो, पचा भी पाओगे क्या?
अभ्यास 2.
निर्देशानुसार उत्तर लिखिए: निर्देश : लाल शब्द में अंकित पदों का परिचय दीजिए (केवल शब्द-भेद, लिंग और वचन)।
1. खड़ा हिमालय बता रहा है, डरो न आँधी पानी में।
2. उन्हें कुछ दे देना चाहिए।
3. किसने ऐसा कहा है
4. इतनी उँचाई पर पहुँचकर भी कितनी घटिया सोच है !
5. अहा ! क्या सौन्दर्य है।
6. यह पावस की साँझ रंगीली।
7. इन्द्रधनुष की आभा सुन्दर, साथ खड़े हो इसी जगह पर।
8. मत देख नजर लग जाएगी।
9. हो रहा है साथ में तेरे बड़ा भारी प्रवंचन।
10. आँसू भी न बहायेंगे हम, जग से क्या ले जायेंगे हम?
11. सन्नाटा वसुधा पर छाया, नभ में हमने कान लगाया।
12. ऊपर देव तले मानवगण।
13. क्यों जुगनूँ जल जल करता है, तरु के नीड़ों की रखवाली
14. सोच, बादल के हृदय ने क्या क्या न आघात सहे हैं।
15. जब रात रोती है, भीग जाती है जमी।।
16. एक उर में आह उठती है, कहीं सृष्टि कराह उठती है।
17. हुई बहुत दिन आँखमिचौनी, बात नहीं थी यह अनहोनी।
18. रो रही बुलबुल विकल हो, इस निशा में अपना धन खो।
19. लिखें कथायें राज-राज़ की, या परिवर्तित अपने समाज की।
20. अतुल प्यार का अतुल घृणा में, मैंने परिवर्तन देखा है। निर्देशः लाल शब्द में अंकित पदों का पद-भेद और कारक बताइए:
21. ऊपर सत्ताधारी सुखिया, नीचे में सरपंच मुखिया।
22. आप आए, बहार आई।
23. चुभते काँटों को फूलों का हार बनादो तो जानूँ।
24. कौन कहता है कि मानव केवल परिस्थिति का दास होता है
25. चम-चम, चम-चम चपला चमकी। 26. वह पति से परेशान हो उठी।
27. शीला ने नौकरानी को बुलाया। 28. महाभारत अठारह दिन तक चला।
29. कृष्ण के द्वारा रूक्मणी का और अर्जुन द्वारा सुभद्रा का हरण किया गया।
30. हे ईश्वर ! इस संकट से बचालो देश को।
31. परस्पर विश्वास करना ही मित्रता का आधार है।
32. अभी तो आपका पत्र मिला है।
33. वहाँ बहुत-सारे लड़के थे। 34. निरन्तर मेहनत करने से ही आदमी आगे बढ़ता है।
35. लाखों ही मुसाफिर चलते हैं, मंजिल पे पहुँचते हैं, दो एक।
36. एक अकेला आदमी कहाँ कहाँ बँटता फिरेगा?
निर्देशः लाल शब्द में अंकित पदों का वाक्यांश बताइए:
37. गाँधी की आँधी उड़ा ले गई अंग्रेजी हुकूमत को।
38. धुआँ उठा आँगन के ऊपर कई दिनों के बाद।
39. आधुनिक तुर्की के निर्माता मुस्तफा कमाल पाशा थे।
40. गाँव-का-गाँव लील गई 2007 की बाढ़।
41. काँप उठी ममता थर-थर उस माँ के हृदय विशाल की।
42. ये लोहा पीट रहे हैं, तुम मन को पीट रहे हो।
43. मैं झिझक उठा, हुआ बेचैन-सा।
44. तुम मुझे ही बार-बार परेशान क्यों कर रहे हो?
45. अमरीका की नीति को सभी विकासशील राष्ट्र घातक मानते हैं।
46. कोई लूटता है तो कोई लुट जाता है।
47. एक उजली चटुल मछली चोंच पीली में दबाकर दूर उड़ती है गगन में।
48. मैं बचपन को बुला रही थी।
49. यह गाँधी मरकर पड़ा नहीं है धरती पर।
50. जाकर देखो बागों में बहारों की महफिल है सजी।
अभ्यास-3
निम्नलिखित वाक्यों में रेखांकित पदों का परिचय लिखें :
1. शत्रु कभी विश्वास के योग्य नहीं होता।
2. वह प्रातःकाल भ्रमण के लिए जाता है।
3. हे ईश्वर, इस संकट से देश को बचाओ।
4. अभी-अभी आपका पत्र मिला, पढ़कर बहुत खुशी हुई।
5. परस्पर विश्वास करना मित्रता में सहायक होता है।
6. कश्मीर अपनी प्राकृतिक सुषमा के लिए विश्व-प्रसिद्ध है।
7. नीतीश कुमार की नीति ने बिहार की शिक्षा-व्यवस्था चौपट कर दी है।
8. वाह ! इंडिया टीम जीत गई।
9. ममतामयी माँ के लिए सारी औलादें एक समान होती हैं।
10. वह आजकल दिल्ली में रहता है।
11. ग्रीष्मऋतु में आइसक्रीम अच्छा लगता है।
12. ज्योति अच्छा बोलती है।
13. बरसात में गंदा पानी आता है। [Bihar Board 2000, 2005]
14. प्रत्येक मनुष्य परिश्रमी है। [Raj. Board 2008]
15. वह गाय तुम्हें नहीं मारेगी। [Raj. Board 2007]
16. आकाश में घनघोर घटाएँ छा गई हैं। [Raj. Board 2007]
17. बाजार में कीमती वस्तुएँ मिलती हैं।
18. अरविन्द बाग में आम खा रहा है।
19. मैंने एक लड़ाकू विमान देखा। [CBSE 2009]
20. मुझे बार-बार घर की याद आती है। [CBSE 2009]
21. वह कौन है, जो छत पर खड़ा है। [CBSE 2009]
22. एक अकेला आदमी कहाँ-कहाँ बँटता फिरेगा?
23. आपका कहना अपनी जगह सही है।
24. निरन्तर मेहनत करने से ही आदमी आगे बढ़ता है।
25. लाखों ही मुसाफिर चलते हैं, मंजिल पे पहुँचते हैं दो-एक।
26. कहिए तो आसमां को भी जमीं पर उतार लाएँ।
मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिए।।
निर्देशः सही विकल्पों को चुनकर लिखें
1. वाक्यों में प्रयुक्त शब्द क्या कहलाता है
a) शब्द (b) पद (c) पदबंध (d) पद-परिचय
उतर :
(b) पद
2. वाक्यों में प्रयुक्त पदों का व्याकरणिक परिचय देना अथवा व्याकरण के अनुसार उनका स्वरूप बताना, कहलाता है
(a) पद-परिचय (b) उपवाक्य (c) पदबंध (d) उक्त सभी
उतर :
(a) पद-परिचय
3. पद-परिचय के लिए अत्यावश्यक है–
(a) प्रत्येक पद को अलग-अलग करना
(b) प्रत्येक पद का प्रभार एवं वाक्य से संबंध दर्शाना
(c) प्रत्येक पद का कार्य बताना और वाक्य-विन्यास करना
(d) उपर्युक्त सभी
उतर :
(d) उपर्युक्त सभी
4. संज्ञा पद’ के परिचय में
(a) संज्ञा का भेद, लिंग, वचन, पुरुष बताया जाता है
(b) संज्ञा का कारक और वाक्यांग बताया जाता है
(c) क्रिया या अन्य पदों से संबंध बताया जाता है
(d) उपर्युक्त सभी कार्य किये जाते हैं।
उतर :
(d) उपर्युक्त सभी कार्य किये जाते हैं।
5. वाक्य के मुख्यतया कितने अंग होते हैं
(a) चार (b) पाँच (c) आठ (d) दो
उतर :
(d) दो
6. संज्ञा के कुल कितने प्रकार हैं
(a) तीन (b) चार (c) पाँच (d) छह
उतर :
(c) पाँच
7. सर्वनाम पद के परिचय में बताया जाता है
(a) सर्वनाम के भेद, लिंग, वचन, पुरुष, काल, क्रिया से संबंध
(b) सर्वनाम के भेद, वचन, पुरुष, कारक, क्रिया से संबंध और वाक्यांग
(c) सर्वनाम के प्रकार, लिंग, वचन-पुरुष और कारक
(d) उपर्युक्त सभी
उतर :
(b) सर्वनाम के भेद, वचन, पुरुष, कारक, क्रिया से संबंध और वाक्यांग
8. विशेषण-पद के परिचय में अनिवार्य है
(a) भेद (b) लिंग (c) वचन, अवस्था, विशेष्य (d) उक्त सभी
उतर :
(d) उक्त सभी
9. विशेषण होता है
(a) प्रायः संज्ञा एवं सर्वनाम के अनुसार
(b) प्रायः विशेष्य के लिंग-वचन के अनुसार
(c) प्रायः स्वतंत्र
(d) प्रायः पुं०-एकवचन-अन्य पुरुष
उतर :
(b) प्रायः विशेष्य के लिंग-वचन के अनुसार
10. संज्ञा प्रायः रहती है-
(a) अन्य पुरुष में (b) मध्यम पुरुष में (c) उत्तम पुरुष में (d) उक्त तीनों पुरुषों में
उतर :
(a) अन्य पुरुष में
वाक्य – वाक्य की परिभाषा, भेद और उदाहरण : हिन्दी व्याकरण
भाषा हमारे भावों-विचारों की अभिव्यक्ति का माध्यम है। भाषा की रचना वर्णों, शब्दों और वाक्यों से होती है। दूसरे शब्दों में वर्णों से शब्द, शब्दों से वोक्य और वाक्यों से भाषा का निर्माण हुआ है। इस प्रकार वाक्य शब्दों के समूह का नाम है, लेकिन सभी प्रकार के शब्दों को एक स्थान पर रखकर वाक्य नहीं बना सकते हैं।
वाक्य की परिभाषा शब्दों का वह व्यवस्थित रूप जिसमें एक पूर्ण अर्थ की प्रतीति होती है, वाक्य कहलाता है। आचार्य विश्वनाथ ने अपने ‘साहित्यदर्पण’ में लिखा है
“वाक्यं स्यात् योग्यताकांक्षासक्तियुक्तः पदोच्चयः।”
अर्थात् योग्यता, आकांक्षा, आसक्ति से युक्त पद समूह को वाक्य कहते हैं।
वाक्य के तत्त्व
वाक्य के तत्त्व निम्न हैं-
1. सार्थकता सार्थकता वाक्य का प्रमुख गुण है। इसके लिए आवश्यक है कि वाक्य में सार्थक शब्दों का ही प्रयोग हो, तभी वाक्य भावाभिव्यक्ति के लिए सक्षम होगा; जैसे-राम रोटी पीता है।। यहाँ ‘रोटी पीना’ सार्थकता का बोध नहीं कराता, क्योंकि रोटी खाई जाती है। सार्थकता की दृष्टि से यह वाक्य अशुद्ध माना जाएगा। सार्थकता की दृष्टि से सही वाक्य होगा-राम रोटी खाता है। इस वाक्य को पढ़ते ही पाठक के मस्तिष्क में वाक्य की सार्थकता उपलब्ध हो जाती है। कहने का आशय है कि वाक्य का यह तत्त्व वाक्य रचना की दृष्टि से अनिवार्य है। इसके अभाव में अर्थ का अनर्थ सम्भव है।
2. क्रम क्रम से तात्पर्य है-पदक्रम। सार्थक शब्दों को भाषा के नियमों के अनुरूप क्रम में रखना चाहिए। वाक्य में शब्दों के अनुकूल क्रम के अभाव में अर्थ का अनर्थ हो जाता है; जैसे-नाव में नदी है। इस वाक्य में सभी शब्द सार्थक हैं, फिर भी क्रम के अभाव में वाक्य गलत है। सही क्रम करने पर नदी में नाव है वाक्य बन जाता है, जो शुद्ध है।
3. योग्यता वाक्य में सार्थक शब्दों के भाषानुकूल क्रमबद्ध होने के साथ-साथ उसमें योग्यता अनिवार्य तत्त्व है। प्रसंग के अनुकूल वाक्य में भावों का बोध कराने वाली योग्यता या क्षमता होनी चाहिए। इसके अभाव में वाक्य अशुद्ध हो जाता है; जैसे-हिरण उड़ता है। यहाँ पर हिरण और उड़ने की परस्पर योग्यता नहीं है, अत: यह वाक्य अशुद्ध है। यहाँ पर उड़ता के स्थान पर चलता या दौड़ता लिखें तो वाक्य शुद्ध हो जाएगा।
4. आकांक्षा आकांक्षा का अर्थ है-श्रोता की जिज्ञासा। वाक्य भाव की दृष्टि से इतना पूर्ण होना चाहिए कि भाव को समझने के लिए कुछ जानने की इच्छा या आवश्यकता न हो, दूसरे शब्दों में, किसी ऐसे शब्द या समूह की कमी न हो जिसके बिना अर्थ स्पष्ट न होता हो। उदाहरण के लिए कोई व्यक्ति हमारे सामने आए और हम केवल उससे ‘तुम’ कहें तो वह कुछ भी नहीं समझ पाएगा। यदि कहें कि अमुक कार्य करो तो वह पूरी बात समझ जाएगा। इस प्रकार वाक्य का आकांक्षा तत्त्व अनिवार्य है।
5. आसक्ति आसक्ति का अर्थ है-समीपता। एक पद सुनने के बाद उच्चारित अन्य पदों के सुनने के समय में सम्बन्ध, आसक्ति कहलाता है। यदि उपरोक्त सभी बातों की दृष्टि से वाक्य सही हो, लेकिन किसी वाक्य का एक शब्द आज, एक कल और एक परसों कहा जाए तो उसे वाक्य नहीं कहा जाएगा। अतएव वाक्य के शब्दों के उच्चारण में समीपता होनी चाहिए। दूसरे शब्दों में, पूरे वाक्य को एक साथ कहा जाना चाहिए।
6. अन्वय अन्वय का अर्थ है कि पदों में व्याकरण की दृष्टि से लिंग, पुरुष, वचन, कारक आदि का सामंजस्य होना चाहिए। अन्वय के अभाव में भी वाक्य अशुद्ध हो जाता है। अत: अन्वय भी वाक्य का महत्त्वपूर्ण तत्त्व है; जैसे-नेताजी का लड़का का हाथ में बन्दूक था। इस वाक्य में भाव तो स्पष्ट है लेकिन व्याकरणिक सामंजस्य नहीं है। अत: यह वाक्य अशुद्ध है।यदि इसे नेताजी के लड़के के हाथ में बन्दूक थी, कहें तो वाक्य व्याकरणिक दृष्टि से शुद्ध होगा।
वाक्य के अंग वाक्य के अंग निम्न प्रकार हैं-
1. उद्देश्य वाक्य में जिसके बारे में कुछ बताया जाता है, उसे उद्देश्य कहते हैं;
जैसे-
- राम खेलता है। (राम-उद्देश्य)
- श्याम दौड़ता है। (श्याम-उद्देश्य)
उपरोक्त वाक्यों में राम और श्याम के विषय में बताया गया है। अत: राम और श्याम यहाँ उद्देश्य रूप में प्रयुक्त हुए हैं।
2. विधेय वाक्य में उद्देश्य के बारे में जो कुछ कहा जाता है, उसे विधेय कहते हैं;
जैसे-
- बच्चे फल खाते हैं। (फल खाते हैं-विधेय)
- राहुल क्रिकेट मैच देख रहा है। (क्रिकेट मैच देख रहा है-विधेय)
उपरोक्त वाक्यों में फल खाते हैं और क्रिकेट मैच देख रहा है वाक्यांश क्रमशः बच्चे तथा राहुल के बारे में कहे गए हैं। अतः स्थूलांकित वाक्यांश विधेय रूप में प्रयुक्त हुए हैं।
वाक्यों का वर्गीकरण
वाक्यों का वर्गीकरण दो आधारों पर किया गया है
1. रचना के आधार पर
रचना के आधार पर वाक्य तीन प्रकार के होते हैं-
(i) सरल वाक्य वे वाक्य जिनमें एक उद्देश्य तथा एक विधेय हो। सरल या साधारण वाक्य कहलाते हैं। जैसे-श्याम खाता है। इस वाक्य में एक ही कर्ता (उद्देश्य) तथा एक ही क्रिया (विधेय) है। अत: यह वाक्य सरल या साधारण वाक्य है।
(ii) मिश्र वाक्य वे वाक्य, जिनमें एक साधारण वाक्य हो तथा उसके अधीन या आश्रित दूसरा उपवाक्य हो, मिश्र वाक्य कहलाते हैं। जैसे-श्याम ने लिखा है, कि वह कल आ रहा है। वाक्य में श्याम ने लिखा है-प्रधान उपवाक्य, वह कल आ रहा है आश्रित उपवाक्य है तथा दोनों समुच्चयबोधक अव्यय ‘कि’ से जुड़े हैं, अत: यह मिश्र वाक्य है।
(iii) संयुक्त वाक्य वे वाक्य, जिनमें एक से अधिक प्रधान उपवाक्य हों (चाहे वह मिश्र वाक्य हों या साधारण वाक्य) और वे संयोजक अव्ययों द्वारा जुड़े हों, संयुक्त वाक्य कहलाते हैं। जैसे-वह लखनऊ गया और शाल ले आया। इस वाक्य में दोनों ही प्रधान उपवाक्य हैं तथा और संयोजक द्वारा जुड़े हैं। अत: यह संयुक्त वाक्य है।
रचना के आधार पर वाक्य के भेद एवं उनकी पहचान नीचे दी गई तालिकानुसार समझी जा सकती है।
2. अर्थ के आधार पर अर्थ के आधार पर वाक्य आठ प्रकार के होते हैं-
(i) विधिवाचक वाक्य वे वाक्य जिनसे किसी बात या कार्य के होने का बोध होता है, विधिवाचक वाक्य कहलाते हैं;
जैसे-
- श्याम आया।
- तुम लोग जा रहे हो।
(ii) निषेधवाचक वाक्य वे वाक्य, जिनसे किसी बात या कार्य के न होने अथवा इनकार किए जाने का बोध होता है, निषेधवाचक वाक्य कहलाते हैं;
जैसे-
- राम नहीं पढ़ता है।
- मैं यह कार्य नहीं करूँगा आदि।
(iii) आज्ञावाचक वाक्य वे वाक्य, जिनसे किसी प्रकार की आज्ञा का बोध होता है, आज्ञावाचक वाक्य कहलाते हैं;
जैसे-
- श्याम पानी लाओ।
- यहीं बैठकर पढ़ो आदि।
(iv) विस्मयवाचक वाक्य वे वाक्य जिनसे किसी प्रकार का विस्मय, हर्ष, दुःख, आश्चर्य आदि का बोध होता है, विस्मयवाचक वाक्य कहलाते हैं;
जैसे-
- अरे! वह उत्तीर्ण हो गया।
- अहा! कितना सुन्दर दृश्य है आदि।
(v) सन्देहवाचक वाक्य वे वाक्य, जिनसे किसी प्रकार के सन्देह या भ्रम का बोध होता है, सन्देहवाचक वाक्य कहलाते हैं;
जैसे-
- वह अब जा चुका होगा।
- महेश पढ़ा-लिखा है या नहीं आदि।
(vi) इच्छावाचक वाक्य वे वाक्य, जिनसे किसी प्रकार की इच्छा या कामना का बोध होता है, इच्छावाचक वाक्य कहलाते हैं;
जैसे-
- ईश्वर आपकी यात्रा सफल करे।
- आप जीवन में उन्नति करें।
- आपका भविष्य उज्ज्वल हो आदि।
(vii) संकेतवाचक वाक्य वे वाक्य, जिनसे किसी प्रकार के संकेत या इशारे का बोध होता है, संकेतवाचक वाक्य कहलाते हैं;
जैसे-
- जो परिश्रम करेगा वह सफल होगा।
- अगर वर्षा होगी तो फसल भी अच्छी होगी आदि।
(viii) प्रश्नवाचक वाक्य वे वाक्य, जिनसे किसी प्रश्न के पूछे जाने का बोध होता है, प्रश्नवाचक वाक्य कहलाते हैं;
जैसे-
- आपका क्या नाम है?
- तुम किस कक्षा में पढ़ते हो? आदि।
उपवाक्य
जिन क्रियायुक्त पदों से आंशिक भाव व्यक्त होता है, उन्हें उपवाक्य कहते हैं;
जैसे-
- यदि वह कहता
- यदि मैं पढ़ता
- यद्यपि वह अस्वस्थ था आदि।
उपवाक्य के भेद
उपवाक्य के दो भेद होते हैं जो निम्न हैं
1. प्रधान उपवाक्य
जो उपवाक्य पूरे वाक्य से पृथक् भी लिखा जाए तथा जिसका अर्थ किसी दूसरे पर आश्रित न हो, उसे प्रधान उपवाक्य कहते हैं।
2. आश्रित उपवाक्य
आश्रित उपवाक्य प्रधान उपवाक्य के बिना पूरा अर्थ नहीं दे सकता। यह स्वतंत्र लिखा भी नहीं जा सकता; जैसे—यदि सोहन आ जाए तो मैं उसके साथ चलूँ। यहाँ यदि सोहन आ जाए-आश्रित उपवाक्य है तथा मैं उसके साथ चलूँ-प्रधान उपवाक्य है।
आश्रित उपवाक्यों को पहचानना अत्यन्त सरल है। जो उपवाक्य कि, जिससे कि, ताकि, ज्यों ही, जितना, ज्यों, क्योंकि, चूँकि, यद्यपि, यदि, जब तक, जब, जहाँ तक, जहाँ, जिधर, चाहे, मानो, कितना भी आदि शब्दों से आरम्भ होते हैं वे आश्रित उपवाक्य हैं। इसके विपरीत, जो उपवाक्य इन शब्दों से आरम्भ नहीं होते वे प्रधान उपवाक्य हैं। आश्रित उपवाक्य तीन प्रकार के होते हैं।
जिनकी पहचान निम्न प्रकार से की जा सकती है
- संज्ञा उपवाक्य संज्ञा उपवाक्य का प्रारम्भ कि से होता है।
- विशेषण उपवाक्य विशेषण उपवाक्य का प्रारम्भ जो अथवा इसके किसी रूप (जिसे, जिसको, जिसने, जिनको आदि) से होता है।
- क्रिया विशेषण उपवाक्य क्रिया-विशेषण उपवाक्य का प्रारम्भ ‘जब’, ‘जहाँ’, ‘जैसे’ आदि से होता है।
वाक्यों का रूपान्तरण
किसी वाक्य में अर्थ परिवर्तन किए बिना उसकी संरचना में परिवर्तन की प्रक्रिया वाक्यों का रूपान्तरण कहलाती है। एक प्रकार के वाक्य को दूसरे प्रकार के वाक्यों में बदलना वाक्य परिवर्तन या वाक्य रचनान्तरण कहलाता है। वाक्य परिवर्तन की प्रक्रिया में इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि वाक्य का केवल प्रकार बदला जाए, उसका अर्थ या काल आदि नहीं।
वाक्य परिवर्तन करते समय ध्यान रखने योग्य बातें
वाक्य परिवर्तन करते समय निम्नलिखित बातें ध्यान रखनी चाहिए
- केवल वाक्य रचना बदलनी चाहिए, अर्थ नहीं।
- सरल वाक्यों को मिश्र या संयुक्त वाक्य बनाते समय कुछ शब्द या सम्बन्धबोधक अव्यय अथवा योजक आदि से जोड़ना। जैसे- क्योंकि, कि, और, इसलिए, तब आदि।
- संयुक्त/मिश्र वाक्यों को सरल वाक्यों में बदलते समय योजक शब्दों या सम्बन्धबोधक अव्ययों का लोप करना
1. सरल वाक्य से मिश्र वाक्य में परिवर्तन
- लड़के ने अपना दोष मान लिया। – (सरल वाक्य)
लड़के ने माना कि दोष उसका है। – (मिश्र वाक्य) - राम मुझसे घर आने को कहता है। – (सरल वाक्य)
राम मुझसे कहता है कि मेरे घर आओ। – (मिश्र वाक्य) - मैं तुम्हारे साथ खेलना चाहता हूँ। – (सरल वाक्य)
मैं चाहता हूँ कि तुम्हारे साथ खेलूँ। – (मिश्र वाक्य) - आप अपनी समस्या बताएँ। – (सरल वाक्य)
आप बताएँ कि आपकी समस्या क्या है? – (मिश्र वाक्य) - मुझे पुरस्कार मिलने की आशा है। – (सरल वाक्य)
आशा है कि मुझे पुरस्कार मिलेगा। – (मिश्र वाक्य) - महेश सेना में भर्ती होने योग्य नहीं है। – (सरल वाक्य)
महेश इस योग्य नहीं है कि सेना में भर्ती हो सके। – (मिश्र वाक्य) - राम के आने पर मोहन जाएगा। – (सरल वाक्य)
जब राम जाएगा तब मोहन आएगा। – (मिश्र वाक्य) - मेरे बैठने की जगह कहाँ है? – (सरल वाक्य)
वह जगह कहाँ है जहाँ मैं बै? – (मिश्र वाक्य) - मैं तुम्हारे साथ व्यापार करना चाहता हूँ। – (सरल वाक्य)
मैं चाहता हूँ कि तुम्हारे साथ व्यापार करूँ। – (मिश्र वाक्य) - श्याम ने आगरा जाने के लिए टिकट लिया। – (सरल वाक्य)
श्याम ने टिकट लिया ताकि वह आगरा जा सके। – (मिश्र वाक्य) - मैंने एक घायल हिरन देखा। – (सरल वाक्य)
मैंने एक हिरण देखा जो घायल था। – (मिश्र वाक्य) - मुझे उस कर्मचारी की कर्तव्यनिष्ठा पर सन्देह है। – (सरल वाक्य)
मुझे सन्देह है कि वह कर्मचारी कर्तव्यनिष्ठ है। – (मिश्र वाक्य) - बुद्धिमान व्यक्ति किसी से झगड़ा नहीं करता है। – (सरल वाक्य)
जो व्यक्ति बुद्धिमान है वह किसी से झगड़ा नहीं करता है। – (मिश्र वाक्य) - यह किसी बहुत बुरे आदमी का काम है। – (सरल वाक्य)
वह कोई बुरा आदमी है जिसने यह काम किया है। – (मिश्र वाक्य) - न्यायाधीश ने कैदी को हाज़िर करने का आदेश दिया। – (सरल वाक्य)
न्यायाधीश ने आदेश दिया कि कैदी हाज़िर किया जाए। – (मिश्र वाक्य)
2. सरल वाक्य से संयुक्त वाक्य में परिवर्तन
- पैसा साध्य न होकर साधन है। – (सरल वाक्य)
पैसा साध्य नहीं है, किन्तु साधन है। – (संयुक्त वाक्य) - अपने गुणों के कारण उसका सब जगह आदर-सत्कार होता था। – (सरल वाक्य)
उसमें गुण थे इसलिए उसका सब जगह आदर-सत्कार होता था। – (संयुक्त वाक्य) - दोनों में से कोई काम पूरा नहीं हुआ। – (सरल वाक्य)
न एक काम पूरा हुआ न दूसरा। – (संयुक्त वाक्य) - पंगु होने के कारण वह घोड़े पर नहीं चढ़ सकता। – (सरल वाक्य)
वह पंगु है इसलिए घोड़े पर नहीं चढ़ सकता। – (संयुक्त वाक्य) - परिश्रम करके सफलता प्राप्त करो। – (सरल वाक्य)
परिश्रम करो और सफलता प्राप्त करो। – (संयुक्त वाक्य) - रमेश दण्ड के भय से झठ बोलता रहा। – (सरल वाक्य)
रमेश को दण्ड का भय था, इसलिए वह झूठ बोलता रहा। – (संयुक्त वाक्य) - वह खाना खाकर सो गया। – (सरल वाक्य)
उसने खाना खाया और सो गया। – (संयुक्त वाक्य) - उसने गलत काम करके अपयश कमाया। – (सरल वाक्य)
उसने गलत काम किया और अपयश कमाया। – (संयुक्त वाक्य)
3. संयुक्त वाक्य से सरल वाक्य में परिवर्तन
- सूर्योदय हुआ और कुहासा जाता रहा। – (संयुक्त वाक्य)
सूर्योदय होने पर कुहासा जाता रहा। – (सरल वाक्य) - जल्दी चलो, नहीं तो पकड़े जाओगे। – (संयुक्त वाक्य)
जल्दी न चलने पर पकड़े जाओगे। – (सरल वाक्य) - वह धनी है पर लोग ऐसा नहीं समझते। – (संयुक्त वाक्य)
लोग उसे धनी नहीं समझते। – (सरल वाक्य) - वह अमीर है फिर भी सुखी नहीं है। – (संयुक्त वाक्य)
वह अमीर होने पर भी सुखी नहीं है। – (सरल वाक्य) - बाँस और बाँसुरी दोनों नहीं रहेंगे। – (संयुक्त वाक्य)
न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी। – (सरल वाक्य) - राजकुमार ने भाई को मार डाला और स्वयं राजा बन गया। – (संयुक्त वाक्य)
भाई को मारकर राजकुमार राजा बन गया। – (सरल वाक्य)
4. मिश्र वाक्य से सरल वाक्य में परिवर्तन
- ज्यों ही मैं वहाँ पहुँचा त्यों ही घण्टा बजा। – (मिश्र वाक्य)
मेरे वहाँ पहुँचते ही घण्टा बजा। – (सरल वाक्य) - यदि पानी न बरसा तो सूखा पड़ जाएगा। – (मिश्र वाक्य)
पानी न बरसने पर सूखा पड़ जाएगा। – (सरल वाक्य) - उसने कहा कि मैं निर्दोष हूँ। – (मिश्र वाक्य)
उसने अपने को निर्दोष बताया। – (सरल वाक्य) - यह निश्चित नहीं है कि वह कब आएगा? – (मिश्र वाक्य)
उसके आने का समय निश्चित नहीं है। – (सरल वाक्य) - जब तुम लौटकर आओगे तब मैं जाऊँगा। – (मिश्र वाक्य)
तुम्हारे लौटकर आने पर मैं जाऊँगा। – (सरल वाक्य) - जहाँ राम रहता है वहीं श्याम भी रहता है। – (मिश्र वाक्य)
राम और श्याम साथ ही रहते हैं। – (सरल वाक्य) - आशा है कि वह साफ बच जाएगा। – (मिश्र वाक्य)
उसके साफ बच जाने की आशा है। – (सरल वाक्य)
5. मिश्र वाक्य से संयुक्त वाक्य में परिवर्तन
- वह उस स्कूल में पढ़ा जो उसके गाँव के निकट था। – (मिश्र वाक्य)
वह स्कूल में पढ़ा और वह स्कूल उसके गाँव के निकट था। – (संयुक्त वाक्य) - मुझे वह पुस्तक मिल गई है जो खो गई थी। – (मिश्र वाक्य)
वह पुस्तक खो गई थी परन्तु मुझे मिल गई है। – (संयुक्त वाक्य) - जैसे ही उसे तार मिला वह घर से चल पड़ा। – (मिश्र वाक्य)
उसे तार मिला और वह तुरन्त घर से चल पड़ा। – (संयुक्त वाक्य) - काम समाप्त हो जाए तो जा सकते हो। – (मिश्र वाक्य)
काम समाप्त करो और जाओ। – (संयुक्त वाक्य) - मुझे विश्वास है कि दोष तुम्हारा है। – (मिश्र वाक्य)
दोष तुम्हारा है और इसका मुझे विश्वास है। – (संयुक्त वाक्य) - आश्चर्य है कि वह हार गया। – (मिश्र वाक्य)
वह हार गया परन्तु यह आश्चर्य है। – (संयुक्त वाक्य) - जैसा बोओगे वैसा काटोगे। – (मिश्र वाक्य)
जो जैसा बोएगा वैसा ही काटेगा। – (संयुक्त वाक्य)
6. संयुक्त वाक्य से मिश्र वाक्य में परिवर्तन
- काम पूरा कर डालो नहीं तो जुर्माना होगा। – (संयुक्त वाक्य)
यदि काम पूरा नहीं करोगे तो जुर्माना होगा। – (मिश्र वाक्य) - इस समय सर्दी है इसलिए कोट पहन लो। – (संयुक्त वाक्य)
क्योंकि इस समय सर्दी है, इसलिए कोट पहन लो। – (मिश्र वाक्य) - वह मरणासन्न था, इसलिए मैंने उसे क्षमा कर दिया। – (संयुक्त वाक्य)
मैंने उसे क्षमा कर दिया, क्योंकि वह मरणासन्न था। – (मिश्र वाक्य) - वक्त निकल जाता है पर बात याद रहती है। – (संयुक्त वाक्य)
भले ही वक्त निकल जाता है, फिर भी बात याद रहती है। – (मिश्र वाक्य) - जल्दी तैयार हो जाओ, नहीं तो बस चली जाएगी। – (संयुक्त वाक्य)
यदि जल्दी तैयार नहीं होओगे तो बस चली जाएगी। – (मिश्र वाक्य) - इसकी तलाशी लो और घड़ी मिल जाएगी। – (संयुक्त वाक्य)
यदि इसकी तलाशी लोगे तो घड़ी मिल जाएगी। – (मिश्र वाक्य) - सुरेश या तो स्वयं आएगा या तार भेजेगा। – (संयुक्त वाक्य)
यदि सुरेश स्वयं न आया तो तार भेजेगा। – (मिश्र वाक्य)
7. विधानवाचक वाक्य से निषेधवाचक वाक्य में परिवर्तन
- यह प्रस्ताव सभी को मान्य है। – (विधानवाचक वाक्य)
इस प्रस्ताव के विरोधाभास में कोई नहीं है। – (निषेधवाचक वाक्य) - तुम असफल हो जाओगे। – (विधानवाचक वाक्य)
तुम सफल नहीं हो पाओगे। – (निषेधवाचक वाक्य) - शेरशाह सूरी एक बहादुर बादशाह था। – (विधानवाचक वाक्य)
शेरशाह सूरी से बहादुर कोई बादशाह नहीं था। – (निषेधवाचक वाक्य) - रमेश सुरेश से बड़ा है। – (विधानवाचक वाक्य)
रमेश सुरेश से छोटा नहीं है। – (निषेधवाचक वाक्य) - शेर गुफा के अन्दर रहता है। – (विधानवाचक वाक्य)
शेर गुफा के बाहर नहीं रहता है। – (निषेधवाचक वाक्य) - मुझे सन्देह हुआ कि यह पत्र आपने लिखा। – (विधानवाचक वाक्य)
मुझे विश्वास नहीं हुआ कि यह पत्र आपने लिखा। – (निषेधवाचक वाक्य) - मुगल शासकों में अकबर श्रेष्ठ था। – (विधानवाचक वाक्य)
मुगल शासकों में अकबर से बढ़कर कोई नहीं था। – (निषेधवाचक वाक्य)
8. निश्चयवाचक वाक्य से प्रश्नवाचक वाक्य में परिवर्तन
- आपका भाई यहाँ नहीं है। – (निश्चयवाचक)
आपका भाई कहाँ है? (प्रश्नवाचक) - किसी पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। – (निश्चयवाचक)
किस पर भरोसा किया जाए? – (प्रश्नवाचक) - गाँधीजी का नाम सबने सुन रखा है। – (निश्चयवाचक)
गाँधीजी का नाम किसने नहीं सुना? – (प्रश्नवाचक) - तुम्हारी पुस्तक मेरे पास नहीं है। – (निश्चयवाचक)
तुम्हारी पुस्तक मेरे पास कहाँ है? – (प्रश्नवाचक) - तुम किसी न किसी तरह उत्तीर्ण हो गए। – (निश्चयवाचक)
तुम कैसे उत्तीर्ण हो गए? – (प्रश्नवाचक) - अब तुम बिल्कुल स्वस्थ हो गए हो। – (निश्चयवाचक)
क्या तुम अब बिल्कुल स्वस्थ हो गए हो? – (प्रश्नवाचक) - यह एक अनुकरणीय उदाहरण है। – (निश्चयवाचक)
क्या यह अनुकरणीय उदाहरण नहीं है? – (प्रश्नवाचक)
9. विस्मयादिबोधक वाक्य से विधानवाचक वाक्य में परिवर्तन
- वाह! कितना सुन्दर नगर है! – (विस्मयादिबोधक)
बहुत ही सुन्दर नगर है! – (विधानवाचक वाक्य) - काश! मैं जवान होता। – (विस्मयादिबोधक)
मैं चाहता हूँ कि मैं जवान होता। – (विधानवाचक वाक्य) - अरे! तुम फेल हो गए। – (विस्मयादिबोधक)
मुझे तुम्हारे फेल होने से आश्चर्य हो रहा है। – (विधानवाचक वाक्य) - ओ हो! तुम खूब आए। (विस्मयादिबोधक)
मुझे तुम्हारे आगमन से अपार खुशी है। – (विधानवाचक वाक्य) - कितना क्रूर! – (विस्मयादिबोधक)
वह अत्यन्त क्रूर है। – (विधानवाचक वाक्य) - क्या! मैं भूल कर रहा हूँ! – (विस्मयादिबोधक)
मैं तो भूल नहीं कर रहा। – (विधानवाचक वाक्य) - हाँ हाँ! सब ठीक है। – (विस्मयादिबोधक)
मैं अपनी बात का अनुमोदन करता हूँ। – (विधानवाचक वाक्य)
1. वाक्यों का वर्गीकरण कितने आधारों पर किया गया है?
(a) दो (b) तीन (c) चार (d) पाँच
उत्तर :
(a) दो
2. जिन वाक्यों में एक उद्देश्य तथा एक ही विधेय होता है, उसे कहते हैं
(a) एकल वाक्य (b) सरल वाक्य (c) मिश्र वाक्य (d) संयुक्त वाक्य
उत्तर :
(b) सरल वाक्य
3. मिश्र वाक्य कहते हैं
(a) जिनमें एक कर्ता और एक ही क्रिया होती है (b) जिनमें एक से अधिक प्रधान उपवाक्य हों और वे संयोजक अव्यय द्वारा जुड़े हों (c) जिनमें एक साधारण वाक्य तथा उसके अधीन दूसरा उपवाक्य हो (d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर :
(c) जिनमें एक साधारण वाक्य तथा उसके अधीन दूसरा उपवाक्य हो
4. जिन वाक्यों में एक-से-अधिक प्रधान उपवाक्य हों और वे संयोजक अव्यय द्वारा जुड़े हों, उसे कहते हैं-
(a) विधिवाचक (b) सरल वाक्य (c) मिश्र वाक्य (d) संयुक्त वाक्य
उत्तर :
(d) संयुक्त वाक्य
5. वाक्य के गुणों में सम्मिलित नहीं है
(a) लयबद्धता (b) सार्थकता (c) क्रमबद्धता (d) आकांक्षा
उत्तर :
(a) लयबद्धता
6. ‘नाव में नदी है’-इस वाक्य में किस वाक्य गुण का अभाव है?
(a) आकांक्षा (b) क्रम (c) योग्यता (d) आसक्ति
उत्तर :
(b) क्रम
7. वाक्य गुण ‘आकांक्षा’ का अर्थ है
(a) भावबोध की क्षमता (b) सार्थकता (c) श्रोता की जिज्ञासा (d) व्याकरणानुकूल
उत्तर :
(c) श्रोता की जिज्ञासा
8. वाक्य गुण ‘आसक्ति’ का अर्थ है
(a) व्याकरणानुकूल (b) क्रमबद्धता (c) योग्यता (d) समीपता
उत्तर :
(d) समीपता
9. अर्थ के आधार पर वाक्य कितने प्रकार के होते हैं?
(a) आठ (b) दस (c) तीन (d) चार
उत्तर :
(a) आठ
10. जिन वाक्यों से किसी कार्य या बात करने का बोध होता है, उन्हें कहते हैं
(a) आज्ञावाचक (b) विधानवाचक (c) इच्छावाचक (d) संकेतवाचक
उत्तर :
(b) विधानवाचक
Kriya Visheshan in Hindi- क्रियाविशेषण – परिभाषा, भेद और उदाहरण
क्रियाविशेषण संबंधी अशुद्धियाँ
क्रियाविशेषण संबंधी अनेक अशुद्धियाँ देखने को मिलती हैं। विशेष रूप से इसका अनावश्यक, अशुद्ध, अनुपयुक्त तथा अनियमित प्रयोग भाषा को अशुद्ध बनाता है;
जैसे :
अशुद्ध – शुद्ध
1. जैसा करोगे, उतना ही भरोगे। – 1. जैसा करोगे, वैसा ही भरोगे।
2. वह बड़ा चालाक है। – 2. वह बहुत चालाक है।
3. वहाँ चारों ओर बड़ा अंधकार था। – 3. वहाँ चारों ओर घना अंधकार था।
4. वह अवश्य ही मेरे घर आएगा। – 4. वह मेरे घर अवश्य आएगा।
5. वह स्वयं ही अपना काम कर लेगा। – 5. वह स्वयं अपना काम कर लेगा।
6. स्वभाव के अनुरूप तुम्हें यह कार्य करना चाहिए। – 6. स्वभाव के अनुकूल तुम्हें यह कार्य करना चाहिए।
7. देश में सर्वस्व शांति है। – 7. देश में सर्वत्र शांति है।
8. उसे लगभग पूरे अंक प्राप्त हुए। – 8. उसे पूरे अंक प्राप्त हुए।
9. वह बड़ा दूर चला गया। – 9. वह बहुत दूर चला गया।
10. उसने आसानीपूर्वक काम समाप्त कर लिया। – 10. उसने आसानी से काम समाप्त कर लिया।
11. जंगल में बड़ा अंधकार है। – 11. जंगल में घना अंधकार है।
12. यद्यपि वह मेहनती है, तब भी सफलता प्राप्त नहीं करता। – 12. यद्यपि वह मेहनती है, तथापि वह सफलता प्राप्त नहीं करता।
13. मुंबई जाने में एकमात्र दो दिन शेष हैं। – 13. मुंबई जाने में केवल दो दिन शेष हैं।
14. जितना गुड़ डालोगे वही मीठा होगा। – 14. जितना गुड़ डालोगे उतना ही मीठा होगा।
15. यदि परिश्रम से पढ़ोगे तब अच्छे अंक प्राप्त करोगे। – 15. यदि परिश्रम से पढ़ोगे तो अच्छे अंक प्राप्त करोगे।
Samuchaya Bodhak – समुच्चय बोधक – परिभाषा भेद और उदाहरण, Conjuction In hindi
समुच्चय बोधक – परिभाषा भेद
जो अव्यय पद एक शब्द का दूसरे शब्द से, एक वाक्य का दूसरे वाक्य से अथवा एक वाक्यांश का दूसरे वाक्यांश से संबंध जोड़ते हैं, वे ‘समुच्चयबोधक’ या ‘योजक’ कहलाते हैं;
जैसे :
राधा आज आएगी और कल चली जाएगी। समुच्चयबोधक के दो प्रमुख भेद हैं :
1. समानाधिकरण समुच्चयबोधक (Coordinate Conjunction)
2. व्यधिकरण समुच्चयबोधक (Subordinate Conjunction)
1. समानाधिकरण समुच्चयबोधक-समानाधिकरण समुच्चयबोधक के निम्नलिखित चार भेद हैं :
- (क) संयोजक
- (ख) विभाजक
- (ग) विरोधसूचक
- (घ) परिणामसूचक।
(क) संयोजक-जो अव्यय पद दो शब्दों, वाक्यांशों या समान वर्ग के दो उपवाक्यों में संयोग प्रकट करते हैं, वे ‘संयोजक’ कहलाते हैं; जैसे : और, एवं, तथा आदि।
(i) राम और श्याम भाई-भाई हैं।
(ii) इतिहास एवं भूगोल दोनों का अध्ययन करो।
(iii) फुटबॉल तथा हॉकी दोनों मैच खेलूँगा।
(ख) विभाजक या विकल्प–जो अव्यय पद शब्दों, वाक्यों या वाक्यांशों में विकल्प प्रकट करते हैं, वे ‘विकल्प’ या ‘विभाजक’ कहलाते हैं;
जैसे :
कि, चाहे, अथवा, अन्यथा, या, नहीं, तो आदि।
(i) तुम ढंग से पढ़ो अन्यथा फेल हो जाओगे।
(ii) चाहे ये दे दो चाहे वो।
(ग) विरोधसूचक- जो अव्यय पद पहले वाक्य के अर्थ से विरोध प्रकट करें, वे ‘विरोधसूचक’ कहलाते हैं;
जैसे :
परंतु, लेकिन, किंतु आदि।
(i) रोटियाँ मोटी किंतु स्वादिष्ट थीं।
(ii) वह आया परंतु देर से।
(iii) मैं तो चला जाऊँगा, लेकिन तुम्हें भी आना पड़ेगा।
(घ) परिणामसूचक- जब अव्यय पद किसी परिणाम की ओर संकेत करता है, तो ‘परिणामसूचक’ कहलाता है;
जैसे :
इसलिए, अतएव, अतः, जिससे, जिस कारण आदि।
(i) तुमने मना किया था इसलिए मैं नहीं आया।
(ii) मैंने यह काम खत्म कर दिया जिससे कि तुम्हें आराम मिल सके।
व्यधिकरण समुच्चयबोधक-
वे संयोजक जो एक मुख्य वाक्य में एक या अनेक आश्रित उपवाक्यों को जोड़ते हैं, व्यधिकरण समुच्चयबोधक’ कहलाते हैं;
जैसे :
यदि मेहनत करोगे तो फल पाओगे।
व्यधिकरण समुच्चयबोधक के मुख्य चार भेद हैं :
(क) हेतुबोधक या कारणबोधक,
(ख) संकेतबोधक,
(ग) स्वरूपबोधक,
(घ) उद्देश्यबोधक।।
(क) हेतुबोधक या कारणबोधक- इस अव्यय के द्वारा वाक्य में कार्य-कारण का बोध स्पष्ट होता है;
जैसे :
क्योंकि, चूँकि, इसलिए, कि आदि।
(i) वह असमर्थ है, क्योंकि वह लंगड़ा है।
(ii) चूँकि मुझे वहाँ जल्दी पहुँचना है, इसलिए जल्दी जाना होगा।
(ख) संकेतबोधक- प्रथम उपवाक्य के योजक का संकेत अगले उपवाक्य में पाया जाता है। ये प्रायः जोड़े में प्रयुक्त होते हैं;
जैसे :
जो……. तो, यद्यपि ……..”तथापि, चाहे…….. पर, जैसे……..”तैसे।
(i) ज्योंही मैंने दरवाजा खोला त्योंही बिल्ली अंदर घुस आई।
(ii) यद्यपि वह बुद्धिमान है तथापि आलसी भी।
(ग) स्वरूपबोधक- जिन अव्यय पदों को पहले उपवाक्य में प्रयुक्त शब्द, वाक्यांश या वाक्य को स्पष्ट करने हेतु प्रयोग में लाया जाए, उसे ‘स्वरूपबोधक’ कहते हैं; जैसे : यानी, अर्थात् , यहाँ तक कि, मानो आदि।
(i) वह इतनी सुंदर है मानो अप्सरा हो।
(ii) ‘असतो मा सद्गमय’ अर्थात् (हे प्रभु) असत्य से सत्य की ओर ले चलो।
(घ) उद्देश्यबोधक- जिन अव्यय पदों से कार्य करने का उद्देश्य प्रकट हो, वे ‘उद्देश्यबोधक’ कहलाते हैं;
जैसे :
जिससे कि, की, ताकि आदि।
(i) वह बहुत मेहनत कर रहा है ताकि सफल हो सके।
(ii) मेहनत करो जिससे कि प्रथम आ सको।
Vismaya Adi Bodhak – विस्मयादिबोधक – परिभाषा, भेद और उदाहरण, Interjection in hindi
विस्मयादिबोधक – परिभाषा
विस्मय, हर्ष, शोक, आश्चर्य, घृणा, विषाद आदि भावों को प्रकट करने वाले अविकारी शब्द ‘विस्मयादिबोधक’ कहलाते हैं। इन शब्दों का वाक्य से कोई व्याकरणिक संबंध नहीं होता। अर्थ की दृष्टि से इसके मुख्य आठ भेद हैं :
- विस्मयसूचक – अरे!, क्या!, सच!, ऐं!, ओह!, हैं!
- हर्षसूचक – वाह!, अहा!, शाबाश!, धन्य!
- शोकसूचक – ओह!, हाय!, त्राहि-त्राहि!, हाय राम!
- स्वीकारसूचक – अच्छा!, बहुत अच्छा!, हाँ-हाँ!, ठीक!
- तिरस्कारसूचक – धिक्!, छि:!, हट!, दूर!
- अनुमोदनसूचक – हाँ-हाँ!, ठीक!, अच्छा!
- आशीर्वादसूचक – जीते रहो!, चिरंजीवी हो! दीर्घायु हो!
- संबोधनसूचक – हे!, रे!, अरे!, ऐ!
इन सभी के अलावा कभी-कभी संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया और क्रियाविशेषण आदि का प्रयोग भी विस्मयादिबोधक के रूप में होता है;
जैसे:
- संज्ञा – शिव, शिव!, हे राम!, बाप रे!
- सर्वनाम – क्या!, कौन?
- विशेषण – सुंदर!, अच्छा!, धन्य!, ठीक!, सच!
- क्रिया – हट!, चुप!, आ गए!
- क्रियाविशेषण – दूर-दूर!, अवश्य!
Vachan in Hindi – वचन परिभाषा, भेद और उदाहरण – हिन्दी व्याकरण
वचन – Vachan Ki Paribhasha, Bhed aur Udaharan (Examples) – Hindi Grammar
- परिभाषा,
- पहचान
- विशिष्ट बातें
- अभ्यास
पदों के जिस रूप से उसके एक या अनेक होने का बोध हो, ‘वचन’ कहलाता है। नीचे लिखे वाक्यों को देखें-
- पौधा पर्यावरण को शुद्ध बनाए रखता है।
- पौधे पर्यावरण को शुद्ध बनाए रखते हैं।
- शेर मांसाहारी नहीं होता है।
- शेर मांसाहारी नहीं होते।
उपर्युक्त उदाहरणों में पौधा, पौधे और शेर एक एवं अनेक संख्याओं का बोध करा रहे हैं।
(1) और (3) वाक्यों के ‘पौधा’ और ‘शेर’ अपनी एक-एक संख्या का बोध कराने के कारण एकवचन रूप के हुए और (2) एवं (4) वाक्यों के पौधे तथा ‘शेर’ अपनी अनेक संख्याओं का बोध कराने के कारण बहुवचन रूप के हुए।
इस तरह वचन के दो प्रकार हुए-
एकवचन और बहुवचन।
एकवचन से संज्ञापदों की एक संख्या का और बहुवचन से उसकी अनेक संख्याओं (एकाधिक संख्या) का बोध होता है।
अब नीचे लिखे वाक्यों को ध्यानपूर्वक देखें
- लड़का बहुत प्रतिभाशाली था।
- लड़के बहुत प्रतिभाशाली थे।
- लड़के ने स्कूल जाने की जिद की।
- लड़कों ने खेलने का समय माँगा।
- अमावस की रात अँधेरी होती है।
- चाँदनी रातें बड़ी खूबसूरत होती हैं।
- रातों को आराम के लिए बनाया गया है।
- लड़की भी अंतरिक्ष जाने लगी।
- लड़कियाँ लड़कों से कम नहीं हैं।
- लड़कियों को कमजोर मत समझो।
- माली एक फूल लाया।
- मालिन के हाथ में अनेक फूल थे।
- उसने फूलों की माला बनाई।
उपर्युक्त उदाहरणों में हम देखते हैं :
- लड़का, लड़के ने, रात, लड़की, फूल आदि एक-एक संख्या का बोध करा रहे हैं।
((1), (3), (5), (8) और (11) वाक्यों में) - लड़के, लड़कों ने, रातें, रातों को, लड़कियाँ, लड़कियों को, फूल और फूलों की अनेक
संख्याओं का बोध करा रहे हैं। ((2), (4), (6), (9), (10), (12) और (13) वाक्यों में) - ‘लड़का’ एकवचन ‘लड़के’ और ‘लड़कों (ने)’ बहुवचन
‘रात’ एकवचन ‘रातें’ और ‘रातों’ (को)’ बहुवचन
‘लड़की’ एकवचन ‘लड़कियाँ’ और ‘लड़कियों’ (को)’ बहुवचन
‘फूल’ एकवचन ‘फूल’ और ‘फूलों’ (की)’ बहुवचन - बहुवचन के दो रूप सामने हैं–लड़के और लड़कों।
लड़कियाँ और लड़कियों को
रात और रातों को
फूल और फूलों की - ‘लड़का’ एकवचन और ‘लड़के ने’ भी एकवचन है।
- ‘फूल’ दोनों वचनों में समान है। .
अब इन्हीं बातों को विस्तार से समझें :
एकवचन से बहुवचन बनाने की दो विधियाँ हैं :
1. निर्विभक्तिक रूप : जब बिना कारक-चिह्न लगाए विभिन्न प्रत्ययों के योग से बहुवचन रूप बनाए जाएँ। जैसे-
- लड़का + ए = लड़के
- लड़की + याँ = लड़कियाँ
- रात + एँ = रातें आदि।
2. सविभक्तिक रूप : जब कारक चिह्न के कारण ओं/यों प्रत्यय लगाकर बहुवचन रूप बनाया जाया। जैसे-
- लड़का + ओं = लड़कों
- लड़की + यों = लड़कियों
- हाथी + यों = हाथियों
- रात + ओं = रातों आदि।
नोट : सविभक्तिक रूप बनाने के लिए स्त्री० पुं० सभी संज्ञाओं में ओं/यों प्रत्यय लगाया जाता है। इस रूप के साथ किसी-न-किसी कारक का चिह्न अवश्य आता है। संज्ञा का यह रूप सिर्फ वाक्यों में देखा जाता है।
एकवचन से बहुवचन बनाने के नियम :
1. आकारात पुँ. संज्ञा में ‘आ’ की जगह ‘ए’ की मात्रा लगाकर :
उदाहरण–
लड़का : लड़के कुत्ता : कुत्ते
[इसी तरह निम्न संज्ञाओं के बहुवचन रूप बनाएँ]
घोड़ा, गधा, पंखा, पहिया, कपड़ा, छाता, रास्ता, बच्चा, तारा, कमरा, आईना, भैंसा, बकरा, बछड़ा
2. अन्य पुं. संज्ञाओं के दोनों वचनों में समान रूप होते हैं।
उदाहरण–
- फूल : फूल
- हाथी : हाथी आदि।
3. अकारान्त या आकारान्त स्त्री. संज्ञाओं में ‘एँ जोड़कर :
उदाहरण-
- रात : रातें माता : माताएँ
(इनके रूप आप स्वयं लिखें) :
बहन, गाय, बात, सड़क, आदत, पुस्तक, किताब, कलम, मूंछ, नाक, बोतल, बाँह, टाँग, पीठ, भैंस, भेड़, शाखा, कथा, लता, कामना, खबर, वार्ता, शिक्षिका, अध्यापिका, कक्षा, सभा, पाठशाला, राह.
4. इकारात में ‘याँ’ और ईकारान्त स्त्री. संज्ञा में ‘ई’ को ‘इ’ करके ‘याँ’ जोड़कर :
उदाहरण–
- तिथि : तिथियाँ __ लड़की : लड़कियाँ आदि।
(इनके रूप आप स्वयं लिखें) :
रीति, नारी, नीति, गाड़ी, साड़ी, धोती, नाली, अंगूठी, खिड़की, कुर्सी, दरी, छड़ी, घड़ी, हड्डी, नाड़ी, सवारी, बच्ची, नदी
5. उकारान्त स्त्री. संज्ञा में ‘एँ’ एवं ऊकारान्त में ‘ऊ’ को ‘उ’ कर ‘एँ’ लगाकर :
उदाहरण-
- वस्तु : वस्तुएँ
- बहू : बहुएँ
- वधू : वधुएँ आदि
6. ‘या’ अन्तवाली स्त्रीलिंग संज्ञाओं में ‘या’ के ऊपर चन्द्रबिंदु लगाकर
उदाहरण–
चिड़िया-चिड़ियाँ (इनके रूप आप स्वयं लिखें)
डिबिया, चिड़िया, गुड़िया, बुढ़िया, मचिया, बचिया,
7. गण, वृन्द, लोग, सब, जन आदि लगाकर भी कुछ संज्ञाएँ बहुवचन बनाई जाती हैं।
उदाहरण–
- बालक : बालकगण
- शिक्षक : शिक्षकगण
- अध्यापक : अध्यापकवृन्द
- बंधु : बंधुवर्ग
- ब्राह्मण : ब्राह्मणलोग
- बच्चा : बच्चालोग/बच्चेलोग
- नारी : नारीवृन्द
- गुरु : गुरुजन
- नेता : नेतालोग
- भक्त : भक्तगण
- सज्जन : सज्जनवृन्द
- भाई : भाईलोग
8. इनमें ओं/यों लगाकर कोष्ठक में किसी कारक के चिह्न लिखें :
उदाहरण–
लडका : लड़कों (ने)
लड़की : लड़कियों (में)
बच्चा, कथा, शिक्षक, चिड़िया, घास, मानव, जानवर, पौधा, कमरा, कहानी, रात, कविता, पुस्तक, बाल, बोतल, नाक, कलम, दाँत
वचन संबंधी कुछ विशेष बातें
1. निम्नलिखित संज्ञाओं का प्रयोग बहुवचन में ही होता है :
ये मेरे हस्ताक्षर हैं।
गोली लगते ही उस आदमखोर बाघ के प्राण उड़ गए।
आपके दर्शन से मैं बड़ा लाभान्वित हुआ।
भूकंप आने की खबर सुन मेरे तो होश ही उड़ गए।
आजकल के लोग बड़े स्वार्थी हुआ करते हैं।
उसकी अवस्था देख मेरे आँसू निकल पड़े।
आपके होठ/ओठ तो बड़े आकर्षक हैं।
इन दिनों वस्तुओं के दाम काफी बढ़ गए हैं।
मैं आपके अक्षत को पूजार्थ ले जा रहा हूँ।
अभी से ही मेरे बाल झड़ने लगे हैं।
उस बीभत्स दृश्य को देखकर मेरे रोंगटे खड़े हो गए।
सलमा आगा को देखकर उनके रोम पुलकित हो गए।
वायु-प्रदूषण के कारण मेरे नेत्र लाल हो गए हैं।
उनके तेवर बदलते जा रहे हैं, पता नहीं, बात क्या है।
2. कुछ संज्ञाओं का प्रयोग, जिनमें द्रव्यवाचक संज्ञाएँ भी शामिल हैं, प्रायः एकवचन में ही होता है :
आर्थिक मंदी से आम जनता बहुत परेशान है।
इस वर्ष भी बिहार में बहुत कम वर्षा हुई है।
कहीं पानी से लोग डूबते हैं तो कहीं पानी खरीदा जाता है।
सोना बहुत महँगा हो गया है।
चाँदी भी सस्ती कहाँ है।
लोहा मजबूत तो होता ही है।
आनेवाला सूरज लाल नजर आता है।
ईश्वर तेरा भला करे।
मानवों के कुकृत्य देख पृथ्वी रो पड़ी और आकाश फटना चाहता है।
रामराज्य में भी प्रजा दुखी थी।
बच्चों का खेल बड़ा निराला होता है।
3. आदरणीय व्यक्तियों का प्रयोग बहुवचन में होता है यानी उनके लिए बहुवचन क्रिया लगाई जाती हैं।
जैसे-
मेरे पिताजी आए हैं।
गुरुजी ऐसा कहते हैं कि पेड़-पौधे हमारे मित्र हैं।
माताजी देवघर जाना चाहती थीं; किन्तु मैंने उनकी अवस्था देख उन्हें मना कर दिया।
4. नाना, दादा, चाचा, पिता, युवा, योद्धा आदि का बहुवचन रूप वही होता है।
5. द्रव्यवाचक संज्ञाओं के प्रकार (भेद) रहने पर उनका प्रयोग बहुवचन में होता है। जैसे-
धनबाद में आज भी बहुत प्रकार के कोयले पाए जाते हैं।
लोहे कई प्रकार के होते हैं।
6. प्रत्येक, हर एक आदि का प्रयोग सदा एकवचन में होता है। जैसे-
प्रत्येक व्यक्ति ऐसा ही कहता है।
आज हर कोई मानसिक रूप से बीमार दिखता है।
इस भाग-दौड़ की दुनिया में हरएक परेशान है।
7. ‘अनेक’ स्वयं बहुवचन है (यह ‘एक’ का बहुवचन है) इसलिए अनेकों का प्रयोग वर्जित है। जैसे–
मजदूरों के अनेक काम हैं।
नोट : कविता आदि में मात्रा घटने की स्थिति में अनेकों का प्रयोग भी देखा जाता है। जैसे
पहर दो पहर क्या
अनेकों पहर तक
उसी में रही मैं। (बसंती हवा)
8. यदि आकारान्त पुं. संज्ञा के बाद किसी कारक का चिह्न आए तो वहाँ एकवचन अर्थ में भी वह संज्ञा आकार की एकार हो जाती है।
उदाहरण–
अमिताभ के बेटे की शादी ऐश्वर्या राय से हुई।
यहाँ ‘बेटा’ आकारान्त पुं. संज्ञा है। इसके आगे संबंध कारक का चिह्न ‘की’ रहने के कारण ‘बेटा’ शब्द ‘बेटे’ हो गया। ‘बेटे’ होने से भी यह एकवचन ही रहा, बहुवचन नहीं।
निम्नलिखित वाक्यों में प्रयुक्त संज्ञाओं का रूप बदलकर वाक्य शुद्ध करें-
- इस छोटे-से काँटा ने बहुत परेशान कर दिया है।
- इस अंडा का आकार उस अंडा से बड़ा नहीं है।
- घर में सब कुछ है; बस एक ताला की कमी है।
- इस पंखा ने जान बचा ली है; वरना आज इस गर्मी में उबल गए होते।
- एक धब्बा ने पूरी धोती ही खराब कर दी है।
- आज हमलोग किसी ढाबा पर खाना खाने जाएँगे।
- विदाई के समय टीका लगाने का रिवाज घटता जा रहा है।
- उन चिट्ठियों को मेरे पता पर भेज दीजिए।
- शगुन के समय शामियाना में आग लग जाने से सब गुड़ गोबर हो गया।
- मैं इस मामला को सदन में उठाऊँगा।
- मैंने जब तुम्हें इशारा में पूरी बात समझा दी थी, फिर सबों के सामने तुमने क्यों पूछा।
- शाबाश दोस्त ! क्या पता की बात कही है।
- तुम्हारा इन्तजार मैं घंटा भर से कर रहा हूँ।
- इस धुन में तबला पर जाकिर साहब थे।
- तुम तो बिल्कुल कछुआ की चाल चलते हो।
- इस सिलसिला में और बहुत सारी बातें हुई होंगी।
- तुमने अक्ल तो पाई है गाधा की और बातें करते हो महात्मा विदुर-जैसी।
- यह लड़की किसी अच्छे घराना की मालूम पड़ती है।
- मेरे बड़ा लड़का ने बताया है कि आप कल शाम में ही आ गए थे।
- नीला-रंग के कोट में कुछ रुपये हैं, ले लो।
9. कारक-चिह्न रहने पर पुँ० संज्ञाओं के पूर्ववर्ती आकारान्त विशेषण तथा क्रियाविशेषण का रूप एकारान्त हो जाता है।
उदाहरण–
- मेरा छोटा भाई ने आपकी चर्चा की थी।
- मेरे छोटे भाई ने आपकी चर्चा की थी।
नीचे लिखे वाक्यों में दिए गए विशेषणों तथा क्रियाविशेषणों में आवश्यक परिवर्तन कर वाक्य शुद्ध करें-
- ऐसा काम के लिए उनके पास जाना उचित नहीं लगता।
- मुझे आपने दो काम दिए थे, उनमें से मैंने आपका पुराना काम तो कर दिया; परन्तु नयावाला काम में कुछ समय लगेगा।
- बहुत सारे देशों में काला-गोरा का अन्तर आज भी देखने को मिलता है।
- तुम-जैसा अवारा लड़के से मुझे कोई सहानुभूति नहीं है।
- उसका बड़ा लड़का का दिमाग खराब हो गया है।
- बुरा से बुरा लोग भी कभी-कभी अच्छा काम कर जाते हैं।
- सामना के मकान में किसी अच्छा घराना की लड़की रहती है।
- प्रणव का पहला भाषण में जो बात थी वह बजट में दिखाई नहीं पड़ी।
- आपका दिमाग में जो संदेह है उसे निकाल दीजिए।
- तुमने अपना पुराना नौकर को क्यों नहीं भेजा ?
- आपको ऐसा कामों में हाथ डालना ही नहीं चाहिए।
- आप जैसा सोच रहे हैं, वे लोग वैसा आदमी नहीं हैं।
- न जाने ये लोग कैसा कैसा धंधे करते हैं।
- जितना में मिलता हो, उतना में ही ले जाओ।
- इस निबंध में कुल कितना शब्द हैं ?
- मैं इस समय इतना रुपयों का भुगतान नहीं कर सकूँगा।
- उनके खेतों में अंडों जैसा आलू उपजते हैं।
A. रेखांकित पदों का बहुवचन में बदलकर अन्य आवश्यक परिवर्तन भी करें :
1. लोग आजीवन टटू की तरह जुते रहते हैं।
2. उनके गुरु की गुरुता देख ली मैंने।
3. शत्रु को कभी छोटा मत समझो।
4. इन दिनों वह अनेक बीमारी से जूझ रहा है।
5. परमाणु से ही सृष्टि की रचना हुई है।
6. अणु को परमाणु में तोड़ा गया।
7. आँसू में पानी ही नहीं आग भी होती है।
8. उस क्षेत्र में आतंकवादी का बोलवाला है।
9. अश्रु में पत्थर को भी पिघलाने की ताकत होती है।
10. वे मुझे उल्लू की तरह ताका करते हैं।
11. बच्चों को घुघरू से बड़ा लगाव होता है।
Upsarg in Hindi – उपसर्ग (Upsarg) – परिभाषा, भेद और उदाहरण
उपसर्ग (Upsarg) की परिभाषा भेद
यौगिक शब्दों के बारे में बताया जा चुका है कि इसमें दो रूढ़ों का प्रयोग होता है। इसके अलावा उपसर्गों, प्रत्ययों के कारण भी यौगिक शब्दों का निर्माण होता है। नीचे दिए गए उदाहरणों को देखें-
पो + इत्र = पवित्र (संधि के कारण)
(ओ + इ)
ऊपर दिए गए उदाहरणों से स्पष्ट है कि उपसर्ग, प्रत्यय, संधि और समास के कारण नये शब्दों का निर्माण होता है। संधि के बारे में हम जान चुके हैं। अब हम क्रमशः उपसर्ग, प्रत्यय
और समास विधि से शब्द-रचना सीखेंगे-
उपसर्ग
उप + सर्ग = उपसर्ग
‘उप’ का अर्थ है-समीप या निकट और ‘सर्ग’ का-सृष्टि करना।
“उपसर्ग वह शब्दांश या अव्यय है, जो किसी शब्द के आरंभ में जुड़कर उसके अर्थ में (मूल शब्द के अर्थ में) विशेषता ला दे या उसका अर्थ ही बदल दे।”
जैसे-
- अभि + मान = अभिमान
- प्र + चार = प्रचार आदि।
उपसर्ग की तीन गतियाँ या विशेषताएँ होती हैं-
1. शब्द के अर्थ में नई विशेषता लाना।
जैसे-
- प्र + बल = प्रबल
- अनु + शासन = अनुशासन
2. शब्द के अर्थ को उलट देना।
जैसे-
- अ + सत्य = असत्य
- अप + यश = अपयश
3. शब्द के अर्थ में, कोई खास परिवर्तन न करके मूलार्थ के इर्द-गिर्द अर्थ प्रदान करना।
जैसे-
- वि + शुद्ध = विशुद्ध
- परि + भ्रमण = परिभ्रमण
उपसर्ग शब्द-निर्माण में बड़ा ही सहायक होता है। एक ही मूल शब्द विभिन्न उपसर्गों के योग से विभिन्न अर्थ प्रकट करता है।
जैसे-
- प्र + हार = प्रहार : चोट करना
- आ + हार = आहार : भोजन
- सम् + हार = संहार : नाश
- वि + हार = विहार : मनोरंजनार्थ यत्र-तत्र घूमना
- परि + हार = परिहार : अनादर, तिरस्कार
- उप + हार = उपहार : सौगात
- उत् = हार = उद्धार : मोक्ष, मुक्ति
हिन्दी भाषा में तीन प्रकार के उपसर्गों का प्रयोग होता है-
- संस्कृत के उपसर्ग : कुल 22 उपसर्ग
- हिन्दी के अपने उपसर्ग : कुल 10 उपसर्ग
- विदेशज उपसर्ग : कुल 12 उपसर्ग
ये उपसर्ग जहाँ कहीं भी किसी संज्ञा या विशेषण से जुड़ते हैं, वहाँ कोई-न-कोई समास अवश्य रहता है। यह सोचना भ्रम है कि उपसर्ग का योग समास से स्वतंत्र रूप में नये शब्द के निर्माण का साधन है। हाँ, समास के कारण भी कतिपय जगहों पर शब्द-निर्माण होता है।
अव्ययीभाव समास – तत्पुरुष समास
आ + जीवन = आजीवन – प्र + आचार्य = प्राचार्य
प्रति + दिन = प्रतिदिन – प्र + ज्ञ = प्रज्ञ
सम् + मुख = सम्मुख – अति + इन्द्रिय = अतीन्द्रिय
अभि + मुख = अभिमुख
अधि + गृह = अधिगृह
उप + गृह = उपगृह
बहुव्रीहि समास
प्र + बल = प्रबल : प्रकृष्ट हैं बल जिसमें
निर् + बल = निर्बल : नहीं है बल जिसमें
उत् + मुख = उन्मुख : ऊपर है मुख जिसका
वि + मुख = विमुख : विपरीत है मुख जिसका
प्रमुख उपसर्ग, अर्थ एवं उनसे बने शब्द
अर्थ – नवीन शब्द
संस्कृत के उपसर्ग
प्र अधिक, उत्कर्ष, गति, यश, उत्पत्ति, प्रबल, प्रताप, प्रक्रिया, प्रलाप, प्रयत्न,
आगे – प्रलोभन, प्रदर्शन, प्रदान, प्रकोप
परा – उल्टा, पीछे, अनादर, नाश पराजय, – पराभव, पराक्रम, परामर्श, पराकाष्ठा
अप – लघुता, हीनता, दूर, ले जाना – अपमान, अपयश, अपकार, अपहरण, अपसरण, अपादान, अपराध, अपकर्ष
सम् – अच्छा, पूर्ण, साथ – संगम, संवाद, संतोष, संस्कार, समालोचना, संयुक्त
अनु – पीछे, निम्न, समान, क्रम – अनुशासन, अनुवाद, अनुभव, अनुराग, अनुशीलन, अनुकरण
अर्थ – नवीन शब्द
अव – अनादर हीनता, पतन, विशेषता – अवकाश, अवनत, अवतार, अवमान, अवसर, अवधि
निसृ – रहित, पूरा, विपरीत – निस्तार, निस्सार, निस्तेज, निष्कृति, निश्चय, निष्पन्न
नीर – बिना, बाहर, निषेध – निरपराध, निर्जन, निराकार, निर्वाह, निर्गम, निर्णय, निर्मम, निर्यात, निर्देश
दुस्रू – बुरा, कठिन – दुश्शासन, दुष्कर, दुस्साहस, दुस्तर, दुःसह
दूर – कठिनता, दुष्टता, निंदा, हीनता – दुर्जन, दुराचार, दुर्लभ, दुर्दिन।
वि – भिन्नता, हीनता, असमानता, विशेषता – वियोग, विवरण, विमान, विज्ञान, विदेश, विहार
नि – निषेध, निश्चित, अधिकता – निवारण, निपात, नियोग, निवास, निगम, निदान
आ – तक, समेत, उल्टा – आकण्ठ, आगमन, आरोहण, आकार, आहार, आदेश
अति – अत्यधिक – अतिशय, अत्याचार, अतिपात, अतिरिक्त, अतिक्रमण
अधि – ऊपर, श्रेष्ठ, समीपता, उपरिभाव – अधिकार, अधिपति, अध्यात्म, अधिगत, अध्ययन, अधीक्षक, अध्यवसाय
सु – उत्तमता, सुगमता, श्रेष्ठता। – सुगम, सुजन, सुकाल, सुलभ, सुपच, सुरम्य,
उत् – ऊँचा, श्रेष्ठ, ऊपर – उत्कर्ष, उदय, उत्पत्ति, उत्कृष्ट, उत्पात, उद्धार
अभि – सामने, पास, अच्छा, चारों ओर – अभिमुख, अभ्यागत, अभिप्राय, अभिकरण, अभिधान, अभिनव
परि – आस-पास, सब तरफ, पूर्णता – परिक्रमा, परिजन, परिणाम, परिमाण, परिश्रम, परित्यक्त
उप – निकट, सदृश, गौण, सहायता, लघुता – उपवन, उपकूल, उपकार, उपहार, उपार्जन, उपेक्षा, उपादान, उपपत्ति। प्रतिकार, प्रतिज्ञा,
प्रति – विशेषार्थ में – प्रतिष्ठा, प्रतिदान, प्रतिभा, प्रतिमा
हिन्दी के उपसर्ग
अ/अन अभाव, निषेध – अछूता, अचेत, अनमोल, अनपढ़, अनगढ़, अपढ़
क/कु बुराई, नीचता – कुचाल, कुठौर, कपूत
अध आधा – अधपका, अधमरा, अधकचरा
औ/अव हीनता, अनादर, निषेध – अवगुण, औघट, औढ़र
नि निषेध, अभाव – निडर, निकम्मा, निहत्था, निठुर
भर पूरा – भरपेट, भरपूर, भरसक
सुस उत्तमता, साथ – सुडौल, सुजान, सपूत
उन एक कम – उनचास, उनतीस, उनासी
दु कम, बुरा – दुबला
बिन अभाव, बिना – बिनदेखा, बिनबोला
विदेशज उपसर्ग अरबी-फारसी के उपसर्ग
- कम अल्प, हीन – कमजोर, कमसिन
- खुश उत्तमता – खुशबू, खुशहाल, खुशखबरी
अर्थ – नवीन शब्द
गैर निषेध, रहित – गैरहाजिर, गैरकानूनी
दर अन्दर, में – दरअसल, दरहकीकत, दरकार
ना अभाव, रहित – नालायक, नाजायज, नापसंद
ब अनुसार – बनाम, बदौलत
बद हीनता – बदतमीज, बदबू
बर पर – बरवक्त, बरखास्त
बा – बाकायदा, बाकलम
बिला बिना – बिलाअक्ल, बिलारोक
ला अभाव – बेईमान, बेवकूफ, बेहोश
ला अभाव, बिना – लाजवाब, लावारिस, लापरवाह
सर श्रेष्ठ – सरताज, सरपंच, सरनाम
हम साथ – हमदर्द, हमसफर, हमउम्र, हमराज
प्रत्येक – हररोज, हरघड़ी, हरदफा
उपसर्गवत् अव्यय, संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण
अ अभाव, निषेध – अधर्म, अज्ञान, अनीति
अन् अभाव/निषेध – अनर्थ, अनंत
अन्तर भीतर – अन्तर्नाद, अन्तर्राष्ट्रीय
का/कु बुरा – कापुरुष, कुपुत्र
चिर बहुत – चिरकाल, चिरंजीव
न अभाव – नगण्य, नपुंसक
पुनर् फिर – पुनर्निर्माण, पुनरागमन
पुरा पहले – पुरातन, पुरातत्त्व
बाहिर/ बाहर – बहिष्कार, बहिर्धार
बहिस् –
स सहित – सपरिवार, सदेह, सचेत
सत् अच्छा – सत्पात्र, सदाचार
सह, साथ – सहकारी, सहोदर
अलम् शोभा, बेकार – अलंकार
आविस प्रकट/बाहर होना – आविष्कार, आविर्भाव
तिरस् तिरछा, टेढ़ा, अदृश्य – तिरस्कार, तिरोभाव
पुरस् सामने – पुरस्कार
प्रादुर् प्रकट होना, सामने आना – प्रादुर्भाव, प्रादुर्भूत
साक्षात् – साक्षात्कार
दो उपसर्गों से निर्मित शब्द
निर् + आ + करण = निराकरण
प्रति + उप + कार = प्रत्युपकार
सु + सम् + कृत = सुसंस्कृत
अन् + आ + हार = अनाहार
सम् + आ + चार = समाचार
अन् + आ + सक्ति = अनासक्ति
अ + सु + रक्षित = असुरक्षित
सम् + आ + लोचना = समालोचना
सु + सम् + गठित = सुसंगठित
अ + नि + यंत्रित = अनियंत्रित
अति + आ + चार = अत्याचार
अ + प्रति + अक्ष = अप्रत्यक्ष
Pratyay in Hindi प्रत्यय | प्रत्यय परिभाषा, भेद और उदाहरण – हिन्दी व्याकरण
प्रत्यय – Pratyay ki Paribhasha, Prakar, Bhed aur Udaharan (Examples) – Hindi Grammar
प्रत्यय ‘प्रत्यय’ दो शब्दों से बना है– प्रति + अय। ‘प्रति’ का अर्थ है ‘साथ में, पर बाद में; जबकि ‘अय’ का अर्थ ‘चलने वाला’ है। अत: ‘प्रत्यय’ का अर्थ हुआ, ‘शब्दों के साथ, पर बाद में चलने वाला या लगने वाला, अत: इसका प्रयोग शब्द के अन्त में किया जाता है। प्रत्यय किसी भी सार्थक मूल शब्द के पश्चात् जोड़े जाने वाले वे अविकारी शब्दांश हैं, जो शब्द के अन्त में जुड़कर उसके अर्थ में या भाव में परिवर्तन कर देते हैं अर्थात् शब्द में नवीन विशेषता उत्पन्न कर देते हैं या अर्थ बदल देते हैं।
जैसे–
- सफल + ता = सफलता
- अच्छा + ई = अच्छाई
यहाँ ‘ता’ और ‘आई’ दोनों शब्दांश प्रत्यय हैं, जो ‘सफल’ और ‘अच्छा’ मूल शब्द के बाद में जोड़ दिए जाने पर ‘सफलता’ और ‘अच्छाई’ शब्द की रचना करते हैं। हिन्दी भाषा के प्रत्यय को चार भागों में विभक्त किया गया है। जो निम्न हैं
- संस्कृत प्रत्यय
- हिन्दी प्रत्यय
- विदेशज प्रत्यय
- ई प्रत्यय
हिन्दी प्रत्यय
(i) कृत् (कृदन्त) मूल क्रिया के साथ कृत् प्रत्यय को जोड़कर नए शब्दों की रचना की जाती है।
- प्रत्यय – मूल क्रिया – उदाहरण
- अ – लूटू, खेल – लूट, खेल
- अक्कड़ – पी, घूम् – पिअक्कड़, घुमक्कड़
- अन्त – लड़, पिट् – लड़न्त, पिटन्त
- अन – जल, ले – जलन, लेन
- अना – पढ़, दे – पढ़ना, देना
- आ – मेल, बैठ – मेला, बैठा
- आई – खेल, लिख – खेलाई, लिखाई
- आऊ – टिक्, खा – टिकाऊ, खाऊ
- आन – उठ्, मिल् – उठान, मिलान
- आव – घुम् , जम् – घुमाव, जमाव
- आवा – छल्, बहक् – छलावा, बहकावा
- आवना, – सुह, डर – सुहावना, डरावना
- आक, आका, आकू – तैराक, लड़ाका, पढ़ाकू
- आप, आपा – तैर, लड़ा, पढ़ – मिलाप, पुजापा
- आवट – मिल्, पुज – बनावट, दिखावट
- आहट – बन्, दिख् – घबराहट, झनझनाहट
- आस – पी, मीठा – प्यास, मिठास
- इयल – मर्, अड़ – मरियल, अड़ियल
- इया – छल, घट – छलिया, घटिया
- ई – घुड़क्, लग – घुड़की, लगी
- ऊ – मार्, काट् – मारू, काटू
- एरा – लूट, बस् – लुटेरा, बसेरा
- ऐया – हँस, बच – हँसैया, बचैया
- ऐत – लड़, बिगड़ – लडैत, बिगडैत
- ओड़, ओड़ा – भाग, हँस, – भगोड़ा, हँसोड़
- औता, औती – समझ्, चुन् – समझौता, चुनौती
- औना, औनी, आवनी – खेल्, मिच्, डर् – खिलौना, मिचौनी, डरावनी
- का – छील, फूल – छिलका, फूलका
- वाला – जा, सो – जाने वाला, सोनेवाला
(ii) हिन्दी के तद्धित प्रत्यय हिन्दी के तद्भव शब्दों में तद्धित प्रत्यय जोड़कर संज्ञा और विशेषण शब्द बनाने वाले कुछ प्रत्यय
- प्रत्यय – मूल क्रिया – उदाहरण
- आ – भूख, प्यास – भूखा, प्यासा
- आई – विदा, ठाकुर – विदाई, ठकुराई
- आन – ऊँचा, नीचा – ऊँचान, निचान
- आना – तेलंग, बघेल – तेलंगना, बघेलाना
- आर – कुम्भ, सोना – कुम्भार, सोनार
- आरी, आरा – हत्या, घास – हत्यारा, घसियारा
- आल, आला – ससुर, दया – ससुराल, दयाला
- आवट – नीम, आम – निमावट, अमावट
- आस – मीठा, खट्टा – मिठास, खटास
- आहट – चिकना, कडुआ – चिकनाहट, कडुवाहट
- इया – दुःख, भोजपुर – दुखिया, भोजपुरिया
- ई – खेत, सुस्त – खेती, सुस्ती
- ईला – रंग, जहर – रंगीला, जहरीला
- ऊ – गँवार, बाज़ार – गँवारू, बाज़ारू
- एरा – मामा, चाचा – ममेरा, चचेरा
- एड़ी – भांग, गाँजा – भँगेड़ी, गजेड़ी
- औती – काठ, मान – कठौती, मनौती
- ओला – सॉप, खाट – सँपोला, खटोला
- का – ढोल, बाल – ढोलक, बालक
- ऐल – झगड़ा, तोंद – झगडैल, तोंदैल
- त – संग, रंग – संगत, रंगत
- पन – मैला, लड़का – मैलापन, लड़कपन
- पा – बहन, बूढ़ा – बहनापा, बुढ़ापा
- हारा – लकड़ी, पानी – लकड़हारा, पनिहारा
- स – उष्मा, तम – उमस, तमस
- ता – मधुर, मनुज – मधुरता, मनुजता
- हरा – एक, तीन – एकहरा, तिहरा
- वाला – टोपी, धन – टोपीवाला, धनवाला
(iii) हिन्दी के स्त्री प्रत्यय पुल्लिगवाची शब्दों के साथ जुड़ने वाले स्त्रीलिंगवाची
- प्रत्यय – मूल क्रिया – उदाहरण
- आइन – पण्डित, लाला – पण्डिताइन, ललाइन
- आनी – राजपूत, जेठ – राजपूतानी, जेठानी
- इन – तेली, दर्जी – तेलिन, दर्जिन
- इया – चूहा, बेटा – चुहिया, बिटिया
- ई – घोड़ा, नाना – घोड़ी, नानी
- नी – शेर, मोर – शेरनी, मोरनी
3. विदेशज प्रत्यय
(उर्दू एवं फ़ारसी के प्रत्यय)
विदेशी भाषा से आए हुए प्रत्ययों से निर्मित शब्द
- प्रत्यय – मूल शब्द – उदाहरण
- कार – पेश, काश्त – पेशकार, काश्तकार
- खाना – डाक, मुर्गी – डाकखाना, मुर्गीखाना
- खोर – रिश्वत, चुगल – रिश्वतखोर, चुगलखोर
- दान – कलम, पान – कलमदान, पानदान
- दार – फल, माल – फलदार, मालदार
- आ – खराब, चश्म – खराबा, चश्मा
- आब – गुल, जूल – गुलाब, जुलाब
- इन्दा – वसि, चुनि – बसिन्दा, चुनिन्दा
4. ई प्रत्यय
इनके प्रयोग से भाववाचक स्त्रीलिंग शब्द बनते हैं।
- प्रत्यय – मूल शब्द – उदाहरण
- ई – रिश्तेदार, दोस्त – रिश्तेदारी, दोस्ती
- बाज – अकड़, नशा – अकड़बाज, नशाबाज
- आना – आशिक, मेहनत – आशिकाना, मेहनताना
- गर – कार, जिल्द – कारगर, जिल्दगर
- साज – जिल्द, घड़ी – जिल्दसाज, घड़ीसाज
- गाह – ईद, कब्र – ईदगाह, कब्रगाह
- ईना – माह, नग – महीना, नगीना
- बन्द, बन्दी – मेंड, हद – मेंड़बन्द, हदबन्दी
1. ‘प्रत्यय’ शब्द निर्मित है
(a) प्रत् + अय (b) प्रत्य + य (c) प्रति + अय (d) प्रति + य
उत्तर :
(c) प्रति + अय
2. ‘प्रत्यय’ लगाए जाते हैं
(a) शब्द के आदि में (b) शब्द के मध्य में (c) शब्द के अन्त में (d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(c) शब्द के अन्त में
3. जो शब्द के अन्त में जुड़कर उसके अर्थ या भाव में परिवर्तन कर देते हैं, उसे क्या कहते हैं?
उत्तर :
(a) समास (b) अव्यय (c) उपसर्ग (d) प्रत्यय
(d) प्रत्यय
4. “कृत्’ प्रत्यय किन शब्दों के साथ जुड़ते हैं?
उत्तर :
(a) संज्ञा (b) सर्वनाम (c) विशेषण (d) क्रिया
(d) क्रिया
5. निम्नलिखित में कौन–सा पद ‘इक’ प्रत्यय से नहीं बना है?
उत्तर :
(a) दैविक (b) सामाजिक (c) भौमिक (d) इनमें से कोई नहीं
(d) इनमें से कोई नहीं
6. ‘अनुज’ शब्द को स्त्रीवाचक बनाने के लिए किस प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर :
(a) आङ् (b) ईयत् (c) आ (d) ई
(c) आ
7. ‘सनसनाहट’ में कौन–सा प्रत्यय है?
(a) सन (b) सनसन (c) हट (d) आहट
उत्तर :
(d) आहट .
8. ‘दासत्व’ में प्रत्यय है
(a) त्व (b) सत्व (c) व (d) तव
उत्तर :
(a) त्व
Chhand in Hindi (छन्द) | छंद की परिभाषा, प्रकार, भेद और उदाहरण – हिन्दी व्याकरण,
छंद – Chhand Ki Paribhasha, Prakar, Bhed, aur Udaharan (Examples) – Hindi Grammar
छन्द जिस रचना में मात्राओं और वर्णों की विशेष व्यवस्था तथा संगीतात्मक लय और गति की योजना रहती है, उसे ‘छन्द’ कहते हैं। ऋग्वेद के पुरुषसूक्त के नवम् छन्द में ‘छन्द’ की उत्पत्ति ईश्वर से बताई गई है। लौकिक संस्कृत के छम्दों का जन्मदाता वाल्मीकि को माना गया है। आचार्य पिंगल ने ‘छन्दसूत्र’ में छन्द का सुसम्बद्ध वर्णन किया है, अत: इसे छन्दशास्त्र का आदि ग्रन्थ माना जाता है। छन्दशास्त्र को ‘पिंगलशास्त्र’ भी कहा जाता है। हिन्दी साहित्य में छन्दशास्त्र की दृष्टि से प्रथम कृति ‘छन्दमाला’ है। छन्द के संघटक तत्त्व आठ हैं, जिनका वर्णन निम्नलिखित है-
- चरण छन्द कुछ पंक्तियों का समूह होता है और प्रत्येक पंक्ति में समान वर्ण या मात्राएँ होती हैं। इन्हीं पंक्तियों को ‘चरण’ या ‘पाद’ कहते हैं। प्रथम व तृतीय चरण को ‘विषम’ तथा दूसरे और चौथे चरण को ‘सम’ कहते हैं।
- वर्ण ध्वनि की मूल इकाई को ‘वर्ण’ कहते हैं। वर्णों के सुव्यवस्थित समूह या समुदाय को ‘वर्णमाला’ कहते हैं। छन्दशास्त्र में वर्ण दो प्रकार के होते हैं-‘लघु’ और ‘गुरु’।
- मात्रा वर्गों के उच्चारण में जो समय लगता है, उसे ‘मात्रा’ कहते हैं। लघु वर्णों की मात्रा एक और गुरु वर्णों की मात्राएँ दो होती हैं। लघु को तथा गुरु को 5 द्वारा व्यक्त करते हैं।
- क्रम वर्ण या मात्रा की व्यवस्था को ‘क्रम’ कहते हैं; जैसे-यदि “राम कथा मन्दाकिनी चित्रकूट चित चारु” दोहे के चरण को ‘चित्रकूट चित चारु, रामकथा मन्दाकिनी’ रख दिया जाए तो सारा क्रम बिगड़कर सोरठा का चरण हो जाएगा।
- यति छन्दों को पढ़ते समय बीच-बीच में कुछ रुकना पड़ता है। इन्हीं विराम स्थलों को ‘यति’ कहते हैं। सामान्यतः छन्द के चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण के अन्त में ‘यति’ होती है। 6. गति ‘गति’ का अर्थ ‘लय’ है। छन्दों को पढ़ते समय मात्राओं के लघु अथवा दीर्घ होने के कारण जो विशेष स्वर लहरी उत्पन्न होती है, उसे ही ‘गति’ या ‘लय’ कहते हैं।
- तुक छन्द के प्रत्येक चरण के अन्त में स्वर-व्यंजन की समानता को ‘तुक’ कहते हैं। जिस छन्द में तुक नहीं मिलता है, उसे ‘अतुकान्त’ और जिसमें तुक मिलता है, उसे ‘तुकान्त’ छन्द कहते हैं।
- गण तीन वर्गों के समूह को ‘गण’ कहते हैं। गणों की संख्या आठ है-यगण, मगण, तगण, रगण, जगण, भगण, नगण और सगण। इन गणों के नाम रूप ‘यमातराजभानसलगा’ सूत्र द्वारा सरलता से ज्ञात हो जाते हैं। उल्लेखनीय है कि इन गणों के अनुसार मात्राओं का क्रम वार्णिक वृत्तों या छन्दों में होता है, मात्रिक छन्द इस बन्धन से मुक्त हैं। गणों के नाम, सूत्र चिह्न और उदाहरण इस प्रकार हैं-
- गण – सूत्र – चिह्न – उदाहरण
- यगण – यमाता – ।ऽऽ – बहाना
- मगण – मातारा – ऽऽऽ – आज़ादी
- तगण – ताराज – ऽऽ। – बाज़ार
- रगण – राजभा – ऽ।ऽ – नीरजा
- जगण – जभान – ।ऽ। – महेश
- भगण – भानस – ऽ।। – मानस
- नगण – नसल – ।।। – कमल
- सगण – सलगा – ।।ऽ – ममता
छन्द के प्रकार
छन्द चार प्रकार के होते हैं-
- वर्णिक
- मात्रिक
- उभय
- मुक्तक या स्वच्छन्द।
मुक्तक छन्द को छोड़कर शेष-वर्णिक, मात्रिक और उभय छन्दों के तीन-तीन उपभेद हैं, ये तीन उपभेद निम्न प्रकार है-
- सम छन्द के चार चरण होते हैं और चारों की मात्राएँ या वर्ण समान ही होते हैं; जैसे–चौपाई, इन्द्रवज्रा आदि
- अर्द्धसम छन्द के पहले और तीसरे तथा दूसरे और चौथे चरणों की मात्राओं या वर्गों में परस्पर समानता होती है जैसे-दोहा, सोरठा आदि।
- विषम नाम से ही स्पष्ट है। इसमें चार से अधिक, छ: चरण होते हैं और वे एक समान (वजन के) नहीं होते; जैसे-कुण्डलियाँ, छप्पय आदि।
छन्दों का विवेचन
वर्णिक छन्द
जिन छन्दों की रचना वर्णों की गणना के आधार पर की जाती है उन्हें वर्णवृत्त या वर्णिक छन्द कहते हैं। प्रतियोगिता परीक्षाओं की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण वर्णिक छन्दों का विवेचन इस प्रकार है-
1. इन्द्रवज्रा
इसके प्रत्येक चरण में ग्यारह वर्ण होते हैं, पाँचवें या छठे वर्ण पर यति होती है। इसमें दो तगण (ऽऽ।, ऽऽ।), एक जगण (।ऽ।) तथा अन्त में दो गुरु (ऽऽ) होते हैं;
जैसे-
“जो मैं नया ग्रन्थ विलोकता हूँ,
भाता मुझे सो नव मित्र सा है।
देखू उसे मैं नित सार वाला,
मानो मिला मित्र मुझे पुराना।”
2. उपेन्द्रवज्रा
इसके भी प्रत्येक चरण में ग्यारह वर्ण होते हैं, पाँचवें व छठे वर्ण पर यति होती है। इसमें जगण (।ऽ।), तगण (ऽऽ।), जगण (।ऽ।) तथा अन्त में दो गुरु (ऽऽ) होते हैं;
जैसे-
“बड़ा कि छोटा कुछ काम कीजै।
परन्तु पूर्वापर सोच लीजै।।
बिना विचारे यदि काम होगा।
कभी न अच्छा परिणाम होगा।।”
विशेष इन्द्रवज्रा का पहला वर्ण गुरु होता है, यदि इसे लघु कर दिया जाए तो ‘उपेन्द्रवज्रा’ छन्द बन जाता है।
3. वसन्ततिलका
इस छन्द के प्रत्येक चरण में चौदह वर्ण होते हैं। वर्णों के क्रम में तगण (ऽऽ।), भगण (ऽ।।), दो जगण (।ऽ।, ।ऽ।) तथा दो गुरु (ऽऽ) रहते हैं;
जैसे-
“भू में रमी शरद की कमनीयता थी।
नीला अनंत नभ निर्मल हो गया था।।”
4. मालिनी मजुमालिनी
इस छन्द में । ऽ वर्ण होते हैं तथा आठवें व सातवें वर्ण पर यति होती है। वर्गों के क्रम में दो नगण (।।, ।।।), एक मगण (ऽऽऽ) तथा दो यगण (।ऽऽ, ।ऽऽ) होते हैं;
जैसे-
।। ।। ।। ऽऽ ऽ। ऽऽ ।ऽ ऽ
“प्रिय पति वह मेरा, प्राण प्यारा कहाँ है?
दुःख जलधि में डूबी, का सहारा कहाँ है?
अब तक जिसको मैं, देख के जी सकी हूँ
वह हृदय हमारा, नेत्र-तारा कहाँ है?”
5. मन्दाक्रान्ता
इस छन्द के प्रत्येक चरण में एक मगण
(ऽऽऽ), एक भगण (ऽ।।), एक नगण (।।), दो तगण (ऽऽ।, ऽऽ।) तथा दो गुरु (ऽऽ) मिलाकर 17 वर्ण होते हैं। चौथे, छठवें तथा सातवें वर्ण पर यति होती है;
जैसे-
ऽऽ ऽऽ ।। ।। ।ऽ ऽ ।ऽ ऽ। ऽऽ
“तारे डूबे तम टल गया छा गई व्योम लाली।
पंछी बोले तमचुर जगे ज्योति फैली दिशा में।”
6. शिखरिणी
इस छन्द के प्रत्येक चरण में एक यगण (।ऽऽ), एक मगण (ऽऽऽ), एक नगण (।।।), एक सगण (।।ऽ), एक भगण (ऽ।।), एक लघु (।) एवं एक गुरु (ऽ) होता है। इसमें 17 वर्ण तथा छः वर्णों पर यति होता है;
जैसे-
।ऽऽ ऽऽ ऽ ।।। ।।ऽ ऽ ।।। ऽ
“अनूठी आभा से, सरस सुषमा से सुरस से।
बना जो देती थी, वह गुणमयी भू विपिन को।।
निराले फूलों की, विविध दल वाली अनुपम।
जड़ी-बूटी हो बहु फलवती थी विलसती।।”
7. वंशस्थ
इस छन्द के प्रत्येक चरण में एक जगण (।ऽ।), एक तगण (ऽ1), एक जगण (।ऽ1) और एक रगण (ऽ) के क्रम में 12 वर्ण होते हैं;
जैसे-
। ऽ।ऽ ऽ ।।ऽ ऽ। ऽ
“न कालिमा है मिटती कपाल की।
न बाप को है पड़ती कुमारिक।
प्रतीति होती यह थी विलोक के,
तपोमयी सी तनया तमारि की।।”
8. द्रुतविलम्बित
इस छन्द के प्रत्येक चरण में एक नगण (।।।), दो भगण (ऽ।।, ऽ।।) और एक रगण (ऽ।ऽ) के क्रम से 12 वर्ण होते हैं, चार-चार वर्णों पर यति होती है;
जैसे-
।। ऽ ।।ऽ। ।ऽ। ऽ
“दिवस का अवसान समीप था
गगन था कुछ लोहित हो चला।
तरुशिखा पर थी अब राजती,
कमलनी कुल वल्लभ की प्रभा।।”
9. मत्तगयन्द (मालती)
इस छन्द के प्रत्येक चरण में सात भगण (ऽ।।, ऽ।।, ऽ।।, ऽ।।, ऽ।।, ऽ।।, ऽ।।) और अन्त में दो गुरु (ऽ) के क्रम से 23 वर्ण होते हैं;
जैसे-
ऽ। ।ऽ। ।ऽ। ।ऽ। ।ऽ। ऽ। ।ऽ।। ऽऽ
“सेस महेश गनेस सुरेश, दिनेसहु जाहि निरन्तर गावें।
नारद से सुक व्यास रटैं, पचि हारे तऊ पुनि पार न पावें।।”
10. सुन्दरी सवैया
इस छन्द के प्रत्येक चरण में आठ सगण (।।ऽ, ।।ऽ, ।।ऽ, ।।ऽ, ।।ऽ, ।।ऽ, ।।ऽ, ।।ऽ) और अन्त में एक गुरु (ऽ) मिलाकर 25 वर्ण होते हैं;
जैसे-
।। ऽ।। ऽ।। ऽ। ।ऽ।। ऽ। ।ऽ। ।ऽऽ
“पद कोमल स्यामल गौर कलेवर राजन कोटि मनोज लजाए।
कर वान सरासन सीस जटासरसीरुह लोचन सोन सहाए।
जिन देखे रखी सतभायहु तै, तुलसी तिन तो मह फेरि न पाए।
यहि मारग आज किसोर वधू, वैसी समेत सुभाई सिधाए।।”
मात्रिक छन्द
यह छन्द मात्रा की गणना पर आधृत रहता है, इसलिए इसका नामक मात्रिक छन्द है। जिन छन्दों में मात्राओं की समानता के नियम का पालन किया जाता है किन्तु वर्णों की समानता पर ध्यान नहीं दिया जाता, उन्हें मात्रिक छन्द कहा जाता है। मात्रिक छन्दों का विवेचन इस प्रकार है-
1. चौपाई
यह सममात्रिक छन्द है, इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं। चरण के अन्त में दो गुरु होते हैं;
जैसे-
ऽ।। ।। ।। ।।। ।।ऽ ।।। ।ऽ। ।।। ।।ऽऽ = 16 मात्राएँ – “बंदउँ गुरु पद पदुम परागा, सुरुचि सुवास सरस अनुरागा। अमिय मूरिमय चूरन चारू, समन सकल भवरुज परिवारु।।”
2. रोला (काव्यछन्द)
यह चार चरण वाला मात्रिक छन्द है। इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं तथा । व 13 मात्राओं पर ‘यति’ होती है। इसके चारों चरणों की ग्यारहवीं मात्रा लघु रहने पर, इसे काव्यछन्द भी कहते हैं;
जैसे-
ऽ ऽऽ ।। ।।। ।ऽ ऽ ।ऽ ।।। ऽ = 24 मात्राएँ
हे दबा यह नियम, सृष्टि में सदा अटल है।
रह सकता है वही, सुरक्षित जिसमें बल है।।
निर्बल का है नहीं, जगत् में कहीं ठिकाना।
रक्षा साधक उसे, प्राप्त हो चाहे नाना।।
3. हरिगीतिका
यह चार चरण वाला सममात्रिक छन्द है। इसके प्रत्येक चरण में 28 मात्राएँ होती हैं, अन्त में लघु और गुरु होता है तथा 16 व 12 मात्राओं पर यति होती है;
जैसे-
।। ऽ। ऽ।। ।।। ऽ।। ।।। ऽ।। ऽ।ऽ = 28 मात्राएँ।
“मन जाहि राँचेउ मिलहि सोवर सहज सुन्दर साँवरो।
करुना निधान सुजान सीलु सनेह जानत राव।।
इहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय सहित हिय हरषित अली।
तुलसी भवानिहिं पूजि पुनि पुनि मुदित मन मन्दिर चली।।”
अथवा
‘हरिगीतिका’ शब्द चार बार लिखने से उक्त छन्द का एक चरण बन जाता है;
जैसे-
।।ऽ।ऽ ।।ऽ।ऽ ।।ऽ।ऽ ।।ऽ।ऽ = 28 मात्राएँ
हरिगीतिका, हरिगीतिका, हरिगीतिका, हरिगीतिका
4. दोहा
यह अर्द्धसममात्रिक छन्द है। इसमें 24 मात्राएँ होती हैं। इसके विषम चरण (प्रथम व तृतीय) में 13-13 तथा सम चरण (द्वितीय व चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं;
जैसे-
ऽऽ ।। ऽऽ ।ऽ ऽऽ ऽ।। ऽ। = 24 मात्राएँ
“मेरी भव बाधा हरौ, राधा नागरि सोय।
जा तन की झाँईं परे, स्याम हरित दुति होय।।”
5. सोरठा
यह भी अर्द्धसम मात्रिक छन्द है। यह दोहा का विलोम है, इसके प्रथम व तृतीय चरण में ।-। और द्वितीय व चतुर्थ चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं;
जैसे-
।। ऽ।। ऽ ऽ। ऽ। ।ऽऽ ।।।ऽ = 24
मात्राएँ “सुनि केवट के बैन, प्रेम लपेटे अटपटे।
बिहँसे करुना ऐन, चितइ जानकी लखन तन।।”
6. उल्लाला
इसके प्रथम और तृतीय चरण में ।ऽ-।ऽ मात्राएँ होती हैं तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं;
जैसे-
हे शरणदायिनी देवि तू, करती सबका त्राण है।
हे मातृभूमि! संतान हम, तू जननी, तू प्राण है।
7. छप्पय
यह छः चरण वाला विषम मात्रिक छन्द है। इसके प्रथम चार चरण रोला के तथा । अन्तिम दो चरण उल्लाला के होते हैं;
जैसे-
“नीलाम्बर परिधान हरित पट पर सुन्दर है।
सूर्य-चन्द्र युग मुकुट मेखला रत्नाकर है।
नदियाँ प्रेम-प्रवाह, फूल तारा मण्डल है।
बन्दी जन खगवृन्द शेष फन सिंहासन है।
करते अभिषेक पयोद हैं बलिहारी इस वेष की।
हे मातृभूमि तू सत्य ही, सगुण मूर्ति सर्वेश की।।”
8. बरवै
बरवै के प्रथम और तृतीय चरण में 12 तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में 7 मात्राएँ होती हैं, इस प्रकार इसकी प्रत्येक पंक्ति में 19 मात्राएँ होती हैं;
जैसे-
।।ऽ ऽ। ऽ। ।। ऽ। । ऽ। = 19
तुलसी राम नाम सम मीत न आन।
जो पहुँचाव रामपुर तनु अवसान।।
9. गीतिका
गीतिका में 26 मात्राएँ होती हैं, 14-12 पर यति होती है। चरण के अन्त में लघु-गुरु होना आवश्यक है;
जैसे-
ऽ। ऽऽ 5 ।ऽऽ ।ऽ |।ऽ ।ऽ = 26 मात्राएँ
साधु-भक्तों में सुयोगी, संयमी बढ़ने लगे।
सभ्यता की सीढ़ियों पै, सूरमा चढ़ने लगे।।
वेद-मन्त्रों को विवेकी, प्रेम से पढ़ने लगे।
वंचकों की छातियों में शूल-से गड़ने लगे।
10. वीर (आल्हा)
वीर छन्द के प्रत्येक चरण में 16, ।ऽ पर यति देकर 31 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में । गुरु-लघु होना आवश्यक है;
जैसे-
।। ।। ऽ ऽऽ। ।।। ।। ऽ। ।ऽ ऽ ऽ।। ऽ। = 31 मात्राएँ
“हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर, बैठ शिला की शीतल छाँह।
एक पुरुष भीगे नयनों से, देख रहा था प्रलय-प्रवाह।।”
11. कुण्डलिया
यह छ: चरण वाला विषम मात्रिक छन्द है। इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं। इसके प्रथम दो चरण दोहा और बाद के चार चरण रोला के होते हैं। ये दोनों छन्द कुण्डली के रूप में एक दूसरे से गुंथे रहते हैं, इसीलिए इसे कुण्डलिया छन्द कहते हैं;
जैसे-
“पहले दो दोहा रहैं, रोला अन्तिम चार।
रहें जहाँ चौबीस कला, कुण्डलिया का सार।
कुण्डलिया का सार, चरण छः जहाँ बिराजे।
दोहा अन्तिम पाद, सरोला आदिहि छाजे।
पर सबही के अन्त शब्द वह ही दुहराले।
दोहा का प्रारम्भ, हुआ हो जिससे पहले।”
प्रश्न 1.
हिन्दी साहित्य में छन्दशास्त्र की दृष्टि से पहली कृति कौन है?
(a) छन्दमाला (b) छन्दसार (c) छन्दोर्णव पिंगल (d) छन्दविचार
उत्तर :
(a) छन्दमाला
प्रश्न 2.
छन्द पढ़ते समय आने वाले विराम को कहते हैं
(a) गति (b) यति (c) तुक (d) गण
उत्तर :
(b) यति
प्रश्न 3.
गणों की सही संख्या है।
(a) छ: (b) आठ (c) दस (d) बारह
उत्तर :
(b) आठ
प्रश्न 4.
दोहा और सोरठा किस प्रकार के छन्द हैं?
(a) समवर्णिक (b) सममात्रिक (c) अर्द्धसममात्रिक (d) विषम मात्रिक
उत्तर :
(c) अर्द्धसममात्रिक
प्रश्न 5.
दोहा और रोला के संयोग से बनने वाला छन्द है (पी.जी.टी. हिन्दी परीक्षा 20।)
(a) पीयूष वर्ष (b) तोटक (c) छप्पय (d) कुण्डलिया
उत्तर :
(d) कुण्डलिया
प्रश्न 6.
बन्दउँ गुरुपद कंज कृपा सिन्धु नररूप हरि।
महामोहतम पुंज, जासु वचन रविकर निकर।।
उपरोक्त पंक्तियों में छन्द है (टी.जी.टी. परीक्षा 2011)
(a) सोरठा (b) दोहा (c) बरवै (d) रोला
उत्तर :
(a) सोरठा
प्रश्न 7.
“कहते हुए यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गए। हिम के कणों से पूर्ण मानो हो गए पंकज नए।। उपरोक्त पंक्तियों में छन्द है।
(a) बरवै (b) चौपाई (c) गीतिका (d) सोरठा
उत्तर :
(c) गीतिका
प्रश्न 8.
सेस महेश गणेश सुरेश, दिनेसह जाहि निरन्तर गावें।
नारद से सुक व्यास रटैं, पचि हारे तऊ पुनि पार न पावै।।
उपरोक्त पंक्तियों में छन्द है
(a) मालती (b) वंशस्थ (c) शिखरिणी (d) मन्दाक्रान्ता
उत्तर :
(a) मालती
प्रश्न 9.
शिल्पगत आधार पर दोहे का उल्टा छन्द है (उपनिरीक्षक सीधी भर्ती परीक्षा 2014)
(a) रोला (b) चौपाई (c) सोरठा (d) बरवै
उत्तर :
(c) सोरठा
प्रश्न 10.
चौपाई के प्रत्येक चरण में मात्राएँ होती हैं। (उपनिरीक्षक सीधी भर्ती परीक्षा 2014)
(a) 11
(c) 13
(d) 16
(b) 13
उत्तर :
(d) 16
Alankar in Hindi (अलंकार इन हिंदी) Alankar Ki Paribhasha, Bhed, Udaharan(Examples) – Hindi Grammar
अलंकार की परिभाषा
काव्य की शोभा बढ़ाने वाले तत्त्वों को अलंकार कहते हैं। अलंकार के चार भेद हैं-
- शब्दालंकार,
- अर्थालंकार,
- उभयालंकार और
- पाश्चात्य अलंकार।
अलंकार का विवेचन
शब्दालंकार
काव्य में शब्दगत चमत्कार को शब्दालंकार कहते हैं। शब्दालंकार मुख्य रुप से सात हैं, जो निम्न प्रकार हैं-अनुप्रास, यमक, श्लेष, वक्रोक्ति, पुनरुक्तिप्रकाश, पुनरुक्तिवदाभास और वीप्सा आदि।
1. अनुप्रास अलंकार
एक या अनेक वर्गों की पास-पास तथा क्रमानुसार आवृत्ति को ‘अनुप्रास अलंकार’ कहते हैं। इसके पाँच भेद हैं-
(i) छेकानुप्रास जहाँ एक या अनेक वर्णों की एक ही क्रम में एक बार आवृत्ति हो वहाँ छेकानुप्रास अलंकार होता है;
जैसे-
“इस करुणा कलित हृदय में,
अब विकल रागिनी बजती”
यहाँ करुणा कलित में छेकानुप्रास है।
(ii) वृत्यानुप्रास काव्य में पाँच वृत्तियाँ होती हैं-मधुरा, ललिता, प्रौढ़ा, परुषा और भद्रा। कुछ विद्वानों ने तीन वृत्तियों को ही मान्यता दी है-उपनागरिका, परुषा और कोमला। इन वृत्तियों के अनुकूल वर्ण साम्य को वृत्यानुप्रास कहते हैं;
जैसे-
‘कंकन, किंकिनि, नूपुर, धुनि, सुनि’
यहाँ पर ‘न’ की आवृत्ति पाँच बार हुई है और कोमला या मधुरा वृत्ति का पोषण हुआ है। अत: यहाँ वृत्यानुप्रास है।
(iii) श्रुत्यनुप्रास जहाँ एक ही उच्चारण स्थान से बोले जाने वाले वर्षों की आवृत्ति होती है, वहाँ श्रुत्यनुप्रास अलंकार होता है;
जैसे-
तुलसीदास सीदति निसिदिन देखत तुम्हार निठुराई’
यहाँ ‘त’, ‘द’, ‘स’, ‘न’ एक ही उच्चारण स्थान (दन्त्य) से उच्चरित होने। वाले वर्षों की कई बार आवृत्ति हुई है, अत: यहाँ श्रुत्यनुप्रास अलंकार है।
(iv) अन्त्यानुप्रास अलंकार जहाँ पद के अन्त के एक ही वर्ण और एक ही स्वर की आवृत्ति हो, वहाँ अन्त्यानुप्रास अलंकार होता है;
जैसे-
“जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीश तिहुँ लोक उजागर”।
यहाँ दोनों पदों के अन्त में ‘आगर’ की आवृत्ति हुई है, अत: अन्त्यानुप्रास अलंकार है।
(v) लाटानुप्रास जहाँ समानार्थक शब्दों या वाक्यांशों की आवृत्ति हो परन्तु अर्थ में अन्तर हो, वहाँ लाटानुप्रास अलंकार होता है;
जैसे-
“पूत सपूत, तो क्यों धन संचय?
पूत कपूत, तो क्यों धन संचय”?
यहाँ प्रथम और द्वितीय पंक्तियों में एक ही अर्थ वाले शब्दों का प्रयोग हुआ, है परन्तु प्रथम और द्वितीय पंक्ति में अन्तर स्पष्ट है, अतः यहाँ लाटानुप्रास अलंकार है।
2. यमक अलंकार
जहाँ एक शब्द या शब्द समूह अनेक बार आए किन्तु उनका अर्थ प्रत्येक बार भिन्न हो, वहाँ यमक अलंकार होता है;
जैसे-
“जेते तुम तारे, तेते नभ में न तारे हैं”
यहाँ पर ‘तारे’ शब्द दो बार आया है। प्रथम का अर्थ ‘तारण करना’ या ‘उद्धार करना’ है और द्वितीय ‘तारे’ का अर्थ ‘तारागण’ है, अतः यहाँ यमक अलंकार है।
3. श्लेष अलंकार
जहाँ एक ही शब्द के अनेक अर्थ निकलते हैं, वहाँ श्लेष अलंकार होता है;
जैसे-
“रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती मानुष चून।।”
यहाँ ‘पानी’ के तीन अर्थ हैं—’कान्ति’, ‘आत्मसम्मान’ और ‘जल’, अत: यहाँ श्लेष अलंकार है।
4. वक्रोक्ति अलंकार
जहाँ पर वक्ता द्वारा भिन्न अभिप्राय से व्यक्त किए गए कथन का श्रोता ‘श्लेष’ या ‘काकु’ द्वारा भिन्न अर्थ की कल्पना कर लेता है, वहाँ वक्रोक्ति अलंकार होता है। इसके दो भेद हैं-श्लेष वक्रोक्ति और काकु वक्रोक्ति।
(i) श्लेष वक्रोक्ति जहाँ शब्द के श्लेषार्थ के द्वारा श्रोता वक्ता के कथन से भिन्न अर्थ अपनी रुचि या परिस्थिति के अनुकूल अर्थ ग्रहण करता है, वहाँ श्लेष वक्रोक्ति अलंकार होता है;
जैसे-
“गिरजे तुव भिक्षु आज कहाँ गयो,
जाइ लखौ बलिराज के द्वारे।
व नृत्य करै नित ही कित है,
ब्रज में सखि सूर-सुता के किनारे।
पशुपाल कहाँ? मिलि जाइ कहूँ,
वह चारत धेनु अरण्य मँझारे।।”
(ii) काकु वक्रोक्ति जहाँ किसी कथन का कण्ठ की ध्वनि के कारण दूसरा __ अर्थ निकलता है, वहाँ काकु वक्रोक्ति अलंकार होता है;
जैसे-
“मैं सुकुमारि, नाथ वन जोगू।
तुमहिं उचित तप मो कहँ भोगू।”
5. पुनरुक्तिप्रकाश इस अलंकार में कथन के सौन्दर्य के बहाने एक ही शब्द की आवृत्ति को पुनरुक्तिप्रकाश कहते हैं;
जैसे-
“ठौर-ठौर विहार करती सुन्दरी सुरनारियाँ।”
यहाँ ‘ठौर-ठौर’ की आवृत्ति में पुनरुक्तिप्रकाश है। दोनों ‘ठौर’ का अर्थ एक ही . है परन्तु पुनरुक्ति से कथन में बल आ गया है।
6. पुनरुक्तिवदाभास
जहाँ कथन में पुनरुक्ति का आभास होता है, वहाँ पुनरुक्तिवदाभास अलंकार होता है;
जैसे-
“पुनि फिरि राम निकट सो आई।”
यहाँ ‘पुनि’ और ‘फिरि’ का समान अर्थ प्रतीत होता है, परन्तु पुनि का अर्थ-पुन: (फिर) है और ‘फिरि’ का अर्थ-लौटकर होने से पुनरुक्तिावदाभास अलंकार है।
7. वीप्सा
जब किसी कथन में अत्यन्त आदर के साथ एक शब्द की अनेक बार आवृत्ति होती है तो वहाँ वीप्सा अलंकार होता है;
जैसे-
“हा! हा!! इन्हें रोकन को टोक न लगावो तुम।”
यहाँ ‘हा!’ की पुनरुक्ति द्वारा गोपियों का विरह जनित आवेग व्यक्त होने से वीप्सा अलंकार है।
अर्थालंकार
साहित्य में अर्थगत चमत्कार को अर्थालंकार कहते हैं। प्रमुख अर्थालंकार मुख्य रुप से तेरह हैं-उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, भ्रान्तिमान, सन्देह, दृष्टान्त, अतिशयोक्ति, विभावना, अन्योक्ति, विरोधाभास, विशेषोक्ति, प्रतीप, अर्थान्तरन्यास आदि।
1. उपमा
समान धर्म के आधार पर जहाँ एक वस्तु की समानता या तुलना किसी दूसरी वस्तु से की जाती है, वहाँ उपमा अलंकार होता है। उपमा के चार अंग हैं
- उपमेय वर्णनीय वस्तु जिसकी उपमा या समानता दी जाती है, उसे ‘उपमेय’ कहते हैं; जैसे-उसका मुख चन्द्रमा के समान सुन्दर है। वाक्य में ‘मुख’ की चन्द्रमा से समानता बताई गई है, अत: मुख उपमेय है।
- उपमान जिससे उपमेय की समानता या तुलना की जाती है उसे उपमान कहते हैं; जैसे-उपमेय (मुख) की समानता चन्द्रमा से की गई है, अतः चन्द्रमा उपमान है।
- साधारण धर्म जिस गुण के लिए उपमा दी जाती है, उसे साधारण धर्म कहते हैं। उक्त उदाहरण में सुन्दरता के लिए उपमा दी गई है, अत: सुन्दरता साधारण धर्म है।
- वाचक शब्द जिस शब्द के द्वारा उपमा दी जाती है, उसे वाचक शब्द कहते हैं। उपर्युक्त उदाहरण में समान शब्द वाचक है। इसके अलावा ‘सी’, ‘सम’, ‘सरिस’ सदृश शब्द उपमा के वाचक होते हैं। उपमा के तीन भेद हैं–पूर्णोपमा, लुप्तोपमा और मालोपमा।
(क) पूर्णोपमा जहाँ उपमा के चारों अंग विद्यमान हों वहाँ पूर्णोपमा अलंकार होता है;
जैसे-
हरिपद कोमल कमल से”
(ख) लुप्तोपमा जहाँ उपमा के एक या अनेक अंगों का अभाव हो वहाँ लुप्तोपमा अलंकार होता है;
जैसे-
“पड़ी थी बिजली-सी विकराल।
लपेटे थे घन जैसे बाल”।
(ग) मालोपमा जहाँ किसी कथन में एक ही उपमेय के अनेक उपमान होते हैं वहाँ मालोपमा अलंकार होता है।
जैसे-
“चन्द्रमा-सा कान्तिमय, मृदु कमल-सा कोमल महा
कुसुम-सा हँसता हुआ, प्राणेश्वरी का मुख रहा।।”
2. रूपक
जहाँ उपमेय में उपमान का निषेधरहित आरोप हो अर्थात् उपमेय और उपमान को एक रूप कह दिया जाए, वहाँ रूपक अलंकार होता है;
जैसे-
“बीती विभावरी जाग री।
अम्बर-पनघट में डुबो रही तारा-घट ऊषा-नागरी”।
यहाँ अम्बर-पनघट, तारा-घट, ऊषा-नागरी में उपमेय उपमान एक हो गए हैं, अत: रूपक अलंकार है।
3. उत्प्रेक्षा
जहाँ उपमेय में उपमान की सम्भावना व्यक्त की जाए वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। इसमें जनु, मनु, मानो, जानो, इव, जैसे वाचक शब्दों का प्रयोग होता है। उत्प्रेक्षा के तीन भेद हैं-वस्तूत्प्रेक्षा, हेतूत्प्रेक्षा और फलोत्प्रेक्षा।
(i) वस्तूत्प्रेक्षा जहाँ एक वस्तु में दूसरी वस्तु की सम्भावना की जाए वहाँ वस्तूत्प्रेक्षा होती है;
जैसे-
“उसका मुख मानो चन्द्रमा है।”
(ii) हेतृत्प्रेक्षा जब किसी कथन में अवास्तविक कारण को कारण मान लिया जाए तो हेतूत्प्रेक्षा होती है;
जैसे-
“पिउ सो कहेव सन्देसड़ा, हे भौंरा हे काग।
सो धनि विरही जरिमुई, तेहिक धुवाँ हम लाग”।।
यहाँ कौआ और भ्रमर के काले होने का वास्तविक कारण विरहिणी के विरहाग्नि में जल कर मरने का धुवाँ नहीं हो सकता है फिर भी उसे कारण माना गया है अत: हेतूत्प्रेक्षा अलंकार है।
(iii) फलोत्प्रेक्षा जहाँ अवास्तविक फल को वास्तविक फल मान लिया जाए, वहाँ फलोत्प्रेक्षा होती है;
जैसे-
“नायिका के चरणों की समानता प्राप्त करने के लिए कमल जल में तप रहा है।”
यहाँ कमल का जल में तप करना स्वाभाविक है। चरणों की समानता प्राप्त करना वास्तविक फल नहीं है पर उसे मान लिया गया है, अतः यहाँ फलोत्प्रेक्षा है।
4. भ्रान्तिमान
जहाँ समानता के कारण एक वस्तु में किसी दूसरी वस्तु का भ्रम हो, वहाँ भ्रान्तिमान अलंकार होता है;
जैसे-
“पायँ महावर देन को नाइन बैठी आय।
फिरि-फिरि जानि महावरी, एड़ी मीड़ति जाय।।”
यहाँ नाइन को एड़ी की स्वाभाविक लालिमा में महावर की काल्पनिक प्रतीति हो रही है, अत: यहाँ भ्रान्तिमान अलंकार है।
5. सन्देह
जहाँ अति सादृश्य के कारण उपमेय और उपमान में अनिश्चय की स्थिति बनी रहे अर्थात् जब उपमेय में अन्य किसी वस्तु का संशय उत्पन्न हो जाए, तो वहाँ सन्देह अलंकार होता है;
जैसे-
“सारी बीच नारी है या नारी बीच सारी है,
कि सारी की नारी है कि नारी की ही सारी।”
यहाँ उपमेय में उपमान का संशयात्मक ज्ञान है अतः यहाँ सन्देह अलंकार है। 6. दृष्टान्त जहाँ किसी बात को स्पष्ट करने के लिए सादृश्यमूलक दृष्टान्त प्रस्तुत किया जाता है, वहाँ दृष्टान्त अलंकार होता है;
जैसे-
“मन मलीन तन सुन्दर कैसे।
विषरस भरा कनक घट जैसे।।”
यहाँ उपमेय वाक्य और उपमान वाक्य में बिम्ब-प्रतिबिम्ब का भाव है अतः यहाँ दृष्टान्त अलंकार है।
7. अतिशयोक्ति
जहाँ किसी विषयवस्तु का उक्ति चमत्कार द्वारा लोकमर्यादा के विरुद्ध बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया जाता है, वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है;
जैसे-
हनुमान की पूँछ में, लगन न पाई आग।
सारी लंका जरि गई, गए निशाचर भाग।”
यहाँ हनुमान की पूंछ में आग लगने के पहले ही सारी लंका का जलना और राक्षसों के भागने का बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन होने से अतिशयोक्ति अलंकार है।
8. विभावना
जहाँ कारण के बिना कार्य के होने का वर्णन हो, वहाँ विभावना अलंकार होता है;
जैसे-
“बिनु पग चलइ सुनइ बिनु काना।
कर बिनु करम करै विधि नाना।।
आनन रहित सकल रस भोगी।
बिनु बानी वक्ता बड़ जोगी।।”
यहाँ पैरों के बिना चलना, कानों के बिना सुनना, बिना हाथों के विविध कर्म करना, बिना मुख के सभी रस भोग करना और वाणी के बिना वक्ता होने का उल्लेख होने से विभावना अलंकार है।
9. अन्योक्ति
जहाँ किसी वस्तु या व्यक्ति को लक्ष्य कर कही जाने वाली बात दूसरे के लिए कही जाए, वहाँ अन्योक्ति अलंकार होता है;
जैसे-
“नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं विकास एहि काल।
अली कली ही सो बिंध्यौ, आगे कौन हवाल।।”
यहाँ पर अप्रस्तुत के वर्णन द्वारा प्रस्तुत का बोध कराया गया है अतः यहाँ अन्योक्ति अलंकार है।
10. विरोधाभास
जहाँ वास्तविक विरोध न होने पर भी विरोध का आभास हो वहाँ विरोधाभास अलंकार होता है;
जैसे-
“या अनुरागी चित्त की, गति सम्झै नहिं कोय।
ज्यों ज्यों बूडै स्याम रंग, त्यों त्यों उज्ज्वल होय।।”
यहाँ पर श्याम (काला) रंग में डूबने से उज्ज्वल होने का वर्णन है अतः यहाँ विरोधाभास अलंकार है।
11. विशेषोक्ति
जहाँ कारण के रहने पर भी कार्य नहीं होता है वहाँ विशेषोक्ति अलंकार होता है;
जैसे-
“पानी बिच मीन पियासी।
मोहि सुनि सुनि आवै हासी।।”
12. प्रतीप
प्रतीप का अर्थ है-‘उल्टा या विपरीत’। जहाँ उपमेय का कथन उपमान के रूप में तथा उपमान का उपमेय के रूप में किया जाता है, वहाँ प्रतीप अलंकार होता है;
जैसे-
“उतरि नहाए जमुन जल, जो शरीर सम स्याम”
यहाँ यमुना के श्याम जल की समानता रामचन्द्र के शरीर से देकर उसे उपमेय बना दिया है, अतः यहाँ प्रतीप अलंकार है।
13. अर्थान्तरन्यास
जहाँ किसी सामान्य बात का विशेष बात से तथा विशेष बात का सामान्य बात से समर्थन किया जाए, वहाँ अर्थान्तरन्यास अलंकार होता है;
जैसे-
“सबै सहायक सबल के, कोउ न निबल सुहाय।
पवन जगावत आग को, दीपहिं देत बुझाय।।”
उभयालंकार
जो शब्द और अर्थ दोनों में चमत्कार की वृद्धि करते हैं, उन्हें उभयालंकार कहते हैं। इसके दो भेद हैं
(i) संकर जहाँ पर दो या अधिक अलंकार आपस में ‘नीर-क्षीर’ के समान सापेक्ष रूप से घुले-मिले रहते हैं, वहाँ ‘संकर’ अलंकार होता है;
जैसे-
“नाक का मोती अधर की कान्ति से,
बीज दाडिम का समझकर भ्रान्ति से।
देखकर सहसा हुआ शुक मौन है,
सोचता है अन्य शुक यह कौन है?”
(ii) संसृष्टि जहाँ दो अथवा दो से अधिक अलंकार परस्पर मिलकर भी स्पष्ट रहें, वहाँ ‘संसृष्टि’ अलंकार होता है;
जैसे
तिरती गृह वन मलय समीर,
साँस, सुधि, स्वप्न, सुरभि, सुखगान।
मार केशर-शर, मलय समीर,
ह्रदय हुलसित कर पुलकित प्राण।
पाश्चात्य अलंकार
हिन्दी साहित्य पर पाश्चात्य प्रभाव पड़ने के फलस्वरूप पाश्चात्य अलंकारों का समावेश हुआ है। प्रमुख पाश्चात्य अलंकार है-मानवीकरण, भावोक्ति, ध्वन्यात्मकता और विरोध चमत्कार। परीक्षा की दृष्टि से मानवीकरण अलंकार ही महत्त्वपूर्ण है, इसलिए यहाँ उसी का विवरण दिया गया है। मानवीकरण जहाँ प्रकृति पदार्थ अथवा अमूर्त भावों को मानव के रूप में चित्रित किया जाता है, वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है;
जैसे-
“दिवसावसान का समय, मेघमय आसमान से उतर रही है।
वह संध्या-सुन्दरी परी-सी, धीरे-धीरे-धीरे।”
यहाँ संध्या को सुन्दर परी के रूप में चित्रित किया गया है, अत: यहाँ मानवीकरण अलंकार है।
अलंकार मध्यान्तर प्रश्नावला
प्रश्न 1.
‘सन्देसनि मधुबन-कूप भरे’ में कौन-सा अलंकार है? (उत्तराखण्ड समूह-ग भर्ती परीक्षा 2014)
(a) उपमा (b) अतिशयोक्ति (c) अनुप्रास (d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(a) उपमा
प्रश्न 2.
‘काली घटा का घमण्ड घटा’ उपरोक्त पंक्ति (राजस्व विभाग उ.प्र. लेखपाल भर्ती परीक्षा 20।ऽ)
(a) रूपक (b) यमक (c) उपमा (d) उत्प्रेक्षा
उत्तर :
(b) यमक
प्रश्न 3.
“अम्बर-पनघट में डुबो रही, तारा-घट ऊषा-नागरी’ में कौन-सा अलंकार है? (राजस्व विभाग, उ.प्र. लेखपाल भर्ती परीक्षा 2015)
(a) श्लेष (b) रूपक (c) उपमा (d) अनुप्रास
उत्तर :
(b) रूपक
प्रश्न 4.
‘उदित उदय-गिरि मंच पर रघुबर बाल पतंग’ में कौन-सा अलंकार है? (छत्तीसगढ़ सिविल सेवा प्रारम्भिक परीक्षा 2013)
(a) उपमा (b) रूपक (c) उत्प्रेक्षा (d) भ्रान्तिमान
उत्तर :
(a) उपमा
प्रश्न 5.
‘खिली हुई हवा आई फिरकी सी आई, चली गई पंक्ति में अलं (यू.पी.एस.एस.सी. कनिष्ठ सहायक परीक्षा 2015)
(a) सम्भावना (b) उत्प्रेक्षा (c) उपमा (d) अनुप्रास
उत्तर :
(c) उपमा
प्रश्न 6.
“पापी मनुज भी आज मुख से, राम नाम निकालते’ इस काव्य पंक्ति में अलंकार है (यू.पी.एस.एस.सी. कनिष्ठ सहायक परीक्षा 2015)
(a) विभावना (b) उदाहरण (c) विरोधाभास (d) दृष्टान्त
उत्तर :
(c) विरोधाभास
प्रश्न 7.
“दिवसावसान का समय मेघमय आसमान से उतर रही है वह संध्या सुन्दरी परी-सी धीरे-धीरे-धीरे।” उपरोक्त पंक्तियों में अलंकार है (उप-निरीक्षक सीधी भर्ती परीक्षा 2014)
(a) उपमा (b) रूपक (c) यमक (d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(d) इनमें से कोई नहीं
प्रश्न 8.
“तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए।” उपरोक्त पंक्तियों में कौन-सा अलंकार है? (उप-निरीक्षक सीधी भर्ती परीक्षा 2014)
(a) यमक (b) उत्प्रेक्षा (c) उपमा (d) अनुप्रास
उत्तर :
(d) अनुप्रास
प्रश्न 9.
‘अब रही गुलाब में अपत कटीली डार।’ उपरोक्त पंक्ति में अलंकार है (उप-निरीक्षक सीधी भर्ती परीक्षा 2014)
(a) रूपक (b) यमक (c) अन्योक्ति (d) पुनरुक्ति
उत्तर :
(c) अन्योक्ति
प्रश्न 10.
“पट-पीत मानहुँ तड़ित रुचि, सुचि नौमि जनक सुतावरं।” उपरोक्त पंक्ति में अलंकार है (उप-निरीक्षक सीधी भर्ती परीक्षा 2014)
(a) उपमा (b) रूपक (c) उत्प्रेक्षा (d) उदाहरण
उत्तर :
(c) उत्प्रेक्षा
Paryayvachi Shabd (पर्यायवाची शब्द) Synonyms in Hindi, समानार्थी शब्द
पर्यायवाची शब्द का hindi mein या अर्थ है समान अर्थ वाले शब्द। पर्यायवाची शब्द किसी भी भाषा की सबलता की बहुता को दर्शाता है। जिस भाषा में जितने अधिक पर्यायवाची शब्द होंगे, वह उतनी ही सबल व सशक्त भाषा होगी। इस दृष्टि से संस्कृत सर्वाधिक सम्पन्न भाषा है। भाषा में पर्यायवाची शब्दों के प्रयोग से पूर्ण अभिव्यक्ति की क्षमता आती है।
पर्याय का अर्थ है-समान। अतः समान अर्थ व्यक्त करने वाले शब्दों को पर्यायवाची शब्द (Synonym words) कहते हैं। इन्हें प्रतिशब्द या समानार्थक शब्द भी कहा जाता है। व्यवहार में पर्याय या पर्यायवाची शब्द ही अधिक प्रचलित हैं। विद्यार्थियों के अध्ययन हेतु पर्यायवाची शब्दों की सूची प्रस्तुत है-
More than 10 Paryayvachi Shabd in Hindi
शब्द – पर्यायवाची शब्द
(अ)
अंक – संख्या, गिनती, क्रमांक, निशान, चिह्न, छाप।
अंकुर – कोंपल, अँखुवा, कल्ला, नवोद्भिद्, कलिका, गाभा
अंकुश – प्रतिबन्ध, रोक, दबाव, रुकावट, नियन्त्रण।
अंग – अवयव, अंश, काया, हिस्सा, भाग, खण्ड, उपांश, घटक, टुकड़ा, तन, कलेवर, शरीर, देह।
‘अग्नि – आग, अनल, पावक, जातवेद, कृशानु, वैश्वानर, हुताशन, रोहिताश्व, वायुसखा, हव्यवाहन, दहन, अरुण।
अंचल – पल्लू, छोर, क्षेत्र, अंत, प्रदेश, आँचल, किनारा।
अचानक – अकस्मात, अनायास, एकाएक, दैवयोगा।
अटल – अडिग, स्थिर, पक्का, दृढ़, अचल, निश्चल, गिरि, शैल, नग।
अठखेली – कौतुक, क्रीड़ा, खेल–कूद, चुलबुलापन, उछल–कूद, हँसी–मज़ाक।
अमृत – अमिय, पीयूष, अमी, मधु, सोम, सुधा, सुरभोग, जीवनोदक, शुभा।
अयोग्य – अनर्ह, योग्यताहीन, नालायक, नाकाबिल।
अभिप्राय – प्रयोजन, आशय, तात्पर्य, मतलब, अर्थ, मंतव्य, मंशा, उद्देश्य, विचार
अर्जुन – भारत, गुडाकेश, पार्थ, सहस्रार्जुन, धनंजय।
अवज्ञा – अनादर, तिरस्कार, अवमानना, अपमान, अवहेलना, तौहीन।
अश्व – घोड़ा, तुरंग, हय, बाजि, सैन्धव, घोटक, बछेड़ा, रविसुत, अर्दा
असुर – रजनीचर, निशाचर, दानव, दैत्य, राक्षस, दनुज, यातुधान, तमीचर।
अवरोध – रुकावट, विघ्न, व्यवधान, अरुंगा।
अतिथि – मेहमान, पहुना, अभ्यागत, रिश्तेदार, नातेदार, आगन्तुका.
अतीत – पूर्वकाल, भूतकाल, विगत, गत।
अनाज – अन्न, शस्य, धान्य, गल्ला, खाद्यान्न।
अनाड़ी – अनजान, अनभिज्ञ, अज्ञानी, अकुशल, अदक्ष, अपटु, मूर्ख, अल्पज्ञ, नौसिखिया।
अनार – सुनील, वल्कफल, मणिबीज, बीदाना, दाडिम, रामबीज, शुकप्रिय।
अनिष्ट – बुरा, अपकार, अहित, नुकसान, हानि, अमंगल।
अनुकम्पा – दया, कृपा, करम, मेहरबानी।
अनुपम – सुन्दर, अतुल, अपूर्व, अद्वितीय, अनोखा, अप्रतिम, अद्भुत, अनूठा, विलक्षण, विचित्र।
अनुसरण – नकल, अनुकृत, अनुगमन।
अपमान – अनादर, उपेक्षा, निरादर, बेइज्जती, अवज्ञा, तिरस्कार, अवमाना।
अप्सरा – परी, देवकन्या, अरुणप्रिया, सुखवनिता, देवांगना, दिव्यांगना, देवबाला।
अभय – निडर, साहसी, निर्भीक, निर्भय, निश्चिन्त।
अभिजात – कुलीन, सुजात, खानदानी, उच्च, पूज्य, श्रेष्ठ।
अभिज्ञ – जानकार, विज्ञ, परिचित, ज्ञाता।
अभिमान – गौरव, गर्व, नाज, घमंड, दर्प, स्वाभिमान, अस्मिता, अहं, अहंकार, अहमिका, मान, मिथ्याभिमान, दंभ।
अभियोग – दोषारोपण, कसूर, अपराध, गलती, आक्षेप, आरोप, दोषारोपण, इल्ज़ामा।
अभिलाषा – कामना, मनोरथ, इच्छा, आकांक्षा, ईहा, ईप्सा, चाह, लालसा, मनोकामना।
अभ्यास – रियाज़, पुनरावृत्ति, दोहराना, मश्क।
अमर – मृत्युंजय, अविनाशी, अनश्वर, अक्षर, अक्षय।
अमीर – धनी, धनाढ्य, सम्पन्न, धनवान, पैसेवाला।
अनन्त – असंख्य, अपरिमित, अगणित, बेशुमार।
अनभिज्ञ – अज्ञानी, मूर्ख, मूढ़, अबोध, नासमझ, अल्पज्ञ, अदक्ष, अपटु, अकुशल, अनजान।
अगुआ – अग्रणी, सरदार, मुखिया, प्रधान, नायक।
अधर – रदच्छद, रदपुट, होंठ, ओष्ठ, लब।
अध्यापक – आचार्य, शिक्षक, गुरु, व्याख्याता, अवबोधक, अनुदेशक।
अंधकार – तम, तिमिर, ध्वान्त, अँधियारा, तिमिस्रा।
अनुरूप – अनुकूल, संगत, अनुसार, मुआफिक
अन्तःपुर – रनिवास, भोगपुर, जनानखाना।
अदृश्य – अन्तर्ध्यान, तिरोहित, ओझल, लुप्त, गायब।
अकाल – भुखमरी, कुकाल, दुष्काल, दुर्भिक्षा।
अशुद्ध – दूषित, गंदा, अपवित्र, अशुचि, नापाका।
असभ्य – अभद्र, अविनीत, अशिष्ट, गँवार, उजड्ड।
अधम – नीच, निकृष्ट, पतित।
अपकीर्ति – अपयश, बदनामी, निंदा, अकीर्ति।
अध्ययन – अनुशीलन, पारायण, पठनपाठन, पढ़ना।
अनुरोध – अभ्यर्थना, प्रार्थना, विनती, याचना, निवेदन।
अखण्ड – पूर्ण, समस्त, सम्पूर्ण, अविभक्त, समूचा, पूरा।
अपराधी – मुजरिम, दोषी, कसूरवार, सदोष।
अधीन – आश्रित, मातहत, निर्भर, पराश्रित, पराधीन।
अनुचित – नाजायज़, गैरवाजिब, बेजा, अनुपयुक्त, अयुत।
अन्वेषण – अनुसन्धान, गवेषण, खोज, जाँच, शोध।
अमूल्य – अनमोल, बहुमूल्य, मूल्यवान, बेशकीमती।
अज – ब्रह्मा, ईश्वर, दशरथ के जनक, बकरा।
अंधा – नेत्रहीन, सूरदास, अंध, चक्षुविहीन, प्रज्ञाचक्षु।
अनुवाद – भाषांतर, उल्था, तर्जुमा।
अरण्य – जंगल, कान्तार, विपिन, वन, कानन।
अवनति – अपकर्ष, गिराव, गिरावट, घटाव, ह्रास।
अश्लील – अभद्र, अधिभ्रष्ट, निर्लज्ज बेशर्म, असभ्य।
आकुल – व्यग्र, बेचैन, क्षुब्ध, बेकल।
आकृति – आकार, चेहरा–मोहरा, नैन–नक्श, डील–डौला
आदर्श – प्रतिरूप, प्रतिमान, मानक, नमूना।
आलसी – निठल्ला, बैठा–ठाला, ठलुआ, सस्त, निकम्मा, काहिला
आयुष्मान् – चिरायु, दीर्घायु, शतायु, दीर्घजीवी, चिरंजीव।
आज्ञा – आदेश, निदेश, फ़रमान, हुक्म, अनुमति, मंजूरी, स्वीकृति, सहमति, इजाज़ता
आश्रय – सहारा, आधार, भरोसा, अवलम्ब, प्रश्रय।
आख्यान – कहानी, वृत्तांत, कथा, किस्सा, इतिवृत्ता
आधुनिक – अर्वाचीन, नूतन, नव्य, वर्तमानकालीन, नवीन, अधुनातन।
आवेग – तेज़ी, स्फूर्ति, जोश, त्वरा, तीव्र, फुरती, चपलता।
आलोचना – समीक्षा, टीका, टिप्पणी, नुक्ताचीनी, समालोचना।
आरम्भ – श्रीगणेश, शुरुआत, सूत्रपात, प्रारम्भ, उपक्रम।
आवश्यक – अनिवार्य, अपरिहार्य, ज़रूरी, बाध्यकारी।
आदि – पहला, प्रथम, आरम्भिक, आदिमा
आपत्ति – विपदा, मुसीबत, आपदा, विपत्ति।
आकाश – नभ, अम्बर, अन्तरिक्ष, आसमान, व्योम, गगन, दिव, द्यौ, पुष्कर, शून्य।
आचरण – चाल–चलन, चरित्र, व्यवहार, आदत, बर्ताव, सदाचार, शिष्टाचार।
आडम्बर – पाखण्ड, ढकोसला, ढोंग, प्रपंच, दिखावा।
आँख – अक्षि, नैन, नेत्र, लोचन, दृग, चक्षु, ईक्षण, विलोचन, प्रेक्षण, दृष्टि।
आँगन – प्रांगण, बगड़, बाखर, अजिर, अँगना, सहन।
आम – रसाल, आम्र, फलराज, पिकबन्धु, सहकार, अमृतफल, मधुरासव, अंब।
आनन्द – आमोद, प्रमोद, विनोद, उल्लास, प्रसन्नता, सुख, हर्ष, आहलाद।
आशा – उम्मीद, तवक्को, आस।
आशीर्वाद – आशीष, दुआ, शुभाशीष, शुभकामना, आशीर्वचन, मंगलकामना।
आश्चर्य – अचम्भा, अचरज, विस्मय, हैरानी, ताज्जुब।
आहार – भोजन, खुराक, खाना, भक्ष्य, भोज्य।
आस्था – विश्वास, श्रद्धा, मान, कदर, महत्त्व, आदर।
आँसू – अश्रु, नेत्रनीर, नयनजल, नेत्रवारि, नयननीर।
(इ)
इन्दिरा – लक्ष्मी, रमा, श्री, कमला।
इच्छा – लालसा, कामना, चाह, मनोरथ, ईहा, ईप्सा, आकांक्षा, अभिलाषा, मनोकामना।
इन्द्र – महेन्द्र, सुरेन्द्र, सुरेश, पुरन्दर, देवराज, मधवा, पाकरिपु, पाकशासन, पुरहूत।
इन्द्राणी – शची, इन्द्रवधू, महेन्द्री, इन्द्रा, पौलोमी, शतावरी, पुलोमजा।
इनकार – अस्वीकृति, निषेध, मनाही, प्रत्याख्यान।
इच्छुक – अभिलाषी, लालायित, उत्कण्ठित, आतुर
इशारा – संकेत, इंगित, निर्देश।
इन्द्रधनुष – सुरचाप, इन्द्रधनु, शक्रचाप, सप्तवर्णधनु।
इन्द्रपुरी – देवलोक, अमरावती, इन्द्रलोक, देवेन्द्रपुरी, सुरपुर।
(ई)
ईख – गन्ना, ऊख, रसडंड, रसाल, पेंड़ी, रसद।
ईमानदार – सच्चा, निष्कपट, सत्यनिष्ठ, सत्यपरायण।
ईश्वर – परमात्मा, परमेश्वर, ईश, ओम, ब्रह्म, अलख, अनादि, अज, अगोचर, जगदीश।
ईर्ष्या – मत्सर, डाह, जलन, कुढ़न, द्वेष, स्पर्धा।
(उ)
उचित – ठीक, सम्यक्, सही, उपयुक्त, वाजिब।
उत्कर्ष – उन्नति, उत्थान, अभ्युदय, उन्मेष।
उत्पात – दंगा, उपद्रव, फ़साद, हुड़दंग, गड़बड़, उधम।
उत्सव – समारोह, आयोजन, पर्व, त्योहार, मंगलकार्य, जलसा।
उत्साह – जोश, उमंग, हौसला, उत्तेजना।
उत्सुक – आतुर, उत्कण्ठित, व्यग्र, उत्कर्ण, रुचि, रुझान।
उदार – उदात्त, सहृदय, महामना, महाशय, दरियादिल।
उदाहरण – मिसाल, नमूना, दृष्टान्त, निदर्शन, उद्धरण।
उद्देश्य – प्रयोजन, ध्येय, लक्ष्य, निमित्त, मकसद, हेतु।
उद्यत – तैयार, प्रस्तुत, तत्पर।
उन्मूलन – निरसन, अन्त, उत्सादन।
उपकार – (1) परोपकार, अच्छाई, भलाई, नेकी। (ii) हित, उद्धार, कल्याण
उपस्थित – विद्यमान, हाज़िर, प्रस्तुत।
उत्कृष्ट – उत्तम, श्रेष्ठ, प्रकृष्ट, प्रवर।
उपमा – तुलना, मिलान, सादृश्य, समानता।
उपासना – पूजा, आराधना, अर्चना, सेवा।।
उद्यम – परिश्रम, पुरुषार्थ, श्रम, मेहनत।
उजाला – प्रकाश, आलोक, प्रभा, ज्योति।
उपाय – युक्ति, ढंग, तरकीब, तरीका, यत्न, जुगत।
उपयुक्त – उचित, ठीक, वाज़िब, मुनासिब, वांछनीय।
उल्टा – प्रतिकूल, विलोम, विपरीत, विरुद्धा.
उजाड़ – निर्जन, वीरान, सुनसान, बियावान।
उग्र – तेज़, प्रबल, प्रचण्ड
उन्नति – प्रगति, तरक्की, विकास, उत्थान, बढ़ोतरी, उठान, उत्क्रमण, चढ़ाव, आरोह
उपवास – निराहार, व्रत, अनशन, फाँका, लंघन।
उपेक्षा – उदासीनता, विरक्ति, अनासक्ति, विराग, उदासीन, उल्लंघन।
उपहार – भेंट, सौगात, तोहफ़ा।
उपालम्भ – उलाहना, शिकवा, शिकायत, गिला।
उल्लू – उलूक, लक्ष्मीवाहन, कौशिक
(ऊ)
ऊँचा – उच्च, शीर्षस्थ, उन्नत, उत्तुंग।
ऊर्जा – ओज, स्फूर्ति, शक्ति।
ऊसर – अनुर्वर, सस्यहीन, अनुपजाऊ, बंजर, रेत, रेह।
ऊष्मा – उष्णता, तपन, ताप, गर्मी।
ऊँट – लम्बोष्ठ, महाग्रीव, क्रमेलक, उष्ट्र।
ऊँघ – तंद्रा, ऊँचाई, झपकी, अर्द्धनिद्रा, अलसाई।
(ऋ)
ऋषि – मुनि, मनीषी, महात्मा, साधु, सन्त, संन्यासी, मन्त्रदृष्टा।
ऋद्धि – बढ़ती, बढ़ोतरी, वृद्धि, सम्पन्नता, समृद्धि।
(ए)
एकता – एका, सहमति, एकत्व, मेल–जोल, समानता, एकरूपता, एकसूत्रता, ऐक्य, अभिन्नता।
एहसान – आभार, कृतज्ञता, अनुग्रह।
एकांत – सुनसान, शून्य, सूना, निर्जन, विजन।
एकाएक – अकस्मात, अचानक, सहसा, एकदम।
(ऐ)
ऐश – विलास, ऐयाशी, सुख–चैन।
ऐश्वर्य – वैभव, प्रभुता, सम्पन्नता, समृद्धि, सम्पदा।
ऐच्छिक – स्वेच्छाकृत, वैकल्पिक, अख्तियारी।
ऐब – खोट, दोष, बुराई, अवगुण, कलंक, खामी, कमी, त्रुटि।
(ओ)
ओज – दम, ज़ोर, पराक्रम, बल, शक्ति, ताकत।
ओझल – अन्तर्ध्यान, तिरोहित, अदृश्य, लुप्त, गायब।
ओस – तुषार, हिमकण, हिमसीकर, हिमबिन्दु, तुहिनकण।
ओंठ – होंठ, अधर, ओष्ठ, दन्तच्छद, रदनच्छद, लब।
(औ)
और – (i) अन्य, दूसरा, इतर, भिन्न (ii) अधिक, ज़्यादा (ii) एवं, तथा।
औषधि – दवा, दवाई, भेषज, औषध
(क)
कपड़ा – चीर, वस्त्र, वसन, अम्बर, पट, पोशाक चैल, दुकूल।
कमल – सरोज, सरोरुह, जलज, पंकज, नीरज, वारिज, अम्बुज, अम्बोज, अब्ज, सतदल, अरविन्द, कुवलय, अम्भोरुह, राजीव, नलिन, पद्म, तामरस, पुण्डरीक, सरसिज, कंज।
कर्ण – अंगराज, सूर्यसुत, अर्कनन्दन, राधेय, सूतपुत्र, रविसुत, आदित्यनन्दन।
कली – मुकुल, जालक, ताम्रपल्लव, कलिका, कुडमल, कोरक, नवपल्लव, अँखुवा, कोंपल, गुंचा।
कल्पवृक्ष – कल्पतरु, कल्पशाल, कल्पद्रुम, कल्पपादप, कल्पविटप।
कन्या – कुमारिका, बालिका, किशोरी, बाला।
कठिन – दुर्बोध, जटिल, दुरूह।
कंगाल – निर्धन, गरीब, अकिंचन, दरिद्र।
कमज़ोर – दुर्बल, निर्बल, अशक्त, क्षीण।
कुटिल – छली, कपटी, धोखेबाज़, चालबाज़।
काक – काग, काण, वायस, पिशुन, करठ, कौआ।
कुत्ता – कुक्कर, श्वान, शुनक, कूकुर।
कबूतर – कपोत, रक्तलोचन, हारीत, पारावत।
कृत्रिम – अवास्तविक, नकली, झूठा, दिखावटी, बनावटी।
कल्याण – मंगल, योगक्षेम, शुभ, हित, भलाई, उपकार।
कूल – किनारा, तट, तीर।
कृषक – किसान, काश्तकार, हलधर, जोतकार, खेतिहर।
क्लिष्ट – दुरूह, संकुल, कठिन, दुःसाध्य।
कौशल – कला, हुनर, फ़न, योग्यता, कुशलता।
कर्म – कार्य, कृत्य, क्रिया, काम, काज।
कंदरा – गुहा, गुफा, खोह, दरी।
कथन – विचार, वक्तव्य, मत, बयाना
कटाक्षे – आक्षेप, व्यंग्य, ताना, छींटाकशी।
कुरूप – भद्दा, बेडौल, बदसूरत, असुन्दर।
कलंक – दोष, दाग, धब्बा, लांछन, कलुषता।
कोमल – मृदुल, सुकुमार, नाजुक, नरम, सौम्य, मुलायम।
किरण – रश्मि, केतु, अंशु, कर, मरीचि, मखूख, प्रभा, अर्चि, पुंज।
कसक – पीड़ा, दर्द, टीस, दुःख।
कोयल – कोकिल, श्यामा, पिक, मदनशलाका।
कायरता – भीरुता, अपौरुष, पामरता, साहसहीनता।
कंटक – काँटा, शूल, खार।
कामदेव – मनोज, कन्दर्प, आत्मभू, अनंग, अतनु, काम, मकरकेतु, पुष्पचाप, स्मर, मन्मथ
कार्तिकेय – कुमार, पार्वतीनन्दन, शरभव, स्कन्ध, षडानन, गुह, मयूरवाहन, शिवसुत, षड्वदन।
कटु – कठोर, कड़वा, तीखा, तेज़, तीक्ष्ण, चरपरा, कर्कश, रूखा, रुक्ष, परुष, कड़ा, सत्ता
किला – दुर्ग, कोट, गढ़, शिविर
किंचित – (i) कतिपय, कुछ एक, कई एक (ii) कुछ, अल्प, ज़रा।
किताब – पुस्तक, ग्रंथ, पोथी।
किनारा – (i) तट, मुहाना, तीर, पुलिन, कूल। (ii) अंचल, छोर, सिरा, पर्यन्त।
कीमत – मूल्य, दाम, लागता
कुबेर – राजराज, किन्नरेश, धनाधिप, धनेश, यक्षराज, धनद।
कुमुदनी – नलिनी, कैरव, कुमुद, इन्दुकमल, चन्द्रप्रिया।
कृष्ण – नन्दनन्दन, मधुसूदन, जनार्दन, माधव, मुरारि, कन्हैया, द्वारकाधीश, गोपाल, केशव, नन्दकुमार, नन्दकिशोर, बिहारी।
कृतज्ञ – आभारी, उपकृत, अनुगृहीत, ऋणी, कृतार्थ, एहसानमंद।
केला – रम्भा, कदली, वारण, अशुमत्फला, भानुफल, काष्ठीला।
क्रोध – गुस्सा, अमर्ष, रोष, कोप, आक्रोश, ताव।
करुणा – दया, तरस, रहम, आत्मीयभाव।
(ख)
खग – पक्षी, चिड़िया, पखेरू, द्विज, पंछी, विहंग, शकुनि।
खंजन – नीलकण्ठ, सारंग, कलकण्ठ।
खंड – अंश, भाग, हिस्सा, टुकड़ा।
खल – शठ, दुष्ट, धूर्त, दुर्जन, कुटिल, नालायक, अधम।
खूबसूरत – सुन्दर, सुरम्य, मनोज्ञ, रूपवान, सौरम्य, रमणीक।
खून – रुधिर, लहू, रक्त, शोणित।
खम्भा – खम्भ, स्तूप, स्तम्भ।
खतरा – अंदेशा, भय, डर, आशंका।
खत – चिट्ठी, पत्र, पत्री, पाती।
खामोश – नीरव, शान्त, चुप, मौन।
खीझ – झुंझलाहट, झल्लाहट, खीझना, चिढ़ना।
(ग)
गरुड़ – खगेश्वर, सुपर्ण, वैतनेय, नागान्तका
गौरव – मान, सम्मान, महत्त्व, बड़प्पन।
गम्भीर – गहरा, अथाह, अतला
गाँव – ग्राम, मौजा, पुरवा, बस्ती, देहात।
गृह – घर, सदन, भवन, धाम, निकेतन, आलय, मकान, गेह, शाला।
गुफा – गुहा, कन्दरा, विवर, गह्वर।
गीदड़ – शृगाल, सियार, जम्बुका
गुप्त – निभृत, अप्रकट, गूढ, अज्ञात, परोक्ष।
गति – हाल, दशा, अवस्था, स्थिति, चाल, रफ़्तार।
गंगा – भागीरथी, देवसरिता, मंदाकिनी, विष्णुपदी, त्रिपथगा, देवापगा, जाहनवी, देवनदी, ध्रुवनन्दा, सुरसरि, पापछालिका।
गणेश – लम्बोदर, मूषकवाहन, भवानीनन्दन, विनायक, गजानन, मोदकप्रिय, जगवन्द्य, हेरम्ब, एकदन्त, गजवदन, विघ्ननाशका
गज – हस्ती, सिंधुर, मातंग, कुम्भी, नाग, हाथी, वितुण्ड, कुंजर, करी, द्विपा
गधा – गदहा, खर, धूसर, गर्दभ, चक्रीवाहन, रासभ, लम्बकर्ण, बैशाखनन्दन, बेसर।
गाय – धेनु, सुरभि, माता, कल्याणी, पयस्विनी, गौ।
गुलाब – सुमना, शतपत्र, स्थलकमल, पाटल, वृन्तपुष्प
गुनाह – गलती, अधर्म, पाप, अपराध, खता, त्रुटि, कुकर्म।
(घ)
घड़ा – कलश, घट, कुम्भ, गागर, निप, गगरी, कुट।
घी – घृत, हवि, अमृतसार।
घाटा – हानि, नुकसान, टोटा।
घन – जलधर, वारिद, अंबुधर, बादल, मेघ, अम्बुद, पयोद, नीरद।।
घृणा – जुगुप्सा, अरुचि, घिन, बीभत्स।
घुमक्कड़ – रमता, सैलानी, पर्यटक, घुमन्तू, विचरण शील, यायावर।
घिनौना – घृण्य, घृणास्पद, बीभत्स, गंदा, घृणित।
Ghumantu/घुमंतू – बंजारा, घुमक्कड़
(च)
चंदन – मंगल्य, मलयज, श्रीखण्ड।
चाँदी – रजत, रूपा, रौप्य, रूपक
चरित्र – आचार, सदाचार, शील, आचरण।
चिन्ता – फ़िक्र, सोच, ऊहापोह।
चौकीदार – आरक्षी, पहरेदार, प्रहरी, गारद, गश्तकार।
चोटी – शृंग, तुंग, शिखर, परकोटि।
चक्र – पहिया, चाक, चक्का।
चिकित्सा – उपचार, इलाज, दवादारू।
चतुर – कुशल, नागर, प्रवीण, दक्ष, निपुण, योग्य, होशियार, चालाक, सयाना, विज्ञा
चन्द्र – सोम, राकेश, रजनीश, राकापति, चाँद, निशाकर, हिमांशु, मयंक, सुधांशु, मृगांक, चन्द्रमा, कला–निधि, ओषधीश।
चाँदनी – चन्द्रिका, ज्योत्स्ना, कौमुदी, कुमुदकला, जुन्हाई, अमृतवर्षिणी, चन्द्रातप, चन्द्रमरीचि।
चपला – विद्युत्, बिजली, चंचला, दामिनी, तड़िता
चश्मा – ऐनक, उपनेत्र, सहनेत्र, उपनयन।
चाटुकारी – खुशामद, चापलूसी, मिथ्या प्रशंसा, चिरौरी, चमचागीरी।
चिह्न – प्रतीक, निशान, लक्षण, पहचान, संकेत।
चोर – रजनीचर, दस्यु, साहसिक, कभिज, खनक, मोषक, तस्कर।
(छ)
চল্প। – विद्यार्थी, शिक्षार्थी, शिष्य।
छाया – साया, प्रतिबिम्ब, परछाई, छाँव।
छल – प्रपंच, झाँसा, फ़रेब, कपट।
छटा – आभा, कांति, चमक, सौन्दर्य, सुन्दरता।
छानबीन – जाँच–पड़ताल, पूछताछ, जाँच, तहकीकात।
छेद – छिद्र, सूराख, रंध्रा
छली – ठग, छद्मी, कपटी, कैतव, धूर्त, मायावी।
छाती – उर, वक्ष, वक्षःस्थल, हृदय, मन, सीना।
(ज)
जननी – माँ, माता, माई. मइया. अम्बा, अम्मा।
जीव – प्राणी, देहधारी, जीवधारी।
जिज्ञासा – उत्सुकता, उत्कंठा, कुतूहल।
जंग – युद्ध, रण, समर, लड़ाई, संग्राम।
जग – दुनिया, संसार, विश्व, भुवन, मृत्युलोक।
जल – सलिल, उदक, तोय, अम्बु, पानी, नीर, वारि, पय, अमृत, जीवक, रस, अप।
जहाज़ – जलयान, वायुयान, विमान, पोत, जलवाहन।
जानकी – जनकसुता, वैदेही, मैथिली, सीता, रामप्रिया, जनकदुलारी, जनकनन्दिनी।
जुटाना – बटोरना, संग्रह करना, जुगाड़ करना, एकत्र करना, जमा करना, संचय करना।
जोश – आवेश, साहस, उत्साह, उमंग, हौसला।
जीभ – जिह्वा, रसना, रसज्ञा, चंचला।
जमुना – सूर्यतनया, सूर्यसुता, कालिंदी, अर्कजा, कृष्णा।
ज्योति – प्रभा, प्रकाश, लौ, अग्निशिखा, आलोक
(झ)
झंडा – ध्वजा, केतु, पताका, निसान।
झरना – सोता, स्रोत, उत्स, निर्झर, जलप्रपात, प्रस्रवण, प्रपात।
झुकाव – रुझान, प्रवृत्ति, प्रवणता, उन्मुखता।
झकोर – हवा का झोंका, झटका, झोंक, बयार।
झुठ – मिथ्या, मृषा, अनृत, असत, असत्य।
(ट)
टीका – भाष्य, वृत्ति, विवृति, व्याख्या, भाषांतरण।
टक्कर – भिडंत, संघट्ट, समाघात, ठोकर।
टोल – समूह, मण्डली, जत्था, झुण्ड, चटसाल, पाठशाला।
टीस – साल, कसक, शूल, शूक्त, चसक, दर्द, पीड़ा।
टेढा – (i) बंक, कुटिल, तिरछा, वक्रा (ii) कठिन, पेचीदा, मुश्किल, दुर्गम।
टंच – सूम, कृपण, कंजूस, निष्ठुर।
(ठ)
ठंड – शीत, ठिठुरन, सर्दी, जाड़ा, ठंडक
ठेस – आघात, चोट, ठोकर, धक्का।
ठौर – ठिकाना, स्थल, जगह।
ठग – जालसाज, प्रवंचक, वंचक, प्रतारक।
ठाठ –आडम्बर, सजावट, वैभवा
ठिठोली – मज़ाक, उपहास, फ़बती, व्यंग्य, व्यंग्योक्ति।
ठगी – प्रतारणा, वंचना, मायाजाल, फ़रेब, जालसाज़।
(ड)
डगर – बाट, मार्ग; राह, रास्ता, पथ, पंथा
डर – त्रास, भीति, दहशत, आतंक, भय, खौफ़
डेरा – पड़ाव, खेमा, शिविर
डोर – डोरी, रज्जु, तांत, रस्सी, पगहा, तन्तु।
डकैत – डाकू, लुटेरा, बटमार।
डायरी – दैनिकी, दैनन्दिनी, रोज़नामचा।
(ढ)
ढीठ – धृष्ट, प्रगल्भ, अविनीत, गुस्ताख।
ढोंग – स्वाँग, पाखण्ड, कपट, छल।
ढंग – पद्धति, विधि, तरीका, रीति, प्रणाली, करीना।
ढाढ़स – आश्वासन, तसल्ली, दिलासा, धीरज, सांत्वना।
ढोंगी – पाखण्डी, बगुला भगत, रंगासियार, कपटी, छली।
(त)
तन – शरीर, काया, जिस्म, देह, वपु।
तपस्या – साधना, तप, योग, अनुष्ठान।
तरंग – हिलोर, लहर, ऊर्मि, मौज, वीचि।
तरु – वृक्ष, पेड़, विटप, पादप, द्रुम, दरख्त।
तलवार – असि, खडग, सिरोही, चन्द्रहास, कृपाण, शमशीर, करवाल, करौली, तेग।
तम – अंधकार, ध्वान्त, तिमिर, अँधेरा, तमसा।
तरुणी – युवती, मनोज्ञा, सुंदरी, यौवनवक्षी, प्रमदा, रमणी।
तारा – नखत, उड्डगण, नक्षत्र, तारका
तम्बू – डेरा, खेमा, शिविर।
तस्वीर – चित्र, फोटो, प्रतिबिम्ब, प्रतिकृति, आकृति।
तालाब – जलाशय, सरोवर, ताल, सर, तड़ाग, जलधर, सरसी, पद्माकर, पुष्कर
तारीफ़ – बड़ाई, प्रशंसा, सराहना, प्रशस्ति, गुणगाना
तीर – नाराच, बाण, शिलीमुख, शर, सायक।
तोता – सुवा, शुक, दाडिमप्रिय, कीर, सुग्गा, रक्ततुंड।
तत्पर – तैयार, कटिबद्ध, उद्यत, सन्नद्ध।
तन्मय – मग्न, तल्लीन, लीन, ध्यानमग्न।
तालमेल – समन्वय, संगति, सामंजस्य।
तरकारी – शाक, सब्जी, भाजी।
तूफान – झंझावात, अंधड़, आँधी, प्रभंजना
त्रुटि – अशुद्धि, भूल–चूक, गलती।
(थ)
थकान – क्लान्ति, श्रान्ति, थकावट, थकन।
थोड़ा – कम, ज़रा, अल्प, स्वल्प, न्यून।
थाह – अन्त, छोर, सिरा, सीना।
थोथा – पोला, खाली, खोखला, रिक्त, छूछा।
थल – धरती, ज़मीन, पृथ्वी, भूतल, भूमि।
(द)
दर्पण – शीशा, आइना, मुकुर, आरसी।
दास – चाकर, नौकर, सेवक, परिचारक, परिचर, किंकर, गुलाम, अनुचर।
दुःख – क्लेश, खेद, पीड़ा, यातना, विषाद, यन्त्रणा, क्षोभ, कष्ट
दूध – पय, दुग्ध, स्तन्य, क्षीर, अमृत।
देवता – सुर, आदित्य, अमर, देव, वसु।
दोस्त – सखा, मित्र, स्नेही, अन्तरंग, हितैषी, सहचर।
द्रोपदी – श्यामा, पाँचाली, कृष्णा, सैरन्ध्री, याज्ञसेनी, द्रुपदसुता, नित्ययौवना।
दासी – बाँदी, सेविका, किंकरी, परिचारिका।
दीपक – आदित्य, दीप, प्रदीप, दीया।
दुर्गा – सिंहवाहिनी, कालिका, अजा, भवानी, चण्डिका, कल्याणी, सुभद्रा, चामुण्डा।
दिव्य – अलौकिक, स्वर्गिक, लोकातीत, लोकोत्तर।
दीपावली – दीवाली, दीपमाला, दीपोत्सव, दीपमालिका।
दामिनी – बिजली, चपला, तड़ित, पीत–प्रभा, चंचला, विजय, विद्युत्, सौदामिनी।
देह – तन, रपु, शरीर, घट, काया, गात, कलेवर, तनु, मूर्ति।
दुर्लभ – अलम्भ, नायाब, विरल, दुष्प्राप्य।
दर्शन – भेंट, साक्षात्कार, मुलाकाता
दंगा – उपद्रव, फ़साद, उत्पात, उधम।।
द्वेष – बैर, शत्रुता, दुश्मनी, खार, ईर्ष्या, जलन, डाह, मात्सर्य।
दरवाज़ा – किवाड़, पल्ला, कपाट, द्वार।
दाई – धाया, धात्री, अम्मा, सेविका।
देवालय – देवमन्दिर, देवस्थान, मन्दिर।
दृढ़ – पुष्ट, मज़बूत, पक्का, तगड़ा।
दुर्गम – अगम्य, विकट, कठिन, दुस्तर।
द्विज – ब्राह्मण, ब्रह्मज्ञानी, वेदविद्, पण्डित, विप्रा
दिनांक – तारीख, तिथि, मिति।
(ध)
धनुष – चाप, धनु, शरासन, पिनाक, कोदण्ड, कमान, विशिखासन।
धीरज – धीरता, धीरत्व, धैर्य, धारण, धृति।
धरती – धरा, धरणी, पृथ्वी, क्षिति, वसुधा, अवनी, मेदिनी।
धवल – श्वेत, सफ़ेद, उजला।
धुंध – कुहरा, नीहार, कुहासा।
ध्वस्त – नष्ट, भ्रष्ट, भग्न, खण्डित।
धूल – रज, खेहट, मिट्टी, गर्द, धूलिा
धंधा – दृढ़, अटल, स्थिर, निश्चित।
धनुर्धर – रोज़गार, व्यापार, कारोबार, व्यवसाय
धाक – धन्वी, तीरंदाज़, धनुषधारी, निषंगी।
धक्का – रोब, दबदबा, धौंस। टक्कर, रेला, झोंका।
(न)
नदी – सरिता, दरिया, अपगा, तटिनी, सलिला, स्रोतस्विनी, कल्लोलिनी, प्रवाहिणी।
नमक – लवण, लोन, रामरस, नोन।
नया – ‘नवीन, नव्य, नूतन, आधुनिक, अभिनव, अर्वाचीन, नव, ताज़ा।
नाश – (i) समाप्ति, अवसान (i) विनाश, संहार, ध्वंस, नष्ट–भ्रष्ट।
नित्य – हमेशा, रोज़, सनातन, सर्वदा, सदा, सदैव, चिरंतन, शाश्वत।
नियम – विधि, तरीका, विधान, ढंग, कानून, रीति।
नीलकमल – इंदीवर, नीलाम्बुज, नीलसरोज, उत्पल, असितकमल, कुवलय, सौगन्धित।
नौका – तरिणी, डोंगी, नाव, जलयान, नैया, तरी।
नारी – स्त्री, महिला, रमणी, वनिता, वामा, अबला, औरत।
निन्दा – अपयश, बदनामी, बुराई, बदगोई।
नैसर्गिक – प्राकृतिक, स्वाभाविक, वास्तविक
नरेश – नरेन्द्र, राजा, नरपति, भूपति, भूपाल
निष्पक्ष – उदासीन, अलग, निरपेक्ष, तटस्थ।
नियति – भाग्य, प्रारब्ध, विधि, भावी, दैव्य, होनी।
नक्षत्र – तारा, सितारा, खद्योत, तारक
नाग – सर्प, विषधर, भुजंग, व्याल, फणी, फणधर, उरग।
नग – भूधर, पहाड़, पर्वत, शैल, गिरि।
नरक – यमपुर, यमलोक, जहन्नुम, दौजख।
निधि – कोष, खज़ाना, भण्डार।
नग्न – नंगा, दिगम्बर, निर्वस्त्र, अनावृत।
नीरस – रसहीन, फीका, सूखा, स्वादहीन।
नीरव – मौन, चुप, शान्त, खामोश, निःशब्द।
निरर्थक – बेमानी, बेकार, अर्थहीन, व्यर्थी
निष्ठा – श्रद्धा, आस्था, विश्वास
निर्णय – निष्कर्ष, फ़ैसला, परिणाम।
निष्ठुर – निर्दय, निर्मम, बेदर्द, बेरहमा
(प)
पत्थर – पाहन, प्रस्तर, संग, अश्म, पाषाण।
पति – स्वामी, कान्त, भर्तार, बल्लभ, भर्ता, ईश।
पत्नी – दुलहिन, अर्धांगिनी, गृहिणी, त्रिया, दारा, जोरू, गृहलक्ष्मी, सहधर्मिणी, सहचरी, जाया।
पथिक – राही, बटाऊ, पंथी, मुसाफ़िर, बटोही।
पण्डित – विद्वान्, सुधी, ज्ञानी, धीर, कोविद, प्राज्ञा
परशुराम – भृगुसुत, जामदग्न्य, भार्गव, परशुधर, भृगुनन्दन, रेणुकातनय।
पर्वत – पहाड़, अचल, शैल, नग, भूधर, मेरू, महीधर, गिरि।
पवन – समीर, अनिल, मारुत, वात, पवमान, वायु, बयार।
पवित्र – पुनीत, पावन, शुद्ध, शुचि, साफ़, स्वच्छ
पार्वती – भवानी, अम्बिका, गौरी, अभया, गिरिजा, उमा, सती, शिवप्रिया।
पिता – जनक, बाप, तात, गुरु, फ़ादर, वालिद।
पुत्र – तनय, आत्मज, सुत, लड़का, बेटा, औरस, पूता
परिणय – शादी, विवाह, पाणिग्रहण।
पूज्य – आराध्य, अर्चनीय, उपास्य, वंद्य, वंदनीय, पूजनीय।
पुत्री – तनया, आत्मजा, सुता, लड़की, बेटी, दुहिता।
पृथ्वी – वसुधा, वसुन्धरा, मेदिनी, मही, भू, भूमि, इला, उर्वी, ज़मीन, क्षिति, धरती, धात्री।
प्रकाश – चमक, ज्योति, द्युति, दीप्ति, तेज़, आलोक।
प्रभात – सवेरा, सुबह, विहान, प्रातःकाल, भोर, ऊषाकाला
प्रथा – प्रचलन, चलन, रीति–रिवाज़, परम्परा, परिपाटी, रूढ़ि।
प्रलय – कयामत, विप्लव, कल्पान्त, गज़ब
प्रसिद्ध – मशहूर, नामी, ख्यात, नामवर, विख्यात, प्रख्यात, यशस्वी, मकबूला
प्रार्थना – विनय, विनती, निवेदन, अनुरोध, स्तुति, अभ्यर्थना, अर्चना, अनुनय।
प्रिया – प्रियतमा, प्रेयसी, सजनी, दिलरुबा, प्यारी।
प्रेम – प्रीति, स्नेह, दुलार, लाड़–प्यार, ममता, अनुराग, प्रणय।
पैर – पाँव, पाद, चरण, गोड़, पग, पद, पगु, टाँग
प्रभा – छवि, दीप्ति, द्युति, आभा।
पंथ – राह, डगर, पथ, मार्ग।
परतन्त्र – पराधीन, परवश, पराश्रित।
परिवार – कुल, घराना, कुटुम्ब, कुनबा।
परछाई – प्रतिच्छाया, साया, प्रतिबिम्ब, छाया, छवि।
पक्षी – विहग, निहंग, खग, अण्डज़, शकुन्त।
पल – क्षण, लम्हा, दमा
पश्चात्ताप – अनुताप, पछतावा, ग्लानि, संताप।
पाश – जालबंधन, फंदा, बंधन, जकड़न।
पराग – रंज, पुष्परज, कुसुमरज, पुष्पधूलि।
परिवर्तन – क्रांति, हेर–फेर, बदलाव, तब्दीली।
पड़ोसी – हमसाया, प्रतिवासी, प्रतिवेशी।
पुरातन – प्राचीन, पूर्वकालीन, पुराना।
पूजा – आराधना, अर्चना, उपासना।
प्रकांड – अतिशय, विपुल, अधिक, भारी।।
प्रज्ञा – बुद्धि, ज्ञान, मेधा, प्रतिभा।
प्रचण्ड – भीषण, उग्र, भयंकर।
प्रणय – स्नेह, अनुराग, प्रीति, अनुरक्ति।
प्रताप – प्रभाव, धाक, बोलबाला, इकबाल।
प्रतिज्ञा – प्रण, वचन, वायदा।
प्रेक्षागार – नाट्यशाला, रंगशाला, अभिनयशाला, प्रेक्षागृह।
प्रौढ़ – अधेड़, प्रबुद्ध।
पल्लव – किसलय, घर्ण, पत्ती, पात, कोपल, फुनगी।
पांडुलिपि – हस्तलिपी, मसौदा, पांडुलेख।
फणी – सर्प, साँप, फणधर, नाग, उरग।
फ़ौरन – तत्काल, तत्क्षण, तुरन्ता
फूल – सुमन, कुसुम, गुल, प्रसून, पुष्प, पुहुप, मंजरी, लतांता
फौज़ – सेना, लश्कर, पल्टन, वाहिनी, सैन्य।
फणीन्द्र – शेषनाग, वासुकी, उरगाधिपति, सर्पराज, नागराज।
(ब)
बलराम – हलधर, बलवीर, रेवतीरमण, बलभद्र, हली, श्यामबन्धु।
बाग – उपवन, वाटिका, उद्यान, निकुंज, फुलवाड़ी, बगीचा।
बन्दर – कपि, वानर, मर्कट, शाखामृग, कीश।
बट्टा – घाटा, हानि, टोटा, नुकसान।
बलिदान – कुर्बानी, आत्मोत्सर्ग, जीवनदान।
बंजर – ऊसर, परती, अनुपजाऊ, अनुर्वर।
बिछोह – वियोग, जुदाई, बिछोड़ा, विप्रलंभ।
बियावान – निर्जन, सूनसान, वीरान, उजाड़।
बंक – टेढ़ा, तिर्यक्, तिरछा, वक्र
बहुत – ज़्यादा, प्रचुर, प्रभूत, विपुल, इफ़रात, अधिक।
बुद्धि – प्रज्ञा, मेधा, ज़ेहन, समझ, अकल, गति।
ब्रह्मा – विधि, चतुरानन, कमलासन, विधाता, विरंचि, पितामह, अज, प्रजापति, स्वयंभू।
बादल – मेघ, पयोधर, नीरद, वारिद, अम्बुद, बलाहक, जलधर, घन, जीमूत।
बाल – केश, अलक, कुन्तल, रोम, शिरोरूह, चिकुर।
बिजली – तड़ित, दामिनी, विद्युत, सौदामिनी, चंचला, बीजुरी।
बसंत – ऋतुराज, ऋतुपति, मधुमास, कुसुमाकर, माधव।
बाण – तीर, तोमर, विशिख, शिलीमुख, नाराच, शर, इषु।
बारिश – पावस, वृष्टि, वर्षा, बरसात, मेह, बरखा।
बालिका – बाला, कन्या, बच्ची, लड़की, किशोरी।
(भ)
भगवान – परमेश्वर, परमात्मा, सर्वेश्वर, प्रभु, ईश्वर।
भगिनी – दीदी, जीजी, बहिन
भारती – सरस्वती, ब्राह्मी, विद्या देवी, शारदा, वीणावादिनी।
भाल – ललाट, मस्तक, माथा, कपाल।
भरोसा – सहारा, अवलम्ब, आश्रय, प्रश्रय।
भास्कर – चमकीला, आभामय, दीप्तिमान, प्रकाशवान।
भुगतान – भरपाई, अदायगी, बेबाकी।
भोला – सीधा, सरल, निष्कपट, निश्छल।
भूखा – बुभुक्षित, क्षुधातुर, क्षुधालु, क्षुधात।
भँवरा – भ्रमर, ग, मधुकर, मधुप, अलि, द्विरेफ।
भाई – अग्रज, अनुज, सहोदर, तात, भइया, बन्धु।
भाँड – विदूषक, मसखरा, जोकर।
भिक्षुक – भिखमंगा, भिखारी, याचक
(म)
मछली – मीन, मत्स्य, सफरी, झष, जलजीवन।
मज़ाक – दिल्लगी, उपहास, हँसी, मखौल, मसखरी, व्यंग्य, छींटाकशी।
मदिरा – शराब, हाला, आसव, मद्य, सुरा।
महादेव – शंकर, शंभू, शिव, पशुपति, चन्द्रशेखर, महेश्वर, भूतेश, आशुतोष, गिरीश
मक्खन – नवनीत, दधिसार, माखन, लौनी।
मंगनी – वाग्दान, फलदान, सगाई।
मनीषी – पण्डित, विचारक, ज्ञानी, विद्वान्।
मुँह – मुख, आनन, बदन।
मित्र – सखा, दोस्त, सहचर, सुहृद।
माँ – मातु, माता, मातृ, मातरि, मैया, महतारी, अम्ब, जननी, जनयित्री, जन्मदात्री।
मेघ – धराधर, घन, जलचर, वारिद, जीमूत, बादल, नीरद, पयोधर, जगलीवन, अम्बुद।
मैना – सारिका, चित्रलोचना, कलहप्रिया।
मंथन – बिलोना, विलोड़न, आलोड़न।
महक – परिमल, वास, सुवास, खुशबू, सुगंध, सौरभ।
मृत्यु – देहावसान, देहान्त, पंचतत्वलीन, निधन, मौत, इंतकाल।
माँझी – मल्लाह, नाविक, केवट।
माया – छल, छलना, प्रपंच, प्रतारणा।
माधुरी – माधुर्य, मिठास, मधुरता।
मानव – मनुज, मनुष्य, मानुष, नर, इंसान।
मोती – सीपिज, मौक्तिक, मुक्ता, शशिप्रभा।
मेंदकं – दादुर, दर्दुर, मण्डूक, वर्षाप्रिय, भेका
मोर – मयूर, नीलकण्ठ, शिखी, केकी, कलापी।
मोक्ष – मुक्ति, निर्वाण, कैवल्य, परमधाम, परमपद, अपवर्ग, सदगति।
मंदिर – देवालय, देवस्थान, देवगृह, ईशगृह।
मधु – शहद, बसंत–ऋत. भसमासव, मकरंद, पुष्पासव।
(य)
यम – सूर्यपुत्र, धर्मराज, श्राद्धदेव, कीनाश, शमन, दण्डधर, यमुनाभ्राता।
यत्न – प्रयत्न, चेष्टा, उद्यम
यामिनी – निशा, रजनी, राका, विभावरी।
योग्य – कुशल, सक्षम, कार्यक्षम, काबिला
यात्रा – भ्रमण, देशाटन, पर्यटन, सफ़र, घूमना।
याद – सुधि, स्मृति, ख्याल, स्मरण।
यंत्र – औज़ार, कल, मशीन।
यती – संन्यासी, वीतरागी, वैरागी।
युद्ध – रण, जंग, समर, लड़ाई, संग्राम।
याचिका – आवेदन–पत्र, अभ्यर्थना, प्रार्थना पत्र।
(र)
रक्त – खून, लहू, रुधिर, शोणित, लोहित, रोहित।
राधा – ब्रजरानी, हरिप्रिया, राधिका, वृषभानुजा।
रानी – राज्ञी, महिषी, राजपत्नी।
रावण – लंकेश, दशानन, दशकंठ, दशकंधर, लंकाधिपति, दैत्येन्द्र।
राज्यपाल – प्रान्तपति, सूबेदार, गवर्नर।
राय – मत, सलाह, सम्मति, मंत्रणा, परामर्श
रूढ़ि – प्रथा, दस्तूर, रस्म।
रक्षा – बचाव, संरक्षण, हिफ़ाजत, देखरेख।
रमा – कमला, इन्दिरा, लक्ष्मी, हरिप्रिया, समुद्रजा, चंचला, क्षीरोदतनया, पद्मा, श्री, भार्गवी।
रसना – जीभ, जबान, रसेन्द्रिय, जिह्वा, रसीका।
रविवार – इतवार, आदित्य–वार, सूर्यवार, रविवासर।
राजा – नरेन्द्र, नरेश, नृप, भूपाल, राव, भूप, महीप, नरपति, सम्राट।
रामचन्द्र – रघुवर, रघुनाथ, सीतापति, कौशल्यानन्दन, अमिताभ, राघव, रघुराज, अवधेश
रात – रैन, रजनी, निशा, विभावरी, यामिनी, तमी, तमस्विनी, शर्वरी, विभा, क्षपा, रात्रि
रिपु – बैरी, दुश्मन, विपक्षी, विरोधी, प्रतिवादी, अमित्र, शत्रु।
रोना – विलाप, रोदन, रुदन, क्रंदन, विलपन।
(ल)
लक्ष्मण – अनंत, लखन, सौमित्र।
लग्न – संलग्न, सम्बद्ध, संयुक्ता
लज्जा – शर्म, हया, लाज, व्रीडा।
लहर – लहरी, हिलोर, तरंग, उर्मि।
लालसा – तृष्णा, अभिलाषा, लिप्सा, लालच।
लगातार – सतत, निरन्तर, अजस्र, अनवरत।
लता – बेल, वल्लरी, लतिका, प्रतान, वीरुध।
लघु – थोड़ा, न्यून, हल्का, छोटा।
लक्ष्मी – श्री, कमला, रमा, पद्मा, हरिप्रिया, क्षीरोद, इन्दिरा, समुद्रजा।
(व)
वर्षा – बरसात, मेह, बारिश, पावस, चौमास।
वक्ष – सीना, छाती, वक्षस्थल, उदरस्थला
वन – अरण्य, अटवी, कानन, विपिन।
वस्त्र – परिधान, पट, चीर, वसन, कपड़ा, पोशाक, अम्बर।
विकार – विकृति, दोष, बुराई, बिगाड़!
विष – गरल, माहुर, हलाहल, कालकूट, ज़हर।
विरुद – प्रशस्ति, कीर्ति, यशोगान, गुणगान।
विविध – नाना, प्रकीर्ण, विभिन्न।
विभोर – मस्त, मुग्ध, मग्न, लीना
विप्र – भूदेव, ब्राह्मण, महीसुर, पुरोहित, पण्डित।
विभा – प्रभा, आभा, कांति, शोभा।
विशारद – पण्डित, ज्ञानी, विशेषज्ञ, सुधी।
विलास – आनन्द, भोग, सन्तुष्टि, वासना।
व्यसन – लत, वान, टेक, आसक्ति।
वृक्ष – द्रुम, पादप, तरु, विटप।
विवाद – अनबन, झगड़ा, तकरार, बखेरा।
वंक – टेढ़ा, वक्र, कुटिल।
विपरीत – उलटा, प्रतिकूल, खिलाफ़, विरुद्ध।
व्रण – घाव, फोड़ा, ज़ख्म, नासूर।
वेश्या – गणिका, वारांगना, पतुरिया, रंडी, तवायफ़
वसन्त – मधुमास, ऋतुराज, माधव, कुसुमाकर, कामसखा, मधुऋतु।
विद्या – ज्ञान, शिक्षा, गुण, इल्म, सरस्वती।
विधि – शैली, तरीका, नियम, रीति, पद्धति, प्रणाली, चाल।
विमल – स्वच्छ, निर्मल, पवित्र, पावन, विशुद्ध।
विष्णु – नारायण, केशव, गोविन्द, माधव, जनार्दन, विशम्भर, मुकुन्द, लक्ष्मीपति, कमलापति।
(श)
शपथ – कसम, प्रतिज्ञा, सौगन्ध, हलफ़, सौं।
शहद – मधु, मकरंद, पुष्परस, पुष्पासव।
शब्द – ध्वनि, नाद, आश्व, घोष, रव, मुखर।
शरण – संश्रय, आश्रय, त्राण, रक्षा।
शिष्ट – शालीन, भद्र, संभ्रान्त, सौम्य, सज्जन, सभ्य।
शेर – सिंह, नाहर, केहरि, वनराज, केशरी, मृगेन्द, शार्दूल, व्याघ्र।
शिरा – नाड़ी, धमनी, नस।
शुभ – मंगल, कल्याणकारी, शुभंकर।
शिक्षा – नसीहत, सीख, तालीम, प्रशिक्षण, उपदेश, शिक्षण, ज्ञान।
श्वेत – सफ़ेद, धवल, शुक्ल, उजला, सिता
शंकर – शिव, उमापति, शम्भू, भोलेनाथ, त्रिपुरारि, महेश, देवाधिदेव, कैलाशपति, आशुतोष
शाश्वत – सर्वकालिक, अक्षय, सनातन, नित्य।
शिकारी – आखेटक, लुब्धक, बहेलिया, अहेरी, व्याध
श्मशान – मरघट, मसान, दाहस्थल।
(ष)
षड्यंत्र – साज़िश, दुरभिसंधि, अभिसंधि, कुचक्र
(स)
सब – अखिल, सम्पूर्ण, सकल, सर्व, समस्त, समग्र, निखिल।
संकल्प – वृत, दृढ़ निश्चय, प्रतिज्ञा, प्रण।
संग्रह – संकलन, संचय, जमावा
संन्यासी – बैरागी, दंडी, विरत, परिव्राजका
सजग – सतर्क, चौकस, चौकन्ना, सावधान।
संहार – अन्त, नाश, समाप्ति, ध्वंसा
समसामयिक – समकालिक, समकालीन, समवयस्क, वर्तमान।
समीक्षा – विवेचना, मीमांसा, आलोचना, निरूपण।
समुद्र – नदीश, वारीश, रत्नाकर, उदधि, पारावार।
सखी – सहेली, सहचरी, सैरंध्री।
सज्जन – भद्र, साधु, पुंगव, सभ्य, कुलीन।
संसार – विश्व, दुनिया, जग, जगत्, इहलोक।
समाप्ति – इतिश्री, इति, अंत, समापन।
सार – रस, सत्त, निचोड़, सत्त्व।
स्तन – पयोधर, छाती, कुच, उरस, उरोज।
सुन्दरी – ललिता, सुनेत्रा, सुनयना, विलासिनी, कामिनी।
सूची – अनुक्रम, अनुक्रमणिका, तालिका, फेहरिस्त, सारणी।
स्वर्ण – सुवर्ण, सोना, कनक, हिरण्य, हेम।
स्वर्ग – सुरलोक, धुलोक, बैकुंठ, परलोक, दिव।
स्वच्छन्द – निरंकुश, स्वतन्त्र, निबंध।
स्वावलम्बन – आत्माश्रय, आत्मनिर्भरता, स्वाश्रय।
स्नेह – प्रेम, प्रीति, अनुराग, प्यार, मोहब्बत, इश्क।
समुद्र – सागर, रत्नाकर, पयोधि, नदीश, सिन्धु, जलधि, पारावार, वारीश, अर्णव, अब्धि।
सरस्वती – भारती, शारदा, वीणापाणि, गिरा, वाणी, महाश्वेता, श्री, भाष, वाक्, हंसवाहिनी, ज्ञानदायिनी।
सूर्य – सूरज, दिनकर, दिवाकर, भास्कर, रवि, नारायण, सविता, कमलबन्धु, आदित्य, प्रभाकर, मार्तण्ड।
सम्पूर्ण – पूर्ण, समग्र, सारा, पूरा, मुकम्मल।
सर्प – भुजंग, अहि, विषधर, व्याल, फणी, उरग, साँप, नाग, अहि।
सुरपुर – सुलोक, स्वर्गलोक, हरिधाम, अमरपुर, देवराज्य, स्वर्ग।
सेठ – महाजन, सूदखोर, साहूकार, ब्याजजीवी, पूँजीपति, मालदार, धनवान, धनी, ताल्लुकदार।
संध्या – निशारंभ, दिनावसान, दिनांत, सायंकाल, गोधूलि, साँझ।
स्तुति – प्रार्थना, पूजा, आराधना, अर्चना।
(ह)
हंस – मुक्तमुक, मराल, सरस्वतीवाहन।
हाँसी – स्मिति, मुस्कान, हास्य।
हित – कल्याण, भलाई, भला, उपकार।
हक – अधिकार, स्वत्व, दावा, फर्ज़, उचित पक्ष।
हिमालय – हिमगिरि, हिमाद्रि, गिरिराज, शैलेन्द्र।
हनुमान् – पवनसुत, महावीर, आंजनेय, कपीश, बजरंगी, मारुतिनन्दन, बजरंग।
हाथ – कर, हस्त, पाणि, भुजा, बाहु, भुजाना
हाथी – गज, कुंजर, वितुण्ड, मतंग, नाग, द्विरद।
हार – (i) पराजय, पराभव, शिकस्त, मात। (ii) माला, कंठहार, मोहनमाला, अंकमालिका।
हिम – तुषार, तुहिन, नीहार, बर्फी
हिरन – मृग, हरिण, कुरंग, सारंग।
होशियार – समझदार, पटु, चतुर, बुद्धिमान, विवेकशील।
हेम – स्वर्ण, सोना, कंचन।
हरि – बंदर, इन्द्र, विष्णु, चंद्र, सिंह।
(क्ष)
क्षेत्र – प्रदेश, इलाका, भू–भाग, भूखण्ड।
क्षणभंगुर – अस्थिर, अनित्य, नश्वर, क्षणिका
क्षय – तपेदिक, यक्ष्मा, राजरोग।
क्षुब्ध – व्याकुल, विकल, उद्विग्न।
क्षमता – शक्ति, सामर्थ्य, बल, ताकत।
क्षीण – दुर्बल, कमज़ोर, बलहीन, कृश
(Paryayvachi Shabd) पर्यायवाची शब्द वस्तुनिष्ठ प्रश्नावली
निर्देश (प्र.सं. 1-2) प्रश्नों में दिए गए शब्द के समानार्थक शब्द का चयन उसके नीचे दिए गए विकल्पों में से कीजिए।
प्रश्न 1.
विप्र (के.वी.एस.पी.आर.टी 2015)
(a) निर्धन
(b) धनी
(c) ब्राह्मण
(d) सैनिक
उत्तर :
(c) ब्राह्मण
प्रश्न 2.
आविर्भाव
(a) मृत्यु
(b) मोक्ष
(c) वानप्रस्थ
(d) उत्पत्ति
उत्तर :
(d) उत्पत्ति
प्रश्न 3.
निम्नलिखित में पर्यायवाची शब्द है (अन्वेषक सीधी भर्ती परीक्षा 2014)
(a) अचिर, अचर
(b) राधारमण, कंसनिकन्दन
(c) अम्बुज, अम्बुधि
(d) नीरद, नीरज
उत्तर :
(b) राधारमण, कंसनिकन्दन
प्रश्न 4.
कौन-सा विकल्प वैचारिक अन्तर के समानार्थी शब्दों का है?
(a) देखना, घूरना
(b) बेहद, असीम
(c) जल, नीर
(d) सौन्दर्य, खूबसूरती
उत्तर :
(a) देखना, घूरना
प्रश्न 5.
‘नौका’ शब्द का पर्याय बताइए।
(a) तिया
(b) तरंगिणी
(c) तरी
(d) तरणिजा
उत्तर :
(c) तरी
प्रश्न 6.
‘घर’ के लिए यह पर्यायवाची नहीं है (डी.एस.एस.एस.बी. असिस्टेंट टीचर परीक्षा 2015)
(a) गृह
(b) ग्रह
(c) आलय
(d) निलय
उत्तर :
(b) ग्रह
प्रश्न 7.
‘पवन’ का पर्यायवाची शब्द है (सहायक उपनिरीक्षक भर्ती परीक्षा 2014)
(a) मिलना
(b) पूजना
(c) समीर
(d) आदर
उत्तर :
(c) समीर
प्रश्न 8.
‘खर’ का पर्यायवाची शब्द है । (उपनिरीक्षक सीधी भर्ती परीक्षा 2014)
(a) खरगोश
(b) शशक
(c) मूर्ख
(d) गधा
उत्तर :
(d) गधा
प्रश्न 9.
अनिल पर्यायवाची है (उपनिरीक्षक सीधी भर्ती परीक्षा 2014)
(a) पवन का
(b) चक्रवात का
(c) पावस का
(d) अनल का
उत्तर :
(a) पवन का
प्रश्न 10.
‘प्रसून’ शब्द का पर्यायवाची है। (उपनिरीक्षक सीधी भर्ती परीक्षा 2014)
(a) वृक्ष
(b) पुष्प
(c) चन्द्रमा
(d) अग्नि
उत्तर :
(b) पुष्प
मुहावरे (Muhavare) (Idioms) – Muhavare in Hindi Grammar, अर्थ सहित
मुहावरे का अर्थ और वाक्य प्रयोग इन हिन्दी
भाषा की समृद्धि और उसकी अभिव्यक्ति क्षमता के विकास हेतु मुहावरों एवं कहावतों का प्रयोग उपयोगी होता है। भाषा में इनके प्रयोग से सजीवता और प्रवाहमयता आ जाती है, फलस्वरूप पाठक या श्रोता शीघ्र ही प्रभावित हो जाता है। जिस भाषा में इनका जितना अधिक प्रयोग होगा, उसकी अभिव्यक्ति क्षमता उतनी ही प्रभावपूर्ण व रोचक होगी।
मुहावरा
‘मुहावरा’ शब्द अरबी भाषा का है जिसका अर्थ है ‘अभ्यास होना’ या ‘आदी होना’। इस प्रकार मुहावरा शब्द अपने–आप में स्वयं मुहावरा है, क्योंकि यह अपने सामान्य अर्थ को छोड़कर असामान्य अर्थ प्रकट करता है। वाक्यांश शब्द से स्पष्ट है कि मुहावरा संक्षिप्त होता है, परन्तु अपने इस संक्षिप्त रूप में ही किसी बड़े विचार या भाव को प्रकट करता है।
उदाहरणार्थ एक मुहावरा है– ‘काठ का उल्लू’। इसका अर्थ यह नहीं कि लकड़ी का उल्लू बना दिया गया है, अपितु इससे यह अर्थ निकलता है कि जो उल्लू (मूर्ख) काठ का है, वह हमारे किस काम का, उसमें सजीवता तो है ही नहीं। इस प्रकार हम इसका अर्थ लेते हैं– ‘महामूर्ख’ से।
हिन्दी के महत्त्वपूर्ण मुहावरे, उनके अर्थ और प्रयोग
(अ)
1. अंक में समेटना–(गोद में लेना, आलिंगनबद्ध करना)
शिशु को रोता हुआ देखकर माँ का हृदय करुणा से भर आया और उसने उसे अंक में समेटकर चुप किया।
2. अंकुश लगाना–(पाबन्दी या रोक लगाना)
राजेश खर्चीला लड़का था। अब उसके पिता ने उसका जेब खर्च बन्द
करके उसकी फ़िजूलखर्ची पर अंकुश लगा दिया है।
3. अंग बन जाना–(सदस्य बनना या हो जाना)
घर के नौकर रामू से अनेक बार भेंट होने के पश्चात् एक अतिथि ने कहा, “रामू तुम्हें इस घर में नौकरी करते हुए काफी दिन हो गए हैं, ऐसा लगता .. कि जैसे तुम भी इस घर के अंग बन गए हो।”
4. अंग–अंग ढीला होना–(बहुत थक जाना)
सारा दिन काम करते करते, आज अंग–अंग ढीला हो गया है।
5. अण्डा सेना–(घर में बैठकर अपना समय नष्ट करना)
निकम्मे ओमदत्त की पत्नी ने उसे घर में पड़े देखकर एक दिन कह ही दिया, “यहीं लेटे–लेटे अण्डे सेते रहोगे या कुछ कमाओगे भी।”
6. अंगूठा दिखाना–(इनकार करना)
आज हम हरीश के घर ₹10 माँगने गए, तो उसने अँगूठा दिखा दिया।
7. अन्धे की लकड़ी–(एक मात्र सहारा)
राकेश अपने माँ–बाप के लिए अन्धे की लकड़ी के समान है।
8. अंन्धे के हाथ बटेर लगना–(अनायास ही मिलना)
राजेश हाईस्कूल परीक्षा में प्रथम आया, उसके लिए तो अन्धे के हाथ बटेर लग गई।
9. अन्न–जल उठना–(प्रस्थान करना, एक स्थान से दूसरे स्थान पर चले
जाना) रिटायर होने पर प्रोफेसर साहब ने कहा, “लगता है बच्चों, अब तो यहाँ से हमारा अन्न–जल उठ ही गया है। हमें अपने गाँव जाना पड़ेगा।”
10. अक्ल के अन्धे–(मूर्ख, बुद्धिहीन)
“सुधीर साइन्स (साइड) के विषयों में अच्छी पढ़ाई कर रहा था, मगर उस अक्ल के अन्धे ने इतनी अच्छी साइड क्यों बदल दी ?” सुधीर के एक मित्र ने उसके बड़े भाई से पूछा।
11. अक्ल पर पत्थर पड़ना–(कुछ समझ में न आना)
मेरी अक्ल पर पत्थर पड़ गए हैं, कुछ समझ में नहीं आता कि मैं क्या करूँ।
12. अक्ल के पीछे लट्ठ लिए फिरना–(मूर्खतापूर्ण कार्य करना)
तुम हमेशा अक्ल के पीछे लट्ठ लिए क्यों फिरते हो, कुछ समझ–बूझकर काम किया करो।
13. अक्ल का अंधा/अक्ल का दुश्मन होना–(महामूर्ख होना।)
राजू से साथ देने की आशा मत रखना, वह तो अक्ल का अंधा है।
14. अपनी खिचड़ी अलग पकाना–(अलग–थलग रहना, किसी की न
मानना) सुनीता की पड़ोसनों ने उसको अपने पास न बैठता देखकर कहा, “सुनीता तो अपनी खिचड़ी अलग पकाती है, यह चार औरतों में नहीं बैठती।”
15. अपना उल्लू सीधा करना–(स्वार्थ सिद्ध करना)
आजकल के नेता सिर्फ अपना उल्लू सीधा करते हैं।
16. अपने मुँह मियाँ मिठू बनना–(आत्मप्रशंसा करना) राजू अपने मुँह .
मियाँ मिठू बनता रहता है।
17. अक्ल के घोड़े दौड़ाना–(केवल कल्पनाएँ करते रहना)
सफलता अक्ल के घोड़े दौड़ाने से नहीं, अपितु परिश्रम से प्राप्त होती है।
18. अँधेरे घर का उजाला–(इकलौता बेटा)
मयंक अँधेरे घर का उजाला है।
19. अपना सा मुँह लेकर रह जाना–(लज्जित होना)
विजय परीक्षा में नकल करते पकड़े जाने पर अपना–सा मुँह लेकर रह गया।
20. अरण्य रोदन–(व्यर्थ प्रयास)
कंजूस व्यक्ति से धन की याचना करना अरण्य रोदन है।
21. अक्ल चरने जाना–(बुद्धिमत्ता गायब हो जाना)
तुमने साठ साल के बूढ़े से 18 वर्ष की लड़की का विवाह कर दिया, लगता है तुम्हारी अक्ल चरने गई थी।
22. अड़ियल टटू–(जिद्दी)
आज के युग में अड़ियल टटू पीछे रह जाते हैं।
23. अंगारे उगलना–(क्रोध में लाल–पीला होना)
अभिमन्यु की मृत्यु से आहत अर्जुन कौरवों पर अंगारे उगलने लगा।
24. अंगारों पर पैर रखना–(स्वयं को खतरे में डालना)
व्यवस्था के खिलाफ लड़ना अंगारों पर पैर रखना है।
25. अन्धे के आगे रोना–(व्यर्थ प्रयत्न करना)
अन्धविश्वासी अज्ञानी जनता के मध्य मार्क्सवाद की बात करना अन्धे के आगे रोना है।
26. अंगूर खट्टे होना–(अप्राप्त वस्तु की उपेक्षा करना)
अजय, “सिविल सेवकों को नेताओं की चापलूसी करनी पड़ती है” कहकर, अंगूर खट्टे वाली बात कर रहा है, क्योंकि वह परिश्रम के बावजूद नहीं चुना गया।
27. अंगूठी का नगीना–(सजीला और सुन्दर)
विनय कम्पनी की अंगूठी का नगीना है।
28. अल्लाह मियाँ की गाय–(सरल प्रकृति वाला)
रामकुमार तो अल्लाह मियाँ की गाय है।
29. अंतड़ियों में बल पड़ना–(संकट में पड़ना)
अपने दोस्त को चोरों से बचाने के चक्कर में, मैं ही पकड़ा गया और मेरी ही अंतड़ियों में बल पड़ गए।
30. अन्धा बनाना–(मूर्ख बनाकर धोखा देना)
अपने गुरु को अन्धा बनाना सरल कार्य नहीं है, इसलिए मुझसे ऐसी बात मत करो।
31. अंग लगाना–(आलिंगन करना)
प्रेमिका को बहुत समय पश्चात् देखकर रवि ने उसे अंग लगा लिया।
32. अंगारे बरसना–(कड़ी धूप होना)
जून के महीने में अंगारे बरस रहे थे और रिक्शा वाला पसीने से लथपथ था।
33. अक्ल खर्च करना–(समझ को काम में लाना)
इस समस्या को हल करने में थोड़ी अक्ल खर्च करनी पड़ेगी।
34. अड्डे पर चहकना–(अपने घर पर रौब दिखाना)
अड्डे पर चहकते फिरते हो, बाहर निकलो तो तुम्हें देखा जाए।
35. अन्धाधुन्ध लुटाना–(बहुत अपव्यय करना)
उद्योगपतियों और बड़े व्यापारियों की बीवियाँ अन्धाधुन्ध पैसा लुटाती हैं।
36. अपनी खाल में मस्त रहना–(अपनी दशा से सन्तुष्ट रहना)
संजय 4000 रुपए कमाकर अपनी खाल में मस्त रहता है।
37. अन्न न लगना–(खाकर–पीकर भी मोटा न होना)
अभय अच्छे से अच्छा खाता है, लेकिन उसे अन्न नहीं लगता।
38. अधर में लटकना या झूलना–(दुविधा में पड़ा रह जाना)
कल्याण सिंह भाजपा में पुन: शामिल होंगे यह फैसला बहुत दिन तक अधर में लटका रहा।
39. अठखेलियाँ सूझना–(हँसी दिल्लगी करना)
मेरे चोट लगी हुई है, उसमें दर्द हो रहा है और तुम्हें अठखेलियाँ सूझ रही हैं।
40. अंग न समाना–(अत्यन्त प्रसन्न होना)
सिविल सेवा में चयन से अनुराग अंग नहीं समा रहा है।
41. अंगूठे पर मारना–(परवाह न करना)
तुम अजीब व्यक्ति हो, सभी की सलाह को अंगूठे पर मार देते हो।
42. अंटी मारना–(कम तौलना)
बहुत से पंसारी अंटी मारने से बाज नहीं आते।
43. अंग टूटना–(थकावट से शरीर में दर्द होना)
दिन भर काम करा अब तो अंग टूट रहे हैं।
44. अंधेर नगरी–(जहाँ धांधली हो)
पूँजीवादी व्यवस्था ‘अंधेर नगरी’ बनकर रह गई है।
45. अंकुश न मानना–(न डरना)
युवा पीढ़ी किसी का अंकुश मानने को तैयार नहीं है।
46. अन्न का टन्न करना–(बनी चीज को बिगाड़ देना)
अभी–अभी हुए प्लास्टर पर तुमने पानी डालकर अन्न का टन्न कर दिया।
47. अन्न–जल बदा होना–(कहीं का जाना और रहना अनिवार्य हो जाना)
हमारा अन्न–जल तो मेरठ में बदा है।
48. अधर काटना–(बेबसी का भाव प्रकट करना)
पुलिस द्वारा बेटे की पिटाई करते देख पिता ने अपने अधर काट लिए।
49. अपनी हाँकना–(आत्म श्लाघा करना)
विवेक तुम हमारी भी सुनोगे या अपनी ही हाँकते रहोगे।
50. अर्श से फर्श तक–(आकाश से भूमि तक)
भ्रष्टाचार में लिप्त बाबूजी बड़ी शेखी बघारते थे, एक मामले में निलंबित होने पर वे अर्श से फर्श पर आ गए।
51. अलबी–तलबी धरी रह जाना–(निष्प्रभावी होना)
बहुत ज्यादा परेशान करोगी तो तुम्हारे घर शिकायत कर दूंगा। सारी अलबी–तलबी धरी रह जाएगी।
52. अस्ति–नास्ति में पड़ना–(दुविधा में पड़ना)
दो लड़कियों द्वारा पसन्द किए जाने पर वह अस्ति–नास्ति में पड़ा हुआ है और कुछ निश्चय नहीं कर पा रहा है।
53. अन्दर होना–(जेल में बन्द होना)
मायावती के राज में शहर के अधिकतर गुण्डे अन्दर हो गए।
54. अरमान निकालना–(इच्छाएँ पूरी करना)।
बेरोज़गार लोग नौकरी मिलने पर अरमान निकालने की सोचते हैं।
(आ)
55. आग पर तेल छिड़कना–(और भड़काना)
बहुत से लोग सुलह सफ़ाई करने के बजाय आग पर तेल छिड़कने में प्रवीण होते हैं।
56. आग पर पानी डालना–(झगड़ा मिटाना)
भारत व पाक आपसी समझबूझ से आग पर पानी डाल रहे हैं।
57. आग–पानी या आग और फूस का बैर होना–(स्वाभाविक शत्रुता होना)
भाजपा और साम्यवादी पार्टी में आग–पानी या आग और फूस का बैर है।
58. आँख लगना–(झपकी आना)
रात एक बजे तक कार्य किया, फिर आँख लग गई।
59. आँखों से गिरना–(आदर भाव घट जाना)
जनता की निगाहों से अधिकतर नेता गिर गए हैं।
60. आँखों पर चर्बी चढ़ना–(अहंकार से ध्यान तक न देना)
पैसे वाले हो गए हो, अब क्यों पहचानोगे, आँखों पर चर्बी चढ़ गई है ना।
61. आँखें नीची होना–(लज्जित होना)
बच्चों की करतूतों से माँ–बाप की आँखें नीची हो गईं।
62. आँखें मूंदना–(मर जाना)
आजकल तो बाप के आँखें मूंदते ही बेटे जायदाद का बँटवारा कर लेते हैं।
63. आँखों का पानी ढलना (निर्लज्ज होना)
अब तो तुम किसी की नहीं सुनते, लगता है, तुम्हारी आँखों का पानी ढल गया है।
64. आँख का काँटा–(बुरा होना)
मनोज मुझे अपनी आँख का काँटा समझता है, जबकि मैंने कभी उसका बुरा नहीं किया।
65. आँख में खटकना–(बुरा लगना)
स्पष्टवादी व्यक्ति अधिकतर लोगों की आँखों में खटकता है।
66. आँख का उजाला–(अति प्रिय व्यक्ति)
राज अपने माता–पिता की आँखों का उजाला है।
67. आँख मारना–(इशारा करना)
रमेश ने सुरेश को कल रात वाली बात न बताने के लिए आँख मारी।
68. आँखों पर परदा पड़ना–(धोखा होना)
शर्मा जी ने सच्चाई बताकर, मेरी आँखों से परदा हटा दिया।
69. आँख बिछाना–(स्वागत, सम्मान करना)
रामचन्द्र जी की अयोध्या वापसी पर अयोध्यावासियों ने उनके स्वागत में आँखें बिछा दीं।
70. आँखों में धूल डालना–(धोखा देना)
सुभाषचन्द्र बोस अंग्रेज़ों की आँखों में धूल डालकर, अपने आवास से निकलकर विदेश पहुँच गए।
71. आँख में घर करना–(हृदय में बसना)
विभा की छवि राज की आँखों में घर कर गई।
72. आँख लगाना– (बुरी अथवा लालचभरी दृष्टि से देखना)
चीन अब भी भारत की सीमाओं पर आँख लगाये हुए हैं।
73. आँखें ठण्डी करना–(प्रिय–वस्तु को देखकर सुख प्राप्त करना)
पोते को वर्षों बाद देखकर बाबा की आँखें ठण्डी हो गईं।
74. आँखें फाड़कर देखना–(आश्चर्य से देखना)
ऐसे आँखें फाड़कर क्या देख रही हो, पहली बार मिली हो क्या?
75. आँखें चार करना–(आमना–सामना करना)
एक दिन अचानक केशव से आँखें चार हुईं और मित्रता हो गई।
76. आँखें फेरना–(उपेक्षा करना)
जैसे ही मेरी उच्च पद प्राप्त करने की सम्भावनाएँ क्षीण हुईं, सबने मुझसे आँखें फेर ली।
77. आँख भरकर देखना–(इच्छा भर देखना)
जी चाहता है तुम्हें आँख भरकर देख लूँ, फिर न जाने कब मिलें।
78. आँख खिल उठना–(प्रसन्न हो जाना)
पिता जी ने जैसे ही अपने छोटे से बच्चे को देखा, वैसे ही उनकी आँख खिल उठी।
79. आँख चुराना–(कतराना)
जब से विजय ने अजय से उधार लिया है, वह आँख चुराने लगा है।
80. आँख का काजल चुराना–(सामने से देखते–देखते माल गायब
कर देना) विवेक के देखते ही देखते उसका सामान गायब हो गया; जैसे किसी ने उसकी आँख का काजल चुरा लिया हो।
81. आँख निकलना–(विस्मय होना)
अपने खेत में छिपा खजाना देखकर गोधन की आँख निकल आई।
82. आँख मैली करना–(दिखावे के लिए रोना/बुरी नजर से देखना)
अरुण ने अपने घनिष्ठ मित्र की मृत्यु पर भी केवल अपनी आँखें ही मैली की।
83. आँखों में धूल झोंकना–(धोखा देना)
कुछ डकैत पुलिस की आँखों में धूल झोंककर मुठभेड़ से बचकर निकल गए।
84. आँखें दिखाना–(डराने–धमकाने के लिए रोष भरी दृष्टि से देखना)
रामपाल ने अपने ढीठ बेटे को जब तक आँखें न दिखायीं, तब तक उसने उनका कहना नहीं माना।
85. आँखें तरेरना–(क्रोध से देखना)
पैसे न हो तो पत्नी भी आँखें तरेरती है।
86. आँखों का तारा–(अत्यन्त प्रिय)
इकलौता बेटा अपने माँ–बाप की आँखों का तारा होता है।
87. आटा गीला होना–(कठिनाई में पड़ना)
सुबोध को एंक के पश्चात् दूसरी मुसीबत घेर लेती है, आर्थिक तंगी में। उसका आटा गीला हो गया।
88. आँचल में बाँधना–(ध्यान में रखना)
पति–पत्नी को एक–दूसरे पर विश्वास करना चाहिए, यह बात आँचल में बाँध लेनी चाहिए।
89. आकाश में उड़ना–(कल्पना क्षेत्र में घूमना)
बिना धन के कोई व्यापार करना आकाश में उड़ना है।
90. आकाश–पाताल एक करना–(कठिन परिश्रम करना)
मैं व्यवस्था को बदलने के लिए आकाश–पाताल एक कर दूंगा।
91. आकाश–कुसुम होना–(दुर्लभ होना)
किसी सामान्य व्यक्ति के लिए विधायक का पद आकाश–कुसुम हो गया
92. आसमान सिर पर उठाना–(उपद्रव मचाना)
शिक्षक की अनुपस्थिति में छात्रों ने आसमान सिर पर उठा लिया।
93. आगा पीछा करना–(हिचकिचाना)
सेठ जी किसी शुभ कार्य हेतु चन्दा देने के लिए आगा पीछा कर रहे हैं।
94. आकाश से बातें करना–(काफी ऊँचा होना)
दिल्ली में आकाश से बातें करती बहुत–सी इमारतें हैं।
95. आवाज़ उठाना–(विरोध में कहना)
वर्तमान व्यवस्था के विरोध में मीडिया में आवाज़ उठने लगी है।
96. आसमान से तारे तोड़ना–(असम्भव काम करना)
अपनी सामर्थ्य समझे बिना ईश्वर को चुनौती देकर तुम आकाश से तारे तोड़ना चाहते हो?
97. आस्तीन का साँप–(विश्वासघाती मित्र)
राज ने निर्भय की बहुत सहायता की लेकिन वह तो आस्तीन का साँप निकला।
98. आठ–आठ आँसू रोना–(बहुत पश्चात्ताप करना)
दसवीं कक्षा में पुन: अनुत्तीर्ण होकर रमेश ने आठ–आठ आँसू रोये थे।
99. आसन डोलना–(विचलित होना)
विश्वामित्र की तपस्या से इन्द्र का आसन डोल गया।
100. आग–पानी साथ रखना–(असम्भव कार्य करना)
अहिंसा द्वारा भारत में क्रान्ति लाकर गाँधीजी ने आग–पानी साथ रख दिया।
101. आधी जान सूखना–(अत्यन्त भय लगना)
घर में चोरों को देखकर लालाजी की आधी जान सूख गई।
102. आपे से बाहर होना–(क्रोध से अपने वश में न रहना)
फ़िरोज़ खिलजी ने आपे से बाहर होकर फ़कीर को मरवा दिया।
103. आग लगाकर तमाशा देखना–(लड़ाई कराकर प्रसन्न होना)
हमारे मुहल्ले के संजीव का कार्य तो आग लगाकर तमाशा देखना है।
104. आगे का पैर पीछे पड़ना–(विपरीत गति या दशा में पड़ना)
सुरेश के दिन अभी अच्छे नहीं हैं, अब भी आगे का पैर पीछे पड़ रहा है।
105. आटे दाल की फ़िक्र होना–(जीविका की चिन्ता होना)
पढ़ाई समाप्त होते ही तुम्हें आटे दाल की फ़िक्र होने लगी है।
106. आधा तीतर आधा बटेर–(बेमेल चीजों का सम्मिश्रण)
सुधीर अपनी दुकान पर किताबों के साथ साज–शृंगार का सामान बेचना चाहता है। अनिल ने उसे समझाया आधा तीतर आधा बटेर बेचने से बिक्री कम रहेगी।
107. आग लगने पर कुआँ खोदना–(पहले से कोई उपाय न करना)
शर्मा जी ने मकान की दीवारें खड़ी करा लीं, लेकिन जब लैन्टर डलने का समय आया, तो उधार लेने की बात करने लगे। इस पर मिस्त्री झल्लाया–शर्मा जी आप तो आग लगने पर कुआँ खोदने वाली बात कर रहे हो।
108. आव देखा न ताव–(बिना सोचे–विचारे)
शिक्षक ने आव देखा न ताव और छात्र को पीटना शुरू कर दिया।
109. आँखों में खून उतरना–(अत्यधिक क्रोधित होना)
आतंकवादियों की हरकत देखकर पुलिस आयुक्त की आँखों में खून उतर आया था।
110. आग बबूला होना–(अत्यधिक क्रोधित होना)
कई बार मना करने पर भी जब दिनेश नहीं माना, तो उसके चाचा जी उस पर आग बबूला हो उठे।
111. आसमान से गिरकर खजूर के पेड़ पर अटकना–(उत्तम स्थान को
त्यागकर ऐसे स्थान पर जाना जो अपेक्षाकृत अधिक कष्टप्रद हो) बैंक की नौकरी छोड़ने के बाद किराना स्टोर करने पर दयाशंकर को ऐसा लगा कि वह आसमान से गिरकर खजूर के पेड़ पर अटक गया है।
112. आप मरे जग प्रलय–(मृत्यु उपरान्त मनुष्य का सब कुछ छूट जाना)
रामदीन मृत्यु–शैय्या पर पड़ा अपने बेटों के कारोबार के बारे में रह–रह पूछं रहा था। उसके पास एकत्र मित्रों में से एक ने दूसरे से कहा, “आप मरे जग प्रलय, रामदीन को बेटों के कारोबार की चिन्ता अब भी सता रही है।”
113. आसमान टूटना–(विपत्ति आना)
भाई और भतीजे की हत्या का समाचार सुनकर, मुख्यमन्त्री जी पर आसमान टूट पड़ा।
114. आटे दाल का भाव मालूम होना–(वास्तविकता का पता चलना)
अभी माँ–बाप की कमाई पर मौज कर लो, खुद कमाओगे तो आटे दाल का भाव मालूम हो जाएगा।
115. आड़े हाथों लेना–(खरी–खोटी सुनाना)
वीरेन्द्र ने सुरेश को आड़े हाथों लिया।
(इ)
116. इधर–उधर की हाँकना–(अप्रासंगिक बातें करना)
आजकल कुछ नवयुवक इधर–उधर की हाँकते रहते हैं।
117. इज्जत उतारना–(सम्मान को ठेस पहुँचाना)
दीनानाथ से बीच बाज़ार में जब श्यामलाल ने ऊँचे स्वर में कर्ज वसूली की बात की तो दीनानाथ ने श्यामलाल से कहा, “सरेआम इज्जत मत उतारो, आज शाम घर आकर अपने रुपए ले जाना।”
118. इतिश्री करना–(कर्त्तव्य पूरा करना/सुखद अन्त होना)
अपनी दोनों कन्याओं की शादी करके रामसिंह ने अपने कर्त्तव्य की इतिश्री कर ली।
119. इशारों पर नाचना–(गुलाम बनकर रह जाना)
बहुत से व्यक्ति अपनी पत्नी के इशारों पर नाचते हैं।
120. इधर की उधर करना–(चुगली करके भड़काना)
मनोज की इधर की उधर करने की आदत है, इसलिए उस पर विश्वास मत करना।
121. इन्द्र की परी–(अत्यन्त सुन्दर स्त्री)
राजेन्द्र की पत्नी तो इन्द्र की परी लगती है।
122. इन तिलों में तेल नहीं–(किसी भी लाभ की आशा न करना)
कपिल ने कारखाने को देख सोच लिया इन तिलों में तेल नहीं और बैंक से ऋण लेकर बहन का विवाह किया।
(ई)
123. ईंट से ईंट बजाना–(नष्ट–भ्रष्ट कर देना)
असामाजिक तत्त्व रात–दिन ईंट से ईंट बजाने की सोचा करते हैं।
124. ईंट का जवाब पत्थर से देना–(दुष्ट के साथ दुष्टता करना)
दुश्मन को सदैव ईंट का जवाब पत्थर से देना चाहिए।
125. ईद का चाँद होना–(बहुत दिनों बाद दिखाई देना)
रमेश आप तो ईद का चाँद हो गए, एक वर्ष बाद दिखाई दिए।
126. ईंट–ईंट बिक जाना–(सर्वस्व नष्ट हो जाना)
“चाचाजी का व्यापार फेल हो गया और उनकी ईंट–ईंट बिक गई।”
127. ईमान देना/बेचना–(झूठ बोलना अथवा अपने धर्म, सिद्धान्त आदि के
विरुद्ध आचरण करना) इस महँगाई के दौर में लोग अपना ईमान बेचने से भी नहीं डर रहे हैं।
(उ)
128. उँगली उठाना–(इशारा करना, आलोचना करना।)
सच्चे और ईमानदार व्यक्ति पर उँगली उठाना व्यर्थ है।
129. उँगली पर नचाना–(वश में रखना)
श्रीकृष्ण गोपियों को अपनी उँगली पर नचाते थे।।
130. उड़ती चिड़िया पहचानना–(दूरदर्शी होना)
हमसे चाल मत चलो, हम भी उड़ती चिड़िया पहचानते हैं।
131. उँगलियों पर गिनने योग्य–(संख्या में न्यूनतम/बहुत थोड़े)
भारत की सेना में उस समय उँगलियों पर गिनने योग्य ही सैनिक थे, जब उन्होंने पाकिस्तानी सेना के छक्के छुड़ा दिए थे।
132. उजाला करना–(कुल का नाम रोशन करना)
आई. ए. एस. परीक्षा में उत्तीर्ण होकर बृजलाल ने अपने कुल में उजाला कर दिया।
133. उल्लू बोलना–(उजाड़ होना)
पुराने शानदार महलों के खण्डहरों में आज उल्लू बोलते हैं।
134. उल्टी गंगा बहाना–(नियम के विरुद्ध कार्य करना)
भारत कला और दस्तकारी का सामान निर्यात करता है, फिर भी कुछ लोग विदेशों से कला व दस्तकारी का सामान मँगवाकर उल्टी गंगा बहाते हैं।
135. उल्टी खोपड़ी होना–(ऐसा व्यक्ति जो उचित ढंग के विपरीत आचरण करता हो)
“चौधरी साहब, आपका छोटा बेटा बिल्कुल उल्टी खोपड़ी का है, आज फिर वह गाँव में उपद्रव मचा आया।” वृद्ध ने चौधरी को बताया।
136. उल्टे छुरे से मूंडना–(किसी को मूर्ख बनाकर उससे धन ऐंठना या अपना काम निकालना)
यह पुरोहित यजमानों को उल्टे छुरे से मूंडने में सिद्धहस्त है।
137. उँगली पकड़ते ही पहुँचा पकड़ना–(अल्प सहारा पाकर सम्पूर्ण की
प्राप्ति हेतु उत्साहित होना) रामचन्द्र ने नौकर को एक कमरा मुफ़्त में रहने के लिए दे दिया; थोड़े समय बाद वह परिवार को साथ ले आया और चार कमरों को देने का आग्रह करने लगा। इस पर रामचन्द्र ने कहा, तुम तो उँगली पकड़ते ही पहुँचा पकड़ने की बात कर रहे हो।
138. उन्नीस बीस होना–(दो वस्तुओं में थोड़ा बहुत अन्तर होना)
दुकानदार ने बताया कि दोनों कपड़ों में उन्नीस बीस का अन्तर है।
139. उल्टी पट्टी पढ़ाना–(बहकाना)
तुम मैच खेल रहे थे और मुझे उल्टी पट्टी पढ़ा रहे हो कि स्कूल बन्द था और मैं स्कूल से दोस्त के घर चला गया था।
140. उड़न छू होना–(गायब हो जाना)
रीता अभी तो यहीं थी, मिनटों में कहाँ उड़न छू हो गई।
141. उबल पड़ना–(एकदम गुस्सा हो जाना)
सक्सेना साहब तो थोड़ी–सी बात पर ही उबल पड़ते हैं।
142. उल्टी माला फेरना–(अहित सोचना)
अपने दोस्त के नाम की उल्टी माला फेरना बुरी बात है।
143. उखाड़ पछाड़ करना–(त्रुटियाँ दिखाकर कटूक्तियाँ करना)
उखाड़ पछाड़ करने में ही तुम निपुण हो, लेकिन त्रुटियाँ दूर करना तुम्हारे वश की बात नहीं है।
144. उम्र का पैमाना भर जाना–(जीवन का अन्त नज़दीक आना)।
वह अब बूढ़ा हो गया है, उसकी उम्र का पैमाना भर गया।
145. उरद के आटे की तरह ऐंठना–(क्रोध करना)
आप बहल पर उरद के आटे की तरह ऐंठ रहे हो, उसका कोई दोष नहीं है।
146. ऊँचे नीचे पैर पड़ना–(बुरे काम में फँसना)
अनुज में बहुत–सी गन्दी आदतें आ गई हैं, उसके पैर ऊँचे–नीचे पड़ने लगे हैं।
147. ऊँट की चोरी झुके–झुके–(किसी निन्दित, किन्तु बड़े कार्य को गुप्त
ढंग से करने की चेष्टा करना) हमारे नेताओं ने घोटाला करने की चेष्टा करके उँट की चोरी झुके–झुके को सिद्ध कर दिया है।
148. ऊँट का सुई की नोंक से निकलना–(असम्भव होना)
पूँजीवादी व्यवस्था में आम जनता का जीवन सुधरना ऊँट का सुई की नोंक से निकलना है।
149. ऊधौ का लेना न माधौ का देना–(किसी से किसी प्रकार का सम्बन्ध न
रखना) वह बेचारा दीन–दुनिया से इतना तंग आ गया है कि अब वह सबके साथ ‘ऊधो का लेना, न माधौ का देना’ की तरह का व्यवहार करने लगा है।
(ए)
150. एक ही लकड़ी से हाँकना–(अच्छे–बुरे की पहचान न करना)
कुछ अधिकारी सभी कर्मचारियों को एक ही लकड़ी से हाँकते हैं।
151. एक ही थैली के चट्टे–बट्टे होना–(सभी का एक जैसा होना)
आजकल के सभी नेता एक ही थैली के चट्टे–बट्टे हैं।
152. एड़ियाँ घिसना / रगड़ना–(सिफ़ारिश के लिए चक्कर लगाना)
इस दौर में अच्छे पढ़े–लिखे लोगों को भी नौकरी ढूँढने के लिए एड़ियाँ घिसनी पड़ती हैं।
153. एक म्यान में दो तलवारें–(एक वस्तु या पद पर दो शक्तिशाली
व्यक्तियों का अधिकार नहीं हो सकता) विद्यालय की प्रबन्ध–समिति ने दो–दो प्रधानाचार्यों की नियुक्ति करके एक म्यान में दो तलवारों वाली बात कर दी है।
154. एक ढेले से दो शिकार–(एक कार्य से दो उद्देश्यों की पूर्ति करना)
पुलिस दल ने बदमाशों को मारकर एक ढेले से दो शिकार किए। उन्हें पदोन्नति मिली और पुरस्कार भी मिला।
155. एक की चार लगाना–(छोटी बातों को बढ़ाकर कहना)
रमेश तुम तो अब हर बात में एक की चार लगाते हो।
156. एक आँख से देखना–(सबको बराबर समझना)
राजा का कर्तव्य है कि वह सभी नागरिकों को एक आँख से देखे।
157. एड़ी–चोटी का पसीना एक करना–(घोर परिश्रम करना)
रिक्शे वाले एड़ी–चोटी पसीना एक कर रोजी कमाते हैं।
158. एक–एक नस पहचानना–(सब कुछ समझना)
मालिक और नौकर एक–दूसरे की एक–एक नस पहचानते हैं।
159. एक घाट पानी पीना–(एकता और सहनशीलता होना)
राजा कृष्णदेवराय के समय शेर और बकरी एक घाट पानी पीते थे।
160. एक पंथ दो काज–(एक कार्य के साथ दूसरा कार्य भी पूरा करना)
आगरा में मेरी परीक्षा है, इस बहाने ताजमहल भी देख लेंगे। चलो मेरे तो एक पंथ दो काज हो जाएंगे।
161. एक और एक ग्यारह होते हैं–(संघ में बड़ी शक्ति है)
भाइयों को आपस में लड़ना नहीं चाहिए, क्योंकि एक और एक ग्यारह होते हैं।
162. ऐसी–तैसी करना–(दुर्दशा करना)
“भीमा मुझे बचा लो, वरना वह मेरी ऐसी–तैसी कर देगा।” लल्लूराम ने भीमा के पास जाकर गुहार की।
163. ऐबों पर परंदा डालना–(अवगुण छुपाना)
प्राय: लोग झूठ–सच बोलकर अपने ऐबों पर परदा डाल लेते हैं।
(ओ)
164. ओखली में सिर देना–(जानबूझकर अपने को जोखिम में डालना)
“अपने से चार गुना ताकतवर व्यक्ति से उलझने का मतलब है, ओखली में सिर देना, समझे प्यारे।” राजू ने रामू को समझाते हुए कहा।
165. ओस पड़ जाना–(लज्जित होना)
ऑस्ट्रेलिया से एक दिवसीय श्रृंखला बुरी तरह हारने से भारतीय टीम पर ओस पड़ गई।
166. ओले पड़ना–(विपत्ति आना)
देश में पहले भूकम्प आया फिर अनावृष्टि हुई; अब आवृष्टि हो रही है। सच में अब तो चारों ओर से सिर पर ओले ही पड़ रहे हैं।
(औ)
167. औने–पौने करना–(जो कुछ मिले उसे उसी मूल्य पर बेच देना)
रखे रखे यह कूलर अब खराब हो गया है, इसको तुरन्त ही औने–पौने में कबाड़ी के हाथ बेच दो।
168. औंधे मुँह गिरना–(पराजित होना)
आज अखाड़े में एक पहलवान ने दूसरे पहलवान को ऐसा दाँव मारा कि वह औंधे मुँह गिर गया।
169. औंधी खोपड़ी–(मूर्खता)
वह तो औंधी खोपड़ी है उसकी बात का क्या विश्वास।
170. औकात पहचानना–(यह जानना कि किसमें कितनी सामर्थ्य है)
“हमारे अधिकारी तुम जैसे नेताओं की औकात पहचानते हैं। चलिए, बाहर निकलिए।” चपरासी ने छोटे नेताओं को ऑफिस से भगाते हुए कहा।
171. और का और हो जाना–(पहले जैसा ना रहना, बिल्कुल बदल जाना)
विमाता के घर आते ही अनिल के पिताजी और के और हो गए।
(क)
172. कंधा देना–(अर्थी को कंधे पर उठाकर अन्तिम संस्कार के लिए श्मशान ले जाना)
नगर के मेयर की अर्थी को सभी नागरिकों ने कंधा दिया।
173. कंचन बरसना–(अधिक आमदनी होना)
आजकल मुनाफाखोरों के यहाँ कंचन बरस रहा है।
174. कच्चा चिट्ठा खोलना–(सब भेद खोल देना)
घोटाले में अपना हिस्सा न पाने पर सह–अभियुक्त ने पुलिस के सामने सारे राज उगल दिए थे।
175. कच्चा खा/चबा जाना–(पूरी तरह नष्ट कर देने की धमकी देना)
जब से दोनों मित्र अशोक और नरेश की लड़ाई हुई है, तब से दोनों एक–दूसरे को ऐसे देखते हैं, जैसे कच्चा चबा जाना चाहते हों।
176. कब्र में पाँव लटकना–(वृद्ध या जर्जर हो जाना/मरने के करीब होना)
“सुनीता के ससुर की आयु काफ़ी हो गई है। अब तो उनके कब्र में पाँव लटक गए हैं।” सोनी ने अफसोस ज़ाहिर करते हुए कहा।
177. कलेजे पर पत्थर रखना–(धैर्य धारण करना)
गरीब और कमजोर श्यामा को गाँव का चौधरी सबके सामने खरी–खोटी सुना गया, जिसको उसने कलेजे पर पत्थर रखकर सुना लिया।
178. कढ़ी का सा उबाल–(मामूली जोश)
उत्सवों पर उत्साह कढ़ी का सा उबाल बनकर रह गया है।
179. कलम का धनी–(अच्छा लेखक)
प्रेमचन्द कलम के धनी थे।
180. कलेजे का टुकड़ा–(बहुत प्यारा)
सार्थक मेरे कलेजे का टुकड़ा है।
181. कलेजा धक से रह जाना–(डर जाना)
जंगल से गुजरते वक्त शेर को देखकर मेरा कलेजा धक से रह गया।
182. कलेजे पर साँप लोटना–(ईर्ष्या से कुढ़ना)
भारतवर्ष की उन्नति देखकर चीन के कलेजे पर साँप लोटता है।
183. कलेजा ठण्डा होना–(मन को शान्ति मिलना)
आशीष इन्जीनियर बन गया, माँ का कलेजा ठण्डा हो गया।
184. कली खिलना–(खुश होना)
बहुत पुराने मित्र आपस में मिले तो कली खिल गई।
185. कलेजा मुँह को आना–(दुःख होना)
घायल की चीत्कार सुनकर कलेजा मुँह को आता हैं।
186. कंधे से कंधा छिलना–(भारी भीड़ होना)
दशहरा के त्योहार पर लगे मेले में इतनी भीड़ थी कि लोगों के कंधे–से–कंधे छिल गए।
187. कान में तेल डालना–(चुप्पी साधकर बैठे रहना)
राजेश से किसी बात को कहने का क्या लाभ; वह तो कान में तेल डाले बैठा रहता है।
188. किए कराए पर पानी फेरना–(बिगाड़ देना)
औरंगजेब ने मराठों से उलझकर अपने किए कराए पर पानी फेर दिया।
189. कान भरना–(चुगली करना)
मंथरा ने कैकेई के कान भरे थे।
190. कान का कच्चा–(किसी भी बात पर विश्वास कर लेना)
जहाँ अधिकारी कान का कच्चा होता है वहाँ सीधे, सरल, ईमानदार कर्मचारियों को परेशानी होती है।
191. कच्ची गोली खेलना–अनुभवहीन होना।
तुम हमें नहीं ठग सकते, हमने भी कच्ची गोलियाँ नहीं खेली हैं।
192. काँटों पर लेटना–(बेचैन होना)
दुर्घटनाग्रस्त पुत्र जब तक घर नहीं आया, तब तक पूरा परिवार काँटों पर लोटता रहा।
193. काँटा दूर होना–(बाधा दूर होना)
राजीव के दूसरे प्रकाशन में जाने से बहुतों के रास्ते का काँटा दूर हो गया।
194. कोढ़ में खाज होना–(एक दुःख पर दूसरा दुःख होना)
मंगली बड़ी मुश्किल से गुजर बसर कर रहा था। ऊपर से भयंकर रूप से बीमार हो गया। यह तो सचमुच कोढ़ में खाज होना ही है।
195. काटने दौड़ना–(चिड़चिड़ाना/क्रोध करना)
विनीता बहुत कमजोर हो गई है। जरा–जरा सी बात पर काटने को दौड़ती है।
196. कान गरम करना–(दण्ड देना)
शरारती बच्चों के तो कान गरम करने पड़ते हैं।
197. काम तमाम करना–(मार डालना)
भीम ने दुर्योधन का काम तमाम कर दिया।
198. कीचड़ उछालना–(बदनाम करना)
नेताओं का कार्य एक–दूसरे पर कीचड़ उछालना रह गया है।
199. कट जाना–(अलग होना)
मेरी कड़वी बातें सुनकर वह मुझसे कट गया।
200. कदम उखड़ना–(भाग खड़े होना)
कारगिल में बोफोर्स तोपों की मार से शत्रु के पैर उखड़ गए।
201. कान कतरना–(अधिक होशियार हो जाना)
राम चालाकी में बड़े–बड़ों के कान कतरता है।
202. काफूर होना–(गायब हो जाना)
पेन किलर लेते ही मेरा दर्द काफूर हो गया।
203. काजल की कोठरी–(कलंक लगने का स्थान)
मेरठ में कबाड़ी बाज़ार रेड लाइट एरिया काजल की कोठरी है, उधर जाने’ से बदनामी होगी।
204. कूप मण्डूक–(सीमित ज्ञान)
झोला छाप डॉक्टरों पर अधिक विश्वास मत करो, ये तो कूप मण्डूक होते हैं।
205. किस्मत फूटना–(बुरे दिन आना)
सीता का हरण करके तो रावण की किस्मत ही फूट गई।
206. कुत्ते की दुम–(वैसे का वैसा)
वह तो कुत्ते की दुम है, कभी सीधा नहीं होगा।
207. कुएँ में ही भाँग पड़ना–(सभी लोगों की मति भ्रष्ट होना)
दंगों में तो लगता है, कुएँ में ही भाँग पड़ जाती है।
208. कौड़ी के मोल–(व्यर्थ होकर रह जाना)
अब भी समय है, आँखे खोलो अन्यथा कौड़ी के मोल बिकोगे।
209. कान में डाल देना–(सुना देना या अवगत कराना)
विनय ने लड़की के बाप के कान में डाल दिया कि वह मोटर साइकिल लेना चाहता है।
210. काला नाग–(खोटा या घातक व्यक्ति)
मुकेश से बचकर रहना, वह तो काला नाग है।
211. किरकिरा हो जाना–(विघ्न पड़ना)
कुछ लोगों द्वारा शराब पीकर हुड़दंग मचाने से पिकनिक का मजा किरकिरा हो गया।
212. काया पलट जाना–(और ही रूप हो जाना)
पिछले कुछ वर्षों में मेरठ की काया ही पलट गई है।
213. कुआँ खोदना–(हानि पहुँचाना)
जो दूसरों के लिए कुआँ खोदता है, वह स्वयं उसी में गिरता है।
214. कूच कर जाना–(चले जाना)
सेना 12 बजे कूच कर गई।
215. कौड़ी–कौड़ी पर जान देना–(कंजूस होना)
लाला रामप्रकाश कौड़ी–कौड़ी पर जान देता है, उससे मदद की आशा मत करो।
216. काले कोसों–(बहुत दूर)
लड़के की नौकरी काले कोसों दूर लगी है, उसका आना भी नहीं होता।
217. कुत्ते की मौत मरना–(बुरी मौत मरना)
कुपथ पर चलने वाले कुत्ते की मौत मरते हैं।
218. कलम तोड़ देना/कर रख देना–(प्रभावपूर्ण लेखन करना)
वायसराय ने कहा, महादेव लेखन में कलम तोड़ देते हैं।
219. कसर लगना–(हानि या क्षति होना)
सेठ जी के पूछने पर उनके मुंशी ने बताया कि इस सौदे में उनको दस लाख रुपए की कसर लग गई।
220. कमर कसना–(तैयार होना)
अरुण ने पी. सी. एस. परीक्षा के लिए कमर कस ली है।
221. कलई खुलना–(भेद खुलना या रहस्य प्रकट होना)
रामू ने जब मुन्ना की कलई खोल दी, तो उसका चेहरा फीका पड़ गया।
222. कसौटी पर कसना–(परखना)
श्याम परीक्षा की कसौटी पर खरा उतरा।
223. कहते न बनना–(वर्णन न कर पाना)
“मुझे सुधीर की बीमारी का इतना दुःख है कि मुझसे कहते नहीं बन पा रहा है।” राधा ने अपनी सहेली को बताया।
224. कागजी घोड़े दौड़ाना–(केवल लिखा–पढ़ी करते रहना)
नौकरी चाहिए तो पहले अच्छी पढ़ाई करो। यों ही घर बैठे कागजी घोड़े दौड़ाने से कोई बात नहीं बनने वाली।
225. कान पर जूं तक न रेंगना–(बिलकुल ध्यान न देना)
दुष्ट व्यक्ति को चाहे जितना समझाओ, उसके कान पर तक नहीं रेंगती।
226. कागज काले करना–(अनावश्यक लिखना)
प्रश्न का उपयुक्त उत्तर दीजिए, कागज काले करने से क्या लाभ?
227. काठ मार जाना–(स्तब्ध रह जाना)
टी. टी. के अन्दर घुसते ही बिना टिकट यात्रियों को काठ मार गया।
228. कान काटना–(पराजित करना)
रमेश अपने वाक्चातुर्य से अनेक लोगों के कान काट चुका है।
229. कान खड़े होना–(आशंका या खटका होने पर चौकन्ना होना)
आधी रात के समय कुत्तों को भौंकता देखकर, चौकीदार के कान खड़े हो गए।
230. कान खाना/खा जाना–(ज़्यादा बातें करके कष्ट पहुँचाना)
तुम्हारे मोहल्ले के बच्चे तो बड़े बदतमीज़ हैं, इतना शोरगुल करते हैं कि कान खा जाते हैं।
231. कालिख पोतना–(बदनामी करना)
“पर पुरुष से प्रेम करके उसने मुँह पर कालिख पोत ली।”
232. किताब का कीड़ा–(हर समय पढ़ाई में लगा रहने वाला)
एकाग्रता के अभाव में किताबी कीड़े भी परीक्षा में असफल हो जाते हैं।
233. किराए का टटू होना–(कम मजदूरी वाला अयोग्य व्यक्ति)
सेठ बनारसीदास का नौकर उनके लिए हमेशा किराए का टटू साबित होता है, क्योंकि वह बस उतना ही कार्य करता है, जितना कहा जाता है।
234. किला फ़तेह करना–(विजय पाना/विकट या कठिन कार्य पूरा कर डालना)
निशानेबाजी की प्रतियोगिता में विजयी होकर अरविन्द ने किला फ़तेह करने जैसी मिसाल कायम की।
235. किस्सा खड़ा करना–(कहानी गढ़ना)
स्मिथ और कविता शुरू में इसलिए कम मिला करते थे कि कहीं लोग उन्हें एक साथ देखकर कोई किस्सा न खड़ा कर दें।
236. कील काँटे से लैस–(पूरी तरह तैयार)
एवरेस्ट पर चढ़ने वाला भारतीय दल पूरी तरह से कील काँटे से लैस था।
237. कुठाराघात करना–(तीव्र या ज़ोरदार प्रहार करना)
धर्मवीर ने अपने शत्रु पर इतना ज़ोरदार कुठाराघात किया कि वह एक ही बार में बेहोश हो गया।
238. कूच का डंका बजना–(सेना का युद्ध के लिए निकलना)
सेनापति ने जिस समय कूच का डंका बजाया, तो सैनिक युद्ध स्थल की तरफ़ दौड़ गए।
239. कोल्हू का बैल होना–(निरन्तर काम में लगे रहना)
भाई साहब थोड़ा–बहुत आराम भी कर लिया करो, आप तो कोल्हू का बैल हो रहे हैं।
240. कौए उड़ाना–(बेकार के काम करना)
“जब से नौकरी छूटी है हम तो कौए उड़ाने लगे।” सुमित ने अपने एक मित्र से अफसोस जाहिर करते हुए कहा।
241. कंगाली में आटा गीला–(अभाव में भी अभाव)
रतन के पास इस समय पैसा नहीं है, मकान के टैक्स ने उसका कंगाली में आटा गीला कर दिया है।
(ख)
242. खरी–खोटी सुनाना–(बुरा–भला कहना)
परीक्षा में फेल होने पर रमेश को खरी–खोटी सुननी पड़ी।
243. ख्याली पुलाव पकाना–(कल्पनाएँ करना)
मूर्ख व्यक्ति ही सदैव ख्याली पुलाव पकाते हैं, क्योंकि वे कुछ करने से पहले ही अपने ख्यालों में खो जाते हैं।
244. खाक में मिलना–(पूर्णत: नष्ट होना)
“राजन क्यों रो रहे हो ?” उसके एक मित्र ने पूछा, तो उसने रोते हुए जवाब दिया, “हमारा माल जहाज में आ रहा था, वह समुद्र में डूबा गया, मैं तो अब खाक में मिल गया।”
245. खाक छानना–(दर–दर भटकना)
आज के युग में अच्छे–अच्छे लोग बेरोज़गारी के कारण खाक छान रहे हैं।
246. खालाजी का घर–(जहाँ मनमानी चले)
मनमानी करने की आदत छोड़ दो क्योंकि यहाँ के कुछ नियम–कानून हैं, इसे ‘खालाजी का घर’ मत बनाओ।
247. खिचड़ी पकाना–(गुप्त मन्त्रणा करना)
राजनीति में कौन किसका दोस्त और कौन किसका दुश्मन है; अन्दर ही अन्दर एक–दूसरे के विरुद्ध खिचड़ी पकती रहती है।
248. खीरा–ककड़ी समझना–(दुर्बल और तुच्छ समझना)
“रणभूमि में अपने दुश्मन को हमेशा खीरा–ककड़ी समझकर उस पर टूट पड़ना चाहिए।” कमाण्डर अपने सैनिकों को समझा रहे थे।
249. खून–पसीना एक करना–(कठिन परिश्रम करना)
हमारे किसान खून–पसीना एक करके अन्न पैदा करते हैं।
250. खेल–खेल में–(आसानी से)
आजकल लोग खेल–खेल में एम. ए. पास कर लेते हैं।
251. खेत रहना–(युद्ध में मारा जाना)
“कारगिल युद्ध में ‘बी फॉर यू’ टुकड़ी के केवल दो सैनिक ही खेत रहे थे।’ टुकड़ी के कमाण्डर ने अपने अधिकारी को बताया।
252. खोपड़ी को मान जाना–(बुद्धि का लोहा मानना)
सभी विरोधी दल श्री नरेन्द्र मोदी की खोपड़ी को मान गए।
253. खून खौलना–(गुस्सा चढ़ना)
कारगिल पर पाकिस्तान के कब्जे से भारतीय सैनिकों का खून खौल उठा।
254. खून सवार होना–(किसी को मार डालने के लिए उद्यत होना)
रमेश के सिर पर खून सवार हो गया जब उसने देखा कि कुछ लड़के उसके भाई को मार रहे थे।
255. खरा खेल फर्रुखाबादी–(निष्कपट व्यवहार)
राजीव तो सभी से खरा खेल फर्रुखाबादी खेलता है।
256. खुले हाथ–(उदारता से)
बहुत से धनी लोग खुले हाथ से दान देते हैं।
257. खून खुश्क होना–(भयभीत होना)
सेना को देख आतंकवादियों का भय से खून खुश्क हो जाता है।
258. खाल उधेड़ना–(कड़ा दण्ड देना)
यदि तुमने फिर चोरी की तो खाल उधेड़ दूंगा।
259. खून के चूंट पीना–(बुरी लगने वाली बात को सह लेना)
ससुराल में अपने घरवालों के विषय में आपत्तिजनक बातें सुनकर राधिका खून के चूंट पीकर रह गयी थी।
260. खून पीना–(तंग करना/मार डालना)
साहूकार ने तो किसानों का खून पी लिया है।
261. खून सफेद हो जाना–(दया न रह जाना)
उस पर अनेक हत्या, अपहरण जैसे अभियोग हैं, उसे जघन्य कृत्य करने में संकोच नहीं है, क्योंकि उसका खून सफेद हो गया है।
262. खूटे के बल कूदना–(कोई सहारा मिलने पर अकड़ना)
छोटे–मोटे गुण्डे किसी खूटे के बल ही कूदते हैं।
(ग)
263. गले का हार होना–(अत्यन्त प्रिय होना)
तुलसीदास द्वारा कृत रामचरितमानस जनता के गले का हार है।
264. गड़े मुर्दे उखाड़ना–(पुरानी बातों पर प्रकाश डालना)
आजकल पाकिस्तान गड़े मुर्दे उखाड़ने की कोशिश कर रहा है, मगर भारत बड़े सब्र से काम ले रहा है।
265. गिरगिट की तरह रंग बदलना–(किसी बात पर स्थिर न रहना)
राजनीति में लोग गिरगिट की तरह रंग बदलते हैं।
266. गुरु घण्टाल–(बहुत धूर्त)
आपकी लापरवाही से आपका लड़का गुरु घण्टाल हो गया है।
267. गुस्सा नाक पर रहना–(जल्दी क्रोधित हो जाना)
“जब से मीना की शादी हुई है तब से तो उसकी नाक पर ही गुस्सा रहने लगा।” मीना की सहेलियाँ आपस में बातें कर रही थीं।
268. गूलर का फूल–(असम्भव बात/अदृश्य होना)
आजकल बाजार में शुद्ध देशी घी मिलना गूलर का फूल हो गया है।
269. गाँठ बाँधना–(याद रखना)
यह मेरी बात गाँठ बाँध लो, जो परिश्रम करेगा, वही सफलता प्राप्त करेगा।
270. गुदड़ी का लाल–(असुविधाओं में उन्नत होने वाला)
डा. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम गुदड़ी के लाल थे।
271. गोबर गणेश–(बुद्ध)
आज के युग में गोबर गणेश लोगों की गुंजाइश नहीं है।
272. गाल फुलाना–(रूठना)
बच्चों को पढ़ाई करने को कहो, तो गाल फुला लेते हैं।
273. गँवार की अक्ल गर्दन में–(मूर्ख को दण्ड मिले, तभी होश में आता है।)
बहुत समझाने पर तुमने जुआ, चोरी, शराब पीने की आदत नहीं छोड़ी। जब पुलिस ने जमकर पीटा तभी तुमने यह बुरी आदतें छोड़ी। सचमुच तुमने साबित कर दिया, गँवार की अक्ल गर्दन में रहती है।
274. गीदड़–भभकी–(दिखावटी क्रोध)
हम उसे अच्छी तरह जानते हैं, हम उसकी गीदड़ भभकियों से डरने वाले नहीं हैं।
275. गागर में सागर भरना–(थोड़े में बहुत कुछ कहना)
बिहारी जी ने बिहारी सतसई में गागर में सागर भर दिया है।
276. गाल बजाना–(डींग हाँकना)।
तुम्हारे पास धेला नहीं, पता नहीं क्यों गाल बजाते फिरते हो।
277. गोल कर जाना–(गायब कर देना)
चालाक व्यक्ति सही बातों का उत्तर गोल कर जाते हैं।
278. गढ़ जीतना–(कठिन कार्य पूरा होना)
मनोज का पी. सी. एस. में चयन हो गया, समझो उसने गढ़ जीत लिया।
279. गुस्सा पी जाना–(क्रोध रोकना)
व्यापारी गुस्सा पीना भली–भाँति जानता है।
(घ)
280. घड़ों पानी पड़ना–(बहुत लज्जित होना)
कल्लू बहुत अकड़ रहा था, साहब के डाँटने पर उस पर घड़ों पानी पड़ गया।
281. घर फूंक तमाशा देखना–(अपना नुकसान करके आनन्द मनाना)
घर फूंक तमाशा देखने वालों को कष्ट उठाना पड़ता है।
282. घाट–घाट का पानी पीना–(बहुत अनुभव प्राप्त करना)
मुझसे चाल मत चलो, मैं घाट–घाट का पानी पी चुका हूँ।
283. घाव पर नमक छिड़कना–(दुःखी को और दुःखी करना)
रामू अस्वस्थ तो था ही, परीक्षा में असफलता की सूचना ने घाव पर नमक छिड़क दिया।
284. घास छीलना–(व्यर्थ समय बिताना)
हमने पढ़कर परीक्षा उत्तीर्ण की है, घास नहीं खोदी है।
285. घात लगाना–(ताक में रहना/उचित अवसर की प्रतीक्षा में रहना)
पुलिस के हटते ही उपद्रवियों ने घात लगाकर दुर्घटना करने वाली बस पर हमला कर दिया।
286. घी के दीए जलाना–(खुशियाँ मनाना)
पृथ्वीराज की मृत्यु सुनकर जयचन्द ने घी के दीए जलाए।
287. घोड़े बेचकर सोना–(निश्चिन्त होकर सोना)
परीक्षा के बाद सभी छात्र कुछ दिन घोड़े बेचकर सोते हैं।
288. घोड़े दौड़ाना–(अत्यधिक कोशिश करना)
माया ने निहाल से दुश्मनी लेकर अपने खूब घोड़े दौड़ा लिए, लेकिन वह अभी तक उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकी।
289. घी खिचड़ी होना–(खूब मिल–जुल जाना)
रिश्तेदारों को घी खिचड़ी होकर रहना चाहिए।
290. घर का न घाट का–(कहीं का नहीं)
राजीव तुम पहले अपनी पढ़ाई पूरी कर लेते तो अच्छा होता। नौकरी के चक्कर में ‘न घर का न घाट का’ वाली स्थिति होने की आशंका अधिक है।
291. घर में गंगा बहना–(अनायास लाभ प्राप्त होना)
मनोज के पास पाँच भैंसे हैं, दूध की कोई कमी नहीं, घर में गंगा बहती है।
292. घिग्घी बँधना–(डर के कारण बोल न पाना)
पुलिस के सामने चोर की घिग्घी बँध गई।
293. घोड़े पर चढ़े आना–(उतावली में होना)
जब आते हो घोड़े पर चढ़े आते हो, थोड़ा सब्र करो, सौदा मिलेगा।
294. घट में बसना–(मन में बसना)
ईश्वर तो प्रत्येक व्यक्ति के घट में बसता है।
295. घर काटे खाना–(मन न लगना/सूनापन अखरना)
भूकम्प में उसका सर्वनाश हो चुका था, अब तो अभागे को घर काटे खाता है।
296. घाव हरा करना–(भूले दुःख की याद दिलाना)
मेरे अतीत को छेडकर तमने मेरा घाव हरा कर दिया।
297. घुटने टेकना–(अपनी हार/असमर्थता स्वीकार करना)
भारतीय क्रिकेट टीम के समक्ष टेस्ट श्रृंखला में ऑस्ट्रेलिया ने घुटने टेक दिए।
298. घूरे के दिन फ़िरना–(कमज़ोर आदमी के अच्छे दिन आना)
विधवा ने मेहनत मजदूरी करके अपने बच्चों को पाला। अब बच्चे कामयाब हो गए हैं, तो अच्छा कमा रहे हैं। सच है घूरे के दिन भी फ़िरते हैं।
299. चक जमाना–(पूरी तरह से अधिकार या प्रभुत्व स्थापित होना)
चन्द्रगुप्त मौर्य ने सम्पूर्ण आर्यावर्त पर चक जमा लिया था।
300. चंगुल में फँसना–(मीठी–मीठी बातों से वश में करना)
आजकल बाबा लोग सीधे–सादे लोगों को चंगुल में फँसा लेते हैं।
301. चाँदी का जूता मारना–(रिश्वत या घूस देना)
आजकल सरकारी कार्यालयों में बिना चाँदी का जूता मारे काम नहीं हो पाता है।
302. चाँद पर थूकना–(भले व्यक्ति पर लांछन लगाना)
महात्मा गाँधी की बुराई करना चाँद पर थूकना है।
303. चित्त पर चढ़ना–(सदा स्मरण रहना)
अनुज का दिमाग बहुत तेज है, उसके चित्त पर जो बात चढ़ जाती है, फिर वह उसे कभी नहीं भूलता।
304. चादर से बाहर पाँव पसारना–(सीमा के बाहर जाना)
चादर से बाहर पैर पसारने वाले लोग कष्ट उठाते हैं।
305. चुल्लू भर पानी में डूब मरना–(शर्म के मारे मुँह न दिखाना)
आप इतने सभ्य परिवार के होते हुए भी दुष्कर्म करते हैं, आपको चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए।
306. चूलें ढीली करना–(अधिक परिश्रम के कारण बहुत थकावट होना)
इस लेखन कार्य ने तो मेरी चूलें ही ढीली कर दीं।
307. चुटिया हाथ में होना–(संचालन–सूत्र हाथ में होना, पूर्णतः नियन्त्रण में होना)
“भागकर कहाँ जाएगा, उसकी चुटिया हमारे हाथ में है।” शत्रु के घर में उसे न पाकर चौधरी रणधीर ने उसकी पत्नी के सामने झल्लाकर कहा।
308. चेरी बनाना/बना लेना–(दास या गुलाम बना लेना)
“हमारे गाँव का प्रधान इतना शातिर दिमाग का है कि वह सभी जरूरतमन्द लोगों को चेरी बना लेता है।
309. चूना लगाना–(धोखा देना)
प्राय: विश्वासपात्र लोग ही चूना लगाते हैं।
310. चारपाई से लगना–(बीमारी से उठ न पाना)
ध्रुव की दुर्घटना क्या हुई, वह तो चारपाई से ही लग गया।
311. चण्डाल चौकड़ी–(निकम्मे बदमाश लोग)
राजनीति में प्राय: चण्डाल चौकड़ी नेता को घेरे रहती है।
312. चाँद खुजलाना–(पिटने की इच्छा होना)
विनय तुम सुबह से शरारत कर रहे हो, लगता है तुम्हारी चाँद खुजला रही है।
313. चार दिन की चाँदनी–(कम दिनों का सुख)
दीपावली में खूब बिक्री हो रही है, दुकानदारों की तो चार दिन की चाँदनी है।
314. चचा बनाकर छोड़ना–(खूब मरम्मत करना)
ग्रामीणों ने चोर को चचा बनाकर छोड़ा।
315. चल बसना–(मर जाना)
लम्बी बीमारी के पश्चात् बाबा जी चल बसे !
316. चींटी के पर निकलना–(मरने के दिन निकट आना)
आजकल संजीव पुलिस से भिड़ने लगा है, लगता है चींटी के पर निकल आए हैं।
317. चोली दामन का साथ–(अत्यन्त निकटता)
पुलिस और पत्रकारों का तो चोली दामन का साथ है।
318. चैन की बंशी बजाना–(मौज़ करना)
जो लोग कम ही उम्र में काफी धन अर्जित कर लेते हैं, वे बाकी की ज़िन्दगी चैन की बंशी बजा सकते हैं।
319. चिराग तले अँधेरा–(अपना दोष स्वयं दिखाई नहीं देता)
शाकाहार का उपदेश देते हो और घर में मांसाहारी भोजन बनता है, सच है चिराग तले अँधेरा।
320. चोर की दाढ़ी में तिनका–(अपराधी सदैव सशंक रहता है)
अपराधी प्रवृत्ति वाले व्यक्ति के मन में हमेशा एक खटका बना रहता है मानो “चोर की दाढ़ी में तिनका’ हो।
321. चार चाँद लगना–(शोभा बढ़ जाना)
किसी पार्टी में ऐश्वर्य राय के पहुँच जाने से पार्टी में चार चाँद लग जाते हैं।
322. चेहरे पर हवाइयाँ उड़ना–(आश्चर्य)
रिश्वत लेते पकड़े जाने पर सिपाही के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगीं।
323. चूड़ियाँ पहनना–(कायर होना)।
चूड़ियाँ पहनकर बैठने से काम नहीं चलेगा, कुछ बदलने के लिए संघर्ष करना पड़ेगा।
(छ)
324. छक्के छूटना–(हिम्मत हारना)
आन्दोलनकारियों ने अंग्रेज़ों के छक्के छुड़ा दिए।
325. छप्पर फाड़कर देना–(अनायास ही धन की प्राप्ति)
ईश्वर किसी–किसी को छप्पर फाड़कर देता है।
326. छाती पर मूंग दलना–(निरन्तर दुःख देना)
वह कई वर्षों से घर में निठल्ला बैठकर अपने पिताजी की छाती पर – मूंग दल रहा है।
327. छाती भर आना–(दिल पसीजना)
दुर्घटनाग्रस्त सोहन को मृत्यु–शैय्या पर तड़पते देखकर उसके मित्र चिंटू की छाती भर आई।
328. छाँह न छूने देना–(पास तक न आने देना)
मैं बुरे आदमी को अपनी छाँह तक छूने नहीं देता।
329. छठी का दूध याद दिलाना–(संकट में डाल देना)
भारतीयों ने, पाकिस्तानी सेना को छठी का दूध याद दिला दिया।
330. छूमन्तर होना–(गायब हो जाना)
मेरा पर्स यहीं रखा था, पता नहीं कहाँ छूमन्तर हो गया।
331. छक्के छुड़ाना–(हिम्मत पस्त करना)
भारतीय खिलाड़ियों ने विपक्षी टीम के छक्के छुड़ा दिए।
332. छक्का –पंजा भूलना–(कुछ भी याद न रहना)
अधिकारी को देखते ही कर्मचारी छक्के–पंजे भूल गए।
333. छाती ठोंकना–(साहस दिखाना)
अन्याय के खिलाफ़ छाती ठोंककर खड़े होने वाले कितने लोग होते हैं।
(ज)
334. जान के लाले पड़ना–(जान पर संकट आ जाना)
नौकरी छूटने से उसके तो जान के लाले पड़ गए।
335. जबान कैंची की तरह चलना–(बढ़–चढ़कर तीखी बातें करना)
कर्कशा की जबान कैंची की तरह चलती है।
336. जबान में लगाम न होना–(बिना सोचे समझे बिना लिहाज के बातें करना)
मनोहर इतना असभ्य है कि उसकी जबान में लगाम ही नहीं है।
337. जलती आग में घी डालना–(क्रोध भड़काना)
धनुष टूटा देखकर परशुराम क्रोधित थे ही कि लक्ष्मण की बातों ने जलती आग में घी डालने का काम कर दिया।
338. जड़ जमना–(अच्छी तरह प्रतिष्ठित या प्रस्थापित होना)
अब तो नेता ने पार्टी में अपनी जड़ें जमा ली हैं। पार्टी उन्हें इस बार उच्च पद पर नियुक्त करेगी।
339. जान में जान आना–(चैन मिलना)
खोया हुआ बेटा मिला तो माँ की जान में जान आई।
340. जहर का चूँट पीना–(कड़ी और कड़वी बात सुनकर भी चुप रहना)
निर्बल व्यक्ति शक्तिशाली आदमी की हर कड़वी बात को ज़हर के घूट की तरह पी जाता है।
341. जिगरी दोस्त–(घनिष्ठ मित्र)
राम और श्याम जिगरी दोस्त हैं।
342. ज़िन्दगी के दिन पूरे करना–(कठिनाई में समय बिताना)।
आज के युग में किसान और मज़दूर अपनी ज़िन्दगी के दिन पूरे कर रहे हैं।
343. जीती मक्खी निगलना–(जान बूझकर अन्याय सहना)
आप जैसे समझदार को जीती मक्खी निगलना शोभा नहीं देता।
344. जी चुराना–(किसी काम या परिश्रम से बचने की चेष्टा करना)
पढ़ने–लिखने से मैंने एक दिन के लिए भी कभी जी नहीं चुराया।
345. ज़मीन पर पैर न रखना–(अकड़कर चलना)
जब से राजेश नायब तहसीलदार हुआ, वह ज़मीन पर पैर नहीं रखता।
346. जोड़–तोड़ करना–(उपाय करना)
अब तो जोड़–तोड़ की राजनीति करने वालों की कमी नहीं है।
347. जली–कटी सुनाना–(बुरा–भला कहना)
रमेश का कटाक्ष सुनकर सुरेश ने उसे खूब जली–कटी सुनाई थी।
348. जूतियाँ चाटना–(चापलूसी करना)।
स्वाभिमानी व्यक्ति किसी की जूतियाँ नहीं चाटता।
349. जान हथेली पर रखना–(प्राणों की परवाह न करना)
सेना के जवान जान हथेली पर रखकर देश की रक्षा करते हैं।
350. जितने मुँह उतनी बातें–(एक ही विषय पर अनेक मत होना)
ताजमहल के सौन्दर्य के विषय में जितनी मुँह उतनी बातें हैं।
351. जी खट्टा होना–(विरत होना)
पुत्र के व्यवहार से पिता का जी खट्टा हो गया।
352. जामे से बाहर होना–(अति क्रोधित होना)
राजेश को यदि सरकण्डा कहो तो वह जामे से बाहर हो जाता है।
353. ज़हर की पुड़िया–(मुसीबत की जड़)
उसकी बातों पर मत जाना, वह तो ज़हर की पुड़िया है।
354. जोंक होकर लिपटना–(बुरी तरह पीछे पड़ना)
किसान के ऊपर साहूकार का ऋण जोंक की तरह लिपट जाता है।
355. जी भर आना–(दुःखी होना)
संजय की मृत्यु का समाचार सुनकर मेरा जी भर आया।
356. जहर उगलना–(कड़वी बातें करना)
तुम जहर उगलकर किसी से अपना कार्य नहीं करा सकते।
357. झण्डा गड़ना–(अधिकार जमाना)
दुनिया में उन्हीं लोगों के झण्डे गड़े हैं, जो अपने देश पर कुर्बान होते हैं।
358. झकझोर देना–(हिला देना/पूर्णत: त्रस्त कर देना)
पिता की मृत्यु, ने उसे बुरी तरह झकझोर दिया।
359. झाँव–झाँव होना–(जोरों से कहा–सुनी होना)
इन दो गुटों के बीच झाँव–झाँव होती रहती है।
360. झाडू फिरना/फिर जाना–(नष्ट करना)
वार्षिक परीक्षा के दौरान मार्ग–दुर्घटना में घायल होने के कारण राकेश की सारी मेहनत पर झाडू फिर गयी।
361. झुरमुट मारना–(बहुत से लोगों का घेरा बनाकर खड़े होना)
युद्ध में सैनिक जगह–जगह झुरमुट मारकर लड़ रहे हैं।
362. झूमने लगना–(आनन्द–विभोर हो जाना)
ऋद्धि के भजनों को सुनकर सभागार में उपस्थित सभी लोग झूम उठे।
(ट)
363. टिप्पस लगाना–(सिफारिश करवाना)
आजकल मामूली काम के लिए मन्त्रियों से टिप्पस लगवाए जाते हैं।
364. टूट पड़ना–(आक्रमण करना)
भारत की सेना पाकिस्तानी सेना पर टूट पड़ी और उसका विनाश कर दिया।
365. टेढ़ी खीर–(कठिन काम या बात)
हिमालय के शिखर पर चढ़ना टेढ़ी खीर है।
366. टका–सा जवाब देना–(साफ़ इनकार कर देना)
अटल जी ने अमेरिका को टका–सा जवाब दे दिया कि भारतीय सेना इराक नहीं जाएगी।
367. टाट उलटना–(दिवाला निकलना)
चाँदी की कीमत में एकाएक गिरावट आने से उसे भारी घाटा उठाना पड़ा और अन्तत: उसकी टाट ही उलट गई।
368. टोपी उछालना–(बेइज्जती करना)
तुमने अपने पिता की टोपी उछालने में कोई कमी नहीं की है।
369. टाँग अड़ाना–(व्यवधान डालना)
बहुत से लोगों को दूसरों के काम में टाँग अड़ाने की बुरी आदत होती है।
370. टाँय–टाँय फिस होना–(काम बिगड़ जाना)
व्यावहारिक बुद्धि के अभाव से मुहम्मद तुगलक की सारी योजनाएँ टाँय–टाँय फिस हो गईं।
371. ठण्डे कलेजे से–(शान्त होकर/शान्त भाव से)
जनाब एक बार ठण्डे कलेजे से फिर सोच लीजिएगा, हमारी बात बन सकती
372. दूंठ होना–(निष्प्राण होना).
अब तो उसका समस्त परिवार दूंठ होने पर आया है।
373. ठन–ठन गोपाल–(पैसा पास न होना)
अधिक खर्च करने वालों की हालत यह होती है कि महीने के अन्त में ठन–ठन गोपाल हो जाते हैं।
374. ठौर–ठिकाने लगना–(आश्रय मिलना)
अजनबी को किसी भी शहर में जल्दी से ठौर–ठिकाना नहीं मिलता।
375. ठीकरा फोड़ना–(दोष लगाना)
राजनीतिक दल नाकामी का ठीकरा एक–दूसरे के सिर पर फोड़ते रहते हैं।
(ड)
376. डंक मारना–(घोर कष्ट देना)
वह मित्र सच्चा मित्र कभी नहीं हो सकता, जो अपने मित्र को डंक मारता हो।
377. डंड पेलना–(निश्चिन्ततापूर्वक जीवनयापन करना)
बाप लाखों की सम्पत्ति छोड़ गए हैं, बेटा राम डंड पेल रहे हैं।
378. डाली देना–(अधिकारियों को प्रसन्न रखने के लिए कुछ भेंट देना)
घुसपैठिए अधिकारियों को डाली देकर ही सीमा पार कर सकते हैं।
379. डींग मारना–(अनावश्यक बातें कहना)
काम करने वाला व्यक्ति डींग नहीं मारता।
380. डूबना–उतराना–(संशय में रहना)
अपने कमरे में अकेली पड़ी मानसी रात–भर गहरे सोच–विचार में डूबती–उतराती रही।
381. डंका बजना–(ख्याति होना)
सचिन तेन्दुलकर का डंका दुनिया में बज रहा है
382. डेढ़ चावल की खिचड़ी पकाना–(बहुमत से अलग रहना)
राजेश सदा अपनी डेढ़ चावल की खिचड़ी पकाता है।
383. डाढ़ी पेट में होना–(छोटी उम्र में ही बहुत ज्ञान होना)
आवेश के पेट में तो डाढ़ी है।
384. डेढ़ बीता कलेजा करना–(अत्यधिक साहस दिखाना)
सेना के जवान युद्ध क्षेत्र में डेढ़ बीता कलेजा करके जाते हैं।
385. ढंग पर चढ़ना–(प्रभाव या वश में करना)
प्रभात ने सुरेश को ऐसे चक्रव्यूह में फँसाया कि उसे ढंग पर चढ़ा दिया।
386. ढोंग रचना–(किसी को मूर्ख बनाने के लिए पाखण्ड करना)।
चतुर लोग अपना काम निकालने के लिए कई प्रकार के ढोंग रच लेते हैं।
387. ढिंढोरा पीटना–(प्रचार करना)
तुम्हें कोई बात बताना ठीक नहीं, तुम तो उसका ढिंढोरा पीट दोगे।
388. ढाई दिन की बादशाहत–(थोड़े समय के लिए पूर्ण अधिकार
मिलना) जहाँदारशाह की तो ढाई दिन की बादशाहत रही थी।
(त)
389. तंग आ जाना–(परेशान हो जाना)
उनकी रोज़–रोज़ की किलकिल से तो मैं तंग आ गया हूँ।
390. तकदीर का खेल–(भाग्य में लिखी हई बात)
अमीरी–गरीबी, यह सब तकदीर का खेल है।
391. तबलची होना–(सहायक के रूप में होना)
चाटुकार और स्वार्थी कर्मचारी अपने अधिकारी के तबलची बनकर रहते
392. ताक पर रखना–(व्यर्थ समझकर दूर हटाना)
परीक्षा अब समीप है और तुमने अपनी सारी पढ़ाई ताक पर रख दी।
393. तीसमार खाँ बनना–(अपने को शूरवीर समझ बैठना)
गोपी अपने को तीसमार खाँ समझता था और जब गाँव में चोर आए, तो वह घर से बाहर नहीं निकला।
394. तिल का ताड़ बनाना–(किसी बात को बढ़ा–चढ़ाकर कहना)
सुरेश हमेशा हर बात का तिल का ताड़ बनाया करता है।
395. तार–तार होना–(पूरी तरह फट जाना)
तुम्हारी कमीज तार–तार हो गई है, अब तो इसे पहनना छोड़ दो।
396. तेली का बैल–(हर समय काम में लगे रहना)
अनिल तो तेली के बैल की तरह काम करता रहता है।
397. तुर्की–ब–तुर्की बोलना–(जैसे को तैसा)
मैं आपसे शिष्टतापूर्वक बोल रहा हूँ, यदि आप और गलत बोले तो मैं तुर्की– ब–तुर्की बोलूँगा।
398. तीन–तेरह करना–(पृथक्ता की बात करना)
पाकिस्तान में ही अलगाववादी नेता पाकिस्तान को तीन तेरह करने की बात करते हैं।
399. तीन–पाँच करना–(टाल–मटोल करना)
आप मुझसे तीन–पाँच मत कीजिए, जाकर प्रधानाचार्य से मिलिए।
400. तालू से जीभ न लगना–(बोलते रहना)
शीला की तो तालू से जीभ ही नहीं लगती हर समय बोलती ही रहती है।
401. तूती बोलना–(रौब जमाना)
मायावती की बसपा में तूती बोलती है।
402. तेल की कचौड़ियों पर गवाही देना–(सस्ते में काम करना)
सुनील ने लालाजी से कहा कि आप अधिक पैसे भी नहीं देना चाहते और खरा काम चाहते हैं। भला तेल की कचौड़ियों पर कौन गवाही देगा।
403. तालू में दाँत जमना–(विपत्ति या बुरा समय आना)
पहले मुकेश की नौकरी छूट गई फिर बीबी–बच्चे बीमार हो गए। लगता है उनके तालू में दाँत जम गए हैं।
404. तेवर चढ़ना–(गुस्सा होना)
अपने पिताजी का अपमान होते देखकर राजीव के तेवर चढ़ गए थे।
405. तारे गिनना–(रात को नींद न आना)
रघु, राजीव की प्रतीक्षा में रात–भर तारे गिनता रहा।
406. तलवे चाटना–(खुशामद करना)
चुनाव की घोषणा होते ही चन्दा पाने के लिए राजनीतिक दल के नेता पूँजीपतियों के तलवे चाटने लगते हैं।
(थ)
407. थाली का बैंगन–(ढुलमुल विचारों वाला/सिद्धान्तहीन व्यक्ति)
सूरज थाली का बैंगन है, उससे हमेशा बचकर रहना।
408. थुड़ी–थुड़ी होना–(बदनामी होना)
शेरसिंह के दुराचार के कारण पूरे गाँव में उसकी थुड़ी–थुड़ी हो गई।
409. थैली का मुँह खोलना–(खुले दिल से व्यय करना)
बेटी के विवाह में सुलेखा ने थैली का मुँह खोल दिया था।
410. थूककर चाटना–(कही हुई बात से मुकर जाना)।
कल्याण सिंह ने थूककर चाट लिया और भाजपा में पुनः प्रवेश कर लिया।
411. थाह लेना–(किसी गुप्त बात का भेद जानना)
शर्मा जी की थाह लेना आसान नहीं है, वे बहुत गहरे इनसान हैं।
(द)
412. दंग रह जाना–(अत्यधिक चकित रह जाना)
अन्त में अर्जुन और कर्ण का भीषण युद्ध हुआ, दोनों का युद्ध देखकर सारे। लोग दंग रह गए।
413. दाँतों तले उँगली दबाना–(आश्चर्यचकित होना)
शिवाजी की वीरता देखकर औरंगजेब ने दाँतों तले उँगली दबा ली।
414. दाल में काला होना–(संदेह होना)
राम और श्याम को एकान्त में देखकर मैंने समझ लिया कि दाल में। काला है।
415. दुम दबाकर भागना/भाग जाना/भाग खड़े होना–(चुपचाप भाग
जाना) घर में तीसमार खाँ बनता है और बाहर कमज़ोर को देखकर भी दुम दबाकर भाग जाता है।
416. दूध का दूध और पानी का पानी–(पूर्ण न्याय करना)
आजकल न्यायालयों में दूध का दूध और पानी का पानी नहीं हो पाता है।
417. दो नावों पर सवार होना–(दुविधापूर्ण स्थिति में होना या खतरे में
डालना) श्यामलाल नौकरी करने के साथ–साथ यूनिवर्सिटी की परीक्षा की तैयारी करते हुए सोच रहा था कि क्या उसके लिए दो नावों पर सवारी करना उचित रहेगा?
418. द्वार झाँकना–(दान, भिक्षा आदि के लिए किसी के दरवाजे पर जाना)
आप जैसे वेदपाठी ब्राह्मण, गुरु–दक्षिणा के लिए हमारे पास आएँ और यहाँ से निराश लौटकर किसी का द्वार झाँके, यह नहीं हो सकता।
419. दिन–रात एक करना–(प्रयास करते रहना)
श्यामलाल ने अपने मित्र गोपी को उन्नति करते देख कह ही दिया–“अब तो तुमने दिन–रात एक कर रखे हैं, तभी तो उन्नति कर रहे हो।”
420. दिमाग दिखाना–(अहम् भाव प्रदर्शित करना)
“क्या बताऊँ दोस्त, लड़के वाले तो आजकल बड़े दिमाग दिखा रहे हैं।” अपने एक मित्र के पूछने पर दिलावर ने बताया।
421. दिन दूनी रात चौगुनी होना–(बहुत शीघ्र उन्नति करना)
अरिहन्त प्रकाशन दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति कर रहा है।
422. दूध का धुला होना–(बहुत पवित्र होना)
तुम भी दूध के धुले नहीं हो, जो मुझ पर दोष लगा रहे हो।
423. दाँत काटी रोटी–(घनिष्ठ मित्रता)
किसी समय मेरी उससे दाँत काटी रोटी थी।
424. दाना पानी उठना–(जगह छोड़ना)
विकास की तबदीली हो गई है, यहाँ से उसका दाना पानी उठ गया है।
425. दिल का गुबार निकालना–(मन की बात कह देना)
अजय ने सुनील को बुरा–भला कहा जिससे उसके दिल का गुबार निकल
गया।
426. दिन पहाड़ होना–(कार्य के अभाव में समय गुजारना)
जून के महीने में दिन पहाड़ हो जाते हैं।
427. दाहिना हाथ–(बहुत बड़ा सहायक होना)
अमर सिंह मुलायम सिंह का दाहिना हाथ था।
428. दमड़ी के तीन होना–(सस्ते होना)
अब वह जमाना गया जब दमड़ी के तीन सन्तरे मिलते थे।
429. दिन में तारे दिखाई देना–(बुद्धि चकराने लगना)
यदि ज़्यादा बोले तो ऐसा थप्पड़ मारूंगा दिन में तारे दिखाई देने लगेंगे।
430. दम भरना–(भरोसा करना)
अब तो तुम मुसीबत में फँसे हो, कहाँ है वे तुम्हारे सभी दोस्त, जिनका तुम दम भरते थे?
431. दिमाग आसमान पर चढ़ना–(बहुत घमण्ड होना)
कभी–कभी उसका दिमाग आसमान पर चढ़ जाता है।
432. दर–दर की ठोकरें खाना–(बहुत कष्ट उठाना)
पूँजीवादी व्यवस्था में करोड़ों बेरोज़गार दर–दर की ठोकरें खा रहे हैं।
433. दाँत खट्टे करना–(पराजित करना)
भारत ने आस्ट्रेलिया क्रिकेट टीम के टेस्ट सीरीज में दाँत खट्टे कर दिए।
434. दिल भर आना–(शोकाकुल होना या भावुक होना)
संजय की मृत्यु का समाचार सुनकर दिल भर आया
435. दाँत पीसकर रह जाना–(क्रोध रोक लेना)
चीन के खिलाफ अमेरिका दाँत पीसकर रह जाता है।
436. दिनों का फेर होना–(भाग्य का चक्कर)
पहले गोयल साहब से कोई सीधे मुँह बात नहीं करता था, आज पैसा आ गया तो हर कोई उनके आगे–पीछे घूम रहा है। यही तो दिनों का फेर है।
437. दिल में फफोले पड़ना–(अत्यन्त कष्ट होना)
रमेश के पुन: अनुत्तीर्ण होने पर उसके दिल में फफोले पड़ गए हैं।
438. दाल जूतियों में बँटना–(अनबन होना)
पड़ोसी से पहले जैन साहब की घुटती थी, बच्चों में लड़ाई हो गई, तो अब दाल जूतियों में बँटने लगी।
439. देवता कूच कर जाना–(घबरा जाना)
पुलिस की पूछताछ से पहले ही नौकर के देवता कूच कर गए।
440. दो दिन का मेहमान –(जल्दी मरने वाला)
उसकी दादी बहुत बीमार हैं, लगता है बस दो दिन की मेहमान हैं।
441. दमड़ी के लिए चमड़ी उधेड़ना–(छोटी–सी बात के लिए अधिक माँग
करना या दण्ड देना) मात्र एक कप का प्याला टूट गया तो तुमने उसे बुरी तरह मारा, इस पर पड़ोसी ने कहा तुम्हें दमड़ी के लिए चमड़ी उधेड़ना शोभा नहीं देता।
442. दुम दबाकर भागना–(डरकर कुत्ते की भाँति भागना)
पुलिस के आने पर चोर दुम दबाकर भाग गए।
443. दूध के दाँत न टूटना–(ज्ञान व अनुभव न होना)
अभी तो तुम्हारे दूध के दाँत भी नहीं टूटे हैं और चले हो बड़े–बड़े काम करने।
(ध)
444. धोती ढीली होना–(घबरा जाना)
जंगल में भालू देखते ही उसकी धोती ढीली हो गई।
445. धौंस जमाना–(रौब दिखाना/आतंक जमाना)
गाँव के एक अमीर और रौबदार आदमी को, गाँव के ही एक खुशहाल (खाते–पीते) व्यक्ति ने अपनी दुकान पर आतंक जमाते देखा तो कहा “चौधरी साहब आप अपना रौब गाँव वालों को ही दिखाया करो, मेरी दुकान पर आकर किसी प्रकार की धौंस न जमाया करो।”
446. ध्यान टूटना–(एकाग्रता भंग होना)
गुरु जी एकान्त कमरे में बैठे ध्यानमग्न थे। छोटे बालक के कमरे में प्रवेश करने तथा वहाँ की वस्तुओं को उठा–उठाकर इधर–उधर करने की खट–पट की आवाज़ से उनका ध्यान टूट गया।
447. ध्यान रखना–(देखभाल करना/सावधान रहना)
“प्रीति जरा हमारे बच्चों का ध्यान रखना। मैं मन्दिर जा रही हूँ।” अनामिका ने अपनी पड़ोसन को सजग करते हुए कहा।
448. धज्जियाँ उड़ाना–(दुर्गति)
सचिन ने शोएब अख्तर की गेंदबाजी की धज्जियाँ उड़ा दीं।
449. धूप में बाल सफ़ेद होना–(अनुभवहीन होना)
मैं तुम्हारा मुकदमा जीतकर रहूँगा, ये बाल कोई धूप में सफेद नहीं किए हैं।
(न)
450. नंगा कर देना–(वास्तविकता प्रकट करना/असलियत खोलना)
रघु और दौलतराम का झगड़ा होने पर उन्होंने सरेआम एक–दूसरे को नंगा कर दिया।
451. नंगे हाथ–(खाली हाथ)
“मनुष्य संसार में नंगे हाथ आता है और नंगे हाथ ही जाता है। इसलिए उसे चाहिए कि वह किसी के साथ बेईमानी या दुराचार न करे।” अपने प्रवचनों में गुरु महाराज लोगों को उपदेश दे रहे थे।
452. नमक–मिर्च लगाना–(बढ़ा–चढ़ाकर कहना)
चुगलखोर व्यक्ति नमक–मिर्च लगाकर ही कहते हैं।
453. नुक्ता–चीनी करना–(छिद्रान्वेषण करना)
“तुमसे कितनी बार कह चुका हूँ कि तुम मेरे काम में नुक्ता–चीनी मत किया करो।”
454. निन्यानवे के फेर में पड़ना–(धन संग्रह की चिन्ता में पड़ना)
व्यापारी तो हमेशा निन्यानवे के फेर में लगे रहते हैं।
455. नौ दो ग्यारह होना–(भाग जाना)
चोर मकान में चोरी कर नौ दो ग्यारह हो गए।
456. नाच नचाना–(मनचाही करना)
रमेश और सुरेश दोनों मिलकर राकेश को नाच नचाते हैं।
457. नाक भौं चढ़ाना–(असन्तोष प्रकट करना)
सोनिया गाँधी के गठबन्धन पर भाजपा नाक भौं चढ़ा रही है।
458. नीला–पीला होना–(गुस्सा होना)
मालिक तो मज़दूरों पर प्राय: नीला–पीला होते रहते हैं।
459. नाको–चने चबाना–(बहुत तंग होना)
लक्ष्मीबाई ने अंग्रेज़ों को नाको चने चबवा दिए।
460. नीचा दिखाना–(अपमानित करना)
चुनाव से पूर्व भाजपा और कांग्रेस एक–दूसरे को नीचा दिखाने में कोई कमी नहीं छोड़ रहे हैं।
461. नाक में नकेल डालना–(वश में करना)
प्रतिपक्ष ने अपनी मांगों को लेकर केन्द्र सरकार की नाक में नकेल डाल रखी है।
462. नमक अदा करना–(उपकारों का बदला चुकाना)
जयसिंह ने शिवाजी को हराकर औरंगजेब का नमक अदा कर दिया।
463. नाक कटना–(इज्जत चली जाना)
आज तुमने बदतमीज़ी करके सबकी नाक कटवा दी।
464. नाक रगड़ना–(बहुत विनती करना)
सरकारी कर्मचारी रिश्वत वाली सीट प्राप्ति के लिए अधिकारियों के आगे नाक रगड़ते हैं।
465. नकेल हाथ में होना–(वश में होना)
उत्तर भारत में साधारणतया घर की नकेल पुरुष के हाथों में होती है।
466. नहले पर दहला मारना–(करारा जवाब देना)
467. नानी याद आना–(मुसीबत का एहसास होना)
इन्जीनियरिंग की पढ़ाई करते–करते तुम्हें नानी याद आ गई।
468. नाक का बाल होना–(अत्यन्त प्रिय होना)
मनोज तो नेता जी की नाक का बाल है।
469. नस–नस पहचानना–(किसी के अवांछित व्यवहार को विस्तार से जानना)
मालिक और मज़दूर एक–दूसरे की नस–नस को पहचानते हैं।
470. नाव में धूल उड़ाना–(व्यर्थ बदनाम करना)
मेरे विषय में सब लोग जानते हैं, तुम बेकार में नाव में धूल उड़ाते हो।
(प)
471. पत्थर की लकीर होना–(स्थिर होना या दृढ़ विश्वास होना)
मेरी बात पत्थर की लकीर समझो।
472. पहाड़ टूट पड़ना–(मुसीबत आना)
वर्षा में मकान गिरने की सूचना पाकर राम पर पहाड़ टूट पड़ा।
473. पाँचों उँगली घी में होना–(पूर्ण लाभ में होना)
कृपाशंकर ने जब से गल्ले का व्यापार किया, तब से उसकी पाँचों उँगली घी में हैं।
474. पानी उतर जाना–(लज्जित हो जाना)
लड़के का कुकृत्य सुनकर सेठ जी का पानी उतर गया।
475. पेट में दाढ़ी होना–(चालाक होना)
मुल्ला जी से कोई लाभ नहीं उठा पाएगा, उनके तो पेट में दाढ़ी है।
476. पेट का पानी न पचना–(अत्यन्त अधीर होना)
“बिना गाली दिए तेरे पेट का पानी नहीं पचता क्या?” बार–बार गाली देते देखकर सोहन ने अपने एक मित्र को टोका।
477. पीठ में छुरा भोंकना–(विश्वासघात करना)
जयन्ती लाल ने अपनी पहचान के शराबी, जुआरी लड़के से श्यामलाल की। बेटी की शादी कराकर, दोस्ती के नाम पर श्यामलाल की पीठ में छुरा भोंकने का–सा कार्य कर दिया।
478. पैरों पर खड़ा होना–(स्वावलम्बी होना)
मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि जब तक अपने पैरों पर खड़ा नहीं होऊँगा शादी नहीं करूंगा।
479. पानी–पानी होना–(शर्मसार होना)
जब रामपाल की करतूतों की पोल खुली तो वह पानी–पानी हो गया।
480. पगड़ी रखना–(इज़्ज़त रखना)
लाला जी ने फूलचन्द की लड़की की शादी में रुपए देकर उनकी पगड़ी रख ली।
481. पेट में चूहे दौड़ना–(भूख लगना)
जल्दी से खाना दे दो, पेट में चूहे दौड़ रहे हैं।
482. पाँव उखड़ जाना–(पराजित होकर भाग जाना)
हैदर अली की सेना के समक्ष अंग्रेज़ों के पैर उखड़ गए।
483. पत्थर पर दूब जमना–(अप्रत्याशित घटित होना)
मैंने इण्टर में हिन्दी में विशेष योग्यता लाकर पत्थर पर दूब जमा दी।
484. पापड़ बेलना–(विषम परिस्थितियों से गुज़रना)
सरकारी तो क्या प्राइवेट नौकरी पाने के लिए भी पापड़ बेलने पड़ रहे हैं।
485. पेट का हल्का–(बात को अपने तक छिपा न सकने वाला)
नीरज से कोई रहस्य मत बताना, वह तो पेट का हल्का है।
486. पटरी बैठना–(अच्छे सम्बन्ध होना)
अजीब इनसान हो, तुम्हारी पटरी किसी से नहीं बैठती।
487. पीठ पर हाथ रखना–(पक्ष मज़बूत बनाना)
तुम्हारी पीठ पर विधायक जी का हाथ है, इसीलिए इतराते फ़िरते हो।
488. पाँव तले जमीन खिसकना–(घबरा जाना)
तुम्हारे न आने से मेरे तो पाँव तले ज़मीन खिसक गई थी।
489. पाँव फूंक–फूंक कर रखना–(सतर्कता से कार्य करना)
प्राइवेट नौकरी कर रहे हो, ज़रा पाँव फूंक–फूंक कर रखो।
490. पीठ दिखाना–(पराजय स्वीकार करना)
भारतीय सैनिक युद्ध में पीठ नहीं दिखाते।
491. पानी में आग लगाना–(असम्भव कार्य करना)
सम्राट अशोक ने लगभग पूरे भारत पर शासन किया, वह पानी में आग लगाने की क्षमता रखता था।
492. पंख न मारना–(पहुँच न होना)
अयोध्या के चारों ओर ऐसी सुरक्षा व्यवस्था थी कि परिन्दा भी पर न मार सके।
(फ)
493. फ़रिश्ता निकलना–(बहुत भला और परोपकारी सिद्ध होना)
“जिसको तुम अपना दुश्मन समझती थी, उसने तुम्हारे बेटे की नौकरी लगवा दी। देखा, वह बेचारा कितना बड़ा फरिश्ता निकला हमारे लिए।”
494. फिकरा कसना–(व्यंग्य करना)
“तुम तो हमेशा ही मुझ पर फिकरे कसती रहती हो, दीदी को कुछ नहीं कहती।”
495. फीका लगना–(घटकर या हल्का प्रतीत होना)
“तुम्हारी बात में वजन तो था, लेकिन रामशरण की बात के सामने तुम्हारी बातफीकी पड़ गई।
496. फूटी आँखों न भाना–(बिल्कुल अच्छा न लगना)
पृथ्वीराज जयचन्द को फूटी आँख भी नहीं भाते थे।
497. फूला न समाना–(बहुत प्रसन्न होना)
पुत्र की उन्नति देखकर माता–पिता फूले नहीं समाते हैं।
498. फूल सूंघकर रह जाना–(अत्यन्त थोड़ा भोजन करना)
गोयल साहब इतना कम खाते हैं, मानो फूल सूंघकर रह जाते हों।
499. फूंक–फूंक कर कदम रखना–(अत्यन्त सतर्कता के साथ काम करना)
इतिहास साक्षी है कि पाकिस्तान से कोई भी समझौता करते समय भारत को फूंक–फूंक कर पाँव रखने होंगे।
500. फूलकर कुप्पा होना–(बहुत प्रसन्न होना)
संतू ने जब सुना कि उसकी बेटी ने उत्तर प्रदेश में सर्वोच्च अंक प्राप्त किए हैं, तो वह खुशी के मारे फूलकर कुप्पा हो गया।
501. फावड़ा चलाना–(मेहनत करना)
मजदूर फावड़ा चलाकर अपनी रोजी–रोटी कमाता है।
502. फूंक मारना–(किसी को चुपचाप बहकाना)
लीडर ने मजदूरों में क्या फूंक मार दी, जिससे उन्होंने हड़ताल कर दी।
503. फट पड़ना–(एकदम गुस्से में हो जाना)
संजय किसी बात पर कई दिनों से मुझसे नाराज़ था, आज जाने क्या हुआ फट पड़ा।
504. बंटाधार होना–(चौपट या नष्ट होना)
हृदय प्रताप के व्यापार का ऐसा बंटाधार हुआ कि वह आज तक नहीं पनप पाया।
505. बहती गंगा में हाथ धोना–(बिना प्रयास ही यश पाना)
जीवन में कभी–कभी बहती गंगा में हाथ धोने के अवसर मिल जाते हैं।
506. बाग–बाग होना–(अति प्रसन्न होना)
गिरिराज लोक सेवा आयोग परीक्षा में उत्तीर्ण हुआ, तो उसके परिवार वाले बाग–बाग हो उठे।
507. बीड़ा उठाना–(दृढ़ संकल्प करना)
क्रान्तिकारियों ने भारत को आज़ाद कराने के लिए बीड़ा उठा लिया है।
508. बेपर की उड़ाना–(अफवाहें फैलाना/निराधार बातें चारों ओर
करते फिरना) “कुछ लोग बेपर की उड़ाकर हमारी पार्टी को बदनाम करना चाहते हैं। अत: मेरा अनुरोध है कि कोई भी सज्जन ऐसे लोगों की बातों में न आएँ।” नेताजी मंच पर खड़े जनता को सम्बोधित कर रहे थे।
509. बट्टा लगाना–(दोष या कलंक लगना)
रिश्वत लेते पकड़े जाने पर अधिकारी की शान में बट्टा लग गया।
510. बाल–बाल बचना–(बिल्कुल बच जाना)
चन्द्रबाबू नायडू नक्सलवादी हमले में बाल–बाल बचे थे।
511. बाल बाँका न होना–(कुछ भी हानि या कष्ट न होना)
जब तक मैं तुम्हारे साथ हूँ, तुम्हारा बाल भी बाँका नहीं होगा।
512. बालू में से तेल निकालना–(असम्भव को सम्भव कर देना)
बढ़ती महँगाई को देखकर यह कहा जा सकता है कि अब महंगाई को दूर करना बालू में से तेल निकालने के समान हो गया है।
513. बाँछे खिलना–(अत्यन्त प्रसन्न होना)
लड़का पी. सी. एस. हो गया तो सक्सेना साहब की बाँछे खिल गईं।
514. बखिया उधेड़ना–(भेद खोलना)
मनोज ने सबके सामने संजय की बखिया उधेड़कर रख दी।
515. बच्चों का खेल–(सरल काम)
भारतीय टेस्ट क्रिकेट टीम में शामिल होना कोई बच्चों का खेल नहीं है।
516. बाएँ हाथ का खेल–(अति सरल काम)
अर्द्धशतक लगाना तो मेरे बाएँ हाथ का खेल था।
517. बात का धनी होना–(वचन का पक्का होना)
राजीव ने कह दिया तो समझो वह नहीं जाएगा, वह अपनी बात का धनी है।
518. बेसिर पैर की बात करना–(व्यर्थ की बातें करना)
गिरीश मोहन तो बेसिर पैर की बात करता है।
519. बछिया का ताऊ–(मूर्ख)
शिवकुमार से यह काम नहीं होगा, वह तो बछिया का ताऊ है।
520. बड़े घर की हवा खाना–(जेल जाना)
राजू अपने अपराध के कारण ही बड़े घर की हवा खा रहा है।
521. बेदी का लोटा–(ढुलमुल)
मनोज की बात पर विश्वास नहीं करना चाहिए, वह तो बेपेंदी का लोटा है।
522. बल्लियाँ उछलना–(बहुत खुश होना)
अपने अरिहन्त प्रकाशन में सेलेक्शन की बात सुनकर वह बल्लियाँ उछलने लगा।
523. बावन तोले पाव रत्ती–(बिल्कुल ठीक हिसाब)
खचेडू पंसारी का हिसाब बावन तोले पाव रत्ती रहता है।
524. बाज़ार गर्म होना–(काम–धंधा तेज़ होना)
आजकल कालाबाज़ारी का बाज़ार गर्म है।
525. बात ही बात में–(तुरन्त)
बात ही बात में उसने तमंचा निकाल लिया।
526. बरस पड़ना–(अति क्रुद्ध होकर डाँटना)
पवन ने गलत बण्डल बाँध दिया तो सेठ जी उस पर बरस पड़े।
527. बात न पूछना–(आदर न करना)
रमेश ने सिनेमा देखने जाने से पहले पिता जी से नहीं पूछा।
528. बिल्ली के गले में घण्टी बाँधना–(स्वयं को संकट में डालना)
प्रधानाचार्य ने स्कूल का बहुत पैसा खाया है, लेकिन प्रश्न यह है कि प्रबन्धन से शिकायत करके बिल्ली के गले में घण्टी कौन बाँधे।
(भ)
529. भण्डा फोड़ना–(रहस्य खोलना/भेद प्रकट करना)
अनीता और सुचेता में मनमुटाव होने पर अनीता ने सुचेता की एक गुप्त और महत्त्वपूर्ण बात का भण्डाफोड़ कर यह ज़ाहिर कर दिया कि अब वह उसकी कट्टर दुश्मन है।
530. भविष्य पर आँख होना–(आगे का जीवन सुधारने के लिए प्रयत्नशील रहना)
मेरे बेटे ने एम. बी. ए. की परीक्षा पास कर ली है, परन्तु मेरी आँखें अब भी उसके भविष्य पर लगी रहती हैं।
531. भिरड़ के छत्ते में हाथ डालना–(जान–बूझकर बड़ा संकट अपने पीछे
लगाना) “तुमने इतने बड़े परिवार के व्यक्ति को पीटकर अच्छा नहीं किया। समझो, तुमने भिरड़ के छत्ते में हाथ डाल दिया।”
532. भीगी बिल्ली बनना–(डर जाना)
पुलिस की आहट पाते ही चोर भीगी बिल्ली बन जाते हैं।
533. भूमिका निभाना–(निष्ठापूर्वक अपने काम का निर्वाह करना)
अमिताभ बच्चन ने भारतीय सिनेमा में अपने अभिनय की जो भूमिका निभाई है, वह देखते ही बनती है।
534. भेड़ियां धसान–(अंधानुकरण)
हमारा गाँव भेड़िया धसान का सशक्त उदाहरण है।
535. भाड़े का टटू–(पैसे लेकर ही काम करने वाला)
चुनावों में भाड़े के टटुओं की तो मौज आ जाती है।
536. भाड़ झोंकना–(समय व्यर्थ खोना)
दिल्ली में रहकर कुछ नहीं सीखा, वहाँ क्या भाड़ झोंकते रहे।
537. भैंस के आगे बीन बजाना–(बेसमझ आदमी को उपदेश)
अनपढ़ व अन्धविश्वासी लोगों से मार्क्सवाद की बात करना भैंस के आगे बीन बजाना है।
538. भागीरथ प्रयत्न करना–(कठोर परिश्रम)
स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए भारतीयों ने भागीरथ प्रयत्न किया।
(म)
539. मुख से फूल झड़ना–(मधुर वचन बोलना)
प्रशान्त की क्या बुराई करें, उसके तो मुख से फूल झड़ते हैं।
540. मन के लड्डू खाना–(व्यर्थ की आशा पर प्रसन्न होना)
‘मन के लड्डू खाने से काम नहीं चलेगा, यथार्थ में कुछ काम करो।
541. मन ही मन में रह जाना–(इच्छाएँ पूरी न होना)
धन के अभाव में व्यक्ति की इच्छाएँ मन ही मन में रह जाती हैं।
542. माथे पर शिकन आना–(मुखाकृति से अप्रसन्नता/रोष आदि प्रकट
होना) जब मैंने उसके माथे पर शिकन देखी, तो मैं तभी समझ गया था कि मेरे प्रति उसके मन में चोर है।
543. मीठी छुरी चलाना–(प्यार से मारना/विश्वासघात करना)
सेठ दुर्गादास इतनी मीठी छुरी चलाता है कि सामने वाले को उसकी किसी बात का बुरा ही नहीं लगता है और वह कटता चला जाता है।
544. मुँह पर नाक न होना–(कुछ भी लज्जा या शर्म न होना)।
कुछ लोग राह चलते गन्दी बातें करते रहते हैं, क्योंकि उनके मुँह पर नाक नहीं होती।
545. मुट्ठी गरम करना–(रिश्वत देना)
सरकारी कर्मचारियों की बिना मुट्ठी गर्म किए काम नहीं चलता है।
546. मन मैला करना–(खिन्न होना)
क्या समय आ गया है किसी के हित की बात कहो तो वह मन मैला कर लेता है।
547. मुट्ठी में करना–(वश में करना)
अपनी धूर्तता और मक्कारी के चलते मेरे छोटे भाई ने माँ को मुट्ठी में कर रखा है।
548. मुँह की खाना–(हार जाना/अपमानित होना)
अमेरिका को वियतनाम युद्ध में मुँह की खानी पड़ी।
549. मीन मेख निकालना–(त्रुटि निकालना)
आलोचक का कार्य किसी भी रचना में मीन मेख निकालना रह गया
550. मुँह में पानी आना–(लालच भरी दृष्टि से देखना/खाने हेतु लालच)
राजमा देखकर मुँह में पानी आ जाता है।
551. मंच पर आना–(सामना)
गाँधी जी ने दक्षिण अफ्रीका से लौटकर मंच पर आकर अंग्रेज़ों को सबक सिखाया।
552. मिट्टी का माधो–(मूर्ख)
अतुल की बात का क्या विश्वास करना वह तो मिट्टी का माधो है।
553. मक्खी नाक पर न बैठने देना–(इज़्ज़त खराब न होने देना)
पहले राजीव नाक पर मक्खी नहीं बैठने देता था। अब उसे इसकी कोई परवाह ही नहीं है।
554. मोहर लगा देना–(पुष्टि करना)
डायरेक्टर साहब ने मेरी पक्की नौकरी पर मोहर लगा दी है।
555. मीठी छुरी चलाना–(विश्वासघात करना)
मनोज से बचकर रहना, वह मीठी छुरी चलाता है।
556. मुँह बनाना–(खीझ प्रकट करना)
मैडम ने जब विकास को डाँटा तो वह मुँह बनाने लगा।
557. मुँह काला करना–(कलंकित करना)
आज तुमने फिर वही कुकर्म करके मुँह काला करवाया है।
558. मैदान मारना–(विजय प्राप्त करना)
भारत ने टेस्ट श्रृंखला में ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध मैदान मार लिया।
559. मुहर्रमी सूरत–(शोक मनाने वाला चेहरा)
इतने दिन बाद मिले हो, क्या कारण है जो ये मुहर्रमी सूरत बना रखी है?
560. मक्खी मारना–(बेकार बैठे रहना)
तुम घर पर बैठे–बैठे मक्खी मारते हो कुछ काम धाम क्यों नहीं करते?
561. माथे पर शिकन न आना–(कष्ट में थोड़ा भी विचलित न होना)
रामप्रकाश ने सरेआम अपने बच्चों के हत्यारे को कचहरी में मार डाला, पकड़े जाने पर भी उसके माथे पर शिकन न आई।
562. म्याऊँ का ठौर पकड़ना–(खतरे में पड़ना)
शहर के गुण्डे से पंगा लेकर तुमने म्याऊँ का ठौर पकड़ा है।
563. मुँह पकड़ना–(बोलने न देना)
मारने वाले का हाथ पकड़ा जा सकता है बोलने वाले का मुँह नहीं पकड़ा जाता है।
564. मुँह धो रखना–(आशा रखना)
वह हमेशा अच्छा काम ही करेगा तुम मुँह धो रखो।
(य)
565. यम की यातना–(असह्य कष्ट)
सैनिकों ने घुसपैठिये की इतनी पिटाई की कि उसे “यम की यातना” नज़र आने लगी।
566. यमराज का द्वार देख आना–(मरकर जीवित हो जाना)
नेपाल में आए जानलेवा भूकम्प से बच निकल आना, यमराज का द्वार देख आने के समान था।
567. युग बोलना–(बहुत समय बाद होना)
आज रात आसमान में दो चाँद–से प्रतीत होना युग बोलने के समान है।
568. युधिष्ठिर होना–(अत्यन्त सत्य–प्रिय होना)
महात्मा विदुर वास्तव में, मन–वचन और कर्म से युधिष्ठिर थे।
569. रफूचक्कर होना–(भाग जाना)
पुलिस के आने की सूचना पाकर दस्यु दलं रफूचक्कर हो गया।
570. रँगा सियार–(धोखेबाज़ होना)
आजकल बहुत से साधु वेशधारी रँगे सियार बनकर ठगने का काम करते हैं।
571. राई का पहाड़ बनाना–(बढ़ा–चढ़ाकर कहना)
भूषण ने अपने काव्य में राई का पहाड़ बना दिया है।
572. रातों की नींद हराम होना–(चिन्ता, भय, दु:ख, आदि के कारण रातभर नींद न आना)
“क्या बताऊँ दोस्त, एक गरीब बाप के सम्मुख उसकी जवान बेटी की शादी की चिन्ता, उसकी रातों की नींद हराम कर देती है।”
573. रीढ़ टूटना–(आधारहीन रहना)
इकलौते जवान बेटे की अचानक मृत्यु पर गंगाराम को लगा जैसे उसकी रीढ़ टूट गई हो।
574. रंग बदलना–(बदलाव होना)
पूँजीवादी व्यवस्था में मनुष्य बेहद स्वार्थी हो गया है, अत: कौन कब रंग बदल ले, पता नहीं।
575. रोंगटे खड़ा होना–(भय से रोमांचित हो जाना)
घर में बड़ा साँप देखकर अमर के रोंगटे खड़े हो गए।
576. रास्ते पर लाना–(सुधार करना)
राजीव को रास्ते पर लाना बहुत कठिन है। मेहनतकश वर्ग रो–धोकर अपने दिन काट रहा है।
578. रंग में भंग होना–(आनन्द में विघ्न आना)
बराती के गोली छोड़ने से लड़के का चाचा मर गया, जिससे रंग में भंग हो गई।
579. रास्ता नापना–(चले जाना)
खाओ पियो और यहाँ से रास्ता नापो।
580. रंग लाना–(हालात पैदा करना)
मेहनत रंग लाती है, ये सच है।
(ल)
581. लंगोटी बिकवाना–(दरिद्र कर देना)
शंकर ने अपने शत्रु जसबीर को अदालत के ऐसे चक्रव्यूह में फँसाया कि उस बेचारे की लंगोटी तक बिक गई है।
582. लकीर का फकीर होना–(रूढ़िवादी होना)।
पढ़े–लिखे समाज में भी बहुत से लकीर के फकीर हैं।
583. लेने के देने पड़ना–(लाभ के बदले हानि)
व्यापार में कभी–कभी लेने के देने पड़ जाते हैं।
584. लासा लगाना–(किसी को. फँसाने की युक्ति करना)
जमुनादास ने सुखीराम को तो ठग लिया है। अब वह अब्दुल करीम को लासा लगाने की कोशिश कर रहा है।
585. लोहे के चने चबाना–(कठिनाइयों का सामना करना)
किसी पुस्तक के प्रणयन में लेखक को लोहे के चने चबाने पड़ते हैं, तब सफलता मिलती है।
586. लौ लगाना–(प्रेम में मग्न हो जाना/आसक्त हो जाना)
सारे बुरे कामों को छोड़कर भीमा ने ईश्वर से लौ लगा ली है। अब वह किसी की तरफ को देखता तक नहीं है।
587. ललाट में लिखा होना–(भाग्य में लिखा होना)
वह कम उम्र में विधवा हो गई, ललाट में लिखे को कौन बदल सकता है।
588. लंगोटिया यार–(बचपन का मित्र)
अतुल तो मेरा लंगोटिया यार है।
589. लम्बी तानकर सोना–(निष्क्रिय होकर बैठना)
राजनीति में लम्बी तानकर सोने से काम नहीं चलेगा, बढ़ने के लिए मेहनत करनी होगी।
590. लाल–पीला होना–(गुस्से में होना)
महेन्द्र ने प्रश्न गलत कर दिया तो भइया लाल–पीला होने लगे।
591. लंगोटी में फाग खेलना–(दरिद्रता में आनन्द लूटना)
कवि, लेखक और साहित्यकार तो लंगोटी में फाग खेलते हैं।
592. लल्लो–चप्पो करना–(चिकनी–चुपड़ी बातें करना)
क्लर्क, लल्लो–चप्पो करके अधिकारियों से अपना काम करा लेते हैं।
593. लहू के आँसू पीना–(दुःख सह लेना)
विभा की शादी के पश्चात् राज लहू के आँसू पीकर रह गया, उसने उफ़ तर्क नहीं की।
594. लुटिया डुबोना–(कार्य खराब कर देना)
गोर्बाच्योव ने संशोधनवादी नीति पर चलकर साम्यवाद की लुटिया डुबो दी।
595. वकालत करना–(पक्ष का समर्थन करना)
“मैंने अपने पिता की वकालत इसलिए नहीं की, क्योंकि वे मुझसे भी भरी पंचायत में झूठ बुलवाना चाहते थे।”
596. वक्त की आवाज़–(समय की पुकार)
गरीबी और शोषण को नष्ट करके ही संसार दोषमुक्त हो सकता है। यही वक्त की आवाज़ है।
597. वारी जाऊँ–(न्योछावर हो जाना)
काफी समय बाद सैनिक बेटे को देखकर माँ ने उसकी बलाएँ उतारते हुए कहा–“मैं वारी जाऊँ बेटे, तुम युग–युग जियो।”
598. विधि बैठना–(युक्ति सफल होना/संगति बैठना)
इस बार तो ओमप्रकाश की विधि बैठ गई, उसका कारोबार दिन दूना, रात चौगुना बढ़ता जा रहा है।
599. विष उगलना–(क्रोधित होकर बोलना)
सामान्य बातों में विष उगलना अच्छी बात नहीं है।
600. विष की गाँठ–(उपद्रवी)
देवेन्द्र तो विष की गाँठ है।
601. विष घोलना–(गड़बड़ पैदा करना)
विभीषण ने राम को रावण के सभी रहस्य बताकर विष घोलने का कार्य किया।
(श्र), (श)
602. श्रीगणेश करना–(कार्य आरम्भ करना)
आज गुरुवार है, आप कार्य का श्रीगणेश करें।
603. शहद लगाकर चाटना–(किसी व्यर्थ की वस्तु को सँभालकर रखना)
सेठ दीनदयाल बड़ा कंजूस है। वह व्यर्थ की वस्तु को भी शहद लगाकर चाटता है।
604. शैतान के कान कतरना/काटना–(बहुत चालाक होना)
देवेन्द्र है तो लड़का पर शैतान के कान कतरता है।
605. शान में बट्टा लगाना–(शान घटना)
साइकिल की सवारी करने में आजकल के युवाओं की शान में बट्टा लगता
606. शेर की सवारी करना–(खतरनाक कार्य करना)
रोज प्रेस से रात को दो बजे आना शेर की सवारी करना है।
607. शिकंजा कसना–(नियन्त्रण और कठोर करना)
भारत ने अपने सैनिकों पर शिकंजा कस दिया है कि कोई भी घुसपैठिया किसी भी समय सीमा पर दिखाई दे, तो उसे तुरन्त गोली मार दी जाए।
608. शेर और बकरी का एक घाट पर पानी पीना–(ऐसी स्थिति होना जिसमें दुर्बल को सबल का कुछ भी भय न हो)
सम्राट अशोक के काल में शेर और बकरी एक ही घाट पर पानी पिया करते थे।
(स)
609. सफ़ेद झूठ–(सर्वथा असत्य)
चुनाव के समय नेता सफेद झूठ बोलते हैं।
610. साँप को दूध पिलाना–(शत्रु पर दया करना)
साँप को दूध पिलाकर केवल विष बढ़ाना है।
611. साँप सूंघना–(निष्क्रिय या बेदम हो जाना)
कक्षा में बहुत शोर–गुल हो रहा था, परन्तु गुरु जी के आते ही सभी बच्चे ऐसे हो गए जैसे उन्हें साँप सूंघ गया हो।
612. सिर आँखों पर–(विनम्रता तथा सम्मानपूर्वक ग्रहण करना)
विनय इतना आज्ञाकारी बालक है कि वह अपने बड़ों के प्रत्येक आदेश को अपने सिर आँखों पर रखता है।
613. सिर ऊँचा करना–(सम्मान बढ़ाना)
पी. सी. एस. परीक्षा उत्तीर्ण करके महेश ने अपने माता–पिता का सिर ऊँचा कर दिया।
614. सोने की चिड़िया–(बहुत कीमती वस्तु)
पहले भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था।
615. सिर उठाना–(विरोध करना)
व्यवस्था के खिलाफ सिर उठाने की हिम्मत विरलों में ही होती है।
616. सिर पर भूत सवार होना–(धुन लग जाना)
राजीव को कार्ल मार्क्स बनने का भूत सवार है।
617. सिर मुंडाते ओले पड़ना–(काम शुरू होते ही बाधा आना)
छत्तीसगढ़ में भाजपा ने चुनाव का प्रचार शुरू ही किया था कि जूदेव भ्रष्टाचार काण्ड में फँस गए, तब कांग्रेस ने चुटकी ली सिर मुंडाते ही ओले पड़े।
618. सिर पर हाथ होना–(सहारा होना)
जब तक माँ–बाप का सिर पर हाथ है, मुझे क्या चिन्ता है।
619. सिर झुकाना–(पराजय स्वीकार करना)
भारतीय सेना के समक्ष पाकिस्तानी सेना ने सिर झुका दिया।
620. सिर खपाना–(व्यर्थ ही सोचना)
बुद्धिजीवी को सुबह से शाम तक सिर खपाना पड़ता है, तब रोटी मिलती है।
621. सिर पर कफ़न बाँधना–(बलिदान देने के लिए तैयार होना)
क्रान्तिकारियों ने सिर पर कफ़न बाँधकर देश को आजाद कराने का प्रयास किया।
622. सिर गंजा करना–(बुरी तरह पीटना)
अपराधी के हेकड़ी दिखाते ही पुलिस अधिकारी ने उसका सिर गंजा कर दिया था।
623. सिर पर पाँव रखकर भागना–(तुरन्त भाग जाना)
घर में जाग होते ही चोर सिर पर पाँव रखकर भाग गया।
624. साँप छछूदर की गति होना–(असमंजस की दशा होना)
अपने वचन का पालन करने और पुत्र बिछोह उत्पन्न होने की स्थिति में राजा दशरथ की साँप छछूदर की गति हो गई थी।
625. समझ पर पत्थर पड़ना–(विवेक खो देना)
क्या तुम्हारी समझ पर पत्थर पड़ गया है जो रेलवे की नौकरी छोड़ रहे हो।
626. साँच को आँच नहीं–(सच बोलने वाले को किसी का भय नहीं)।
ईमानदार व्यक्ति पर कितने भी आरोप लगाओ वह डरेगा नहीं, सच है साँच को आँच नहीं।
627. सूरज को दीपक दिखाना–(किसी व्यक्ति की तुच्छ प्रशंसा करना)
महर्षि वशिष्ठ के सम्मान में कुछ कहना सूरज को दीपक दिखाने के समान।
628. संसार से उठना–(मर जाना)
बाबा को संसार से उठे तो वर्षों हो गए।
629. सब्जबाग दिखाना–(लालच देकर बहकाना)
सब्जबाग दिखाकर ही रमेश ने सुरेश के दस हज़ार लिए थे।
630. सिट्टी–पिट्टी गुम होना–(होश उड़ जाना)
कर्मचारी बैठे हुए गप–शप कर रहे थे, सेठ को देखते ही सबकी सिट्टी–पिट्टी गुम हो गई।
631. सिक्का जमाना–(प्रभाव स्थापित करना)
वह हर जगह अपना सिक्का जमा लेता है।
632. सेमल का फूल होना–(अल्पकालीन प्रदर्शन)
कबीरदास ने मानव शरीर को सेमल का फूल कहा है।
633. सूखते धान पर पानी पड़ना–(दशा सुधरना)
बेहद गरीबी में वह दिन काट रहा था, लड़के की अच्छी कम्पनी में नौकरी लगी तो सूखे धान पर पानी पड़ गया।
634. सुई की नोंक के बराबर–(ज़रा–सा)
पाण्डवों ने दुर्योधन से पाँच गाँव माँगे थे, लेकिन उसने बिना युद्ध के सुई . की नोंक के बराबर भी भूमि देने से इनकार कर दिया।
635. हवाई किले बनाना—(कोरी कल्पना करना)
बिना कर्म किए हवाई किले बनाना व्यर्थ है।
636. हाथ खाली होना–(पैसा न होना)
महीने के अन्त में अधिकांश सरकारी कर्मचारियों के हाथ खाली हो जाते हैं।
637. हथियार डालना–(संघर्ष बन्द कर देना)
मैंने व्यवस्था के खिलाफ हथियार नहीं डाले हैं।
638. हक्का–बक्का रह जाना—(अचम्भे में पड़ जाना)
राज अपने चाचा जी को ट्रेन में देखकर हक्का–बक्का रह गया।
639. हाथ खींचना–(सहायता बन्द कर देना)
सोवियत रूस के विखण्डन के पश्चात् देश के साम्यवादियों की मदद से
रूस ने हाथ खींच लिए।
640. हाथ का मैल–(तुच्छ और त्याज्य वस्तु)
पैसा तो हाथ का मैल है, फिर आ जाएगा, आप क्यों परेशान हो?
641. हाथ को हाथ न सूझना–(घना अँधेरा होना)
इस बार इतना कोहरा पड़ा कि हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा था।
642. हाथ–पैर मारना–(कोशिश करना)
मैंने बहुत हाथ–पैर मारे लेकिन कलेक्टर बनने में सफलता नहीं मिली।
643. हाथ डालना–(शुरू करना)
अंबानी जी जिस प्रोजेक्ट में हाथ डालते हैं, उसमें सफलता मिलती है।
644. हाथ साफ़ करना–(बेइमानी से लेना या चोरी करना)
तुम्हारी हाथ साफ करने की आदत अभी गई नहीं है।
645. हाथों हाथ रखना–(देखभाल के साथ रखना)
यह वस्तु मेरी माँ ने मुझे दी थी जिसे मैं हाथों हाथ रखता हूँ।
646. हाथ धो बैठना–(किसी व्यक्ति या वस्तु को खो देना)
यदि तुमने उसे अधिक परेशान किया तो उससे हाथ धो बैठोगे।
647. हाथों के तोते उड़ जाना–(होश हवास खो जाना)।
शिवानी के छत से गिरने से मेरे तो हाथों के तोते उड़ गए।
648. हाथ पीले कर देना—(लड़की की शादी कर देना)
प्रोविडेण्ट का पैसा मिले तो लड़की के हाथ पीले करूँ।
649. हाथ–पाँव फूल जाना—(डर से घबरा जाना)
अच्छे वकील की पूछताछ से बड़े–बड़ों के हाथ–पाँव फूल जाते हैं।
650. हाथ मलना या हाथ मलते रह जाना–(पश्चात्ताप करना)
क्रोध में तुमने अपना घर तो जला ही दिया अब हाथ मलने से क्या लाभ?
651. हाथ पर हाथ धरे रहना–(बेकाम रहना)
हाथ पर हाथ धरे रहकर बैठने से तो लड़की का विवाह नहीं होगा, उसके लिए तो आपको प्रयास करना होगा।
652. हाथी के पैर में सबका पैर–(बड़ी चीज के साथ छोटी का साहचर्य)
जब प्रधानमन्त्री इस्तीफ़ा दे देता है, तो मन्त्रिमण्डल स्वयं समाप्त हो जाता है, क्योंकि हाथी के पैर में सबका पैर होता है।
653. हाल पतला होना–(दयनीय दशा होना)
उसका व्यापार ढीला चल रहा है। अत: उसका हाल पतला है।
मुहावरा मध्यान्तर प्रश्नावली
1. मुहावरा है
(a) एक वाक्यांश
(b) एक पूर्ण वाक्य
(c) निरर्थक शब्द समूह
(d) सार्थक शब्द समूह
उत्तर :
(a) एक वाक्यांश
2. ‘मुहावरा’ शब्द है
(a) अरबी भाषा का
(b) फ़ारसी भाषा का
(c) उर्दू भाषा का
(d) हिन्दी भाषा का
उत्तर :
(a) अरबी भाषा का
3. मुहावरे का प्रयोग वाक्य में किया जाता है
(a) भाषा में सजीवता लाने के लिए
(b) भाषा का सौन्दर्य बढ़ाने के लिए.
(c) भाषा को आकर्षक बनाने के लिए
(d) भाषा में आडम्बर या चमत्कार के लिए
उत्तर :
(a) भाषा में सजीवता लाने के लिए
4. मुहावरे का अक्षय कोष है
(a) हिन्दी और उर्दू भाषा के पास
(b) हिन्दी और फ़ारसी भाषा के पास
(c) हिन्दी और अरबी भाषा के पास
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(a) हिन्दी और उर्दू भाषा के पास
5. ‘आधा तीतर आधा बटेर मुहावरे’ का अर्थ है।
(a) आधी–आधी चीजों को साथ रखना
(b) बेमेल चीजों का सम्मिश्रण
(c) सुमेल चीजों को बटोरना
(d) आधी–आधी चीजों को मिलाकार एक करना।
उत्तर :
(b) बेमेल चीजों का सम्मिश्रण
6. ‘कलेजे पर पत्थर रखना’ का अर्थ है
(a) घोर दुःख या शोक को कठोर हृदय के साथ सहन करना
(b) पहले जैसा न रहना
(c) धोखा खाना
(d) क्रोध में आकर किसी को मिटा देना
उत्तर :
(a) घोर दुःख या शोक को कठोर हृदय के साथ सहन करना
7. ‘गुदड़ी का लाल’ मुहावरे का अर्थ है
(a) असुविधाओं में उन्नत होने वाला
(b) गरीबी में घिरा होना
(c) गुदड़ी का लाल रंग का होना
(d) महत्त्वपूर्ण व्यक्ति होना
उत्तर :
(a) असुविधाओं में उन्नत होने वाला
8. ‘तीन तेरह करना’ मुहावरे का अर्थ है
(a) जैसे को तैसा
(b) पृथक्ता की बात करना
(c) गुस्सा करना
(d) पूरी तरह फट जाना
उत्तर :
(b) पृथक्ता की बात करना
9. ‘बाग–बाग होना’ मुहावरे का अर्थ है।
(a) मेहनत करना
(b) अति प्रसन्न होना
(c) असम्भावित कार्य करना
(d) मधुर वचन बोलना
उत्तर :
(b) अति प्रसन्न होना
10. राई का पहाड़ बनाना
(a) बढ़ा चढ़ा कर कहना
(b) असम्भव कार्य करना
(c) कलंकित करना
(d) पुष्टि करना
उत्तर :
(a) बढ़ा चढ़ा कर कहना
कहावतें
‘कहावतें’ हिन्दी भाषा का शब्द है। इसका अर्थ होता है, ‘कही हुई बातें।’ यदि हम इसके अर्थ पर विचार करते हैं तो स्पष्ट हो जाता है कि प्रत्येक कही हुई बात कहावत नहीं होती, बल्कि जिस कहावत में जीवन के अनुभव का सार–संक्षेपण चमत्कृत ढंग से किया जाए, उसे कहावत के अन्तर्गत माना जाता है।
उदाहरणार्थ रवीश ने कहा, “मैं अकेला ही कुआँ खोद लूँगा।” इस पर सभी ने रवीश की हँसी उड़ाते हुए कहा, व्यर्थ की बातें करते हो, “अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता”। यहाँ कहावत का प्रयोग किया गया है, जिसका अर्थ है “एक व्यक्ति के करने से कोई कठिन काम पूरा नहीं होता।”
कहावत को सूक्ति, सुभाषित और लोकोक्ति भी कहते हैं। इनमें से कहावत शब्द ही उपयुक्त है, क्योंकि सूक्ति या सुभाषित का अर्थ है–सुन्दर उक्ति या बात। लोकोक्ति शब्द इसलिए उपयुक्त नहीं है, क्योंकि लोकोक्ति का अर्थ– लोक(जनसाधारण) की उक्ति होता है।
मुहावरा और कहावत में अन्तर
मुहावरा कहावत
मुहावरा एक वाक्यांश होता है। | कहावत एक वाक्य होता है। |
मुहावरे का स्वतन्त्र रूप में प्रयोग होता है। | कहावत का स्वतन्त्र रूप में प्रयोग नहीं होता। |
मुहावरे में उद्देश्य, विधेय का बन्धन नहीं होता लेकिन अर्थ की स्पष्टता के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। | कहावत में उद्देश्य और विधेय का पूर्ण विधान होता है इसलिए अर्थ स्वतः स्पष्ट हो जाता है। |
मुहावरे किसी बात को कहने का विचार अथवा अनुभव का मूल है। | कहावत उस कथन में व्यक्त किए गए तरीका अथवा पद्धति है। |
मुहावरा में काल, वचन तथा पुरुष के प्रकार का परिवर्तन नहीं होता। | कहावत में उसके रूप में किसी अनुरूप परिवर्तन हो जाता है। |
मुहावरा का प्रयोग लाक्षणिक अर्थ अथवा अप्रस्तुत व्यंजना के लिए होता है। | कहावतं का प्रयोग प्रायः अन्योक्ति व्यक्त करने के लिए होता है। |
हिन्दी की कुछ प्रचलित कहावतें, उनके अर्थ और प्रयोग
(अ)
1. अंधों में काना राजा–मूल् के मध्य कुछ चतुर।
निरक्षरों के मध्य कुछ पढ़ा–लिखा आदमी अंधों में काना राजा के समान होता है।
2. अंधेर नगरी चौपट राजा–अन्याय का बोलबाला।
अयोग्य अधिकारी होने पर सभी कामों में धांधली चलती है, ठीक ही कहा
गया है; अंधेर नगरी चौपट राजा।
3. अंधा बाँटे रेवड़ी फिर–फिर अपनों को दे–स्वार्थी व्यक्ति पक्षपात करता है।
वर्तमान समय में नेतागण अंधा बाँटे रेवड़ी फिर–फिर अपनों को दे वाली उक्ति चरितार्थ करते हैं।
4, अंधी पीसे कुत्ता खाय–जब कार्य कोई करे उसका फायदा दूसरा व्यक्ति
उठाए। मजदूर परिश्रम करता है, लेकिन लाभ पूँजीपति कमाता है। सच है– अंधी पीसे कुत्ता खाय।
5. अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता–अकेला व्यक्ति कुछ भी नहीं कर
सकता है। शत्रुओं के बीच अकेले मत जाओ, क्योंकि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता है।
6. अपनी–अपनी ढपली, अपना–अपना राग–मनमानी।
संगठन के अभाव में लोग अपनी–अपनी ढपली, अपना–अपना राग अलापते हैं।
7. अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत–अवसर निकल
जाने के बाद पछताना व्यर्थ होता है। साल भर तो पढ़ाई नहीं की, अब असफल होने पर रोते हो, इससे क्या लाभ? अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत।
8. अपनी करनी पार उतरनी–अपने किए का फल भोगना।
जीवन में सफल होने के लिए स्वयं परिश्रम करो, क्योंकि अपनी करनी पार उतरनी।
9. अधजल गगरी छलकत जाए–कम ज्ञान, धन, सम्मान वाले व्यक्ति
अधिक प्रदर्शन करते हैं। जब कोई अल्पज्ञ अधिक बकवास करता है, तब यह कहावत कही जाती है।
10. अक्ल बड़ी या भैंस–शारीरिक बल से बौद्धिक बल अधिक अच्छा
होता है। किसान पहले बहुत परिश्रम करता था, लेकिन उत्पादन कम था। अब उन्नत बीज, खाद व उपकरणों की सहायता से अधिक उत्पादन करता है। सच है अक्ल बड़ी या भैंस।
11. अन्त भला तो सब भला–परिणाम अच्छा हो जाए तो सब कुछ अच्छा
माना जाता है। भारतीय क्रिकेट टीम कशमकश के पश्चात् पाकिस्तान दौरे पर गई और विजयी रही, सच है अन्त भला तो सब भला।
12. अंधे की लकड़ी–बेसहारे का सहारा।
राजकुमार पिता की अंधे की लकड़ी है।
13. अटकेगा सो भटकेगा–दुविधा या सोच विचार में पड़ोगे तो काम नहीं होगा।
मैं तैयारी करूँगा, चयन होगा या नहीं भूलकर तैयारी करो। कहावत है, जो अटकेगा सो भटकेगा।
14. अपना हाथ जगन्नाथ–स्वयं का काम स्वयं करना अच्छा होता है।
लाला जी ने पहले खाना बनाने के लिए महाराज रखा हुआ था, लेकिन वह अच्छा खाना नहीं बनाता था, ऊपर से सामान चुरा लेता था। अब लालाजी स्वयं खाना बना रहे हैं। सच कहावत है, अपना हाथ जगन्नाथ।
15. अपनी पगड़ी अपने हाथ–अपने सम्मान को बनाए रखना अपने ही
हाथ में है। अपने से छोटे से भी अच्छा व्यवहार करना चाहिए अन्यथा वे भी। अपमान कर सकते हैं। इसलिए कहावत है अपनी पगड़ी अपने हाथ।
16. अपना रख पराया चख–निजी वस्तु की रक्षा एवं अन्य वस्तु का उपभोग।
अपना रख पराया चख अब तो संजय की प्रकृति हो गई है।
17. अच्छी मति जो चाहो बूढ़े पूछन जाओ–बड़े बूढ़ों की सलाह से कार्य सिद्ध हो सकते हैं।
मैं सदैव अपने बाबा से किसी भी महत्त्वपूर्ण कार्य को करने से पहले सलाह लेता हूँ और कार्य सफल होता है। सच है अच्छी मति जो चाहो, बूढ़े पूछन जाओ।
18. अंधा सिपाही कानी घोड़ी, विधि ने खूब मिलाई जोड़ी–दोनों साथियों में एक से अवगुण।
शोभित में निर्णय लेने की क्षमता नहीं है, पत्नी भी बुद्धिहीन है। अत: दोनों मिलकर कोई कार्य सही नहीं कर पाते। सच है अंधा सिपाही कानी घोड़ी, विधि ने खूब मिलाई जोड़ी।
19. अंधे को अंधा कहने से बुरा लगता है–कटु वचन सत्य होने पर भी बुरा लगता है।
लाला जी परचून की दुकान करते हैं और सब चीजों में मिलावट करते हैं। जब कोई ग्राहक उनसे मिलावटी कह देता है, तो वे भड़क उठते हैं। इसलिए कहावत है अंधे को अंधा कहने से बुरा लगता है।
20. अपनी छाछ को कोई खट्टा नहीं कहता–अपनी चीज को कोई बुरा नहीं बताता।
सब्जी वाला खराब और बासी सब्जियों को भी ताजी और अच्छी सब्जियाँ बनाकर बेच जाता है, कोई कहे भी तो मानता नहीं है। सच है अपनी छाछ को कोई खट्टा नहीं कहता है।
21. अपनी चिलम भरने को मेरा झोंपड़ा जलाते हो–अपने अल्प लाभ के लिए दूसरे की भारी हानि करते हो।
आज ऐसा समय आ गया है अधिकांश व्यक्ति अपनी चिलम भरने के लिए दूसरे का झोंपड़ा जलाने में गुरेज नहीं करते।
22. अभी दिल्ली दूर है–अभी कसर है।
ग्यासुद्दीन तुगलक सूफी निजामुद्दीन औलिया को दण्ड देना चाहता था और तेजी से दिल्ली की ओर बढ़ रहा था। इस पर औलिया ने कहा अभी दिल्ली दूर है।
23. अब की अब के साथ, जब की जब के साथ–सदा वर्तमान की ही चिन्ता करनी चाहिए।
भगवान महावीर ने वर्तमान को अच्छा बनाने का उपदेश दिया, भविष्य अपने आप सुधर जाएगा। सच है अब की अब के साथ, जब की जब के साथ।
24. अस्सी की आमद नब्बे खर्च–आय से अधिक खर्च।
आजकल अधिकांश परिवारों का हाल है, अस्सी की आमद नब्बे खर्च।
25. अपनी नींद सोना, अपनी नींद जागना–पूर्ण स्वतन्त्र होना।
मैं अपने कार्य में किसी का हस्तक्षेप पसन्द नहीं करता। कहावत है अपनी नींद सोना, अपनी नींद जागना।
26. अपने झोपड़े की खैर मनाओ–अपनी कुशल देखो।
मुझे क्या धमकी दे रहे हो अपने झोपड़े की खैर मनाओ।
27. अपनी टांग उघारिये आपहि मरिए लाज–अपने घर की बात दूसरों से कहने पर बदनामी होती है।
पहले तो तुमने अपने घर की बातें दूसरे से बता दीं, अब तुम्हारा मजाक उड़ाते हैं। कहावत भी है, अपनी टांग उघारिये आपहि मरिए लाज।
28. अटका बनिया देय उधार–स्वार्थी और मज़बूर व्यक्ति अनचाहा कार्य भी करता है।
कारखाने में श्रमिकों की हड़ताल होने से कारखाना मालिक अकुशल श्रमिकों को भी दुगुनी–तिगुनी मजदूरी दे रहा है। कहावत सही है–अटका बनिया देय उधार।
29. अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है–अपने घर में, क्षेत्र में सभी जोर बताते हैं।
यहाँ क्या अकड़ दिखाते हो, अपनी गली में तो कुत्ता भी शेर होता है।
30. अपना सोना खोटा तो परखैया का क्या दोष–हममें ही कमजोरी हो तो
बताने वालों का क्या दोष लड़का बेरोजगार है, सारा दिन आवारागर्दी करता है, लोग ताना न मारें तो क्या करें। जब अपना सोना खोटा तो परखैया का क्या दोष।
31. अढाई दिन की बादशाहत–थोड़े दिन की शान–शौकत।
शत्रुघ्न सिन्हा मन्त्री पद से हटा दिए गए, अढ़ाई दिन की बादशाहत भी समाप्त हो गई।
(आ)
32. आँख का अंधा नाम नयनसुख–नाम के विपरीत गुण।
उसके पास रहने की जगह नहीं है, नाम है पृथ्वीलाल। ठीक ही कहा गया है आँख का अंधा नाम नयनसुख।
33. आँख के अंधे गाँठ के पूरे–मूर्ख किन्तु धनी।
आजकल आँख के अंधे गाँठ के पूरे व्यक्ति मुकदमेबाज़ी अधिक करते हैं।
34. आए थे हरि भजन को ओटन लगे कपास–जब कोई व्यक्ति किसी अच्छे कार्य के लिए जाता है, किन्तु बुरे कामों में फँस जाता है; तब यह कहावत कही जाती है।
कार्यकर्ता आए थे नेता संग चुनाव प्रचार को लेकिन जुआ खेलने लगे; इस पर नेताजी को कहना पड़ा, आए थे हरि भजन को ओटन लगे कपास।
35. आगे नाथ न पीछे पगहा–बिल्कुल स्वतन्त्र।
रहीम की बराबरी मत करो, क्योंकि उसके आगे नाथ न पीछे पगहा।
36. आटे के साथ घुन भी पिस जाता है–अपराधी की संगति से निरपराध भी दण्ड का भागी बनता है।
संजय जुआरियों के पास खड़ा था, पुलिस उसे भी ले गई। सच है आटे के साथ घुन भी पिस जाता है।
37. आधी छोड़ सारी को धावै, आधी मिलै न पूरी पावै—अधिक लोभ करने से हानि ही होती है।
कुछ लोग अधिक लाभ के लालच में आकर दूसरा व्यापार करते हैं। इसका फल यह होता है कि उन्हें लाभ के बदले हानि होती है, ठीक ही कहा गया है–आधी छोड़ सारी को धावै, आधी मिलै न पूरी पावै।
38. आगे जाए घुटने टूटे, पीछे देखे आँखें फूटे–जिधर जाएँ उधर ही मुसीबत।
जरदारी आतंकवाद को समाप्त करते हैं, तो कट्टरपंथी उन्हें चैन नहीं लेने देंगे और नहीं करते तो अमेरिका नहीं बैठने देगा। कहावत भी है आगे जाए घुटने टूटे, पीछे देखे आँखें फूटे।
39. आई मौज़ फ़कीर की दिया झोपड़ा फूंक–मौजी और विरक्त आदमी।
राजन ने खूब पैसा व्यापार में कमाया, लेकिन मुकदमेबाज़ी में सारा उड़ा दिया। कहावत भी है आई मौज़ फ़कीर की दिया झोपड़ा फूंक।
40. आप न जावै सासुरे औरों को सिख देत–कोई कार्य स्वयं तो न करे पर दूसरों को सीख दे।
नेताजी कार्यकर्ताओं से जेल जाने की पुरजोर अपील कर रहे थे लेकिन स्वयं नहीं जा रहे थे। इस पर एक कार्यकर्ता ने कहा नेता जी यह तो आप न जावै सासुरे औरों को सिख देत वाली बात हो गई
41. आया है सो जाएगा राजा रंक फकीर–सबको मरना है।
आज आदमी धन के लिए दूसरे की जान का दुश्मन बना हुआ है जबकि वह जानता है, आया है सो जाएगा राजा रंक फकीर।
42. आदमी पानी का बुलबुला है–मनुष्य जीवन नाशवान है।
आदमी का जीवन तो पानी का बुलबुला है जाने कब फूट जाए।
43. आम के आम गुठलियों के दाम–दुहरा फायदा।
कम्पीटीशन की तैयारी हेतु मैंने नोट्स तैयार किए थे, बाद में पुस्तक के रूप में छपवा दिए। मेरे तो आम के आम गुठलियों के दाम हो गए।
44. आम खाने से काम, पेड़ गिनने से क्या काम–अपने मतलब की बात
करो। राम ने अजय को दस हज़ार रुपए माँगने पर उधार दिए तो वह पूछने लगा कि तुम्हारे पास ये पैसे कहाँ से आए। इस पर राम ने कहा तुम आम खाओ पेड़ गिनने से क्या काम।
45. आदमी की दवा आदमी है–मनुष्य ही मनुष्य की सहायता कर सकता है।
भोला ने नदी में डूबते आदमी को बचाया तो सभी कहने लगे, आदमी की दवा आदमी है।
46. आ पड़ोसन लड़ें–बिना बात झगड़ा करना।
रीना से ज्यादा बातचीत ठीक नहीं, उसकी आदत तो आ पड़ोसन लड़ें वाली है।
47. आसमान पर थूका मुँह पर आता है–बड़े लोगों की निन्दा करने से अपनी ही बदनामी होती है।
महात्मा गाँधी की बुराई करना आसमान पर थूकना है।
48. आठ कनौजिये नौ चूल्हे–अलगाव की स्थिति।
पूँजीवादी व्यवस्था में समाज इतना स्वार्थी हो गया है कि आठ कनौजिय नौ चूल्हे वाली स्थिति दिखाई देती है।
49. आई तो रोज़ी नहीं तो रोज़ा–कमाया तो खाया नहीं तो भूखे।
फेरी वाले का क्या, यदि कुछ माल बिक जाता है तो खाना खा लेता है वरना भूखा सो जाता है। सच है, आई तो रोज़ी नहीं तो रोज़ा।
50. आई है जान के साथ जाएगी जनाजे के साथ–आजीवन किसी चीज़ से पिण्ड न छूटना।
दमे की बीमारी के विषय में कहा जाता है आई है जान के साथ जाएगी जनाजे के साथ।
51. इतना खाएँ जितना पचे–सीमा के अन्दर कार्य करना चाहिए।
तुम सभी लोगों से पैसे उधार लेते रहते हो और खर्च कर देते हो। इससे तो तुम कर्ज में डूब जाओगे। सच है, इतना खाएँ जितना पचे।
52. इस हाथ दे उस हाथ ले–कर्म का फल शीघ्र मिलता है।
दूसरों का सम्मान करने से स्वयं को सम्मान मिलता है, ठीक ही है–इस हाथ दे उस हाथ ले।
53. इसके पेट में दाढ़ी है–उम्र कम बुद्धि अधिक।
अक्षित की बात क्या करनी उसके तो पेट में दाढ़ी है।
54. इधर न उधर, यह बला किधर–अचानक विपत्ति आ जाना।
गाड़ी से अलीगढ़ जा रहे थे कि रास्ते में जाम लगा पाया और लोगों ने घेर लिया, तब पिताजी को कहना पड़ा–इधर न उधर, यह बला किधर।।
55. इमली के पात पर दण्ड पेलना–सीमित साधनों से बड़ा कार्य करने का
प्रयास करना। लाला जी को कोई जानता नहीं और सांसद बनने के लिए खड़े हो रहे हैं। वे नहीं जानते कि इमली के पात पर दण्ड पेल रहे हैं।
56. इन तिलों में तेल नहीं किसी भी लाभ की सम्भावना न होना।
मैं जानता था इन तिलों में तेल नहीं है, इसलिए मैंने तुमसे उधार नहीं लिया और बाज़ार से लेकर काम चला रहा हूँ।
57. इधर कुआँ उधर खाई–हर तरफ़ मुसीबत।
मुशर्रफ आतंकवाद को समाप्त करे तो कट्टरपंथी चैन न लेने दे और न करे तो अमेरिका। सच है मुशर्रफ के लिए तो इधर कुआँ उधर खाई।
(ई)
58. ईंट की देवी माँगे का प्रसाद–जैसा व्यक्ति वैसी आवभगत।
इंग्लैण्ड में जैसा स्वागत मोदी जी का हुआ किसी अन्य का नहीं। सच है ईंट की देवी, माँगे का प्रसाद।
59. ईश्वर की माया कहीं धूप कहीं छाया–संसार में कहीं दुःख है कहीं
सुख है। किसी घर घी दूध की बहार है और किसी घर सूखी रोटी भी नहीं है, ठीक ही कहा गया है–ईश्वर की माया कहीं धूप कहीं छाया।
(उ)
60. उसी की जूती उसी का सिर–जिसकी करनी उसी को फल मिलता है।
शर्मा जी मुझे प्रधानाचार्य से कहकर आठवीं कक्षा दिलाना चाहते थे, लेकिन प्रधानाचार्य ने उन्हें ही आठवीं कक्षा दे दी। इसे कहते हैं उसी की जूती उसी का सिर।
61. उगले तो अंधा, खाए तो कोढ़ी–दुविधा में पड़ना।
बीमारी में दफ़्तर जाओ तो बीमारी बढ़ने का भय, ना जाओ तो छुट्टी होने का भय। सच है उगले तो अंधा, खाए तो कोढ़ी।
62. उल्टे बाँस बरेली को विपरीत कार्य करना।
किशोर गाँव जाते वक्त शहर से शुद्ध देसी घी लेकर गाँव पहुँचा तो पिताजी ने कहा, भई वाह तुम तो उल्टे बाँस बरेली को ले आए।
(ऊ)
63. ऊँट किस करवट बैठता है–न जाने भविष्य में क्या होगा।
आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस या भाजपा में कौन जीतेगा, देखते हैं ऊँट किस करवट बैठता है।
64. ऊधौ का लेन न माधौ का देन––किसी से कोई वास्ता न रखना।
मेरा क्या है रिटायरमेन्ट के पश्चात् मौज का जीवन गुजारूँगा, न ऊधौ का लेन न माधौ का देन।
(ए)
65. एक अनार सौ बीमार–एक ही वस्तु के अनेक आकांक्षी।
लोकसभा चुनाव में टिकट एक प्रत्याशी को मिलना है लेकिन टिकट माँगने वाले अनेक हैं। यहाँ तो एक अनार सौ बीमार वाली कहावत चरितार्थ हो रही है।
66. एक तो करेला दूजे नीम चढ़ा–दोहरा कटुत्व।
सुधा एक तो पढ़ने में कमज़ोर है और दूसरे शिक्षकों के प्रति उसका व्यवहार ठीक नहीं है, ऐसे लोगों के लिए कहा गया है–एक तो करेला दूजे नीम चढ़ा।
67. एक सड़ी मछली सारे तालाब को गन्दा कर देती है–अच्छे समाज को एक बुरा व्यक्ति कलंकित कर देता है।
सेठ जी के परिवार में एक लड़का डकैत निकल गया, जिससे पूरा परिवार बदनाम हो गया। ठीक ही कहा गया है, एक सड़ी मछली सारे तालाब को गन्दा कर देती है।
68. एक हाथ से ताली नहीं बजती–झगड़े में दोनों पक्षों की गलती होती है,
इसलिए कहा गया है–एक हाथ से ताली नहीं बजती।
69. एक पन्थ दो काज/एक ढेले से दो शिकार–एक उपाय से दो कार्यों का होना।
रामू हिन्दी विषय में एम. ए. की तैयारी कर रहा था, उसने साहित्यरत्न का। भी फॉर्म भर दिया, इस प्रकार उसके एक पन्थ दो काज हो गए।
70. एक आँख से रोवे, एक आँख से हँसे–दिखावटी रोना।
दादी की मृत्यु पर बुआ एक आँख से रो रही थी और एक आँख से हँस रही थी।
71. एक टकसाल के ढले हैं–सब एक जैसे हैं।
फैक्ट्री के कर्मचारियों को क्या कहोगे सब एक टकसाल के ढले हैं।
72. एक मुँह दो बात–अपनी बात से पलट जाना।
पहले आप कह रहे थे, मैं तुम्हें सम्पादक बनाऊँगा अब कह रहे हो उपसम्पादक बनाऊँगा। ये तो आप एक मुँह दो बात वाली बात कर रहे हो।
73. एक और एक ग्यारह होते हैं—एकता में बल है।
हमें मिलकर रहना चाहिए अन्यथा लोग लाभ उठा लेंगे। कहावत भी है–एक और एक ग्यारह होते हैं।
74. ऐसे बूढ़े बैल को कौन बाँध भुस देय–बूढ़ा और बेकार आदमी दूसरे पर बोझ हो जाता है।
भटनागर साहब बूढ़े हो गए और ठीक से कार्य नहीं कर पाते थे। अत: सेठ ने उन्हें नौकरी से निकाल दिया। सच है ऐसे बूढ़े बैल को कौन बाँध भुस देय।
(ओ)
75. ओखली में सर दिया तो मूसलों से क्या डरना–जब कार्य करना ही है तो आने वाली कठिनाइयों से नहीं डरना चाहिए।
टेस्ट क्रिकेट प्लेयर बनना चाहते हो तो छोटी–मोटी चोट से मत घबराओ। कहावत भी है ओखली में सर दिया तो मूसलों से क्या डरना।
76. ओछे की प्रीति बालू की भीति–दुष्ट व्यक्तियों की मित्रता क्षणिक होती है कृष्ण के आड़े वक्त में सोनू ने उसकी मदद नहीं की, बल्कि उसे हानि पहुँचाने का प्रयास किया। जबकि दोनों में मित्रता थी। सच है ओछे की प्रीति बालू की भीति।
77. ओस चाटे प्यास नहीं बुझती–बहुत कम वस्तु से आवश्यकता की पूर्ति नहीं होती।
शिवकुमार ने सेठ जी से लड़की के ब्याह हेतु 50. हजार रुपये माँगे, लेकिन सेठ जी ने दो हजार रुपये देने की बात कही, इस पर शिवकुमार बोला, “सेठ जी, ओस चाटे प्यास नहीं बुझती।”
(क)
78. कबीरदास की उल्टी बानी, बरसे कम्बल भीगे पानी–उल्टी बात कहना।
जब भी तुमसे कोई बात कही जाती है तो तुम कबीरदास की उल्टी बानी, बरसे कम्बल भीगे पानी वाली कहावत चरितार्थ कर देते हो।
79. कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा–इधर–उधर की सामग्री एकत्र करके कोई रचना करना।
आजकल लोग इधर–उधर की पुस्तकों से सामग्री लेकर पी. एच. डी. कर लेते हैं, ठीक ही कहा गया है–कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा।
80. कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली–अत्यधिक अन्तर।
बृहस्पति तो एक धनी बाप का पुत्र है और तुम एक मजदूर के बेटे हो, उसकी बराबरी कैसे करोगे? कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली।
81. काठ की हाण्डी बार–बार नहीं चढ़ती–अन्याय बार–बार नहीं चलता।
महेश बिना टिकट यात्रा के अपराध में पकड़ा ही गया, ठीक ही कहा गया है काठ की हाण्डी बार–बार नहीं चढ़ती
82. कर सेवा खा मेवा–अच्छे कार्य का फल अच्छा मिलता है।
सुनील ने अजय से कहा, “मेहनत से प्रकाशन में कार्य करो तरक्की पा जाओगे’ कहावत सच है कर सेवा खा मेवा।
83. कभी घना–घना, कभी मुट्ठी भर चना, कभी वह भी मना–जो मिले
उसी में सन्तुष्ट रहना चाहिए। तुम्हें जो काम मिले उतने में ही सन्तुष्ट रहते हो। तुम्हारे लिए कहावत सच है कभी घना–घना, कभी मुट्ठी भर चना, कभी वह भी मना।
84. कब्र में पाँव लटकाए बैठा है–मरने वाला है।
वो कब्र में पाँव लटकाए बैठे हैं, लेकिन मजाक भद्दी करते हैं।
85. कमली ओढ़ने से फकीर नहीं होता–ऊपरी वेशभूषा से किसी के अवगुण
नहीं छिप जाते। विवेक साइकिल चोर है लेकिन सूट–बूट में रहता है। लोग उसे जानते हैं इसलिए उससे कतराते हैं। सच है कमली ओढ़ने से फकीर नहीं होता।
86. कोयला होय न उजला सौ मन साबुन धोय–दुष्ट व्यक्ति की प्रकृति
में कोई परिवर्तन नहीं होता उसे चाहे कितनी ही सीख दी जाए। संजय को मैंने बहुत समझाया कि शराब और जुआ छोड़ दे पर वह नहीं माना। सच है कोयला होय न उजला सौ मन साबुन धोय।
87. कुत्ते भौंकते रहते हैं और हाथी चलता जाता है–महान् व्यक्ति छोटी–सी नुक्ता–चीनी पर ध्यान नहीं देता है।
साधु महाराज पर सड़क पर गुजरते समय कुछ लोग छींटाकशी कर रहे थे, लेकिन वे निरन्तर बढ़ते जा रहे। वहाँ ये कहावत चरितार्थ हो रही थी कुत्ते भौंकते रहते हैं और हाथी चलता जाता है।
88. काम का ना काज का दुश्मन अनाज का–निकम्मा व्यक्ति।
वह 30 वर्ष का हो गया, बेरोज़गार है। अतः सभी उसे कहते हैं काम का ना काज का दुश्मन अनाज का।
89. कोठी वाला रोवे छप्पर वाला सोवै–अधिक धन चिन्ता का कारण
होता है। सेठ रामलाल सारी रात जागते रहते हैं, चोरों के भय से उन्हें नींद नहीं आती। सच है कोठी वाला रोवे छप्पर वाला सोवे।
90. कहे खेत की, सुने खलिहान की–कहा कुछ गया और समझा कुछ गया।
तुम भी बिल्कुल नमूने हो, कहे खेत की, सुनते हो खलिहान की।
91. काम को काम सिखाता है–काम करते–करते आदमी होशियार हो जाता है।
जब दिनेश इस प्रकाशन में आया था प्रूफ रीडिंग से अनजान था, लेकिन काम को काम सिखाता है, आज वह ट्रेंड प्रूफ रीडर हो गया।
92. कहने से कुम्हार गधे पर नहीं चढ़ता–हठी पुरुष समझाने से दूसरों का कहना नहीं मानता।
लड़की के सगे सम्बन्धियों ने लड़के के पिता से खाना खाने का अनुरोध किया लेकिन नहीं माना तब लड़के के ताऊ ने कहा, कहने से कुम्हार गधे पर नहीं चढ़ता।
93. कोऊ नृप होय हमें का हानी—किसी के पद, धन या अधिकार मिलने से हम पर कोई प्रभाव नहीं होता।
कांग्रेस की सरकार आए या भाजपा की इससे हमें क्या फ़र्क पड़ता है। हमारे लिए तो कोऊ नृप होय हमें का हानि वाली कहावत चरितार्थ होती है।
94. कौआ चला हंस की चाल–दूसरों की नकल पर चलने से असलियत
नहीं छिपती तथा हानि उठानी पड़ती है। छोटे से प्रेस मालिक ने बड़े प्रकाशकों की नकल करते हुए मॉडल पेपर निकाल दिए लेकिन वे नहीं बिके जिससे भारी नुकसान उठाना पड़ा। जिनके पैसे डूब गए उन्हें कहना पड़ा कौआ चला हंस की चाल।।
95. कुएँ की मिट्टी कुएँ में ही लगती है–लाभ जहाँ से होता है, वहीं खर्च हो जाता है।
आशीष की नौकरी दिल्ली में लगी वहाँ पर मकान तथा अन्य खर्चे इतने अधिक हैं कि बचत नहीं हो पाती। सच है कुएँ की मिट्टी कुएँ में ही लगती है।
96. कुंजड़ा अपने बेरों को खट्टा नहीं बताता–कोई अपने माल को खराब नहीं कहता।
सब्जी वाले बासी सब्जी को भी ताजी बताकर बेचते हैं। कहावत सच है कुंजड़ा अपने बेरों को खट्टा नहीं बताता।
97. कुत्ता भी दुम हिलाकर बैठता है–सफ़ाई सबको पसन्द होती है।
तुम्हारी कुर्सी पर कितनी धूल जमी है। कैसे आदमी हो तुम, कुत्ता भी दुम हिलाकर बैठता है।
98. किया चाहे चाकरी राखा चाहे मान–स्वाभिमान की रक्षा नौकरी में नहीं हो सकती।
सेठ ने डाँट दिया तो क्या नौकरी छोड़ दोगे, किया चाहे चाकरी राखा चाहे मान।
99. कखरी लरका गाँव गोहार–वस्तु के पास होने पर दूर–दूर उसकी
तलाश करना। अच्छी संगीत पार्टी के लिए शर्मा जी दिल्ली तक गए, लेकिन मेरठ में ही कम पैसों में अच्छी संगीत पार्टी मिल गई, तब मित्र बोले कि कखरी लरका गाँव गोहार।
100. कोयले की दलाली में हाथ काले–बुरी संगति का परिणाम बुरा होता है।
वह जुआरियों के लिए बीड़ी सिगरेट ला देता है। अत: एक दिन जब पुलिस ने उन्हें पकड़ा तो उसे भी हड़काया। सच है कोयले की दलाली में हाथ काले।
101. काला अक्षर भैंस बराबर–निरक्षर व्यक्ति।
राजेश से पत्र लिखवाने की कह रहे हो; उसके लिए तो काला अक्षर भैंस बराबर है।
102. कानी के ब्याह को सौ जोखो–पग–पग पर बाधाएँ।
लोकेश के चुगली करने पर राधा का रिश्ता टूट गया, इस पर रामकली बोली, “बड़ी मुश्किल से रिश्ता हुआ था, सच कहावत है–कानी के ब्याह को सौ जोखो।”
(ख)
103. खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है–जब कोई व्यक्ति अपने साथी
के अनुसार आचरण करने लगता है तब यह कहावत कही जाती है।
104. खुदा गंजे को नाखून नहीं देता–अयोग्य को अधिकार नहीं मिलता।
अकर्मण्य व्यक्ति को अधिकार नहीं मिल पाते हैं, क्योंकि खुदा गंजे को नाखून नहीं देता।
105. खेत खाए गदहा, मारा जाए जुलाहा–जब किसी व्यक्ति के अपराध पर दण्ड किसी अन्य को मिलता है तब यह कहावत चरितार्थ होती है।
106. खोदा पहाड़ निकली चुहिया–अधिक कार्य का अत्यल्प फल।
भाजपा के शीर्ष नेताओं ने यू. पी. में लोकसभा चुनावों में बहुत परिश्रम किया लेकिन बहुमत नहीं ले पाई। सच में यह कहावत चरितार्थ हो गई खोदा पहाड़ निकली चुहिया।
107. खाक डाले चाँद नहीं छिपता–अच्छे आदमी की निंदा करने से कुछ नहीं बिगड़ता।
महात्मा गाँधी की निंदा करना अनुचित है। खाक डाले चाँद नहीं छिपता।
108. खुदा की लाठी में आवाज़ नहीं होती–कोई नहीं जानता कि भगवान कब, कैसे, क्यों दण्ड देता है।
तुम गरीबों का घोर शोषण करते हो, जानते नहीं खुदा की लाठी में आवाज नहीं होती।
109. खग ही जाने खग की भाषा–सब अपने–अपने सम्पर्क के लोगों का हाल समझते हैं।
व्यापारी एक–दूसरे से इशारे ही इशारों में बात कर लेते हैं और आम इनसान कुछ नहीं समझ पाता। सच है खग ही जाने खग की भाषा।
110. खरी मजूरी चोखा काम–पूरी मज़दूरी देने पर ही काम अच्छा होता है।
अच्छे फैक्ट्री मालिक खरी मजूरी चोखा काम की नीति में विश्वास करते हैं।
111. खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे–खिसियाहट में क्रोधवश लोग अटपटा कार्य करते हैं।
अधिकारी से डाँट खाने के पश्चात् क्लर्क चपरासी से जाड़े में कोल्ड ड्रिंक लाने की हुज्जत करने लगा। इस पर साथी ने कहा खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे।
112. खुशामद से ही आमद है–खुशामद से ही धन आता है।
आजकल का समय खुशामद से ही आमद का है।
113. खेती, खसम लेती है–कोई काम अपने हाथ से करने पर ही ठीक होता है।
रोज घर जल्दी चले आते हो, ऐसे तो व्यापार ठप्प हो जाएगा। जानते हो खेती, खसम लेती है।
114. खूटे के बल बछड़ा कूदे–किसी की शह पाकर ही आदमी अकड़ दिखाता है।
मैं जानता हूँ तुम किस खूटे के बल कूद रहे हो, मैं उसे भी देख लूँगा।
(ग)
115. गुड़ खाए गुलगुलों से परहेज–बनावटी त्याग।
स्वामी जी प्याज नहीं खाते, परन्तु प्याज की पकौड़ियाँ खाँ लेते हैं, ऐसे ही लोगों के लिए कहा गया है—गुड़ खाए गुलगुलों से परहेज।
116. गंगा गए गंगादास जमुना गए जमुनादास–जो व्यक्ति सामने आए उसकी प्रशंसा करना। कुछ लोगों की आदत होती है कि उनके सामने जो व्यक्ति आता है उसी की प्रशंसा करने लगते हैं, ऐसे लोगों के लिए ही कहा जाता
है–गंगा गए गंगादास, जमुना गए जमुनादास।
117. गाँठ का पूरा आँख का अंधा–पैसे वाला तो है पर है मुर्ख।
आज के युग में गाँठ का पूरा आँख का अंधे की तलाश किसे नहीं है।
118. गवाह चुस्त मुद्दई सुस्त—जिसका काम है वो आलस्य में रहे और
दूसरे फुर्ती दिखाएँ। मास्टर जी तुम्हें पास कराने के लिए पूरी मेहनत कर रहे हैं और तुम बिल्कुल भी पढ़ने में मन नहीं लगा रहे, ये तो गवाह चुस्त मुद्दई सुस्त वाली बात हो गई।
119. गोदी में बैठकर दाढ़ी नोचे–भला करने वाले के साथ दुष्टता करना।
आजकल बहुत बुरा समय आ गया है। लोग गोदी में बैठकर दाढ़ी नोचते हैं।
120. गए रोज़े छुड़ाने नमाज़ गले पड़ी–अपनी मुसीबत से पीछा छुड़ाने
की इच्छा से प्रयत्न करते–करते नई विपत्ति का आ जाना।। शर्मा जी मेहमान आने के भय से घूमने गए। वहाँ उनके समधी मिल गए और उनका स्वागत करना पड़ा। गए रोज़े छुड़ाने नमाज़ गले पड़ी।
121. गधा धोने से बछड़ा नहीं हो जाता है किसी भी उपाय से स्वभाव
नहीं बदलता। उससे तुम्हारा विवाह नहीं हुआ अच्छा हुआ। वो तो बहुत अहंकारी औरत है। कहावत है गधा धोने से बछड़ा नहीं हो जाता।
122. गीदड़ की शामत आए तो गाँव की ओर भागे–विपत्ति में बुद्धि काम
नहीं करती। लाला परमानन्द के यहाँ आयकर विभाग का छापा पड़ा तो उस कमरे में चल दिए जहाँ अकूत धन और कागज़ रखे हुए थे। इसे देख आयकर वाले बोले गीदड़ की शामत आए तो गाँव की ओर भागे।
123. गरजै सो बरसै नहीं–डींग हाँकने वाले काम नहीं करते।
राजेश ने कहा था कि वह आई. ए. एस. बनके दिखाएगा। इस पर मित्र ने कहा, जो गरजै सो बरसै नहीं।
(घ)
124. घर का भेदी लंका ढावे–रहस्य जानने वाला बड़ा घातक होता है।
जयचन्द ने मुहम्मद गोरी से मिलकर घर का भेदी लंका ढावे उक्ति को चरितार्थ कर दिया।
125. घोड़ा. घास से यारी करे तो खाए क्या–व्यापार में रिश्तेदारी नहीं
निभाई जाती। जो जिस वस्तु का व्यापार करता है, उसमें लाभ न ले तो, उसका खर्च कैसे चले। इसीलिए कहा गया है कि घोड़ा घास से यारी करे तो खाए क्या।
126. घोड़ों को घर कितनी दूर–पुरुषार्थी के लिए सफलता सरल है।
आशीष रात में कार चलाकर नैनी से लखनऊ आया तो ससुर साहब ने चिन्ता जतायी। इस पर आशीष ने कहा घोड़ों को घर कितनी दूर।
127. घोड़े को लात, आदमी को बात–दुष्ट से कठोरता का और सज्जन से नम्रता का व्यवहार करें।
सुनील घोड़े को लात, आदमी को बात वाली नीति में विश्वास करता है।
128. घायल की गति घायल जाने–जो कष्ट भोगता है वही दूसरे के कष्ट को समझ सकता है।
गरीब आदमी कैसे अभाव में अपना जीवन गुजारता है। यह गरीब व्यक्ति ही समझ सकता है। सच है घायल की गति घायल जाने।
129. घर का जोगी जोगना आन गाँव का सिद्ध—किसी आदमी की प्रतिष्ठा अपने निवास स्थान पर कम होती है।
वह मेरठ में तो एक साधारण से प्रकाशन में था, लेकिन दिल्ली जाकर बहुत बड़े प्रकाशन में उच्च पद पर पहुँच गया है। सच है घर का जोगी जोगना आन गाँव का सिद्ध।
130. घर आए कुत्ते को भी नहीं निकालते–घर में आने वाले का सत्कार करना चाहिए।
शिवानी जाओ चाय नाश्ता ले जाओ। भले ही यह व्यक्ति हमारा विरोधी है। जानती नहीं घर आए कुत्ते को भी नहीं निकालते।
131. घोड़े की दुम बढ़ेगी तो अपनी ही मक्खियाँ उड़ाएगा–उन्नति करके आदमी अपना ही भला करता है।
कल तक नेताजी पर साइकिल नहीं थी। विधायक होते ही उन पर ऐश–ओ–आराम की सभी वस्तुएँ आ गईं। कहावत भी है घोड़े की दुम बढ़ेगी, तो अपनी ही मक्खियाँ उड़ाएगा।
132. घर की मुर्गी दाल बराबर–अपने घर के गुणी व्यक्ति का सम्मान न करना।
जब मुझे बीरबल साहनी पुरस्कार प्रदान किया गया तब घर के लोगों में ऐसा उत्साह नहीं देखा गया, जैसा दिखना चाहिए। सच “घर की मुर्गी दाल बराबरा”।
133. घर खीर तो बाहर भी खीर–सम्पन्नता में सर्वत्र प्रतिष्ठा मिलती है।
इतना जान लो कि जब तुम्हारा पेट भरा रहेगा तभी दूसरे लोग खाने के लिए पूछेगे। सच, “घर खीर तो बाहर भी खीर।”
(च)
134. चमड़ी जाय पर दमड़ी न जाय–बहुत कंजूस होना।
जो व्यक्ति बहुत कंजूस होते हैं उनके लिए कहा जाता है–चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए।
135. चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात–अल्प समय के लिए लाभ।
नैनीताल के होटल वाले गर्मी में पर्यटकों से अधिक से अधिक पैसा कमाने का प्रयास करते हैं, क्योंकि मौसम निकलने के बाद ऐसा अवसर कहाँ? ठीक ही कहा गया है–चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात।
136. चोर की दाढ़ी में तिनका–अपराधी सदा शंकित रहता है।
कथा—एक दरोगा जी चोरी के मामले पर विचार कर रहे थे। जिन–जिन लोगों पर शक था, वे सभी सामने खड़े थे। थोड़ी देर बाद दरोगा जी ने कहा–जो चोर है उसकी दाढ़ी में तिनका है: ह सुनकर सभी लोग ज्यों, के त्यों खड़े रहे, लेकिन जो चोर था वह अपनी दाढ़ी पर हाथ फेर कर देखने लगा कि कहीं मेरी दाढ़ी में तिनका तो नहीं है। दरोगा जी तुरन्त ताड़ गए कि कौन चोर है। यह कहावत इसी कथा से निकली हुई प्रतीत होती है।
137. चौबे गए छब्बे बनने, दूबे बनकर आए–लाभ के बदले हानि।
जब कोई व्यक्ति लाभ की आशा से कोई कार्य करता है और उसमें हानि हो जाती है, तब यह कहावत चरितार्थ होती है।
138. चोर के पैर नहीं होते–अपराधी अशक्त होता है।
जब पुलिस ने कड़ाई से रविन्द्र से पूछताछ की तो उसने स्वीकार कर लिया कि उसने ही चोरी की है। सच कहावत है चोर के पैर नहीं होते।
139. चिकने घड़े पर पानी नहीं ठहरता–निर्लज्ज पर उपदेशों का असर नहीं
पड़ता। गिरीश मोहन को चाहे कितना समझा लो, डांट लो, शर्मिन्दा कर लो; लेकिन उस पर कोई असर नहीं होता है। चिकने घड़े पर पानी नहीं ठहरता कहावत उस पर चरितार्थ होती है।
140. चिराग में बत्ती और आँख में पट्टी–शाम होते ही सोने लगना।
अब राज के घर जाना बेकार है वह तो चिराग में बत्ती और आँख में पट्टी वालों में है।
141. चूहों की मौत बिल्ली का खेल–किसी को कष्ट देकर मौज़ करना।
कालाबाज़ारियों को अधिक से अधिक लाभ से मतलब है चाहे कितने ही लोग भूख से मर जाएँ। कहावत है चूहों की मौत बिल्ली का खेला,
142. चींटी की मौत आती है तो पर निकलते हैं–घमण्ड करने से नाश होता
सुबोध तुम्हें घमण्ड हो गया। यह मत भूलो चींटी की मौत आती है तो पर निकलते हैं।
143. चूहे का बच्चा बिल खोदता है–जाति स्वभाव में परिवर्तन नहीं होता।
बबलू लकड़ी का मकान बनाता है, उसके पिता बिल्डर हैं। सच है चूहे का बच्चा बिल खोदता है।
144. चोरी और सीना जोरी–दोषी भी हो घुड़की भी दे।
पहले जैन साहब से दस हजार रुपए उधार ले गए, माँगने पर कहते हो . दिए ही नहीं। पुलिस में रिपोर्ट कर दूंगा कि तुम कालाबाजारी करते हो। तुम्हारी नीति सही है चोरी और सीना जोरी।
145. चोर–चोर मौसरे भाई–एक पेशे वाले आपस में नाता जोड़ लेते हैं।
यदि आज किसी विभाग के सरकारी कर्मचारी, भ्रष्ट व्यापारी और उद्योगपति के छापा मारते हैं, तो वे सब एक होकर उसका विरोध करने लगते हैं। सच है चोर–चोर मौसरे भाई।
146. चुपड़ी और दो–दो–अच्छी चीज और वह भी बहुतायत में।
राज का पी. सी. एस. में चयन हो गया और उसे पोस्टिंग भी मुज़फ़्फ़रनगर में मिल गई। यही तो है चुपड़ी और दो–दो।
147. चोरी का माल मोरी में—गलत ढंग से कमाया धन यों ही बर्बाद होता है।
परचून की दुकान वाले ने मिलावट करके लाखों रुपया कमाया लेकिन कुछ पैसा बीमारी में लग गया बाकी चोर चोरी करके चले गए, तब पड़ोसी बोले चोरी का माल मोरी में।
148. छछुन्दर के सिर पर चमेली का तेल–किसी व्यक्ति को ऐसी वस्तु की प्राप्ति हो, जिनके लिए वह सर्वथा अयोग्य हो।
उसे हिन्दी भाषा का तनिक भी जान नहीं था, किन्तु वह हिन्दी विषय का प्रवक्ता बन गया। यह तो, “छछुन्दर के सिर पर चमेली का तेल” के समान है।
149. छोटा मुँह बड़ी बात– छोटे लोगों का बढ़–चढ़कर बोलना।
राकेश सामान्य–सा चपरासी है, किन्तु अपने अधिकारियों से ऐसे रौब झाड़ते हुए बात करता है, जैसे– “छोटा– मुँह बड़ी बात।”
(ज)
150. जल में रहकर मगर से बैर–बड़ों से शत्रुता नहीं चलती।
उमेश तुमने अपने अधिकारी से बिगाड़ क्यों की? जल में रहकर मगर से बैर नहीं चलेगा।
151. जब तक साँस तब तक आस–आशा जीवनपर्यन्त बनी रहती है।
डॉक्टर को बुलाकर दिखा दीजिए जब तक साँस तब तक आस।
152. जहाँ न जाए रवि वहाँ जाए कवि–कवि की कल्पना अनन्त होती है।
कालिदास और भवभूति जैसे कवियों की रचनाओं को पढ़कर कहा जा सकता है–जहाँ न जाए रवि वहाँ जाए कवि।
153. जान है तो जहान है–जीवन ही सब कुछ है।
कथा है–किसी गाँव के तालाब में एक सियार डूब रहा था। गाँव के लोग उसे देख रहे थे। डूबता सियार चिल्लाने लगा, अरे बचाओ ! सारा जहान डूबा जा रहा है। गाँव वालों ने सोचा सियार शगुनी जानवर होता है, अवश्य ही कोई विशेष बात कह रहा होगा। ऐसा सोचकर गाँव वालों ने उसे पानी से निकाला और जहान डूबने की बात पूछी। सियार ने उत्तर दिया–जब मैं डूबा जा रहा था तो मेरे लिए सारा जहान डूबा जा रहा था। जान है तो जहान है, जान नहीं तो जहान नहीं। तभी से यह कहावत चल पड़ी–जान है तो जहान है।
154. जिसकी लाठी उसकी भैंस–जबर्दस्त का बोल–बाला।
आजकल नेतागण गुण्डागर्दी के बलबूते चुनाव जीतकर जिसकी लाठी उसकी भैंस कहावत को चरितार्थ करते हैं।
155. जहँ–जहँ पाँव पड़े सन्तन के तहँ–तहँ होवै बन्टाधार—मनहूस आदमी हर काम को बनाने के बजाय उसमें विघ्न ही डालता है।
उसे शादी में लाइट की व्यवस्था का जिम्मा मत सौंपना उस पर तो जहँ–जहँ पाँव पड़े सन्तन के तहँ–तहँ बन्टाधार कहावत चरितार्थ होती है।
156, जहाँ देखे तवा परात वहाँ गाए सारी रात–लालच में कोई काम करना।
पूँजीवादी व्यवस्था में बहुत से बेरोज़गार जहाँ देखे तवा परात वहाँ गाए सारी रात वाली नीति पर चलने लगे हैं।
157. जाकै पैर न फटे बिवाई वह क्या जाने पीर पराई–स्वयं दुःख भोगे बिना दूसरे के दर्द का एहसास नहीं होता।
वो गरीब है इसलिए तुम उसका मज़ाक उड़ा रहे हो कि उसके जूते फटे हैं। सच कहावत है जाकै पैर न फटे बिवाई वह क्या जाने पीर पराई।
158. जहाँ मुर्गा नहीं होता क्या सवेरा नहीं होता—किसी एक की वजह से
संसार का काम नहीं रुकता। तुम यदि प्रकाशन से चले गए तो प्रकाशन क्या बन्द हो जाएगा। कहावत नहीं सुनी जहाँ मुर्गा नहीं होता तो क्या सवेरा नहीं होता।
159. जाय लाख रहे साख–इज्जत रहनी चाहिए व्यय कुछ भी हो जाए।
मेरा तो एक सूत्रीय सिद्धान्त में विश्वास है जाय लाख रहे साख।
160. जान बची लाखो पाए–किसी झंझट से मुक्ति।
दंगे में शर्मा जी फँस गए। किसी तरह पुलिस की मदद से निकले तो कहने लगे जान बची लाखो पाए।
161. जान मारे बनिया पहचान मारे चोर–बनिया और चोर जान पहचान वाले को ही ज़्यादा ठगते हैं।
बनिये ने इस महीने मुझसे सामान में दो सौ रुपए अधिक ले लिए, जबकि वो हमें अच्छी तरह जानता है। इस पर मैडम बोली जानते नहीं जान मारे बनिया पहचान मारे चोर।
162. जिन ढूंढा तिन पाइया गहरे पानी पैठ–जो संकल्पशील होते हैं, वे कठिन परिश्रम करके अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेते हैं।
163. जस दूल्हा तस बनी बरात–जैसा मुखिया वैसे ही अन्य साथी।
जैसे बिजली विभाग का इंजीनियर भ्रष्ट है वैसे ही उसके कार्यालय के अन्य कर्मचारी भ्रष्ट हैं। कहावत सच है, जस दूल्हा तस बनी बरात।
164. जैसे साँपनाथ वैसे नागनाथ–दोनों एक समान।
मायावती भाजपा और कांग्रेस को जैसे साँपनाथ वैसे नागनाथ कहती हैं।
165. जीभ जली और स्वाद भी कुछ न आया–बदनामी भी हुई और लाभ भी नहीं मिला।
तुमने उस लड़की से प्यार किया उसने धोखा दिया और किसी और से शादी कर ली। तुमने तो जीभ जली और स्वाद भी कुछ न आया वाली कहावत चरितार्थ कर दी।
166. जहाँ जाय भूखा वहाँ पड़े सूखा–दुःखी कहीं भी आराम नहीं पा सकता।
गरीबी से तंग आकर विराट भाई के पास रहने के लिए चला गया पर वहाँ पता लगा कि कुछ दिन पहले घर चोरी हो गई। वह सोचने लगा–जहाँ जाए भूखा वहाँ पड़े सूखा।
167. जड़ काटते जाना और पानी देते रहना–ऊपर से प्रेम दिखाना, अप्रत्यक्ष में
हानि पहुँचाते रहना। प्रशान्त जब मुझसे मिलता है हँसकर प्रेम से बात करता है लेकिन पीछे भाई साहब से मेरी बुराई करता है। जब मुझे पता चला तो मैंने उससे कहा कि तुम जड़ काटते हो ऊपर से पानी देते हो।
168. जितने मुँह उतनी बातें––एक ही बात पर भिन्न–भिन्न कथन।
तुम अपने काम में ध्यान लगाओ। लोगों का काम तो कहना है जितने मुँह उतनी बातें।
169. जो हाँडी में होगा वह थाली में आएगा–जो मन में है वह प्रकट होगा ही।
मित्रता का दम भरने वाला प्रशान्त जब भाई के सामने ज़हर उगलने लगा तो मैंने कहा–जो हाँडी में होगा वह थाली में आएगा, आखिर तुम्हारी असलियत पता चल ही गई।
170. जैसा करोगे वैसा भरोगे–अपनी करनी का फल मिलता है।
निर्दोष लोगों की हत्या करने वालों को पुलिस ने एनकाउंटर में मार गिराया। कहावत सच है जैसा करोगे वैसा भरोगे।
171. जैसा मुँह वैसा थप्पड़–जो जिसके योग्य हो उसे वही मिलता है।
शादी में मौसी और मामी को मम्मी ने बढ़िया साड़ियाँ दी जबकि बुआओं को साधारण साड़ी दी। कहावत सच है जैसा मुँह वैसा थप्पड़।
172. जैसे कन्ता घर रहे वैसे रहे परदेश–निकम्मा आदमी घर में हो या बाहर कोई अन्तर नहीं।
पहले नवनीत घर पर रहता था तो भी कुछ नहीं कमाता था, जब दिल्ली गया तो दोस्त के घर पर उसके टुकड़ों पर रहने लगा। जैसे कन्ता घर रहे वैसे रहे परदेश।
173. जितना गुड़ डालो, उतना ही मीठा–जितना खर्च करोगे वस्तु उतनी ही अच्छी मिलेगी।
आप ₹ 200 में सिल्क की शानदार साड़ी माँग रही हो। इतने में तो साधारण साड़ी आएगी। बहन जी जितना गुड़ डालोगी, उतना ही मीठा होगा।
174. जिस थाली में खाना उसी में छेद करना—जो उपकार करे उसका अहित करना।
मुझ पर ऐसा इल्ज़ाम लगाना तुम्हें शोभा नहीं देता। मैं जिस थाली में खाता हूँ उसी में छेद नहीं करता।
175. जिसका खाइये उसका गाइये–जिससे लाभ हो उसी का पक्ष लें।
आजकल लोग इतने समझदार हो गए हैं कि जिसका खाते हैं उसका गाते हैं।
176. जिसका काम उसी को साजै–जो काम जिसका है वही उसे ठीक तरह
से कर सकता है। एक दिन शिवानी बिजली का प्लग सही करने लगी तो वह रहा सहा भी खराब हो गया। इस पर मैंने कहा जिसका काम उसी को साजै।
177. जितनी चादर देखो उतने पैर पसारो–अपनी आमदनी के हिसाब से खर्च करो।
सुबोध एक ही सप्ताह में सारी तनख्वाह खर्च कर देता है फिर लोगों से उधार लेता रहता है। एक दिन साहब ने कहा सुबोध जितनी चादर हो उतने पैर पसारने चाहिए।
178. ज्यों–ज्यों भीजे कामरी त्यों–त्यों भारी होय–जैसे–जैसे समय बीतता है
जिम्मेदारियाँ बढ़ती जाती हैं। राजीव के एक बच्चा हो जाने के पश्चात् उसकी जिम्मेदारियाँ बढ़ गई हैं। कहावत है ज्यों–ज्यों भीजे कामरी त्यों–त्यों भारी होय।
179. जैसा देश वैसा भेष–किसी स्थान का पहनावा, उस क्षेत्र विशेष के अनुरूप होता है।
जब मैं घर से बाहर शहर जाता हूँ, तो पैंट–शर्ट पहनता हूँ और जब गाँव में रहता हूँ तो कुर्ता–पायजामा पहनता हूँ, सच है जैसा देश वैसा भेष।
(झ)
180. झूठ के पाँव नहीं होते– झूठ बोलने वाला एक बात पर नहीं टिकता।
न्यायालय में पैरवी के दौरान एक ही गवाह के तरह–तरह के बयान से न्यायाधीश बौखला गया। वह समझ गया था, “झूठ के पाँव नहीं होते।”
181. झोंपड़ी में रह, महलों का ख़्वाब देखें–सामर्थ्य से बढ़कर चाह रखना ‘झोपड़ी में रह, महलों का ख़्वाब देखें’ कहावत उन लोगों पर सटीक बैठती है, जो पूरी तरह से अर्थाभाव में जीते हैं, किन्तु मालदार सेठ बनने का ख़्वाब देखते हैं।
(ट)
182. टके की मुर्गी नौ टके महसूल–कम कीमती वस्तु अधिक मूल्य पर देना।
जब किसी वस्तु के मूल्य से अधिक उस पर खर्च हो जाता है, तब यह कहावत कही जाती है।
183. टके का सब खेल–“धन–दौलत से ही सब कार्य सिद्ध होते हैं।”
आज के युग में जो चाहो, पैसा देकर हथिया लिया जा सकता है, क्योंकि भ्रष्टाचार के ज़माने में ‘टके का सब खेल’ है।
(ठ)
184. ठोक बजा ले चीज़, ठोक बजा दे दाम–अच्छी वस्तु का अच्छा मूल्य।
यह तो बाज़ार है–यहाँ कुछ वस्तुएँ सस्ती हैं तो कुछ महँगी भी, यानि जैसी चीज़ वैसा दाम। ऐसे में तो ‘ठोक बजा ले चीज़, ठोक बजा दे दाम’ वाली कहावत चरितार्थ होती है।
185. ठोकर लगे तब आँख खुले—“कुछ गँवाकर ही अक्ल आती है।
तुम अपने को कितना ही समझदार कह लो, लेकिन जब तक ठोकर नहीं लगती आँख नहीं खुलती।
(ड)
186. डण्डा सबका पीर–सख्ती करने से लोग नियंत्रित होते हैं।
कक्षा में राहुल नाम का छात्र बहुत शरारती था, लेकिन जब से अध्यापकों ने थोड़ी सी सख़्ती क्या की, वह अनुशासन में रहता है, क्योंकि ‘डण्डा सबका पीर’ होता है।
187. डायन को दामाद प्यारा–अपना सबको प्यारा होता है।
यदि तुम उस नेता के लड़के की शिकायत करोगे तो क्या वह तुम्हारी सुनेगा, क्योंकि ‘डायन को दामाद प्यारा’ होता है।
188. ढाक के तीन पात–सदैव एक–सी स्थिति में रहने वाला।
वास्तव में, जो योगी होता है, उसके लिए न तो हर्ष है और न विषाद, वह तो एक ही स्थिति में रहता है ‘ढाक के तीन पात’ की तरह।
189. ढोल के भीतर पोल/ढोल में पोल–केवल ऊपरी दिखावा।
कविता अंग्रेज़ी में कुछ भी बोलती रहती है, अभी उससे पूछो कि ‘सेन्टेंस’ कितने प्रकार के होते हैं ‘तब ढोल के भीतर पोल’ दिखना शुरू हो जाएगा।
(त)
190. तलवार का घाव भरता है, पर बात का घाव नहीं भरता–मर्मभेदी बात आजीवन नहीं भूलती।
किसी को हृदय विदारक शब्द मत कहो, क्योंकि वे आजीवन याद रहते हैं, इसीलिए कहा गया है कि तलवार का घाव भरता है, पर बात का घाव नहीं भरता।
191. तेली का तेल जले, मशालची का दिल जले–जब कोई व्यक्ति किसी की सहायता करता है और जलन अन्य व्यक्ति को होती है।
लाला रामप्रसाद को रोजाना दान पुण्य करते देख पड़ोसी उन्हें पाखण्डी कहते हैं। सच है तेली का तेल जले, मशालची का दिल जले।
192. तिरिया बिन तो नर है ऐसा, राह बटोही होवे जैसा—बिना स्त्री के पुरुष का कोई ठिकाना नहीं।
जब से विकास की पत्नी उसे छोड़कर गई है तब से उसकी दशा तो तिरिया बिन तो नर है ऐसा, राह बताऊ होवे जैसा वाली हो गई है।
193. तू डाल–डाल, मैं पात–पात–एक से बढ़कर दूसरा चालाक।
मनोज से संजय ने ₹ 10 हजार उधार लिए। माँगने पर वह आनाकानी करता था। एक दिन मनोज उसका कम्प्यूटर उठा लाया और पैसे देने पर ही देने की बात कही। इसे कहते हैं तू डाल–डाल, मैं पात–पात।
194. तख्त या तख्ता–शान से रहना या भूखो मरना।
उसकी आदत तो, तख्त या तख्ता वाली है।
195. तुम्हारे मुँह में घी–शक्कर–तुम्हारी बात सच हो।
उसने मुझे लड़का होने की दुआ दी, मैंने उससे कहा तुम्हारे मुँह में घी–शक्कर।
196. तेल देखो तेल की धार देखो–सावधानी और धैर्य से काम लो।
चुनाव की घोषणा होते ही तुम जीत के दावे करने लगे। पहले तेल देखो तेल की धार देखो।
197. तलवार का खेत हरा नहीं होता–अत्याचार का फल अच्छा नहीं होता।
तुम जो कर रहे हो वो ठीक नहीं है, तलवार का खेत हरा नहीं होता।
198. थूक से सत्तू सानना– कम सामग्री से काम पूरा करना।
इतने बड़े यज्ञ के लिए दस किलो घी तो थूक से सत्तू सानने के समान है।
199. थोथा चना बाजे घना–अकर्मण्य अधिक बात करता है।
राजेश के आश्वासन की क्या आशा करना, वह तो थोथा चना बाजे घना है। आपके लिए करेगा कुछ नहीं और बातें दुनिया भर की करेगा।
200. थोड़ी पूँजी धणी को खाय–अपर्याप्त पूँजी से व्यापार में घाटा होता है।
सुबोध ने गेंद बनाने की फैक्ट्री लगायी, कच्चा माल उधार लेने लगा जो महँगा मिला, इस कारण उसे घाटा उठाना पड़ा। सच है थोड़ी पूँजी धणी को खाय।
(द)
201. दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम–अस्थिर–विचार वाला व्यक्ति कुछ भी नहीं कर पाता है।
इस वर्ष तुमने न तो बी. एड. का फार्म भरा और न एम. ए. का ही, वही हाल हुआ कि दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम।
202. दूध का जला छाछ भी फूंक–फूंककर पीता है—ठोकर खाने के बाद आदमी सावधान हो जाता है।
किसी काम में हानि हो जाने पर दूसरा काम करने में भी डर लगता है। भले ही उसमें डर की सम्भावना न हो, ठीक ही कहा गया है–दूध का जला छाछ (मट्ठा) भी फूंक–फूंककर पीता है।
203. दूर के ढोल सुहावने–दूर से ही कुछ चीजें अच्छी लगती हैं।
तुम दोनों दूर–दूर रहो वरना लड़ाई होगी, क्योंकि दूर के ढोल सुहावने होते हैं।
204. दाल भात में मूसलचन्द–दो के बीच अनावश्यक व्यक्ति का हस्तक्षेप करना।
अजय और सुनील मित्र हैं, दोनों में घुटकर बातचीत होती रहती है, लेकिन विनय उनकी बातचीत में हस्तक्षेप करता है तब उससे कहना ही पड़ता है, दाल भात में मूसलचन्द मत बनो।
205. दाने–दाने पर मुहर–हर व्यक्ति का अपना भाग्य।
मैं और सचिन नाश्ता कर रहे थे, इतने में अनिल आ गया तो मैंने कहा दाने–दाने पर मुहर होती है।
206. दाम संवारे काम–पैसा सब काम करता है।
जब राजीव इंग्लैण्ड से भारत आया तो सब कुछ बदला–सा नजर आया इस पर साथियों ने कहा दाम संवारे सबई काम।
207. दुधारू गाय की लात सहनी पड़ती है–जिससे कुछ पाना होता है, उसकी
धौंस डपट सहन करनी पड़ती है।
208. दूध पिलाकर साँप पोसना–शत्रु का उपकार करना।
तुम राजेन्द्र को अपने यहाँ लाकर दूध पिलाकर साँप पोसना कहावत को चरितार्थ न करना।
209. दूसरे की पत्तल लम्बा–लम्बा भात–दूसरे की वस्तु अच्छी लगती है।
तुम्हें मेरी सरकारी नौकरी अच्छी लग रही है। मुझे तुम्हारा व्यापार, जिससे खूब आय है। सच कहावत है दूसरे की पत्तल लम्बा–लम्बा भात।
210. दोनों दीन से गए पाण्डे हलुआ मिला न माँडे—किसी तरफ़ के न होना।
उसने सरकारी नौकरी छोड़कर चुनाव लड़ा। वह चुनाव हार गया। इस प्रकार दोनों दीन से गए पाण्डे हलुआ मिला न माँडे।
211. दो मुल्लों में मुर्गी हलाल–दो को दिया काम बिगड़ जाता है।
भाई साहब इस प्रोजेक्ट को दो लोगों को मत दीजिए, दो मुल्लों में मुर्गी हलाल हो जाती है।
(ध)
212. धन्ना सेठ के नाती बने हैं अपने को अमीर समझते हैं।
जेब में सौ रुपए नहीं रहते वैसे अपने को धन्ना सेठ के नाती बनते हैं।
213. धूप में बाल सफेद नहीं किए हैं–सांसारिक अनुभव बहुत है।
तुम हमें बहकाने की कोशिश मत करो, ये बाल धूप में सफेद नहीं किए हैं।
(न)
214. नंगा क्या नहायेगा, क्या निचोड़ेगा–जिसके पास कुछ है ही नहीं, वह क्या अपने पर खर्च करेगा और क्या दूसरों पर।
बेरोज़गार अजय के साले की शादी है। कैसे नए कपड़े बनवाए, कैसे लेन–देन की व्यवस्था करे। सच कहावत है नंगा क्या नहायेगा, क्या निचोड़ेगा।
215. न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी–काम न करने के उद्देश्य से असम्भव बहाने बनाना।
कथा–कोई राधा नाम की वेश्या थी। उसका नृत्य बहुत प्रसिद्ध हो गया था, लेकिन उसे उतना अच्छा नाचना नहीं आता था। इसलिए जब कोई व्यक्ति उसे नाचने के लिए बुलाता तो वह यही कह देती थी कि नौ मन तेल का चिराग जलाओ, तब नाचूँगी। लोग न तो नौ मन तेल इकट्ठा कर पाते और न उसका नाच–गाना ही हो पाता। इस प्रकार जब कोई व्यक्ति काम न करने के उद्देश्य से असम्भव बहाने बनाने लगता है तब यह कहावत चरितार्थ होती है।
216. नाच न आवे आँगन टेढ़ा–जब कोई व्यक्ति दूसरों के दोष निकालकर अपनी अयोग्यता को छिपाने का प्रयास करता है।
तुम आउट हो गए और दोष अम्पायर को दे रहे हो। तुम तो नाच न आवे आँगन टेढ़ा कहावत चरितार्थ कर रहे हो।
217. नीम न मीठा होय सींचो गुड़ घी–से–बुरे लोगों का स्वभाव नहीं
बदलता, प्रयाग चाहे जैसा किया जाए।
218. नाक दबाने से मुँह खुलता है–कठोरता से कार्य सिद्ध होता है।
शाह आलम साहब, नाक दबाने से मुँह खुलता है, नीति में विश्वास करते
219. नक्कारखाने में तूती की आवाज–बड़ों के बीच में छोटे आदमी की
कौन सुनता है। व्यवस्था परिवर्तन चाहने वालों की आवाज़ नक्कारखाने में तूती की आवाज़ बनकर रह गई है।
220. नानी क्वांरी मर गई, नाती के नौ–नौ ब्याह–झूठी बड़ाई।
निर्भय हर जगह अपनी धन–दौलत का गुणगान करता रहता है। एक दिन अजय ने उससे कह दिया नानी क्वांरी मर गई, नाती के नौ–नौ ब्याह।
221. नदी नाव संयोग–कभी–कभी मिलना।
अरे आज तुम इतने दिन बाद मिल गए, ये तो नदी नाव संयोग वाली कहावत चरितार्थ हो गई।
222. नकटा बूचा सबसे ऊँचा–निर्लज्ज आदमी सबसे बड़ा है।
निर्भय से जीतना असम्भव है। उस पर तो नकटा बूचा सबसे ऊँचा वाली कहावत लागू होती है।
223. नेकी कर और कुएँ में डाल–भलाई का काम करके फल की आशा मत करो।
मेरा तो सिद्धान्त है नेकी कर और कुएँ में डाल। इसलिए जिसकी मदद होती है कर देता हूँ।
224. नौ नकद, न तेरह उधार–नकद का काम उधार के काम से अच्छा है।
व्यापार में लाला जी पैसे तो आपको नकद देने पड़ेंगे। हमारा प्रकाशन नौ नकद न तेरह उधार की कहावत में विश्वास करता है।
225. नया नौ दिन पुराना सौ दिन–पुरानी चीजें ज्यादा दिन चलती हैं।
मैंने एक साइकिल अभी–अभी एक वर्ष पूर्व ली थी तभी खराब हो गई, लेकिन पन्द्रह वर्ष पहले ली गई हीरो साइकिल अभी सही चल रही है।
(प)
226. पत्नी टटोले गठरी और माँ टटोले अंतड़ी–पत्नी देखती है कि मेरे पति के पास कितना धन है और माँ देखती है कि मेरे बेटे का पेट अच्छी तरह भरा है या नहीं।
अभय जब ऑफिस से घर आता है तो पत्नी कोई–न–कोई फरमाइश कर पैसे माँगती है, जबकि माँ पूछती बेटा तूने दिन में क्या खाया, आ खाना खा ले। कहावत सच है, पत्नी टटोले गठरी और माँ टटोले अंतड़ी।
227. पढ़े फ़ारसी बेचे तेल यह देखो कुदरत का खेल–योग्यतानुसार कार्य न मिलना।
उमेश पी–एच डी. है, लेकिन क्लर्की करता है, इसलिए कहा गया है–पढ़े फ़ारसी बेचे तेल यह देखो कुदरत का खेल।
228. पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं–पराधीनता सदैव दुःखदायी होती है।
तुलसीदास जी ने कहा है–पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं। करि विचार देखहु मन माँही।
229. पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होतीं—सभी के गुण समान नहीं होते,
उनमें कुछ न कुछ अन्तर होता है। रामलाल के तीन बेटे सरकारी अधिकारी हैं और दो बेटे क्लर्क। सच है पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होती।
230. पराये धन पर लक्ष्मी नारायण–दूसरे के धन पर गुलछरें उड़ाना।
तुम तो पराये धन पर लक्ष्मी नारायण बन रहे हो।
231. पाँचों सवारों में मिलना–अपने को बड़े व्यक्तियों में गिनना।
वह भले ही पैसे वाला न हो लेकिन पाँचों सवारों में मिलना चाहता है।
232. पानी पीकर जात पूछते हो–काम करने के बाद उसके अच्छे–बुरे पहलुओं पर विचार करना।
पहले लड़की की शादी अनजान घर में कर दी अब पूछ रहे हो लोग कैसे हैं? आप तो पानी पीकर जात पूछने वाली कहावत चरितार्थ कर रहे हो।
(फ)
233. फ़कीर की सूरत ही सवाल है—फ़कीर कुछ माँगे या न माँगे, यदि सामने आ जाए तो समझ लेना चाहिए कि कुछ माँगने ही आया।
शर्मा जी जब घर आते हैं कुछ न कुछ माँगकर ले जाते हैं। जब वे परसों घर आए तो मैंने दो सौ रुपए दे दिए। बीवी ने पूछा बिना माँगे क्यों दिए तो कहा फ़कीर की सूरत ही सवाल है।
234. फलेगा सो झड़ेगा– उन्नति के पश्चात् अवनति अवश्यम्भावी है
एक निश्चित ऊँचाई पर पहुँचने के बाद प्रत्येक व्यक्ति की अवनति होती है, क्योंकि फलेगा सो झड़ेगा।
(ब)
235. बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद–जब कोई व्यक्ति ज्ञान के अभाव में किसी वस्तु की कद्र नहीं करता है।
मनीष को साम्यवाद समझा रहे हो। बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद।
236. बद अच्छा बदनाम बुरा–बुरे कर्मों की अपेक्षा कलंकित होना अधिक बुरा है।
मंजर एक बार चोरी करते पकड़ा गया तब से पूरा मुहल्ला उसे चोर समझता है जबकि उस मुहल्ले में अनेक चोर हैं, जो पकड़े नहीं गए। सच है बद अच्छा बदनाम बुरा।
237. बनिया मीत न वेश्या सती–बनिया किसी का मित्र नहीं होता और वेश्या चरित्रवान नहीं होती।
शर्मा जी पड़ोस के बनिये चन्द्रप्रकाश के साझे में और वेश्या से प्यार में लुटकर अपने को बर्बाद कर बैठे तो लोगों ने कहा बनिया मीत न वेश्या सती।
238. बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि लेय–जो कुछ हो चुका है उसे भूलकर भविष्य के लिए सँभल जाना चाहिए।
तुम पिछले दो वर्ष से पी. सी. एस. में सलेक्ट नहीं हो रहे। निराश न हो, इस वर्ष जमकर मेहनत करो। कहावत भी है, बीती ताहि बिसार द्रे आगे की सुधि लेया
239. बोया पेड़ बबूल का आम कहाँ ते होय–बुरे कर्मों का परिणाम अच्छा नहीं हो सकता।
आज तक गुण्डागर्दी करते रहे, अब समाज में सम्मान पाना चाहते हैं, यह कैसे सम्भव है? क्योंकि बोया पेड़ बबूल का आम कहाँ ते खाय।
(भ)
240. भीगी बिल्ली बताना–बहाना बनाना।
यह कहावत ऐसे आलसी नौकर की कथा पर आधारित है, जो अपने मालिक की बात को किसी न किसी बहाने टाल दिया करता था। एक बार रात के समय मालिक ने कहा, “देखो बाहर पानी तो नहीं बरस रहा है? नौकर ने कहा, “हाँ बरस रहा है।’ मालिक ने पूछा “तुम्हें कैसे मालूम हुआ?” नौकर ने कहा, “अभी एक बिल्ली मेरे पास से निकली थी, उसका शरीर मैंने टटोला, तो वह भीगी थी।”
241. भूल गए राग रंग, भूल गए छकड़ी, तीन चीज याद रहीं नून तेल लकड़ी–जब कोई स्वतन्त्र प्रकृति का व्यक्ति बुरी तरह से गृहस्थी के चक्कर में पड़ जाता है।
राजू शादी के पश्चात् नेतागिरी भूल गया। सच है भूल गए राग रंग, भूल गए छकड़ी, तीन चीज याद रहीं नून तेल लकड़ी।
242. भैंस के आगे बीन बजे, भैंस खड़ी पगुराय–मूर्ख अच्छी वस्तु की कद्र नहीं करते, मूों को उपदेश देना व्यर्थ है।
भारत में मार्क्सवाद की शिक्षा देना ऐसा ही है जैसे भैंस के आगे बीन बजे, भैंस खड़ी पगुराय।
(म)
243. मन चंगा तो कठौती में गंगा–यदि मन शुद्ध है तो तीर्थाटन आवश्यक नहीं है।
मनुष्य मन से पवित्र है तो सभी तीर्थ उसके पास हैं। अतः भक्त रविदास ने कहा है–मन चंगा तो कठौती में गंगा।
244. मान न मान मैं तेरा मेहमान–जब कोई व्यक्ति जबर्दस्ती किसी पर बोझा बनता है तब यह कहावत कही जाती है।
245. मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक सीमित क्षेत्र तक पहुँच।
वह अधिक से अधिक ग्राम प्रधान के पास जाएगा, मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक।
246. मेरी ही बिल्ली और मुझसे म्याऊँ–जब कोई व्यक्ति अपने आश्रयदाता को
आँख दिखाता है तब यह कहावत प्रयुक्त होती है।
(य)
247. यह मुँह और मसूर की दाल–जब कोई व्यक्ति अपनी योग्यता से अधिक पाने की अभिलाषा करता है तब यह कहावत चरितार्थ होती है।
सुधा एम. ए. द्वितीय श्रेणी में है और वाइस चान्सलर बनने के ख्वाब देखती. है, ऐसे ही लोगों के लिए कहा गया है–यह मुँह और मसूर की दाल।
(र)
248. रस्सी जल गई पर ऐंठन नहीं गई–स्वाभिमानी व्यक्ति बुरी अवस्था को प्राप्त होने पर भी अपनी शान नहीं छोड़ता है।
अमेरिका ने सद्दाम को पकड़ लिया पर उसने कुछ नहीं बताया न दबा। सच है रस्सी जल गई पर ऐंठन नहीं गई।
149. राम नाम जपना, पराया माल अपना– ऊपर से भक्त, भीतर से ठग होना आज के अधिकतर साधु–संत अपने बुरे कामों से जनमानस को मूर्ख बनाकर ‘राम नाम जपना, पराया माल अपना’ वाली नीति को चरितार्थ कर ठग रहे हैं।
(ल)
250. लकड़ी के बल बन्दर नाचे–दुष्ट लोग भय से ही काम करते हैं। अत: कहा गया है–लकड़ी के बल बन्दर नाचे।
(व)
251. वही मन, वही चालीस सेर–बात एक ही है, दोनों बातों में कोई अन्तर नहीं।
मैंने तुम्हारी पुस्तक तुम्हारे घर में दे दी है विश्वास न हो तो अपने भाई से पूछ लो या फिर घर जाकर देख लो, क्योंकि “वही मन, वही चालीस सेर।”
(श)
252. शक्ल चुडैल की, मिज़ाज परियों का–बेकार का नखरा।
निशा कुछ हद तक तो गुणवान है, परन्तु कभी–कभी ऊटपटाँग बातें करती है। तब कहना पड़ता है, “शक्ल चुडैल की मिज़ाज परियों का।”
253. शेख़ी सेठ की, धोती भाड़े की—कुछ न होने पर भी बड़प्पन दिखाना।
सेठ पन्नालाल अपने व्यापार में सारा धन लगाकर पूरी तरह से खोखले हो चुके हैं फिर भी उनका हाल ‘शेखी सेठ की, धोती भाड़े की’ के समान है।
(स)
254. सब धान बाइस पंसेरी–अच्छे–बुरे को एक समान समझना।
अयोग्य अधिकारी अच्छे–बुरे सभी कर्मचारियों को समान मानकर सब धान बाइस पंसेरी तौलते हैं।
255. सीधी उँगली से घी नहीं निकलता–सर्वत्र सीधेपन से काम नहीं चलता है।
अशोक की जब तक पिटाई नहीं होगी तब तक नहीं पड़ेगा, ठीक ही कहा गया है सीधी उँगली से घी नहीं निकलता।
256. सूरदास खल काली कामरि चढ़े न दूजौ रंग–दुष्ट व्यक्ति अपनी दुष्टता नहीं छोड़ता।
अलीजान को लोगों ने बहुत समझाया, किन्तु उस पर कोई असर नहीं हुआ, ठीक कहा गया है–सूरदास खल काली कामरि चढ़े न दूजौ रंग।
257. सौ सुनार की एक लुहार की—निर्बल की सौ चोटों की अपेक्षा बलवान की एक चोट काफी होती है।।
मनोज मेरी भाईसाहब से रोज़ शिकायत करता था। एक दिन मैंने भाईसाहब से शिकायत कर दी, बच्चे को नौकरी बचानी भारी पड़ गई। तब साथी बोले सौ सुनार की एक लुहार की।
258. हाथ कंगन को आरसी क्या–प्रत्यक्ष को प्रमाण की क्या आवश्यकता।
अरे बहस क्यों करते हो पुस्तक में देख लो, हाथ कंगन को आरसी क्या?
259. होनहार बिरवान के होत चीकने पात–बचपन से ही अच्छे लक्षणों का दिखाई देना।
राहुल और सचिन बचपन से ही अच्छा क्रिकेट खेलते थे जिस कारण वह अच्छे खिलाड़ी बनकर उभरे हैं कहा जा सकता है कि होनहार बिरवान के होत चीकने पात।’
मुहावरे और कहावते मध्यान्तर प्रश्नावली
1. कहावत को कहते हैं
(a) लोकोक्ति, (सूक्ति, सुभाषित), कही हुई बातें
(b) बढ़ा–चढ़ा कर कहना
(c) छोटे से वाक्यांश में कुछ कहना
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर :
(a) लोकोक्ति, (सूक्ति, सुभाषित), कही हुई बातें
2. ‘एक अनार सौ बीमार’ कहावत का अर्थ है
(a) अत्यन्त कम
(b) हर हाल में मुसीबत
(c) एक ही वस्तु के अनेक आकांक्षी
(d) दुहरा फायदा
उत्तर :
(c) एक ही वस्तु के अनेक आकांक्षी
3. ‘जल में रहकर मगर से बैर’ कहावत का अर्थ है
(a) अपराधी हमेशा शंकित रहता है
(b) बड़ों से शत्रुता नहीं चलती
(c) मगरमच्छ से दुश्मनी
(d) जल में मगर के साथ रहना
उत्तर :
(b) बड़ों से शत्रुता नहीं चलती
4. ‘जस दूल्हा तस बनी बारात’ कहावत का अर्थ है
(a) जिससे लाभ हो उसी का पक्ष लें
(b) जो जिसके योग्य हो उसे वही मिलता है
(c) लालच में कोई काम करना
(d) जैसा मुखिया वैसे ही अन्य साथी
उत्तर :
(d) जैसा मुखिया वैसे ही अन्य साथी
5. ‘नाच न आवे आँगन टेढ़ा’ कहावत का अर्थ है
(a) बुरे लोगों का स्वभाव नहीं बदलता
(b) नाचने का मन नहीं होना
(c) अपने दोष (अयोग्यता) को छिपाने के लिए दूसरों के दोष निकालना
(d) सीधे आँगन में नाचने की इच्छा
उत्तर :
(c) अपने दोष (अयोग्यता) को छिपाने के लिए दूसरों के दोष निकालना
6. ‘दूध का दूध पानी का पानी’ कहावत का अर्थ है
(a) दूध में पानी मिला होना
(b) असम्भव कार्य हो जाना
(c) दो को दिया काम बिगड़ जाता है
(d) ठीक–ठाक न्याय हो जाना
उत्तर :
(d) ठीक–ठाक न्याय हो जाना
7. ‘दूर के ढोल सुहावने’ कहावत का अर्थ है
(a) ढोल को दूर रखना
(b) ढोल को अपने पास से हटा देना
(c) दूर की वस्तु अच्छी लगना
(d) ढोल के बारे में दूर की सोचना
उत्तर :
(c) दूर की वस्तु अच्छी लगना
8. ‘पढ़े फ़ारसी बेचे तेल यह देखो कुदरत का खेल’ कहावत का अर्थ है।
(a) फ़ारसी पढ़े–लिखे तेल बेचते हैं
(b) कुदरत के खेल में फ़ारसी तेल बेचते हैं
(c) योग्यतानुसार कार्य न मिलना
(d) सभी के गुण समान नहीं होते
उत्तर :
(c) योग्यतानुसार कार्य न मिलना
9. बोया पेड़ बबूल का आम कहाँ से होय
(a) बबूल का पेड़ आम के पेड़ जैसा होता है
(b) बबूल का पेड़ आम के पेड़ से अच्छा होता है
(c) बुरे कर्मों की अपेक्षा कलंकित होना अधिक बुरा है
(d) बुरे कर्मों का परिणाम, अच्छा नहीं हो सकता
उत्तर :
(d) बुरे कर्मों का परिणाम, अच्छा नहीं हो सकता
10. ‘यह मुँह और मसूर की दाल’ कहावत का अर्थ है
(a) मसूर की दाल का महँगा होना
(b) मूर्ख अच्छी वस्तु की कद्र नहीं करते
(c) अपने को बड़े व्यक्तियों में गिनना
(d) अपनी योग्यता से अधिक पाने की उम्मीद
उत्तर :
(d) अपनी योग्यता से अधिक पाने की उम्मीद
मुहावरे और कहावते वस्तुनिष्ठ प्रश्नावली
1. अन्धे की लाठी होना (आर. आर. बी. (कोलकाता) ए.एस.एम. परीक्षा 2010)
(a) अन्धे आदमी के हाथ में लाठी देना
(b) अन्धे और लकड़ी का साथ–साथ होना
(c) अन्धा व्यक्ति लाठी चलाने में निपुण होता है
(d) असहाय का एकमात्र सहारा होना
उत्तर :
(d) असहाय का एकमात्र सहारा होना
2. आग में घी डालना (राजस्थान बी.एस.टी.सी./एन.टी.टी. 2010)
(a) यज्ञ करना
(b) मूल्यवान वस्तु को नष्ट करना
(c) किसी के क्रोध को भड़काना
(d) शुभ वस्तु पर अड़चन पड़ना
उत्तर :
(c) किसी के क्रोध को भड़काना
3. उँगली पर नचाना (उ.प्र. बी.एड. परीक्षा 2010)
(a) किसी की इच्छानसार चलना
(b) अपनी इच्छानुसार चलाना
(c) थोड़ा सा सहारा पाना
(d) आरोप लगाना
उत्तर :
(b) अपनी इच्छानुसार चलाना
4. उन्नीस–बीस होना (उ.प्र. बी.एड. परीक्षा 2011)
(a) अत्यधिक अन्तर होना
(b) एक का दूसरे से कुछ अच्छा होना
(c) पक्षपात करना
(d) बाह्य समानता और आन्तरिक विषमता
उत्तर :
(b) एक का दूसरे से कुछ अच्छा होना
5. दाँतों तले उँगली दबाना (उपनिरीक्षक भर्ती परीक्षा 2014/ उ.प्र. बी.एड. परीक्षा 2009/ एस.एस.सी. स्टेनोग्राफर ग्रेड सी/डी परीक्षा 2010)
(a) आश्चर्य करना
(b) हीनता प्रकट करना
(c) बहुत हैरान होना
(d) मुसीबत में पड़ना
उत्तर :
(a) आश्चर्य करना
6. ‘भई गति साँप छछंदर केरी’ (उ.प्र. बी.एड. परीक्षा 2011)
(a) शिकार की स्थिति
(b) आक्रामक स्थिति
(c) हास्यास्पद स्थिति
(d) असमंजस की स्थिति
उत्तर :
(c) हास्यास्पद स्थिति
7. ‘कठोर परिश्रम के बिना जीवन में सफलता नहीं मिलती’ इस सन्देश की व्यंजक उक्ति इनमें से है।
(a) बालू से तेल निकालना
(b) खोदा पहाड़ निकली चुहिया
(c) जिन खोजा तिन पाइया गहरे पानी पैठ
(d) नौ दिन चले अढ़ाई कोस
उत्तर :
(c) जिन खोजा तिन पाइया गहरे पानी पैठ
8. ‘विपत्ति के समय थोड़ी–सी सहायता भी बहुत बड़ी होती है’ इस भाव की व्यंजक पंक्ति है। (आर.पी.एस.सी. पुलिस सब–इंस्पेक्टर परीक्षा 2011)
(a) चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात
(b) आम के आम गुठलियों के दाम
(c) चुपड़ी और दो–दो
(d) डूबते को तिनके का सहारा
उत्तर :
(d) डूबते को तिनके का सहारा
9. ‘नाक पर सुपारी तोड़ना’ का अर्थ है (आर.पी.एस.सी. पुलिस सब–इंस्पेक्टर परीक्षा 2011)
(a) इज्जत उतार देना
(b) असम्भव कार्य करना
(c) बहुत परेशान करना
(d) घृणा प्रकट करना
उत्तर :
(c) बहुत परेशान करना
10. ‘मखमली जूते मारना’ का आशय है (आर.पी.एस.सी. पुलिस सब–इंस्पेक्टर परीक्षा 2011)
(a) व्यंग्य करना
(b) विद्वान् का अपमान करना
(c) सौम्य व्यक्ति को प्रताड़ित करना
(d) मधुर बातों से लज्जित करना
उत्तर :
(d) मधुर बातों से लज्जित करना
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