राजस्थान का पशुपालन - PART-2

 

( राजस्थान का पशुपालन PART-2 )



पशुओं से संबंधित योजनाएं  ( Animal Related Schemes )

  • चारा विकास योजना

  • गौ संवर्धन योजना

  • कामधेनु योजना

  • गोपाल योजना

  • गाय एवं भैंस विकास योजना

  • पशु प्रजनन फार्म डेयरी विकास योजना

  • पांच देसी घी योजना

  • बायो गैस योजना

  • ऊन का घर बीकानेर

  • ऊटों का घर बीकानेर

  • ऑपरेशन फ्लड

दुग्ध उत्पादक एवं उपभोक्ता में निकट संपर्क स्थापित करने तथा दुग्ध उत्पादन को बढ़ाने के उद्देश्य से भारत सरकार द्वारा 1970 में यह अभियान चलाया गया।

Rajasthaan animal husbandry Question

प्रश्न-1..देश की दूसरी दूध परीक्षण एवं अनुसंधान प्रयोगशाला कहां खोली गई है??

उत्तर-1..जयपुर में (प्रथम प्रयोगशाला हरियाणा में )है

प्रश्न-2..मुख्यमंत्री पशुधन निशुल्क दवा योजना क्या है??

उत्तर-2..इस योजना में पशुधन के सर्वाधिक उपयोग में आने वाली 110 आवश्यक दवाइयां और 13 सर्जिकल/ ड्रेसिंग मेटेरियल निशुल्क उपलब्ध कराया जाता है

प्रश्न-3..नई पशु धन नीति में किस बात पर जोर दिया गया है??

उत्तर-3..नई पशुधन नीति 18 फरवरी 2010 को घोषित की गई थी

इसमें निम्न बातों पर जोर दिया गया है—

  1. देशी और उन्नत नस्लों को प्रोत्साहित करने हेतु उनका संरक्षण और विकास किया जाएगा

  2. पशुधन युवाओं और महिलाओं को रोजगार उपलब्ध करवाने में महत्वपूर्ण योगदान दे सके

  3. ऊंट और घोड़ों के विकास पर ध्यान दिया गया है

  4. पर्याप्त अनुसंधान और मानव संसाधन विकास कार्यों को बढ़ावा देने के लिए आधुनिक तकनीक का समावेश किया जाएगा

  5. पशुपालन उत्पादों की वार्षिक वृद्धि दर 6% रखी जाएगी

प्रश्न-4..गॉट स्काउट योजना क्या है??

उत्तर-4..बकरी पालन को बढ़ावा देने के लिए ग्रामीण बेरोजगारों को रोजगार देने के लिए राजस्थान सहित देश के 10 राज्यों में गोट स्काउट योजना आरंभ की गई है

जिसमें निम्न प्रावधान दिए गए हैं–

  1. युवाओं को बकरी पालन का प्रशिक्षण दिया जाता है

  2. गोट स्काउट 10 किलोमीटर की परिधि में 2000 बकरियों की पहचान करेंगे जिन्हें स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करवाई जाएगी

  3. बकरी पालकों को 95 बकरियां और 5 बकरों की यूनिट के लिए 2.36लाख का अनुदान दिलाया जाएगा

प्रश्न-5..राज्य में पशुधन नस्ल सुधार हेतु क्या उपाय किए जा रहे हैं??

उत्तर- राज्य में पशुधन नस्ल सुधार हेतु निम्न उपाय किए जा रहे हैं

  1. पशुधन विकास बोर्ड द्वारा गाय और भैंस वंश में नस्ल सुधार हेतु कृतिम गर्भाधान कार्यक्रम चलाया जा रहा है

  2. राज्य में कृत्रिम गर्भाधान केंद्र प्रारंभ किए गए हैं जिन पर कृत्रिम गर्भाधान हेतु आवश्यक तरल नाइट्रोजन और हिमकर्त वीर्य उपलब्ध कराया जाता है

  3. इस कार्यक्रम में जोधपुर जिले के नारवा खीचिंयान में नवीन जर्म प्लाज्म स्टेशन स्थापित किया गया है

  4. पशुपालन विभाग ने सातो संभाग मुख्यालय पर सीमन डीपो स्थापित किए हैं

  5. तरल नाइट्रोजन की आपूर्ति हेतु बोर्ड द्वारा 28 मल्टी यूटिलिटी वाहन और टैंकर आदी संसाधन उपलब्ध कराए गए हैं

  6. नागौर जिले में बाकलिया फार्म पर भैंस पालन योजना आरंभ की गई है

  7. राजस्थान पशु चिकित्सालय और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय बीकानेर में देशी गोवंश राठी थारपारकर कांकरेज और गिर नस्ल को पशु प्रजनन फार्म स्थापित किए गए हैं

  8. साहिवाल नस्ल के संरक्षण और उन्नयन हेतु फार्म स्थापित किया जा रहा है

06. राजस्थान का एकमात्र दुग्ध विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी महाविद्यालय कहा है ?

उत्तर- राज्य का एकमात्र दुग्ध विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी महाविद्यालय उदयपुर में महाराणा प्रताप कृषि व तकनीकी विश्वविद्यालय के अधीन संचालित है।

07. केंद्रीय भेड़ व ऊन अनुसन्धान संस्थान की स्थापना कब व कहा हुई ?

उत्तर-केंद्रीय भेड़ व ऊन अनुसंधान संस्थान की स्थापना अविकानगर, मालपुरा(टोंक) में भारतीय कृषि अनुसंधान द्वारा स्थापित की गई।इसका उपकेंद्र बीकानेर में कार्यरत है

08. सुअर पालन में राजस्थान विवेचना कीजिये?

उत्तर- भारत मे सर्वाधिक सुअर उत्तरप्रदेश में है। राजस्थान में सर्वाधिक सुअर जयपुर व सबसे कम बांसवाड़ा में है। अलवर में उन्नत नस्ल के विदेशी सुअरो के लिये राजकीय सुअर फार्म स्थापित किया गया है। यह लार्ज व्हाइट यॉर्कशायर सुअर पाले जाते है। यहा सुअर पालको को विदेशी नस्ल के सुअर के बच्चे उपलब्ध करवाने की सुविधा है। राज्य का देश मे सुअर पालन में 18वा स्थान है।

09.मारवाड़ी नस्ल की भेड़ो के बारे में बताइये ?

उत्तर- राजस्थान के कुल भेड़ो में सर्वाधिक भेड़े मारवाड़ी नस्ल (लगभग 45%) की है। यह लम्बी दूरी तय करने के पश्चात भी शीघ्र पीड़ित नही होती है अर्थात इसमे रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है।अधिकांशत यह घुम्मकड़ खेड़ले में पाई जाती है।ये औसतन प्रतिवर्ष 1-2किलोग्राम तक ऊन देती है। यह राजस्थान मव सर्वाधिक जोधपुर, बाड़मेर, पाली, दौसा, जयपुर, आदि जिलों में पाई जाती है।

10. राजस्थान में गौ-वंश की नस्ले को विस्तार से बताइये?

उत्तर- गाय की नस्ले निम्न प्रकार है।

(१) नागौरी- इसका उत्तप्ति क्षेत्र नागौर के सुहालका प्रदेश में है। इस नस्ल के बैल मजबूत कद-काठी के लिए प्रसिद्ध है।इस बैल की पतली और मजबूत टांगे फुर्तीला दौड़ने और हल चलाने में अत्यंत उपयोगी है।इस नस्ल की गाय दूध कम देती है।इस किस्म के बैल अधिकतर जोधपुर, नागौर व नागौर से लगने वाले पड़ोसी जिलो में पाए जाते हैं।

(२)कांकरेज- मूलस्थान कच्छ का रण(गुजरात)

इस नस्ल की गाय प्रतिदिन 5-10लीटर दूध देती है। इस नस्ल के बैल भी अच्छे भारवाहक होते है। यह नस्ल सफल दुग्धवाहिनी व भारवाहक होने के कारण इसे द्विपरियोजनिय नस्ल कहते हैं। यह राजस्थान के दक्षिण-पश्चिम भागो में पाई जाती है।

(३)थारपारकर- मूल स्थान – मालाणी(बाड़मेर)

यह अत्यधिक दूध के लिके प्रसिद्व है इसे स्थानीय भागो में मालाणी के नाम से जाना जाता है। इस नस्ल के बैलो में परिश्रम क्षमता अधिक नही होती है । यह बाड़मेर, जैसलमेर, सांचौर तथा जोधपुर क्षेत्रों में पाई जाती है।

(४)राठी- इसे राजअथाह की कामधेनु भी कहते है । यह लाल सिंधी एवम साहीवाल की मिश्रित नस्ल है। यह अधिक दूध देने के लिए प्रसिद्ध है लेकिन इनके बैलो में भारवाहक क्षमता कम होती है। यह राजस्थान में उत्तर-पश्चिम भागो में श्री गंगानगर, बीकानेर, जैसलमेर में पाई जाई है।

(५)गिर- मूल स्थान – गुजरात के सौराष्ट्र का गिर वन । इस नस्ल की गाय को राजस्थान में रेंडा एवं अजमेर में अजमेरा कहते हैं।यह भी द्विपरियोजनिय नस्ल है यह राजस्थान में दक्षिणी -पूर्वी भाग अजमेर, चित्तौड़गढ़, बूंदी कोटा आदि जिलों में सर्वाधिक पाए जाते है।

(६) हरियाणवी- इसकी मुख्य विशेषता यह है कि इसकी सिर की हड्डी ऊपर उठी हुई होती है। औसत दूध देती है।बैल भी ठीक ठाक होते है।यह राजस्थान में हरियाण टच जिलो में पाई जाती है।

(७)मालवी- मूलस्थान -मध्यप्रदेश का मालवा क्षेत्र ! इस नस्ल की टाँगे छोटी व मजबूत होती है छोटा कद व गठीला बदन होने के कारण यह पहाड़ी क्षेत्रों में उबड़ खाबड़ भूमि पर आसानी से चल सकती है। मालवी नस्ल के बैल भारवाहक के रूप में प्रसिद्ध है,लेकिन इस नस्ल की गाये दूध कम देती है।

(८)सांचोरी – जालोर व उससे जुड़े हुए जिलो में पाई जाती है यह सामान्य दूध देती है

(९) मेवाती – इसका दूसरा नाम काठी भी है। अलवर व भरतपुर में पाई जाती है। यह शांत एवम शक्तिशाली किस्म का गौवंश है।

राजस्थान में विदेशी नस्ल की गाय भी मिलती है

(१) रेड डन -मूल स्थान डेनमार्क

(२) हॉलिस्टन – मूलस्थान हॉलेंड व अमेरिका

(३) जर्सी – मूलस्थान अमेरिका

राजस्थान में विदेशी नस्ल की गायें सर्वाधिक श्री गंगानगर, हनुमानगढ़, मध्य व पूर्वी राजस्थान में पाई जाती है।

भारत मे प्रथम स्थान उत्तरप्रदेश का है। राज्य का भारत मे गौ-वंश मव सातवाँ स्थान है।

गाय व भैंस दोनों पशुधन में फाइलेरिऐसीस, थिलेरिएसिस , एनाप्लाज़्मोसिस, फैसिलियोसिस, बेबीसीयोसिस, व खुरपा, मुंहपका ,रिंदरपेस्ट नामक रोग पाए जाते है।

प्रश्न-11..डेयरी उद्यमशीलता विकास योजना कब लागू की गई??

उत्तर-..देश में दूध के उत्पादन में वृद्धि करने के लिए डेयरी क्षेत्र में निवेश बढ़ाने और डेयरी क्षेत्र में स्वरोजगार के अवसरों का सृजन करने के उद्देश्य के साथ डेयरी उद्यमशीलता विकास योजना 1 सितंबर 2010 से प्रारंभ की गई थी

प्रश्न-12..नेशनल मिशन फॉर प्रोटीन सप्लीमेंट योजना??

उत्तर-2..इस योजना के तहत जयसमंद बांध (उदयपुर) और कडाणा बैंक वाटर (डूंगरपुर) में फिंगर लिंक का संचय किया गया है माही बजाज सागर में केज कल्चर हैतू भी योजना स्वीकृत की गई योजना के अनुसार 56 तैरते हुए केज स्थापित कर उनमें मत्स्य बीज पालन और मत्स्य पालन का कार्य किया जाएगा

प्रश्न-13..भामाशाह पशुधन बीमा योजना पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए??

उत्तर-3..किसानों और पशुपालकों को पशुधन की अकाल मृत्यु के कारण हुए नुकसान से सुरक्षा मुहैया कराए जाने की दृष्टि से दुधारू मालवाहक और अन्य पशुओं का बीमा करने हेतु भामाशाह पशुधन बीमा योजना का शुभारंभ 23 जुलाई 2016 को किया गया भारत सरकार और राज्य सरकार के आर्थिक सहयोग से इस योजना का क्रियान्वयन वर्ष 2016-17 से प्रारंभ किया गया है यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी प्रदेश के समस्त जिलों में पशुओं का बीमा किए जाने को अधिकृत होगी योजनांतर्गत उन पशुपालकों को पशुओं का बीमा किया जाएगा जिनके पास भामाशाह कार्ड है इस योजना के तहत अनुसूचित जाति और जनजाति और बीपीएल श्रेणी के पशुपालकों को प्रीमियम राशि का 70% और अन्य पशुपालकों को 50% अनुदान दिया जाएगा प्रीमियम की शेष राशि पशुपालक द्वारा वहन की जाएगी बीमा 1 साल या 3 साल की अवधि के लिए चलाया जाएगा इसमें एपीएल श्रेणी के केंद्रीय और राज्य सहायता 25% व पशुपालक द्वारा देय राशि 50% होगी BPL एससी और ST के लिए केंद्रीय सहायता 40% राज्य सहायता 30% और पशुपालक द्वारा देय राशि 30% होगी

प्रश्न-14..राजस्थान में मत्स्य पालन विभाग की स्थिति??

उत्तर-4..राज्य में उपलब्ध जल संसाधनों में मत्स्य विकास को गति दिए जाने की दृष्टि से राज्य सरकार द्वारा एक स्वतंत्र मत्स्य विभाग की स्थापना वर्ष 1982 में की गई इससे पूर्व मत्स्य विकास कार्यक्रमों का संचालन पशुपालन विभाग के अधिन था राज्य में लगभग 15561 जिला से उपलब्ध है राज्य में उपलब्ध जल स्त्रोतों का पूर्ण भराव पर लगभग4.30लाख हेक्टेयर क्षेत्र उपलब्ध है इस जल क्षेत्र में 3 .3600000 हेक्टेयर क्षेत्र बड़े और मध्यम जलाशयों के रूप में 0.94 लाख हैक्टेयर छोटे जलाशय व तालाब के रूप में उपलब्ध हैं इसके अतिरिक्त 0.87 हेक्टेयर क्षेत्र नदियों और नहरो के रूप में उपलब्ध हैं राजस्थान में केवल अंतर्देशीय जल क्षेत्र में ही मत्स्य पालन किया जाता है यहा मुख्यतः कतला, राहु और मृगल आदी देशी प्रजाति की मछलियां और कॉमन कार्प, सिल्वर कार्प और ग्रास कार्प आदी विदेशी प्रजाति की मछलियां पाली जाती है

*राज्य में वर्ष-*2016-17 में मत्स्य उत्पादन 42.461लाख टन हुआ

राजस्थान इस दृष्टि से-देश में 17वें स्थान पर है

नीली क्रांति मत्स्य- उत्पादन से संबंधित है

मत्स्य पालन में प्रशिक्षण हेतु- मत्स्य प्रशिक्षण विद्यालय उदयपुर में कार्यरत है

राजस्थान में वर्तमान- में 15 मत्स्य पालक विकास अभिकरण कार्यरत है

विभिन्न सर्वेक्षण और अनुसंधान कार्य हेतु-मत्सय सर्वेक्षण और अनुसंधान कार्यालय उदयपुर में स्थापित है

बांसवाड़ा जिले में मत्स्य पालन- के इतिहास में पहली बार संवल प्रजाति की मछली को मोनोकल्चर द्वारा स्वयं की भूमि पर पौंड निर्माण कर पाला जा रहा है ,राजस्थान भर में इस तरह का कल्चर पहली बार हो रहा है राज्य का पहला मत्स्य अभ्यारण- उदयपुर के “बड़े तालाब” में बनाने की योजना है जहां पर हिमालय क्षेत्र की नदियों में पाई जाने वाली दुर्लभ महाशीर मत्स्य प्रजातियों को संरक्षण दिया जाएगा

गंबूचिया मछलियों के पालन- का मुख्य उद्देश्य राजस्थान में बढ़ रहे मलेरिया के प्रभाव पर नियंत्रण करना है

जल संसाधनों के आधार- पर राजस्थान देश में ग्यारहवें स्थान पर है

आदिवासी मछुआरों के उत्थान- हेतु महत्वकांशी आजीविका मॉडल योजना राज्य के तीन जलाशयों जयसमंद (उदयपुर) माही बजाज सागर (बांसवाड़ा) और कडाणा बैंक वाटर( डूंगरपुर) में प्रारंभ की गई है

मत्स्य विभाग के उद्देश्य-

1-पालन योग्य मत्स्य प्रजातियों के मत्स्य बीज का उत्पादन संग्रहण और संवर्धन

2-मत्स्य उत्पादन में वृद्धि मत्स्य पालन तकनीक में प्रशिक्षण देकर रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना

3-जलाशय को मत्स्य उत्पादन के लिए पट्टे पर देकर राज्य सरकार के लिए राजस्व अर्जित करना

प्रश्न-15..राजस्थान में पशुधन का प्रादेशिक वितरण और उनके मुख्य क्षेत्र का वर्णन कीजिए??

उत्तर-5..राज्य में पशुओं की विभिन्न प्रजातियों को अलग-अलग क्षेत्रों में देखते हुए निर्धारित कर मानचित्र के आधार पर समस्त राज्य को 10 भागों में विभक्त किया गया है

प्रथम भाग उत्तरी पश्चिमी (राठी) क्षेत्र- यह क्षेत्र राज्य के पश्चिमी भाग में पड़ता है जहां मात्र 25 सेमी से भी कम वर्षा होती है इस क्षेत्र में आने वाले जिले गंगानगर बीकानेर और जैसलमेर हैं वनस्पति के रूप में यहां कटीली झाड़ियां व रेलोनुरूस हिरसूटस और पेकी अटर्जीज्म नामक घास पाई जाती है यहा राठी गाय प्रमुख नस्ल है

?द्वितीय भाग -पश्चिमी क्षेत्र (थारपारकर )यह क्षेत्र भी 25 सेमी वर्षा वाला भाग हे इस क्षेत्र में आने वाले जिलों में जैसलमेर उत्तरी बाड़मेर और पश्चिमी जोधपुर (शेरगढ़ और फलोदी तहसील) जिला आता है यह राज्य के सीमावर्ती क्षेत्र में पाई जाती है यह संपूर्ण क्षेत्र अपनी जलवायवीय. विशेषता के कारण सूखा और रेतीला है बाजरा इस क्षेत्र की महत्वपूर्ण फसल है थारपारकर नस्ल की गाय इस क्षेत्र की प्रमुख गाय है जो देश में अधिक दूध देने के लिए मशहूर है क्षेत्र में अन्य पशुओं में जैसलमेरी ऊँट और जैसलमेरी भेड़ भी प्रसिद्ध है लोही बकरी भी पाई जाती है नाचना का गोमठ का ऊँट बड़ा प्रसिद्ध है

?तीसरा भाग उत्तरी नहरी सिंचित भू-भाग– यह भाग भी राज्य के कम वर्षा और अधिक तापमान वाले सूदुर उत्तर में स्थित गंगानगर और हनुमानगढ़ का भाग है यहां पर हरियाणवी नस्ल की गाय नाली नस्ल की भेड़ और मुर्रा नस्ल की भैंस प्रमुखत: पाली जाती है

?चतुर्थ भाग मध्यवर्ती (नागौरी )क्षेत्र–अर्ध शुष्क आंतरिक प्रवाह वाले इस मध्यवर्ती क्षेत्र में नागौर जिला जोधपुर (शेरगढ़ और फलोदी को छोड़कर )बीकानेर जिले की कोलायत तहसील का पूर्व विभाग और नोखा तहसील का दक्षिणी पूर्वी भाग चूरु जिले की सुजानगढ़ तहसील का दक्षिणी भाग और पाली जिले की सोजत और रायपुर तहसील सम्मिलित है क्षेत्र में प्रमुखता भेड़ बकरी ऊंट गाय और बैल पाले जाते हैं नागौरी गोवंश की प्रमुख नस्ल हैं नागोरी बेल संपूर्ण देश में प्रसिद्ध हैं इस क्षेत्र में प्रमुखता भेड़ बकरी ऊंट गाय बैल पाये जाते हैं मालाणी नस्ल के घोड़े और बीकानेरी ऊँट भी मशहूर है इस क्षेत्र में अंजन और पाला नामक घासे पाई जाती है

?पांचवा भाग- दक्षिणी पश्चिमी क्षेत्र (सांचौर और कांकरेज)- इस क्षेत्र में वार्षिक वर्षा 50 सेमी और माउंट आबू में 150 से में वर्षा होती है क्षेत्र में आने वाले जिलों में सिरोही जालौर पाली जिले की खारची देसूरी पाली और बाली तहसील है और बाड़मेर जिले के उत्तरी भाग के अतिरिक्त समस्त क्षेत्र आता है कांकरेज बैल इस क्षेत्र के बड़े महत्वपूर्ण है क्योंकि वह बहुत ही शक्तिशाली और शरीर में काफी सुडोल होते हैं यह भारी सामान खींचने में सक्षम होते हैं

?छठा भाग दक्षिण और दक्षिण पूर्वी (मालवी )क्षेत्र- इस प्रदेश में 75 सेमी तक वर्षा और मई का तापमान 32 डिग्री सेल्सियस और जनवरी में 18 डिग्री सेल्सियस होता है क्षेत्र की दृष्टि से इसमें बांसवाड़ा डूंगरपुर झालावाड और कोटा जिले आते हैं तथा डूंगरपुर जिले में अरावली श्रेणी बांसवाड़ा में छप्पन का मैदान बॉरा कोटा और झालावाड में पठारी भू -भाग पाया जाता है यह क्षेत्र मालवी नस्ल के चौपायों के कारण प्रसिद्ध है भेड़ यहा सोनाली नस्ल की मिलती है बकरियां सिरोही किस्म की भैंस मुर्रा नस्ल से थोड़ी कमजोर ऊंट भारवाही जाति के मिलते हैं

?सातवां भाग दक्षिणी-पूर्वी मध्यवर्ती (गिर )क्षेत्र- इस क्षेत्र में वर्षा लगभग 75 सेमी होती है इस क्षेत्र में राजसमंद उदयपुर चित्तौड़गढ़ अजमेर भीलवाड़ा और बूंदी जिले आते हैं भैंसों की स्थानीय नस्ल दरांतीनुमा रखती है मारवाड़ी नस्ल की भैंड लोकप्रिय है अजमेर और नसीराबाद में गिर नस्ल के सर्वश्रेष्ठ जानवर हैं जिनमें गाय प्रमुख हैं

?आठवां भाग-मेवात प्रदेश- देहली और उत्तर प्रदेश से लगा हुआ यह प्रदेश राजस्थान के पूर्व में अलवर और भरतपुर जिलों में विस्तृत है मेवाती गाय मुर्रा भैंस अलवरी और बारबरी बकरियां इस प्रदेश की मुख्य पशु धन संपत्ति है

?नवा भाग-रथ प्रदेश- क्षेत्र में पानी की अच्छी मात्रा के कारण लोग खेती में संलग्न है क्षेत्र में अलवर भरतपुर और धौलपुर जिले आते हैं यहां मुर्रा भैंस अलवरी बकरी पाई जाती है

?दसवां भाग-उत्तरी पूर्वी और पूर्वी (हरियाणा) प्रदेश- इस प्रदेश में गंगानगर (करणपुर पदमपुर अनूपगढ़ और रायसिंहनगर तहसील छोड़कर )चूरु झुंझुनू सीकर जयपुर और पूर्वी बीकानेर के विभाग आते हैं इस भूभाग में प्रसिद्ध हरियाणा नस्ल की गाय राठी थारपारकर और कांकरेज है भैंसों में मुर्रा नस्ल ,भैड़ों में चोकला नाली और मारवाड़ी नस्लें बकरियों में जमुनापारी बड़वारी अलवरी और सिरोही है इस भूभाग में उत्तर पौष्टिक घासें अंजन मुरुत चिम्बर और खाबल पाई जाती है


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