चौहान वंश की उत्पत्ति,चौहान वंश का इतिहास,चौहान वंश का इतिहास एवं वंशावली,चौहान rajput वंश की शाखा

 

 

चौहान वंश 

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चौहान या चव्हाण भारत की एक प्रसिद्ध जाति है जो राजपूतों में आता है। विद्वानों का कहना है कि चौहान मूल से राजपूत थे तथा १० वी शताब्दी तक गुर्जर/गुर्जरात्रा प्रदेश (गुजरात) राजपूत राजवंश प्रतिहारो के अधीन थे। सांभर झील और पुष्कर, आमेर और वर्तमान जयपुर, राजस्थान में भी होते थे, जो अब सारे उत्तर भारत में फैले हुए हैं। इसके अलावा मैनपुरी उत्तर प्रदेश एवं नीमराना, राजस्थान के अलवर जिले में भी पाये जाते हैं। जौरवाल गोत्र के मीणा भी इनके वंशज माने जाते हैं जिनहोने तराईन के युध में पृथ्वीराज का बहुत साथ दिया था। आज में उन्हीं के वंशजों में खिंवाडा के चौहान है। जो आज के समय मे पाली निवास करते हैं।

 

चौहान वंश की उत्पत्ति:- ✌⥉

पवित्र अग्निकुंड से उत्पन्न हुई शाखाओं में चौहान शाखा ही विशेष बलवान हुई है । इस वीर कुल की उत्पत्ति अग्निकुंड से है । यानी सबसे अंत में विष्णु भगवान ने दुर्वा दल की बनी हुई पुतली को अग्निकुंड में मन उच्चारण कर डाल दिया। उसके अवयव स्वरूप चार हाथ युक्त अस्त्रधारी एक वीर पुरुष प्रकट हुआ । चार हाथ होने से उसका नाम ‘‘चतुर्भुज” चौहान हुआ । समस्त देवताओं ने उसे आशीर्वाद देकर ‘मेहकावती’’ नगरी का राज्य दिया। जो इस समय ‘गढ़ मंडला’ नाम से विख्यात है । द्वापर में यह मेहकावती नाम से विख्यात थी। इस प्रसिद्ध राजकुल की शाखाओं ने भी अपने मूलवंश का गौरव बढ़ाकर चौहान नाम को सार्थक किया था। इस कुल की शाखाओं में हाड़ा, खीची, देवड़ा, और अनेक शाखा विशेष प्रसिद्ध हैं । इन शाखाओं की वीरता, प्रतिष्ठा और गौरव का वृत्तान्त (हाल) आजकल भट्ट कवियों के मधुर काव्यों में सुनहरी अक्षरों में लिखा हुआ है । चौहानों की २४ शाख में हैं

 

चौहान rajput वंश की शाखा:-

1. चौहान:- सांचोरा, मैनपुरी में बरगइया शाखा प्रसिद्ध हुई है ।

2. हाड़ा:- बूंदी और कोटा का राजवंश जो हाड़ोती नाम से प्रसिद्ध है ।

3. खींची:- राधोगढ़ - लखनऊ में खिंची से निकुम्भ और भदौरिया शाखा हुई हैं । भदौरिया ग्वालियर स्टेट और अन्य प्रदेशों में भी पाये जाते हैं. जिला आगरा में भदौरिया वंश कौ 'भदावर' ' नाम को एक रियासत है। खींची वंश में दुर्ग सिंह नाम का पुरुष हुआ था, जिसमें दरक” नाम की एक शाखा स्थापित हुई थी। मध्य भारत में खींची वंश की खिलचीपुर नाम की सियासत है

 

चौहान वंश का इतिहास एवं वंशावली

साभार: जय राजपुताना 

     जय भवानी हुकुम, हम अपने इस ब्लॉग में हम राजपुताना इतिहास के बिषय में चर्चा कर रहे हैं। उसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए आज हम बात करने जा रहे चौहान वंश के बारे में आज हम आपको विस्तार पूर्वक चौहान वंश के इतिहास एवम गौरव के विषय में बताएंगे। चौहान वंश या उपनाम का संबंध राजपूत समाज से है। राजपूत समाज में चौहान वंश का काफी महत्व है।चौहान वंश या जाति के लोग हिंदुस्तान में रहते हैं। चौहान वंश के लोगों की यूपी और राजस्थान के कुछ हिस्सों में अच्छी खासी संख्या है।

 

चौहान वंश का इतिहास ✌⥉

चौहान वंश की उत्पत्ति को लेकर एक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार जब ब्राह्मणों ने राक्षसों के आतंक से परेशान होकर यज्ञ किया । उस यज्ञ की अग्नि से जो योद्धा उत्पन्न हुआ उसे ब्राह्मणों ने चौहान नाम का नाम दिया इन योद्धाओं ने राक्षसों के साथ युद्ध किया और विजय प्राप्त की जिसके बाद चौहान वंश का नाम इन्हीं चौहान योद्धाओं के नाम पर पड़ा।

• चौहान जाति या चौहान वंश को राजपूत समाज की महत्वपूर्ण जातियों में मुख्य स्थान प्राप्त है। चौहान वंश के शासकों का भारतीय इतिहास में काफी योगदान है। पृथ्वीराज चौहान को चौहान वंश के सबसे सफल शासक के तौर पर देखा जाता है।

• चौहान वंश का गोत्र वत्स है। इसके पीछे मुख्य कारण यह है की जब राक्षसों से तंग आकर ऋषि मुनियों ने यज्ञ किया । जिसमें तमाम ऋषियों ने आहुतियाँ दी उन्हीं में से वत्स (वत्सम) ऋषि ने जब आहुति दी तो चतुर्भुज चौहान की उत्पत्ति हुयी। और वत्स ऋषि के नाम पर गोत्र का नाम वत्स पड़ा।

• चौहान वंश का उत्पत्ति स्थान आबू शिखर को माना जाता है। इसका आधार ऋषियों द्वारा किये यज्ञ स्थल को मानकर कहा गया है । आबू पर्वत पर हुए इसी यज्ञ की आहुति से चौहान वंश की उत्पत्ति हुई थी।

• चौहान वंश की कई पीढियां आबू शिखर पर ही निवास करती रहीं। इसके बाद राजा अजयपाल जी का जन्म हुआ ये पहले ऐसे चौहान शासक थे जिन्होंने आबू शिखर को छोड़कर अजमेर शहर को बसाया। श्री अजयपाल जी की पहचान एक चक्रवर्ती सम्राट के तौर पर की जाती है उनके द्वारा ही तारागढ़ किले का निर्माण कराया गया।

• आज भी अजमेर के अलावा जिस जगह पर सबसे ज्यादा चौहान वंश के लोग हैं वह है उत्तर प्रदेश का जिला मैनपुरी। मैनपुरी को महाराजा तेज सिंह की नगरी के तौर पर जाना जाता है ।मैनपुरी में बसे पहले राजा प्रतापरुद्र जी थे।

• मैनपुरी के शासक राजा प्रतापरुद्र जी के दो पुत्र थे। जिनमें से पहले राजा वीर सिंह जू देव जी जो मैनपुरी में बसे वही उनके दूसरे पुत्र धारक देवजू ने पतारा क्षेत्र की कमान संभाली।इनके पुत्र मैनपुरी जिला के कई गाँव में बस गए जिनमें से नगला जुला पंचवटी क्षेत्र,नौनेर ,कांकन, सकरा उमरैन और दौलतपुर मुख्य है।

• मैनपुरी जिला में आज भी महाराजा तेज सिंह 'जू देव' जी का किला मौजूद है । इसके अलावा ईशन नदी तिराहे पर बनी महाराजा तेज सिंह की मूर्ति आज भी मैनपुरी की शान बढा रही है।

• जहां तक चौहान वंश के स्थापना का मामला है ऐसा माना जाता है कि चौहान वंश की स्थापना वासुदेव चौहान जी ने 550 ई• के लगभग की गयी थी।

• चौहान वंश की कुलदेवी माँ आशापुरा जी है। माँ आशापुरा के मंदिर पूरे भारत में मौजूद हैं। जिनमें से ज्यादातर मंदिर राजस्थान में मौजूद है। जिनमें से नाडोल शहर (जिला पाली) और डूंगरपुर, राजस्थान के मंदिर बेहद प्रसिद्ध हैं।

 

 


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