राजस्थान के प्राकृतिक संसाधन

 

( राजस्थान के प्राकृतिक संसाधन )


संसाधन मानव समाज की आर्थिक वृद्धि एवं विकास के मूल आधार होते हैं क्योंकि इन्हीं पर सभी जीव धारियों का अस्तित्व एवं जीवन निर्भर करता है वास्तव में समाज के सभी पक्ष सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक प्रकारों से प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर हैं

नॉर्टन गिन्सबर्ग (1957) के अनुसार- “मनुष्य के कार्यक्षेत्र में प्रकृति द्वारा मुक्त रूप में प्रदान किए जाने वाले भौतिक पदार्थ तथा अवस्थिति की अतिरिक्त भौतिक गुणवत्ता प्राकृतिक संसाधन है*

आर एफ दासमैन के अनुसार- “प्रारंभ में वे पदार्थ प्राकृतिक संसाधन थे जो मनुष्य की किसी खास संस्कृति के लिए उपयोगी एवं मूल्यवान थे

प्राकृतिक संसाधन अपने आप में संसाधन नहीं होते हैं क्योंकि वह सक्रिय नहीं है वह संसाधन तब होते हैं जब उनका उपयोग किया जाता है इससे यह स्पष्ट होता है कि संसाधनों का मनुष्य के क्रियाकलापों तथा प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र के बीच कार्यकलाप संबंध होता है

प्राकृतिक संसाधनों ( Natural resources) को सामान्यतः दो भागों में बांटा गया है

1. जैविक संसाधन

2. अजैविक संसाधन

1. जैविक संसाधन (Biological resources)- सभी सजीवी को जैविक संसाधन के अंतर्गत रखा जाता है इसके अंतर्गत वनस्पति एवं पौधे, जंतु, पशुधन तथा मनुष्य को शामिल किया जाता है

2. अजैविक संसाधन ( Anti Biological resources )- इसके अंतर्गत सभी तत्व शामिल किए जाते हैं जो कि मानव एवं सजीवों के निर्वाह के लिए अनिवार्य है इसके अंतर्गत स्थल, भूमि, जल, वायु, मिट्टी, खनिज आदि सम्मिलित किए जाते हैं

राजस्थान में जल संसाधन ( Water Resources in Rajasthan )

राज्य में देश का सतही जल मात्र 1.16% और भूजल 1.70% है देश के कुल जल का लगभग 1% पानी राजस्थान में है राजस्थान के 237 ब्लॉक में से 200 लगभग डार्क जोन में आ गए हैं जबकि भूजल का करीब 20% जल पीने के लिए तथा 80% जल सिंचाई के उपयोग में किया जाता है

राजस्थान की 90% आबादी पेयजल के लिए भूजल स्त्रोतों पर निर्भर है 60-70% आबादी कृषि कार्यों के लिए भू जल स्रोतों पर का उपयोग करती है

उसके पश्चात उद्योग एवं कारखानों में 15 – 20% तथा अन्य घरेलू कार्यों में उपयोग में किया जाता है राजस्थान में भूजल दोहन 137 प्रतिशत तक पहुंच गया है राज्य में प्रतिवर्ष भूजल स्तर 2 मीटर नीचे जा रहा है

उपलब्धता (Availability )

वर्तमान में राजस्थान में पानी की मांग और पूर्ति में 8 बीएमसी (बिलियन घन मीटर) का अंतर है राज्य में भू जल की उपलब्धता 10000 बीएमसी मानी जाती है लेकिन दोहन 13000 बीएमसी होता है वैसे तो पूरे राज्य में पानी के लिए हालत खराब है लेकिन अजमेर शहर और आसपास के कस्बों, नागौर, टोंक, पाली, राजसमंद, भीलवाड़ा में हालत चिंताजनक है

गुणवत्ता (Quality)

राजस्थान के दक्षिण एवं दक्षिणी पूर्वी भाग में मीठा पानी एवं पश्चिमी तथा मध्य भाग में खारा पानी अधिकता में पाया जाता है खारे पानी होने की वजह पश्चिमी राजस्थान में रासायनिक गुणवत्ता की अधिकता होना है 2010 की रिपोर्ट के अनुसार राज्य के करीब 27 जिलों में पानी का खारापन, 30 जिलों में अत्यधिक फ्लोराइड, 28 जिलों में अत्यधिक लोहयुक्त तत्व निर्धारित मापदंड से अधिक है

राजस्थान के 30 जिले ऐसे हैं जिनमें पानी के अंदर फ्लोराइड की मात्रा 1.5 मिली से अधिक है और करीब 28 जिलों में आयरन की मात्रा 1 मिग्रा/मिली है जो आम आदमी के स्वास्थ्य के लिए बहुत ही ज्यादा खतरनाक है

भू जल विभाग (Ground water department)

राज्य में भूमिगत जल विकास का कार्य 1950 ईस्वी में प्रारंभ हुआ जब भारत सरकार द्वारा राजस्थान भूमिगत जल बोर्ड की स्थापना की गई 1955 में इस बोर्ड का नियंत्रण राजस्थान सरकार को दे दिया गया तथा 1971 ईस्वी से इस बोर्ड को भ-ूजल विभाग के नाम से जाना जाता है इसका प्रधान कार्यालय जोधपुर में स्थित है तथा राज्य में भ-ूजल की रासायनिक जांच हेतु जयपुर जोधपुर और उदयपुर में प्रयोगशालाएं स्थित हैं

तथा राजस्थान राज्य में भू जल की उपलब्धता वाले 595 क्षेत्र हैं इसके अंतर्गत 206 ब्लॉक ऐसे हैं जिनमें भूमिगत जल का निकास 85% से अधिक होता है

मृदा संसाधन (Soil Resources)

मृदा भूमि की ऊपरी सतह होती है जो चट्टानों के टूटने फूटने व विघटन से उत्पन्न सामग्री तथा उस पर पड़े जलवायु वनस्पति एवं अन्य जैविक कारकों के प्रभाव से विकसित होती है यह एक अनवरत प्रक्रिया का प्रतिफल है जो भूगर्भिक युगो में होती रहती है

मृदा की प्रकृति उस मूल सेल की संरचना पर निर्भर करती है जिसके विखंडन से उसकी उत्पत्ति हुई है लेकिन इस लंबी प्रक्रिया में अनेक भौतिक एवं रासायनिक परिवर्तन होते हैं साथ ही उसमें जीवाशम व वनस्पति अंश सम्मिलित होकर उसे एक निश्चित स्वरुप प्रदान कर देते हैं प्राय मृदा की सतह 30 से 40 सेंटीमीटर मानी जाती है किंतु यह 150 सेंटीमीटर अथवा इस से भी अधिक गहराई तक हो सकती है मृदा पौधों की वृद्धि का एक प्राकृतिक माध्यम है तथा मृदा की उत्पादकता ही क्षेत्रीय कृषि विकास का एक आधार होता है

मृदा के प्रकार व वितरण (Types and Soil Formations)

राजस्थान की मृदाओं को उनके उपजाऊपन कृषि के लिए उपयोगिता एवं अन्य विशेषताओं के आधार पर अग्रलिखित भागों में विभक्त किया जाता है-

1. रेतीली व बलुई मिट्टी

शुष्क प्रदेश बाड़मेर जैसलमेर जोधपुर बीकानेर नागौर चूरू झुंझुनूं

नमी धारण की निम्न क्षमता नाइट्रोजन कार्बनिक लवण की न्यूनता तथा कैल्शियम लवणों की अधिकता

बाजरा मोठ मूंग की फसल हेतु उपयुक्त

2 काली मिट्टी

दक्षिणी पूर्वी भागों में

बारीक कण नमी धारण की क्षमता अधिक फास्फेट नाइट्रोजन जैविक पदार्थों की अल्पता कैल्शियम व पोटाश की पर्याप्त

कपास में नगदी फसलों हेतु उपयुक्त

3 लाल दोमट मिट्टी

उदयपुर डूंगरपुर बांसवाड़ा तथा चित्तौड़गढ़

बारिक कण नमी धारण की अद्भुत क्षमता पोटाश व लौह तत्वों की अधिकता नाइट्रोजन फास्फोरस कैल्शियम लवणों की अल्पता

मक्का की फसल हेतु उपयुक्त

4 मिश्रित लाल काली मिट्टी 

उदयपुर चित्तौड़गढ़ डूंगरपुर बांसवाड़ा भीलवाड़ा

फॉस्फेट नाइट्रोजन कैल्शियम तथा कार्बनिक पदार्थों की अल्पता

5 भूरी मिट्टी

भीलवाड़ा अजमेर सवाई माधोपुर टोंक

नाइट्रोजन और फास्फोरस तत्वों का अभाव

बनास के प्रवाह क्षेत्र की मृदा

रंग पीला भूरा उर्वरा शक्ति की कमी

6 भूरी रेतीली मिट्टी

नागौर पाली जालोर झुंझुनू सीकर

नाइट्रोजन कार्बनिक पदार्थों व जैविक अंश की कमी

7  मिश्रित लाल पीली मिट्टी

सवाई माधोपुर भीलवाड़ा अजमेर सिरोही

नाइट्रोजन कैल्शियम कार्बनिक यौगिकों में ह्यूमस की अल्पता

8  जलोढ़ व कछारी मिट्टी

अलवर भरतपुर धौलपुर जयपुर टोंक सवाई माधोपुर कोटा बुंदी

जल धारण की पर्याप्त क्षमता व अत्यधिक उपजाऊ

फॉस्फेट में कैल्शियम तत्वों की अल्पता तथा नाइट्रोजन तत्वों की बहूलता

गेहूं चावल कपास तथा तंबाकू के लिए उपयुक्त है

9  पर्वतीय मृदा

अरावली की उपत्यका में सिरोही उदयपुर पाली अजमेर अलवर जिलों के पहाड़ी भागों में

मिट्टी की गहराई कम होने के कारण खेती के लिए अनुपयुक्त

10  लवणीय मिट्टी

गंगानगर बीकानेर बाड़मेर व जालोर

क्षरीय व लवणीय तत्व की अधिकता के कारण अनुपजाऊ

प्राकृतिक रूप से निम्न भूभागों में उपलब्ध

IMPORTANT FACTS 

1.अंजन- यह हर मौसम में उगने वाली घास है गायो व घोड़ो के लिए उपयुक्त है

2.भालू अभ्यारण्य- जालोर -सिरोही के मध्य जसवंतपूरा क्षेत्र के सुंधामाता क्षेत्र को भालुओ का अभ्यारण्य घोषित किया गया है

3.चौसिंगा- चौसिंगा विश्व का एक मात्र ऐसा हिरन है जिसके नर के चार सींग होते है यह मर्ग केवल हमारे देश में ही पाया जाता है.यह सीता माता अभ्यारण्य में सर्वाधिक पाया जाता है

4.खिंचन- फ़लौदी( जोधपुर ) के निकट स्थित इस गांव में रूस उक्रेन व कजाकिस्तान से प्रवासी पक्षी कुरंजा बड़ी संख्या में आते है प्रवासी पक्षी कुरजां जो शताब्दियों से राजस्थान आता रहा है राजस्थानी लोक संस्कृति में समाहित हो गया है इसे मारवाड़ में विरहणियों का संदेशवाहक पक्षी माना जाता है “कुर्जा ऐ म्हारे भंवर मिला दिज्यो ए”

5.वन नीति – राजस्थान सरकार द्वारा 8 फ़रवरी,2010 में अपनी पहली राज्य वन नीति घोषित की गयी है साथ ही राजस्थान वन व पर्यावरण नीति लागु करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है इस नीति के तहत 45 हजार वर्ग मि मी अतिरिक्त क्षेत्र में वन विकसित करने का लक्ष्य रखा गया है वन्य जीवो के संरक्षण की दृष्टि से राज्य में 3 राष्ट्रीय उद्यान सहित 26 वन्य जीव अभ्यारण्य तथा 9 संरक्षित क्षेत्र विकसित किये जा चुके है वन नीति में प्रदेश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का न्यूनतम पांच प्रतिशत क्षेत्र जैव विविधता संरक्खन के उद्देश्ये से विकसित करने का लक्ष्य रखा गया है

 

Rajasthan Natural resources important Question and Quiz 

Q-1 प्राकृतिक संसाधन किसे कहते हैं ?

Ans- वह संसाधन जो हमें प्रकृति से प्राप्त होते हैं और जिनका प्रयोग हम सीधा आधार उसमें कोई भी बदलाव किए बिना करते हैं प्राकृतिक संसाधन कहलाते हैं जैसे जल हवा पानी मिट्टी खनिज पदार्थ लकड़ी आदि

Q-2. संसाधन कितने शब्दों से मिलकर बना है ?

Ans- संसाधन दो शब्दों से मिलकर बना है Re+Sources जिसमें “Re” का अर्थ दीर्घ अवधि से और “Sources” का अर्थ साजन से है यह वह साधन हैं जिनका उपयोग मानव दीर्घ अवधि तक कर सकता है

Q-3 प्राकृतिक संसाधनों को कितने भागों में बांटा जा सकता है ?

Ans- प्राकृतिक संसाधनों को तीन भागों में बांटा जा सकता है

1-विकास और प्रयोग के आधार पर– इस प्रकार के संसाधनों में वास्तविक संसाधन और संभावी संसाधन आते हैं ✨वास्तविक संसाधन के तहत- वह वस्तुएं जिनकी संख्या या मात्रा हमें पता है जिनका इस्तेमाल हम इस समय कर रहे हैं जैसे जर्मनी देश के कोयले की मात्रा पश्चिमी एशिया में खनिज तेल की मात्रा और महाराष्ट्र की काली मिट्टी

संभाव्य संसाधन वह हैं- जिनकी मात्रा निश्चित या जिसका अनुमान हम नहीं लगा सकते हैं और जिनका प्रयोग अभी हम नहीं कर रहे हैं लेकिन आगे आने वाले समय में कर सकते हैं जैसे पवन चक्कियां एक संभावित संसाधन थी लेकिन आज आधुनिक तकनीक के कारण इसका प्रयोग कर रहे हैं

2-उद्गम या उत्पत्ति के आधार पर- इस प्रकार के संसाधनों में जैविक और अजैविक दोनों प्रकार के संसाधन आते हैं

जैसे जैविक संसाधन- जीव जंतु पेड़ पौधे मनुष्य और अजैविक संसाधन- कुर्सी इमेज पुस्तकें आदि

3-भंडारण और वितरण के आधार पर- इस प्रकार के संसाधन में सर्व व्यापक और स्थानीय संसाधन आते हैं

सर्वव्यापक संसाधन जो वस्तुएं सभी जगह पाई जाती है और आसानी से उपलब्ध हो जाती है जैसे वायु एक सर्वव्यापक संसाधन है क्योंकि यह पूरे संसार में पाई जाती है

स्थानीय संसाधन जो– वस्तुओं कुछ गिने-चुने स्थानों पर ही पाई जाती है जैसे तांबा लोहा अयस्क आदि

Q-4 प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से क्या तात्पर्य है ?

Ans- प्राकृतिक संसाधनों के तहत जल हवा पेड़ पौधे वायु वनस्पति खनिज पदार्थ लकड़ी आदि आते हैं जिनका उपयोग हम हमारे दैनिक जीवन में और आने वाले भविष्य में कर करेंगे अतः प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की आवश्यकता है प्राकृतिक संपदाओं का योजनाबद्ध और विवेकपूर्ण उपयोग किया जाए तो उनसे अधिक दिनों तक लाभ उठाया जा सकता है भविष्य के लिए संरक्षित रह सकती है संपदाओं या संसाधनों का योजना बस समुचित और विवेकपूर्ण उपयोगी इनका संरक्षण है संरक्षण का यह अर्थ बिल्कुल नहीं है कि प्राकृतिक साधनों का प्रयोग ना कर उनकी रक्षा की जाए उनके उपयोग में कंजूसी की जाए या उनकी आवश्यकता के बावजूद उन्हें बचाकर भविष्य के लिए रखा जाए बल्कि संरक्षण से हमारा तात्पर्य है कि संसाधनों या संपदाओं का अधिक अधिक समय तक अधिकाधिक मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु अधिकाधिक उपयोग किया जाए इसके लिए हमें जल संसाधनों को सुरक्षित और लंबे समय तक बनाए रखने के लिए उस में सहयोग करना वनों से प्राप्त वस्तुओं के लिए हमें अत्यधिक मात्रा में लगाना और उनकी रक्षा करना मिट्टी के कटाव को रोकने आदि प्राकृतिक संसाधन के संरक्षण हैं

Q-5 प्रकृति में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक संसाधनों का वर्णन कीजिए ?

Ans-5.. प्रकृति में पाए जाने वाली वस्तुएं जिनका प्रयोग हम वर्तमान में कर रहे हैं और आने वाले समय में भी करेंगे प्राकृतिक संसाधन कहलाते हैं अर्थात प्राकृतिक संसाधन वह प्राकृतिक पूंजी है जो निवेश की वस्तु में बदलकर बुनियादी पूनम जी प्रक्रिया में लगाई जाती है इन में मिट्टी लकड़ी तेल खनिज और अन्य पदार्थ जो कम या ज्यादा धरती से ही लिए जाते हैं

प्राकृतिक संसाधनों के तहत जलवायु मृदा प्राकृतिक वनस्पति एवं वन्य जीव जंतु जल संसाधन खनिज संपदाओं ऊर्जा आदि तत्व आते हैं जिनका उपयोग हम हमारे दैनिक जीवन में करते हैं

1- जलवायु (Climate )– जलवायु एक प्रमुख भौगोलिक तत्व है जो एक और अन्य प्राकृतिक तत्व को प्रभावित करता है तो दूसरी ओर आर्थिक और जनसांख्यिकी स्वरूप को प्रभावित करता है जलवायु का प्रभाव जल की उपलब्धता और प्राकृतिक वनस्पति पर प्रत्यक्ष होता है इसी प्रकार सिंचाई कृषि का स्वरूप कृषि उपजों का प्रारूप उत्पादकता पशुपालन भी जलवायु से सीधे प्रभावित होते हैं दूसरे शब्दों में क्षेत्रीय आर्थिक विकास को जलवायु नियंत्रित करता है इसके अतिरिक्त जनसंख्या का वितरण और घनत्व आवास प्रारूप आधी भी जलवायु द्वारा प्रभावित होते हैं राजस्थान के परिप्रेक्ष्य में जलवायु का प्रभाव और अधिक है क्योंकि यहां के अधिकांश भाग पर शुष्क मरुस्थलीय दशाओं का विस्तार है

2- मृदा (soil)– मृदा भूमि की ऊपरी सतह होती है जो चट्टानों के टूटने फूटने और विघटन से उत्पन्न सामग्री और उस पर पड़े जलवायु वनस्पति और अन्य जैविक पदार्थों से विकसित होती है यह एक अनवरत प्रक्रिया का प्रतिफल होती है जो भूगर्भिक युगों में होती रही मूलतः मृदा की प्रकृति उस मूल सेल की संरचना पर निर्भर करती है जिसके विखंडन से उसकी उत्पत्ति हुई है किंतु इस लंबी प्रक्रिया में अनेक भौतिक और रासायनिक परिवर्तन होते हैं साथ ही उसमें विभाग और वनस्पति अंश सम्मिलित होकर उसे एक निश्चित स्वरुप प्रदान कर देते हैं मृदा की सतह पर प्राय: 30 से 40 सेमी मानी जाती है किंतु यह 150 सेमी या इससे भी अधिक गहराई तक हो सकती है मृदा पौधों की वृद्धि का एक प्राकृतिक माध्यम है और मृदा की उत्पादकता ही क्षेत्रीय कृषि विकास का एक आधार होता है

3- प्राकृतिक वनस्पति और वन संसाधन (Natural Vegetation and Forest Resources)- प्राकृतिक वनस्पति प्रकृति प्रदत्त उपहारों में से एक महत्वपूर्ण उपहार है जो प्रदेश के प्राकृतिक पर्यावरण को निर्धारित और नियंत्रित करती है यह एक प्रमुख भौगोलिक तत्व है जिसका प्रभाव एक और अन्य प्राकृतिक तत्व जैसे जलवायु मृदा आदि पर प्रत्यक्ष रुप से होता है तो दूसरी ओर यह मानवीय क्रियाओं को प्रभावित करता है यही नहीं बल्कि यह एक आर्थिक संसाधन भी है अर्थात इससे मानव अनेक प्रकार की वस्तुएं प्राप्त करता है जैसे लकड़ी गुण लाख कथा जड़ी बूटियां कंदमूल पत्तियां शहद मोम आदि सामान्य रूप से प्राकृतिक वनस्पति से तात्पर्य वनों से लिया जाता है किंतु इसके अंतर्गत धरातल पर उगने वाले छोटे से छोटे पौधे घास कटीली झाड़ियां आदि सम्मिलित है एक समय था जब वनों का विस्तार पर्याप्त था लेकिन सभ्यता के विकास नगरीकरण और विशेषकर मानव द्वारा अनियंत्रित चौहान के कारण वनों का विस्तार सीमित होता जा रहा है जो चिंता का विषय है क्योंकि इसका सीधा प्रभाव पर्यावरण पर पड़ रहा है जहां एक और जलवायु को नियंत्रित करते हैं मृदा को संरक्षित करते हैं तो दूसरी और पर्यावरण प्रदूषण को भी नियंत्रित करते हैं

4 ऊर्जा संसाधन (Energy resources)- ऊर्जा संसाधन अथवा ऊर्जा की आपूर्ति आज के युग की प्राथमिक आवश्यकता है क्योंकि किसी देश और प्रदेश का आर्थिक विकास पर निर्भर करता है वर्तमान समय में घरेलू कार्यों से लेकर उद्योग परिवहन कृषि आदि सभी क्रियाओं में ऊर्जा की आवश्यकता होती है क्योंकि वर्तमान युग मशीनी युग है और मशीनों को चलाने हेतु ऊर्जा की आवश्यकता होती है ऊर्जा स्त्रोतों को दो भागों में विभक्त किया जाता है

1-परंपरागत ऊर्जा स्त्रोत-जैसे कोयला थर्मल पावर खनिज तेल जल विद्युत और अणु शक्ति

2-गैर परंपरागत ऊर्जा स्त्रोत- जैसे सौर ऊर्जा पवन ऊर्जा ज्वारीय ऊर्जा बायोगैस आदि राजस्थान में दोनों ही प्रकार के ऊर्जा स्रोत उपलब्ध हैं यद्यपि कुछ का विकास पर्याप्त नहीं हुआ है विगत दशकों में राज्य में ऊर्जा संस्था धन के विकास में प्रगति हुई है और वर्तमान में भी ऊर्जा उत्पादन में प्रथम राज्य सरकार कि प्राथमिकताओं में से है

5 खनिज संसाधन (Mineral resources)– खनिज संसाधनों की दृष्टि से राजस्थान समृद्ध देखकर कि यहां विविध प्रकार के खनिज उपलब्ध हैं इसी कारण भूगर्भवेताओं ने राजस्थान को खनिजों का संग्रहालय कहां है भारत के खनिज मानचित्र पर राजस्थान का महत्वपूर्ण स्थान है यहां 50 से भी अधिक खनिज उपलब्ध है प्रमुख खनिजों की दृष्टि से राजस्थान का उच्च स्थान है यहां देश की 19 प्रतिशत कार्यरत खदाने हैं जिन का उत्पादन मूल्य की दृष्टि से भारत में निवास स्थान है यहा वर्तमान में विविध खनिज उपलब्ध है और उनका भविष्य उज्जवल यहा उपलब्ध प्रमुख

1-धात्विक खनिज जैसे- सीसा जस्ता तांबा और टंगस्टन है इसके अतिरिक्त

2-अधात्विक खनिज-के यहां बहुलता है इसमें अभ्रक लाइमस्टोन जिप्सम रॉक फॉस्फेट संगमरमर ग्रेनाइट केल्साइट फेल्सपार और अन्य इमारती पत्थर सम्मिलित हैं वास्तव में राज्य की प्राचीन और विविधतापूर्ण भूगर्भिक संरचना ने इस के खनिज संसाधन में विविधता को जन्म दिया है भारत में राजस्थान का खनिज उत्पादन में विशेष महत्व है जेस्पार गारनेट वोलस्टोनाइट और पन्ना का राजस्थान देश का एकमात्र उत्पादक राज्य राजस्थान में खनिजों की दृष्टि से अरावली का क्षेत्र सर्वाधिक महत्वपूर्ण है

6 जल संसाधन (Water resources )– जल जीवन है और संपूर्ण प्रगति का आधार है राजस्थान जिसे राज्य के लिए जल का महत्व और भी अधिक हो जाता है क्योंकि इसका आधे से अधिक बात सच को और अर्ध शुष्क है जो वार्षिक वर्षा का औसत 25 सेमी से कम है इस प्रदेश में सूखा और अकाल सामान्य है और प्रत्येक वर्ष कुछ ना कुछ जिले सूखे की चपेट में आते हैं एक समय था जब मरुस्थलीय क्षेत्रों में पेयजल भी उपलब्ध नहीं था और इसके लिए अनेक किलोमीटर प्रतिदिन जाना होता था लेकिन वर्तमान में स्थिति में परिवर्तन आया और अधिकांश क्षेत्रों में जल उपलब्ध होने लगा लेकिन आज भी राज्य में कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जहां अति सीमित जल उपलब्ध है स्वतंत्रता के पश्चात राज्य के जल संसाधनों के विकास हेतु समुचित प्रयत्न किए गए और वर्तमान में भी किए जा रहे हैं लेकिन राज्य की प्राकृतिक परिस्थितियों विशेषकर जलवायु की प्रतिकूलता के कारण इस में कठिनाई आ रही है वर्तमान में राज्य न केवल राज्य के जल संसाधनों का उपयोग कर रहा है बल्कि पड़ोसी राज्यों से जल प्राप्त कर आपूर्ति कर रहा है राजस्थान में एंजेल आपूर्ति के लिए जो जल साधन है उनमें नदियां झीलें तालाब और भूजल प्रमुख है इसके अतिरिक्त विभिन्न परियोजनाओं विशेषकर नदी घाटी योजनाओं के अंतर्गत निकाली गई नहर राज्य में जलापूर्ति का प्रमुख साधन है जल संसाधनों के सीमित होते हुए भी राज्य में उनके विकास के पर्याप्त प्रयत्न किए जा रहे हैं

7 वन्य जीव और जैव विविधता ( Wildlife and biodiversity )- वनों के समान वनों में निवास करने वाले वन्य जीव प्राकृतिक पर्यावरण के अभिन्न अंग है और जैव विविधता के प्रत्येक हैं राजस्थान के भौगोलिक पर्यावरण की विविधता तथा जलवायु उच्चावच वनस्पति मृदा जल राशि की विनीता के कारण यहां विविध प्रकार के वन्य जीवो का आवास है लेकिन इन वन्यजीवों को वर्तमान में संकट का सामना करना पड़ रहा है यहां तक कि कई जिवों के अस्तित्व को भी खतरा उत्पन्न हो गया है राज्य में एक और जहां जंगली जानवरों की विविधता है तो दूसरी ओर शाकाहारी जी और रेंगने वाले जीव भी हैं और विभिन्न प्रकार के पक्षियों देखे जा सकते हैं

8 जैव विविधता (Biodiversity) –जीवों अथवा जीवन की विविधता अथव भिन्नता जो क्षेत्रीय राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर मिलती है सामान्य रूप से जैव विविधता से अभिप्राय जीवमंडल में पाए जाने वाले जीवो की विभिन्न जातियों की विविधता से है जैव विविधता का विस्तार मृदा में उपस्थित सूक्ष्म जीवाणुओं से लेकर हाथी जैसे विशाल काय प्राणियों सुक्ष्म लाइकेन से लेकर विशालकाय रेड वुड वृक्षों और सूक्ष्म प्राणी प्लांकटन से लेकर स्थूलकाय ह्वेल पाया जाता है यह विविधता आनुवंशिक जाति और पारिस्थितिक तंत्र प्रकार की होती है जो पर्यावरण संतुलन में महती भूमिका निभाती है राज्य की प्राकृतिक विशिष्टताओं ने यहां के पेड़ पौधे और जीव जंतुओं को एक अनूठापन दिया है और यह राजस्थान को जैव विविधता की दृष्टि से एक समृद्ध प्रांत बनाते हैं

6. भू-गर्भवेत्ताओं ने राजस्थान राज्य को खनिज संसाधन की दृष्टि से क्या कहा है ?

उत्तर- राजस्थान राज्य को “खनिजो का संग्रहालय” तथा “खनिज भंडारों का अजायबघर” कहा है।

7. राजस्थान में कितने प्रकार के खनिज का उत्खनन किया जा रहा है ?

उत्तर- राजस्थान में 44 प्रकार के प्रधान खनिज तथा 23 प्रकार के लघु खनिज अर्थात कुल 67 प्रकार के खनिजों का खनन किया जा रहा है।

8. तांबा के बारे में बताइये ?

उत्तर – राजस्थान में प्राचीनकाल से ही खेतड़ी सिंघाना (झुंझुनू) से तांबा निकाला जा रहा है। उत्पादन की दृष्टि से राजस्थान का झारखंड और आंध्रप्रदेश के बाद तीसरा स्थान आता है। विश्व मे प्रथम स्थान चिली देश का है। ताम्बा और जस्ता को मिलाकर एक मिश्रित धातु पीतल बनती है। खेतड़ी में भारत सरकार द्वारा हिंदुस्तान कॉपर लि. संयंत्र की स्थापना 1966 में की गई।

9. राजस्थान में टंगस्टन की प्रमुख बातें बताइये?

उत्तर- राजस्थान में विश्व का एकाधिकार है। वर्तमान में एकमात्र खान डेगाना (नागौर) में है। वर्तमान में भू-विज्ञान द्वारा सिरोही जिले में टंगस्टन के नए भंडार मिले हैं लेकिन उत्खनन प्रारम्भ नही हुआ है। इसका प्रयोग रक्षा सामग्री एवं बिजली के बल्ब (तन्तु) बनाने में किया जाता है। टंगस्टन वुलफ्रेमाइट नामक अयस्क से प्राप्त किया जाता है।

10. राजस्थान राज्य के खनिजो को तकनीकी दृष्टि से कितने भागो में बाटा गया है।? बताइये ।

उत्तर – तकनीकी दृष्टि से राज्य के खनिजों को तीन भागों में बांटा गया है।

1. धात्विक खनिज (Metallic mineral)- वे खनिज जिनसे प्रमुख धातुओ को रासायनिक प्रक्रिया द्वारा अलग किया जाता है। जैसे- ताम्बा, सीसा, जस्ता, चाँदी, सोना , लोहा, मैंगनीज़, केडमियम, बेरिलियम ,वालफ्रेमाइट आदि।

2. अधात्विक खनिज(Non-metallic minerals)- इनका उपयोग प्राकृतिक रूप में ही किया जाता है। इनका धातु अलग नहीं किया जाता है। रासायनिक प्रक्रिया द्वारा खनिज अयस्क से मूल रूप से प्राप्त नही किया जा सकता हैं। वे अधात्विक खनिज कहलाते है। जैसे –

(i) बहुमूल्य पत्थर – पन्ना , तामड़ा आदि।

(ii) इलेक्ट्रॉनिक एवम आण्विक खनिज – अभ्रक, यूरेनियम आदि।

(iii) उर्वरक खनिज- जिप्सम, फॉस्फेट, पाई राइट रॉक आदी।

(iv) रासायनिक खनिज- नमक , बेराइट , चुना- पत्थर आदि

(v) गौण खनिज – संगमरमर, इमारती पत्थर, ग्रेनाइट, मुल्तानी मिट्टी आदि।

(vi) मृत्तिका खनिज उच्चताप व अवरोधी – एस्बेस्टस, फेल्सपार , क्वार्ट्ज, मैग्नेसाइट, कांच-बालुका, वर्मीकलाइट , वालस्टोनाईट, डोलोमाईट,

(vii) अन्य खनिज – स्टेटाइट , केलसाइट आदि।

3. ईंधन वाले खनिज – कोयला, खनिज तेल , प्राकृतिक गैस आदि।


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